कंजूस मालिक (बांग्ला बाल कहानी) : महाश्वेता देवी
Kanjoos Maalik (Bangla Story) : Mahasweta Devi
एक समय की बात है, एक बेहद कंजूस टाइप का जमीन का मालिक था। वह खेत जोतने के काम में जिसको रखता था, वह एक साल भी टिकता नहीं था। जमीन जोतना, बीज बोना, पानी देना, इन सब कामों के लिए खाने भर को देता था। फसल कट जाने पर खाने को भी नहीं देता था ।
पेट भरने के लिए तो ये सब खटते थे। यदि पेट ही न भरे तो, खटेंगे कैसे ? इस कंजूस के बारे में सबको पता चल गया। एक समय ऐसा आया कि उसे खटने वाला आदमी मिलना मुश्किल हो गया। जिसे भी काम पर लगाना चाहता, वही डबल मजदूरी माँगने लगता।
कोरा नाम का एक बुद्धिमान संथाली था । उसने एक आदमी को कहा, 'मुझे उस कंजूस के पास ले चलो। उसको सबक सिखाना जरूरी है। उसे उसकी चालाकी से ही पछाडूंगा।'
उस आदमी के साथ कोरा उस कंजूस के सामने हाजिर हुआ। उस कंजूस ने उसे खाने-पीने को दिया और बैठने को कहा। उसके बाद कहा, 'ऐ सुनो, पूरे साल काम करोगे तो ? न कि बीच में ही भागोगे?'
'क्या देंगे, तब बताऊँगा ।'
'काम देखकर तय करूँगा । यदि अच्छा काम करोगे तो साल में बारह पसेरी चावल दूँगा । अगर नहीं तो, नौ-दस पसेरी। और कपड़े लत्ते भी मिलेंगे ही ।'
कोरा ने कहा, 'अब मेरी शर्त है, उसे सुन रखिये। मुझे पता है कि खेतिहरों को कम खाना देते हैं आप, वे काम छोड़कर भाग जाते हैं। साल में मुझे एक बीज धान का देना, नीची जमीन में खुद लगाऊँगा । और एक बीज गेहूँ का, ऊँची जमीन में लगाऊँगा । कमीज - धोती गमछा देना। रोज भरपूर एक पत्तल भात खाने को दोबारा नहीं माँगूँगा । तब अगर मैं दम भर काम न करूँ तो मेरा अँगूठा काट लेना। और यदि आप शर्त के खिलाफ काम करेंगे, तो आपकी उँगली काट लूँगा, मंजूर है?'
जो आदमी साथ में आया था, उसे कोरा ने कहा, 'तुम साक्षी रहो। शर्त हो गयी है। मैं शर्त के खिलाफ करता हूँ या ये, तुम इसका सबूत देना।'
कोरा ने मजदूरी करनी शुरू की। पहले दिन एक शाल के पत्ते में भरकर भात मिला। दूसरे दिन वह हाजिर हुआ एक केले का पत्ता लेकर । लम्बा-चौड़ा केला का पत्ता ।
मालिक तो गुस्से से लाल । उसने कहा, 'केले के पत्ते में भात खाओगे ? समझ क्या रखा है ?'
'शर्त तो यही थी ।'
'हाँ, थी तो ।'
अब रोज केले के पत्ते में वह भात खाता । रसोइये ने कहा, 'यह तो अजीब बात है, भात बनाते-बनाते तो हालत खराब है। यह किस तरह के आदमी को पकड़ लाये हुजूर, दस आदमियों का भात अकेला गड़प जाता है ?'
'अरे, उतना काम भी तो करता है, देखते नहीं?'
कोरा काम में कोई गफलत नहीं करता। उस कंजूस की जमीन जोतना, गाय को सम्भालना, सब तरह का काम अपने हाथों पूरा करता ।
मजदूरी में एक बीज गेहूँ का ।
कोरा ने मालिक से कहा, 'देखें, इस गोबर के ढेर में बीज बो दिया है।'
धान का बीज उसने नीची जमीन में बो दिया। गेहूँ के पौधे में अनेक दाने पैदा हुए। उसी तरह धान के पौधे में अनेक धान लगे ।
कोरा ने उन सबको बीज के रूप में रख छोड़ा।
दूसरे साल भी धान व गेहूँ के पौधे हुए । तिस पर उसे अलग से शर्त के अनुसार बीज एक-एक कर मिले। उन बीजों को भी अगले साल के लिये रख छोड़ा। धान बोने के लिए नीची जमीन और गेहूँ के लिये ऊँची जमीन मिली, यही तो शर्त थी ही।
इस तरह से छह साल में देखा गया कि मालिक के हाथ से सारी जमीन निकल गयी है। कोरा उनकी ही जमीन पर अपने धान के पौधे लगा रहा है। ऊँची जमीन पर गेहूँ लगा रहा है। बल्कि मालिक ही अब उसके खेत में मजदूरी कर रहा है।
अन्त में मालिक ने गाँव के लोगों के पास जाकर शिकायत की, रोना- धोना शुरू किया। कोरा भी वहीं हाजिर हुआ ।
गाँव के लोगों ने कहा, 'मालिक को खूब दण्ड मिला है। इस बार उन पर दया करो।'
कोरा ने कहा, 'दण्ड मिलना ही था । दोष किया था, गरीब मजदूरों को भरपेट खाना नहीं देता था। अब वह खुद भुगते ।'
'अरे नहीं, उसको थोड़ी-सी जमीन दो। वह चला जाये।'
'तो फिर वह अपने दाहिने हाथ की उँगली काट दे । जितने को इसने खटाया है, उन्हें बुलाओ। मैं उन्हें धान दूँगा, चावल दूँगा। सबको उनका प्राप्य मिलना चाहिए ।'
'बाप रे, मैं उँगली नहीं काटूंगा।'
'इसी तरह की तो शर्त थी। ठीक है, दया चाहते हो, तो छोड़ देता हूँ । आधी जमीन छोड़ देता हूँ। तुम अपने हिस्से धान व गेहूं से उन सब मजदूरों को उनका हिस्सा दो ।'
सबको बुलाया गया। बातें न बनाकर मालिक ने इस बार उन सबको धान-गेहूँ बाँट दिये। उसके बाद बोला, 'अगर उन दिनों तुम सबको न ठगता, तो आज मुझे दण्ड नहीं भुगतना पड़ता। कोरा ने मुझे जिस तरह लज्जित किया है मैं लोगों को अपना मुँह दिखाने के काबिल न रहा।'
इस लज्जा से बचने के लिए मालिक ने अपनी बेटी से कोरा की शादी कर दी।
तब से उस कंजूस मालिक को मजदूरों की दिक्कत नहीं होती। जो काम पर आते हैं, वे केले के पत्ते में भरपेट भात खाते हैं। साल खत्म होते ही वे ढेर सारे धान और गेहूँ भर-भरकर ले जाते हैं।
और कोरा को अपना आभार प्रकट करते हैं ।
कोरा अपनी सफलता पर हँसता है।