कड़वी मिठाई (यहूदी कहानी) : इसाक बेशविस सिंगर

Kadvi Mithaai (Yiddish Story in Hindi) : Isaac Bashevis Singer

इस्राइल के एक छोटे से शहर में एक अमीर आदमी रहता था। उसका नाम था कादिश। कादिश का इकलौता बेटा था अतजल। देखने में सुंदर, पर स्वभाव से आलसी। स्वर्ग की कहानियाँ बहुत अच्छी लगती थीं उसे। वह हर एक से कहानियाँ सुनाने का आग्रह किया करता। हरदम कहानियों में खोया रहता था।

अतजल ने सुना था—स्वर्ग में सब आराम करते हैं। वहाँ किसी को कोई काम नहीं करना पड़ता। इच्छा करते ही हर चीज मिल जाती है। बच्चों को स्कूल भी नहीं जाना पड़ता। फरिश्ते सारा काम करते हैं। वह स्वर्ग की तुलना अपने घर से करता तो परेशान हो उठता। यहाँ तो माँ हर समय चिल्लाती रहती हैं। हर समय डाँट-फटकार सुननी पड़ती है।

अतजल सोचता रहा, सोचता रहा। वह चाहता था कि किसी तरह स्वर्ग चला जाए। लेकिन उसे पता था, मनुष्य मरने के बाद ही स्वर्ग जा सकता है। बस, उसने मरने की ठान ली।

वह चुपचाप जाकर बिस्तर पर लेट गया। जो भी उसे उठाने आता, उससे कह देता, ‘‘मैं तो मर गया हूँ।’’ और खाना-पीना छोड़ दिया। माँ बहुत दुखी हो गईं। उसे समझाया, पर वह बोला, ‘‘माँ, तुम मुझसे कैसे बात कर रही हो? मैं तो मर चुका हूँ।’’

उसकी बहकी-बहकी बातें सुनकर घरवाले बहुत दुखी हुए। माँ जैसे-तैसे करके उसे कुछ खिलातीं, पर अतजल दिन-प्रतिदिन कमजोर होता गया। कई हकीम-वैद्य आए, पर वे कुछ न कर सके। हर बात के जवाब में अतजल यही कहता, ‘‘मैं तो मर चुका हूँ।’’

अतजल की माताजी एवं पिताजी की चिंता का ठिकाना न रहा। वे इसी फिक्र में थे कि अपनी इकलौती संतान को कैसे बचाएँ? बच्चे ने बेवकूफी-भरी हठ ठान ली थी और मौत के दरवाजे पर जा पहुँचा था।

आखिर अतजल के पिता कादिश डॉ. योत्स के पास गए। उनका नाम बहुत मशहूर था। डॉ. योत्स ने सारी बात सुनने के बाद कहा, ‘‘मैं उसका इलाज कर सकता हूँ। पर एक शर्त है। मैं जैसे कहूँगा, वैसा ही करना पड़ेगा।’’

मरता क्या न करता, कादिश ने डॉ. योत्स की शर्त मान ली। बात बेटे का जीवन बचाने की जो थी। डॉ. योत्स कादिश के साथ आ गए। उन्होंने एक मकान के कमरे को सुंदर ढंग से सजाया। पलंग पर फूल बिखेर दिए। कई नौकर परियों के पंख लगाकर देवदूत बन गए। कमरे में दीवारों पर लिख दिया गया—‘स्वर्गलोक’। इसके बाद डॉ. योत्स कादिश के साथ अतजल के कमरे में गए। उन्होंने कहा, ‘‘अरे, यह बच्चा तो मर चुका है। इसे दफनाते क्यों नहीं!’’

डॉ. योत्स की बात सुनकर अतजल खुशी से चहकने लगा। उसने कहा, ‘‘मैं तो कब से यही कह रहा हूँ। दफनाने के बाद ही तो स्वर्ग जाता है आदमी।’’

झूठमूठ की एक अरथी बनाई गई, फिर उसपर अतजल को लिटाकर सब कब्रिस्तान की ओर ले चले। इस बीच बेहोशी की दवा सूँघने से अतजल नींद में डूब गया। तब उसे विशेष रूप से सजाए गए कमरे में ले जाया गया।

जब अतजल की आँख खुली तो वह हैरानी से चारों ओर देखने लगा। दीवार पर लिखे शब्द पढ़कर वह बहुत ही खुश हुआ। समझ गया कि मरने के बाद वह सचमुच स्वर्ग में आ गया है। वहाँ न उसके माँ-बाप थे, न ही दोस्त। गली-मोहल्लेवाले भी दिखाई नहीं दे रहे थे।

थोड़ी देर बाद देवदूत की पोशाक में परी जैसे पंख लगाए एक नौकर वहाँ आया। उसने कहा, ‘‘अतजल, स्वर्ग में तुम्हारा स्वागत है। मैं देवदूत हूँ।"

अब तो अतजल को पक्का विश्वास हो गया। उसने कहा, ‘‘मुझे भूख लगी है।’’ पलक झपकते ही नौकर बढि़या-बढि़या व्यंजनों से भरा थाल ले आया। ढेर सारी मिठाइयाँ थीं। अतजल ने छककर खाया और फिर सो गया। नींद खुलने पर पानी माँगा तो बादाम का शरबत हाजिर।

शरबत पीकर अतजल ने पूछा, ‘‘कितना समय हुआ है?’’

देवदूत बने नौकर ने कहा, ‘‘यह स्वर्गलोक है। यहाँ समय ठहर जाता है। न रात होती है, न दिन निकलता है। सदा ऐसा ही रहता है।’’

यह सुनकर अतजल को अच्छा तो न लगा, फिर भी वह खुश था। सोचा, अब स्वर्ग में दिन आराम से कटेंगे। इस बार नींद से जागा तो उसने कहा, ‘‘कुछ चटपटी, नमकीन चीज लाओ।’’

नौकर ने बताया, ‘‘स्वर्ग में हर चीज मीठी होती है। वही मिल सकती है।’’ मिठाई खा-खाकर अतजल का जायका बिगड़ गया था। वह नमकीन खाना चाहता था। पानी की जगह मीठा शरबत मिलता। वह पानी पीने को तरस गया। वह इधर-उधर घूमने लगा। उसे कई परियाँ, कई देवदूत नजर आए। पर किसी ने उससे बात नहीं की। हाँ, वह कोई भी चीज माँगता तो तुरंत ला देते।

अतजल उदास हो उठा। उसे माँ और पिताजी याद आ रहे थे। वह अपने दोस्तों से मिलना चाहता था। उसने एक देवदूत से पूछा, ‘‘मेरी माँ और पिताजी यहाँ कब आएँगे?’’

‘‘उनके आने में तो अभी बहुत वर्ष बाकी हैं। उन्हें काफी समय तक पृथ्वी पर रहना पड़ेगा।’’

‘‘और मेरे दोस्त? वे कब आएँगे?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त सत्तर वर्ष बाद आएँगे।’’ देवदूत बोला।

यह सुनकर अतजल रो पड़ा। बोला, ‘‘मैं धरती के लोगों से मिलना चाहता हूँ। मुझसे पहले जो बच्चे यहाँ आए हैं, उन्हीं को बुला दो।’’

देवदूत हँसकर बोला, ‘‘यह नहीं हो सकता। यहाँ सबका अपना-अपना स्वर्ग है। जो जहाँ है, वहीं रहता है। वह कहीं आ-जा नहीं सकता।’’

यह सुनकर तो अतजल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। हर समय मीठी चीजें खाने से वह परेशान हो गया। अकेलापन उसे डराने लगा। उसे नींद न आती। खिड़कियों से बाहर झाँकने की कोशिश करता तो उसे कुछ दिखाई न देता। हर तरफ मोटे-मोटे परदे पड़े थे। अतजल अपने स्वर्ग में अकेले कैदी की तरह हो गया था। अब वह रह-रहकर रो पड़ता। चिल्ला उठता।

‘‘मैं स्वर्ग में नहीं रहना चाहता। मुझे मेरे घर वापस भेज दो। मुझे माँ डाँटेंगी तो कोई बात नहीं, सह लूँगा। मैं अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहता हूँ। पढ़ना चाहता हूँ।’’ उसने गिड़गिड़ाते हुए एक देवदूत से कहा, जो उसके लिए मिठाई लेकर आया था।

देवदूत बोला, ‘‘जो एक बार स्वर्ग में आ जाता है, उसे हमेशा यहीं रहना पड़ता है। वह कहीं नहीं जा सकता। वैसे भी धरती पर तुम्हें सब भूल चुके होंगे।’’ अतजल को माँ-बाप का दुखी चेहरा याद आया। उनकी सिसकियाँ कानों में गूँजने लगीं। वह चीखा, ‘‘वे मुझे कभी नहीं भूल सकते। ऐसा कभी नहीं हो सकता।’’ और सुबक-सुबककर रोने लगा।

एक दिन वह रो रहा था, तभी देवदूत भागता हुआ आया। बोला, ‘‘अतजल, भगवान् ने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली। कुछ गड़बड़ हो गई थी। हमें तो अतजल नामक दूसरे लड़के को स्वर्ग लाना था, पर गलती से हम तुम्हें ले आए। तुम्हें जल्दी ही धरती पर वापस भेज देंगे।’’

अतजल खुश हो गया। बाद में बेहोशी की दवा मिली मिठाई खाने से वह बेहोश कर दिया गया। फिर उसे लाकर उसके कमरे में लिटा दिया गया।

माँ के झिंझोड़ने से अतजल की आँखें खुलीं। वह चौंककर देखने लगा। सचमुच वह स्वर्ग में नहीं, अपने ही कमरे में था।

सब तरफ आवाजें गूँज रही थीं। अतजल उठा और माँ से लिपट गया। उसने कहा, ‘‘माँ, स्वर्ग अच्छी जगह नहीं है। मैं पढ़ूँगा, मेहनत करूँगा और यहीं रहूँगा।’’

दूसरे कोने में खड़े डॉ. योत्स हँस पड़े।

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