कब्रों का विलाप (कहानी) : ख़लील जिब्रान
Kabron Ka Vilaap (Story in Hindi) : Khalil Gibran
अमीर इंसाफ की गद्दी पर बैठा। उसके दाएं-बाएं देश के विद्वान बैठे थे। उनके चढ़े हुए चेहरों पर किताबों की छाया खेल रही थी। आस-पास सिपाही तलवारें थामे और नेजे उठाये खड़े थे। सामने लोग यह देखने के लिए खड़े थे कि किस अपराधी को क्या दंड मिलता है। सबकी गर्दनें झुकी हुई थीं। आँखों में बेबसी झलक रही थी। और सांस रुकी हुई थी, मानो अमीर की आँखों में एक ऐसी ताकत थी, जो उनके दिलों पर डर और रौब गालिब कर रही थी।
अमीर ने हाथ उठाया और चिल्लाकर कहा, ‘‘मुलजिमों को एक-एक करके मेरे सामने हाजिर करो और बताओ कि उनमें से किसने क्या कसूर किया है ?’’
कैदखाने का दरवाजा खोल दिया गया और काली दीवारें नजर आने लगीं।
जंजीरो की झनकार सुनाई देने लगी। उसके साथ कैदियों की आह और रोना-पीटना भी मिला हुआ था। लोग गर्दनें उठा-उठाकर उनकी तरफ देखने लगे, मानों उस कब्र की गहराइयों से निकाली हुई उस मौत की शिकारों पर पहले नजर डालने में एक-दूसरे के आगे बढ़ जाना चाहते हों।
थोड़ी देर बाद कैदखाने से दो सिपाही निकले, जिनके कब्जे में एक नौजवान था। इस नौजवान के हाथों में हथकड़ी थी और उसकी चढ़ी हुई त्यौरी तथा निडर चेहरे से उसके स्वाभिमान और आत्मिक बल का पता चलता था। उसे सिपाहियों ने अदालत के बीच में खड़ा कर दिया और खुद थोड़ा-सा पीछे होकर खड़े हो गये। अमीर ने एक क्षण उनकी तरफ घूरकर देखा, फिर सवाल किया, ‘‘इस आदमी ने, जो हमारे सामने इस तरह सिर उठाये खड़ा है, जैसे अदालत की जकड़ में न हो, बल्कि किसी ऊंची जगह पर खड़ा हो, क्या जुर्म किया है ?’’
अमीर के वजीरों में से एक ने जवाब दिया, ‘‘कल एक फौजी अफसर और चंद सिपाही देहात में काम पर गये थे। इस आदमी ने अफसर को कत्ल कर दिया। सिपाहियों ने इसे गिरफ्तार कर लिया और खून में सनी हुई तलवार कब्जे में कर ली।’’
अमीर गुस्से से कांपने लगा। उसकी आंखों से आग की चिनगारियां बरसने लगीं। उसने गरजती हुई आवाज में कहा, ‘‘इसे जंजीरों में जकड़ दो और फिर उसी अंधेरी कोठरी में बंद कर दो। कल सुबह इसी की तलवार से इसकी गर्दन उड़ा दो और इसकी लाश को शहर के बाहर फेंक दो, जिससे गिद्ध और चीलें इसका गोश्त नोंच लें और हवा इसकी बदबू को इसके घरवालों और इसके दोस्तों तक पहुंचा दे।’’
नौजवान को वापस कैदखाने को ले जाया गया। लोगों की दुःखभरी निगाहें उसके पीछे-पीछे गईं, क्योंकि वह अभी कम उम्र का था खूबसूरत था और हट्टा-कट्टा था।
इसके बाद सिपाही एक औरत को लिए कैदखाने से निकले। वह स्त्री बहुत सुन्दर और कोमलांगी थी। उसकी आंखों में दुःख और निराशा का पीलापन झलक रहा था। उसकी आंखें नीची हो रही थीं और लज्जा के मारे उसकी गर्दन झुकी थी।
अमीर ने उस पर निगाह डाली और कहा, ‘‘इस औरत ने जो हमारे सामने ऐसे खड़ी है, जैसे सच के सामने छाया, क्या कसूर किया है ?’’
एक वजीर ने उत्तर दिया, ‘‘यह औरत कुलटा है। रात को जब इसका खाविंद घर आया तब उसने देखा कि यह अपने यार के साथ सोई हुई है। इसका दोस्त डर कर भाग गया और खाविंद ने इसे पुलिस के हवाले कर दिया।’’
यह सुनकर अमीर बहुत बिगड़ा। स्त्री शर्म के मारे पानी-पानी हो गई। अमीर ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘इसे वापस कैदखाने में ले जाओ और कांटों के बिस्तर पर सुलाओ, ताकि यह उस बिस्तर को याद करे, जिसे इसने अपने पाप से नापाक बनाया और इसे इनार मिला हुआ सिरका पिलाओ, ताकि यह अपने घर के खाने को याद करे। सुबह होने पर इसे नंगा करके खींचते और घसीटते हुए शहर के बाहर ले जाओ और संगसार कर दो। इसकी लाश को वहीं पड़े रहने दो, ताकि भेड़िया इसका गोश्त खा जाएं और इसकी हड्डियों को कीड़े-मकौड़े चाट लें।’’
उस औरत को फिर कैदखाने की अंधेरी कोठरी में ले जाया गया। लोग उसकी तरफ अफसोस की नजरों से देख रहे थे। वह अमीर के इंसाफ पर खुश थे, लेकिन उन्हें उस स्त्री के सौंदर्य, कोमलता और उसकी दुःखी आंखों पर भी रहम आ रहा था।
इसके बाद दो सिपाही अधेड़ उम्र के एक कमजोर आदमी को लिये हुए आये, जो अपने कांपते हुए घुटनों को घसीटता हुआ चलता था। उसने भीड़ की तरफ व्याकुल आंखों से देखा। उसकी आंखों में मासूमी, बर्बादी और गरीबी झलक रही थी।
अमीर ने उस पर निगाह डाली और जोश में आकर पूछा, ‘‘इस गंदे आदमी ने, जो इस तरह खड़ा है, जैसे जिंदों में मुर्दा, क्या कसूर किया है ?’’
वजीर ने जवाब दिया, ‘‘यह चोर है। रात के वक्त यह कलीसा में जा घुसा और जोगियों ने इसे पकड़ लिया। उसकी झोली में पूजा के बर्तन पाए गये।’’
अमीर ने उसकी तरफ देखा, जैसा भूखा गिद्ध पर कटी चिड़िया की ओर देखता है। चिल्लाकर बोला, ‘‘इसे फिर कैदखाने के अंधेरे में फेंक दो और जंजीरों में जकड़ दो। जब सुबह हो जाय तब इसे रेशमी रस्सी से एक ऊंचे पेड़ पर लटका दो और इसी तरह इसे तब तक जमीन और आसमान के बीच लटका रहने दो जब तक इसकी गुनहगार अंगुलियां सड़-लग न जायं और इनकी बदबू चारों तरफ फैल न जाय। ’’
सिपाही चोर को फिर कैदखाने में ले गये और लोग कानाफूसी करने लगे कि इस मरियल काफिर ने पूजा के बर्तन चुराने की हिम्मत कैसे की ?
अमीर गद्दी से उतरा और उसके विद्वान तथा बुद्धिमान सलाहकार भी उसके पीछे हो लये, सिपाही कुछ आगे और कुछ पीछे। लोगों की भीड़ तितर-बितर हो गई और वह स्थान खाली हो गया, अलबत्ता कैदियों की आहें और गहरी सांसे सुनाई देती रहीं।
मैं वहां खड़ा इस कानून पर हैरान हो रहा था, जो इंसान ने इंसान के लिए बनाया है। मैं उस चीज पर गौर कर रहा था, जिसे लोग इंसाफ कहते हैं। सोचते-सोचते मेरे विचार इस तरह गायब हो गये, जिस तरह शाम की लाली धुंधलके में छिप जाती है। मैं उस मकान से निकला। अपने दिल में कहता था कि घास मिट्टी से बढ़ती है, बकरी घास को खा लेती है, भेड़िया बकरी को अपनी खुराक बनाता है, गैंडा भेड़िया को खा जाता है और शेर गैंडे को मौत के घाट उतारता है। क्या कोई ऐसी ताकत मौजूद है, इन तमाम घिनौनी बातों को अच्छे नतीजे में बदल दे ? क्या कोई ऐसी ताकत है, जो जिन्दगी की सारी ताकतों को अपने हाथ में ले ले और अपने अंदर जज्ब कर ले-जिस तरह समुद्र सारी नदियों को अपनी गहराई में समा लेता है ? क्या कोई ऐसी ताकत है, जो कातिल को और मकतूल को, बुरा काम करने वाली और उसके साथ बुरा काम करने वाले चोर और जिसके यहां चोरी की गई उसको तथा अमीर के आसन से ज्यादा ऊंचे न्याय के आसन के सामने खड़ा कर दे ?
दूसरे दिन मैं शहर से निकलकर खेतों की तरफ गया, ताकि मन को कुछ चैन मिले और जंगल का मनोहर वायुमंडल दुःख और मायूसी के उन जन्तुओं को मार दे, जो शहर के तंग गली-कूचों और अंधेरे मकानों में मेरे अंदर पैदा कर दिए थे। जिस वक्त घाटी में पहुँचा तो देखा कि गिद्धों, चीलों और कौवों के झुंड के झुंड उड़ रहे हैं जमीन पर उतर रहे हैं। उनकी आवाजों और पैरों की फड़फड़ाहट से वातावरण कांप रहा है। मैं जरा आगे बढ़ा तो देखा कि मेरे सामने एक लाश पेड़ पर लटक रही है और एक नंगी औरत की बेजान देह उन पत्थरों के ढे़र में पड़ी है, जिनसे उसे संगसार किया गया था। उधर एक नौजवान की लाश धूल तथा खून से सनी हुई है, और उसका सिर धड़ से जुदा पड़ा है।
मैं वहीं ठहर गया। मेरी आंखों पर एक मोटा और अंधेरा पर्दा पड़ गया और मुझे कल्पना और मौत के सिवाय, जो खून में सनी उन लाशों पर छाई हुई थी, कुछ भी दिखाई नहीं देता है। बर्बादी की पुकार के अलावा मेरे कान कुछ भी नहीं सुनते थे। इस पुकार में कौवों की आवाज भी मिली हुई थी, जो इंसानी कानून के शिकारों के चारों तरफ मंडरा रहे थे।
तीन इंसान कल तक जिंदा थे, आज सुबह मौत के मुंह में चले गये।
तीन आदमियों ने इंसान के अस्तित्व में अपनी निष्ठा को खो दिया और अंधे कानून ने हाथ बढ़ाकर उन्हें बेदर्दी के साथ पामाल कर दिया।
तीन आदमियों को जेल ने कसूरवार ठहराया, क्योंकि वे कमजोर थे और कानून ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि वह ताकतवर था।
एक आदमी ने दूसरे को कत्ल कर दिया था तो वह कातिल (खूनी) ठहरा; लेकिन जब अमीर ने उसे कत्ल करवा दिया तो अमीर इंसाफ करने वाला समझा गया।
एक शख्स ने पूजा का सामान ले लिया तो लोगों ने उसे चोर कहा, लेकिन जब अमीर ने उसकी जिंदगी छीन ली तो वह अमीर विद्वान ठहरा।
एक औरत ने अपने पति से बेईमानी की तो लोगों ने उसे कुलटा ठहराया, लेकिन जब अमीर ने उसे नंगा करके संगसार करवाया तो अमीर शरीफ कहलाया।
खून बहाना हराम है, लेकिन अमीर के लिए यह किसने हलाल कर दिया ?
माल हड़प करना जुर्म है, लेकिन आत्माओं को हड़प करना किसने जायज करार दिया ?
औरतों की बेईमानी खराब बात है, लेकिन यह किसने कहा कि खूबसूरत देहों को संगसार करना पाक काम है ?
हम छोटी-सी बदमाशी के मुकाबले में बहुत बड़ी बदमाशी करते हैं और कहते हैं कि यह कानून है। हम फिसाद का बदला बदतरीन फिसाद से देते हैं और कहते हैं कि यह शील है। हम एक अपराध का बदला लेने के लिए दूसरा बड़ा अपराध करते हैं और चिल्लाते है कि यह इंसाफ है !
क्या अमीर ने कभी अपने दुश्मन को मौत के घाट नहीं उतारा ? क्या उसने कभी अपनी प्रजा के किसी कमजोर इंसान का माल हड़प नहीं किया ? क्या उसने कभी किसी खूबसूरत औरत की ओर आंख नहीं उठाई ? क्या वह इन तमाम जुर्मों से पाक है कि जिससे कातिल की गर्दन उड़ाना, चोर को सूली चढ़ाना और व्यभिचारिणी को संगसार करना उसके लिए जायज हो गया ?
वे कौन थे, जिन्होंने चोर को दरख्त पर लटकाया ? क्या आसमान से फरिश्ते उतरे थे या वे वही इंसान थे, जो उस माल को, जो उनके हाथ में आ जाता है, हड़प लेते हैं ?
और उस कातिल का सिर किसने कलम किया था ? क्या ऊपर से नबी और पैगंबर आये थे या वे ही सिपाही थे, जो कत्ल और खून करते रहते हैं ?
और उस व्यभिचारिणी को किसने संगसार किया था ? क्या उस काम के लिए पाक रूहें अपने स्थानों से आई थीं ? या वे वही लोग थे, जो अंधेरे के पर्दे में बुरे काम किया करते हैं ?
कानून !...कानून क्या चीज है ? उसे आसमान की ऊँचाइयों से सूरज की किरणों के साथ उतरते किसने देखा है ? और किस आदमी ने खुदाई इच्छा को इंसान के दिल से मिला-जुला पाया है ? और किस खानदान में फरिश्तों ने आकर इंसानों से कहा है कि कमजोरों को जिंदगी की रोशनी से महरूम कर दो, गिरे हुए को तलवार से उड़ा दो और कसूर करने वाले को फौलादी पांवों के नीचे रौंद डालो ?
मेरे दिमाग में यही विचार चक्कर लगा रहे थे और मुझे परेशान कर रहे थे कि इतने में मैंने किसी के पैरों की आहट सुनी। आंख उठाई तो देखा कि एक औरत पेड़ों में से निकलकर लाशों के करीब आ रही है। उसके चेहरे पर खतरे के निशान दिखाई दे रहे थे, मानो वह उस भयावने नज्जारे को देखकर डर गई हो। वह उस लाश की तरफ बढ़ी, जिसका सिर क़टा हुआ था और चीख-चीखकर रोने लगी। अपनी कांपती हुई बांहों से उसने लाश को गले लगाया। उसकी आंखों से आंसुओं की झड़ी लगी थी। वह अपनी उंगलियां लाश के बालों में फेर रही थी। जब वह थक गई तो उसने अपने हाथों से जमीन खोदना शुरू किया, यहां तक की एक लंबी चौड़ी कब्र खोद ली। फिर उसने उस नौजवान की लाश को उठाकर कब्र में रख दिया। उसका कटा हुआ और खून से लथपथ सिर उसके कंधों पर रख दिया और कब्र को मिट्टी से ढांककर उसके ऊपर उस तलवार के फल को गाढ़ दिया, जिससे उसका सिर काटा गया था। इसके बाद उसने आंसू बहाते हुए मुझसे कहा, ‘‘अमीर से कह दो बजाय इसके कि मैं उस इंसान की लाश को, जिसने मुझे बेइज्जती के कब्जे से छुड़ाया, जंगल के खूंख्वार जानवरों और परिंदों के खाने के लिए छोड़ दूं, मेरे लिए बेहतर है कि मैं मर जाऊ और उस आदमी से जा मिलूं।’मैंने उससे कहा, ‘‘ओ दुखी औरत, मुझसे डरो मत, क्योंकि मैं तुमसे पहले इन मैयतों पर विलाप कर चुका हूँ, लेकिन मुझे यह तो बताओ इस आदमी ने तुम्हें बेइज्जती के कब्जे से किस तरह बचाया था ?’’
उसने टूटती हुई आवाज में जवाब दिया, ‘‘अमीर का एक अफसर हमारे खेतों में लगान और जजिया वसूल करने आया था; लेकिन जब उसने मुझे देखा तो उसकी नियत में बदी आ गई। इसके बाद उसने मेरे बाप की तरफ भारी रकम निकाल दी और चूंकि मेरे गरीब बाप यह रकम अदा नहीं कर सकते थे, उस अफसर ने गुस्से में आकर रूपये के बदले में मुझ पर कब्जा कर लिया, इस खयाल से कि मुझे अमीर के महल में पहुँचा दे। मैंने रो-रोकर उससे दया की भीख माँगी, लेकिन उसे रहम नहीं आया। मैंने उससे बाप के बुढापे की तरफ ध्यान देने की की मिन्नत की, लेकिन वह न पसीजा। तब मैंने चिल्ला-चिल्लाकर गांववालों को इकट्ठा किया और उसके सामने फरियाद की। इस पर वह नौजवान, जिसके साथ मेरी मंगनी हो चुकी थी, आया और उसने मुझे अफसर के हाथों से छुड़ाया। अफसर ने गुस्से में आकर उसे कत्ल कर देना चाहा, लेकिन नौजवान फुर्ती के साथ अपने को बचाया और दीवार से लटकती हुई पुरानी तलवार खींचकर उसने अपने ऊपर के हमले के जवाब में और मेरे शरीर के बाचाव के लिए अफसर को कत्ल कर दिया। इसके बाद वह अपनी इज्जत के लिए मकतूल की लाश के पास ही खड़ा रहा। आखिरकार सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दिया।’’
यह कहते-कहते उसने मेरी तरफ दिल को पिघलने वाली निगाह से देखा, फिर जल्दी से पीठ मोड़कर चल दी। उसकी दर्दनाक आवाज हवा मैं गूंजती रही।
थोड़ी देर के बाद मैंने एक नौजवान को आते देखा, जिसने अपना चेहरा कपड़े से ढांक रखा था। वह व्यभिचारिणी की लाश के पाश पहुंचकर रूक गया। उसने अपना कुर्ता उतारकर उस नंगी औरत को ढांक दिया और अपने खंजर से जमीन खोदने लगा। कब्र तैयार हो गई तो उसने उस औरत को उसमें दफना दिया। जब यह काम पूरा हो गया तो उसने इधर-उधर से कुछ फूल तोड़कर उनका एक गुलदस्ता बनाया और उस कब्र पर रख दिया। जब वह जाने लगा तो मैंने उसे रोक लिया और कहा, ‘‘इस औरत के साथ तुम्हारा क्या ताल्लुक था कि तुमने अमीर की इच्छा के खिलाफ और अपनी जिंदगी खतरे में डालकर इसके लिए इतनी मेहनत की और इसकी देह को कौओं और चीलों की खुराक बनने से बचाया ?’’
नौजवान ने मेरी तरफ देखा उसकी आंखों से मालूम हो रहा था कि वह बहुत रोया-धोया है और उसने सारी रात जागते हुए बिताई है। वह बहुत दुःखी और मायूसी भरी आवाज में बोला, ‘‘मैं वही बदनसीब आदमी हूँ जिसकी वजह से इस बेचारी को संगसार किया गया। हम एक दूसरे को तभी से चाहते थे, जबकि हम बचपन के दिनों में इकट्ठे खेला करते थे। हम जवान हो गये हमारी मुहब्बत भी पूरी तरह उभर आई। एक बार जब मैं शहर चला गया था, लड़की के बाप ने उसकी शादी जबरदस्ती किसी दूसरे आदमी के साथ कर दी। मैं वापस आया और मैंने यह खबर सुनी तो मेरी जिंदगी में अंधेरा छा गया और मुझे जीना दूभर हो गया। मैं अपनी भीतरी इच्छा के साथ बहुत झगड़ता रहा, लेकिन परास्त हो गया। मेरी मुहब्बत मुझे इस तरह लेकर चल दी जिस तरह आंखों वाला किसी अंधे को रास्ता दिखाता है। मैं छिपकर उसके घर पहुँचा, ताकि उसकी आंखों का नूर देखूं और उसकी आवाज का गीत सुनूं। मैंने उसे अकेली पाया। वह अपनी किस्मत को रो रही थी और अपनी जिंदगी पर अफसोस कर रही थी। मैं उसके पास बैठ गया। हम चैन से बाते करने में मग्न हो गये और खुदा जानता है कि हमारे दिल पाक थे। लेकिन जब एक घंटा गुजर गया तो एकाएक उसका खाविंद आ गया। उसने जब मुझे देखा तो वह गुस्से से पागल हो गया। उसने अपनी औरत के गले में कपड़ा डालकर शोर मचाना शुरू कर दिया, लोगो ! आओ ! और इस औरत और उसके यार को देखो ! अड़ोसी-पड़ोसी जमा हो गये और थोड़ी देर में पुलिसवाले भी खबर पाकर आ पहुँचे। उस आदमी ने अपनी औरत को पुलिस के सख्त हाथों में दे दिया, जो उसे घसीटते हुए थाने की तरफ ले गये। लेकिन किसी ने मुझ पर हाथ भी न उठाया, क्योंकि अंधा कानून और गंदी रूढ़िया औरत का ही पीछा करती हैं, मर्द का तो हर कसूर माफ समझा जाता है।’’
यह कहानी सुनाने के बाद नौजवान अपना मुंह छिपाये शहर की तरफ चल दिया और मुझे लाश की तरफ देखते हुए छोड़ गया, जो पेड़ से लटक रही थी और हवा के झोंकों से पेड़ की शाखाओं के साथ हिल रही थी, मानो वह रूहों से दया मांग रही हो, और चाहती हो कि उसे नीचे उतारकर जमीन पर इंसानियत के प्रेमियों और मुहब्बत के शहीदों के पहलू में डाल दिया जाय।
एक घंटे के बाद एक दुबली-पतली औरत आ पहुंची, जिसके कपड़े चीथड़े हो रहे थे। वह पेड़ से लटकती हुई लाश के करीब आकर ठहर गई और उसने रो-पीटकर दिल को हल्का किया। इसके बाद वह पेड़ पर चढ़ गई और उसने अपने दांतों से रेशमी रस्सी को खोला। लाश गीले कपड़े की तरह जमीन पर आ गई। औरत पेड़ के नीचे उतरी और दो कब्रों के पहलू में तीसरी कब्र खोदी और उसमें लाश को दफन कर दिया। जब वह कब्र पर मिट्टी डाल चुकी तो लकड़ी के दो टुकड़े लेकर उनका सलीब बनाया और उसे कब्र के सिरहाने गाड़ दिया। जब वह जाने लगी तो मैंने बढकर सवाल किया, ‘‘ओ औरत, तुम्हें किस बात ने मजबूर किया कि तुम एक चोर को दफन करने के लिए यहाँ आओ ?’’
उसने मेरी तरफ देखा। उसकी निगाहों से परेशानी और बेचैनी के निशान दिखाई दे रहे थे। उसने कहा, ‘‘हमारे पांच बच्चे भूखों मर रहे हैं। उनमें सबसे बड़ा आठ साल का है और सबसे छोटा अभी दूध पीता है। मेरा खाविंद चोर न था। वह गिरजाघर की जमीन में खेतीबाड़ी करता था और उसे गिरजाघर के जोगी इतना ही मेहनताना देते थे कि अगर हम शाम को खाना खा लेते तो सुबह के लिए हमारे पास कुछ न बचता। जब मेरा खविंद जवान था तो वह गिरजाघर के खेतों को अपने पसीने से सींचता था और अपनी बाहों की ताकत से वहां के बागों को हरा-भरा रखता था, लेकिन जब वह बूढ़ा हो गया और जब सालों की मेहनत ने उसकी ताकत को खत्म कर दिया और बीमारियों ने उसे घेर लिया तो उन्होंने उसे यह कहकर नौकरी से हटा दिया कि गिरजा को अब तुम्हारी जरूरत नहीं है, अब तुम चले जाओ। जब तुम्हारे बेटे जवान हो जाएं तो उन्हें यहां भेज देना, ताकि वे तुम्हारी जगह ले लें। मेरा खाविंद उनके सामने बहुत रोया-धोया। उसने ईसा-मसीह के नाम पर उनसे दया की भीख मांगी और उन्हें फरिश्तों तथा मसीह के साथियों की कसमें दिलाईं; लेकिन उन्होंने दया न की और न उस पर मेहरबानी की-न मुझ पर, न हमारे बच्चों पर।
‘‘मेरा खाविंद शहर में गया ताकि कोई नौकरी ढूंढ़े, लेकिन नाकामयाब होकर लौटा, क्योंकि उन महलों में रहने वाले सिर्फ जवान आदमियों को नौकर रखते थे। इसके बाद वह सड़क पर बैठ गया, ताकि लोगों से दान या भीख मिले। लेकिन किसी ने उसकी तरफ निगाह न डाली। लोग कहते थे, इंसान को भीख या खैरात देना मजहब के खिलाफ है।
‘‘आखिर एक ऐसी रात आ पहुँची, जबकि हमारे बच्चे भूख के मारे जमीन पर तड़प रहे थे। मेरा दुधमुंहा बच्चा मेरी छाती को चूसता था, लेकिन वहाँ दूध कहा था। यह नजारा देखकर मेरे खाविंद का चेहरा बदल गया। वह अंधेरे के पर्दे से चुपके से निकला और गिरजाघर के भंडार में पहुंच गया, जहां जोगी और पादरी अनाज और शराब जमा करके रखते हैं मेरे खाविंद ने अनाज की झोली भरकर अपने कंधे पर उठाई और बाहर निकलना चाहा, लेकिन वह कुछ ही गज गया था कि चौकीदार जाग उठे और उन्होंने उस गरीब को पकड़ लिया। उन्होंने उसे गालियां दीं, खूब मारा-पीटा और जब सुबह हुई तो यह कहकर पुलिस के हवाले कर दिया कि वह चोर है और गिरजाघर के सोने के बर्तन चुराने आया था।
‘‘पुलिस ने उसे कैदखाने में डाल दिया। उसके बाद इस पेड़ में लटका दिया गया ताकि गिद्ध इसके गोश्त से अपना पेट भरें ! इसका कसूर क्या है ? सिर्फ इतना ही कि इसने इस बात की कोशिश की थी कि इसके भूखे बच्चे उस अनाज से अपना पेट भरें इसका कसूर क्या है ? जो इसने अपनी बाजुओं की ताकत से उन दिनों जमा किया था, जबकि वह गिरजाघर का नौकर था।’’
इतना कहकर वह गरीब औरत चली गई, लेकिन उसकी बातों ने सारे वायुमंडल को उदास और दुःखी बना दिया। ऐसा मालूम होने लगा, मानो उसके मुंह से धुंए के बादल निकलकर हवा में दुःख का वातावरण पैदा कर रहे हैं।
मैं उन कब्रों के पास खड़ा रहा, जिनकी मिट्टी के जर्रों से फरियादें निकल रही थीं। मैं खड़ा सोच रहा था कि अगर इस खेत के पेड़ों से मेरे दिल की आग की लपट छू जाये तो ये हलचल करने लग जाएं और अपनी जगह छोड़कर अमीर और उसके सिपाहियों से जूझ पड़े और गिरजाघर की दीवारों को तोड़-फोड़कर पादरियों के सिर पर गिरा दें।
मैं उन नई कब्रों की ओर देख रहा था। मेरी निगाह से हमदर्दी की मिठास और दुःख और अफसोस का कड़ुवापन निकल रहा था।
यह एक नौजवान की कब्र है, जिसने अपनी जिंदगी को एक अबला औरत की इज्जत बचाने के लिए निछावर कर दिया। इसने उस औरत को भेड़िये के मुंह से छुड़ाया और उस बहादुरी के लिए इसकी गर्दन उड़ा दी गई। उस औरत ने अपने रहबर की कब्र पर तलवार गाड़ दी है, जो इस नौजवान की बहादुरी की तरफ इशारा करती है।
यह कब्र उस औरत की है, जो मारी जाने से पहले प्रेम की पुतली थी। इसे संगसार किया गया, क्योंकि वह मरते दम तक पाक रही। इसके दोस्त ने इसकी कब्र पर फूलों का गुच्छा रख दिया है, जो प्रीति की सुगंध की तरफ इशारा करता है।
और यह उस बदनसीब गरीब की कब्र है, जिसकी बाजुओं में जब तक ताकत थी तब तक वह गिरजाघर के खेतों में खेती-बाड़ी करता रहा, लेकिन जब उसमें ताकत न रही तो उसे निकाल दिया गया। वह काम करके अपने बच्चों का पेट पालना चाहता था, लेकिन उसे काम न मिला। फिर उसने भीख मांगना चाहा, लेकिन किसी ने उसे भीख न दी।
आखिरकार जब इसकी मायूसी हद से ज्यादा बढ गई तो उसने उस अनाज में से थोड़ा सा उठाना चाहा, जो उसने अपना खून-पसीना एक करके जमा किया था। इसे पकड़ लिया गया और इसकी जान ले ली गई। इसकी औरत ने इसकी कब्र पर सलीब बना दिया है, ताकि आसमान के सूनेपन में आसमान के तारे पादरियों के जुल्म को देखें, जो मसीह की सिखावन को फैलाने का दावा तो करते हैं; लेकिन असलियत में तलवारों से दुखियों और कमजोरों की गर्दनें उड़ाते हैं।
सूरज छिप रहा था, मानो वह आदमियों के जुल्म और अत्याचारों से तंग आ गया हो और उनसे नफरत करता हो। शाम अपने घूंघट में सारी दुनिया को छिपा रही थी। मैंने आसमान की तरफ देखा और कब्रों के राज़ पर हाथ मलते हुए ऊंची आवाज से कहा, ‘‘यह है तुम्हारी तलवार, ऐ बहादुर मर्द, जो जमीन में गड़ी है, ये है तुम्हारे फूल, औरत, जिनसे प्रीति की किरणें रही हैं; और यह है तुम्हारा सलीब, ऐ ईसामसीह, जो रात के अंधेरे में छिप रहा है !