जिम्मेदार (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा
Jimmedar (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma
ब्याह के वक्त लड़की कितनी मोहक हो जाती है , सुनयना यही सोचती रही। अचला की बेटी की गोद भराई और रिंग सेरेमनी के कार्यक्रम में बड़ी देर से भीतर हॉल में रहने की वजह से उसकी धूप मे जाने की इच्छा हुई तो कार्यक्रम पूरा होते ही वह होटल के बाहरी गेट की तरफ चली आयी।
सूरज का युवा रूप अब प्रौढ़ हो चला था। वह अपनी सखी सर्दी का हाथ पकड़कर चल रहा था और अपने बदन की गर्मी का अहसास बढ़ाता जा रहा था। सूर्यपुंज से निकली स्वर्ण किरणें अपनी सुविस्तृत बाँहें फैलाये कृत्रिम रोशनी से भीगी शाम की प्रतीक्षा कर रही थीं। मौसम के मिजाज बदल चुके थे और जनवरी की ठण्ड में भी दिन में गर्मी का ताप अपने पूरे जोश में था सो पसीना और चिपचिपाहट अपना प्रभाव जमाए थे।
सुनयना ने मोबाइल खोलकर देखा, दोपहर के तीन बज रहे थे। वह जल्दी घर जाना चाहती थी। सोच रही थी कि रात को वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल होने दोबारा भी तो आना है।
सुनयना ने अचला से जाने की इजाजत मांगी तो उसने आग्रहपूर्वक कहा -‘‘भोजन शुरू हो रहा है, कहाँ जा रही हो? तुम खाना खाकर ही जाना ... बल्कि ऐसा करो कि जीजाजी और बिटिया को भी बुला लो।’’
सुनयना अचला के आग्रह को टाल न सकी, पति ठहरे पुलिस विभाग के एसडीओपी उन्हें तो यूँ अचानक फुरसत मिलनी मुमकिन नहीं, इसलिए उसने अपनी बेटी को आने के लिए फोन कर दिया। बेटी ने कहा कि मैं अपनी स्कूटी से आ रही हूँ , मम्मी आप बाहर मिल जाना, मैं कहाँ आपको ढूढ़ती फिरूंगी !
सुनयना और अचला बचपन की सहेली हैं। सुनयना के पति एस. डी. ओ. पी. के रूप में जब से इस कस्बे में आये यहाँ रह रही अचला जो उसकी स्कूल के जमाने की सहेली थी, उससे मित्रता और अधिक प्रगाढ़ हो गयी। अचला की बेटी की शादी आयी तो वह वैवाहिक निमंत्रण पत्रिका लेकर अपने पति के साथ सुनयना के घर आयी और बचपन की तरह चख चख करते हुए कहा था ‘‘आजकल फलदान और गोद भराई की रस्म विवाह वाले दिन ही कर ली जाती है। रिश्तेदार व मेहमानों को भी बार-बार आने जाने की परेशानी खत्म तो साथ में धन और समय की भी बचत।’’ सुनयना ने भी तपाक से कह दिया था -‘‘ हाँ समय की कमी सभी रिश्तों और सांस्कृतिक उत्सवों का आनंद और मिठास सोखती जा रही है। पहले शादी ब्याह की तैयारी एक दो माह पूर्व से होने लगती थी, लगुन से ढोलक की थाप और गीतों की मधुर लय गूँजने लगती। इस धूमधाम में रिश्तेदार एक माह पूर्व से सम्मिलित होने के लिये आ जाते थे।
‘‘पर अब तो विवाह एक दिन का ही उत्सव बनकर रह गया है ... गुड्डे गुड़िया के खेल जैसा झटपट विवाह ...। इसलिए अपन ने भी बस दो दिन का उत्सव रखा है। तीन दिन तक आप सबको वहीं रहना है।’’
अचला के जाने के बाद सुनयना ने कार्ड देखा। कार्ड की बैरायटी देखकर ही विवाह की भव्यता का भान हो जाता है। होटल का नाम, भोजन की विविधता रईसी के मानक बन चुके हैं। सब तरफ दिखावा और उससे उपजी अनुपयोगिता मोह भंग कर रही है। रिश्ते और रसमों का बाजारीकरण हो चुका है।
सुनयना आज सुबह ही यहाँ आ गयी थी।
बेटी के आने की प्रतीक्षा में वह होटल के बाहरी गेट पर जा खड़ी हुई। तभी एक मिनी बस आकर गेट के ठीक सामने रुकी। बस में से सबसे पहले एक अधेड़ उम्र की महिला उतरी, वह लैगिन और टॉप पहने थी। उसने हाथों को पीछे की ओर मोड़कर अपने बालों का जूड़ा बनाया और सुनयना के पास आकर पूछने लगी-‘‘अचला मैडम की बेटी की शादी यहीं हो रही है क्या?’’
सुनयना ने ‘‘हाँ’’ कहा तो उस महिला ने बस की खिड़कियों से झाँकती लड़कियों को इशारा किया। फिर तो रेला सा लग गया, बस से एक लड़की ... दूसरी लड़की .... तीसरी लड़की ... पूरी पन्द्रह लड़कियाँ उतरीं। उन सब लड़कियों ने जीन्स, टॉप, लैगिन, जैगिन और लंबे कुर्ते व टॉप पहन रखे थे। सब की सब मॉडर्न लड़कियाँ । उनके बाद एक-एक कर दस लड़के भी उतरे। सुनयना सोच रही थी कि इतने लड़के-लड़कियाँ क्यों आये हैं। अचला ने विवाह की पूरी प्लानिंग उसे बतायी थी। ऐसी तो कोई प्लानिंग उसे याद नहीं आयी जिसमें बस से बहुत सारे लड़के-लड़कियाँ आना हो। उधर उस महिला ने लड़कियों की गिनती की-तेरह,चैदह और पंद्रह ।
अब तक बस का क्लीनर और दो लड़के बस की छत पर चढ़ चुके थे और वहाँ से बैग नीचे फेंक रहे थे। लड़कियाँ अपना लगेज पहचान-पहचानकर लेती जा रही थीं। व्हील वाले बैग, व्हील बाले सूटकेस, कैरियर बैग लड़कियाँ सम्हालती जा रही थीं।
सुनयना की बेटी स्कूटी से आ गयी थी। वह उसे साथ लेकर होटल में भोजन करने चली गयी।
किसी जरूरी जाँच पड़ताल में पति की जरूरी डयूटी होने के कारण रात को भी सुनयना ने अकेले ही होटल में कदम रखा तो उसकी आँखें चैंधिया गयीं। दूधिया रोशनी के आवरण में होटल नई नवेली दुल्हन के परिधान सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि चाँद भी आज मेजबानी कर रहा था। महिलाएँ महँगे परिधान और मैचिंग की ज्वेलरी में सजी सँवरी खड़ी थीं। दिन में यहाँ गर्मी थी पर अब रात को सर्दी अपनी आमद बना चुकी थी। ऐसा लग रहा था कि कहीं वर्फबारी हो गयी है जिसके कारण यहाँ की हवा में ठण्डी खुनक तैर रही थी। हालाँकि महिलाओं और लड़कियों के परिधान सर्दी के बजाय गर्मी का अहसास दिला रहे थे क्योंकि उन्होंने गर्म शॉल और स्वेटर नहीं पहना था। बल्कि ज्यादातर तो ऐसे कपड़े पहने थी जिनमें से उनके वदन की झलक दिखाई देती थी।
कुछ बुजुर्ग महिलाएँ अपना अधिक समय अलाव के पास बिता रही थीं और अपने जमाने को याद करती हुई कह रही थी कि पहले तो घर में ही ब्याह हो जाता था, ज्यादा जरूरत पड़ी तो पड़ोसियों की घर के कुछ कमरे ब्याह-शादी के दिनों में खाली हो के मिल जाते थे। यह सुनती हुई सुनयना कहना चाहती थी कि सभ्यता ने कई पड़ाव तय किये हैं। सभ्यता के साथ-साथ संस्कृति भी बदलती चली गयी। फ्यूजन का जमाना चल रहा है। रीति-रिवाजों और त्यौहारों का बाजारीकरण मन मस्तिष्क पर हावी होता जा रहा है। कुछ नया करने की ठसक में व्यक्ति कठपुतली बनता जा रहा है। विवाह में नयी-नयी प्रक्रियाएँ आपसी गहराई और आत्मीयता के बजाय दिखावे की दुकान लगने लगी है। वाहवाही लूटने और प्रचार पाने के लिए कोई आसमान की ऊँचाई में उड़ते हवाई जहाज में विवाह रचा रहा है तो कोई पानी की गहराई में ... कोई रिसॉर्ट में शादी कर रहा है तो कोई महल या किले में...।
उसने देखा मुख्य द्वार पर घर का मुखिया नहीं वरन् दो लड़कियाँ खड़ी थीं। दौनों लड़कियाँ गहरे नीले रंग की सुनहने बॉर्डर की साड़ी, आसमानी नीला धारीदार ब्लाउज पहने थी। सुनयना ने गौर से देखा, ये तो उन्ही लड़कियोँ में से थीं जो बस से उतरी थीं। उनमें से एक लड़की गुलाब के फूलों की ट्रे पकड़ी थी। दूसरी लड़की हर आगन्तुक को गुलाब का एक फूल भेंटकर हाथ जोड़कर अभिवादन करती और चेहरे पर मीठी मुस्कान बिखेरकर कहती ‘‘आइये वैलकम’। वैलकम का भार मधुर मुस्कान के समतुल्य ही था।
प्रतिस्पर्धात्मक जीवन की दौड़ में सब भागते नजर आ रहे हैं। रिश्तेदार तो रूठकर रिश्तों में दरार डालते हैं इस सोच के साथ शादियाँ अब रिश्तेदार, समाज और पास पड़ौस के हाथों से हटकर वेडिंग प्लानर के हाथों में चली गयी हैं।
सुनयना ने अन्दर प्रवेश करते ही देखा कि गहरे नीले रंग की साड़ी पहने दो लड़कियाँ हाथ में ट्रे लिए खड़ी थीं, जिनमें पालक व पनीर के पकौड़े, तले हुए पनीर के टुकड़े जैसे कुछ स्टार्टर रखे हुए थे। साथ में दो तरह की चटनी के बाउल, पेपर नेपकिन व छोटी वाली सींकें। आगन्तुक को देखते ही उनके चेहरे पर मुस्कान फैल जाती और आगे बढ़ कर ट्रे उनके सामने कर देतीं।
मैदान में भी अन्दर अटेण्डर के रूप में लड़के भी हाथ में ट्रे लिए इधर से उधर आगन्तुकों को अटेण्ड कर रहे थे। काले रंग की शर्ट और नीले रंग की पैंट पहने अनेक लड़के भी हाथों मे ट्रे लिये सबको खाने-पीने की चीजें सर्व कर रहे थे। आगन्तुक को देखकर उनके चेहरे पर नब्बे डिग्री की मुस्कान फैल जाती और वे ‘सर’, ‘मैडम’ के संबोधन के साथ उन वस्तुओं को लेने का आग्रह करते।
वरमाला के बाद सभी फोटो खिंचवाने स्टेज पर जा रहे थे। अचला सुनयना को भी साथ ले गयी। कितने अमूल्य होते हैं वे क्षण जो कैमरे की रीलों में कैद हो जाते हैं। अहसास, अनुभव, हाव-भाव, क्रिया-प्रतिक्रिया सब रंगीन चित्रों में उभर आते हैं। समय गुजरने के बाद वे फोटो देखकर मन आल्हादित होता है और हम रिवर्स गियर लगा लेते हैं। स्टेज से उतरते समय न जाने कैसे सुनयना का पैर मुड़ गया। उसे चलने में तकलीफ होने लगी। अचला ने सुनयना का हाथ पकड़कर उसे एक कुर्सी पर बिठा दिया और खुद उसकी खिदमत में लग गयी। अचला सुनयना को ऐसी हालत में वहाँ से जाने देने को तैयार नहीं थी। सुनयना जानती थी विवाह की कई रसमें होना है जिनमें अचला की आवश्यकता होगी ... आने वाले मेहमानों को भी तो उसे अटेण्ड करना है। सुनयना ने उससे कहा -‘‘तुम जाओ विवाह की तैयारियाँ देखो मैं यहाँ बैठी हूँ’’ अचला नीले परिधान में लिपटी अटेण्डर को सुनयना की जिम्मेदारी सौंपकर चली गयी।
चारों ओर वही एक जैसी ड्रेस की लड़कियाँ अपनी हाई-हिल सेण्डल पर एक खास अदा से चलती हुई भीड़ के बीच चहल कदमी कर रही थीं। स्ुानयना ने देखा कि अठारह से बाईस वर्ष तक की कमसिन, दिखने में सुन्दर व आकर्षक, पतली व लम्बी लड़कियाँ इस ग्रुप में थीं। उनकी आँखों में आई लाइनर, होठों पर नारंगी रंग की लिपिस्टिक और पफ वाली हेयर स्टाइल थी। सुनयना का मन सवालों का ज्वालामुखी विस्फोट करने को बेचैन हो रहा था।
‘‘मैडम आप कुछ लेंगी’’ एक खनकती आवाज सुनयना के कानों में आयी तो उसने अपनी आँखें उठाकर उस लड़की को घ्यान से देखा। यह वही लड़की थी जो गेट पर फूलों की ट्रे पकड़ी थी।
सुनयना ने मुस्कराते हुए कहा-‘नहीं’
ऐसा लगता है कि इन लड़कियों के हरेक काम यानि नजरें उठाना, नजरें गिराना, नजरें मिलाना इनमें नफासत और नज़ाकत भरी है पर सुनयना को लगता है कि निगाहों से व्यक्ति का अवलोकन करना एक मानवीय प्रक्रिया है। इस अवलोकन में खोजी निगाहें सामने वाले को एक्सरे की भाँति अन्दर तक स्पर्श करती हुई कई खोज और उपलब्धता हासिल कर लेती हैं।
सुनयना की निगाहें उसका मुआयना करने लगीं। लड़की ने जैसे ही सुनयना की ओर रुख किया सुनयना ने तपाक से प्रश्न किया-‘‘ कहाँ ये आयी हो ?’’
‘‘जी इन्दौर से ’’
अपने मायके इन्दौर का नाम सुनकर सुनयना के मन में अपनत्व का भाव जाग गया। उसका लहजा बदल गया। चेहरे के भाव, मन का अहसास , देखने का नजरिया सबने नर्मी की चादर ओढ़ ली। छोटी सी जानकारी का सूत्र मिलते ही पूर्ण विवरण पाने की लालसा मन में जाग गयी। अपने मायके से दूर होने पर अपने शहर का परिन्दा भी दिख जाये तो सहज आकर्षण तेजी से म्हिलाओं के मन को खुशी से भर देता है, यहाँ तक कि अपने शहर में जिस व्यक्ति से कभी बात भी न की हो अजनबी शहर में उससे भी बात कर लेते हैं।
उसने स्नेह से पूछा-‘‘इन्दौर में कहाँ रहती हो ?’’
‘‘जी साकेत नगर’’ उसने अनमने भाव से कहा।
‘‘क्या नाम है ?’’
‘‘जी कोमल’’ लड़की के चेहरे पर उकताहट के भाव दिखने लगे।
‘‘बुरा मत मानो, मैं तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ। घर से अकेली आयी हो ?’’
‘‘नहीं पूरा ग्रुप है बारह लड़कियों का’’ वह थोड़ा सहज होती सी बोली। उसे सुनयना का कुछ भी पूछना अच्छा नहीं लग रहा था पर वह मजबूर थी। ग्राहक की संतुष्टि ही उसका परम धर्म है।
‘‘यह ग्रुप किसका है ?’’
‘‘सहगल आंटी का है। वो ही हमारी कान्ट्रेक्टर हैं। कहीं भी समारोह होता है वो ही हमें ले जाती हैं।’’
सुनयना सोच रही थी अब तो कई तरह के ठेकेदार होने लगे हैं। हलवाई, डेकोरेटर, अटेण्डर आदि।जितनी अधिक जानकारी सुनयना को मिल रही थी उतनी ही तीक्ष्णता उसकी नजरों और प्रश्नों में आ रही थी। भेदती नजरों से कोमल को देखते हुए वे बोलीं ‘‘क्या क्वालिफिकेशन होती है इस ग्रुप के लिए ?’’
‘‘स्लिम, आकर्षक, और सुन्दर लोगों को इस ग्रुप रखा जाता है, साथ में इंग्लिश भी बोलना आना चाहिये।’’
सुनयना ने बात का रुख बदलते हुए कहा, ‘‘पढ़ती हो ?’’
‘‘हाँ बी-कॉम कर रही हूँ’’
‘‘कोई और काम क्यों नहीं करतीं जैसे स्कूल आदि में ...’’
‘‘वहाँ तो महीने भर काम के बाद पैसे मिलेंगे। मुझे अभी कॉलेज की फीस भरनी है।’’
मन में संवेदना के तंतु सक्रिय हो गये थे ‘‘तुम्हें पढ़ाई में कोई परेशानी हो तो मुझे बताना मेरी सहेली कॉलेज में प्रोफेसर है। तुम्हें पता है मैं भी इन्दौर की हूँ , भँवरकुआ पर घर है मेरा। लो मेरा कॉन्टेक्ट नम्बर नोट कर लो’’ कहकर सुनयना ने लड़की पर स्नेह प्रकट करने की कोशिश की।
सुनयना को याद आया ‘‘अरे मैंने नयी सिम ली है उसका नंबर तो याद नहीं। ऐसा करो तुम अपना मोबाइल नंबर बताओ मैं रिंग दे दूँगी।’’
कोमल ने झिझकते हुए अपना नंबर उसे बताया। सुनयना ने अपना मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया और उसके मोबाइल पर कॉल किया। रिंग बजी तो लड़की ने ध्यान से नंबर देखा और सुनयना का नंबर सेव कर लिया पर उसके चेहरे पर परेशानी के भाव छाये रहे।
‘‘तुम खड़ी क्यों हो बैठ जाओ’’
‘‘थैंक यू मैडम, हमें खड़े रहने के ही पैसे मिलते हैं।’’
उसके अन्दर की झुंझलाहट जुबान पर आ रही थी , जैसे भीतरी खीज का आक्रोश उसे रई की तरह मथ रहा था। प्रकटतः वह मुस्करायी। मुस्कराहट चेहरे का आभूषण है। आभूषणों से लदी स्त्री के चेहरे पर मुस्कराहट न हो तो आभूषण भी सौन्दर्यविहीन हो जाते हैं। बिना आभूषणों के भी मुस्कान से पूर्ण चेहरा आकर्षक, तेजोद्दीप्त और प्रभावोत्पादक होता है। मुस्कराते हुए वह अच्छी लग रही थी।
सुनयना का गला अब सूख रहा था। उसने कोमल से पानी लाने को कहा। एक मेल अटेण्डर मिनरल वाटर की बोटल ट्रे में लेकर जा रहा था। कोमल ने उसे आवाज देकर रोका और बोटल उठायी ... ठीक उसी समय एक आगन्तुक ने भी ट्रे से बोटल उठायी। कोमल ने उस आदमी को घूरती नजरों से देखा, ऐसा लगा जैसे उस आदमी ने अवश्य उसके साथ कोई हरकत की है।
सुनयना ने बोटल खोलते हुए पूछा-‘‘ देखों बेटा, एक सच्ची बात पूछ रही हूँ, इन समारोहों में यदि कोई तुम लोगों के साथ गलत व्यवहार करता है तो तुम लोग क्या करती हो ? ’’
‘‘हम सब लड़कियाँ एक दूसरे पर नजर रखती हैं यदि ऐसा कुछ होता है तो हम लोग एक साथ इन स्थितियों का मुकाबला करते हैं।’’
‘‘तुम्हारी कॉन्ट्रेक्टर कुछ नहीं कहती ?’’
‘‘वो तो खाना खाकर सोने चली जाती हैं’’
सुनयना का चेहरा क्रोध से तमतमा गया। अपने साथ जिम्मेदारी से लाने वाली कॉन्ट्रेक्टर को इन जवान लड़कियों की जरा भी चिन्ता नहीं है।
कॅरियर बैग लिये अपने कॅरियर के प्रति समर्पित युवा पीढ़ी आर्थिक संसाधन जुटाने की लालसा में मीलों कोस की दूरी तय कर अपना भविष्य तलाश रही थी। जीवन की स्पद्र्धा में अच्छे और बुरे के दृष्टिकोण और मापदण्ड दौनों बदल गये थे। लेकिन इनको यहाँ तक लाने वाली महिला को इनसे कोई लेना-देना न था बेचारी लड़कियाँ जिन्हें सिर्फ झुक के बात करना था जाने क्या-क्या सहती होंगी।
अचानक ही अचला सुनयना का हाल पूछने आ गयी। अब तक वह अपने को सहज अनुभव करने लगी थी इसलिये अचला उसे अपने साथ ले गयी। डी जे पर डांस हो रहे थे। सुनयना के पैर में तकलीफ होने के कारण वह अचला के साथ डांस फ्लोर पर नहीं गयी, कुर्सी पर बैठकर डांस देखने लगी।
खाने की टेबिल लगायी गयी। वर-वधू के साथ सभी घरवालों को भी भोजन करना था। तरह-तरह के भोज्य पदार्थ देखकर सुनयना का पेट पहले ही भर गया। सब लोग अपनी प्लेट में मर्जी की चीज लेकर उसे चुभलाने और स्वाद लेने में व्यस्त हो गये। अटेण्डर बड़ी चपलता से सामान परोसते जा रहे थे।
ऐसा लगा कि कहीं से कोई ऊँची आवाज आयी। सुनयना ने देखा तो पाया कि अचानक सभी अटेण्डर होटल के अंतिम छोर की ओर जाने लगे।
सुनयना को चिंता होने लगी। अनिष्ट की आशंका से उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
उस ओर भीड़ बढ़ती जा रही थी। सुनयना ने अचला से कहा ‘‘चलकर देखो वहाँ क्या हो गया’’
‘‘अरे कुछ नहीं वैसे ही कुछ जलपान कर रहे होंगे ये लोग’’ वह वैवाहिक कार्यक्रम का भरपूर आनंद उठाना चाह रही थी।
सुनयना का मन नहीं माना वह तेज कदमों से भीड़ की ओर चल दी।
वहाँ का नजारा देख सुनयना का माथा ठनका। ब्याह घर का सजा संवरा नशे में गाफिल एक आदमी कोमल का हाथ पकड़े खड़ा था और अपने साथ डांस फ्लोर पर चलने के लिए उससे जिद कर रहा था।
वह रोते हुए गिड़गिड़ा रही थी-‘‘सर प्लीज हाथ छोड़ दीजिये। मेरा काम ये नहीं है’’
वह आदमी शायद ज्यादा नशे में था सो वह अपनी ही जिद पर अड़ा था।
कोमल के साथी भी उससे विनम्रतापूर्वक आग्रह कर रहे थे कि वह उसका हाथ छोड़ दे। पर सुरूर में सही कहाँ दिखता है। वही दिखाई देता है जो मन करना चाहता है। कोमल ने ताकत लगा कर जबरन हाथ छुड़ा लिया। उस व्यक्ति ने फिर से हाथ लहराया तो कोमल की साड़ी का पल्लू हाथ आ गया। मादक पदार्थ की चाबुक हाथ में लिए जब व्यक्ति वासना के रथ पर सवार होता है तो कामना के घोड़े तेज गति से दौड़ने लगते हैं। वासना का बल हाथों में शक्ति प्रदान कर अधोगति की ओर प्रवृत्त कर देता है। साड़ी के पल्लू में झटका लगने से पल्लू में लगी पिन हट गयी और पल्लू उस आदमी के हाथ में आ गया, कोमल लाज से दुहरी हो गयी थी।उसके ब्लाउज के अधखुले बटनों से झांकते अर्ध आवृत्त उन्नत उरोज दिखाई देने लगे।
उसने अपने दोनों हाथों से अपना सीना ढक लिया। साँसों की तेज लय सीने के तीव्र उत्थान पतन के साथ सरगम गा रही थी। उसकी आँखों से जार-जार आँसू बहने लगे। वह आदमी साड़ी का पल्लू हाथ में लिये वहीं थिरकने लगा।
सुनयना ने देखा एक तगड़ा सा अटेण्डर वहाँ आया और उसने उस सजे-धजे व्यक्ति के हाथ से पल्लू छुड़ाकर कोमल को वहाँ से ले गया। यह वही अटेण्डर था जिससे कोमल ने पानी की बोतल सुनयना के लिए ली थी। सब तमाशा देख रहे थे। सुनयना ने अचला को मोबाइल पर सारी जानकारी दे दी थी।शोरगुल सुन कर तब तक अचला भी वहाँ जल्दी आ गयी।
सुनयना ने अचला से पूछा ‘‘तुम तो जानती होगी कौन था वो सजाधजा आदमी’’
‘‘लड़के यानि दूल्हे का चाचा’’
‘‘उनकी ये हरकत गलत है’’
अचला ने कोमल को समझाया -‘‘देखो बुरा मत मानो, ये लोग भी दूध की धुली नहीं होती, इस तरह की अदाएँ बिखेरती हैं कि किसी भी मर्द का मन मचल जाये, फिर थोड़ी बहुत इनकी शह भी होती है। शादी ब्याह में छोटी छोटी बातों को दिल से मत लगाओ। इस लड़की को अलग से एक हजार रुपये दे दूँगी।’’
कोमल के ग्रुप से एक लड़की वहाँ खड़ी थी। अचला की बात सुन कर वह बोली ‘‘आप बिलकुल गलत कह रही हैं मैडम कि हमारी शह होगी। हमें क्या यह बूढ़ा आदमी पसंद आयेगा? ... हम इसे शह देंगी ?काम की तलाश में घर से बाहर निकली हर महिला को अबेलेबल समझना पुरुष की संकीर्ण मानसिकता की निशानी है। इसकी तो पुलिस में कम्प्लेन्ड करना चाहिए। समझ क्या रखा है इन लोगों नें। हम काम करने आये हैं इज्जत बेचने नहीं।’’
अन्य अटेण्डर भी उसकी बात का समर्थन करने लगे।
अचला ने समझाते हुए कहा ‘‘देखो पुलिेस कचहरी के चक्कर में न पड़ो।’’
कोमल तो रूआंसी हो गयी, वह विनती करने लगी ‘‘रहने दो, बात का बतंगड़ बनेगा। मेरे घर वालों को पता चला, तो मैं आगे कभी इस ग्रुप का हिस्सा नहीं बन पाऊँगी।’’
सुनयना के मन में उस व्यक्ति के लिये आक्रोश था। वह समझ रही थी कि क्रोध तो कोमल को भी होगा लेकिन कोमल समझदार है। क्रोध वह चिंगारी है जो सबसे पहले बुद्धि को नष्ट करती है। जिंदगी कभी किसी की आसान नहीं होती इसे आसान बनाना पड़ता है, कुछ नजरअंदाज करके, कुछ मेहनत करके, कुछ बर्दाश्त करके और कुछ सही समय पर फैसले लेकर...। उसे लगा कि कोमल ने ठीक फैसला लिया।
उसने वहाँ से हटते समय कोमल से कहा तुम्हें कोई परेशानी हो तो बेहिचक मुझे बताना।
... सब फिर से वैवाहिक कार्यक्रमों में व्यस्त हो गये।
रात लगभग दो-बजे फेरे की रस्म हो रही थी तभी सुनयना के मोबाइल की रिंग बजी। सुनयना ने कॉल रिसीव किया, उधर से किसी लड़की की घबरायी हुयी आवाज आयी। आवाज स्पष्ट सुनायी नहीं दे रही थी। वह उठकर शांत स्थान पर आयी तब तक फोन बंद हो गया था। उसने उसी नंबर पर कॉल किया।
‘‘हैलो’’
‘‘आंटी जी मैं कोमल बोल रही हूँ ... आप कहाँ हो मुझे आपसे अर्जेन्ट मिलना है’’
‘‘उसकी घबरायी आवाज सुनकर सुनयना चिंतित हो गयी ‘‘मैं यहीं मंडप के पास हूँ। कहो क्या बात है ... इतनी घबरा क्यों रही हो ..?’’
‘‘आंटी मैं आपके पास आ रही हूँ’’
सुनयना वहीं खड़े होकर उसका इन्तजार करने लगी। थोड़ी देर बाद सादा कपड़ों में कोमल एक लड़की के साथ सुनयना के पास आ पहुँची।
‘‘आंटी ये देखिये किसी ने मेरे मोबाइल पर ये वीडियो भेजा है।’’ कहकर उसने मोबाइल सुनयना को पकड़ा दिया। सुनयना ने देखा कोमल की साड़ी का पल्लू पकड़े वही व्यक्ति खड़ा है और मोबाइल का पूरा फोकस उसके उरोजों पर कर दिया गया है। वीडियो के बाद उसमें लिखा था तुम यदि चाहती हो कि यह वीडियो आगे न फैले तो होटल के रूम नंबर वन थ्री वन में चली आओ।
उसने कोमल को समझाया ‘तुम चिन्ता मत करो।’
एक पल को सुनयना ने सोचा अचला को बताया जाये लेकिन रूक गयी, उसे लगा वह फिर से उस लम्पट को बचाने का प्रयास करेगी।
‘‘कोमल लगातार रोये जा रही थी आंटी मेरा कॅरियर खराब हो जायेगा। पुलिस में खबर मत करना। घरवाले भी नाराज होंगे।’’
सुनयना समझ रही थी इस उम्र की लड़कियाँ इज्जत के साथ-साथ कॅरियर को लेकर बहुत चिन्तित रहती हैं।
जो ज्ञानी होता है उसे समझाया जा सकता है जो अज्ञानी होता है उसे भी समझाया जा सकता है। जो अभिमानी होता है उसे कोई नहीं समझा सकता। उसका गुरूर टूटते ही उसे सब समझ आ जाता है। सुनयना को उसमें अपनी बेटी की छवि दिखाई दे रही थी। समस्या का हल निकालने उसका दिमाग कसरत करने लगा। उसने थोड़ी देर विचार किया फिर अपने पति राजेश को फोन पर सारी बात बतायी।
थोड़ी ही देर में राजेश सादा ड्रेस में आ गये। कोमल और सुनयना बाहर ही खड़ी थीं। राजेश ने कोमल को आश्वस्त करते हुए रूम नम्बर वन थ्री वन में चलने को कहा। वे लोग साथ-साथ चल दिए। रूम नम्बर वन थ्री वन से थोड़ी दूरी पर सुनयना और राजेश रुक गए। कोमल ने वन थ्री वन की डोरबैल बजायी। उसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला, वह कोमल को देखते ही खिल उठा-आगयी ! तब तो बहुत नखरे कर रही थी। चल उतार कपड़े।’’ यह कहते हुए जब तक वह व्यक्ति दरवाजा बंद करता तब तक तो राजेश और सुनयना भी अन्दर आ गये।
सुनयना ने सबसे पहले उसका मोबाइल अपने कब्जे में लिया। राजेश ने अपने विभाग का आईडेंटिटी कार्ड उस आदमी को दिखाते हुए कहा, ‘‘बहुत गर्मी चढ़ रही है तुझे! चल अपने बड़े भाई यानि दूल्हे के बाप को बुला।’’
राजेश के ओहदे के प्रभाव ने उसके दिमाग पर चढ़े नशे के सुरूर और बाराती होने के गुरूर को समाप्त कर दिया था। पुलिसिया खौफ बड़े से बड़े चालबाज और बुद्धिमान के हौसले पस्त कर देता है। कामना के रथ पर चढ़कर कुछ देर पहले जो पैर थिरक रहे थे वे बेइज्जती के भय और पुलिस की मारक क्षमता की कल्पना मात्र से काँप रहे थे। मादक पदार्थ के शस्त्रों से लैस हाथ अब याचना की मुद्रा में जुड़ रहे थे। मुख पर जो वासना की लहलहाती फसल उग आयी थी वह सुनयना के क्रोध के तूफान से धराशायी हो गयी। चेहरे पर अब लाचारगी का आधिपत्य था। सुनयना ने उस व्यक्ति से पूछा- और किस किस के पास है ये वीडियो ?
उसने लाचारगी से कहा- नहीं ये सिर्फ मेरे पास थी। मैं अपने डांस का वीडियो बनवा रहा था उसमें ही ये सब आ गया था।
सुनयना ने उनके बड़े भाई यानि दूल्हे के पापा को सारी स्थिति से अवगत कराया तो दूल्हे के पिताजी ने माफी मांगी और छोटे भाई से भी हाथ जोड़ते हुए माफी मँगवायी। उसने खुद मोबाइल की गैलरी से वीडियो डिलीट करवाया।
सुनयना ने कोमल की सहगल आंटी को भी फोन लगाकर कोमल के रूम में बुलाया और उनको डांटते हुए कहा- ‘‘जिन लड़कियों को आप साथ में लायी हैं उनकी सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी आपकी नहीं है क्या जो इन्हे यहाँ अकेला छोड़कर सोने चली जाती हो? तुम्हारे कोई बहन-बेटी नहीं है क्या।’’
सहगल नाम की वह महिला बहुत घबरा उठी थी और ‘सॉरी’ ‘सॉरी’ कहे जा रही थी।
कोमल फूट-फूटकर रो रही थी और कह रही थी- ‘‘आज आप न होतीं तो पता नहीं क्या होता।’’
सुनयना उसे समझा रही थी पर खुद भी सोच रही थी कि पता नहीं क्या होता इस लड़की के साथ।अब तक सभी मेल और फीमेल अटेण्डर वहाँ इकट्ठे हो गये थे। सबने सहगल आंटी से नाराजगी व्यक्त करते हुए आइंदा अपनी सेवाएँ न देने का फैसला सुना दिया।
अचला बदहवास सी वहाँ आयी और बोली- ‘‘क्या हो गया ?’’
सुनयना ने अचला को लगभग झिड़कते हुए कहा- ‘‘तुम यदि चाहतीं तो मामला इतना आगे न बढ़ता, इस लड़की की बेइज्जती न होती। जो लड़कियाँ यहाँ सेवा देने आयी हैं, वे केवल सेवा देने आयी हैं, अपनी अस्मत बेचने नहीं आयी। ऐसे मामलों में हमको बहुत चैतन्य रहना चाहिये। नौकरी या व्यवसाय में संलग्न महिलाएँ पट जायेंगी ऐसा पुरुष सोचते हैं और शायद हम भी। औरतें जाने-अनजाने खुद ही दूसरी महिलाओं को बेइज्जत करने में मदद करती हैं। सोचो, आज इसकी जगह मेरी या तुम्हारी बेटी होती तो क्या हम इसी तरह इग्नोर करते ? आज एक बेटी जहाँ विदा हो रही है वहीं दूसरे की बेटी बेइज्जत हो रही है।’’
कहकर सुनयना वहाँ से चल दी।