जिगरी यार (इतालवी कहानी) : लुइगी पिरांदेलो

Jigri Yaar (Italian Story in Hindi) : Luigi Pirandello

गिगी मियर ने उस सुबह एक पुराना लबादा पहन रखा था (जब आप चालीस से ऊपर के हों तो उत्तर दिशा से बहने वाली बर्फ़ीली हवा आप को मज़ाक नहीं लगती)। उसने मफ़लर से अपनी नाक तक ढँक रखी थी। अपने दोनों हाथों में उसने वैसे मोटे दस्ताने पहन रखे थे जैसे अंग्रेज़ लोग पहनते हैं। वह भरपेट खा कर चला था। उसकी त्वचा चिकनी और रक्ताभ थी। वह मेलिनी के स्टॉप पर उस ट्राम की प्रतीक्षा कर रहा था जो हर रोज़ की तरह उसे पास्त्रेंगो के रास्ते ' कोर्ते देई कौंती' ले जाती, जहाँ वह नौकरी करता था।

उसका जन्म कुलीन वर्ग में हुआ था लेकिन अब तो हालात... उफ़् ! अब न उसके अधीन कोई इलाक़ा था, न ही बेशुमार धन-संपत्ति। बचपन के अपने सुखद अनजानेपन में ही गिगी मियर ने अपने पिता को शासकीय सेवा में जाने की अपनी 'राजसी' योजना के बारे में बता दिया था। दरअसल तब अपनी मासूमियत में उसने मान लिया था कि ' कोर्ते देई कौंती ' कुलीन लोगों का दरबार था जिसमें हर कुलीन व्यक्ति को शामिल होने का अधिकार था।

हर आदमी यह जानता है कि जब आप बेसब्री से ट्राम की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं तो वे कभी नहीं आतीं। बल्कि ऐसे समय में वे बीच में ही कहीं रुक जाती हैं क्योंकि बिजली नहीं होती, या वे किसी रेड़े को रौंदने में व्यस्त होती हैं, या वे किसी बदक़िस्मत इंसान तक को कुचल डालने से नहीं चूकतीं। बावजूद इसके, हर बात पर ग़ौर करने पर हम पाते हैं कि वे एक निराली ही चीज़ हैं !

जिस सुबह का ज़िक्र हो रहा है, उस सुबह उत्तर दिशा से ठंडी, बर्फ़ीली हवा चल रही थी, और गिगी मियर अपने पैर पटकते हुए सलेटी नदी को देख रहा था। उसे लगा जैसे नए पुश्ते की रंगहीन दीवारों के बीच, फड़फड़ाते आस्तीनों वाली क़मीज़ पहने उस बेचारी नदी को भी बहुत ठंड लग रही थी।

अंत में घंटी बजाते हुए ट्राम आ पहुँची। गिगी मियर उसके रुकने से पहले ही उस पर सवार होने वाला था कि उसे लगा जैसे नए पुल पौंते केवोर की तरफ़ से किसी ने ज़ोर से उसका नाम पुकारा:

“गिगी, अरे भाई, गिगी !”

और उसने एक व्यक्ति को अपने पीछे बाँहें फैलाए दौड़ते हुए पाया। इस बीच ट्राम निकल गई। बदले में सांत्वना के रूप में गिगी ने खुद को एक अजनबी की बाँहों में पाया। उस अजनबी ने जिस शिद्दत से दो बार मफ़लर से लिपटे गिगी के चेहरे को बाँहों में भर लिया उससे तो यही लगा कि वह कोई जिगरी यार था।

"क्या तुम जानते हो, मैं तो तुम्हें देखते ही पहचान गया था, गिगी, मेरे दोस्त ! पर यह क्या है ? -- तुम अभी से बूढे होने लगे हो ? इतने सारे सफ़ेद बाल; तुम्हें शरम नहीं आती ? अपने संतनुमा बुढ़ापे की ख़ातिर पहले तुम मुझे चुंबन दो, गिगी, मेरे प्यारे दोस्त। यहाँ खड़े तुम ऐसे लग रहे थे जैसे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। पर जब मैंने तुम्हें उस दानवी ट्राम पर सवार होते देखा तो मैंने खुद से कहा, " यह ग़द्दारी है, एकदम ग़द्दारी।"

"हाँ, मैं दफ़्तर जा रहा था, " मियर ने जैसे ज़बर्दस्ती मुस्कराते हुए कहा।

"मुझ पर एक अहसान करो। ऐसी वाहियात चीज़ों के नाम अभी मत लो।"

"क्या ? "

"हाँ, मैं यही कहना चाहता हूँ। बल दे कर।"

"तुम एक अजीब आदमी हो। क्या तुम यह जानते हो ? "

"हाँ, मैं यह जानता हूँ। लेकिन यह बताओ, क्या तुम्हें मुझसे अभी मुलाक़ात होने की उम्मीद थी? तुम्हारे चेहरे के हाव-भाव तो यह बता रहे हैं कि तुम्हें इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी।"

"हाँ, दरअसल... सच्ची बात बताऊँ तो --"

"मैं कल शाम यहाँ पहुँचा। तुम्हारे भाई ने तुम्हारे लिए शुभकामनाएँ भेजी हैं। मेरी बात सुन कर तुम्हें हँसी आएगी। वह मेरे बारे में एक पत्र लिख कर तुम्हें भेजना चाह रहा था ! ' क्या,' मैंने कहा, ' अब तुम गिगी को मेरे बारे में पत्र लिखोगे ? क्या तुम्हें पता है, मैं गिगी को बहुत पहले से जानता हूँ। भगवान भला करे, हम तो लड़कपन के दोस्त हैं। हमारे बीच कई-बार लड़ाई-झगड़ा भी हो चुका है। विश्वविद्यालय में हम दोनों सहपाठी थे, भाई। ' मशहूर पादुआ विश्वविद्यालय में, क्या तुम्हें याद आया ? वह बड़ा-सा घंटा जिसका बजना तुम कभी नहीं सुन पाते थे;

तुम कैसे घोड़े बेच कर सोते थे। मुझे ' गधे बेच कर ' कहना चाहिए ! और जब तुमने वाकई उस घंटे का बजना सुना -- ऐसा केवल एक बार हुआ था -- तो तुम्हें लगा था जैसे वह आग लगने की चेतावनी देने वाला घंटा था... वे भी क्या दिन थे, है न !...

ईश्वर की दया से तुम्हारा भाई ठीक-ठाक है। हम दोनो मिल कर कोई काम कर रहे हैं, और मैं उसी सिलसिले में यहाँ आया हूँ। लेकिन तुम्हें क्या हो गया है ? तुम्हारा चेहरा तो किसी शव-यात्रा में शामिल आदमी-सा लग रहा है ! क्या तुम्हारी शादी हो गई ? "

"नहीं, प्रिय ! " गिगी मियर जोश में आ कर बोला।

"क्या तुम्हारी शादी होने वाली है ? "

"पागल हो गए हो क्या ? चालीस के बाद ? हे ईश्वर, नहीं। मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकता।"

"चालीस ! गिगी, तुम्हारी उम्र पचास बरस के ज़्यादा क़रीब होगी। दरअसल मैं भूल रहा था... चाहे वो घंटियाँ हों या बरस हों, तुम्हारा यह अनूठापन रहा है कि तुम उनके बजने या बीतने की आहट नहीं सुन पाते हो। तुम पचास बरस के तो होगे ही, मेरे प्यारे दोस्त। पचास बरस के। मैं तुम्हें आश्वस्त करता हूँ। हम आह भर सकते हैं। अब यह गम्भीर बात हो गई है। चलो, देखते हैं, तुम कब पैदा हुए थे... अप्रैल, 1851 में। क्या यह सच है या नहीं ? बारह अप्रैल के दिन।"

"माफ़ करना, वह मई का महीना था। और 1852 का साल था।" मियर ने थोड़ा चिढ़ कर हर अक्षर पर बल देते हुए उसे सुधारा।

"क्या तुम्हें मुझसे बेहतर पता है ? वह 12 मई, 1852 का दिन था। इस लिहाज़ से अभी तुम्हारी उम्र उन्चास साल और कुछ महीनों की है। तुम्हारी कोई पत्नी भी नहीं ? बढ़िया है। जैसा कि तुम जानते हो, मैं तो शादी-शुदा हूँ। हाँ, यह एक त्रासदी है ! मैं तुम्हें इतना हँसा सकता हूँ कि हँसते-हँसते तुम्हारे पेट में बल पड़ जाएँगे। इस बीच मैं यह मान लेता हूँ कि तुमने मुझे दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया है। आजकल तुम खाना खाने कहाँ जाते हो ? क्या उसी पुरान ' बारबा ' रेस्त्रां में ? "

" हे ईश्वर ! "गिगी मियर हैरान हो कर बोला --" क्या तुम ' बारबा' रेस्त्रां के बारे में भी जानते हो ? मुझे लगता है, तुम भी वहाँ जा चुके हो।"

"मैं और ' बारबा ' रेस्त्रां मे ? जब मैं पादुआ में रहता हूँ तो यह कैसे सम्भव है ? मुझे बताया गया था कि अन्य लोगों के साथ तुम भी वहाँ जाते हो और वहाँ बहुत कुछ होता है। मैं उसे शराबख़ाना कहूँ या भोजनालय ? "

"उसे शराबख़ाना ही कहो, एक सस्ता शराबख़ाना ", मियर ने जवाब दिया -- "किन यदि तुम दोपहर का खाना मेरे साथ खा रहे हो तो हमें घर पर मौजूद खाना बनाने वाली नौकरानी को यह बताना होगा।"

"क्या वह बावर्ची युवा है ? "

"अरे नहीं, भाई। वह बूढ़ी है। दूसरी बात यह है कि अब मैं ' बारबा ' में नहीं जाता। पिछले तीन सालों से तो बिल्कुल नहीं गया हूँ। एक उम्र होती है जब... "

"चालीस के बाद --- "

"हाँ, चालीस के बाद आप में इतना साहस होना चाहिए कि आप ऐसे किसी मार्ग से दूर रहें जो आपको खाई के किनारे की खड़ी चट्टान तक ले जाता है। जब तक आप में सामर्थ्य है, आप बहुत सावधानी से धीरे-धीरे उस खड़ी चट्टान तक जा सकते हैं -- अपने-आप को लुढ़क कर उस पार खाई में गिरने से बचाते हुए। ख़ैर, अब हम यहाँ हैं तो मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मैंने अपने छोटे-से घर को कैसे सजा कर रखा हुआ है।"

"ह्म्म, सावधानी से, धीरे-धीरे...। तुमने अपने घर को बढ़िया ढंग से ही रखा होगा।" गिगी मियर के मित्र ने उसके पीछे-पीछे घर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा, " पर तुम्हारे जैसा विशाल, भारी-भरकम, बढ़िया आदमी आज कैसी हल्की और सतही बातें कर रहा है ! बेचारा गिगी ! समय ने तुम्हारा क्या हाल कर दिया है ! क्या तुम्हारी पूँछ झुलस गई है ? क्या तुम चाहते हो कि मैं रो दूँ ? "

"देखो...," नौकरानी के दरवाज़ा खोलने की प्रतीक्षा करते हुए मियर ने कहा, " इस समय मुझे अपने अभिशप्त अस्तित्व का साथ निभाना पड़ रहा है ; हल्के और सतही शब्दों से उसे दुलारना-पुचकारना और फुसलाना पड़ रहा है, वर्ना वह भी मेरे जीवन को सतही बना देगा। फ़िलहाल मुझे चार फ़ुट की क़ब्र में जाने की कोई जल्दी नहीं है।"

"तो क्या तुम आदमी के दोपाया होने में यक़ीन रखते हो ? " मित्र ने कहा, " गिगी, यह मत कहना कि तुम्हें इस पर यक़ीन है। मुझे पता है, मुझे दो पैरों पर खड़े रहने के लिए कितनी कोशिश करनी पड़ती है। यक़ीन करो, मित्र ; यदि हम प्रकृति के अनुरूप बन जाएँ तो हम सभी चौपाया बन जाना चाहेंगे। सबसे अच्छी बात ! कुछ भी इससे ज़्यादा आरामदेह नहीं। हमेशा बढ़िया संतुलन। कितनी बार मैं खुद को ज़मीन पर रेंगते हुए देखना चाहता हूँ। यह अभिशप्त सभ्यता हमें नष्ट कर रही है। यदि मैं चौपाया होता तो मैं एक बढ़िया जंगली जानवर होता। तुमने जो कुछ मुझे कहा है, उसके बदले में मैं तुम्हें कुछ दुलत्तियाँ रसीद करता ! तब मेरे पास न बीवी होती, न उधार की फ़िक्र होती। क्या तुम मुझे रुलाना चाहते हो। मैं तो चला। "

जैसे साक्षात् बादलों से अवतरित हुए अपने इस मित्र की सनक भरी मज़ाक़िया बातें सुन कर गिगी मियर स्तंभित रह गया। उसे ध्यान से देखते हुए गिगी ने अपने ज़हन पर बहुत ज़ोर डाला ताकि उसे इस मित्र का नाम याद आ जाए। आख़िर पादुआ में वह उसे कैसे और कब जानता था -- अपने लड़कपन के समय या अपने विश्वविद्यालय के दिनों में ? उसने उन दिनों के अपने सभी घनिष्ठ मित्रों के बारे में बार-बार सोचा, पर कोई फायदा नहीं हुआ ; किसी भी मित्र की शक्ल उस व्यक्ति से नहीं मिलती थी। इस विषय में खुद उसी व्यक्ति से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वह उससे इस स्तर की और इतनी ज़्यादा घनिष्ठता दिखा रहा था कि पूछने पर वह बहुत अपमानित महसूस करता। इसलिए गिगी ने सोचा कि वह चालाकी इस्तेमाल करके सच्चाई जान लेगा।

नौकरानी बहुत देर के बाद दरवाज़ा खोलने आई ; उसे अपने मालिक के इतनी जल्दी लौट आने की उम्मीद नहीं थी। गिगी मियर ने दूसरी बार दरवाज़े की घंटी बजाई और अंत में वह अपनी चप्पलें घसीटते हुए प्रकट हुई।

मैं आ गया हूँ, बूढ़ी अम्मा ", मियर ने उससे कहा। " मेरे साथ मेरा मित्र भी है। जल्दी से दो लोगों के लिए दोपहर का खाना बना दो। ध्यान रखना, मेरे मित्र को हल्की बातें पसंद नहीं। इनका नाम भी बड़ा असाधारण है। "

“दाढ़ी, सींगों और खुरों वाला नरभक्षी बकरा", गिगी के मित्र ने मज़ाक़िया लहज़े में नाम बताया जिसे सुनकर वह वृद्धा संदेह में पड़ गई कि वह इस पर हँसे या ईश्वर को याद करते हुए अपनी उँगलियों से अपनी छाती पर सलीब का चिह्न बनाए। "और मेरे इस अद्भुत नाम के बारे में अब कोई भी नहीं जानना चाहता, बूढ़ी अम्मा ! बैंकों के निदेशक यह नाम सुन कर मुँह बना लेते हैं। और साहूकार विचलित हो जाते हैं। केवल मेरी पत्नी ही अपवाद है ; उसने इस नाम को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है। किंतु मैंने उसे केवल नाम पर ही अधिकार करने दिया, खुद पर नहीं। जी हाँ, खुद पर नहीं। मैं बेहद रूपवान व्यक्ति हूँ -- दुनिया गवाह है ! इसलिए गिगी, मान जाओ क्योंकि तुममें भी यह कमज़ोरी है। चलो, मुझे अपनी चीज़ें दिखाओ। जहाँ तक तुम्हारी बात है बूढ़ी अम्मा, काम पर लग जाओ। पशुओं के लिए चारे का बंदोबस्त करो।"

अपनी युक्ति के विफल हो जाने से घबराए मियर ने अपने मित्र को अपने छोटे फ़्लैट के पाँचो कमरे दिखाए, जिन्हें एक ऐसे व्यक्ति ने प्यार से सुसज्जित किया था जिसे बहुत ज़्यादा चीज़ों की इच्छा नहीं थी। एक बार जब उसने अपने मकान को अपना शरण-स्थल बनाने का निर्णय ले लिया, तो ऐसी कोई ज़रूरत नहीं थी जिसकी पूर्ति मकान में से ही नहीं की जा सकती थी। वहाँ एक बैठक थी, एक शयन-कक्ष था, एक छोटा शौचालय था, एक खाने का कमरा था और एक अध्ययन-कक्ष था।

अपने छोटे-से बैठक में मियर की हैरानी और उत्पीड़न -- दोनों बढ़ गए जब उसने अपने मित्र को अपने परिवार की नितांत निजी और अंतरंग बातें बताते हुए सुना। वह साथ-ही-साथ आग जलाने वाली जगह की बगल में बने ताक पर रखे सभी फ़ोटो पर भी निगाह डालता जा रहा था।

"गिगी यार, काश तेरी तरह का मेरा भी कोई साला होता। तू तो जानता है, मेरा साला कितना बड़ा बदमाश है !"

"क्या वह तुम्हारी बहन से दुर्व्यवहार करता है ? "

"नहीं, वह तो मुझ ही से दुर्व्यवहार करता है... वह चाहे तो कितनी आसानी से ऐसी मुसीबतों में मेरी मदद कर सकता है। पर वह ऐसा नहीं करता। "

"माफ़ करना, " मियर ने कहा, " मैं तुम्हारे साले का नाम याद नहीं कर पा रहा।"

"कोई बात नहीं। तुम उसका नाम याद कर भी नहीं सकते -- तुम उसे नहीं जानते हो। वह पादुआ में केवल दो साल से है। क्या तुम्हें पता है, उसने मेरे साथ क्या किया ? तुम्हारे दयालु भाई ने मेरी मदद करने का आश्वासन दिया था, यदि मेरा साला मेरी हुंडी ले लेता। लेकिन क्या तुम यक़ीन करोगे ? उसने दस्तखत करने से इंकार कर दिया। हालाँकि तुम्हारा भाई मेरा मित्र है, पर असलियत तो यही है न कि वह एक बाहरी व्यक्ति है। जब उसे यह बात पता चली तो वह बेहद क्रुद्ध हो गया और उसने इस काम को अपने हाथों में ले लिया। हमारा काम अब निश्चित ही हो कर रहेगा... लेकिन क्या मैं तुम्हें अपने साले के इंकार की वजह बताऊँ !... देखो, मैं अब भी एक रूपवान आदमी हूँ। इस बात से तुम इंकार नहीं कर सकते। लड़कियाँ मुझ पर मरती हैं। मैं इस सच्चाई से मुकर नहीं सकता। देखो, मेरे साले की बहन का दुर्भाग्य था कि वह मुझसे प्रेम करने लगी। बेचारी। उसकी पसंद तो अच्छी थी पर उसमें व्यवहार-कौशल की कमी थी। तुम खुद ही कल्पना करो, क्या मैं... असल में बात यह है कि उसने ज़हर खा लिया।"

"क्या उसकी मृत्यु हो गई ? " मियर ने रुक कर पूछा।

"नहीं-नहीं। उसने उलटी कर दी जिसके कारण उसकी जान बच गई। लेकिन तुम देख ही सकते हो कि इस त्रासद घटना के बाद मेरे लिए अपने साले के घर में क़दम रख पाना असम्भव था। हे ईश्वर, क्या हमें खाने के लिए कुछ मिलेगा या नहीं ? भूख के मारे मेरी जान जा रही है। "

बाद में खाने की मेज पर गिगी का मित्र उससे प्यार से गोपनीय बातें करता रहा। इससे चिढ़ कर गिगी ने मन-ही-मन अपशब्दों की बौछार कर दी। फिर थोड़ा सँभल कर वह अपने मित्र से पादुआ की ख़बरें पूछता रहा। इसके-उसके बारे में बातें करता रहा। गिगी को उम्मीद थी कि बातचीत के दौरान शायद उसके मित्र का अपना नाम उसकी ज़ुबाँ से फिसल जाए। (गिगी की खीझ हर पल बढ़ती ही जा रही थी।)

इधर-उधर की बातें करके गिगी अपने मित्र का नाम जानने की अपनी सनक से भी अपना ध्यान हटा रहा था।

"चलो, अब मुझे बताओ -- वैवरदे वाले व्यक्ति का क्या हुआ ? मैं इतालवी बैंक के निदेशक की बात कर रहा हूँ -- हाँ, वही जिसकी बीवी बड़ी ख़ूबसूरत है पर जिसकी स्थूलकाय बहन भेंगी है। मैने ग़लत तो नहीं कहा ? क्या वे अब भी पादुआ में हैं ? " यह सुनकर उसका मित्र ठठा कर हँसने लगा।

"क्या हुआ ?," गिगी की उत्सुकता जागृत हो गई। " क्या उसकी बहन भेंगी नहीं है ? "

"चुप हो जाओ। ईश्वर के लिए चुप हो जाओ !" अपनी हँसी न रोक पाने की वजह से उसके मित्र ने कहा। हँसी के दौरों की वजह से उसके पेट में बल पड़ रहे थे।

"भेंगापन ? हाँ, मेरा ख़्याल है, वह वाकई भेंगी है। और उसकी नाक इतनी चौड़ी है कि उसमें से आपको उसका दिमाग़ भी दिखता है ! यही वह स्त्री है। "

"कौन-सी स्त्री ? "

"मेरी बीवी ! "

यह सुनकर गिगी मियर हक्का-बक्का रह गया। क्षमायाचना में वह केवल कुछ बेवक़ूफ़ानी-सी बात ही बुदबुदा सका। लेकिन उसका मित्र ज़ोर-ज़ोर से, पहले से भी ज़्यादा देर तक हँसता रहा। बहुत देर बाद वह शांत हुआ, उसने त्योरी चढ़ाई और एक गहरी साँस ली।

"मेरे प्रिय मित्र, " उसने कहा, " जीवन में अज्ञात वीरता के कई कारनामे होते हैं। कवि की सबसे अकुशल कल्पनाशक्ति और सोच भी वहाँ तक नहीं पहुँच पाती है। "

"सही कह रहे हो !" मियर भी गहरी साँस ले कर बोला, " तुम सही कह रहे हो...तुम जो कहना चाहते हो, वह मैं समझ सकता हूँ। "

"नहीं, तुम उसे बिल्कुल नहीं समझ सकते, " उसके मित्र ने उसी समय उसकी बात को काटते हुए कहा, " क्या तुम्हें यह लग रहा है कि मैं अपनी ओर इशारा कर रहा हूँ ? कि मैं एक नायक हूँ जबकि वास्तव में मैं केवल एक पीड़ित व्यक्ति हूँ ? ऐसा नहीं है। नायिका की भूमिका तो मेरी साली की है -- मैं ल्यूसियो वैलवर्दे की पत्नी की बात कर रहा हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो -- हे ईश्वर, कितना बड़ा अंध-मूढ़ व्यक्ति।"

"मैं ? "

"नहीं, मैं। मैं। मैं खुद को धोखा देता रहा कि ल्यूसियो वैलवर्दे की पत्नी अपने पति से शादी करने से पहले मुझसे मुहब्बत करती थी। तुम्हें इस बात पर यक़ीन करना होगा, गिगी। ईमानदारी से कहूँ तो वह इसी के योग्य था। लेकिन हे ईश्वर ! क्या तुम जानते हो कि आगे क्या हुआ ? जो तुम सुनोगे वह त्याग के तटस्थ भाव का उदाहरण होगा। उस दिन वैलवर्दे चला जाता है या कम-से-कम जाने का ढोंग करता है (उसकी पत्नी यह जानती है)। फिर वह मुझे अपने घर में आने देती है। जब इकट्ठे हैरान होने का त्रासद पल आता है, तब वह मुझे अपनी साली के कमरे में छिपा देती है -- वही स्त्री जो भेंगी है। वह काँपती हुई पतिव्रता स्त्री के अंदाज़ में मेरा स्वागत करती है। ऐसा लगता है जैसे अपने भाई के सम्मान और उसकी शांति के लिए वह अपना उत्सर्ग कर रही है। दरअसल मुझे बड़ी मुश्किल से चिल्ला कर इतना कहने का समय मिला -- "लेकिन देवी जी, एक मिनट रुकिए। ल्यूसियो गम्भीरता से ऐसा सोच भी कैसे सकता है..." -- अभी मैंने अपनी बात ख़त्म भी नहीं की थी कि गुस्से में बड़बड़ाता हुआ ल्यूसियो भीतर दाख़िल हुआ। फिर क्या हंगामा हुआ, इसकी कल्पना तुम बख़ूबी कर सकते हो।

"क्या ! " गिगी मियर के मुँह से निकला, " तुम, जो इतने अक़्लमंद हो, फिर भी। "

"और ऋण के रूप में मुझे दिया जाने वाला रुपया ? " गिगी का मित्र चीख़ा, " मौन अनुमति से ऋण के रूप में मुझे दिये जाने वाले रुपये का क्या होता जिसका नवीनीकरण वैलवर्दे अपनी पत्नी के सात्विक ढोंग की वजह से कर रहा था ?वह उसी समय मुझे रक़म देने से मना कर देता -- क्या तुम समझ रहे हो ? और मुझे बर्बाद कर देता। कितना घटिया मज़ाक था ! चलो, कृपा करके अब इसके बारे में एक शब्द भी और नहीं कहें... असल बात तो यह है कि मेरे पास चार पैसे भी नहीं थे, और इस बात को ध्यान में रखो कि शादी करने का मेरा कोई इरादा नहीं था... "

"क्या ! " गिगी मियर ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, " तुमने उससे शादी कर ली ! "

"अरे, नहीं। मैं तुमसे वादा करता हूँ। उसने मुझसे शादी की। केवल उसकी शादी हुई। मैंने उसे पहले ही कह दिया था, " देवी जी, आप मेरी पदवी और मेरे नाम से जुड़ना चाहती हैं। ठीक है, जुड़ जाइए। क़सम से, मैं यह खुद भी नहीं जानता कि मैं इस पदवी और नाम का क्या करूँ। लेकिन बस यहीं तक, हाँ जी ? "

"फिर तो, " मियर ने रुक कर विजेता के अंदाज़ में कहा, " इस के बारे में और कुछ भी नहीं किया जा सकता था। यानी तब उसका नाम वैलवर्दे था और अब वह -- "

"बिल्कुल सही, " मेज पर से उठकर हँसते हुए गिगी के मित्र ने कहा।

"नहीं, सुनो, " गिगी मियर के लिए अब यह स्थिति असह्य हो रही थी और उसने साहस बटोर कर कहा, " तुम्हारे साथ आज की सुबह बिता कर मुझे मज़ा आ गया। मैंने भी तुम्हारे साथ अपने भाई जैसा व्यवहार किया है। अब तुम मुझ पर एक अहसान करो। "

"क्या तुम मेरी पत्नी को उधार लेना पसंद करोगे ? "

"नहीं, शुक्रिया। मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे अपना नाम बताओ। "

"मैं ? अपना नाम ? " उसके मित्र ने हैरान हो कर पूछा। वह इस तरह से अपनी छाती पर हल्के-से अपनी उँगलियाँ बजा रहा था मानो उसे अपने अस्तित्व पर भरोसा न हो। " तुम्हारा क्या मतलब है ? क्या तुम मेरा नाम नहीं जानते ? क्या तुम्हें मेरा नाम बिल्कुल याद नहीं ? "

"नहीं, " मियर ने शर्मिंदा होते हुए कहा, " मुझे माफ़ करना। तुम मुझे धरती पर मौजूद सबसे भुलक्कड़ आदमी कह सकते हो। पर मैं लगभग क़सम खा कर कहता हूँ कि मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा है। "

"अच्छा ? बढ़िया है, बहुत बढ़िया !..." उसके मित्र ने जवाब दिया। " मेरे जिगरी यार गिगी, आओ, मुझसे हाथ मिलाओ। इतने बढ़िया दोपहर के भोजन और तुम्हारे साथ के लिए मैं तुम्हें हृदय से शुक्रिया अदा करता हूँ। लेकिन अब तो मैं तुम्हें अपना नाम बताए बिना ही जाऊँगा। अब यही होगा। "

"तुम्हारा बेड़ा गर्क हो ! तुम मुझे अपना नाम बताओगे, " अपने पंजों के बल उछलते हुए गिगी चिल्लाया। "पूरी सुबह मैं तुम्हारा नाम याद करने के लिए अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालता रहा। अब जब तक तुम मुझे अपना नाम नहीं बता देते, मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा।"

"चाहे तुम मेरी हत्या कर दो, " गिगी के मित्र ने उत्तर दिया, " चाहे तुम मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दो, पर मैं तुम्हें अपना नाम नहीं बताऊँगा।"

"चलो, शाबाश ! तुम तो अच्छे आदमी हो, " मियर ने अपने स्वर को मृदु बनाते हुए कहा, " मेरे साथ कभी ऐसा विचित्र अनुभव नहीं हुआ। मैं क़सम खा कर कहता हूँ कि यह भुलक्कड़पन एक दर्दनाक अनुभूति है। सुबह से मैं लगातार तुम्हारे बारे में ही सोच रहा हूँ। तुम मेरी सनक बन गए हो। ईश्वर के लिए अपना नाम बताओ।"

"जा कर पता कर लो।"

"देखो। अपने भुलक्कड़पन के बावजूद मैंने तुम्हें दोपहर का भोजन खिलाया। सच तो यह है कि यदि मैं तुम्हें कभी नहीं जानता था तो भी अब तुम मेरे प्रिय बन गए हो। मुझ पर यक़ीन करो। तुम मुझे अपने भाई जैसे लगे हो। मैं तुम्हारा प्रशंसक बन गया हूँ। मैं चाहूँगा कि तुम मुझसे मिलने आते रहो। इसलिए मुझे अपना नाम बताओ। "

"तुम जानते हो, इस सब का कोई फ़ायदा नहीं, " गिगी के मित्र ने कहा, " मेरे रहने न रहने से तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम खुद ही सोचो। क्या तुम अकस्मात् मिली मेरी वह खुशी मुझसे छीन लेना चाहते हो -- कि मैंने तुम्हें ठग लिया क्योंकि तुम्हें पता ही नहीं चला कि तुम्हारा मेहमान कौन है ? नहीं, चले जाओ। तुम बहुत ज़्यादा जानना चाहते हो और मैं देख सकता हूँ कि मैं तुम्हें बिल्कुल याद नहीं। यदि तुम मुझे इस बात से आहत नहीं करना चाहते कि तुमने मुझे भुला दिया है तो मुझे इसी तरह चले जाने दो। "

"तो फिर तुम जल्दी यहाँ से चले जाओ, " गिगी मियर ने चिड़चिड़े स्वर में कहा।" मैं तुम्हें अपने सामने देखना और बर्दाश्त नहीं कर सकता। "

"ठीक है, मैं जा रहा हूँ। लेकिन पहले मुझे एक चुंबन तो दे दो। मैं कल वापस पादुआ लौट जाऊँगा। "

"नहीं," गिगी ने झुँझला कर कहा, " जब तक तुम मुझे अपना नाम -- "

"नहीं, नहीं। बस। अब चलता हूँ, " उसके मित्र ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा। और वह हँसता हुआ चल पड़ा। सीढ़ियों के पास जा कर वह मुड़ा और उसने अपने होठों से चुम्बन का चिह्न बना कर अपने हाथों से उस काल्पनिक चिह्न को गिगी की ओर उड़ा दिया।

(अनुवाद - सुशांत सुप्रिय)
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