जावा से पलायन (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड

Java Se Palayan (English Story in Hindi) : Ruskin Bond

यह सब कुछ ही दिनों के अंतराल में हुआ था। कैसिया के पेड़ों पर फूल आने शुरू ही हुए थे, जब बटाविया (अब जकार्ता) पर पहली बमबारी हुई। चटक गुलाबी फल अब सड़कों पर पड़े मलबे में बिखरे दिखाई दे रहे थे।

हमें खबर मिल चुकी थी कि सिंगापुर पर जापान ने कब्जा कर लिया है। मेरे पिताजी ने कहा, "मुझे लगता है, वे लोग जावा पर भी जल्दी ही कब्जा कर लेंगे। जब ब्रिटिश पराजित हो चुके हैं तो डच कैसे जीत सकते हैं?" वह डच लोगों की आलोचना नहीं कर रहे थे। वह जानते थे कि उनके पास ब्रिटेन की तरह साम्राज्य का समर्थन नहीं था। सिंगापुर को 'पूर्व का जिब्राल्टर' कहा जाता था। उसके हार मान लेने के बाद पीछे हटने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता था। दक्षिण-पूर्व एशिया से यूरोपियन लोगों का व्यापक पलायन अपरिहार्य था।

वह द्वितीय विश्व युद्ध का समय था। जावानीज युद्ध के विषय में क्या सोचते थे, यह बताना अब मेरे लिए मुश्किल है, क्योंकि उस समय मैं सिर्फ नौ साल का था और देश-दुनिया के मामलों के बारे में मुझे अधिक जानकारी नहीं थी। ज्यादातर लोग जानते थे कि उनके डच शासकों के बदले अब जापानी शासक आ जाएँगे; लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जो युद्ध समाप्त होने के बाद जावा की आजादी के सपने देखते थे।

हमारे पड़ोसी मि, हार्मोनो ऐसे ही एक व्यक्ति थे, जो भविष्य में ऐसे समय के आने की कल्पना कर रहे थे, जब जावा, सुमात्रा और अन्य द्वीप मिलकर एक स्वतंत्र देश का रूप ले लेंगे। वे एक कॉलेज प्रोफेसर थे और डच, चाइनीज, जावानीज भाषाओं के अलावा थोड़ीबहुत अंग्रेजी भी बोल लेते थे। उनका बेटा सोनो लगभग मेरी उम्र का था। मेरे परिचितों में वह अकेला लड़का था, जो मुझसे अंग्रेजी में बात कर सकता था, इसलिए हम साथ में काफी समय बिताते थे। हमारा सबसे प्रिय शौक था पार्क में जाकर पतंगें उड़ाना।

बमबारी ने जल्दी ही हमारे पतंग उड़ाने के शौक पर विराम लगा दिया। हवाई हमले की चेतावनी दिन भर, रात भर गूंजती रहती थी। हालाँकि शुरुआत में ज्यादातर बम बंदरगाह के नजदीक गिरे, जो हमारे घर से कुछ मील की दूरी पर था, फिर भी हमें घर में बंद होकर ही रहना पड़ता था। यदि हवाई जहाज की आवाज ज्यादा पास से आती तो हम सब पलंग या टेबल के नीचे घुस जाते। मझे याद नहीं है कि उस समय वहाँ खाइयाँ थीं या नहीं ! शायद पहले किसी को खाई खोदने का समय नहीं मिला था, और अब तो सिर्फ कब्र खोदने का समय था। घटनाएँ बहुत जल्दी-जल्दी घटित हो रही थी और वहाँ रहनेवाले सभी लोग (सिवाय जावानीज लोगों के), जावा से बाहर निकलने के लिए बेताब हो रहे थे।

"तुम लोग कब जा रहे हो?" एक दिन जब हम हवाई हमलों में विराम के बीच बरामदे की सीढ़ियों पर बैठे थे तो सोनो ने पूछा।

"मुझे नहीं मालूम।" मैंने कहा, "ये सब मेरे पिताजी पर निर्भर करता है।"

"मेरे पिताजी कह रहे थे कि जापानी एक हफ्ते में यहाँ पहुँच जाएँगे और अगर तब भी तुम लोग यहीं रहोगे तो वे तुम्हें रेलवे के निर्माण कार्य में लगा देंगे।"

मुझे वह काम करना बुरा नहीं लगेगा।" मैंने उसकी बात का विरोध किया।

"लेकिन वे लोग तुम्हें पेट भर खाने को भी नहीं देंगे। सिर्फ कीड़ोंवाले चावल देंगे और अगर तुम ठीक से काम नहीं करोगे तो तुम्हें गोली मार देंगे।"

"ऐसा तो वे फौजियों के साथ करते हैं।" मैंने कहा, "हम तो सिविलियंस (आम नागरिक) हैं।"

"वे सिविलियंस के साथ भी ऐसा करते हैं।" सोनो ने कहा।

मेरे पिताजी और मैं बटाविया में क्या कर रहे थे, जब हमारा घर पहले भारत में और फिर सिंगापुर में था? पिताजी रबर का व्यापार करनेवाली एक फर्म में काम करते थे और छह महीने पहले उन्हें एक डच कंपनी के साथ साझेदारी में नया ऑफिस खोलने के लिए बटाविया भेजा गया था। हालाँकि मैं बच्चा था, फिर भी मैं उनके साथ हर जगह जाता था। मेरी माँ की मृत्यु तभी हो गई थी, जब मैं बहुत छोटा था और तब से पिताजी ने हमेशा मेरा खयाल रखा था। युद्ध की समाप्ति के बाद वह मुझे इंग्लैंड ले जाने वाले थे।

"क्या हम युद्ध जीतने वाले हैं ?"

"ऐसा लगता तो नहीं है।" उन्होंने जवाब दिया।

नहीं, ऐसा नहीं लग रहा था कि हम जीतने वाले थे। बंदरगाह पर पिताजी के साथ खड़े-खड़े मैं सिंगापुर से शरणार्थियों से भरे जहाज आते देख रहा था। मर्द, औरतें और बच्चे-सब तपती धूप में जहाज की छत पर डेरा डाले हुए थे। सभी कमजोर, थके हुए और चिंतित लग रहे थे। वे या तो कोलंबो जा रहे थे या बंबई। बटाविया के तट पर कोई नहीं उतरा। यह ब्रिटिश इलाका नहीं था; डच था और सब जानते थे कि बहुत दिनों तक ये डच भी नहीं रहने वाला है।

"क्या हम भी यहाँ से नहीं चलेंगे?" मैंने पूछा, "सोनो के पिताजी कह रहे थे, जापानी किसी भी दिन यहाँ पहुँच सकते हैं।"

"हमारे पास अभी भी कुछ दिनों का समय है", पिताजी ने कहा। वे एक नाटे कद के गठीले शरीरवाले व्यक्ति थे, जो कभी-कभी ही उत्तेजित होते थे। वे परेशान होते थे, तो भी किसी को दिखाते नहीं थे।

"मुझे कुछ जरूरी काम निपटाने हैं, उसके बाद हम चलेंगे।"

"हम जाएँगे कैसे? उन जहाजों में तो बिलकुल जगह नहीं है।"

"हाँ. सच में नहीं है। लेकिन हम कोई-न-कोई रास्ता ढूँढ लेंगे, बेटा, चिंता मत करो।"

मैं चिंता नहीं कर रहा था। मुझे पूरा भरोसा था कि पिताजी इस मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ लेंगे। वे कहा करते थे, हर समस्या का हल कहीं-न-कहीं छुपा होता है और अगर तुम ध्यान से देखोगे तो वह तुम्हें अवश्य मिलेगा।

सड़कों पर ब्रिटिश फौजी गश्त लगाते रहते थे; लेकिन वे हमें सुरक्षा का एहसास नहीं दिला पाते थे। वे तो सिर्फ इस बात का इंतजार कर रहे थे कि सेना के जहाज आएँ और उन्हें यहाँ से ले जाएँ। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जावा को बचाने में किसी की भी दिलचस्पी नहीं है। हर कोई वहाँ से जल्दी-से-जल्दी बाहर निकलना चाहता था।

हालाँकि जावानीज लोग डच लोगों को ज्यादा पसंद नहीं करते थे, फिर भी उनके मन में किसी एक यूरोपियन के प्रति वैर भाव नहीं था। मैं सड़क पर बिना किसी डर के घूम सकता था। कभी-कभी चाइनीज क्वार्टर्स (सैन्य वास) से कुछ छोटे बच्चे मेरी ओर इशारा करके चिल्लाते, "ओरंग बलंदी! (डचमैन)।" लेकिन वे ऐसा खेल-खेल में करते थे और मुझे उनकी भाषा इतनी अच्छी तरह नहीं आती थी कि मैं उन्हें समझा पाऊँ कि अंग्रेज डच नहीं होते। उनके लिए सभी गोरे एक समान होते थे और यह बात समझ में भी आती थी।

मेरे पिताजी का ऑफिस नहर के किनारे व्यावसायिक क्षेत्र में था। उससे दो मील दूर हमारा दो मंजिला घर था-एक पुरानी सी इमारत, जिसकी छत लाल पत्थरों की बनी थी और चौड़ी सी बालकनी के दोनों किनारों पर पत्थर के ड्रैगन थे। हमारे बगीचे में लगभग पूरे साल फूल खिले रहते थे। बटाविया में यदि कोई चीज बमबारी से अधिक नियमित थी तो वह थी बारिश, जो लगभग रोज दोपहर को छत से होती हुई नीचे केले के पत्तों पर गिरती थी। जावा की गरम, तपती दोपहरों में बारिश का हमेशा स्वागत होता था।

बटाविया में विमानभेदी बंदूकें नहीं थीं। कम-से-कम हमने तो उनके वहाँ होने के बारे में नहीं सुना था और जापानी बमवर्षक अपनी मरजी से आते थे और दिन-दहाड़े बम गिराकर चले जाते थे। कभी-कभी बम शहर में भी गिर जाते थे। एक दिन मेरे पिताजी के ऑफिस के बगलवाली इमारत पर बम सीधे आकर गिरा और इमारत टूटकर नदी में गिर गई। वहाँ काम करनेवाले बहुत से कर्मचारी मारे गए।

स्कूल बंद हो गए। सोनो और मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए हम घर में रहकर डाटर्स या कैरम खेलते. कालीन पर कुश्ती लड़ते या ग्रामोफोन पर गाने सुनते। हमारे पास ग्रेसी फील्ड्स, हैरी लॉडर, जॉर्ज फॉम्र्बी और आर्थर ऐस्की के रिकॉर्ड्स थे, जो वर्ष 1940 की शुरुआत के लोकप्रिय ब्रिटिश गायक थे। आर्थर ऐस्की का एक गाना था, जिसके शब्द एडोल्फ हिटलर का मजाक उड़ाते थे'एडोल्फ, वी आर गौना हैंग अप योर वॉशिंग ऑन द सीजफ्राइड लाइन, इफ द सीजफ्राइड लाइन इज स्टिल देयर!' हम यह सोचकर खुश हो जाते थे कि ब्रिटेन के लोग युद्ध जीतने के प्रति आश्वस्त थे।

एक दिन सोनो ने कहा, "बम बटाविया में गिर रहे हैं, गाँव की तरफ नहीं। क्यों न हम साइकिल लेकर शहर से बाहर चलें!"

मुझे उसका प्रस्ताव पसंद आ गया। सुबह के ऑल क्लियर (सब ठीक है) अलार्म के बाद हम अपनी साइकिलों पर सवार होकर शहर से बाहर की ओर निकल पड़े। मैंने साइकिल किराए पर ली थी, लेकिन सोनो के पास उसकी अपनी साइकिल थी। वह साइकिल उसके पास 5 वर्ष की उम्र से थी और उसे आएदिन मरम्मत की जरूरत पड़ती रहती थी। "इस साइकिल की आत्मा इसे छोड़कर चली गई है।" वह कहा करता था।

हम दोनों के पिताजी काम पर गए थे। सोनो को माँ बाजार गई थी (हवाई हमले के दौरान वह सबसे सुरक्षित दुकान में पनाह ले लेती थी) और एक घंटे से पहले वापस नहीं आने वाली थी। हमारा अंदाजा था कि हम लंच (दिन के भोजन) से पहले वापस आ जाएँगे।

हम जल्दी ही शहर से बाहर पहुँच गए-एक ऐसी सड़क पर, जो चावल के खेतों, अनानास के बागों और सिनकोना के बागानों से होकर गुजरती थी। हमारी दाई ओर गहरे हरे पहाड थे; बाई ओर नारियल के पेड़ों की कतारें और उनके आगे समुद्र । चावल के खेतों में बहुत सी औरतें और मर्द काम कर रहे थे, जिनके पैर घुटनों तक मिट्टी से नहाए हुए थे। चिलचिलाती धूप से बचने के लिए उन्होंने चौड़े किनारेवाले हैट पहने हुए थे। कहीं-कहीं एकाध भैंस कीचड़ भरे मटमैले पानी में बैठी दिखाई दे रही थी। एक भैंस की पीठ पर एक नंगा लड़का पसरा हुआ था।

हमने नारियल के पेड़ों के बीच का ऊबड़-खाबड़ रास्ता चुना। नारियल के पेड़ समुद्र के किनारे तक लगे हुए थे। अपनी साइकिलें पथरीली जमीन पर छोड़कर हम रेतीले बीच पर दौड़ते हुए छिछले पानी में कूद गए।

"पानी में ज्यादा आगे मत जाना!" सोनो ने चेतावनी दी, "वहाँ शार्क्स हो सकती हैं।"

पानी में पत्थरों पर चलते हुए हमने अच्छे-अच्छे शंख खोजे और फिर एक बड़े से पत्थर पर बैठकर समुद्र को देखने लगे, जिसके स्वच्छ व नीले पानी में एक जहाज शांति से आगे बढ़ रहा था। यह कल्पना करना मुश्किल था कि आधी दुनिया में युद्ध छिड़ा हुआ था और बटाविया, जो इस जगह से सिर्फ दो या तीन मील की दरी पर था. युद्ध के बिलकुल बीच में था।

घर वापस लौटते समय हमने चावल के खेतों के बीच से एक छोटा रास्ता लेने का फैसला किया; लेकिन कुछ ही दूर जाने पर हमें पता चला कि हमारी साइकिलों के टायर कीचड़ में फँस गए थे। इस वजह से हमें घर लौटने में देर हो गई। ऊपर से हम रास्ता भी भूल गए और शहर के ऐसे इलाके में पहुँच गए, जिससे हम अनजान थे। हम शहर में घुसे ही थे कि सायरन की आवाज आने लगी और कुछ ही देर में हवाई जहाज के इस दिशा में आने की भी।

"क्या हम साइकिल से उतरकर कहीं पनाह ले लें?" मैंने सोनो को आवाज लगाकर पूछा।

"नहीं, जल्दी से घर चलते हैं!" सोनो चिल्लाकर बोला, "बम यहाँ नहीं गिरेंगे।"

लेकिन वह गलत सोच रहा था। हवाई जहाज काफी नीचे उड़ रहे थे। मैंने एक पल के लिए नजरें उठाईं तो देखा, एक भयावह जापानी लड़ाकू बमवर्षक ने सूरज को ढका हुआ है। हम पूरी ताकत से पैडल मारने लगे; लेकिन हम मुश्किल से पचास गज आगे ही बढ़े होंगे कि हमारी दाईं ओर के कुछ मकानों के पीछे एक भीषण विस्फोट हुआ। दहशत के मारे हमारी साइकिलें सड़क पर गोल-गोल घूमने लगीं और हम नीचे गिर पड़े। हमारी साइकिलें जैसे विस्फोट के प्रभाव में आकर एक दीवार से टकरा गईं।

मुझे अपने हाथों में तेज जलन महसूस हो रही थी, जैसे मझे सैकड़ों छोटे-छोटे कीड़ों ने काट लिया हो। मेरे शरीर पर कई जगह खून की बूंदें दिखाई देने लगीं। सोनो भी पेट के बल रेंगते हुए मेरी ओर बढ़ रहा था। मैंने देखा, उसके भी माथे और हाथों पर मेरे जैसी खरोंचें लगी हुई थीं, जो शायद बारूद के नन्हे कणों के उड़ने से लगी थीं।

हम जल्दी से उठकर खड़े हो गए और अपने घर की दिशा में भागने लगे। हमारी मुड़ी-तुड़ी साइकिलें लावारिस सी सड़क पर ही पड़ी रहीं।

"तुम दोनों सड़क से अलग हटो!" किसी ने खिड़की से पुकारकर हमें चेतावनी दी। लेकिन हम तब तक दौड़ते रहे, जब तक घर नहीं पहुँच गए और इतना तेज दौड़े, जितना हम जिंदगी में कभी नहीं दौड़े थे।

मेरे पिताजी और सोनो की माँ और पिताजी खुद भी हमें खोजते हुए सड़क पर भाग रहे थे, जब हम दौड़ते हुए आकर उनकी बाँहों में गिर पड़े।

"कहाँ थे तुम दोनों?"

"क्या हुआ तुम दोनों को?"

"ये खरोंचें कहाँ से लगीं तुम्हें ?"

सब निरर्थक से प्रश्न थे, लेकिन इससे पहले कि हम साँस लेकर कुछ बताते, हमें उठाकर अपने अपने घर ले जाया गया। पिताजी ने मेरी खरोंचें और चोटें साफ की, मेरे चिल्लाने पर ध्यान न देते हुए मेरे चेहरे और पैरों पर आयोडीन लगाया और फिर मेरे पूरे चेहरे पर प्लास्टर चिपका दिया।

सोनो और मैं बुरी तरह डर गए थे और उस दिन के बाद कभी घर से दूर नहीं गए।

उस रात पिताजी ने कहा, "मुझे लगता है, हम एक-दो दिन में यहाँ से निकल सकते हैं।"

"क्या दूसरा जहाज आ गया है?"

"नहीं।"

"फिर हम कैसे जाएँगे? प्लेन से?"

"थोड़ा इंतजार करो, बेटा। अभी कुछ तय नहीं हुआ है। लेकिन हम अपने साथ ज्यादा सामान नहीं ले जा पाएंगे सिर्फ उतना ही ले जाएँगे, जितना दो एयरबैग्स में आ जाए।"

"और स्टैंप कलेक्शन का क्या होगा?"

मेरे पिताजी का स्टैंप कलेक्शन (डाक टिकटों का संग्रह) काफी कीमती था और कई खंडों में था।

"बदकिस्मती से हमें उसका बड़ा हिस्सा यहीं छोड़कर जाना पड़ेगा।" उन्होंने कहा, "मैं मि. हार्मोनो से उसे सँभाल के रखने की विनती करूँगा और जब युद्ध समाप्त हो जाएगा-अगर समाप्त हुआतो हम आकर उसे ले जाएँगे।"

"लेकिन हम एक या दो एलबम तो अपने साथ ले जा सकते हैं न?"

"एक ले चलेंगे। हमारे पास एक की ही जगह होगी। और अगर हमें बॉम्बे में पैसों की जरूरत होगी तो हम स्टैंप्स बेच देंगे।"

"बॉम्बे? वो तो इंडिया में है। मझे लगा. हम इंग्लैंड वापस जा रहे हैं।"

"पहले हमें इंडिया जाना पड़ेगा।"

अगली सुबह मैंने सोनो को बगीचे में अपने जैसे ही प्लास्टर चिपकाए हुए देखा। उसकी भी एक टाँग में बैंडेज बँधा हुआ था। फिर भी वह हमेशा की तरह प्रसन्नचित्त लग रहा था और मुझे देखते ही उसके चेहरे पर चिर-परिचित मुसकान आ गई।

"हम कल जा रहे हैं।" मैंने कहा।

उसके चेहरे से मुसकान गायब हो गई।

"तुम चले जाओगे तो मुझे बहुत दुःख होगा।" सोमो ने कहा, "लेकिन मुझे खुशी भी होगी, क्योंकि तुम जापानियों से बच जाओगे।"

"युद्ध समाप्त होने के बाद मैं वापस आ जाऊँगा।"

"हाँ, जरूर आना। और फिर, जब हम बड़े हो जाएँगे तो साथ में दुनिया की सैर करेंगे। मैं इंग्लैंड और अमेरिका, अफ्रीका और इंडिया और जापान-सब देखना चाहता हूँ। मुझे हर जगह जाना है।"

"हम हर जगह नहीं जा सकते।"

"बिलकुल जा सकते हैं। हमें कोई नहीं रोक सकता।"

अगली सुबह हमें बहुत जल्दी उठना था। हमने अपना सामान रात को देर तक जागकर बाँध लिया था। हम अपने साथ कुछ कपडे, पिताजी के ऑफिस के कुछ कागजात, एक जोड़ी दूरबीन, एक स्टैंप एलबम और कुछ चॉकलेट्स ले जा रहे थे। मुझे चॉकलेट्स और स्टैंप एलबम ले जाने की खुशी तो थी, लेकिन मुझे अपनी बहुत सी प्रिय चीजें छोड़नी भी पड़ रही थीं-अपनी प्रिय किताबें, ग्रामोफोन और रिकॉर्ड्स, एक पुरानी समुराई तलवार, एक ट्रेन सेट और एक डार्टबोर्ड। मुझे संतोष इस बात का था कि वह सारा सामान किसी अजनबी के पास नहीं, बल्कि सोनो के पास रहने वाला था।

भोर की पहली किरण के साथ एक ट्रक हमारे घर के सामने आकर रुका। उसे एक डच व्यापारी मि. केंस चला रहे थे, जो मेरे पिताजी के साथ काम करते थे। सोनो पहले से ही 'गुडबाय' कहने के लिए गेट पर खड़ा था।

"मेरे पास तुम्हारे लिए एक तोहफा है।" उसने कहा।

फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और मेरी हथेली में एक चिकनी, ठोस चीज रख दी। मैंने उसे पकड़ लिया और रोशनी के सामने लाकर देखा। वह एक नन्हा, खूबसूरत 'सी हॉर्स' (समुद्री घोड़ा) था, हलके नीले जेड (एक कीमती पत्थर) का बना हुआ।

"ये तुम्हारे लिए अच्छी किस्मत लेकर आएगा।" सोनो ने कहा।

"थैंक यू।" मैंने कहा, मैं इसे हमेशा अपने पास रखूँगा।"

और मैंने वह नन्हा 'सी हॉर्स' अपनी जेब में रख लिया।

"चलो, अंदर बैठो, बेटा।" पिताजी ने कहा और मैं आगे की सीट पर उनके और मि. हूकेंस के बीच में बैठ गया।

जब ट्रक का इंजन चालू हुआ तो मैंने मुड़कर सोनो की ओर हाथ हिलाया। वह मुसकराता हुआ अपने बगीचे की दीवार पर बैठा था। उसने मुझे पुकारकर कहा, "हम सब जगह जाएँगे, हमें कोई नहीं रोक पाएगा।"

जब ट्रक सड़क के अंत तक पहुँच गया, तब भी वह अपना हाथ हिला रहा था।

हमारा ट्रक बटाविया की सूनी, शांत सड़कों पर जले हुए ट्रक और ध्वस्त इमारतों को पार करता हुआ बढ़ रहा था। कुछ समय बाद हम उस सोते हुए शहर को काफी पीछे छोड़कर वनाच्छादित पहाड़ियों पर चढ़ रहे थे। रात को बारिश हुई थी और जब हरियाली से भरी पहाड़ियों के ऊपर सूरज की किरणें पड़ रही थीं, तो पेड़-पौधों की गीली पत्तियाँ चमक रही थीं। जंगल की रोशनी गहरे हरे रंग से बदलकर हरियाली लिये सुनहरे रंग की हो गई थी और कहीं-कहीं पर खिले तरही के आकार के फूलों के रंग के कारण सुर्ख लाल या नारंगी भी। उन सभी अद्भुत फूलों और पौधों के नाम जान पाना असंभव था। वो सड़क एक घने ट्रॉपिकल फॉरेस्ट (उष्णकटिबंधीय वन) के बीच से रास्ता काटकर बनी थी और उसके दोनों ओर पेड़ जैसे धूप पाने के लिए एक-दूसरे को धक्का दे रहे थे। लेकिन उन्हें उन लताओं और बेलों ने जकड़ रखा था, जो उन संघर्षरत पेड़ों पर अपने आहार के लिए निर्भर थीं।

कभी-कभी कोई जेलारंग (जावा में पाई जानेवाली एक बड़ी गिलहरी) ट्रक की आवाज से भयभीत होकर पेड़ों के बीच से निकलकर आती और फिर वन की गहराई में गायब हो जाती। हमने बहुत से पक्षी देखे-मोर, जंगलफाउल और एक बार सड़क के किनारे शान से खड़ा कलगीदार कबूतर भी देखा, जिसका विशाल आकार और शानदार कलगी इतनी दूर से भी हमें मंत्रमुग्ध कर रहे थे। मि. हूकेंस ने ट्रक की गति धीमी कर दी, ताकि हम उस अद्भुत पक्षी को अच्छी तरह देख सकें। उसने अपना सिर झुकाया तो उसकी कलगी जमीन को स्पर्श करने लगी; फिर उसने अपने मुँह से टर्की की आवाज के बजाय एक धीमी, खोखली सी आवाज निकाली।

जब हम एक छोटी सी 'क्लीयरिंग' (वन में एक साफ व खाली स्थान) पर पहँचे तो नाश्ता करने के लिए रुक गए। उसके आस-पास काली, हरी, सुनहरी तितलियाँ मँडरा रही थीं। वन का सन्नाटा सिर्फ हवाई जहाजों की आवाज से भंग हो रहा था। उन जापानी लड़ाकू विमानों की आवाज से, जो शायद बटाविया या कहीं और बमबारी करने जा रहे थे। मुझे सोनो का खयाल आ गया और मैं सोचने लगा कि वह घर पर क्या कर रहा होगा? शायद ग्रामोफोन पर गाने सुन रहा होगा।

हमने उबले अंडे खाए, थरमस में से चाय पी और एक बार फिर ट्रक में बैठकर अपने सफर पर चल दिए।

शायद उसके बाद मुझे नींद आ गई थी, क्योंकि जो अगली चीज मुझे याद है, वह यह है कि हम तेजी से एक ढलवाँ एवं घुमावदार सड़क पर जा रहे थे और मुझे दूर एक शांत, नीली खाड़ी नजर आ रही थी।

"हम फिर समुद्र के पास पहुँच गए।" मैंने कहा।

"तुम ठीक कह रहे हो" मेरे पिताजी ने कहा, "लेकिन अब हम बटाविया से लगभग सौ मील दूर आ चुके हैं, द्वीप के दूसरे हिस्से में। तुम जिसे देख रहे हो, वो सुंदा स्ट्रेट्स है।"

फिर उन्होंने खाड़ी के पानी में खड़ी हुई एक चमकीली सफेद चीज की ओर इशारा किया।

"वह रहा हमारा जहाज उन्होंने कहा।

"सी प्लेन (समुद्री विमान)!" मैंने उत्साहित होकर कहा, "मुझे तो अंदाजा भी नहीं था।"

"ये हमें कहाँ ले जाएगा?"

"शायद बॉम्बे। मुझे ऐसी उम्मीद है। हमारे पास ज्यादा जगहें बची कहाँ हैं जाने के लिए!"

वह एक बहुत पुराना सी प्लेन था कोई भी, उसका कप्तानउसके पायलट को कप्तान कहा जाता था—भी इस बात का दावा नहीं कर सकता था कि वह टेक ऑफ कर पाएगा! मि. हूकेंस हमारे साथ नहीं आ रहे थे। उन्होंने बताया कि प्लेन अगले दिन उनके लिए वापस आने वाला था। मेरे पिताजी तथा मेरे अलावा चार और यात्री थे और एक के अलावा सभी डच थे। वह अकेला यात्री लंदन का था, एक मोटर मेकैनिक, जो जावा में तब छूट गया था, जब उसकी टुकड़ी को वहाँ से बचाकर निकाला गया था। (उसने बाद में हमें बताया कि उसे चीनी आवास में एक बार नींद आ गई थी और कुछ घंटों बाद वह उठा तो उसे पता चला, उसकी रेजिमेंट (सैन्य दल) वहाँ से निकल चुकी थी।) वह कुछ अस्त-व्यस्त सा लग रहा था। उसकी शर्ट का ऊपरवाला बटन टूटा हुआ था, लेकिन हमारी तरह अपना कॉलर खुला छोड़ देने के बजाय उसने एक बड़ा सा सेफ्टी पिन लगाया हुआ था, जो उसकी चटक गुलाबी टाई के पीछे से झाँक रहा था।

"आपको यहाँ देखकर मुझे राहत महसूस हो रही है, सर।" उसने मेरे पिताजी से हाथ मिलाते हुए कहा, जैसे ही मैंने आपको देखा, मैं समझ गया कि आप यॉर्कशायर से हैं। ये हमारे सांग फ्राइड (आत्मसंयम/ धैर्य) से पता चलता है। आप मेरी बात समझ रहे हैं न? (उसका मतलब था-सँगफ्रॉइड, जो एक फ्रेंच शब्द था) अभी तक मैं इन अजीब सी भाषा बोलनेवाले विदेशियों के साथ फंसा हुआ था, जिनकी बक-बक का एक शब्द भी मेरी समझ में नहीं आ रहा है।

"आपको लगता है, ये पुराना सा टब हमें यहाँ से बचा के ले जाएगा?"

"हाँ, ये कुछ डाँवाँडोल सा लग तो रहा है।" पिताजी ने कहा, "इसे देखकर लग रहा है ये सबसे पहले बने फ्लाइंग बोट्स में से एक है। ये हमें बॉम्बे तक भी पहुँचा दे तो बहुत है।"

"मैं तो बस जावा से बाहर निकलना चाहता हूँ।" हमारे नए साथी ने कहा, "मेरा नाम मगरिज है।"

"आपसे मिलकर खुशी हुई, मि. मगरिज।" पिताजी ने कहा, मेरा नाम बॉण्ड है। ये मेरा बेटा है।

मि. मगरिज ने मेरे बालों पर हाथ फिराया और मेरी ओर देखकर अपनी एक आँख दबा दी।

कप्तान हमें अपने साथ एक छोटी से डोंगी में बैठने के लिए बुला रहा था, जो हमें कुछ दूर खड़े समुद्री विमान तक ले जाने वाली थी।

"हमारी यात्रा शुरू होने वाली है।'' मि. मगरिज ने कहा, "प्रार्थना कर लो और मनाओ कि हम सकुशल यहाँ से निकल जाएँ।"

विमान के उड़ने में काफी समय था। उसे पानी में कई बार चलना पड़ा और फिर एक शराबी की तरह डगमगाते हुए वह धीरे-धीरे स्वच्छ, नीले आसमान की ओर उठने लगा।

"एक पल के लिए तो मैं सोचने लगा था कि हम समुद्र में ही जाने वाले हैं।" मि. मगरिज अपनी सीट बेल्ट खोलते हुए बोले, "और मछली की बात करें तो मैं एक प्लेट फिश और चिप्स और एक बोतल बीयर के बदले अपना एक सप्ताह का वेतन देने को तैयार हूँ।"

"मैं बॉम्बे में तुम्हारे लिए बीयर खरीद दूँगा।" मेरे पिताजी ने कहा।

"आप अंडा लेंगे?" मुझे याद आया कि हमारे एक बैग में अभी भी कुछ उबले अंडे बचे हुए हैं।

"शुक्रिया दोस्त! मि. मगरिज ने तत्परता से एक अंडा स्वीकार करते हुए कहा। "एक असली अंडा! मैं पिछले छह महीनों से अंडों के पाउडर से काम चला रहा हूँ। आर्मी में वही मिलता है। और मैं आपको बता रहा हूँ कि वह भी मुरगी के अंडों से नहीं बनता, कछुए या मुर्गाबी के अंडों से बनता है।"

"नहीं," मेरे पिताजी ने भावहीन चेहरे से कहा, "साँप के अंडों से ।"

मि. मगरिज का चेहरा पीला पड़ गया। लेकिन वे जल्दी ही सँभल गए और फिर एक घंटे तक लगातार दुनिया भर के विषयों पर बोलते रहे, जिनमें चर्चिल, हिटलर, रूजवेल्ट, महात्मा गांधी और बेट्टी ग्रेबल भी शामिल थे (अंतिम नाम अपनी खूबसूरत टाँगों के कारण मशहूर था)। यदि उन्हें मौका मिला होता तो वे बॉम्बे पहुँचने तक बोलते रहते, लेकिन तभी हमारे प्लेन में एक थरथराहट हुई और वह फिर से हिचकोले खाने लगा।

"मुझे लगता है, इसका इंजन परेशान कर रहा है।" पिताजी ने कहा।

जब मैंने खिड़की के काँच से बाहर झाँका तो मुझे लगा, जैसे समुद्र की लहरें तेजी से हमसे मिलने आ रही थीं।

सहपायलट यात्रियों के केबिन में आया और डच भाषा में कुछ बोला। यात्रियों के चेहरों पर घबराहट दिखने लगी और वे जल्दी-जल्दी अपनी सीट बेल्ट्स बाँधने लगे।

"आखिर उस बेवकूफ ने कहा क्या?" मि. मगरिज ने पूछा।

"मुझे लगता है, उसे प्लेन छोड़ना पड़ेगा।" पिताजी ने कहा, जो इतनी डच जानते थे कि उसने जो कहा था, उसका अंदाजा लगा सकें।

"ये क्या कह रहे हैं आप?" मि. मगरिज घबराकर बोले, "ईश्वर हमारी मदद करें। और बॉम्बे अभी कितनी दूर है, सर?"

"अभी सैकड़ों मील दूर है।" पिताजी ने कहा।

"क्या तुम तैरना जानते हो, दोस्त?" मि. मगरिज ने मेरी ओर देखते हुए पूछा।

"हाँ, जानता हूँ। लेकिन मैं बॉम्बे तक तैर के नहीं जा सकता। आप कितनी दूर तक तैर सकते हैं?"

"एक बाथटब की लंबाई जितना।" उन्होंने जवाब दिया।

"चिंता मत करो," पिताजी ने कहा, "बस, इतना ध्यान रखो कि तुम्हारी लाइफ जैकेट ठीक से बँधी है।"

हमने अपनी लाइफ जैकेट्स सँभाली। पिताजी ने मेरी जैकेट को दो बार जाँच कर सुनिश्चित कर लिया कि वह ठीक से बँधी हुई थी।

पायलट ने अब तक दोनों इंजन काट दिए थे और विमान गोलगोल घूमते हुए नीचे आ रहा था। लेकिन वह विमान की गति को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था, इसलिए विमान एक ही तरफ झुक रहा था। सही तरीके से लैंड करने के बजाय वह अपने एक पंख की नोक के बल नीचे उतरा और इस वजह से समुद्र की तेज लहरों के बीच विमान जोरों से चक्कर खाने लगा। जब उसने पानी का स्पर्श किया तो एक जोरदार झटका लगा और यदि हमने सीट बेल्ट्स नहीं बाँधी होती तो निश्चित रूप से हम गिर पड़ते। फिर भी मि. मगरिज का सिर आगेवाली सीट से टकरा ही गया और फिर उनकी नाक से खून बहने लगा और जुबान से गालियाँ निकलने लगीं।

जैसे ही विमान स्थिर हुआ, पिताजी ने मेरी सीट बेल्ट खोल दी। हमारे पास बरबाद करने के लिए समय बिलकुल नहीं था। केबिन में पानी भरना शुरू हो गया था और सभी यात्री-सिवाय एक के, जो गरदन टूट जाने के कारण अपनी सीट पर मृत पड़ा था-बाहर निकलने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। सहपायलट ने एक लीवर खींचा तो दरवाजा खुल गया और हमें समुद्र की ऊँची लहरें जख्मी विमान के किनारों पर आक्रमण करती दिखाई देने लगीं।

पिताजी मेरा हाथ पकड़कर मुझे निकास की ओर ले जा रहे थे।

"जल्दी करो, बेटा।" वो बोले, "हम बहुत देर तक पानी के ऊपर नहीं रह पाएँगे।"

"जरा मदद कीजिए!" मि. मगरिज अपनी लाइफ जैकेट से संघर्ष करते हुए चिल्लाए, “एक तो मेरी नाक से खून निकलता जा रहा है और अब ये लाइफ जैकेट अटक गई है।"

पिताजी ने पहले उनकी जैकेट ठीक करने में मदद की और फिर उन्हें हमसे पहले गेट से बाहर निकाल दिया।

जब हम तैरकर सी प्लेन से दूर जा रहे थे (मि. मगरिज भी हमारे बगल में जोर से हाथ-पैर चला रहे थे), हमें पानी में मौजूद अन्य यात्रियों का भी ध्यान था। उनमें से एक ने डच भाषा में चिल्लाकर हमें अपने पीछे आने के लिए कहा।

हम उसके पीछे तैरते हुए डिंगी की ओर जा रहे थे, जो हमारे पानी में उतरते ही खोल दी गई थी। लहरों पर मचलती वह पीले रंग की डिंगी हमारे लिए उतनी ही सखदायी थी, जितनी कि जमीन।

जितने भी यात्रियों ने प्लेन छोड़ा था, वे सभी डिंगी में चढ़ने में कामयाब हो गए। हम कुल मिलाकर सात थे-ठसाठस भरे हुए। हम डिंगी में ठीक से बैठे ही थे कि मि. मगरिज, जो अभी भी अपनी नाक को पकड़े हुए थे, बोले, "वो गया हमारा प्लेन!" हम असहाय से देखते रहे और समुद्री विमान धीरे-धीरे, बिना कोई आवाज किए, लहरों के नीचे समा गया।

डिंगी में भी काफी पानी भर गया था और जल्दी ही हर कोई उसे निकालने में व्यस्त हो गया-मग से (डिंगी में दो मग थे), हैट से, कुछ नहीं मिला तो हाथों की अंजलि से। एक जगह हलका सा उभार था और बार-बार डिंगी पानी से आधी भर जाती थी। लेकिन आधे घंटे में सबने मिलकर लगभग पूरा पानी बाहर निकाल दिया। उसके बाद बारी-बारी से पानी निकालने का काम करना संभव हो गया। दो लोग पानी निकालते और बाकी आराम करते। मुझसे इस काम में मदद करने की कोई उम्मीद नहीं कर रहा था, फिर भी मैंने मदद की-पिताजी की सोला टोपी का इस्तेमाल करके।

"हम कहाँ हैं?" एक यात्री ने पूछा।

"किसी भी जगह से बहुत दूर।" दूसरे ने जवाब दिया। "हिंद महासागर में कुछ द्वीप तो होंगे ही।"

"लेकिन उनमें से एक तक पहुँचने के पहले हमें कई दिनों तक समुद्र में रहना पड़ सकता है।"

"कई दिन या कई हफ्ते भी।" कप्तान ने कहा, "चलो, हम अपने राशन पर नजर डाल लें।"

डिंगी में जरूरत की पर्याप्त खाद्य सामग्री थी-बिस्किट्स, किशमिश, चॉकलेट्स (हमने अपनी खो दी थीं) और एक सप्ताह चलने जितना पानी भी था। एक फर्स्टएड बॉक्स (जरूरी दवाओं का डिब्बा) भी था, जिसका फौरन ही इस्तेमाल कर लिया गया, क्योंकि मि. मगरिज की नाक को उपचार की सख्त आवश्यकता थी। कुछ और यात्रियों को भी छोटी-मोटी चोटें या खरोंचें लगी थीं। एक यात्री को सिर में जोर की चोट लगी थी और ऐसा लग रहा था कि उसकी याददाश्त चली गई है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि हम सब हिंद महासागर के बीचोबीच क्यों तैर रहे हैं ? उसे लग रहा था कि हम लोग बटाविया से कुछ मील दूर क्रूज पर आए हैं।

डिंगी जब समुद्र की लहरों के बीच ऊपर-नीचे हो रही थी तो उसकी असामान्य गति से सभी सी सिक (समद्र में घबराहट होना और चक्कर आना) हो रहे थे। चूँकि कोई कुछ खाने की स्थिति में ही नहीं था, इसलिए एक दिन का राशन बच गया।

धूप बहुत तेज थी और पिताजी ने मेरे सिर को एक बड़े से बिंदीवाले रूमाल से ढक दिया था। उन्हें हमेशा से पीली बिंदियोंवाले बडे रुमाल पसंद थे और वे अपने साथ कम-से-कम वैसे दो रूमाल तो हमेशा रखते ही थे। इसलिए उनके पास अपने लिए भी एक रूमाल था। सोला टोपी, जो समुद्र के पानी से अच्छी तरह भीगी हुई थी, मि. मगरिज के काम आ रही थी।

जब मैं अपनी घबराहट और चक्कर से कुछ उबरा, तब मुझे अचानक पिताजी के कीमती स्टैंप एलबम की याद आई और मैं उठकर बैठ गया, "हमारे स्टैंप्स! आप स्टैंप्स एलबम लाए कि नहीं डैड?

उन्होंने अफसोस में सिर हिलाया। “अब तक तो वह समुद्र के नीचे पहुँच चुका होगा।" उन्होंने कहा, "लेकिन चिंता मत करो, मैंने कुछ दुर्लभ स्टैंप्स अपने वॉलेट में रखे हैं। और उन्होंने खुश होते हुए अपनी शर्ट की जेब थपथपाई।

डिंगी पूरे दिन तैरती रही, लेकिन किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह हमें कहाँ लेकर जा रही है !

"शायद ये गोल-गोल घूमकर परिक्रमा कर रही है।'' मि. मगरिज ने हताशा से कहा।

हमारे पास न कोई कंपास था और न पाल, और चप्पू होते तो भी हमें ज्यादा दूर तक नहीं ले जा पाते। हमारे पास खद को धारा के हवाले छोड़ देने के अलावा कोई चारा नहीं था, इस उम्मीद के साथ कि वह हमें किसी जमीन की ओर तो ले ही जाएगी या कम-से-कम किसी गुजरते जहाज के इतने नजदीक कि कोई हमारी पुकार सुन सके।

सूरज सुर्ख लाल होता हुआ धीरे-धीरे अस्त हो गया, जैसे समुद्र में समा गया हो। अँधेरा हमें घेरने लगा था। वह एक अँधेरी, बिना चाँद की रात थी और हमें लहरों के ऊपर के सफेद झाग के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैं पिताजी के कंधों पर सिर रखकर लेटा हुआ था और आसमान में टिमटिमाते तारों को देख रहा था।

"शायद तुम्हारा दोस्त सोनो भी आज आसमान में इन्हीं सितारों को देख रहा होगा।" पिताजी ने कहा, "दुनिया इतनी बड़ी भी नहीं है।"

"हाँ, और हमारे चारों ओर सिर्फ समुद्र ही है।" अँधेरे में से मि. मगरिज की आवाज आई।

सोनो की याद आई तो मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और उसके दिए सी हॉर्स को वहाँ सुरक्षित पाकर आश्वस्त हो गया।

"मेरे पास सोनो का दिया सी हॉर्स अभी भी है।" मैंने पिताजी को सोनो का तोहफा दिखाते हुए कहा।

"इसे सँभालकर रखो।" उन्होंने कहा, "यह हमारे लिए अच्छी किस्मत ला सकता है।"

"क्या सी हॉर्सेज भाग्यशाली होते हैं ?"

"क्या पता? लेकिन उसने तुम्हें यह प्यार से दिया है और प्यार प्रार्थना जैसा होता है। इसलिए इसे सँभालकर रखो।"

मैं उस रात ज्यादा देर नहीं सोया। शायद कोई भी ठीक से नहीं सोया था। कोई ज्यादा बातचीत भी नहीं कर रहा था, सिवाय मि. मगरिज के, जो लगातार ठंडी बीयर और सलामी के बारे में कुछ बोलते जा रहे थे।

अगले दिन मुझे ज्यादा घबराहट नहीं हुई। दस बजते-बजते मुझे जोर से भूख लग आई थी, लेकिन नाश्ते में हमें सिर्फ दो बिस्किट्स, एक टुकड़ा चॉकलेट और थोड़ा सा पानी मिला। दिन बहुत गरम था और हमें जल्दी ही फिर प्यास लग गई; लेकिन सबने यह फैसला किया कि हमें अपने खाने-पीने पर कड़ाई से नियंत्रण रखना पड़ेगा।

दो-तीन यात्री अभी भी बीमार थे; लेकिन बाकी मि. मगरिज समेत अपनी भूख और हिम्मत वापस पा चुके थे और अब अपने बचाए जाने की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे थे।

"डिंगी में डिस्ट्रेस रॉकेट्स (आपदा में संकेत देने के काम आनेवाले रॉकेट) हैं क्या?" पिताजी ने पूछा, “यदि हमें कोई जहाज या प्लेन दिखाई देता है तो हम एक रॉकेट छोड़ सकते हैं। हो सकता है, किसी की नजर हम पर पड़ जाए! वरना दूर से हमें देखे जाने की संभावना बहुत कम है।"

डिंगी के एक-एक कोने में खोजा गया, लेकिन कोई रॉकेट नहीं मिला।

"किसी ने पिछले गाए फॉक्स डे पर उसका इस्तेमाल कर लिया होगा।" मि. मगरिज ने टिप्पणी की।

"हॉलैंड में गाए फॉक्स डे नहीं मनाया जाता।" पिताजी ने कहा, "गाए फॉक्स अंग्रेज था।"

"आह!" मि, मगरिज बोले। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी-"मैं तो हमेशा से कहता आया हूँ कि ज्यादातर महान् व्यक्ति अंग्रेज ही होते हैं। और ये गाए फॉक्स साहब ने कौन सा कमाल किया था?"

"संसद् को बम से उड़ाने की कोशिश की थी।" पिताजी ने कहा।

उस दिन दोपहर में हमने पहली बार शार्क मछलियाँ देखीं। वे विशालकाय मछलियाँ जब नाव के नीचे सरकतीं तो लगता कि उनके धक्के से नाव उलट जाएगी। कुछ देर बाद वे चली गईं, लेकिन शाम को फिर वापस आ गईं।

रात को जब मैं पिताजी की बगल में नींद से भरा लेटा हुआ था, मुझे अपने चेहरे पर पानी की बूंदों का स्पर्श महसूस हुआ। पहले तो मुझे लगा, समुद्र की लहरों का छींटा होगा, लेकिन जब छींटे बंद नहीं हुए, तब मुझे समझ में आया कि बारिश हो रही थी।

बारिश! मैं उठकर बैठ गया और चिल्लाने लगा, "बारिश हो रही है।"

सब लोग जाग गए और मग, टोपी और दूसरी चीजों से पानी बाहर निकालने में लग गए। मि, मगरिज अपना मुँह खुला रखकर लेटे रहे और बारिश का पानी पीते रहे।

"ये ज्यादा अच्छा है।" वह बोले, “दुनिया भर की धूप और रेत ले लो, पर मुझे इंग्लैंड में एक बारिश का दिन दे दो!"

लेकिन सुबह तक बादल छंट गए थे और मौसम पहले दिन से भी ज्यादा गरम था। कुछ ही देर में हम धूप की गरमी से झुलसकर लाल हो गए। दोपहर तक मि. मगरिज भी शांत हो गए। किसी में भी बोलने की शक्ति नहीं बची थी।

फिर मेरे पिताजी फुसफुसाए, "तुम्हें किसी प्लेन की आवाज सुनाई दे रही है, बेटा?"

मैंने ध्यान से सुना और लहरों की सरसराहट के ऊपर मुझे दूर से आती एक प्लेन की आवाज सुनाई दी। वह काफी दूर रहा होगा, क्योंकि हम उसे देख नहीं पा रहे थे। हो सकता है, वह सूर्य की दिशा में उड़ रहा हो और तेज धूप में हमारी आँखें चौंधिया गई थीं, इसलिए वह हमें नजर न आ रहा हो; और यह भी हो सकता था कि वह आवाज सिर्फ हमारी कल्पना की उपज हो!

उसके बाद अपनी याददाश्त खो चुके डच यात्री को लगा कि उसने जमीन देखी है और वह क्षितिज की ओर इशारा करके बार-बार कहने लगा, "वो रहा बटाविया ! मैं कह रहा था न कि हम किनारे के करीब हैं!" बाकी लोगों को कछ नहीं दिख रहा था। मतलब मेरे पिताजी और मैं अकेले नहीं थे, जो कल्पना कर रहे थे।

पिताजी बोले, "इससे यह साबित होता है कि इनसान वही देखता है, जो वह देखना चाहता है, भले ही देखने के लिए कुछ न हो!"

शार्क मछलियाँ अभी भी हमारे आस-पास थीं। मि. मगरिज को उनसे चिढ़ हो रही थी। उन्होंने अपना जूता उतारा और सबसे नजदीकवाली शार्क के ऊपर फेंका। लेकिन शार्क ने जते पर ध्यान नहीं दिया और हमारे पीछे तैरती रही।

"अगर आपका पैर भी उस जूते में होता, मि. मगरिज तो शार्क ने उसे स्वीकार कर लिया होता।" पिताजी ने चुटकी ली।

"आप लोग अपने जूते मत फेंकिए।" कप्तान ने कहा। हमें किसी निर्जन समुद्र-तट पर उतरकर सैकड़ों मील पैदल चलना पड़ सकता है !

शाम को हलकी हवा चलने लगी और हमारी डिंगी लहरों पर ज्यादा तेजी से बढ़ने लगी।

"आखिरकार हम आगे बढ़ रहे हैं।" कप्तान ने घोषणा की।

"परिक्रमा कर रहे हैं।" मि. मगरिज बोले।

लेकिन हवा में बहुत ताजगी थी। उसने हमारे जलते हाथ-पैरों को शीतल कर दिया और फिर हमें नींद भी आ गई। आधी रात को भूख से मेरी नींद खुल गई।

"तुम ठीक हो न?" पिताजी ने पूछा । वह बिलकुल नहीं सोए थे।

"मुझे भूख लगी है।" मैंने कहा।

"क्या खाना पसंद करोगे तुम?"

"संतरे।"

"हमारे पास संतरे तो नहीं हैं, लेकिन मैंने तुम्हारे लिए एक टुकड़ा चॉकलेट बचाकर रखी है। और थोड़ा सा पानी भी है, अगर तुम्हें प्यास लगे तो।"

मैं चॉकलेट को बहुत देर तक अपने मुँह के रखकर चुगलाता रहा, ताकि वह जल्दी खत्म न हो। फिर मैंने थोडा सा पानी भी पिया।

"आपको भूख नहीं लगी है?" मैंने पूछा।

"बहुत जोर से लगी है ! मैं एक पूरा टर्की खा सकता हूँ। जब हम बॉम्बे या मद्रास या कोलंबो या जहाँ भी हमें ये डिंगी ले जाए, पहुँच जाएँगे तो हम शहर के सबसे अच्छे रेस्टोरेंट में चलेंगे और ऐसे खाएँगे जैसे "जैसे"

"जैसे किसी तबाह हो चुके जहाज के नाविक!" मैंने कहा।

"बिलकुल।"

"क्या आपको लगता है, हम कभी जमीन तक पहुँच पाएँगे, डैड?"

"हाँ, मुझे विश्वास है। तुम्हें डर लग रहा है क्या?"

"नहीं, जब तक आप मेरे साथ हैं, बिलकुल नहीं।"

अगली सुबह हमें सीगल्स दिखे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

सीगल्स का दिखना इस बात का स्पष्ट संकेत था कि किनारा अब ज्यादा दूर नहीं है। लेकिन एक डिंगी तीस-चालीस मील का फासला तय करने में भी कई दिन लगा सकती थी। समुद्री पक्षी शोर मचाते हुए हमारी डिंगी के ऊपर चक्कर काट रहे थे। पिछले तीन दिनों और तीन रातों में हवा, समुद्र और अपनी खुद की थकी-हारी आवाजें सुनने के बाद ये पहली परिचित आवाजें थीं, जो हमारे कानों में पड़ रही थीं।

शार्क मछलियाँ गायब हो चुकी थीं और यह भी हमारे लिए एक उत्साहवर्धक संकेत था। उन्हें पानी में फैल रही तेल की चिकनाई पसंद नहीं आ रही थी।

लेकिन कुछ ही देर में पक्षी हमसे दूर चले गए और हमें डर लगने लगा कि कहीं हम फिर किनारे से दूर न जा रहे हों।

"परिक्रमा!" मि. मगरिज ने फिर से कहा, "परिक्रमा!"

हमारे पास एक सप्ताह के लिए पर्याप्त भोजन और पानी था, लेकिन कोई एक सप्ताह और समुद्र में बिताने के बारे में सोचना भी नहीं चाहता था।

सूरज आग के गोले जैसा तप रहा था। हमारे पास सबकी प्यास बुझाने जितना पानी नहीं था। दोपहर तक हमारी उम्मीद और हिम्मत दोनों हमारा साथ छोड़ने लगी।

पिताजी के मुंह में उनका पाइप था। उनके पास तंबाकू नहीं था, लेकिन उन्हें अपने दाँतों के बीच पाइप दबाना अच्छा लगता था। वह कहते थे कि इससे मुँह कम सूखता है।

शार्क्स वापस आ गई थीं।

मि. मगरिज ने अपना दूसरा जूता भी उनके ऊपर फेंक दिया।

"इंग्लैंड की गरमियों में बारिश जैसी खूबसूरत कोई चीज नहीं होती।" वे बुदबुदाए।

मैं डिंगी के गड्ढे में पिताजी के बड़े से रूमाल से अपना चेहरा ढककर सो गया। रूमाल पर बनी पीली बिंदियाँ जैसे ढेर सारे गोलगोल घूमते सूरजों में बदल गईं।

जब मेरी नींद खुली तो मैंने अपने ऊपर एक बड़ी सी छाया झुकी हुई देखी। पहले मुझे लगा, वह बादल था। लेकिन वह तो हिलतीडुलती छाया थी। पिताजी ने मेरे चेहरे पर से अपना रूमाल हटाते हुए कहा, "अब उठ जाओ, बेटा। हम जल्दी ही घर पहुँचने वाले हैं।"

हमारे बगल में मछुआरों की एक नाव थी और वह छाया उसी की चौड़ी, लहराती पाल की थी। बहुत से ताँबई रंग के मछुआरे (हमें बाद में पता चला कि वे बर्मीज थे) मुसकराते और लगातार बोलते हुए अपनी नाव के डेक (छत) से हमें देख रहे थे।

उसके कुछ ही दिनों बाद मेरे पिताजी और मैं बॉम्बे में थे। पिताजी ने अपने दुर्लभ स्टैंप्स हजार रुपए से ज्यादा में बेच दिए और हम एक आरामदेह होटल में रहने लगे। मि. मगरिज को वापस इंग्लैंड भेज दिया गया। बाद में हमें उनका एक पोस्टकार्ड मिला, जिसमें उन्होंने लिखा था कि इंग्लैंड की बारिश बहुत खराब होती है।

"और हम क्या करेंगे?" मैंने पूछा, "हम इंग्लैंड वापस नहीं जाएँगे क्या?"

"अभी नहीं।" पिताजी ने कहा, "जब तक युद्ध खत्म नहीं हो जाता, तुम शिमला के एक बोर्डिंग स्कूल में जाओगे।"

"लेकिन मैं आपको छोड़कर क्यों जाऊँ?"

"क्योंकि मैं रॉयल एयर फोर्स (यू.के. की वायसेना) में शामिल हो गया हूँ।" उन्होंने कहा। वह आगे बोले, "चिंता मत करो। मेरी पोस्टिंग दिल्ली में हो रही है। मैं बीच-बीच में आकर तुमसे मिलता रहूँगा।"

एक हफ्ते बाद मैं एक छोटी सी ट्रेन में बैठा था, जो छुक-छुक करती हुई शिमला के ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्ते पर चल रही थी। बहुत से भारतीय, एंग्लो इंडियन और अंग्रेज बच्चे रेल के डिब्बे में भरे हुए थे। मुझे उनके बीच में बहुत अजीब सा लग रहा था, जैसे कि मैं उनके मजाक का पात्र था; लेकिन फिर भी मैं दुःखी नहीं था। मैं जानता था, पिताजी जल्दी ही मुझसे मिलने आएँगे। उन्होंने मुझसे वादा किया था कि जैसे ही उन्हें अपना पहला वेतन मिलेगा, वह मेरे लिए कुछ किताबें, एक जोड़ी रोलर स्केट्स और एक क्रिकेट बैट लेकर आएँगे।

तब तक मेरे पास सोनो का दिया जेड का 'सी हॉर्स' तो था ही।

और वह 'सी हॉर्स' आज तक मेरे पास है।

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