जननम (तमिल उपन्यास) : वासंती (अनुवाद : एस. भाग्यम शर्मा)
Jannam (Tamil Novel in Hindi) : Vaasanthi (Translator : S. Bhagyam Sharma)
(भयंकर तूफान और घोर वर्षा में एक नदी में पूरी भरी हुई बस किसी गांव में बह जाती है। पर बस कहां की थी कहां से आई थी कहां जा रही थी कुछ भी पता नहीं चला। बस का बोर्ड भी नहीं मिला पता लगाते तो कैसे। कोशिश तो बहुत हुई पर पता ना लगा। एक्सीडेंट के 2 दिन बाद एक 20 बार 22 साल की युवा लड़की बेहोश नदी के किनारे मिली। गांव में एक बड़ा अस्पताल था उसको एक युवा डॉक्टर चला रहे थे। यह तन मन धन से ग्रामीणों की सेवा कर रहे थे। जब उनके पास उसी लड़की को लाया गया, तो इलाज कर उसे ठीक तो कर दिया गया। पर वह अपने अतीत को बिल्कुल ही भूल गई थी। यह नई परेशानी थी। कहां जाए, क्या करें, कैसे रहे? यह समस्याएं मुंह बाए खड़ी थीं।)
अध्याय 1
अचानक तूफानी हवाओं के चलने से मेज पर रखे हुए कागज उड़ कर इधर-उधर हो गए।
आनंद ने जल्दी से उठ कर बिखरे हुए कागजों को समेटा और खिड़की को बंद किया तब तक बारिश शुरू हो गई उसके हाथों और चेहरे पर बारिश की बूंदे पड़ी। वर्षा इतनी तेज थी ऐसा लग रहा था जैसे कि बादल फट जाएगा।
खिड़की के बाहर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। इतनी तेज बारिश देख उसने सोचा ये क्या फिर से बारिश हो रही है उसे अच्छा नहीं लगा।
ऐसी ही एक तूफानी बारिश परसों भी हुई थी । उस दिन पता नहीं कहां से रवाना होकर आई एक बस नदी और सड़क अलग से न पहचानने के कारण नदी में गिर गई। बस का एक भी यात्री नहीं बचा। आज शाम तक भी शवों को बाहर निकालने का काम हो रहा है | जब वह अस्पताल से लौट रहा था रास्ते में उसने 32 लोगों के शवों को देखा वे फूल गए थे और नीले पड़ गए थे। ओ ! माय गॉड वह दृश्य उसके मन-मस्तिष्क को अभी तक आंदोलित कर रहा था, उसको वह भूल नहीं पा रहा था। अचानक ऐसा होने पर मरने वालों ने मन में क्या सोचा होगा वह इस पर विचार करने लगा। हम कुछ सोचते हैं और जिन चीजों के बारे में उम्मीद लगाए बैठे हैं यह सब झूठा है क्या हम कभी इस बात को महसूस करते हैं? इस तरह का ज्ञानोदय हमारे अंदर कभी नहीं आएगा ऐसा वह सोचने लगा मरने के डर का सदमा दिमाग को बैलेंस करता है....
"खाना खाने आओ आनंद ?"
"अभी आ रहा हूं अम्मा !"
मेज पर खाना लगाकर मंगलम इंतजार कर रही थी।
"दोबारा बारिश, देखा ?" वह बोला
"बारिश बोलते ही अब घबराहट होने लगती है !"
किसी बात पर भी उनके चेहरे पर कोई शिकन दिखाई नहीं देती। अम्मा के चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती है। बोलते समय भी हंसते हुए ही बोलती है ऐसा लगता है। उसे जोर से या घबराकर बोलते हुए आज तक उसने नहीं देखा। 'पिता मरे तब भी वह क्या इसी तरह हंसती रही होगी' उसे ऐसा संदेह होता है। सब कुछ झूठा है ऐसी एक हंसी... तेज हवा चलने लगी.....
"आज तुम्हें क्या हुआ कुछ परेशान से लग रहे हो ?"
"नहीं तो ! कहकर वह यथार्थ की तरफ लौटा।
"रोजाना आप मेरा इंतजार क्यों करती हो मैंने सोचा !"
"तुम्हारा इंतजार करने के लिए किसी और को ढूंढती हूं । पर तुम मना करते हो अभी नहीं चाहिए ? तुम स्वयं भी नहीं ढूंढते!"
वह हंसा।
"मैं देखूं तो तुम मान जाओगी ?"
"हां ! पर इस छोटेसे गांव में तुम रहो तो पूरे जीवन तुम्हें ब्रह्मचारी ही रहना पड़ेगा।"
"मैं इस गांव को छोड़कर जाने वाला नहीं !"
"फिर तो भगवान ही किसी को यहां भेज दें तो ही काम होगा !"
वह हंसते हुए खाना खाकर हाथ धोने चला गया।
टेलीफोन बजा। दूसरी तरफ से नर्स निर्मला की घबराहट वाली आवाज सुनाई दी।
"एक इमरजेंसी है डॉक्टर ! एक एक्सीडेंट केस है आप आ रहे हैं ?"
"ड्यूटी वाले डॉक्टर वहां नहीं हैं ?"
"हैं साहब ! पर आप आएेंगे तो ठीक रहेगा वे बोले... परसों जो बस पलट गई थी उसमें आई हुई है लड़की ऐसा कह रहे हैं।"
एकदम से उसे कुछ याद आया।
"आ रहा हूं !"
बारिश का जोर अभी कुछ कम हुआ है। वह जल्दी से मां को कहकर कार में रवाना हुआ। इतने सारे यात्रीगण अचानक मर गए और अभी तक उनके शव मक्खियां भिन्न-भिन्नाते हुए पुलिस स्टेशन में पड़े हैं.....
'ये अनाथ जीव कहां जाकर अकेले भागकर बच गई' उसे आश्चर्य हुआ।
अगले 10 मिनट में वह केजुयलिटी के अंदर था उसको घबराहट हो रही थी। ऑक्सीजन लगी हुए थी आंखों को बंद किए हुए बिना किसी क्षत-विक्षत अंग के एक सुंदर युवा लड़की लेटी हुई थी।
ड्यूटी वाले डॉक्टर राघवन और निर्मला दोनों आदर के साथ एक तरफ खड़े हुए उसने पलंग के पास जाकर हाथ की नब्ज को छू कर देखा। नब्ज धीरे चल रही थी। उसके फूल जैसे कोमल हाथ बहुत गर्म थे। कुछ भी याद ना रहने पर भी इस बस दुर्घटना में वह फंस गई ऐसा वह सोच भी नहीं पा रहे थे। चेहरे का चमकता हुआ रंग किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर ले ऐसी सुंदरता ? उसने जो शव देखे उसमें और इसमें कितना अंतरहै!
उसने जल्दी से अपने को संभाला।
"इस केस को कौन लेकर आया ? कैसे पता यह लड़की उस बस से आई थी?"
"नदी के किनारे के गांव में रहने वाला एक आदमी इन्हें यहां लेकर आए। कल सुबह नदी किनारे यह लड़की जिसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी वहां मिली। तुरंत उन्होंने अपने घर ले जाकर उन्हें जो मालूम था वह उपचार किया। लड़की को होश ना आने के कारण वह अस्पताल लेकर आए।"
'अच्छा हुआ' वह अपने अंदर ही धीरे से बुदबुदाया।
"रूटीन टेस्ट जो होना था सब कर लिये ?" राघवन से पूछा।
"सब हो गये । ब्लड प्रेशर नॉर्मल है, सांस लेने में तकलीफ होने के कारण ऑक्सीजन दे रहे हैं। फीवर 103 डिग्री है।"
"हेड इंजरी हुआ होगा।"क्या उसे दिमाग में कुछ खराबी हुई होगी ! उसे फिकर लगी। कैसी होगी ? हंसने के लिए ही जीवित रहना होगा ?
"सिर के एक्स-रे करने की तैयारी करो निर्मला !"
"यस डॉक्टर। मैंने रेडियोलॉजिस्ट को फोन किया है वह आ जाएंगे।"
"गुड..."
उसने उसकी पलकों को धीरे से खोल कर देखा। उसके दोनों हाथों को उठाकर देखा।
'एक्स-रे में किसी तरह के नुकसान का पता नहीं लगा। थोड़ी देर पेशेंट को देखने के बाद आनंद रवाना हुआ।
"हर आधे घंटे में इस लड़की को राघवन चेक करते रहो""यदि कुछ एबनॉर्मल दिखाई दे तो मुझे इन्फॉर्म कर देना।"
"ठीक है डॉक्टर आप जाइएगा, मैं संभाल लूंगा।"
घर लौटते हुए बार-बार पलट-पलट कर, वह चेहरा उसके सामने आया। 'अरे बेचारी' उसे ऐसा लगा। कहां के लिए रवाना हुई होगी ? इसके साथ कौन आया होगा ? कोई भी हो वह अब इसके साथ जिंदा नहीं है इसे पता चले वह कितनी परेशान होगी तड़पेगी ? देखने से शहर की लड़की जैसे दिख रही है। कल उसकी याददाश्त लौट आए तो पुलिस को सूचित करना होगा।
सुबह आंख खुलते ही वह असाधारण चेहरा ही उसे याद आया। उसने आंखें खोली होगी क्या ! और दिनों के मुकाबले आज उसे जाने की जल्दी हो रही थी। आज और दिनों से जल्दी अस्पताल पहुंच कर उसे देखने चला गया। फिर से उसकी सुंदरता ने उसे आकर्षित किया। बंद की हुई आंखों में लंबी भौंहें के घने लंबे बाल, टी जानकीरामन जैसे वर्णन करते हैं वैसे ही.....
"हाउ इस शी ?" उसने निर्मला से पूछा।
"मच बेटर डॉक्टर। बुखार कम हुआ है।"
"होश आया ?"
"वह आ आकर जा रहा है।"
"गुड ! आज दोपहर के अंदर होश आ जाएगा। तुम घर जाने के पहले नर्स जया को यहां ड्यूटी करने को बोलो।"
"यस डॉक्टर।"
वह अपने आप को जबरदस्ती वहां से निकालकर दूसरे रोगियों को देखने के लिए रवाना हुआ।
"वह जब अपने राउंड को पूरा करके फिर से अपने कमरे में गया तो इंस्पेक्टर धर्मराजन को वहां बैठे देखा। उन्हें वहां देखकर उसे अचानक निराशा और भ्रम भी पैदा हुआ। इस छोटे गांव में कितनी जल्दी समाचार फैल जाता है!
"गुड मॉर्निंग डॉक्टर !"
"गुड मॉर्निंग ! क्या बात है धर्मराजन ?"
"एक केस के विषय में मैं आया हूँ डॉक्टर। परसों एक पूरी की पूरी भरी हुई बस नदी में डूब गई थी ! उसके बारे में अभी तक कोई विवरण पता नहीं चला। उसमें यात्रा कर रही एक लड़की आपके अस्पताल में है मैंने सुना !"
आनंद अपने जबड़े को खुजाने लगा।
"एक लड़की हमारे अस्पताल में एडमिट है यह सच है। परंतु वह बस से आई यह पक्का नहीं कह सकते।"
"उसी से पूछ लें तो क्या पता नहीं चलेगा ?"
"अभी उसे होश नहीं आया है धर्मराजन।"
"बच तो जाएगी ?"
आनंद। ओके मिस एक्स, सोने के कोशिश करो।"
उसके कमरे से बाहर आते ही उसके चेहरे पर फिक्र की रेखाएं साफ नजर आ रही थी। उसे देखते ही धर्मराजन ने उत्सुकता के साथ पूछा;
"कैसी है वह लड़की ? उसे होश आ गया?"
आनंद ने होंठों को बिचका कर मना किया।
"होश तो आ गया है पर आपको कोई फायदा नहीं क्योंकि उसे कुछ याद नहीं !"
धर्मराजन ने आश्चर्य से उन्हें देखा।
"आप क्या कह रहे हैं ?" "उस बारे में तो कोई संदेह नहीं।"
"वह लड़की अपने मुंह से कुछ बोले तो ठीक रहेगा। 32 शवों को लेकर जिनका गांव, शहर का नाम कुछ भी पता नहीं होने के कारण मैं परेशान हो रहा हूं डॉक्टर। बस के बोर्ड वगैरह भी कुछ नहीं है। नदी को खूब छान डाला कुछ हाथ नहीं लगा। पता नहीं कहां जाकर फंस गया है ? तमिलनाडु के सरकारी बस है। अच्छी बात है। मैंने उन्हें सूचित कर दिया है । अभी तक कोई सूचना नहीं मिली। बस कहां से रवाना हुई पता चले तो वहां के लोगों से पूछताछ कर सकते हैं...."
"आपकी फिक्र मेरे समझ में आ रही है परंतु.."
उसका मौन टूटा। नर्स जया जल्दी में वहां आ खड़ी हुई।
"उस लड़की ने आंखें खोली है...!" उसकी बात पूरी होने के पहले ही धर्मराजन उठे।
"आप बैठिए धर्मराजन" थोड़े सख्ती के साथ आनंद बोला । "मैं पहले उसका चेकअप करता हूं उसके बाद ही आपको बुला सकता हूं....."
जब वह उस लड़की के पलंग की तरफ गया तो उसने भी इसकी तरफ निगाहें की।
अध्याय 2
"हेलो !" वह धीरे से बोला। उडती सी उसने निगाह उस पर डाली फिर असमंजस में उसे देखा। निर्दोष निग़ाहों से उसने देखा। फिर उसने चारों तरफ नजरें घुमाई। जया के ऊपर, फिर दीवार पर, खिड़कियों पर, बाहर दिखाई दे रही पेड़ों पर सब पर उसकी निगाहें चलती रही। वाह क्या आँखें हैं ! सफेद समुद्र में काले नीले रंग की मणि जैसे. ….
इसे तमिल मालूम होगा ऐसा सोच उसने उससे पूछा।
"आप कैसी हैं ?"
उसका असमंजस ज्यादा हो गया ऐसा लगा।
"क्या ?"
"आप अब कैसी हैं ?"
उसने उसे संशय से देखा। अजीब सी कसमसाहट-
"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है"
वह मन में हंसा:
"कोई बात नहीं। धीरे-धीरे समझ में आ जाएगा। अभी कोई जल्दी नहीं है पहले आपका शरीर ठीक होने दो।"
"मुझे क्या बीमारी है ?"
कुछ सोचते हुए उसको देखा। बीपी, पल्स सब नॉर्मल था। आंखों में असमंजस होने के बाद भी आंखें निर्मल थी। इसके साथ जो घटा उसको इसे याद दिलाना चाहिए? तुम्हारे साथ आए सभी यात्री मर गए ऐसे बोलो तो वह कैसा महसूस करेगी ?
अचानक एक बात उसे समझ आई। इसने क्यों नहीं पूछा? 'मैं बस में यात्रा कर रही थी, मुझे क्या हुआ' ऐसा इसने क्यों नहीं पूछा ? मन में अचानक एक संदेह उठा ।
"आप एक बस की दुर्घटना में फंस गई थी। अत: आपको अस्पताल में रखकर ट्रीटमेंट दे रहे हैं -यू विल बी ऑल राइट मिस -!"
उसके चेहरे पर फिर भी बहुत सारे असमंजस दिखाई दिया तो उसने धीरे से पूछा;
"आपका नाम क्या है ?"
"उसके चेहरे पर एक डर दिखाई दिया।"
"मेरा नाम ही मुझे याद नहीं...."
आनंद ने आश्चर्य के साथ उसे देखा।
"मैं कौन हूं मुझे नहीं पता....."
उसकी आँखों में डर और असमंजस को देख उसे दया आई । उसने अपनत्व के साथ उसके कंधे पर हाथ रखा।
"डोंट वरी। कभी-कभी सदमे से ऐसे भूल जाते हैं। धीरे-धीरे याद आ जाएगा।"
"सचमुच ?"
"हां। अपने आप याददाश्त वापस आ जाएगी। इसके लिए आप परेशान ना हो। एक बार पहले ही सिर पर लग चुकी है।"
उसके होंठो पर इस असमंजस में भी एक मुस्कान खिली। ओहो! उसके बांए गाल पर डिंपल पड रहे थे । इस सुंदरता ने उसे भ्रम में डाल दिया।
"थोड़ा सोने की कोशिश करो । जया ! एक कंपोस शॉर्ट दे दो । आप सो कर उठ जाओ तो आपको याद आ जाएगा आप कौन हैं। तब तक आपको मिस एक्स बुलाए?"
वह संकोच से मुस्कुराई।
"आपका नाम ?"
"मेरा नाम बहुत लंबा है। दादा जी ने जो नाम रखा आनंद रामाकृष्णन। छोटे में आनंद। डॉ.
"एमनेसिया है मैं सोच रहा हूं। इस तरह सिर पर चोट लगने से याददाश्त खत्म हो जाता है। कुछ भी कर लो पुरानी यादें वापस नहीं आती।"
"हे भगवान !"
धर्मराजन ने उंगलियों से मेज पर धीरे से थपथपाया।
"हिप्नोटिज्म के द्वारा पुरानी बातों को बताने की कोशिश करें !"
"कभी-कभी कुछ कारणों से भी याददाश्त खो जाती है। उसके लिए हिप्नोसिस नहीं है सोडियम पेंटासाल के द्वारा भी ट्रीटमेंट दे सकते हैं। परंतु इस तरह सिर पर चोट के कारण याददाश्त चली जाए तो यादाश्त के वापस आने पर संदेह ही है... देखेंगे धर्मराजन। एक बार सो कर उठ जाए फिर कैसी है देखेंगे।"
"यही मैं सोच रहा हूं। बार-बार प्रश्न पूछे तो याददाश्त वापस आ जाए !"
"देखेंगे !"
धर्मराजन उठ गए।
"फिर मैं शाम को दोबारा आऊंगा। इस लड़की ने यदि कोई विवरण नहीं बताया तो सभी शवों को जलाना ही पड़ेगा। कितने दिन बर्फ में रख सकते हैं !"
"आज न्यूज़पेपर में इस दुर्घटना के बारे में न्यूज़ आई है, मैंने देखा ! थोड़ा तसल्ली रखिए अपने आप विवरण पता चल जाएगा।"
"वह ठीक है !"
धर्मराजन उठ गए।
"इस लड़की के बारे में सोचो तो बहुत दया आती है ! अनजान जगह पर अनाथ बन कर फंस गई!"
उस लड़की की दशा बहुत ही दयनीय है उसने सोचा। मन के अंदर शून्यता पैदा होने की दशा है। उसके नजदीकी सारे रिश्तेदार उस बस की दुर्घटना में मर गए ऐसी हालत में पुरानी बातों का भूल जाना ही उसके लिए अच्छा है। वरना यह दुख उसे पूरी जिंदगी परेशान करता रहेगा। उस सुंदर आंखों पर हमेशा के लिए एक पर्दा पड़ जाएगा। उसके गाल में जो डिंपल है वह भी चला जाएगा .....
'उसके दशा के बारे में कुछ भी पक्का कह नहीं सकते' उसने सोचा। अब कुछ घंटों में ही उसे अपनी पुरानी यादें आ सकती है ।
'अरे मुझे पुरानी यादें वापस आ गई मेरा नाम लावण्या है !
लावण्या !
कितना उपयुक्त नाम है! उसकी सौम्य आकृति और आँखों को इससे बढ़िया क्या नाम हो सकता है?
वह शाम को उसे देखने चला गया।
"हेलो, मिस एक्स !" उसके बुलाते ही, उसने उसे हीन भावना से देखा।
"मेरा नाम मुझे अभी तक याद नहीं आया !" वह बोली।
"मुझे आपका नाम मालूम है ?" वह मजाक में बोला ।
उसकी आंखें चौंड़ी हो गई।
"क्या नाम है ?"
"लावण्या !"
उसने भौंहों को सिकोडा।"
" नाम सुना हो ऐसा याद नहीं।"
"नाम अच्छा नहीं ?"
वह एकदम से ऐसे हंसी जिसकी उसने कल्पना नहीं करी थी। दांत मोतीपुराये जैसे..... इसकी हर चीज इतनी सुंदर कैसे ?
"नाम अच्छा होने से क्या मेरा नाम हो जाएगा ?"
"आपका नाम आपको याद आने तक आप लावण्या ही रहेंगी। आप कौन हैं हम जल्दी ही मालूम करने की कोशिश कर रहे हैं !"
"यदि मालूम ना कर सके तो ?"
इसके बारे में तो उसने सोचा ही नहीं यह उसने महसूस किया ।
"आज के पेपर में न्यूज़ आ गया है। उसको देख कर आपको ढूंढने कोई नहीं आएगा क्या ?"
फिर वह सौम्यता से बोला;
"ऐसा कोई नहीं आए तो आप इस गांव में ही ठहर जाना। अच्छा गांव है। यहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं......"
उसके आंखों में एकदम से पानी आया, और उसने अपनी निगाहों को दूसरी तरफ घुमा लिया।
"दिस इज नॉट फनी ?" वह बोली।
"मजाक की बात है यह मैंने नहीं कहा। दूसरा कोई रास्ता ना हो तो क्या करना चाहिए यही बोला। ओहो ! अभी इस सब के बारे में क्यों परेशान हो रही हैं? आपको अपने मन को थोड़ा पक्का रखना चाहिए । पुरानी बातें धीरे-धीरे याद आ सकती हैं।"
उसने छाया देखकर घूम कर देखा। कमरे के दरवाजे पर मिरासदार शोक्कलिंगम खड़े थे। वह बेमन से उनके पास गया।
"क्या बात है मिस्टर शोक्कलिंगम ? कंसलटिंग रूम में आईए।"
उनकी निगाहें उससे दूर वहां लेटी हुई लड़की पर गई।
उसने अपने गुस्से को दबाया और जबरदस्ती उन्हें पकड़कर बाहर ले गया।
"पेशेंट को परेशान नहीं करना चाहिए आइए।"
शौक्कलिंगम दबी हुई एक हंसी हंसा।
"मैंने और ही कुछ सोचा। सब लोग बात कर रहे हैं वह सही ही है। वह लड़की सिनेमा स्टार जैसे ही है!"
उसके चार चांटे खींचकर लगाएे ऐसा उसे गुस्सा आया। बड़े आदमी के वेश में छोटी बुद्धि वाला! अपने जीभ, आंखें, शरीर को काबू में रखना उसे नहीं आता और इसलिए वह बीमार रहता है क्योकि अपनी इच्छाओं की पूर्ति न कर पाने के कारण बिगड़ा हुआ शरीर। उसके शरीर को देख-देख कर रिपेयर करना इसका काम है।
"वह लड़की उस बस में आई है सब बात कर रहे हैं, तुमने तो कुछ भी नहीं बोला भाई ?"
उसे तेज गुस्सा आया:"मेरे पास आने वाले पेशेंट के बारे में मैं दूसरों से बात नहीं करता। मिस्टर शोक्कलिंगम ! मुझे अभी राउंड पर जाना है। आप क्यों आए बताइए ?"
"सुबह खून टेस्ट करने के लिए दिया था। उसका रिपोर्ट लेने के लिए आया हूं।"
"वह कल ही मिलेगा आपको मालूम है। अभी आकर पूछने का तो क्या फायदा है बताइए !"
"फिर कल आऊं ?"
"आइए !"
इस उम्र में इस तरह बिना मतलब लार टपकाते हुए घूम रहे हैं ऐसा सोच उसके अंदर एक घृणा पैदा हुई। वार्ड के अंदर राउंड लेकर आया तो पुलिस की जीप आकर खड़ी हुई।
उसे देखते ही धर्मराजन ने पूछा: "कैसे हैं डॉक्टर? अब वह लड़की कैसी है क्या मिल सकते हैं ?"
खते हैं।"
उस कम"वह वैसी ही है। पर आप आइए, आप कुछ प्रश्न पूछ कर देखें तो शायद कुछ याद आ जाए दे रे के बाहर एक भीड़ खड़ी हुई थी। ऐसी भीड़ क्यों खड़ी है वह परेशान हुआ। उसे और धर्मराजन को देखते ही भीड़ छितर-भितर हो गई।
"क्या बात है निर्मला ?"
"कुछ भी बोलो तो यह लोग नहीं सुनते डॉक्टर ! यहां लेटी हुई है वह एक हीरोइन है ऐसी बात किसी ने फैला दिया!”
अध्याय 3
उन लोगों के अंदर घुसते ही उसने दरवाजे को बंद कर दिया।
दीवार को देखते हुए वह लड़की लेटी हुई थी।
"लावण्या !" धीरे से बोला आनंद। वह तुरंत पलटी। धर्मराजन और निर्मला आश्चर्य से उसे देखने लगे।
"मैंने रखा है यह नाम" कहकर आनंद धीरे से हंसा।
"लावण्या... यह हैं इस्पेक्टर धर्मराजन। आपसे कुछ प्रश्न पूछने आए हैं।"
फिर से उसकी आंखें भर आई थोड़े डर और असमंजस में भी दिखी।
"मैं क्या बोल सकती हूं ?"
"कोशिश करिए।"
धर्मराजन धीमी आवाज में बोले;
"आप अच्छी तरह सोच कर जो याद आए वह बताइए। किसजगह से बस रवाना हुई। इस गांव के रास्ते से दूसरे गांव को जाते समय तेज बारिश में फंस गई। ड्राइवर के असावधानी से या किसी अन्य कारण से बस नदी में डूब गई। उसमें जितने लोग थे सब मर गए.... सिवाय आपके...."
आंखों को फाड़ कर घबराकर देखने लगी।
"किस शहर से या गांव से बस रवाना हुई आप बता सकती हैं ?"
"मुझे नहीं पता।"
"आप किस शहर से रवाना हुई ?"
"मुझे याद नहीं !"
"आप कहां जा रही थी ?"
"प्लीज मुझसे मत पूछिए। मुझे कुछ याद नहीं।"
"आपके साथ जो आए वह आपके माता पिता.....? उसके खाली गले में उनकी निगाहें गई। बड़े भाई, बड़ी बहन....?"
उसने जल्दी से अपने चेहरे को हाथों से ढक कर रोने लगी।
"मुझे नहीं पता। मुझे कुछ भी याद नहीं...."
"बस करो धर्मराजन । मैंने तो कहा था छोड़ दो।"
धर्मराजन ने निराशा के साथ उसको देखा।
"अब मैं आपसे कुछ नहीं पूछूंगा। आप दुखी मत हो। मैंने जो कहा उन विषयों पर सोच कर देखिए। यदि कुछ याद आए तो तुरंत बताइएगा।"
उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बंद किए हुए हाथों को भी नहीं उठाया।
कमरे के बाहर आते ही "फिर मैं चलता हूं; धर्मराजन बोले "अब जो काम होना है उसे डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से बात कर फैसला करना होगा। मद्रास से कोई समाचार आया है क्या, देखता हूं। वह लड़की अपने आप कोई बात बताए तो आप मुझे कहलवा दें।"
"जरूर !"
"वह क्या नाम रखा आपने ?"
आनंद संकोच से हंसा।
"लावण्या !"
"अच्छा नाम रखा है आपने! 'सीता,गीता जैसे आसान नाम को छोड़कर 'लावण्या' नाम कहां से पकड़ा ?"
"पी. वी.आर. का लिखा मथुरनायगी पढ़ा है आपने ?"
"मेरे पास उसके लिए समय कहां है डॉक्टर ?" कहकर हंसते हुए इंस्पेक्टर धर्मराजन जीप में चढ़ गए।
उस दिन शाम को वह कार से घर जाते समय उसका मन अजीब सा हो गया ऐसा उसे लगा। कुछ अद्भुत बात हो गई ऐसा उसे लगा।
'लावण्या को कहां से पकड़ा ?'
उसके होंठ पर एक मुस्कुराहट आई।
उस प्रश्न का जवाब देना बहुत मुश्किल का काम है उसे लगा।
सुबह आंखें खुलते ही कमरे के अंदर धूप आ गई थी उसे देख आनंद को अच्छा लगा। दस दिन से बादल ही बादल छाए हुए थे कभी-कभी धूप दिखती हंसते जैसे। आम का पेड़, नीम का पेड़, गुलाब के पौधे सब मुस्कुरा रहे थे। वे शुद्ध और आरोग्य के साथ हंस रहे थे। हां आज छोटी-छोटी विषयों में भी उसका मन उत्साह से उछल रहा था।
किसी काम से आई मंगलम ने उसे कोई गाना गुनगुनाता हुआ देख आश्चर्य से उसे देखा।
"क्या बात है आज गाना वाना ओहो ?"
"धूप को देखते ही बहुत खुशी हो रही है ?"
अम्मा ने बिना कुछ जवाब दिए उसे एक क्षण घूरकर देखा।
"अम्मा! टिफन रेडी है? अस्पताल के लिए देर हो गई।"
"तैयार है आजा।"
***
खाना बनाने वाले शंकर ने मेज पर सब कुछ तैयार रखा था। आनंद किसी गाने को गुनगुनाते हुए बैठा उसी समय उसकी मां मंगलम पास में बैठी।"
"शंकरा! तुम कैसे इतनी मुलायम इडली बनाते हो ?"
शंकर संकोच के साथ हंसा।
"सब कुछ अम्मा ने ही सिखाया है।"
"वह लड़की कैसी है ?"
आनंद ने जल्दी से सर ऊपर करके अम्मा को देखा।
"कौन सी लड़की ?"
"वही वह लावण्या !"
"वह घबराकर मां को देखने लगा । अपनी झेंप मिटाने के लिए जोर से हंसा।
"किसने तुम्हें नाम बताया ?"
अम्मा की हंसी में एक योजना भी दिखाई दी।
"इस गांव में कोई विषय जानने के लिए कितने दिन लगेंगे ? कल उस लड़की का ब्लड प्रेशर कितना था। अगले दिन कितना था वह भी मुझे पता है!"
आनंद दुबारा भी हंसा।
"और तुम्हें क्या पता है ?"
"वह लड़की बहुत सुंदर है ऐसा सुना ?"
"हां, ठीक है! नॉट बैड नॉट बैड एट ऑल !"
"तुमने ही उसका नाम रखा बताया !"
"फिर क्या करें ? नाम भी याद नहीं है कह रही है। ए लड़की ए लड़की जैसे सिनेमा में शिवाजी गणेशन बुलाता है ऐसी बुलाऊं क्या ?"
अम्मा के होंठों में हमेशा की तरह मुस्कुराहट चमकी।
"मैं वैसा कुछ नहीं कह रही हूं। एक ऐसा अपूर्व नाम कैसे तुम्हें ध्यान आया सोच रही हूं।"
वह बिना कुछ जवाब दिए हंसता हुआ खाने लगा। 'वह लड़की ही एक अपूर्व लड़की है बोले तो अम्मा समझ जाएगी ? धर्मराजन से पूछा उसी प्रश्न को मां से पूछूं क्या' सोचता हुआ फिर बिना पूछे ही रहा।
"क्या बात है मैंने पूछा उसका तुमने जवाब नहीं दिया ?"
"क्या पूछा ?"
"वह लड़की अब कैसी है ?"
"बहुत ठीक है।"
"उसकी याददाश्त ?"
"वह अभी तक नहीं आई।"
"यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है आनंद ! वह तमिल बोलती है और अंग्रेजी भी बहुत अच्छा बोलती है बताया। बहुत से विषयों को पढा हो जैसे बात करती है इससे कुछ पता चलता है । कहां की है याद नहीं है। नाम क्या है याद नहीं है। अप्पा, अम्मा कौन है कहां से आई है यह सब नहीं मालूम विश्वास करने लायक नहीं।"
"यह सब कैसा है। जो सीखा है जो पढ़ा है वह सब याद रहेगा। रहन-सहन भी नहीं बदलेगा। परंतु वह कौन है कहां से आई है कहां की है सब भूल जाएगी ?"
"उसकी अपने लोगों को देखकर शायद उसे याद आए !"
"अभी तक कोई नहीं आया उसे ढूंढते हुए। उसके साथ उसका परिवार भी इस बस में शायद आया था यह भी संदेह जनक ही है।"
"और कोई नहीं होगा क्या, चाचा, मामा ऐसा कोई ?"
आनंद हाथ धोकर रवाना हुआ।
"अब पता चलेगा। पुलिस को सूचना दे दी गई है। तमिलनाडु के पेपर में निकाल दिया गया है। और लोगों को ढूंढते हुए कई लोग आए। इस लड़की को ढूंढते हुए कोई नहीं आया।"
अस्पताल आते समय सुबह जो मन में उत्साह था अब पता नहीं क्यों वह एक चिंता में बदल गया। वह यहां अकेली फंस गई। पुरानी बातें सब भूल गई यह सब आश्चर्य की बात नहीं है। उसके आते ही उसके मन को आकर्षित कर लिया यह विश्वास करने लायक कहानी नहीं है उसके लिए।' अभी तक किसी लड़की ने उसके मन को इस तरह नहीं छुआ जिस तरह इस लड़की ने उसे पूरी तरह प्रभावित कर दिया? कल ही कोई आकर "ओहो! यह तो मेरी लड़की कमला है" ऐसा रिश्ता बताते हुए कोई आ जाए तो मैं क्या करूंगा? मन को बांध के रखना ही समझदारी है 'वह सोचता हुआ अस्पताल के भवन के अंदर प्रवेश कर गया ।
"क्या बात है भाई, आज कैसे लेट हो गए ?" वह अचकचाया सामने देखा।
शोक्कलिंगम सामने खड़े थे।
"क्या बात है बताइए ? आज आपके शरीर में कौन सी बीमारी है ?"
"भाई मज़ाक कर रहे हो क्या ? उस दिन जब बारिश हुई तब से मेरा शरीर ठीक नहीं है...!"
"अंदर आइए।"
"दस्त लग रहे हैं भाई, बंद ही नहीं हो रहे हैं !"
चेकअप करके उनको दवाई लिख कर भेज दी।
"पेट को खाली रखिए। सब ठीक हो जाएगा ।"
रवाना होते समय पूछा "उस लड़की को ढूंढते हुए कोई नहीं आया क्या ?"
"किसे ?"
"वही, उस लावण्या को !"
दूसरे लोग जब उस नाम को बोले हैं तो उसका मन अजीब सा होने लगता है यह देख कर उसे स्वयं को आश्चर्य हुआ।
"नहीं।"
"मुझे एक योजना सूझ रही है भाई। उस लड़की को वह कौन है मालूम नहीं। ढूंढते हुए कोई नहीं आया। वह कहां जाएगी ? बेचारी पढ़ी-लिखी लड़की लगती है ऐसी बातें करती है। अपने हाईस्कूल में उसे एक नौकरी दे देते हैं....."
उनके बात करने से उसे लगा बहुत देर सोचकर उन्होंने ऐसा कहा है उसे बहुत आश्चर्य हो रहा था। लावण्या को रोजाना देख सकें क्या ऐसा उसने सोचा।
"उसके बारे में तसल्ली से बात करेंगे मिस्टर शोक्कलिंगम। उस लड़की को ठीक होने में एक-दो हफ्ते और लग सकते हैं। इस बीच कोई उसे लेने ना आये तो देखेंगे।"
"ठीक है भाई।"
बहुत बड़े न्यायाधीश जैसे बात करके जा रहे हैं उसे लगा ,वास्तव में इनके मन में क्या-क्या वक्र बुद्धि काम कर रही है मालूम नहीं उसने सोचा। सोचते हुए वह लावण्या को देखने गया।
शून्य में देखते हुएबैठी थी। उसकी भौंहे पंख जैसे फैली हुई ऊपर को देख रही थी। वह धीरे से "हेलो, लावण्या !" बोला। उसने पलट कर देखा।
"हेलो !" कहकर धीरे से मुस्कुराई। ओह! उस हंसी में गालों में पड़े डिंपल। उसने जल्दी से भगवान से प्रार्थना की। 'हे भगवान! इसे ढूंढते हुए किसी को नहीं आना चाहिए।'
"कैसी हो लावण्या ?"
"फाइन !"
"फिर इसी शून्य में !क्या ढूंढती रहती हो ?"
"मेरा नाम वहां मिलता है क्या ढूंढ रही हूं ।"
"क्यों, लावण्या नाम पसंद नहीं आया ?"
"थोड़ा सा कठिन नाम है। वह भी भूल जाएगा क्या डर लगता है !"
"मैं याद दिलाता रहूंगा। आप फिकर मत करो।"
वह उसे घूर कर देख कर फिर हंस दी।
उसने सामान्य चेकअप करके खत्म किया।
"और दो हफ्तों में आप पहली जैसे हो जाएंगी। आप अपना काम अपने आप करने लायक स्वस्थ हो जाओगी।"
वह कुछ देर बिना बोले चुप रही। बाद में धीरे से बोली "उसके बाद क्या करूंगी समझ में नहीं आ रहा है डॉक्टर। मुझे ढूंढने अभी तक कोई नहीं आया। मैं बीच समुद्र में फंस गई हूं जैसे लग रहा है ।जहां दोनों तरफ के तट नहीं दिखने ..."
अध्याय 4
उसने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा।
"कोई आपको ढूंढने नहीं भी आए तो भी आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं।" वह अंग्रेजी में बोला।
"पिछला समय याद नहीं है सोच कर फिक्र करने के बदले आने वाले समय में आपको क्या करना है उसके बारे में सोचिए। आपके लिए हम सब मदद करने लिए तैयार हैं।"
वह कुछ ना बोल कर दूर कहीं देखती हुई लेटी रही।
"लोग नए हैं गांव को नहीं जानती आप....."
वह हंसी।
"मेरे लिए तो यह संसार ही नया है ?"
"देट्स राइट" वह बोला, हंसते हुए "इसीलिए तो आप जिस शहर में भी रहो एक ही बात है। इसी शहर में रह जाइए आप ? यहां पर हाई स्कूल है। यहां कॉलेज भी है। आप किसी में भी टीचर बनकर रह सकती हैं।"
"डिग्री, सर्टिफिकेट कुछ भी नहीं है तो नौकरी कैसे मिलेगी ?"
"आप के विषय में हम बहुत स्ट्रिक्ट नहीं रहेंगे। आपकी योग्यता को देखकर हम आपको काम देंगे।"
"आप अस्पताल चलाते हैं या स्कूल ?"
"दोनों ही हमारे दादा जी का बनाया हुआ है।"
वह आश्चर्य से उसे देखने लगी।
"एक बूढ़े ने व्यक्ति के बनाए स्कूल को चला रहे हैं।"
"यहां सबके लिए सब जगह अपना हिस्सा है। फिर लावण्या, उस आदमी को बूढ़ा मत कहना।"
"क्यों ?"
"वे उसे पसंद नहीं करेंगे ?"
वह अपनी सुंदर दांतो को दिखाते हुए जोर से हंसी।
अब और यहां खड़े रहे तो ठीक नहीं है सोचकर एक मुस्कान के साथ और रोगियों को देखने चला गया। हां आज सब रोगियों से व्यंग में बात करना चाहिए मजाक करना चाहिए ऐसा उसे लगा। "ओफ ओफ... आप लोगों को कोई बीमारी नहीं है।" ऐसा बोलूं उसे ऐसा लगा। चलिए उठिए दौड़ो....! चेहरे को लटका के मत रखो ! हंसो!.. जोर से हंसो..."
आज धूप सुहा रही है। आज दोपहर के भोजन के लिए घर पैदल चला जाए ऐसा उसमें उत्साह आ गया। तालुका ऑफिस, पोस्ट ऑफिस, मुंसिपल स्कूल इन सबको बड़े चाव से निहारता हुआ वह चला। यह उसका अपना गांव है। इस गांव इसकी मिट्टी इसकी हवा को छोड़कर कहीं और जाना उसे पसंद नहीं । पिता के चेहरे को देखा ही नहीं सिर्फ दादा जी के छांव में ही वह बड़ा हुआ उसके मन ने कभी चोरी नही की ऐसा वह सोच भी नहीं सकता।
"फिर भगवान ही कोई लड़की को यहां भेज दे तो सही !"
जिस दिन मां ने यह बात बोली उसी दिन लावण्या यहां आई।
यह अकस्मात घटना है? दैविक संकल्प है ! लावण्या तुम यहीं रुक जाओ....
"हेलो !"
उसने चमक कर देखा। डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर राजशेखर वहां सामने खड़े थे।
"ओ! हेलो !"
"अभी मैं तुम्हें कांटेक्ट करने की सोच ही रहा था आनंद !"
"क्या बात है ?"
"आपके अस्पताल में वह लड़की है ना ?"
"कौन सी लड़की ?"
उसके पेट के अंदर कुछ उथल पुथल हुआ, बेवकूफ ! अब यह सब जो बोल रहे हैं उस एक ही लड़की के बारे में तो है-
"वही जो बस में बच गई थी उसे ढूंढते हुए कोई आया है !"
उसे एक भ्रम एक धोखा जैसे समझ में ना आने वाली मनोस्थिति पैदा हुई।
आनंद ने राजशेखर को ठीक से देखा।
"जो आया है वह कौन है ?"
"मामा” बता रहा है।"
"वे उसका प्रूफ लेकर आए हैं क्या ? उस लड़की की फोटो वैगरह कुछ लाए हैं क्या? नहीं तो उस लड़की को देखने के पहले कोई निशानी बताई ?" कहकर आनन्द चुप हुआ |
राजशेखर की निगाहों में थोड़ा सा आश्चर्य दिखा।
"आप क्यों इतने परेशान हो रहे हो आनंद ? ठीक से पूछताछ किए बिना हम उस लड़की को नहीं भेजेंगे..."
वह अपने को थोड़ा संभाल कर धीरे से बोला; "उसका केस आपको पता है ना ? टोटल एमिनेसिया ! पुरानी कोई बात उसे याद नहीं। इस तरह एक विस्मृति की स्थिति में उस लड़की को रिश्तेदार बताते हुए कोई आए तो उस पर विश्वास नहीं कर सकते।"
राजशेखर धीरे से मुस्कुराए।
"एक्जेक्टली बहुत सुंदर लड़की है यह भी मैंने सुना।"
"सुंदर है या नहीं, वह एक विचित्र स्थिति में रह रही लड़की है।"
"सुंदरता भी मिली हुई है यह बहुत बड़ी विशेष बात है। सब कुछ अच्छी तरह से पता लगाए बिना उसे नहीं भेजेंगे। आप फिकर मत करिए।"
"वह आदमी कहां है ?"
"वह मेरे ऑफिस रूम में बैठे हैं। आप इस तरफ कैसे आए ?"
"मैं घर खाना खाने जा रहा हूं।"
"आप खाना खाने जाइए। मैं उस आदमी को 1 घंटे बाद लेकर आऊंगा।"
"ओके !"
'आराम से लेकर आओ। कोई जल्दी नहीं है' ऐसा बोलने की उसे इच्छा हुई अपने अंदर उठी तीव्र इच्छा को उसने दबा लिया। आखिर में यह है तो सोचा हुआ विषय ही है फिर भी उसके मन में इस तरह अचानक दुख कहां से आ गया उसे खुद आश्चर्य हो रहा था । उसने तुरंत अपने आप को संभाला। 'मेरी उम्र 28 साल। मैं जिम्मेदार डॉक्टर हूं। इस गांव का एक सम्मानित आदमी। समझदारी के साथ चलना ही होशियारी है। लावण्या के रिश्तेदार आ गए.... सो व्हाट ? यह मेरी भांजी है। बांए कान के पास एक मस्सा है, है कि नहीं देखकर बताइए ऐसा यदि वह कोई निशान नहीं बताएं तो जैसे सिनेमा में होता है वैसे। मैं उसीलपट्टी इसे लेकर जा रहा हूं। जाने दो जाने दो आराम से लेकर जाओ। मुझे उससे जो अपनत्व तो मिला है मैं सिर्फ 10 दिन का है। उनका तो पूरे जन्म का साथ है। लावण्या अपनी लंबी बाहों के पंख जैसे फड़फड़ा कर, "इतने दिन आपने मुझे देखा उसके लिए थैंक्स। "ऐसा मुस्कुरा कर गाड़ी में जाकर मामा के साथ जाते हुए हाथ हिला देगी.... आखिर में एक मुस्कान दिखाकर-गाल में पड़े गड्ढे... 1 हफ्ते से मन में आ रही भावनाओं से अनजान..... ओ उसको जो भूलने की बीमारी है वह मुझे आ जाएं तो अच्छा रहेगा। 10 दिन से जो अनुभव किया वह सिर्फ सपना है यह भी याद नहीं रहे तो कितना अच्छा होगा....'
वह जब घर पर गया तो अम्मा घर पर नहीं थी अच्छी बात है। किसी के घर तिरुपुगर भजन में गई होगी।
आनंद खाना खाकर जल्द ही अस्पताल की तरफ रवाना हुआ।
'सो दैट इज देट' अपने आप में बोला।' अब उसे और मुझे असमंजस की स्थिति में रहने की जरूरत नहीं। खोए हुए नाम को ढूंढने की जरूरत नहीं। दिशाहीन बीच समुद्र में रह रही हूं ऐसी बातें कहने की अब जरूरत नहीं। उसके नाम को याद करने के लिए कुल गोत्र बताने के लिए एक मामा आ गए। उन्हें साफ-साफ बता देना होगा। लावण्या अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं है, और दो-तीन हफ्ते के बाद ही उच्चलंम पेंटी, तुल्लुकंम पेंटी को ले जा सकते हो ऐसा बोलना पड़ेगा.....'
उसे अचानक ज़ोर से हंसना पड़ेगा ऐसे लगा। कैसे बच्चे जैसे उसके मन ने सोचना शुरु कर दिया यह सोचकर उसे थोड़ा बुरा लगा। मुझे क्या हुआ है?
वह अस्पताल के कंपाउंड में घुसा तो दोपहर की खुमारी में सब लेटे हुए थे।
वह सीधे अपने ऑफिस के कमरे में गया। किसी काम में उसका मन नहीं लगा किसी का इंतजार करते हुए बैठा रहा।
कलेक्टर की जीप कंपाउंड के अंदर आती खिड़की से दिखाई दी । कुछ ही समय में दरवाजे को धीरे से खटखटा कर राजशेखर एक नए आदमी के साथ अंदर आए।
"यही मिस्टर वेदनायकम हैं।"
आनंद उठा।
"आइए बैठिए ! बैठिए श्रीमान वेदनायकम।"
वेदनायकम सीधा सरल आदमी तमिल के पुजारी जैसे था। उसने धीमी मुस्कान के साथ उन्हें देखा।
"कहिए श्रीमान वेदनायकम, अपनी बात तो बताइए। "वे एक बड़े इतिहास की कहानी शुरू करने वाली आवाज में बोले: "पिछले महीने 21 तारीख होगी सोचता हूं। मेरी दीदी, उसका पति और उसकी लड़की राधा तिरूचि वापस आने के लिए रवाना हुए। मैं गांव गया था। मैं परसों ही वहां से वापस आया। आते ही पता चला वे जिस बस से रवाना हुए थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। सुनते ही मैं सदमे में आ गया।
वे भावनाओं में खोकर थोड़ी देर चुप रहे। फिर बोले "फिर मैंने 20 साल की लड़की बच गई पेपर में पढ़ा। मुझे लगा वह राधा ही हो सकती है इसलिए देखने आ गया।"
"उस लड़की की कोई फोटो आदि लाए हो ?"
"फोटो तो नहीं है।"
"वह लड़की कैसी है थोड़ा सा उसके बारे में बताइए। यदि आप बता रहे हो वैसा हो तो डॉक्टर मालूम कर लेंगे।"
"लड़की को देखकर ही बता दूंगा ना !"
"कोई बात नहीं। आप थोड़ा बताइए रंग, लंबाई आदि के बारे में यह हम पूछ रहे हैं इसका एक कारण है....."
"साधारणतया लंबी वह लड़की।"
"रंग ?"
"गौरी अच्छी बहुत सुंदर है।"
आनंद को अंदर से कुछ खुल गया जैसा महसूस हुआ। अगली बात गाल में पड़ने वाले गड्ढे के बारे में बोलेंगे क्या?
"आपको एक फोटो साथ लेकर आना चाहिए था।"
"क्या कह रहे हो ! दीदी का पूरा परिवार है खत्म हो गया उस समय फोटो के बारे में याद किसे रहेगी ? आप लोग पेपर में तो ऐसा लिखते ? यह असमंजस की स्थिति क्यों ? वह लड़की मेरी भांजी है तो मैं बता दूंगा। वही मामा कहेगी मुझे।"
आनंद कुछ कहने के लिए मुंह खोलने वाला था इतने में राजशेखर जी के हाव भाव को देख चुप हो गया।
राजशेखर उठे।
"ठीक है आइए। पेशेंट को देख सकते हैं ना डॉक्टर ?"
"हां हां क्यों नहीं।"
अस्पताल में एकदम शांति थी।
लावण्या आंखों को बंद कर लेटी हुई थी चित्र के जैसे...!' अरे श्रीमान वेदनायकम यह निश्चित रूप से तुम्हारी भांजी नहीं होगी। इतनी सुंदर भांजी ? सचमुच नहीं हो सकता। वह गोरी आपने बताया। आपने जो वर्णन किया उससे 100 गुना सुंदर ज्यादा है यह लड़की.....!
पहली बार लावण्या को देखकर राजशेखर की निगाहें आश्चर्य चकित रह गई।
आदमी क्लीन बोल्ड आनंद ने सोच लिया।
तुरंत अपने को संभाल कर राजशेखर ने पूछा "क्यों मिस्टर वेदनायकम ! यह लड़की तुम्हारी भांजी है?"
आवाज सुनकर लावण्या ने आंखें खोली। आनंद को देखकर उसने एक पहचान वाली मुस्कान बिखेरी। परंतु और लोगों को देखते ही असमंजस में पड़ी।
"क्या बात है मिस्टर वेदनायकम ?"
"नहीं जी !" फिर बोले "यह लड़की नहीं है।"
अध्याय 5
आनंद को उन्हें सहलाने की भावना तीव्रता से उठी। उनके हाथ को पकड़ कर हाथ हिलाने की इच्छा हुई कि बहुत धन्यवाद बोले ऐसा लगा। वह लावण्या को देखकर एक मुस्कान दिखाकर और लोगों के साथ बाहर आ गया।
"मुझे बहुत दुख हो रहा है मिस्टर वेदनायकम !" ऐसा राजशेखर गंभीर मुद्रा में बोल रहे थे "आप की भांजी जिंदा होगी इस विश्वास के साथ आप यहाँ आए थे...."
अब वेदनायकम के प्रश्नों का जवाब देना दुख बढ़ाना ही है। उनके दुख का समाधान बोलना राज्य की ही जिम्मेदारी है ऐसा सोच कर उन दोनों को बाहर तक छोड़ आनंद अंदर आ गया। उसका मन पंख लगाकर उड़ा, मेज पर इकट्ठे हुए कामों को देख कर वह यथार्थ की दुनिया में वापस आया।
आज एक वेदनायकम आकर खड़ा हुआ जैसे कल कोई सचमुच का मामा आकर खड़ा हुआ तो क्या जवाब दूंगा? क्या कारण बताकर, किस न्याय के आधार पर लावण्या को मैं यहां रख सकता हूं ? कितना पागलपन का विचार उसके मन में आया ! एक पढ़े-लिखा होकर जिम्मेदार पोस्ट पर रहते हुए उसके मन में ऐसी बात कैसे आई ? एक निराधार खड़ी लड़की के मन में घुसना बहुत बड़ी मूर्खता है विवेकहीन बात है उसने अपने आप से ही बोला। अपने मन को दबाकर ना रख सके तो इस डॉक्टरी के धंधे को बंद कर अम्मा के साथ भजन करने निकलना पड़ेगा। अपने आप में बोलते हुए भी उसके होठों पर मुस्कान फैल गई और उसे आश्चर्य हुआ।
4:30 बजने में 5 मिनट पहले ही उसे राउंड में जाने का ख्याल आया। 4:30 बजे तो वह लावण्या के कमरे में पहुँच गया । लावण्या बरामदे को देखते हुए लेटी थी
"क्या बात है लावण्या। क्या सोच रही हो ?" आराम से वह बोला।
उसने उसे ध्यान से देखा।
"वह आदमी मुझे कोई और समझ कर आया था क्या ?"
"हां ।"
"मुझे मेरे लिए कोई ढूंढने अभी तक कोई नहीं आया डॉक्टर।"
वह परेशान होकर हंसी।
"हमसे जो बन सकता था वह सब हमने किया लावण्या ! थोड़ा सहन शक्ति रखो।"
‘मेरी समस्याएं मेरे असमंजस के बारे में तुम्हें नहीं पता’ इस तरह की भावना के साथ उसने उसे देखा।
"आपको हम पर विश्वास होना चाहिए लावण्या। आपके ऊपर हम लोगों को बहुत श्रद्धा है उसे आप को समझना चाहिए।"
"आप सभी लोगों की श्रद्धा ही मुझे डराती है।"
उसने चकित होकर उसे देखा।
"ओह........ आपने हम लोगों को गलत ले लिया ऐसा लग रहा है... ?"
"आपके बारे में नहीं कह रही हूं। वह बूढ़े, सॉरी शोक्कलिंगम के आकर खड़े होने से डर लगता है।"
उसका मन हल्का हुआ ऐसा लगा वह हंसा।
"आपको उन्हें देखकर डरने की जरूरत नहीं। वे थोडी बेवकूफी की बातें करते हैं। बस इतना ही। खराब आदमी नहीं है।
"बदमाशी बेवकूफी के द्वारा ही आती है।"
वह शायद मुझे और कुछ कहना चाह रही है क्या ?
"मैं इसी गांव में पैदा हुआ और यहीं बड़ा हुआ। इस गांव के लोगों के बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूं। आप हिम्मत से इस गांव में ठहर सकती हैं ऐसा मैं सोचता हूं। उसके बाद फिर आपकी इच्छा। और एक हफ्ते में आपको डिस्चार्ज कर देंगे। कोई भी आप को ढूंढ कर नहीं आए तो आप कहां रहेंगी यह फैसला आपको ही करना है। आपको जो सहायता चाहिए मैं करूंगा...."
आने वाले दिनों में वह संभल कर रहा। बेकार की कोई भी बात उससे नहीं कही | अपनी भावनाओं को भी उसे ना दिखा कर, शोक्कलिंगम अस्पताल में ना आए यह भी उसने ध्यान रखा।
डिस्चार्ज करने के पहले दिन उसने उससे पूछा "लावण्या आपने क्या डिसाइड किया? "
धीरे से हंसी, उसके गालों में गड्ढे पड़े।
"यहीं रुकूंगी ऐसा सोच लिया।"
लावण्या ने वहां लगे पेड़ को उत्सुकता से देखा। रोजाना इस समय तोते यहां आकर बैठते हैं । छोटे-छोटे, हरे-हरे तोते सौम्य शरीर लाल नाक ! इस पीपल के पेड़ पर कई तरह के पक्षी आकर बैठते हैं उसने देखा है। हर एक पक्षी अलग तरीके का उस में अंतर साफ नजर आता है उन्हें उसने आश्चर्य से देखा। लावण्या को ऐसा लगता है कि जितने भी पक्षी इस पीपल के पेड़ पर आते हैं उन्हें पेड़ आइए-आइए बुलाकर कहता है आपको शरण देने के लिए मेरे पास जगह है.....
लावण्या सोचती है कि इस गांव नुमा शहर में लोगों में और इस पीपल के पेड़ में ज्यादा अंतर नहीं है । नाम, गांव, गुण न जानने वाली एक लड़की को इन लोगों ने अपनाया | शायद उन्होंने यह गुण इस पेड़ से सीखा हो। बिना प्रश्न पूछे खोद-खोद कर सवालों की झड़ी लगाकर मन को असमंजस में ना डाल कर दूसरों को जगह दे देना और स्वयं उसका नामकरण भी कर देना......
इतना सब कुछ होने के बावजूद प्रेम प्यार के अलावा मन है कि अब भी दुख में डूबा है। 'मैं कौन हूं मैं कौन हूं ? यह सवाल बिना कोई जवाब सूझे मन में उमड़ता घूमड़ता रहता है। बहुत दिन तक, मुझे ढूंढने कोई आया क्या ? यह बात जानने की उत्सुकता ने पीछा छोड़ा नहीं। रोजाना 'नहीं' जवाब से मन में बहुत दुख और धोखे का अनुभव हुआ। मैं अनाथ हूं.... नाम को भी भूल कर पुरानी बातों को भी भूल कर अनाथ होने का प्रमाण मन में विश्व रूप धारण करके मुझे विचलित करता है। यह विश्वास अभी ठीक ठाक चल रहे दिमाग को कहीं पागल तो नहीं कर देगा यह डर भी समा गया था। मैं इसी स्थिति में रहने वाली स्वयं के पश्चाताप से सब पर संदेह करने लगी । डॉ. आनंद के मन को दुखाने लायक बात करने लायक मेरा मन बहुत ही असमंजस में पड़कर तड़पता रहा यह बात उसे याद आ रही थी। वह जब भी याद आती तब दुख होता अभी भी याद आते ही उसे दुख होता है।
वह शोक्कलिंगम रोजाना कोई न कोई कारण बताकर उसे देखने आ जाते हैं। अपने झुर्रीदार चेहरे, इन झुर्रियों के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं ऐसा कहते जैसे काले रंग से मूछें और बालों को रंग कर आते उन्हें देखते ही उसे क्रोध आता।
"कोई तुम्हें ढूंढने नहीं आया इस बात से तुम परेशान मत हो लावण्या।" वे अधिकार से ऐसा कहते।
'तुम यहीं रह सकती हो। तुम पढ़ी लिखी हो। यहीं स्कूल में टीचर की नौकरी कर लेना। 400 रुपये पूरा तुम्हें मिलेगा। उसमें तुम सम्मान से रह सकती हो।'
'मेरी बेटी को कह रहा हूं जैसे कहता हूं।'
उनकी निगाहों में बातों में बहुत अंतर था। जिससे उसको डर पैदा हो गया। इन लोगों का प्रेम, उत्सुकता अतिशयोक्ति पूर्ण लगा। इन पर कितना विश्वास कर सकते हैं ?
उस दिन डॉक्टर से अपने डर के बारे में बताया तब से शोक्कलिंगम ने उसे देखने आना बंद कर दिया। उस पर ध्यान देना किसी तरह कम नहीं हुआ फिर भी यही उसके सामने डॉ आनंद अधिक देर तक नहीं खड़े रहते। आंखों से कुछ ढूंढ रहे जैसे नहीं देखते। अपनी निगाहों से वह कुछ अर्थ लगा लेगी यही सोच शायद डरते हुए जल्दबाजी में वहां से निकलते हैं | यह देख इसको दया आई। उसे लगा शायद मैंने उनके दिल को दुखा दिया | ऐसा एक अपराध बोध उसके मन में उठा। किसी के ऊपर भी संदेह करो पर उन पर संदेह करने की बुद्धि कैसे हुई उसे आश्चर्य हुआ। किसी को भी भूल जाओ कृतज्ञता की सभ्यता को भूल जाओ तो मनुष्य कहलाने के काबिल नहीं ।
वह एक हफ्ता इस बारे में गहराई से सोचती रही। इस शहर के लोग उसके लिए नए होने पर भी जानते तो हैं | इनसे मिलकर इन्हीं लोगों में प्रेम दिखाते हुए साथ रहे तो क्या बात है | उसके मन में यह विचार जड़ पकड़ने लगा। मेरा शरीर ठीक हो गया। चेहरे पर या शरीर पर किसी तरह का निशान नहीं है। जैसे यह लोग कह रहे हैं कि घोर दुर्घटना में फंसकर निकली हूं। ऐसा कोई निशान मुझ पर नहीं है। यह भूलने की बीमारी एक नहीं होती तो इन लोगों के बोलने पर विश्वास करना भी कठिन होता.....
वह एक निराशा के साथ उठी। डॉक्टर बोल रहे हैं जैसे सोचते रहो कुछ नहीं होने वाला। अब अपना भविष्य ही मेरे लिए सब कुछ है इस बारे में सोचना ही अकलमंदी है।
"लावण्या, आपका मन ही आपकी लाठी है। यह अच्छी बात है कि आपका मन स्वस्थ है !"
उसके होठों पर मुस्कुराहट आई ।
कितना सुंदर बोलते हैं !
उन पर जो यहां की जनता का जो सम्मान और इज्जत है उसे देखने से वह साधारण आदमी नहीं लगते।
कई बार व्यंग्य और मजाक करते समय उसे परेशान करे तो भी यह सब भी है आदमी है उसके मन में हमेशा रहता है। अस्पताल से बाहर आते ही रहने के लिए स्कूल के पास ही एक छोटा सा घर का प्रबंध भी करके दिया । उसके लिए काम करने और एक साथी के रूप में एक बुढ़िया को रख दिया। स्कूल में तुरंत एक नौकरी के लिए बंदोबस्त कर दिया। शोक्कलिंगम स्वयं के कारण ही सब कुछ होगा ऐसी बात कर रहा था। उसको जो कुछ सुविधाएं मिली है वह सब आनंद के कारण ही अब उसके समझ में आया।
उस मकान में उसके आने के पहले ही सब सुविधाएं करवा कर फिर ही उसे वहां छोड़कर जाते समय एक लिफाफा दिया।
"यह क्या है ?" वह आश्चर्य से पूछी।
"आपके खर्चे के लिए इसमें कुछ रुपए रखा है ।" बोलकर मुस्कुराया । उसके चेहरे पर जो घबराहट दिखी तो तुरंत बोला "उधार दे रहा हूं। आप आराम से इसे वापस कर देना। वैसे भी आपको अपनी जरूरत के लिए किसी से भी उधार लेना पड़ेगा। उसे मुझसे ही ले लेना चाहिए ना ?"
वह निरुत्तर हो गई। "इस उधार को लौटाते समय आपकी फीस भी मैं दे दूंगी डॉक्टर। नहीं-नहीं लूंगा आप नहीं बोलोगे।"
स्नेह से हँसा"फीस ही तो है ! मैं ही मांग कर ले लूंगा । डोंट वरी ।"
अध्याय 6
उसकी वजह से ही मेरे मन में एक संतुष्टी है ऐसा वह सोचती है। यदि इसकी दोस्ती नहीं होती तो अभी तक मैं पागल हो गई होती। कितने ही तरीके से उसने उसका समाधान किया ! उससे बड़ा सच्चा दोस्त कौन मिलेगा ? अस्पताल में रहते समय निर्मला और जया उस पर पागल जैसे छाई हुई रहती थीं इस बात को वह समझ गई। इससे जो लोग इसके बहुत निकट से रहते हैं उनका उससे संबंध तो नहीं हो जाएगा उसे ऐसा लगा था। फिर मन में एक धक्का सा लगा । मैंने इतनी जल्दी से ऐसा निर्णय कैसेले लिया। इतनी खराब तो नहीं हूँ , एमनेसिया के अलावा मेरी बुद्धि में कोई खराबी नहीं है।
पक्षियों के कोलाहल की आवाज से कान फटने लगे । अपने घोसले में लौट आए पक्षी। सब अपने घोसले में आने के बाद गर्माहट में आराम से सोएंगे। अंधेरा धीरे-धीरे फैलने लगा।
"अम्मा, लावण्या अम्मा !"
सुन जल्दी से वह स्वयं के स्वरूप में लौट आई। घर के सामने खड़ी होकर बुढ़िया आवाज दे रही थी। लावण्या जल्दी चलिए।
"क्या हुआ मरकदम ?"
"बत्ती जलाने का समय हो गया। अभी तक तुम पीपल के पेड़ के नीचे क्यों खड़ी हो ?"
"इमली के पेड़ के नीचे ही तो नहीं खड़ा होना चाहिए ।"
"सुंदर लड़की का किसी भी पेड़ के नीचे खड़ा रहना गलत है।"
"कौन है वह लड़की ? मैं देख सकता हूं ?"
वह हड़बड़ा कर पलटी।
आनंद दरवाजे पर हंसते हुए खड़ा था।
"हेलो !" वह खुशी से बोली "क्या बात है आज आपके चेहरे पर बड़ी खुशी दिखाई दे रही है?"
"आपका आना ही मेरे लिए खुशी है ?"
उसकी आवाज में अपनत्व की भावना प्रगट होकर प्रवाहित होने लगी ।
अपने दिमाग को किसी के पास गिरवी रख दिया हो जैसे भ्रम उसे पैदा हुआ।
"मेरे पेशेंट की तबीयत और मन ठीक हो गया देखकर मुझे खुश नहीं होना चाहिए ?"
आनंद के सौम्यता से हंसते हुए पूछने पर वह अपनी स्वयं की स्वाभाविक स्थिति में आई। उसको उसकी जो परवाह है उसका कारण और कुछ नहीं मानवतावादी सोच है। एक डॉक्टर का एक पेशेंट के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। उसकी बातों और निगाहों का जो अर्थ उसने समझा वह यथार्थ में उसकी कल्पना मात्र है। इसका कारण आधार ढूंढने के लिए भटकने वाला उसका मन ही है।
"मुझसे मिलने में आपको खुशी नहीं हुई ऐसा लगता है ?"
"किसने कहा ?"
"आपका चेहरा क्यों लटक गया ?"
"नहीं तो ?"
उसकी दृष्टि में दया दिखाई दी। "सिर में विचारों का जो बोझ है उसको सहन न कर पाने के कारण चेहरा लटक गया। “लावण्या, आपको जो बीत गया उसकी फिक्र है..... अब क्या होगा इसकी फिक्र और सोच.... परंतु इस वर्तमान समय के बारे में सोच और फिक्र नहीं है.....”
"ऐसे कैसे बोल रहे हो आप ?"
" सामान्य ज्ञान के आधार पर । आपके मन में किस तरह की बातें उठ रही हैं वह मैं समझ सकता हूं।"
"क्या बात हैं ?"
उसने उसका जवाब न देकर उसे घूर कर देखा।
"आपने जे. कृष्णमूर्ति को पढ़ा है ?"
"नहीं ।"
"वे क्या बोलते हैं......"
वह थोड़ा हिचका।
"क्या बोलते हैं ?"
"नहीं, आप बोर हो जाओगी |"
"नहीं। बताइए।"
"वे कहते हैं- 'पुरानी यादें, बातें ही आदमी की उन्नति में बाधक है। पुरानी बातों को पूरा भूल जाओ। उन यादों को तोड़कर बाहर आओ। तुम अपने भविष्य की नई योजना बनाओ। जब कोई परेशानी आए तो उसे अपनी अक्ल से संभालो.... वर्तमान में रहो। पुरानी बातों और आने वाले भविष्य के बारे में फिक्र मत करो' उन्होंने बोला...."
वह चुप हुआ। उसके गालों पर पड़े हुए डिंपल के साथ, आंखों में उत्साह लिए उसके सुनने को उसने एक क्षण देखा।
"यह सब आपके लिए ही बोला ऐसा नहीं है ?"
"किसी बात की फिक्र मत करो। तुम्हें जो डॉक्टर देख रहे हैं उनके ऊपर भार को डाल दो, तुम्हारा पूरा कष्ट चला जाएगा उन्होंने नहीं बोला ?"
वह हंसा।
"नहीं ! किसी पर विश्वास मत करो तुम्हारी अपनी बुद्धि के सिवाय वे बोले।"
"मेरी बुद्धि कह रही है आप पर विश्वास कर सकते हैं।"
"ओ, थैंक यू ! यह आपकी बातों से ही लग रहा है ? आपके भार को सहन करने वाले को एक गिलास कॉफी भी नहीं मिलेगी ?"
"आ रही है ! मरकदम अभी लेकर आएंगी। आपके पैर अंदर रखते ही चूल्हे पर दूध चढ़ाना है यह मेरा स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन है। वह थोड़ी धीरे काम करने वाली...."
मरकदम के कॉफी लेकर आते ही उसे पीकर वह उठा।
"मैं आता हूं लावण्या। एनी प्रॉब्लम ?"
"नहीं ।"
"वह शोक्कलिंगम यहां आकर आपको परेशान तो नहीं करता ?"
"ऊंम। परेशान तो नहीं कह सकते। दो तीन बार यहां आए।"
"क्यों ?"
"मुझे कुछ कारण का पता नहीं चला। मुझे संभाल रहे हैं ऐसा वे सोचते हैं। आपके कहे अनुसार वे थोड़े बेवकूफ ही हैं ऐसा लगता है।"
वह कुछ सोचते हुए खड़ा हुआ।
"पन्नैय में उनका एक घर है ? 'एक दिन गाड़ी भेजूंगा, तुम आकर देखो। मेरा पन्नैय बहुत सुंदर है' बोले।"
वह भ्रमित होकर उसे ही देखने लगा।
"उनकी बातों को आपको नहीं मानना चाहिए लावण्या।" वह जल्दी से बोला।
"मैं नहीं मानूंगी।"
"उनका नाम अच्छा नहीं है। लावण्या, उस बुड्ढे की मूछें सफेद हो गई पर इच्छा सफेद नहीं हुई।"
"इच्छा सफेद नहीं हुई है यह दिखाने के लिए ही तो वे मूछों को रंगते हैं !"
"यू आर राइट। वह आदमी तुम्हारे सामने पूंछ न हिलाएं उसे मैं देख लूंगा ।"
"थैंक यू !"
उसके साथ वह कार तक चली।
"अब मुझे क्या लगता है पता है डॉक्टर ?"
उसने उसे प्रश्न करते हुए जैसे देखा।
"मुझे अब कोई भी ढूंढने नहीं आएगा ऐसा लगता है। अब पुराना कुछ चाहिए भी नहीं ऐसा लगता है। मेरी पुरानी बातों को याद दिलाने कोई आ जाए तो अब मैं जो खुशी महसूस कर रही हूं वह चली जाएगी डर लगता है। जानने वाली जगह को छोड़कर अनजान जगह जा रहे हैं जैसे लगेगा। मैं पैदा हुई बड़ी पली जिस जगह है मेरे लिए तो अब नया ही है....."
उसका चेहरा अचानक चमक गया फिर किसी योजना में डूबते हुए उसने महसूस किया। उसने उसको जिस निगाह से देखा
उसमें उसको दया के सिवाय और भी कुछ भ्रम हुआ।
"इसे सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। परंतु यह समस्या कभी भी आए तो उसका सामना करने की मनोदशा के लिए हमें तैयाररहना चाहिए लावण्या। इसीलिए तो मैं बोला, कोई भी समस्या हो उसके आने के पहले से उसकी प्रतीक्षा करके बैठना नहीं चाहिए। जब वह आएगा तब संभाल लेंगे ऐसी भावना मन में पैदा करना चाहिए ।"
वह, कार के दरवाजे को पकड़कर उसे देख मुस्कुराया। उसके मन में भी एक प्रवाह शुरू हो गया। मेरे यहां पर खुश रहने का कारण आप ही हैं ऐसे बोलने की उसकी इच्छा हुई। आपको छोड़कर जाने की स्थिति आएगी सोच कर मुझे डर लगता है यह बात मुझे अभी अभी समझ में आई। तुमसे मैं प्रेम करती हूं प्रेम करती हूं....
"पत्रिका पढ़ना तुमको पसंद है लावण्या ?"
"हां !"
"कविता......?"
"जी हां !"
"इस कविता को पढ़कर देखिए।"
एक सप्ताहिक पत्रिका में एक कविता आई थी उसे उसने जोर से पढ़ा।
किनारे के पेड़ से
छन कर मन के अंदर
उतरते सपने जैसे
कपडे़ की छाया
समान यादें
भूल कर अपने मूल को
धूप में तपे हुए द्वीप,
द्वीप जैसे
मेरे ध्यान में
और कहां मिलेंगे।
"बहुत अच्छी है।"
उसने अनजानेमें उसके कंधे पर हाथ रखा उसने इसकी अपेक्षा नहीं की । उसके पूरे शरीर में एक कपकंपी फैली गई।
"ओ, ऐसी बातें करने वाला कोई नहीं इस गांव में मैंने सोचा..... अब चिंता नहीं। तमिल अध्यापक सिंगारवेलु पत्रिका देंगे ऐसा बोले थे।"
खुशी के बाहर दिखने से उसे संकोच ने भर दिया।
"मेरे मरे हुए जीवन काल से एक नायक अचानक आकर खड़ा हो जाए तो ?"
"कोई बात नहीं। अभी जो मिल रहा है उससे खुश रहता हूं। मैं वर्तमान में ही रहने वाला हूं ।
कार के रवाना होने के बाद वह कुछ सोचते हुए अंदर घुसी।
कोई आकर उसे यहां से ले जाए तो उसे परेशानी नहीं होगी ? वह वर्तमान में जीने वाला है तो पुराने अनुभवों का अभिमान भी है। आने वाले दिनों के सपनों की अपेक्षा भी उसको नहीं ? फिर उसको देखने पर उसकी आंखों में जो दिखाई देता है उसका क्या मतलब ? अपने जैसे ही एक साथी मिल गया उस खुशी के अलावा और कुछ नहीं है क्या?
'किस के लिए यह दीर्घ श्वास ?'
उस कविता का मूल।
करीब-करीब उसी के जैसे मेरी स्थिति है ऐसा लगता है। थोड़े दिनों से वह स्वयं भी एक सुबह के लिए इंतजार कर रही है ऐसा उसे समझ में आ रहा है। किस आधार पर उसके अंदर ऐसी अपेक्षा उठी?
"मैं वर्तमान में जीने वाला हूं !"
मैं ऐसे नहीं रह सकती। मेरे मन में एक नई इच्छा अंकुरित हो रही है। सपने दिखाई दे रहे हैं।
कार चलाते हुए घर आते समय आनंद का मन आकाश में उड़ने लगा । लावण्या से मिल करआते समय हमेशा मिलने वाली खुशी आज कुछ ज्यादा ही खुशी दे रही है। वह बहुत पास आ गया लगता है। आज उसकी निगाहें, बातें, सुंदरता इन बातों से मैं कहीं डिग न जाऊं उसे डर लग रहा था।
"मुझे ढूंढते हुए कोई आ जाएगा तो सोच कर ही मुझे डर लगता है।"
उसके दिल में डर का क्या कारण होगा यह सोचने में उसे एक खुशी का अहसास हो रहा था।
दुर्घटना घटे 1 महीने से ऊपर हो गया। अब कोई उसे ढूंढने आएगा ?
अम्मा के उस दिन के बोले हुए शब्द फलीभूत हो गए। भगवान का हमारे लिए भेजा हुआ कीमती सामान यह वही है।
अगले दिन वह एक कमेटी मीटिंग के लिए स्कूल गया। स्कूल की लाइब्रेरी को देखने के लिए गया वहां लावण्या कुछ ध्यान से पढ़ती हुई बैठी थी। हिंदी नॉवेल।
"आपको हिंदी मालूम है ?" उसने आश्चर्य से पूछा।
"अच्छी तरह मालूम है।"
"कैसे ?"
"बात भी अच्छी कर सकती हूं।"
"कैसे ?"
"तमिल जैसे जानती हूं ! इन सबके लिए कोई कारण होता है क्या ?"
कारण तो अवश्य होना चाहिए ऐसा सोचकर उसके मन में एक भ्रम हुआ । एक ही समय में कई सोच उसके मन में आए और उसने लावण्या को देखा। मीटिंग में आए हुए लोग अपने साथ हैं उसे याद आया और तुरंत वह संभल कर बाहर निकल गया।
"फिर पुस्तकों की एक लिस्ट बनाकर 500 पुस्तकों के लिए सैंक्शन निकाल देते हैं।
'स्कूल के कंपाउंड के दीवार को ऊंचा करने के लिए कल ही कॉन्ट्रैक्टर को बुलाकर कल ही काम शुरू करवा देते हैं।"
उसको किसी का कहा भी सुनाई नहीं दिया।
"क्यों डॉक्टर, सही है ना ?"
"हां... सही...., सही है।"
अध्याय 7
सब लोगों से अपने को छुड़वा कर कार से घर की ओर रवाना हुआ।
हिंदी में अच्छी तरह बात करना जानती है, वह उत्तर भारत के इलाके में पली-बड़ी होगी। यहां कहां आकर फंस गई ? उसके अंदर एक नया संदेह पैदा हुआ। उत्तर भारत के पेपर में भी इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए थी ऐसा उसे लग रहा था। बहुत देर सोचने के बाद उसने अपने आप ही समाधान किया। वह कहीं से भी आई हो उसके घरवालों को वह नहीं मिली तो जरूर पूछताछ की होगी और उसे ढूंढा होगा ऐसा उसे लगा। हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस दोनों ही पेपर उत्तर भारत में जाते हैं उसे याद आया। उसका नजदीकी रिश्तेदार कोई होता तो वे दक्षिण भारत की पुलिस से संपर्क करने नहीं आते ? निश्चित तौर पर इसके नजदीकी रिश्तेदार इस दुर्घटना में मर गए होंगे। इस अनाथ को छोड़कर चले गए होंगे। बार-बार सोचने के बाद
होना ऐसा ही होना चाहिए ऐसा सोचकर कि यही सच है उसने आप को संतुष्ट कर लिया ।
घर को पीछे छोड़कर वह थोड़ी दूर आगे निकल गया है यह महसूस कर कार को पीछे की तरफ दोबारा घुमाया। अपने गेट से आगे आते समय ही देखा उसकी मां बरामदा में एक कुर्सी पर बैठी हुई है।
कार के दरवाजे को बंद कर उसे देखा तो मां जोर से हंसी।
"क्या है, डॉक्टर साहब अपना घर भी भूल गए ऐसा लगता है ?"
घर को छोड़कर मैं आगे निकल गया इसे अम्मा ने देखा है!
वह संकोच से हंसा।
"कुछ सोच रहा था !"
"टोटल एमिनेशिया !!"
मां के चेहरे में व्यंग्य दिखाई दे रहा था। वह जोर से हंसा।
"मुझे यह सब नहीं होगा, डरो मत। टोटल पागल होने का तो चांस है !"
"युवा लड़का पागल हो गया है तो उसकी अम्मा क्या करती है पता ?"
"मुझे पूरा पागल होने दो फिर सोचेंगे।
"फिर ठीक है !" ऐसा बोली जैसे कोई बड़े समस्या का हल कर लिया हो । मां को उसका चेहरे को देखने से ही उसे हंसी आ रही थी। "ओ अम्मा इतनी मजाकिया अम्मा किसको मिलती है ?"
"कॉफी पी लिया क्या ?"
"हां पी लिया ।"
"कहां ?"
"आज स्कूल में कमेटी की मीटिंग थी। वहां पकोड़ा, हलवा और कॉफी।"
"ओ हो !"
"क्या ओ हो !"
"मैंने तो कुछ और सोचा ।"
अम्मा के चेहरे में हमेशा दिखने वाली हंसी दिखाई नहीं दी। चिंता दिखाई दी।
"क्या हुआ मां ?"
कुछ क्षण सोच रही जैसे उसकी अम्मा ने उसे देखा।
"तुमसे कुछ बात करना है आनंद !"
वह आंखें फाड़कर उसे देख हंसा।
"अभी फिर क्या कर रही हो ?"
"ऐसा नहीं। थोड़ा सीरियस बात करनी है। अंदर की बात करनी है ।"
"हां ,बात करो !"
वह उनके पास एक कुर्सी खींच कर बैठा। अम्मा चारों तरफ देखकर धीमी आवाज में शुरू किया।
"कुछ-कुछ मेरे कानों में आ रहा है आनंद !"
"क्या आ रहा है ?"
अम्मा बोलने में परेशान हो रही है ऐसा लगा।
"तुम रोज उस लड़की के घर जा रहे हो-उस लावण्या के घर ?"
"रोजाना नहीं जा रहा अक्सर जाता हूं ।"
"दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है।"
"होने दो। उसके लिए......?"
"क्यों जाते हो, एक जवान लड़की अकेली रहती है उस जगह ?"
"बहुत अच्छा है! किसने कहा वह अकेली है ? उस की देखभाल के लिए एक बुढ़िया हमेशा उसके साथ रहती है ?"
"ठीक है क्यों जाते हो ?"
"अम्मा, तुम ग्रामीणों जैसे कैसे बोल रही हो। वह लड़की मेरी पेशेंट है। इस गांव में अनाथ बनकर फंस गई है। उसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी नहीं है क्या ?"
"जिम्मेदारी तो है। उसके लिए उसकी तबीयत को ठीक कर दिया। मकान रहने के लिए दिया। नौकरी दिला कर, एक बुढ़िया को उसके साथ रख दिया। रोज जाना जरूरी है क्या ? मुझे जो संदेह हो रहा है वह इन गांव वालों को भी होगा सोचती हूं।"
उसके अन्दर अचानक एक तूफान सा आया। उसने आज तकअम्मा को ऐसा नहीं देखा वह चिड़चिड़ता हुआ बोला "सोचने दो मुझे उसकी परवाह नहीं है।"
एकदम से उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई दिया वह जल्दी से उठ कर अपने कमरे में चला गया। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। उसकी अपनी अंतरंग बातों पर प्रश्न पूछा हो जैसे गुस्सा उसे आया। छीं ! कैसा गांव है यह पहली बार उसे इस गांव के प्रति असंतुष्टि हुई । मेरा कोई अपना जीवन नहीं है क्या ? मेरी अपनी इच्छा है अभिलाषाएं कुछ भी नहीं होना चाहिए क्या ?
एक दूसरी तरह के विचार भी उसे आए। इस गांव में जो लोग हैं उनका मुझे ध्यान रखना चाहिए। यह मेरा कर्तव्य है। मेरे दादा और मेरे बीच दो पीढ़ियों का अंतर है फिर भी उन्हीं दादा का पोता ही हूं मैं जनता की नजर में। इस नजरिये को बेवकूफी से मुझे नहीं बिगाड़ना चाहिए मेरे मन में जो विचार उठा वह सही है। मेरे मन में उठने वाला विचार , इच्छा सब न्याय संगत है। यह मुझे उन्हें महसूस कराना है। अनाथ लड़की होने पर भी लावण्या अच्छे परिवार की गरिमापूर्ण लड़की है यह उन्हें समझना होगा। यदि उनके समझ में नहीं आया तो मेरी स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। उसी समय उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने मुड़कर देखा तो उसकी अम्मा मुस्कुराते हुए खड़ी थी। मेरा मन शांत हो गया प्रश्न का समाधान हो गया ऐसी हंसी उनके चेहरे पर थी।
"क्या बात है तुम्हें इतनी जल्दी गुस्सा आ गया ?"
"गुस्सा नहीं..…क्रोध....... तुमने भी मुझे नहीं समझा ऐसा ?"
मां के चेहरे से मुस्कुराहट नहीं हटी।
"समझने के लिए ही ऐसा सोचा आनंद। तुम्हें मुझ पर विश्वास करना चाहिए ।"
इतना मेरी मां मुझे समझेगी ऐसे विचार के साथ आनंद चुपचाप खड़ा था। इस गांव में पैदा होकर पलकर लोगों से मिलकर भी यहां की जनता की बातों को सुनकर अम्मा का ब्रेन वाश जैसा हो गया। अम्मा मुझे कितना समझेगी ? अपने वंश के बारे में गर्व से सोचने वाली मां उसके मन को एक अनाथ लड़की ने वश में कर लिया इस बात को वह कैसे पचा पाएगी ? मुझे उस लड़की की परंपरा के बारे में मालूम होना चाहिए, उसके परिवार के बारे में मालूम होना चाहिए, उनके स्टेटस के बारे में मालूम करना चाहिए वह ऐसा जरूर बोलेंगी।
"आनंद मुझ से बात नहीं करोगे ?" अम्मा आराम से बोली।
उसने अचकचा कर मुड़ कर देखा। "क्या बात करें ? क्या बोलूं तो तुम समझोगी ?"
अम्मा मुस्कुराई ।
"तुम्हें कुछ बोलने की जरूरत नहीं । तुम्हारे बिना बोले ही मेरे समझ में आ गया। परंतु इस गांव के लोग प्रेम भाव से यह सब देख कर हंसते हुए नहीं रहेंगे। उनकी एक जीभ भी है।"
"तो उससे ?"
"देखा, दोबारा गुस्सा कर रहे हो, एक काम करो। आज शाम को मुझे लावण्या के घर लेकर चलो ।"
उसने चकित होकर मां की तरफ देखा।
"अट्ठाईस साल तक किसी भी लड़की के पास ना जाने वाले के मन को जिसने बदला उस होनहार लड़की से मुझे भी नहीं मिलना चाहिये क्या ?"
वह अपने संकोच को भूल फिर से खिड़की की तरफ मुडा़।
"अम्मा, तुम मुझे समझोगी ?"
"कोशिश करूंगी..."
"वह लड़की एक अनाथ है ! उसके कुल के बारे में, गोत्र के बारे में तुम मुझसे पूछोगी तो मेरे पास उसका कोई जवाब नहीं।"
"तुम पहले उस लड़की को दिखाओ। उसके बाद इनके बारे में फिक्र करना है या नहीं सोचकर बताऊंगी।"
लावण्या के घर के कंपाउंड के अंदर शाम को उनकी गाड़ी के घुसते समय वह बगीचे में कुर्सी पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी। कार की आवाज सुनकर उसने सिर ऊंचाकर देखा और उसका चेहरा खिला इस बात पर ध्यान देते समय उसका भी दिल छोटे बच्चे जैसे उछलने लगा।
उसकी, अम्मा से परिचय कराने के बाद वो आश्चर्य से हंसते हुए "नमस्कारम !" बोली। उसे अम्मा की मुखाकृति को देखने में भी डर लग रहा था। अम्मा ने उसकी हंसी को देखा ? उसकी सुंदरता को दे खा ? उस के इतने तेज के सामने तुम क्याकुल, गोत्र के बारे में फिक्र करोगी ? ये राजवंश से संबंध रखती है। वास्तव में तुम्हारा लड़का उसके लायक है क्या तुम्हें सोचना चाहिए।
लावण्या ने उन लोगों को अंदर ले जाकर बैठाया।आज उसके चेहरे पर एक थकान दिखाई दी। आनंद ने सोचते हुए उसे देखा, वह अम्मा के हाथों को पकड़क र बोली: "आज आप यहां आए मुझे बहुत खुशी हुई। आपको देखे बिना मैं इस गांव से चली जाऊंगी यह सोच कर मुझे बहुत दुख हो रहा था।"
आनंद अपने आश्चर्य को छुपाता हुआ एक प्रश्नवाचक दृष्टि से लावण्या को देखा।
वह हिचकिचाते हुए हंसी। फिर जमीन को देखने लगी।
"इस शहर को छोड़कर जाने की मैंने योजना बना ली।"
किससे पूछकर यह योजना बनाई उसने पूछना चाहा, लेकिन फिर आनंद ने पूछा; "किसशहरको ?"
"कोई भी शहर को, मद्रास समझ लो।"
"वहां कौन है ?"
अचानक वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसको जो गुस्साआ रहा था उसके रोने को देखकर एक दम से खत्म हो गया। वह किसी डर में या असमंजस में है उसे ऐसा लगा। अम्मा के मन को कुछ लोगों ने दूषित किया है वैसे ही उसके मन को भी किसी ने दूषित कर दिया होगा.....
मंगलम उठकर लावण्या के पास जाकर बैठी और उसके कंधे को छूकर उसे आश्वस्त किया।
"रो मत बेटी। तुम्हें यहां क्या तकलीफ है बताओ ? हमसे जो बन सकेगा वह मदद करेंगे।"
"मुझे यहां कोई तकलीफ नहीं है। मेरी वजह से दूसरों को कष्ट है !"
"नॉनसेंस ! किसको तकलीफ है ? क्या तकलीफ है ?"
गुस्से से देखने वाली निगाहों को बर्दाश्त ना कर पाने के कारण उसने सिर झुका लिया। धीमी आवाज में बोली:- "यह सब बातें बताने करने का विषय नहीं है डॉक्टर। प्लीज ! मेरा यहां से रवाना होना ही अच्छा है सोचती हूं।"
"किसका ?"
"इस गांव को ?"
वह अपने गुस्से को दबाकर हंसा।
अध्याय 8
"आपके रहने से इस गांव को कैसा कष्ट ? मैं बार-बार कहता हूं लावण्या....! मरगथम, आज यहां कौन आया था ?"
"वह शोक्कलिंगम साहब आए थे।"
आनंद का चेहरा एकदम लाल हो गया। 'दी ब्लडी रोग..…इस उमर में चुपचाप हे राम न कहकर ठहर.... मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।"
"लावण्या ! यहां उससे क्या बात हुई ?"
"ओह ! क्यों डॉक्टर यह सब ?"
"मुझे सब मालूम होना ही चाहिए !"
"इन सब बातों को दोहराने के बदले मेरा इस गांव से निकल कर जाना ही ठीक है लगता है।"
उसे तेज गुस्सा आया। 'छी ! इस लड़की को विश्वास ही नहीं 'ऐसा उसे क्रोध आया। मैं भी किस लड़की पर विश्वास करके, उसकी हंसी को देख हवा में किला बनाया ऐसा उसे आभास हुआ।
वह जल्दी से उठा: "बहुत अच्छा, मैंने आपके बारे में गलत सोच लिया लगता है। मेरी बातों से ज्यादा शोक्कलिंगम की बातों को ही आप ज्यादा महत्व दे रही हैं तो फिर आप, वह जैसे बोले उनकी बात ही सुनिए।"
"आनंद ! क्यों ऐसा गुस्सा कर रहे हो ?"
"चलो अम्मा चलते हैं। मुझे एक पेशेंट को देखने जाना है।"
"ठीक है चले जाना, थोड़ी देर बैठो।" वह गुस्से में ही बैठ गया। लावण्या धीरे-धीरे रो रही थी। उसके लाल हुए चेहरे को न देखनापडे इसलिए वह एक किताब लेकर पढ़ने लगा । उसमें से एक टुकड़ा कागज का गिरा । उसमें मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था।
किस छुटकारे के लिए यह दीर्घश्वास ?
उसने अपने भौहों को हलका सा सिकोड़ा। वह उस कविता का नाम था उसे याद आया। इसने इसे यहां क्यों लिखा है? ये किसी से छुटकारा पाने के लिए दीर्घ श्वास ले रही है क्या? ऐसा है तो फिर यह क्यों ऐसे रोती हुई बैठी है? इसे इतना कमजोर होना चाहिए?
उसे आश्वासन देने जैसे मंगलम उससे धीमी आवाज में कुछ बात कर रही थी । ओ.. ओ.. अम्मा को यह पसंद आ गई समझते ही एक खुशी उसके मन में छा गई। तुरंत खत्म भी हो गई- वह तो एक सुबह दूसरे जगह जाने के लिए अड़ी है उससे अम्मा को स्नेह हो गया तो भी क्या ?
लावण्या ने धीरे धीरे अपने को संभाल कर बोलना शुरू किया: "वह शोक्कलिंगम ने उसके आउटहाउस पन्नैयन में आने के लिए दो बार गाड़ी भेजी। मैं नहीं गई... इसलिए उन्हें गुस्सा आया होगा सोचती हूं। आज फिर से आकर बहुत देर मुझे उपदेश देते रहे। 'शहर में लोग कई तरह की बातें कर रहे हैं। तुम्हारी वजह से डॉक्टर की बदनामी हो रही है। इतने दिनों तक यहां पर उनका बहुत बड़ा नाम था। तुम्हारे व्यवहार के कारण उनकी प्रैक्टिस ही चली जाएगी लगता है।"
आनंद अचानक जोर से हंसा।
“इस शहर में अपमान से वे ही बचाएंगे ? इसीलिए पन्नैय आने के लिए उन्होंने गाड़ी भेजी ?"
लावण्या ने सिर झुका लिया। "मुझे उनके बारे में फिक्र नहीं है। मुझे कभी भी उनके लिए कोई सम्मान नहीं था। परंतु मेरी वजह से आपके गौरव को क्षति पहुंचे तो मेरा यहां रहना न्याय-संगत नहीं है।"
"लावण्या ! मुझे लगा तुम्हें टोटल एमिनीशिया है। तुम एक टोटल बेवकूफ हो यह भी मालूम हो गया।"
लावण्या के होंठो पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। उसके गालों पर डिंपल आंख मिचोनी खेल कर छुप गया।
"आनंद !" कहकर मंगलम ने हंसते हुए उसे डांटा।
"आपके अभिप्राय के अनुसार, उस शोक्कलिंगम के कारण एक जटिलता उत्पन्न हो गई मान लें। अकलमंदी इसमें है की मालूम करें यह जटिलता कैसे उत्पन्न हुई ? क्यों उत्पन्न हुई यह ना सोच कर मैंने ऐसे सुना आप भागोगी ? आप किस तरह की लड़की हैं ?"
मंगलम और लावण्या दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए। सांस लेने वाली हवा थोड़ी हल्की हो गई ऐसे उसे लगा।
"एक समस्या उत्पन्न हो गई तो सही वाले रास्ते को ढूंढना चाहिए....."
"यहां से रवाना होना ही सही रास्ता है मैंने सोचा।"
"इसका मतलब इस समस्या से निकल कर एक नई समस्या में फंसना ही रास्ता है।"
उसने धीमी आवाज में जवाब दिया: "क्या करना चाहिए मुझे समझ में नहीं आया। मेरी वजह से आपकी बदनामी हो रही है यह मैं सहन नहीं कर सकी।"
“और लोग कुछ भी सहन कर सकते हैं ऐसा आप सोचती है क्या ?"
"वह अचानक चौंक गया । ये क्या यह सब अम्मा के सामने बात कर रहा हूं....ओह ! अब अम्मा के सामने कुछ भी छुपाने से कोई फायदा नहीं होने वाला!
उनके रवाना होते समय वह बोला "अभी एक सम्मान की समस्या बीच में आ जाने के कारण मैं अब अक्सर न आना ही अच्छा है सोचता हूं। आपका दिन ना कटे तो कविता लिखिएगा ! उसका हेडिंग भी आपने लिख दिया ना !"
"वह उधार लिया हुआ हेडिंग है !"
"उससे क्या होता है ?"
"कुछ नहीं होता मेरा नाम भी उधार ही तो है ? परंतु कविता लिखने के बाद उसे सुनने वाला रसिक भी तो चाहिए ?"
अब यहां ज्यादा देर नहीं ठहरना है उसने सोच लिया। यह भी कुछ बकने लगेगी, मैं भी बकने लगूंगा, मां साथ में हैं इस होश में न रहकर।
"मेरी मां को कविता बहुत पसंद है !"
अम्मा अचानक से हंस दी।
"क्या हुआ अम्मा ?"
"मेरा ध्यान तुम्हें कैसे आया मैंने सोचा !"
कार को स्टार्ट करके रवाना होते समय लावण्या ने हंसते हुए हाथ हिलाया जिसको देखकर उसके मन में थोड़ी शांति आई। अम्मा कुछ नहीं बोली। बार-बार उसको तिरछी निगाहों से अम्मा को मुस्कुराते हुए महसूस कर रहा था।
"शोक्कलिंगम के घर को चल।" अम्मा बोली।
"वहीं जा रहा हूं।" अपने आश्चर्य को छिपाते हुए वह बोला। अम्मा को और उसे एक ही बात ने परेशान किया हुआ है उसे लगा। लावण्या को यह स्वीकार करेंगी ?
उन्हें देख शोक्कलिंगम थोड़ा सा घबराया। फिर बड़ी सज्जनता से आदर सत्कार किया।
"आइए ! मेरी याद कैसे आई आपको?"
"रोजाना यहां-वहां मिलते ही हैं। अलग से घर आकर मिलने की आवश्यकता नहीं पड़ी बिना किसी काम या जरूरत के.."
आनंद के आवाज में थोड़ी गर्मी को देखकर वे सतर्क हो गए। जल्दी से अपनी भावनाओं को बदल कर उन्होंने मंगलम को देखकर एक व्यग्यं दृष्टि डाली।
जिसे महसूस कर शोक्कलिगम सतर्क हो गया | तुरंत उन्होंने अपने चहरे के भावों को बदलकर व्यंग्य से हँसते हुए बोले "फिर, भैया किसी के घर भी आओ तो कोई कारण तो होना चाहिए यही तो मतलब.....!" आनंद को तेज गुस्सा आया |
मिस्टर शोक्कलिगम ! मैं किसी को भी छुपकर मिलने नहीं जाता और अपनी गाड़ी भेजकर पन्नै वाले घर में नहीं बुलाता।"
शोक्कलिंगम के चेहरे पर बेवकूफी दिखी।
"क्या है मां, भैया कुछ भी बोल रहे हैं ? मुझ पर क्या गुस्सा है?"
"मेरी पिताजी की उम्र है आपकी ! मुझे क्या गुस्सा है आपके ऊपर ! इस उम्र में भी आप जो विवेकहीन जैसा व्यवहार कर रहे हैं उसे देखकर आश्चर्य होता है।"
"क्या बोल रहा है भैया अम्मा ?"
"यह देखो शोक्कालिंगम, मुझे देख कर बात कीजिए। आपके बारे में पता नहीं क्या क्या बातें मैंने सुनी है। वह सब आपका अपना स्वयं का व्यवहार है इसलिए मैं बीच में नहीं पड़ा। आप अपनी कलाबाज़ियां अपने गाँव वालों तक ही सीमित रखें। बाहर से आने वाली एक लड़की निराधार अवस्था में जो है उससे खेलना शुरू मत कीजिए। उसके साथ आपने मुझे भी घसीट लिया यह ठीक नहीं है !"
"भैया तुम क्या बोल रहे हो मुझे अभी भी समझ में नहीं आया !"
अम्मा मुंह में लड्डू रखा है जैसे चुप बैठी रही।
"मैं क्या बोल रहा हूं आपके अच्छी तरह समझ में आ रहा है। आपने उस लड़की के पास जाकर यदि डराया तो मैं आप को नहीं छोडूंगा। वह अभी भी मेरी पेशेंट है। वह असमंजस की स्थिति में अनाथ जैसे है। उसको आधार देकर उसके जीवन को सेट करना हमारा काम है यह हम सब ने मिलकर फैसला किया था । अब आप इस बात से मना नहीं कर सकते..."
शोक्कलिंगल एक नकली हंसी हंसे।
"उसे मैं नहीं भूला भैया। कितना आधार देना है वह भी तो है ना !"
"नहीं ! मदद करने के लिए कोई सीमा नहीं होती !"
"गांव के लोग तो अपने तरह से देखते है ना भैया !"
"फिर आपको यह ज्ञानोदय अभी आया है क्या ? आप जो कुछ कर रहे हो सब आँख बंद करके कर रहे हो ?"
"यह देखो भैया, अपने बीच क्यों बेकार की बातचीत ? तुम उस लड़की को देखने जाते हो तो लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। आपकी मां ने भी आपके लिए बहुत से किले अपने मन में संजोए होंगे । एक बिना गांव, नाम नहीं जानने वाली एक अनाथ लड़की के लिए अपने गौरव को खराब करना अच्छा नहीं है....."
"मेरे परिवार के गौरव के बारे में मुझे चिंता है मिस्टर शोक्कलिंगम ! एक लड़की ही बिना आधार के है इसलिए उसका कोई गौरव नहीं है यह मतलब नहीं है !"
"क्यों अम्मा ? आप ही अपने लड़के को बताइए।"
"क्या बताना शोक्कलिंगम ? अच्छा हुआ आप डॉक्टरी के धंधे में नहीं गए। नहीं तो गोत्र, वंश पूछ कर ही तो पेशेंट की नाड़ी को देखते।"
कोई बड़ाचुटकुला सुन लिया हो ऐसे शौक्कलिंगम हंसे।
"अम्मा यह सब आपको मजाक लग रहा है। नाड़ी को देखने की जरूरत ना होने पर भी एक लड़की को मिलने जाना जिसके बारे में पूरा गांव प्रश्न पूछ रहा है ?"
"जरूरी है या जरूरी नहीं है यह मुझे ही मालूम है। इसमें आपका बदमाशी से हिस्सा लेना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।
आप दोबारा लावण्या के घर गए तो और कुछ कहकर उसको परेशान किया तो मुझे बहुत गुस्सा आएगा। आपकी उम्र हो गई है, किसी तरह की बदमाशियों में मत पड़िए। चलो मां चलते हैं।"
वह अपने गुस्से को वश में न कर पाने के कारण, मुड़ कर भी ना देख कर कार की तरफ चल कर जाने लगा। कार को खोलते समय शोक्कलिंगम मां से कुछ कह रहा है यह सुनाई दिया।
"खेत को जोतते समय सीताजी मिलीं ऐसा रामायण में बोलते हैं। सीता की परंपरा क्या है सबको पता है शोक्कलिंगम ?"
आनंद आश्चर्यचकित रह गया, अम्मा के जवाब को सुनकर। उसके शरीर में सिहरन आ गई। अम्मा का मन इतना विशाल है ? इतनी हंसी और हास्य के पीछे विशाल मन, ऊंची सोच जीने के लिए करुणा वाला मन है! उसके मन में एक भावना बहने लगी। ओह, अपनी मां इतनी महान है उसे लगा।
अम्मा बिना कुछ बोले आकर बैठ गई। उनके शब्दों का मतलब मुझ पर रखा हुआ विश्वास ही इसका कारण है, नहीं तो लावण्या ने अम्मा को प्रभावित कर दिया हो उसकी समझ में नहीं आया। अम्मा का पूरा सपोर्ट हैं फिर मुझे कोई फिक्र नहीं है ऐसा सोच उसके मन में एक समाधान की उत्पत्ति हुई।
अध्याय 9
'लावण्या के बारे में क्या सोचती हो'ऐसा अम्मा से पूछने के लिए उसका मन हो रहा था। मां मुंह बंद करके बैठी रही।
"अम्मा क्या सोच रही हो ?" उसने पूछा तो मंगलम धीरे से मुड़ कर उसे देख हंसी।
"सब कुछ जैसे अविश्वसनीय कहानी जैसा है।"
वह क्या वह पूछ ना सका ।
"उस लड़की का यहां आना पुरानी बातों को भूल जाना...."
तुम्हारे मन को बदल देना ऐसे अम्मा ने नहीं कहा-परंतु सोचा होगा ऐसा लगता है।
"कहानी सब सच की ही तो छाया होती है ? फिर सच और भी दिलचस्पी वाला नहीं होगा ?
अम्मा ने कोई जवाब नहीं दिया। कोई गहरे सोच में डूबी हुई मालूम हो रही थी । उसकी बातें उसको सुनाई नहीं दिया ऐसा लगता है।
'तुम्हारे लिए बहुत सारे सपने देखा था तुम्हारी मां ने' ऐसा शोक्कलिंगम बोला उसे याद आया। अम्मा का क्या-क्या सपना रहा होगा ? अपने आने वाली बहू के बारे में उसने क्या-क्या कल्पना कर रखी होगी ? लावण्या को देखने के बाद कुछ धोखा तो हुआ होगा क्या ? उसे कोई धोखा नहीं हुआ होगा ऐसा उसने सोच लिया। उसे एक आश्चर्यजनक खुशी ही मिली होगी। लावण्या को देखने के बाद, वह बिना नाम, बिना गांव के नाम यह बात ही बदल गई होगी। यदि ऐसा नहीं था तो सीता और रामायण के बारे में बोलने की क्या जरूरत थी?
घर आते ही उसका मन थोड़ा हल्का हुआ और वह अपने काम करने के लिए बैठ गया।
उसकी मां एक मुस्कान के साथ उसके सामने आकर खड़ी हुई।
"क्या है अम्मा ?"
"मैंने एक लड़की तुम्हारे लिए देख रखी है। वह मुझे पसंद है। तुम क्या कहते हो ?"
"उसके कुल, गोत्र सब के बारे में जानकारी ले ली क्या ?"
"उन बातों की जरूरत नहीं है।"
"क्यों मां ? ऐसी क्या खूबी है लड़की में ? क्या नाम है ?"
"नाम ही नहीं है ।"
"बहुत अच्छा है, बिना आईडेंटिटी के एक लड़की ? मुझे नहीं चाहिए!"
"नाम में क्या रखा है ? एक गुलाब को किसी भी नाम से बोलो तो क्या ! उसकी सुंदरता कम हो जाएगी एक कवि ने बोला है ना !"
"अरे वाह ! तुम इतनेअच्छे से शेक्सपियर और वाल्मीकि का उदाहरण दे देती हो ? मैं तो सोच रहा था तुम्हें तिरुपुकर(तमिल नाडु के संत) का भजन करना ही आता है।"
"चल छोड़ मेरे बारे में, मैंने जिस लड़की को देखा है उससे शादी करने के लिए तुम्हारी सहमति है क्या ?"
"तुमने देख रखा है तो ठीक ही देखा होगा, क्यों मां, कभी मैं तुम्हारे खींचे हुए लकीर को पार किया है क्या ?"
अम्मा जोर-ज़ोर से हंसने लगी। वह जल्दी से अपनी मां के गले में हाथ डाल कर लटक गया।
"ओ मां तुम्हारे जैसे कोई कैसे हो सकता हैं ?"
उसकी आंखों में अचानक आंसू आ गए।
मंगलम अपनी खुशी को छुपा कर हंसी। फिर अचानक याद आए जैसे बोली: "यह लो आनंद। एक पत्र आया था आज मैं देना भूल गई।"
उसको एक नीले रंग का लिफाफा थमाया।
उसने उस लिफाफे को पलट कर देखा। मुंबई का पता था, के. रघुपति लिखा था।
जानने वाला नाम नहीं लगा। कोई पुराना दोस्त होगा क्या उसने सोचा इतने में टेलीफोन बजा।
दूसरी तरफ से निर्मला की तीखी आवाज सुनाई दी।
"एक इमरजेंसी केस है। तुरंत आ सकते हैं ?" बोली।
उसने सब विवरण पूछ लिया। सिजेरियन ऑपरेशन करने वाला केस है समझ में आ गया। तुरंत ध्यान देने की बात है समझ में आ गई।
"अभी आ रहा हूं।"
रात के खाने के लिए मेरा इंतजार ना करना ऐसा मंगलम को कहकर वह पत्र को मेज के ड्रोयर में डालकर जल्दी-जल्दी रवाना हुआ।
उसके सोचने से भी ज्यादा आसानी से केस खत्म हुआ। अस्पताल से निकलते समय उसका मन तृप्त तथा उत्सुकता भी थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। घर पैदल चलते हैं। पैदल जाकर ही लावण्या को देखकर अम्मा के विचारों को उससे कह दे तो क्या उसे लगा ? लावण्या के बारे में सोचते ही उसका दिल पंख लगाकर दौड़ने लगा उसे स्वयं को आश्चर्य हो रहा था। यह सिर्फ कोई आकर्षण के कारण पैदा हुआ नहीं हुआ उसने ऐसा सोचा। यह अंतरात्मा से उत्पन्न हुआ है। युग युगांतर से आने वाला जैसे.....
वह अभी तक पीपल के पेड़ को पकड़कर खड़ी थी उसको बड़ा आश्चर्य हुआ।
"हेलो !"
उसको देखते ही उसका चेहरा एक प्रकाश से चमकने लगा।
"इस समय यहां क्यों खड़ी हैं आप ?"
"नींद नहीं आ रही है !"
"क्यों, अब मन कैसा है ? इस शहर को छोड़कर चले जाएं ऐसा लग रहा है ?"
"नहीं !" उसके सिर हिलाने में शर्म दिखाई दे रही थी।
वह अपनी आवाज को धीमी करके बोला "आप इस गांव को छोड़कर नहीं जा सकती ऐसा मेरी मां आपको बांधने की सोच रही है लावण्या !"
वह थोड़े आश्चर्य से उसकी तरफ देखी।
"मेरी अम्मा को भी आपको ही बहू बनाने की इच्छा है !"
उसने जल्दी से अपने लाल हुए चेहरे को दूसरी तरफ कर लिया।
उसको अचानक उसकी जीभ सूख गई ऐसे लगा। खड़े भी नहीं रह सकते ऐसे एक कमजोरी लगी।
"लावण्या, क्या तुम इस के लिए राजी हो ?"
उसने उसके चेहरे को नहीं देखा । कंपाउंड के सरिये को पकड़कर खड़ी उसकी उंगलियां कांप रही थी जिसे उसने देखा। जल्दी से उसने उस पर अपनी अंगुलियों को रखकर दबाया।
"बोलो लावण्या ! तुम इस बात के लिए राजी हो ?"
उसने धीरे से चेहरे को घुमाया । उसकी आंखें नम थी।
‘हाँ' ऐसे सिर को हिलाई।
"आपकी मां इतने बड़े दिल की हैं मुझे नहीं पता था।"
उसने जल्दी से बोला: "तुम्हें देख कर कोई पश्चाताप से लिया हुआ फैसला नहीं है लावण्या !"
वह हंसी।
"मालूम है। फिर भी मुझे स्वीकार करने के लिए आपके अम्मा का ह्रदय बड़ा विशाल होना चाहिए।"
"इसमें मुझे कोई क्रेडिट नहीं मिलेगा ?"
उसके गाल में डिंपल पड़ा "होगा, समय आने पर उत्तर दूंगी!"
हंसते हुए हाथ हिलाते हुए घर की तरफ रवाना हुआ। उसका मन आकाश में उड़ रहा था। पूरी दुनिया ही रमणीय हो गया उसे ऐसा लगा। सब सुंदर हो गया, इस समय शोक्कलिंगम भी सामने आ जाएं उसे भी आलिंगन कर ले जैसे उसका मन अद्भुत हो गया !
आज उसे शंकर द्वारा बनाया गया खाना बहुत ही अच्छा लगा। अम्मा की साड़ी अम्मा की हंसी जैसे ही चमक रही थी।
उसके खाना खाने के बाद अम्मा ने पूछा "वह पत्र किसके पास से आया था ?"
"ओ, मैं तो भूल गया ! उसे मैंने अभी तक नहीं पढा !"
वह ड्रोयर को खोलकर पत्र को निकाल कर पढ़ने लगा।
पत्र अंग्रेजी में टाइप किया हुआ था।
पत्र को पढ़ते ही वह सदमे में चला गया।
वह जाकर कमरे के दरवाजे को बंद करके पलंग पर आकर बैठकर पत्र को पढ़ने लगा। मुंबई से आया पत्र था।
बहुत ही बढ़िया अंग्रेजी में लिखा हुआ था।
'मेरा नाम रघुपति है। पिछले साल तक अहमदाबाद में था। एक साल से अमेरिका में हूँ । मेरी पत्नी उमा अहमदाबाद के एक स्कूल में काम करती थी। वह एक साल खत्म होते ही वह अमेरिका आने वाली थी। पिछले महीने से वह मिल नहीं रही ऐसे खबर मिली। मैं तुरंत भारत आ गया। पूछताछ करने पर पता चला वह दक्षिण में कर्नाटक घूमने की सोच कर चली गई, उसके बाद उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला यह भी मालूम हुआ। उसके मां-बाप नहीं है। दूर के रिश्तेदार किसी का भी पता नहीं है। मुंबई में मैं अपने दोस्त के साथ रह रहा हूं। आज अचानक आपके गांव में हुए एक बस दुर्घटना के बारे में और आपके चिकित्सालय में एक लड़की है उसके बारे में किसी ने बताया। दक्षिण में एक कोने के एक गांव में मेरी पत्नी फंसी होगी यह मेरी समझ में नहीं आ रहा। फिर भी एक लालच में इसे लिख रहा हूं। उस लड़की को पुरानी बातें कुछ भी याद नहीं है ऐसा उन्होंने बोला। इसी वजह से वह लड़की इस जगह पर वापस नहीं आई ऐसा मेरा अनुमान है
उमा अच्छी गोरी और सुंदर हैं । प्रेम और अपनत्व से व्यवहार करने वाली लड़की है । 32 साल की है। तमिलनाडु की लड़की है। M.A. पास है। तमिल की कविताएं, पेड़, फूल और पक्षी उसे बहुत पसंद है। मेरे पास जो फोटो था वह पुलिस के पास दिया है। इस समय मेरे पास कोई अच्छी फोटो नहीं है। आपके विवरण सहित आपके जवाब की मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूं..... मेरी फिकर आप समझ सकेंगे ऐसा मैं विश्वास करता हूं।"
अध्याय 10
आनंद ने कुछ सोचते हुए पत्र को बंद किया। इस पत्र ने जो सदमा दिया है उससे बाहर निकलना नहीं हो सकता उसे लगा। ऐसा एक सदमा ! अचानक ऊपर से एक नक्षत्र सिर के ऊपर गिरा जैसे ! अभी तक मैं थोड़ा पागलपन में भटक गया उसके समझ में आया। उसकी शादी हो गई हो सकता है मुझे यह बात क्यों नहीं समझ में आई ? शादी होने के कोई भी तो पारंपरिक चिन्ह उसके ना होने के कारण एक अज्ञानता में रह गया ? नदी के बाढ़ में उसका मंगलसूत्र गिर गया होगा। शायद किसी ने चोरी कर ली होगी। अंगूठी भी गिर गई होगी। कॉलेज की लड़की जैसे दिख रही थी। उसकी सुंदरता को देखकर सुंदर, हंसी को देखा, उसके मां-बाप के बारे में भी सोचकर देखा परंतु वह शादीशुदा है और एक पति उसका इस दुनिया में होगा ऐसा मुझे नहीं लगा?
एम.ए., पढ़ी है। इसीलिए इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल रही है। कविता उसे पसंद है। पेड़ों से उसे लगाव है....
ओह.... ! यही है..... यही है वह। गोरी, अच्छी सुंदर.... यही है।
लावण्या, तुम दूसरे की पत्नी हो।
उसका बिलख-बिलख कर रोने का मन हुआ। सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर यह अन्याय है ऐसा जोर-जोर से चिल्लाए ऐसा उसे लगा। इतने दिनों इन इच्छाओं के बोझ को लादे.... बड़े-बड़े सपने बांधकर आकाश में उड़ता रहे.... वह सब.... व्यर्थ..... अट्ठाईस साल तक बिना किसी बेहोशी के रहे इस मन को इस तरह से भटकने की जरूरत नहीं थी। उसे यहां नहीं आना चाहिए था।वह आई वही नहीं अपने आप की पूर्व स्थिति को भूली हुई और स्थिति में आपसे शादी करने को तैयार हूं बोलने लायक निकटता तो नहीं आई होती.... इतनी क्रूरता से भगवान उनसे ना खेला होता। जानबूझकर धोखा देने जैसा ..... कितना बड़ा दंड के लिए मैंने ऐसी कौन सी गलती थी ?
लावण्या- तुम दूसरे की पत्नी हो- यह उसको मालूम हो जाए तो उसे कैसे लगेगा ?
सोच के देखने में ही उसे डर लग रहा था । फूल जैसा उसका मन टुकड़ों-टुकड़ों में टूट जाएगा। इस सदमे को वह.... कैसे सहन कर सकेगी ?
वह आंखों को बंद करके सोच में बहुत देर डूबा। मुझे अब क्या करना चाहिए ? एक इज्जतदार सभ्य व्यक्ति के लिए क्या करना चाहिए ?
अचानक मन में एक वक्र बुद्धि आई। मुझे क्यों सभ्यता से पेश आना है ? इस विधि ने मुझे कुरूप जैसे धोखा दिया तो मैं क्यों नहीं होशियारी दिखाकर कुछ कर लूं ?
रघुपति को जवाब देने की जरूरत नहीं है। तुमने जो वर्णन किया है ऐसी कोई लड़की यहां पर नहीं है ऐसे लिख दो। रघुपति के पत्र के बारे में किसी को भी पता ही ना चलने दे.....
अपने ही विचारों को देखकर उसे लगा मुझे क्या हो गया । कौन सा शैतान आकर मेरे मन में घुस गया ? इस तरह के असभ्य, विचार कैसे उठे ? दो-तीन महीनों में मुझे एकदम पागल कर देने वाली के ऊपर उसके पति को कितना प्रेम और स्नेह होगा ! उसे देखे बिना। उसके बारे में कुछ भी पता ना चलने पर वह कितना तड़पा होगा ? कितने बड़े दुख में डूबा होगा ?
आनंद को अचानक जोर से हंसना चाहिए कैसे लगा। कितना अजीब स्थिति है उसकी ! मिस्टर रघुपति, आप भाग्यशाली हैं। मेरे पास आपकी पत्नी आने का तात्पर्य मुझे अभी समझ में आया। आप की वस्तु को सुरक्षित आपको वापस देना है ऐसा इसीलिए यह आपका भाग्य है इसका कारण मेरे समझ में आ गया। वह किसी और के पास चली गई होती तो निश्चित रूप से वह आपको नहीं मिलती।
उसकी आंखें पनीली हो गई थी जिसे महसूस कर वह आश्चर्यचकित हो गया। उसे उससे मिलकर बात करने तक इस बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है ऐसा उसने सोचा।
किसी बहुत ही नजदीकी रिश्तेदार के मर जाने पर अनायास ही अपने आप आंसू आ जाते हैं। आज इस पत्र को पढ़ते ही एक बहुत बडी दुख की खबर सुने जैसे मेरा दिल घबरा रहा है।
वह बहुत देर तक चिंता में डूबे रहने के बाद उठा। रघुपति को सामने देखकर बातें करने तक इसके बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है उसने ऐसा सोचा।
उसने मुंह धोकर पानी को बार-बार अपने चेहरे पर उछाला और मन में बोला
'आई है वटूडू बेस्ट इट ! एक समस्या को छोड़ कर भाग जाना मूर्खता है उसे होशियारी से संभालना ही विवेक है ऐसा उसने कल लावण्या को बताया था उसे याद आया। हो... हो..... करके हंसना चाहिए उसे ऐसा लगा। अभी दिमाग में जो समस्याएं हैं उसे कैसे संभालूं? मैं हार गया यह निश्चित करने के पहले विवेक से सोचना चाहिए। उसके मन में एक विचार उठा आदमी कितना कमजोर है। जे कृष्णमूर्ति ! आपके जीवन में आपको ऐसे कोई समस्याएं नहीं आई होगी। इसीलिए आपने इतने आराम से वेदांत के बारे में बोलते हो !
उसने अपने आपको किसी तरह संभाला और अस्पताल के लिए रवाना हुआ। मुझे कुछ नहीं हुआ। मुझमें कोई भी आश्चर्य की बात को संभालने के लिए हिम्मत है इसे बार-बार दोहराता रहा। परंतु दिल में कोई चीज खुल गई ऐसा भ्रम पैदा हुआ। उस दिन अस्पताल के काम में मन नहीं लगा।
'मेरी चिंता आप समझोगे ऐसा सोचता हूं'
समझ नहीं आ रहा है रघुपति। बहुत अच्छी तरह समझ आ रहा है। मुझे समझ में आ रहा है इसीलिए तो मुझे इतनी पीड़ा.... वह तुम समझोगे ?
जरूरी केस कुछ ना होने के कारण सिर दर्द हो रहा है कहकर वह घर रवाना हो गया।
"डॉक्टर को उस पीपल के पेड़ के पास जाते ही सिर दर्द उड जाएगा !" निर्मला अंदर किसी से बोल रही थी सुनाई दिया।
इस गांव में अभी लावण्या और उसकी बात ना करने वाले ही कोई नहीं है यह सोचते ही इस तरह के किस संभावित स्थिति में मैं फंस गया सोचने लगा और एक अपमान की भावना उसे महसूस हुई।इन सब बातों को मैं कैसे संभालूंगा ?
लावण्या के घर को पार कर जाने का उसका मन नहीं हुआ। एक छोटा सा प्रयास करके देखेँ सोच उसने गाड़ी रोकी।
गाड़ी की आवाज को सुन लावण्या दौड़कर आई। उसके चेहरे पर निष्कपट जो खुशियां दिखी उसे देख उसे उस पर दया आई। अरे यह उस सदमे को कैसे बर्दाश्त कर पाएगी ?
"हेलो उमा !"
वह उसे एक क्षण देख कर हंसी।
"क्या बेहोशी में है ? मेरा नाम भी भूल गए?"
"ओ सॉरी ! कुछ सोच में था।"
मैं अंदर घुसा।
"वह उमा कौन है ?"
"मालूम नहीं।"
"लावण्या, तुम्हारे पास एटलस है क्या ?"
"है।"
"जरा लेकर आना।"
वह लेकर आकर दी।
वह भारत के नक्शे में अहमदाबाद को दिखाकर पूछा "इस जगह गई हो क्या ?"
उसने उसको घूर कर देखा।
नहीं "क्यों?"
"वहां एक मेडिकल कांफ्रेंस है।मैं जाने वाला हूं।"
"कब ?"
"अगले हफ्ते। वहां एक रघुपति मेरा दोस्त है उसके साथ रहूंगा।"
उसने बड़े ध्यान से उस की तरफ देखा। उसके चेहरे पर कोई बदलाव नजर नहीं आया।
"कितने दिन रहोगे ?"
"एक हफ्ता।"
उसकी आंखों में घबराहट साफ नजर आई।
"एक हफ्ते के लिए !"
उसके ऐसे उम्मीद के बिना वह अचानक उसके पास आकर उसके कंधे को छूने लगी।
"आनंद ! एक हफ्ता आपको देखे बिना मैं नहीं रह सकती ?"
उसके शरीर में कंपन हुआ। ऐसा कल होता उसके हाथ लगने से मन में एक प्रवाह पैदा होकर बहने लगता। आज कुछ बीच में रुकावट खड़ी हो गई।
वह तुरंत थोड़ा सरक गया।
"मरकदम बाहर गई हुई है !" कहकर वह हंसी।
इस निष्कपट हंसी को देखकर, 'हे भगवान मुझे शक्ति दे हिम्मत दे।'
और अधिक देर यहां बैठे रहा तो मैं अपने को भूल जाऊंगा उसे डर लगा।
"मैं जल्दी आ जाऊंगा लावण्या। डोंट वरी। मैं जल्दी से जाकर एक केस को संभालने के लिए जा रहा हूं फिर आजाऊंगा।" कह कर रवाना होते समय उसके माथे पर मोती जैसे पसीने की बूंदें आने लगी।
वह अपने घर पहुंचते ही अपने कमरे में जाकर जल्दी से दरवाजा बंद करके लिखना शुरू किया।
'प्रिय रघुपति को:
एक बार वह अपने मित्र के बच्चे को स्कूल में एडमिशन दिलाने गया। वहीं पर उसकी मुलाकात उससे हुई। वह एक टीचर थी। पहली बार मिलते ही उसने उसके दिल पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया। वह धीरे-धीरे उसको समझा। उसके मां-बाप एक विमान दुर्घटना में 3 साल पहले मर गए थे। उसके पिता एक बहुत बड़े राजकीय पद पर थे। मां-बाप के मरने के बाद वह अहमदाबाद में अपने दूर के रिश्तेदार के घर में रहती थी।
उसने उससे अपना संबंध बनाया उस के रिश्तेदारों से मिलकर अपनी इच्छा प्रकट की । बिना किसी झंझट के आराम से शादी हो गई। उसके बाद 2 साल.... बड़े आराम से अद्भुत ढंग से गुजरे"..!
अचानक उसे अमेरिका में एक अच्छी नौकरी मिली। यह वर्ष पूरा करके मैं स्कूल से रेजिग्नेशन देकर अमेरिका आ जाऊंगी उसने कहा।
उसने सोचा उससे क्या फर्क पड़ता है उसको छोड़ कर वह चला गया। उसका फैसला इतना गलत हो गया ?
'आपके साथ वह खुश थी क्या ?'
वह अपने माथे पर शिकन डालकर सोचने लगा।
उसे पता नहीं चला। अब कभी खुशी नहीं मिलेगी उसे ऐसे लगा। किसी भी दिन उसके चेहरे पर कोई शिकन, कोई कमी उसने नहीं देखी। बहुत सोच कर देखा वह खुश थी क्या उसके समझ में नहीं आ रहा था । बीच-बीच में पेड़ों, फूलों को ढूंढते हुए अकेले जाकर उनके पास खड़े होकर रहना उसे अच्छा लगता था। वह कविताओं को पसंद नहीं करता था जबकी वह पेड़ के नीचे बैठकर घंटों पढ़ती थी यह गुण उसमें था। उस समय वह उमा दूसरी दुनिया में रहती थी ऐसा भ्रम उत्पन्न होता था। यह निश्चित तौर पर उसके गायब होने का कारण हो ही नहीं सकता ऐसा वह अपने अंदर कहने लगा। पति पत्नी के बीच कितने लोगों का एक जैसा टेस्ट होता है ?
अध्याय 11
गुणों में कोई अंतर ही न हो तो जोड़ी बन सकती है क्या ? जहां तक उसे पता है उमा में कोई भी कमी नहीं थी। बिना बोले अचानक गायब होने लायक कोई भी कमी मैंने भी नहीं रखी......
"रघु......!"
जल्दी से वह अपने स्वयं की स्थिति में आया। कमरे के दरवाजे पर उसका दोस्त खड़ा था।
"क्या है ?"
"खाना खाने आ रहे हो क्या ?"
"भूख नहीं है संपत......"
संपत के नजर में एक सपना दिखाई दिया।
"यह देखो रघु इतने दिनों इस तरह ठीक से खाना खाए बिना सोए रहोगे ? हमसे जितना बना वह सब कोशिश हमने करके देख लिया। भगवान से ही तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए......."
कुछ देर बिना कुछ बोले रघुपति आकाश को देखता हुआ खड़ा रहा।
"वह जीवित नहीं है पक्का पता चल जाए तो भी ठीक है ऐसा लगता है संपत। जिंदा है इस उम्मीद के कारण कहां पर फंसी हुई है क्या कष्ट पा रही है यह फ़िक्र है....
"इसलिए तो कह रहा हूं रघु। यह तुम्हें बहुत बड़ा दुख है मैं मानता हूं। परंतु तुम दुखी होकर बिना खाना खाए, बिना सोए, बिना नौकरी पर गए रहोगे तो कुछ फायदा होने वाला नहीं। धीरे-धीरे तुम्हें ही अपने आप को संभालना चाहिए....."
"यह बहुत ही कष्टदायक काम है संपत।"
"दुख को अनुभव करने पर ऐसा ही होता है रघु। उस सब से पार जाकर देखने के सिवा दूसरा कुछ नहीं है यह दुख तुम्हें ही खत्म ना कर दे। अच्छी बात है रघु....."
"तुम जो कह रहे हो वह सुनने में बहुत ही आसान लगता है संपत। परंतु मेरा मन बहुत ही बल हीन है कमजोर है। ऐसे सदमे को बर्दाश्त करना आसान नहीं है...."
"यू मस्ट ट्राई। मैं जो कह रहा हूं उसे तुम गलत मत लेना रघु। तुम मेरे घर में जितने दिन चाहो रह सकते हो। परंतु तुम्हें वापस अमेरिका जाकर अपने काम को ज्वाइन करना है तभी तुम्हारे मन में थोड़ी तसल्ली पैदा होगी ऐसा मैं सोचता हूं।"
रघुपति की निगाहें फिर से आकाश की तरफ गई। बहुत देर तक मौन रहा जैसे बीच की दूरियां बढ़ी। उसका जवाब बहुत धीमी आवाज में आया।
"तुम जो कह रहे हो वह बिल्कुल सही है। दुख में मैं बुरी तरह से खत्म हो जाऊं इससे बचना चाहिए। स्वयं का पश्चाताप भी इसका कारण है मुझे लगता है। दुख के बारे में सोचते रहने से कोई फायदा नहीं है। आई मस्ट गेट ओवर इट. यहां आए मुझे तीन महीने हो गए। अभी तक उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला। अगले हफ्ते अमेरिका वापस चला जाऊंगा।"
"मैं यहां कोशिश करता रहूंगा......"
"थैंक यू......!'
"खाना खाने आ रहे हो ?"
"आ रहा हूं।"
उन लोगों के खाना खाते समय संपत की पत्नी कमला ने बोला "आज रात को टीवी में एक हिंदी नाटक आ रहा है देखोगे ?"
"मुझे इंटरेस्ट नहीं है क्या नाम है ?"
"मयूर पंख। कमरे में ही बंद रहने से तो थोड़ा अच्छा नहीं है ?"
उसने सिर ऊंचा करके कमला को देखा। यह और संपत रोज मेरी स्थिति के बारे में बात करते हैं उसे ऐसा लगता है।
वह हल्का सा हंसते हुए बोला "ठीक” है।
उस रात उस नाटक ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं परंतु मन में एक बाधा भी उत्पन्न कर दी।
ऐसा सचमुच के जीवन में होता है क्या ? उनमें आपस में बड़ी चर्चा हुई।
"विश्वास ना करने लायक कहानी" कमला बोली। "जो त्याग कर सकता है वही प्रेम भी कर सकता है। स्वार्थ के रहने से वह प्रेम नहीं है।"
"प्योरली ड्रैमेटिक" संपत बोला। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तभी एक समाचार मिला।
श्री सभानायकम पहले से एक जानकार थे। किसी काम से उन्हें देखने आए। बातों ही बातों में संपत ने उनसे पूछा "गांव में सब ठीक हैं ?"
"अरे ऐसा क्यों पूछ रहे हो ! एक बड़ी दुर्घटना में हमारा पूरा परिवार ही चला गया !"
"क्या... क्या बोले !"
"हमारी बड़ी बहन, उसका पति उसकी बेटी सभी बस में गए थे वे सब दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गए।"
"अरे ईश्वरा ! कब हुआ ?"
" हुए चार महीना हो गया। उसमें खास बात यह है हमारे पास समाचार आने में भी चार दिन लग गए। मेरे भाई के गांव से निकलकर दुर्घटना स्थल पर जाने के पहले ही उन्होंने बॉडी को दहन कर दिया। हम तो आखिरी बार उसका चेहरा भी ना देख पाए।"
"अरे बाप रे ! वे कहां से वहां गए आपकी बहन ?"
"तिरची से लौटते समय बस से रवाना हुए। रास्ते में बहुत तेज बारिश और तूफान था । वहां के नदी में बाढ़ आई हुई थी। उसमें बस डूब गई और सभी लोग खत्म हो गए।"
"सभी लोग ?"
"हां... नहीं एक लड़की उनमें से किसी तरह भगवान की कृपा से बच गई ।"
रघुपति एकदम से सीधे बैठ गए।
"कैसे ?"
"यही तो आश्चर्य है । एक लड़की जिंदा है ऐसा पेपर में देखने के बाद शायद मेरी बहन की लड़की होगी ऐसा सोच मेरे भैया भाग कर गए.... पर वह कोई और थी ?"
"कितनी उम्र की होगी ?"
"20 से 25 के बीच के उम्र की होगी ऐसा भैया बोल रहे थे।"
रघुपति के बड़े ध्यान से सुनते हुए संपत ने उस पर ध्यान दिया।
"कौन सी गांव की लड़की है वह ? उसको कोई गहरी चोट लगी है ?"
"कुछ भी पता नहीं चला । इसमें एक दया की बात तो यह है उसके सिर पर लगी है इसलिए वह लड़की पुरानी सब बातें भूल गई वह कहां की है कहां रहती थी कुछ भी पता नहीं। किसी को भी पता नहीं । तमिलनाडु के अखबारों में डाला कोई भी अभी तक आया नहीं ।'
रघुपति को इसे सुनकर सदमा लगा। "वह लड़की शायद उमा होगी क्या ? दुर्घटना घटे चार महीने हो गए। अब तक वहां होगी क्या वह लड़की ? उसे तुरंत एक योजना सूझी तमिलनाडु के एक कोने में कैसे जाकर फंसी होगी ?"
"अच्छी पढ़ी-लिखी लड़की है ऐसी दिख रही है। सिनेमा स्टार जैसे सुंदर लड़की है।"
वह सकपकाया-उमा ही होगी ?
क्यों नहीं हो सकती ? तिरुपति जाना है सोच कर अचानक कहीं से रवाना हुई हो सकती है ? उसने जल्दी से सभानायकम को देख कर बोला "वह पता, वह किस अस्पताल में है उस डॉक्टर का नाम वह सब मुझे आप दे दोगे ?"
"यह सब मुझे नहीं पता ! यह मेरे भैया को लिखकर पूछना पड़ेगा। आपको क्यों चाहिए ?"
"आपको मैं फिर विस्तार से बताऊंगा शुभानायकम।" संपत बोला "हां आप तुरंत अपने भाई को लिखकर पूछिएगा ?"
गुणों में कोई अंतर ही न हो तो जोड़ी बन सकती है क्या ? जहां तक उसे पता है उमा में कोई भी कमी नहीं थी। बिना बोले अचानक गायब होने लायक कोई भी कमी मैंने भी नहीं रखी......
"रघु......!"
जल्दी से वह अपने स्वयं की स्थिति में आया। कमरे के दरवाजे पर उसका दोस्त खड़ा था।
"क्या है ?"
"खाना खाने आ रहे हो क्या ?"
"भूख नहीं है संपत......"
संपत के नजर में एक सपना दिखाई दिया।
"यह देखो रघु इतने दिनों इस तरह ठीक से खाना खाए बिना सोए रहोगे ? हमसे जितना बना वह सब कोशिश हमने करके देख लिया। भगवान से ही तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए......."
कुछ देर बिना कुछ बोले रघुपति आकाश को देखता हुआ खड़ा रहा।
"वह जीवित नहीं है पक्का पता चल जाए तो भी ठीक है ऐसा लगता है संपत। जिंदा है इस उम्मीद के कारण कहां पर फंसी हुई है क्या कष्ट पा रही है यह फ़िक्र है....
"इसलिए तो कह रहा हूं रघु। यह तुम्हें बहुत बड़ा दुख है मैं मानता हूं। परंतु तुम दुखी होकर बिना खाना खाए, बिना सोए, बिना नौकरी पर गए रहोगे तो कुछ फायदा होने वाला नहीं। धीरे-धीरे तुम्हें ही अपने आप को संभालना चाहिए....."
"यह बहुत ही कष्टदायक काम है संपत।"
"दुख को अनुभव करने पर ऐसा ही होता है रघु। उस सब से पार जाकर देखने के सिवा दूसरा कुछ नहीं है यह दुख तुम्हें ही खत्म ना कर दे। अच्छी बात है रघु....."
"तुम जो कह रहे हो वह सुनने में बहुत ही आसान लगता है संपत। परंतु मेरा मन बहुत ही बल हीन है कमजोर है। ऐसे सदमे को बर्दाश्त करना आसान नहीं है...."
"यू मस्ट ट्राई। मैं जो कह रहा हूं उसे तुम गलत मत लेना रघु। तुम मेरे घर में जितने दिन चाहो रह सकते हो। परंतु तुम्हें वापस अमेरिका जाकर अपने काम को ज्वाइन करना है तभी तुम्हारे मन में थोड़ी तसल्ली पैदा होगी ऐसा मैं सोचता हूं।"
रघुपति की निगाहें फिर से आकाश की तरफ गई। बहुत देर तक मौन रहा जैसे बीच की दूरियां बढ़ी। उसका जवाब बहुत धीमी आवाज में आया।
"तुम जो कह रहे हो वह बिल्कुल सही है। दुख में मैं बुरी तरह से खत्म हो जाऊं इससे बचना चाहिए। स्वयं का पश्चाताप भी इसका कारण है मुझे लगता है। दुख के बारे में सोचते रहने से कोई फायदा नहीं है। आई मस्ट गेट ओवर इट. यहां आए मुझे तीन महीने हो गए। अभी तक उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला। अगले हफ्ते अमेरिका वापस चला जाऊंगा।"
"मैं यहां कोशिश करता रहूंगा......"
"थैंक यू......!'
"खाना खाने आ रहे हो ?"
"आ रहा हूं।"
उन लोगों के खाना खाते समय संपत की पत्नी कमला ने बोला "आज रात को टीवी में एक हिंदी नाटक आ रहा है देखोगे ?"
"मुझे इंटरेस्ट नहीं है क्या नाम है ?"
"मयूर पंख। कमरे में ही बंद रहने से तो थोड़ा अच्छा नहीं है ?"
उसने सिर ऊंचा करके कमला को देखा। यह और संपत रोज मेरी स्थिति के बारे में बात करते हैं उसे ऐसा लगता है।
वह हल्का सा हंसते हुए बोला "ठीक” है।
उस रात उस नाटक ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं परंतु मन में एक बाधा भी उत्पन्न कर दी।
ऐसा सचमुच के जीवन में होता है क्या ? उनमें आपस में बड़ी चर्चा हुई।
"विश्वास ना करने लायक कहानी" कमला बोली। "जो त्याग कर सकता है वही प्रेम भी कर सकता है। स्वार्थ के रहने से वह प्रेम नहीं है।"
"प्योरली ड्रैमेटिक" संपत बोला। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तभी एक समाचार मिला।
अध्याय 12
श्री सभानायकम पहले से एक जानकार थे। किसी काम से उन्हें देखने आए। बातों ही बातों में संपत ने उनसे पूछा "गांव में सब ठीक हैं ?"
"अरे ऐसा क्यों पूछ रहे हो ! एक बड़ी दुर्घटना में हमारा पूरा परिवार ही चला गया !"
"क्या... क्या बोले !"
"हमारी बड़ी बहन, उसका पति उसकी बेटी सभी बस में गए थे वे सब दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गए।"
"अरे ईश्वरा ! कब हुआ ?"
"हुए चार महीना हो गया। उसमें खास बात यह है हमारे पास समाचार आने में भी चार दिन लग गए। मेरे भाई के गांव से निकलकर दुर्घटना स्थल पर जाने के पहले ही उन्होंने बॉडी को दहन कर दिया। हम तो आखिरी बार उसका चेहरा भी ना देख पाए।"
"अरे बाप रे ! वे कहां से वहां गए आपकी बहन ?"
"तिरची से लौटते समय बस से रवाना हुए। रास्ते में बहुत तेज बारिश और तूफान था । वहां के नदी में बाढ़ आई हुई थी। उसमें बस डूब गई और सभी लोग खत्म हो गए।"
"सभी लोग ?"
"हां... नहीं एक लड़की उनमें से किसी तरह भगवान की कृपा से बच गई ।"
रघुपति एकदम से सीधे बैठ गए।
"कैसे ?"
"यही तो आश्चर्य है । एक लड़की जिंदा है ऐसा पेपर में देखने के बाद शायद मेरी बहन की लड़की होगी ऐसा सोच मेरे भैया भाग कर गए.... पर वह कोई और थी ?"
"कितनी उम्र की होगी ?"
"20 से 25 के बीच के उम्र की होगी ऐसा भैया बोल रहे थे।"
रघुपति के बड़े ध्यान से सुनते हुए संपत ने उस पर ध्यान दिया।
"कौन सी गांव की लड़की है वह ? उसको कोई गहरी चोट लगी है ?"
"कुछ भी पता नहीं चला । इसमें एक दया की बात तो यह है उसके सिर पर लगी है इसलिए वह लड़की पुरानी सब बातें भूल गई वह कहां की है कहां रहती थी कुछ भी पता नहीं। किसी को भी पता नहीं । तमिलनाडु के अखबारों में डाला कोई भी अभी तक आया नहीं ।'
रघुपति को इसे सुनकर सदमा लगा। "वह लड़की शायद उमा होगी क्या ? दुर्घटना घटे चार महीने हो गए। अब तक वहां होगी क्या वह लड़की ? उसे तुरंत एक योजना सूझी तमिलनाडु के एक कोने में कैसे जाकर फंसी होगी ?"
"अच्छी पढ़ी-लिखी लड़की है ऐसी दिख रही है। सिनेमा स्टार जैसे सुंदर लड़की है।"
वह सकपकाया-उमा ही होगी ?
क्यों नहीं हो सकती ? तिरुपति जाना है सोच कर अचानक कहीं से रवाना हुई हो सकती है ? उसने जल्दी से सभानायकम को देख कर बोला "वह पता, वह किस अस्पताल में है उस डॉक्टर का नाम वह सब मुझे आप दे दोगे ?"
"यह सब मुझे नहीं पता ! यह मेरे भैया को लिखकर पूछना पड़ेगा। आपको क्यों चाहिए ?"
"आपको मैं फिर विस्तार से बताऊंगा शुभानायकम।" संपत बोला "हां आप तुरंत अपने भाई को लिखकर पूछिएगा ?"
"ठीक है जी।" अपने पास विवरण न होने के कारण उनकी आवाज में एक अतृप्ति थी।
उनके जाने के बाद रघुपति मुस्कुराकर संपत की ओर देखा।
"यह सब प्रयत्न एक पागलपन लग रहा है संपत। मैं थोड़ा सैंन्टी हो गया।"
"अपने शांति के लिए पूछताछ करके देख लो ।"
संपत की आवाज में इतना विश्वास नहीं दिखाई दिया।
"वह अब मुझे नहीं मिलेगी। मर गई होगी एकदम से मन को बांध करके रखना संभव नहीं है संपत। यह एक मजाक जैसे है।"
संपत बिना कुछ बोले करुणा भाव से सुनता रहा।
"इन सब का कारण मेरे मन की इच्छा ही है मैं सोचता हूं। इच्छा की वजह से ही विश्वास बढ़ता है। यह दोनों मिलकर मुझे पागल कर देंगें।
"यह सिर्फ स्वार्थ की वजह से नहीं हुआ मैं जिंदगी में हार गया ऐसा एक फीलिंग मेरे मन में उमड़ता रहता है...!
"कुछ बातें मनुष्य के बस में नहीं होतीं हैं । मैं और रघु कुछ नहीं कर सकते ?"
चार महीने पहले होता तो इसके लिए मैं सेशन रखा होता। उस समय किसी भी घटना पर विश्वास करने लायक मेरा मन था।
"क्या बात है ?" कमला ने पूछा।
बात का विवरण पता चलते ही......
"यह क्या 'मयूर पंख' की कहानी जैसे है ?" कहकर वह हंसी।
"शट अप कमला ! तुम्हें कब, क्या बोलना है मालूम नहीं" संपत बोला।
"मजाक में बोली !"
"यह क्या मजाक ?"
"ओके.... ओके...!"
वह जल्दी-जल्दी जा रही थी उसे देख रघु को अजीब सा लगा। इसमें कितना बचपना है ! कल यही कैसे बिना स्वार्थ के अपनत्व से बात कर रही थी!
"उसके बोलने को तुम गलत मत लेना !"
वह जल्दी से हंसा।
"ओ... नो अभी मैं इतनी खराब स्थिति में नहीं हूं संपत !"
एक हफ्ते बाद ही वह पता मिला। डॉ आनंद रामाकृष्णन एक इतना लंबा नाम देखकर उन्हें एक बड़ी उम्र का आदमी जैसे लगा।
"एक बड़ी उम्र का आदमी छोटे से गांव में अस्पताल चला रहा है सोचने में कैसा अजीब सा है देखो। वहां बीमार रहे तो भी उसे इतने दिनों में उसे सैप्टिक, निमोनिया कुछ भी होकर ही मर गई हो तो मुझे आश्चर्य नहीं होता।"
"रघु ! तुम्हारे अमेरिका के चश्मे को थोड़ा उतार के रखना पड़ेगा ।"
"मन को कैसे उतार के रखूं बोलो अभी मुझे यही फिकर है....!"
"समय आने पर वह अपने आप उतर जाएगा।"
"शट अप कमला !" संपत बोला। दोबारा हंसी आई रघु को। अचानक कमला के ऐसे विपरीत बात करने के लिए या तो सामर्थ्य चाहिए या बेवकूफी ऐसा उसे लगा।
उस दिन रात को बहुत देर सोचकर दो-तीन बार लिखकर फाड़ कर किसी तरह एक पत्र लिखकर खत्म किया। लिखकर खत्म करते हुए भावना में बहने से उसका गला भर आया। आंखों में आंसू टपकने लगे। यह कैसे पागलपन की कोशिश, वह निश्चित रूप से वहां नहीं होगी ऐसी निराशा ने उसके मन को दबाया। उस पत्र को लेटर बॉक्स में डालकर घंटों वह उस 15वीं मंजिल के बालकनी में बैठकर आकाश को देखता हुआ कभी नीचे जो स्त्री-पुरुष, वाहन जा रहे थे उन्हें देखता रहा पर उसके मन में कुछ समझ में नहीं आ रहा था फिर भी बैठा रहा।
"वहां उमा नहीं है। मालूम होने पर क्या कर लोगे ? कमला के एक बेवकूफी भरे प्रश्न का उसने धैर्य पूर्वक जवाब दिया।
"वह मर गई ऐसा फैसला लेकर मैं अमेरिका के लिए रवाना हो जाऊंगा !"
"वह उमा होकर आपको ना पहचाने तो ?"
"नहीं पहचाने तो !"
उसने अपने आप को संभाल लिया। उसे देखते ही उसको निश्चित रूप से पुरानी यादें वापस आ जाएंगी।
नहीं आए तो ?
आएगी जरूर आएगी। कैसे नहीं आएगी। अपने शादी की फोटो को दिखाकर उसको न्याय के हिसाब से रहने की जगह कौन सी है महसूस करवाना मुश्किल का काम नहीं होगा।
यह सब समस्याएं यदि वह लड़की उमा होगी तब पैदा होगी। उमा ही नहीं हो तो फिर कोई समस्या ही नहीं।
वह तुरंत चकित रह गया। कौन सी समस्या को देखना नहीं हैं और किन्हें देखना हैं ? इस समस्या को संभालना ज्यादा मुश्किल है ?
दिमाग खराब हो गया उसे ऐसा लगा। जब भी इस कमला से बात करना शुरू करो जो थोड़ी बहुत सोच है वह भी चली जाएगी उसे लगा ।
भगवान के ऊपर भार डाल दो बड़े सरलता से संपत ने बोल दिया । कितनी भी शांति से रहने की सोचें पर मन असमंजस में पड़ जाता है ।
उस दिन शाम को एक पत्र आया। उसे पढ़कर वह घबराकर उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया । निश्चित रूप ये भगवान की दया है उसे ऐसा लगा। डॉक्टर आनंद रामाकृष्णन का पत्र संक्षिप्त में था।
'आपका पत्र मिला। चार महीने पहले एक बस की दुर्घटना में एक लड़की आश्चर्यजनक रूप से बच गई। अभी वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है। परंतु उसे पुरानी यादें नहीं है। इस कारण उसकी खबर किसे दें पता नहीं चला। उसको इस स्थिति में कहीं भी भेजना उचित नहीं है सोच यहां के स्कूल में ही उसे नौकरी दिला दिया। यहां रहने के लिए सुविधाएं भी उसे दे दी। आपने जो विवरण दिया है उसके हिसाब से यह वही लड़की है लगता है।
आप आकर देखिएगा । आते समय, यह आपकी पत्नी हैं ऐसे प्रूफ के साथ एक फोटो भी लेकर आने का अनुरोध करता हूं।
तुरंत उसका मन पंख लगाकर उड़ने लगा। विश्वास का गीत बज रहा है ऐसे उसके कानों में एक भ्रम पैदा हुआ।
संपत एक प्रश्न पूछता हुआ उसके सामने खड़ा हुआ तो उसने उसका आलिंगन किया।
"संपत, उमा जिंदा है ! वह उमा ही है। मुझे उमा मिल गई !" भावावेश में बोला।
…… ……… ……
"डॉक्टर साहब ! डॉक्टर साहब!"
आनंद ने मुड़ कर देखा।
एक आदमी उसे देख कर दौड़ा आया। शोक्कलिंगम के पन्नैय घर का मुनीम है यह वह समझ गया।
"डॉक्टर साहब ! मालिक की तबीयत ठीक नहीं है।"
"क्या हो गया ?"
"छाती की धड़कन तेज हो रही थी फिर बेहोश होकर गिर गए ।"
वह एकदम से सचेत हुआ।
"अभी आता हूं।"
वह जल्दी-जल्दी चला ।पड़ोस के गली में शोक्कलिंगम के घर में घुसने के पहले उसने सारी बातें विस्तार से मालूम कर लीं । जीभ, शरीर और मन को बस में ना करने वाले शोक्कलिंगम को एक दिन अचानक कुछ होगा यह संभावना उसे पहले से थी।
शोक्कलिंगम की पत्नी और लड़कियां रोती हुई खड़ी थी । शोक्कलिंगम अपनी वीरता को खोकर आंखों को बंद कर बिस्तर पर पड़ा था। उसकी नाड़ी की धड़कन बहुत धीमी चल रही थी।
"तुरंत अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा। गाड़ी है क्या ?"
"है साहब ड्राइवर भी है ।" शोक्कलिंगम के लड़के ने बोला।
उसने और ड्राइवर ने मिलकर उसे गाड़ी में डाला।
"खाने के विषय में बहुत ही बंदिश से रहना पड़ेगा मैंने बहुत पहले बोला, ऐसे था क्या ?"
लड़के ने सिर को नीचे कर लिया और बोला "अप्पा को किसी भी बात में कंट्रोल नहीं है डॉक्टर।"
उसकी आवाज में क्रोध और नफरत दिखाई दिया। वह दूसरे तरह का आदमी है सोच कर उसे तृप्ति हुई।
यह एक बिखरा हुआ परिवार है उसे विरक्ति से बोलते देख बहुत दया आ रही थी। शोक्कलिंगम मर जाए तो उनके लिए आंसू बहाने वाले उनकी पत्नी और लड़कियां ही होगी उसने सोचा।
अध्याय 13
शोक्कलिंगम को 'सेरीब्रेल हेमरेज' हो गया उसने निश्चय किया। इसके अलावा भी उनको अनेकों बीमारियां हैं। इससे वे छूट जाए ये बहुत मुश्किल की बात नजर आती है।
नियंत्रण में रहकर 100 साल जीने के बदले सब कुछ भोग कर 65 साल में मर जाना ठीक मानते हैं......"
उनके इस अनुभव ने सिर्फ उन्हीं को नहीं प्रभावित किया परंतु उनके आंख बंद करने से औरों को कितनी समस्या होगी उन्होंने नहीं सोचा। उन्होंने जो कड़वाहट पैदा की उसी के फलस्वरूप कडवाहट में उनका लड़का है | उसकी इच्छाएं, उसका जीवन, उसका कार्यक्रम सब कुछ इस कड़वाहट के कारण..........
अस्पताल में उनका परीक्षण कर, उन्हें जो दवाइयां देनी थी चिकित्सा करनी थी सब करके वह अपने घर के लिए रवाना हुआ। गाड़ी नहीं है उसे याद आया वह पैदल ही चलने लगा।
लावण्या के घर को पार कर ही जाना है। आज पूरे दिन लावण्या को नहीं देखा उसे याद आया। इसीलिए ही आज मन में एक उदासी छाई है। ओफ.. किस तरह के मानसिक तनाव में फंसा हूं ? अपने नजर को कहीं और ना दौड़ाकर सीधे चलने लगा।
"आनंद !"
वह हारे हुए जैसे लौटा लावण्या घर के जाली के दरवाजे को पकड़े हुए खड़ी थी।
"हेलो !" धीरे से मुस्कुरा कर वह बोला।
चांद की रोशनी मध्यम थी। उसके साथ सड़क पर जलती मध्यम रोशनी में उसने लावण्या को घूर कर देखते हुए पाया।
हेलो का जवाब ना देकर सीधे ही उसने पूछा "आज आप क्यों नहीं आए ?"
उसकी नजरों में उसके प्रश्न में अपनत्व और लालसा दिखाई दी उससे उसे कपकपी हुई।
"आज बहुत काम था लावण्या। इसीलए इस ठंड में गेट के पास खड़ी हो ?"
वह मौन रहकर मुस्कुराई। "मुझे पता नहीं आनंद। आपको देखे बिना आज मुझे घर के अंदर मन ही नहीं लगा।"
उसकी छाती की धड़कन बढ़ गई। माथे पर पसीना आया।
कह दूं क्या ?
"आप बिना बोले अहमदाबाद कॉन्फ्रेंस के लिए चले गए क्या मैंने सोचा।"
"कॉन्फ्रेंस के लिए नहीं गया !"
"हाऊ नाइस !"
उसकी आवाज में खुशी बाहर से दिखाई दे रही थी।
"वह रघुपति यहां आएंगे ऐसा सोचता हूं ।"
"कब ?"
"पता नहीं। पत्र का इंतजार कर रहा हूं।"
"अच्छी बात है। मैं सोच रही थी आप चले जाएंगे तो मैं क्या करूंगी।"
वह क्या जवाब दूं सोचता रहा।
"आनंद ! दो दिन से आप बहुत अलग से लग रहे हो ?"
"नहीं तो !"
"हां । आप मुझसे कुछ दूर चले गए ऐसा लग रहा है।"
"यह तुम्हारी कल्पना है लावण्या।"
"नहीं, आई कैन फील इट्। अचानक दो दिन से आपको क्या हो गया मैं सोच रही हूं पर समझ में नहीं आया। मुझ में अतृप्ति कोई और बात है समझ में नहीं आ रहा । यह मुझे कितना परेशान कर रहा है आपके समझ में आए तो आपको भी आश्चर्य होगा ।"
हे ! भगवान ! इसको कैसे बताऊं ? कब बताऊं ?
अभी इस चंद्रमा की चांदनी में यह ठीक से समझ ना पाए इस समय कह दूं तो क्या है ?
'लावण्या, तुम शादीशुदा हो, तुम्हारा एक पति है। जीवित है जो तुम्हारे लिए परेशान हो रहा है तुम्हारा पति-अमेरिका की नौकरी को छोड़ कर चार महीने से तुम्हारे लिए भारत में घूम रहा है ।'
कुछ है जिसने उसे ऐसा करने के लिए रोका । वह अपने सामने सदमे में आ जाऐ। वह टूट जाए उसे टूटा हुआ देखने की मुझमें शक्ति नहीं है ऐसा लगता है। 'रघुपति की पत्नी है यह पक्का मालूम होने के पहले इसको क्यों कहना चाहिए ?' वह अपने अंदर ही जल्दी से सोच लिया। पहले वह वेदनायकम आकर 'यह हमारी राधा नहीं है' कहकर मुंह लटका कर चला गया वैसे ही इस बार रघुपति आकर 'यह मेरी उमा नहीं है' कहकर नहीं चला जाएगा क्या ? उसके पहले मैं क्यों जल्दबाजी कर इसके मन में एक असमंजस पैदा करूं ?
परंतु जब तक, रघुपति यहाँ आ जाएं तब तक इससे मैं साधारण ढंग से बातचीत कर सकूंगा क्या ऐसा उसे संदेह हुआ। साधारण ढंग से कैसे रहूं उसकी समझ में नहीं आया। उसे देखते समय मन में जो भावनाओं का उभार आता है उसको कैसे दबाऊँ उसके समझ में नहीं आया।
"तुम जो नहीं है उन बातों को सोच कर अपने आप को कष्ट क्यों दे रही हो ? दो दिन से मुझे अस्पताल में बहुत काम था। मेरी तबीयत थोड़ी सी खराब है...."
वह जल्दी से उसके पास आकर खड़ी हुई।
"क्या हुआ ? इसीलिए आपका चेहरा उतरा हुआ है। बुखार तो नहीं है ?"
उसके नरम हाथ उसके शरीर पर पड़ते ही उसका शरीर गर्म हो गया। उसे जोर से आलिंगन करने का वेग उत्पन्न हुआ। 'रघुपति, जल्दी से आकर लेकर चले जाओ। मैं अपनी सभ्यता को छोड़ दूं उसके पहले लेकर चले जाओ.....'उसने धीरे से उसके हाथ को दूर किया।
"बुखार नहीं है। तुम कितनी जल्दी परेशान हो जाती हो लावण्या !"
वह हंसने लगी।
"जिसे प्रेम करते हैं उसकी तबीयत ठीक नहीं तो परेशान तो होंगे ही ।
हे भगवान !
"मैं सब बातों के लिए ऐसे घबराती नहीं हूं। कल क्या हुआ पता है ? कल वह शोक्कलिंगम फिर से आ गए। खूब पिए हुए थे। वह डॉक्टर की मां तुम्हें सीता बोलती है, तुम किस तरह की हो मैं देखता हूं। ऐसा गंदे ढंग से बात की। मैं और मरकदम दोनों ने जैसे तैसे मुश्किल से भगाया।"
सदमें के साथ उसने उसको देखा। उस दिन उनको इतनी बुरी तरह से डांटने के बाद भी अपना पूंछ हिलाना नहीं छोड़ा उसको बहुत तेज गुस्सा आया। दादाजी उसके बारे में चोर, बदमाश आदि बोलते थे उसके कारण थे अब समझ में आया। एक पैर श्मशान में रखकर भी यह कैसी इच्छाएं हैं ?
"अब तुम्हें उनके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं। वे मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़े हैं।"
उसने आंखें फाड़कर देखीं।
"क्या ?"
"पैरालिटिक स्ट्रोक आने के कारण अस्पताल में बेसुध पड़े हैं। उनको अस्पताल में एडमिट करने के बाद ही आ रहा हूं। अचानक हो गया।"
"अरे बाप रे ! बेचारा!"
"क्यों बेचारा ?"
"नहीं फिर ? मनुष्य को किस समय क्या हो जाएगा पता नहीं होने के कारण ही इतना खेल खेलता है।"
"इतने सपने और निराशाएं भी !"
उसने जल्दी से उसे देखा।
"किसे ?"
"तुम्हें और मुझको !"
"आनंद, सबको आपने वेदांत में बदल दिया !"
"यह वेदांत है समय पर मदद करता है लावण्या...... मैं आता हूं । अम्मा मेरा इंतजार कर रही होगी....."
उससे वह और कुछ भी उम्मीद करती हुई सी खड़ी रही।
"लावण्या, प्लीज !"
बस इतना सा जैसा एक नजर डाल गाल में गड्ढे पड़े जैसे हंसी....
"ओके गुड नाइट !"
"गुड नाइट....!"
फिर से चलते समय मन के साथ शरीर भी भारी हो गया, उसको चलने में ही तकलीफ होने लगी। अब उस रघुपति को ही अधिक कष्ट होगा लगता है। एक दूसरे पुरुष को अपना मन सौंपने वाली पत्नी को वह कैसे संभाल पाएगा ? इस सदमे को वह कैसे बर्दाश्त करेगा ? हे भगवान ! वह रघुपति इसका पति नहीं होना चाहिए। क्या यह संभव है? लावण्या के अंग-अंग का उसने वर्णन किया है ! गलत होगा क्या ?
हो सकता है-
होगा-
होना चाहिए-
उसे स्वयं को ही सेरीब्रल हेमरेज हो जाएगा ऐसा लगा। सर बहुत गर्म होकर सचमुच में सर बहुत दर्द होने लगा।
अम्मा को उसने शोक्कलिंगम के बारे में बताया।
"हे राम ! इतना नीच वह आदमी , वही शाश्वत हो जैसे ?"
'अब सब के मुंह से इस तरह की बात ही आएगी' उसने ऐसा सोचा। कौन नहीं सोचता कि मैं शाश्वत नहीं हूं ? मैं भी ऐसे कुछ सोचता हुआ ही लावण्या के प्रेम में पड़ा।
नहीं, फिर-फिर उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए। बाद में बुद्धि खराब हो जाएगी...... उसने सोने के पहले दो कंपोज की गोलियां लेकर जबरदस्ती सोने की कोशिश की।
अगले दिन सुबह उठते ही उसका सर थोड़ा भारी था। कंपोज की वजह से नकली नींद के कारण उसकी दोनों आंखों के नीचे दो थैली लटक रही थी। अम्मा की निगाहें उसे ही देख रही थी। “आज क्यों अजीब से लग रहे हो” ठीक है उन्होंने नहीं पूछा। आज, कोई भी कुछ पूछ ले, तो मैं कहीं फट न पड़ूं इसका उसे डर लग रहा था। वह अपने चेहरे को खूब ठंडे पानी से छपाक-छपाक करके साफ कर कॉफी पी रहा था तब एक फोन आया।
"शोक्कलिंगम बहुत सीरियस है डॉक्टर।"
उसने कुछ ज्यादा नहीं पूछा तुरंत रवाना हो गया।
"वे चले जाएंगे क्या आनंद ?" पूछे मां को उसने जीभ को पिचका कर मना कर सिर हिला दिया।
जब वह अस्पताल गया तो शोक्कलिंगम अपने जीवन के आखिर क्षण में थे। अच्छा हुआ उनका अंत जल्दी हो गया उसने सोचा। बात भी ना कर सके और सब अवयव भी काम करना बंद कर दिया तो दूसरों के अधीन रहकर उससे नफरत करने वाले बेटे की दया में रहे-उनके अच्छे दिन थे जो वे इससे बच गए।
उनके शवयात्रा में पूरे गांव ही आया हुआ था। इंस्पेक्टर धरमराजन यूनिफॉर्म में आए हुए थे।
"फटे हुए कपड़े को सी-सी कर पहनने जैसे यह आदमी बेचारा अस्पताल में आकर अपने शरीर को रिपेयर करके जाता था। कितने दिन चलता ?"
"उस आदमी में इतनी इ इतनी शौक बहुत ज्यादा इच्छा ...."
अप्पा के जाने का मुझे कोई बहुत बड़ा दुख नहीं है इस भाव से उनका लड़का कामों को कर रहा था।
"उस बस दुर्घटना के बाद यही बहुत बड़ी घटना है इस गांव में" ऐसा कोई कह रहा था।
सचमुच में है आज एक बहुत बड़ा कार्य हो गया ऐसा उसको आभास हो रहा था।
अध्याय 14
रघुपति के पास से पत्र आया, और दो दिन में आ जाऊंगा। मुंबई से चेन्नई हवाई जहाज से आकर वहां से बस के द्वारा गुरुवार के दिन बाईस तारीख को आऊंगा ऐसा लिखा था।
आज मंगलवार है- बीस तारीख
और दो दिन हैं। अभी से उसके मन में एक खालीपन है ऐसा लगा। कहीं से कुछ निकल कर बाहर आ गया जैसे......
मुंबई के हवाई अड्डे पर रघुपति बहुत ही उत्साहित दिखा। संपत और कमला उसके साथ ही थे। "शादी की फोटो ले लिया साथ में ?" संपत ने पूछा।
"ओ यस, भूला नहीं "
वह विमान में चढ़ कर बैठते ही विमान रवाना हुआ। 'अच्छा हुआ !' आज कमला ने कोई 'विपरीत बात' नहीं बोली वह एक मुस्कान के साथ सोचा।
रघुपति को उस गांव में पहुंचने में शाम के पाँच बज गए। दक्षिण भारत की गर्मी, गंदगी से भरी गलियां लंबी बस यात्रा जिसकी उसको आदत नहीं उसका असर बहुत तेज सर दर्द करने लगा। अपने हाथ में छोटे बैग को लेकर उतरा। बस अड्डे पर ही एक होटल था। गरम कॉफी पीने के बाद ही कुछ कर सकते हैं उसे ऐसे लगा। यह उस होटल के अंदर गया और खाली सीट देखकर वहां बैठ गया। होटल में बहुत से लोग बैठे हुए थे। उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। सफेद लूंगी और सफेद शर्ट सिर पर भभूति लगाया हुआ छोटा सा लड़का आकर उसके पास खड़ा हुआ।
"गरम उपमा, दोसा, बोंडा सब है। आपके लिए क्या लाऊं ?"
"गरम एक कप कॉफी बहुत है।"
"इस होटल का बोंडा बहुत स्पेशल है एक प्लेट खा कर देखिए ।"
उसे अच्छा लग रहा था छोटा बच्चा इतने अपनत्व से खातिरदारी कर रहा था।
वह धीरे से हंसते हुए बोला "ओ. के. एक प्लेट लेकर आ जाओ पर देर नहीं लगाना चाहिए।"
"उड़ कर आऊंगा। परंतु ताजा बना कर लाऊंगा। 10 मिनट लगेगा।"
"ठीक है ।"
वह हाथ धोने की जगह जाकर अपने मुंह को अच्छी तरह से धोकर अपने बालों को ठीक किया। इन चार महीनों में उसका शरीर काला और पतला हो गया ऐसे उसे लगा। परंतु इस कारण से वह मुझे ना पहचान सके ऐसा नहीं होगा। आज वह देखने जा रहा है वह उमा ही है उसे निश्चित रूप से उसका मन कह रहा है और इस बात पर उसे आश्चर्य भी हो रहा है। कोई एक बात बिल्कुल पक्की लग रही है- उमा यहीं है।
वह अपने स्थान पर जाकर बैठा और उत्सुकता से चारों तरफ बैठे लोगों को दिखने लगा । उत्तर भारत मेंपैदा होकर वहीं पढ़ लिखकर अपने मां-बाप के मर जाने के तमिलनाडु से उसका कोई संबंध ही नहीं रह गया।
उमा को तमिल भाषा से प्रेम था इसलिए वह तमिल की पत्रिकाएं खरीदती थी। तमिल में वह अब भी पढ़-लिख नहीं सकता। उमा को यह सब कमी महसूस हुई होगी क्या ? 'सिल्ली' वह अपने आप ही बोला।
"अब तक उस लड़की के बारे में कोई बात पता नहीं चली बोल......"
वह जल्दी से मुड़ कर देखा। एक सज्जन अपने पीछे के लंबे बालों को समेट रहे थे भभूति और कुम-कुम उनके माथे पर लगा था। उसे लगा वह कभी-कभी तमिल पिक्चर में देखता है जैसे वे तमिल पंडित जैसे लगे। उनके साथ कोई और भी था।
"आज तक कुछ पता नहीं चला।"
"शहर, नाम न जाने वाली एक अनाथ लड़की को डॉक्टर की मां अपनी बहू मानने को तैयार है ?"
"उसमें क्या बुराई है ? गांव का नाम स्वयं का नाम मालूम नहीं। पुरानी बातें याद नहीं ! लड़की महालक्ष्मी जैसे है। पढ़ी-लिखी है। अच्छे गुणों वाली सभ्य अच्छे कुल ही होनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं।
"फिर भी डॉक्टर की अम्मा का बड़ा विशाल हृदय होगा तभी तो.."
"हां, फिर! फिर भी 28 साल तक बिना शादी के रहे लड़के ने अब इसी से शादी करूंगा बोले तो आप क्या करोगे ? नहीं बोल दोगे क्या ? लड़की भी तो बड़ी सुंदर है!"
रघुपति को सदमा लगा। यह किसके बारे में बात कर रहे हैं ? उमा के बारे में तो नहीं ?
"ठीक बात है उस लड़की का सौभाग्य ही समझिए। कहीं से आकर अनाथ जैसे लड़की को अपने डॉक्टर जैसा आदमी मिल सकता है ? बहुत बड़ा संपन्न परिवार-पढ़ाई गुण स्तर ऐसा कहां मिलेगा ?"
"हां बिल्कुल सही बोला आपने आनंद जैसा लड़का मिलेगा क्या ? लाखों में एक है वह ! मेरी दादी की तबीयत ठीक नहीं है तो कहते हैं कि मैं ही आकर देख लूंगा ! आप उन्हें यहां-वहां जाने मत दो और घर आकर देख लेते हैं। जाने मुझसे कभी कहीं पढ़े थे इस विश्वास के कारण ! कितना आदर देता है ऐसा लड़का चेन्नई में होगा क्या ?"
"लीजिए साहब, बोंडा, लाने में आठ मिनट लगे हैं ।"
वह जल्दी से सतर्क हुआ और गर्दन उठाकर रघुपति ने देखा वह छोटा लड़का सफेद दांत दिखाता हंसता हुआ खड़ा था।
माथे पर आए हुए पसीनों को पोंछकर रघुपति, "थैंक यू" बुदबुदाया । उन आठ मिनट में पूरा संसार जैसे समाप्त हो गया ऐसा एक भ्रम उसमें पैदा हुआ।
यह लोग उमा के बारे में ही बात कर रहे हैं ? डॉक्टर आनंद रामाकृष्णन बड़ी उम्र की व्यक्ति नहीं है ? छोटी उम्र के हैं ?
रघुपति को बड़ा सदमा लगा। इस तरह की बात सुनने के लिए ही मैं इतनी दूर से इतने सपनों को संजो के उड़ कर आया हूँ ? सभानायकम से मैं नहीं मिला होता तो इस तरह एक व्यर्थ की यात्रा में तो शामिल ना होकर अब तक अमेरिका में जाकर अपने काम में लग जाता-उमा मर गई इस ख्याल में ही....
"अब जल्दी ही एक शादी की दावत है कहो !"
"जरूर...! उनके घर में यही पहली शादी है अम्मा तो बहुत बढ़िया करेंगी...."
उसकेमाथे की नसें हल्की सी उभर आईं । मन में थोड़ा गुस्सा आ रहा था। जल्दी से उसने अपने को संभाल लिया। मैं इस तरह भावना के अतिरेक में जाऊं तो यह पागलपन ही होगा उसे लगा। वह लड़की उमा ही है मालूम होने के पहले क्यों मुझे गुस्सा करना चाहिए। इन लोगों को उसकी फोटो दिखा कर यही वह लड़की है क्या ? पूछ ले उसे ऐसा लगा वह उठा भी पर अपने आपको तुरंत समझा लिया और संभल गया। सड़क के बीच एक दुकान पर उसकी फोटो को दिखा कर अपने आप को छोटा और सस्ता क्यों करूं उसने सोचा। वह कॉफी पीकर उठकर बाहर आया।
"कौन हैं आप, गांव में नए लग रहे हो ? आपको किससे मिलना है ?"
"मुझे डॉक्टर आनंद कृष्णमूर्ति से मिलना है।"
"अभी क्या समय हो रहा है ?"
"पाँच बज कर चालीस मिनट !"
"अभी वह अस्पताल में ही होंगे। आपके पैदल जाने तक छ: बज जाएंगे। तब तक वह वहां से रवाना हो जाएंगे।"
"कहां ?"
"लावण्या के घर !"
"लावण्या कौन है ?"
"अरे, मैं भी। आपसे जाने क्या-क्या बोल रहा हूं। इसी गली में सीधे जाओ दाहिनी ओर एक मुंसिपल स्कूल है। उस कंपाउंड में ही एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है, उसके पास ही एक छोटा सा घर है। वही पर उस लावण्या का घर है। वहां निश्चित रूप वह आएगा। आपको किस विषय में उनसे मिलना है ?"
"एक केस के बारे में !"
"फिर आप सुबह 8:30 बजे अस्पताल में ही उनसे मिलो ।"
"मेरे पास समय नहीं है। आज ही मुझे वापस जाना है ।"
"ठीक है। फिर आप उस लड़की के घर ही जाकर बैठ जाइए फिर आप मिल लेना।"
"ठीक है। बहुत धन्यवाद !"
"सीधे जाइए। पीपल का पेड़, मुंसिपल स्कूल....."
"ठीक है।"
"नहीं तो, मैं भी आपके साथ थोड़ी दूर चल सकता हूं, आइए।"
दोनों मौन चल रहे थे उसने साधरण तरह से पूछा।
"वह लड़की उनकी पेशेंट है क्या ?"
"हां ? हां पेशेंट कह सकते हैं। पेशेंट से शुरू होकर अब शादी करने लायक निकटता हो गई है।"
"उनकी स्वाभाविक हंसी पर उसे थोड़ा गुस्सा आया ।" उस लड़की को क्या बीमारी है ?"
"कोई बीमारी नहीं है। चार महीने पहले यहां दूसरी जगह से एक बस आकर नदी में डूब गई। उसमें जितने लोग थे सब मारे गए। सिर्फ एक लड़की उसमें, पता नहीं कैसे आश्चर्यजनक रूप से बचकर किनारे पर पड़ी हुई मिली। अपने डॉक्टर के अस्पताल में लाकर, किसी ने उसे भर्ती करा दिया। उसको जैसे होश आया तो पता पूछा ताकि उनके घर वालों को सूचना दे सकें। तब पता चला वह लड़की सारी पुरानी यादें भूल गई। बहुत प्रयत्न करने के बावजूद भी उनके घरवालों को ढूंढ ही नहीं पाए। एक बहुत बड़ी विश्वास ना करने लायक कहानी है यह....."
इस कहानी का एक मुख्य पात्र मैं हूं इनको पता चले तो ही इस बात पर विश्वास करेंगे क्या उसने सोचा।
"यह देखो, वहां दूर जो पीपल का पेड़ दिख रहा है वही है-वही है लावण्या का घर आप चले जाएंगे ?"
"चला जाऊंगा। बहुत धन्यवाद।"
वे उस बगल वाले गली में मुड़ गए, वह सीधा चलने लगा ।
लावण्या..... यह क्या नाम है ? यह नाम किसने रखा ? जल्दी से अपने को सतर्क किया। वह उमा ही है ऐसा उसेक्या फैसला करना चाहिए ?
वह सामने देखता हुआ चलता रहा।
"वह उमा हो तो ? बहुत ही मुश्किल की स्थिति है। उसकी और किसी के साथ शादी होने वाली है। सभी की रजामंदी से शादी हो रही....ओ कॉन्ट ! इमेज !
रोजाना छ: बजे उससे मिलने वह डॉक्टर जाता है। विपरीत स्थिति को उसने साधन बना लिया । ऐसी परिस्थिति में उसने कैसे इस तरह का सभ्यता पूर्ण पत्र लिखा उसे आश्चर्य हो रहा था.... दी ब्लडी रोग ऐसा उसे गुस्सा आया।
आराम से सोचने पर उसे लगा यह गलती वह शादीशुदा है पता नहीं होने के कारण हुई । किसी की भी गलती नहीं है वह अपने आप ही बोलकर संतुष्ट हुआ । यदि वह लड़की उमा ही होगी तो इस स्थिति को संभालना बहुत मुश्किल नहीं है उसे लगा। अचानक उसके सामने जाकर खड़े हो जाओ तो उसे पुरानी यादें नहीं आ जाएगी ? यदि नहीं आए तो शादी की फोटो दिखाए। मेरे लिए यही सुरक्षित स्थान है कभी तो वह समझ जाएगी ? स्वयं अभी तक वह एक विपरीत स्थिति में थी जब उसे समझ में आएगा। वह डॉक्टर अच्छा नहीं होता तो मुझे आने के लिए नहीं बोलता। मुझे जवाब भी नहीं देता।
अध्याय 15
वह अचानक रुक गया। पीपल का पेड़ दिखा। बहुत विशाल पेड़-उसके बाद बड़े बोर्ड पर मुंसिपल स्कूल का नाम दिखाई दिया। पीपल के पेड़ के नीचे इधर देखते हुए कौन खड़ी है ?
उमा !
उसका ह्रदय तेजी से धड़कने लगा। यह उमा ही है। यह उमा ही है। चार महीने से जिसके ना मिलने से वह परेशान था वही उमा। पहले से ज्यादा सुंदर, पहले से ज्यादा स्वस्थ्य, गालों में एक चमक के साथ...
उसका गला बंद सा हुआ । शब्द निकलने में कठिनाई हुई |
वह तुरंत मुड़कर देखी, उसने उसको गेट के सरिये पकड़कर खड़े देखा।
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"आज चेहरा क्यों उतरा है ?" मंगलम ने पूछा।
कहीं फिसले हुए मन को पकड़ कर खींच कर ले आया।
"नहीं, ठीक ही तो हूं।"
मंगलम हंसी।
"ठीक ही होता तो मैं क्यों पूछती।अचानक क्या फिक्र हुई तुम्हें ? बहुत गहरी सोच में डूबा हुआ जैसे लग रहा है!"
मुझे इस तरह अपनी चिंताओं को चेहरे पर नहीं दिखाना चाहिए उसने अपने आप में तय किया। आज ही रघुपति आने वाला है अम्मा से बोलने के लिए मन संकोच कर रहा है। वह हो ही रघुपति की पत्नी यह क्या पक्का है ? जो बात निश्चित नहीं हैं उसके विषय में किसी को बताकर उनके मन में संदेह के बीज डालने की क्या जरूरत है ?
"कुछ नहीं है थोड़ा सा सर दर्द है। मैं थोड़ा जा कर आता हूं।"
"कुछ गोली ले लो !"
"नहीं !"
"तुम्हारी दवाई में तुम्हें ही विश्वास नहीं है क्या ?"
अम्मा के हास्य में रुचि लेने की स्थिति में वह नहीं था।
वह मौन होकर गली में उतर कर चलने लगा शाम का समय था। पक्षियों का कलरव गूंज रहा था । पेड़ों की छाया अंधेरा बढ़ा रही थी मौन तप कर रहे हों जैसे । पेड़ों के बीच में से चल रही हवाएं दीर्घ श्वास ले रही थकी हुई जैसे लगी।
यह दीर्घ श्वास क्यों छोड़ रहे है ? इन दीर्घ श्वासों का अब कोई अर्थ नहीं है ऐसा लगा । अब छुटकारे का ही कोई रास्ता नहीं । उसके मुताबिक तो अब छुटकारा है ही नहीं ऐसा सोचने से उसके गले में कुछ आकर फंस गया जैसे लगा । लावण्या से जान-पहचान होने के बाद कुछ महीनों में ही एक सुंदर कविता जैसे मन में घुसपैठ कर गई। उसके चंदन की वह खुशबू अब मरने तक खुशबू देती रहेगी।
उससे छुटकारा मिल सकता है। रघुपति को देखते ही शायद उसे पुरानी यादें वापस आ जाए। अच्छी बात है कि मैं दिशा विहीन नहीं हुआ यह शांति की बात है सोच कर उसने एक दीर्घ श्वास छोड़ा। रघुपति को देखकर उसको पुरानी यादें नहीं आए तो लावण्या क्या करेगी ? अनजान पति के साथ जाएगी या जानने वाले प्रेमी के साथ रहेगी ? क्या करें तो ठीक है क्या करें तो गलत ? यदि वह यहां रुक जाती है तो उसे स्वीकार करना चाहिए, नहीं ठहरे तो उसे रोकना चाहिए ?
अब सचमुच में उसे सर दर्द होने लगा। उसे लगा सिर फट जाएगा उसे लगा सिर के अंदर कीड़े कुलबुला रहे हैं।
ओ, मैंने ऐसा जवाब क्यों लिखा ! इस तरह उस पर करुणा करने के लिए ऐसे कैसे धैर्य और हिम्मत से लिख दिया !
उसको लिखने के पहले उसके अंदर जो दुविधा थी उसके बारे में वह सोचने लगा। सोच-सोच कर परेशान होकर आखिर एक क्षण में मन में हिम्मत कर तुरंत लिखकर पोस्ट कर दिया-कोई पीछे से आकर मेरे गर्दन को पकड़कर रख रहा हो जैसे ! कौन है?
अंतरात्मा....
तू ! तेरा सर्वनाश होगा। तुम ही इस बात के साक्षी हो और हिम्मत से रह सकते थे। ओ, यस तुम में शक्ति ज्यादा है मुझे नहीं पता था। मैं हार गया। मैं हार.....
आज वह रघुपति आ जाएगा। ओ, यस ! यही मेरी पत्नी उमा है ऐसे बोलने वाला है। 'यह देखो फोटो' ऐसा फोटो दिखाने वाला है। लावण्या पहले तो बिदकेगी। बाद में फोटो को और उसकी बातों को सुनकर धर्मपत्नी जैसे उसके पैरों पर गिरकर उसके साथ रेल में चली जाएगी।
इतने दिनों मेरी देखभाल आपने की 'उसका बहुत धन्यवाद डॉक्टर' बोलेगी...... इतने दिनों एक अनजान बेहोशी में रहने के लिए शरमाई जैसे।
बस इतना ही मुझे बिलखते-बिलखते पराया बना........
गले में फिर कुछ आकर फंस गया उसने ऐसा महसूस किया।
"हेलो !"
उसने मुडकर देखा। कलेक्टर राजशेखर खड़े थे। जवाब में हेलो भी ना कह सका ऐसा गला सूख गया।
"क्या बात है, कहां पैदल जा रहे हो ?"
"ऐसे ही कुछ वाकिंग के लिए निकला था"
"वाक पर जा रहे हो, या किसी से मिलने जा रहे हो ?"
"किसी से भी मिलने नहीं जा रहा। नदी के किनारे जाने की सोच कर निकला।"
राजशेखर व्यंग से हंसे।
"मुझे क्या परेशानी है । हां, आप जिसे देखने के लिए निकले थे उसी को जाकर देखो। मैं घर जा रहा हूं !"
"क्या है राजशेखर, मजाक कर रहे हो क्या ?"
"मुझे कोई और काम नहीं है क्या ? पूरा गांव जो कह रहा है वही मन में रखकर कुछ मैंने मजाक किया।"
उसका चेहरा हल्का सा लाल हुआ।
"गांव क्या कह रहा है ?"
"शादी की दावत के दिन नजदीक आ गये ऐसी बात करते हैं।"
"किसकी शादी ?"
"आपकी ही शादी। इस गांव के डॉक्टर की और टीचर की।"
अचानक उसके मन में एक डर उठा।
"यह सब उड़ाया हुआ है। पढ़े लिखे लोगों को इस तरह के बातों पर विश्वास करना चाहिए क्या ?"
"रूमर नहीं है ऐसा लग रहा है तभी तो विश्वास कर रहे हैं।"
"प्लीज, राजशेखर....!"
"ओ के.., ओ के। मैं कुछ नहीं पूछूंगा। जो बात है वह अपने आप ही बाहर आएगा। छोटे गांव में इन बातों को ढककर नहीं रख सकते।"
हे, भगवान ! अपने आप की पैदा की स्थिति को कैसे संभाल लूंगा !
"सोच कर देखो तो, आनंद, यह गांव की जनता ही ऐसा कुछ देखने के लिए तैयार है ऐसा लगता है। ऐसा सोच होना कोई बुरी बात है मुझे नहीं लगता है। इस तरह की लड़की लाखों में एक ही होती है।"
"प्लीज, मिस्टर राजशेखर !"
"चलो छोड़ो। आप इतना क्यों संकोच कर रहे हैं ?"
इनके पीठ पर चार मुक्का मारे ऐसा गुस्सा आनंद को आया। गाँव वाले जो बोल रहे हैं उसे ही पढ़े-लिखे लोग भी मान रहे हैं सोच की यह स्थिति बहुत खराब है उसे लगा।
हार्न की आवाज आई। तभी उसने कुछ दूर राजशेखर जी की गाड़ी को खड़े देखा, उसमें उनकी पत्नी, छोटा बच्चा बैठे हुए थे। राजशेखर गाड़ी को रोककर उसके पास आकर बात कर रहे थे उसके समझ में आया।
राजशेखर ने उसके हाथों को मित्रवत अपने हाथों में अपनत्व से लिया।
"मैं आता हूं । एक बड़ी शादी के दावत के लिए पूरा गांव तैयार बैठा है, उसे धोखा मत दीजिएगा।"
वह एक मूर्खों जैसी हंसी हंस कर सिर हिलाकर वहां से सरक गया । उसे लगा सिर पीटकर जोर-जोर से चिल्लाना चाहिए। मुझे छोड़ दो; मुझे छोड़ दो।
छोटे गांव में एक छोटी सी बात ने विश्व रूप धारण कर लिया। यह अच्छी बात है या अपनत्व या दया उसके समझ में नहीं आया। यह कुछ भी हो इन सब से दूर रहना चाहिए और यहाँ से भाग जाना चाहिए ऐसा उसे लगा । लावण्या को भी साथ में लेकर दौड़ सके...... उससे अलग होकर कैसे रह सकता हूं ? रह सकता हूं क्या ? उसे भूलना संभव है क्या ?
.........…...
रघुपति को देखकर एक प्रश्नवाचक चिह्न से देखती हुई वह आराम से चल कर आई।
रघुपति भावावेश में सांस भरने लगा।
"उमा....!"
आवाज धीरे से आई जो उसे भी सुनाई नहीं दी।
"आप कौन हैं ? आपको किससे मिलना है ?"
मन में जल रही ज्वाला एकदम से भडक गई।
वह पहचान नहीं पा रही है।
"डॉक्टर आनंद हैं क्या ?"
समझ गई जैसे अचानक से उसके चेहरे में एक प्रकाश की किरण चमकी।
"नहीं है आप ही मिस्टर रघुपति हैं क्या ?"
मिस्टर रघुपति ! अनजान जैसे पूछ रही है।
"हां। आपको मेरा नाम कैसे पता है ?"
"आनंद ने बोला था। उनका दोस्त रघुपति अहमदाबाद से आने वाले हैं ।"
"और कुछ नहीं बोला क्या ?"
उसने असमंजस से उसे देखा।
"नहीं, क्यों ?"
"कुछ नहीं !"
उस फोटो को अभी दिखा दो तो इसे कैसे लगेगा ऐसा उसने सोचा। आनंद रामाकृष्णन ने इससे इस बारे में कुछ भी नहीं बताया, उसने सोचा। क्यों नहीं बोला ? सच जानने के पहले बोलना ठीक नहीं है सोचा होगा उसके समझ में आ गया। बहुत होशियार है। डॉक्टर से मिलने की इच्छा बहुत है। इससे कुछ बात करके फिर उस फोटो को इसे दिखाता हूं ऐसे सोच कर वह बोला।
"डॉक्टर आएंगे क्या ?"
उसका चेहरा हल्का सा लाल हुआ उसने ध्यान दिया।
"आएंगे ऐसे ही सोचती हूं। अंदर आकर बैठिएगा।"
मन में दोबारा एक ज्वाला उठी। पुरानी सब बातें उसकी खुशी की बातें याद आ कर उसकी आग भडकाने लगीं। कितने दिन हो गए इसे देखे ! करीब-करीब एक साल हो गए। अतीत की बातें याद आने पर उसे पश्चाताप ने डुबाया । उसका दिल भर कर आलिंगन कर लूं ऐसे उसके हाथ और शरीर फड़फड़ाने लगे। इसको आलिंगन कर उसके अधरों में स्पर्श करने की इच्छा उसके अंदर उठी जिसे उसने बड़ी मुश्किल से दबाया।
अब वह गैर हो गई है। अपने पति को 'मिस्टर रघुपति' एक बाहर के औरत जैसे बुला रही है। मैं उसका पति हूं ऐसा उसको समझ में आने तक मैं अपनी भावनाओं को नहीं दिखा सकता। ऐसी एक सभ्यता मुझमें होनी जरूरी है......
अध्याय 16
वह उसके सामने आराम से बैठी हुई थी। बड़े सहज रूप से मुस्कुरा रही थी। कितनी अच्छी तरह से मुस्कुराती है ! कितनी सुंदर! कितनी सौम्य । इस सौम्यता पर सिर्फ मेरा अधिकार है ऐसा सोचकर कितनी बार मैं बहुत खुश हुआ करता था। मुझे इस बात का कितना गर्व था। अभी कानून के अनुसार वह मेरी पत्नी है। इस को साबित करना पड़ेगा इसके पास मेरे साथ आने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है यह बात इसे महसूस करानी पड़ेगी।
"आनंद के साथ आप पढ़े हुए हो क्या ?"
"ऊंम ? हां !"
"फिर, आप भी डॉक्टर हो !"
"नहीं साइंटिस्ट !"
"अहमदाबाद में क्या करते हो ?"
इसके सिर को फोड दे ऐसा उसे गुस्सा आया।
"अहमदाबाद में अभी मैं नहीं हूं। अब मैं अमेरिका में हूं। इंडिया में कुछ काम से आया हूं।
"ओ....ओ !"
"मेरे बारे में ही पूछ रही हो ? अपने बारे में कुछ नहीं बताया ! आप कौन हैं मुझे पता नहीं चला ? आनंद की आप क्या लगती हैं ?"
वह हल्के से मुस्कुराई। उसकी हंसी में एक संकोच और हिचकिचाहट भी दिखाई दी। उसकी निगाहें घबराहट में नीचे देखने लगीं। उसको भी उसकी इस हालत को देख दया आ रही थी।
"इसका मैं ठीक से जवाब नहीं दे सकती। मेरी एक विचित्र कहानी है। मैं बोलूं तो कोई विश्वास नहीं कर सकता..."
वह बिना बोले सिर्फ उसे ही बैठा देखता रहा।
उसकी निगाहें जाने क्या देख रही थी। "मैं कौन हूं यह मुझे ही नहीं पता। मेरा नाम क्या है, मुझे नहीं पता | कहां से आई हूं, मुझे नहीं पता |"
वह उसे आश्चर्य से देखने लगा ।
"बीता हुआ कल यही लेबल है मेरा ।"
"कैसे ? मुझे समझ में नहीं आया!"
"एक बस दुर्घटना में सिर्फ मैं ही बच गई ऐसा बोलते हैं। सिर पर लगी चोट के कारण मुझे एमिनीशिया हो गया ऐसा डॉक्टर बोलते हैं। मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। नया जन्म लिया जैसे लग रहा है। सब कुछ नया लग रहा है- दोबारा एक जन्म मिला जैसे...."
उसके शरीर में एक सिहरन हुई |
बोलते समय उसके शब्द लड़खड़ाए।
"आपको ढूंढते हुए कोई नहीं आया क्या ?"
"अभी तक तो नहीं आया !"
अभी आ गया। मैं पूरे का पूरा तुम्हारी आंखों के सामने बैठा हूं। दिखाई नहीं दिया ?उसने सोचा।
"आपकी कहानी बड़ी ही दयनीय है ।" वह धीरे से बोला "आपके मन को कितनी तकलीफ हो रही है मुझे समझ में आ रहा है।
वह जल्दी से उसे देख कर मुस्कुराई। "पहले बहुत तकलीफ थी । समुद्र के बीच में फंसे जैसे, जंगल के बीच में फंस गए जैसे मैं बहुत तड़पी। परंतु अब ऐसा नहीं है...."
उसने तुरंत गर्दन उठाकर उसे देखा।
वह कहीं देखती हुई अपने आप में मुस्कुराते हुए बोली "मुझे ढूंढने कोई ना आए ऐसा मुझे लगने लगा है। वह स्तंभित होकर उसे देखने लगा।
"क्यों जिस जगह मैं पहले थी उसे याद दिलाने कोई नहीं आए ऐसा लगता है। अभी मैं बहुत खुशी से रह रही हूं। यह गांव यहां के लोग बहुत पसंद हैं। ऐसे जैसे यहीं पर पैदा हुई बड़ी हुई जैसे अपने जड़ों को यहीं फैला लूं। अब कोई आकर पुरानी बातों को खोदकर, जिससे मेरा संबंध नहीं है मुझे कैसा लगेगा | वह, मुझे सदमा भी दे सकता है .........
वह भ्रमित हो गया कुछ योजना भी नहीं सूझी, कोई शब्द भी नहीं आए वह बैठा रहा। उसका मन ही मौन हो गया ऐसा उसे भ्रम हुआ। उसकी बात सुनकर उसे लगा मेरा और उसका कोई संबंध नहीं है। यह उमा नहीं है- इसको मैं नहीं जानता- ऐसा एक विचार उठा उसकी निगाहें झुकी और मन खत्म हो गया जैसे लगा।
उसने जल्दी से अपने को संभाल लिया। उसके पेंट के जेब में उसकी और इसकी माला पहने हुए फोटो थी। उसकी याद बार-बार आ रही थी। उसको निकालकर दिखाने में एक क्षण भी नहीं लगेगा उमा। तुम बेहोशी से आंखें खोलो। तुम मेरी पत्नी हो बोलने में मुझे एक क्षण भी नहीं लगेगा। इससे अच्छी जगह में मैं तुम्हें लेकर जाऊंगा, मनुष्य के प्रयत्न से जितना हो सकता है उतना मैं खुश रखूंगा मुझे बोलने में अधिक देर नहीं लगेगी.... उसे जोर-जोर से हिला के ऐसे डायलॉग मत बोल कहने में.....
"ओह, आने वाले को क्या लोगे पूछे बगैर ही मैं बैठी हूं। क्या खाएंगे, बताइए....?"
"कुछ नहीं चाहिए। मैं आते समय कॉफी पी के आया हूं।"
"ऐसा है तो आनंद को आ जाने दीजिए, हम सब मिलकर खाना खाएंगे।"
वह उठकर बाहर की तरफ झांक कर देखने लगी। "आज अभी तक उनका पता नहीं।"
"आनंद ही आपको ट्रीटमेंट दे रहे हैं क्या ?"
"हां।"
चेहरे में एक लालिमा-आंखों में एक प्यार-ऐसा उसने उसे कभी भी देखा हो उसे याद नहीं इस भावना को हजम करने में बड़ी तकलीफ हो रही थी।
"वे नहीं होते तो मेरा क्या होता सोचकर देखने पर भी डर लगता है।"
वह उसे ही देखता हुआ एक सदमे से मौन रहा।
बाहर कुछ आवाज आई। तुरंत उसका चेहरा प्रकाश से चमकने लगा उसने उस पर ध्यान दिया।
"आनंद आ गए क्या !"
वह एक छोटी लड़की जैसे कूदती हुई बाहर गई।
जल्दी से उसने गर्दन उठा कर देखा। एक जोड़ी आंखें ध्यान से चिंता, डर और अनुमान करने वाली निगाहें उसे देख रही थीं। सामने खड़े हुए के पास ही उमा- नहीं, लावण्या।
असंभावित वातावरण उसको जोर-जोर से हंसना चाहिए जैसे लगा। वह धीरे से मुस्कुराते हुए उठा।
"हेलो !" वह बोला।
"हेलो !" आनंद बोला जैसे उसमें जीवन नहीं हो।
"लावण्या, कॉफी या कुछ लेकर आओ !"
"अभी !"
आनंद प्रयत्न पूर्वक रघुपति के सामने बैठ गया। एक-एक अक्षर को उठा रहा हो जैसे धीमे स्वर में पूछा।
"यही है क्या ?"
उसकी निगाहें बहुत ही दयनीय थी।
"नहीं ।"
आनंद ने आश्चर्य से उसे देखा।
एकदम से उसके अंदर शांति आई जो उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था। कुर्सी को कस कर पकड़े हुए हाथ ढीले पड़ गए।
रघुपति उठा।
"मेरी पत्नी लौट कर ना आ सके इतनी दूर पहुंच गई लगता है।"
"ओ आई एम सॉरी !"
"मैं निकलता हूं डॉक्टर आनंद। विश यू ऑल द बेस्ट।"
आनंद जल्दी से बोला "इतनी जल्दी क्या है ?" कॉफी पीकर जाइए, ठहरिए।"
"नहीं, मुझे जल्दी जाना है। कॉफी पीने के मन स्थिति में अभी नहीं हूं।"
"मेरे समझ में आ रहा है।"
तुम्हारे समझ में नहीं आएगा। समझने की जरूरत भी नहीं है। रघुपति अपने अंदर ही बोला ।
एक हल्के से मुस्कान के साथ, "आपको और लावण्या को मेरी शुभकामनाएं" कहकर आनंद के हाथ से हाथ मिला कर बिना मुड़कर देखे सीधा चलने लगा। उसका मन जैसे हल्का हो गया , कितने दिनों से उठाए हुए भार को उतार के रख दिया जैसा भ्रम उसे हुआ। 'समय आने पर मन अपने आप उतर जाएगा' उस दिन कमला की कहीं बात याद आई। वह बात कितनी सत्य है आज उसे लग रहा था । कैसे खुल गया उतर गया ? कैसे संभव हुआ ?
अचानक उस नाटक की याद आ गई ।
मयूर पंख !
करीब-करीब उसकी ही कहानी। कमला ने कैसे दीर्घ दृष्टि जैसे उस नाटक से उसका संबंध है बताया ! अभी उसने जो फैसला किया उसके बिना जाने अपनेआप हुआ फैसला है। उस नाटक के याद नहीं रहने पर भी सहज भाव से यह फैसला हुआ। और किसी तरह का फैसला लेना असभ्य नागरिक की बात होती उसे लगा। चार महीने से मैंने उमा को खो दिया ऐसी एक भावना के कारण अपने को बर्बाद कर रहा था। मेरी यहां आने की उत्सुकता एक गलत इच्छा थी। मेरे लिए उमा मर गई। अब वह लावण्या जैसे रह रही है यह उसका नया जन्म है। पुराने जीवन की छाया भी नहीं है ।पुनर्जन्म। उसके बीच में जाने का मेरा कोई अधिकार नहीं है......
अपेक्षाएं, चिंताएं, धोखा कुछ भी मन में न रहकर मन एकदम निर्मल हो गया। वह बड़े पीपल के पेड़ से आगे निकल कर गली से होता हुआ बस स्टैंड चला गया।
'त्याग जो कर सकते हैं वही प्रेम भी कर सकते हैं' कमला की बोली बात उसे याद आई। उसकी इस करनी के बारे में कमला क्या बोलेगी उसने सोच कर देखा। 'त्याग' शब्द का बहुत बड़ा अर्थ है उसने महसूस किया।
पेंट के पॉकेट में वह फोटो उसे अजीब सा लग रहा था। अच्छी बात है, मैंने उसे नहीं दिखाया ऐसा सोच उसे एक संतुष्टि अपने आप में हुई। इसको दिखाने के बाद जिसमें भावनाएं मर चुकी थी वह मेरी पत्नी है ऐसा अधिकार जमाता तो यह तो तमाशा ही होता।
विश्वास न करने वाली एक अजीब सी कहानी 'मयूर पंख' की जो समीक्षा उसने अपने शब्दों में की अब उसे सोच हंसी आ रही थी। असली जीवन में तो इससे भी ज्यादा अविश्वास करने लायक घटनाएं घटती हैं ऐसा सोचते हुए यात्रा के लिए वह बस पर चढ़ा ।
"जिस काम के लिए आए वह पूरा हो गया क्या ?" एक आवाज सुनाई दी।
उसने झांक कर देखा।
वही चोटी वाले महाशय थे।
"खत्म हो गया।" कह कर उसके अधरों पर एक मुस्कान तैर गई।
समाप्त