J-3 : Asghar Wajahat

ज-3 : असग़र वजाहत

‘ज’ के पेट में बेहताशा गालियां भरी हुई थीं। लेकिन वे ज़बान पर नहीं आती थीं। ‘ज’ रात-दिन किसी ऐसे आदमी को तलाश में घूमता था जो उसकी ज़बान खोल सके। लेकिन कोई उसकी ज़बान न खोल सका कि वह गालियां बक सके। सब लोगों ने उससे कहा यही कहा कि धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान सिखा पढ़ा सकते हैं।, गालियां नहीं।
‘ज’ ने सबको एक ही जवाब दिया, ‘‘मैं तो सिर्फ गालियां बकना चाहता हूं।’’
‘ज’ के पेट में गालियों का अम्बार बढ़ता गया। वह बेचैन होकर रात-दिन घूमने लगा। आखिर एक दिन किसी ने उससे कहा कि जबान के डाक्टर के पास जाओ। वह तुम्हारी समस्या सुलझा सकता है।
ज़बान का डाक्टर उन दिनों अपने-आपको ‘घोड़ा डॉक्टर’ कहा करता था और गधों का इलाज करता था। ‘ज’ उसके पास पहुंचा। डॉक्टर ने ‘ज’को देखा और बताया कि वह गालियां कभी नहीं बक सकता।
‘ज’ ने बहुत परेशान होकर पूछा, ‘‘क्यों’
डॉक्टर ने जवाब दिया, ‘‘इसलिए कि तुम्हारे हाथ बंधे हुए हैं।’’
‘ज’ ने वास्तव में महसूस किया कि उसके दोनों हाथ नमस्ते करने वाली मुद्रा में जकड़े हुए हैं। ‘ज’ ने झटका देकर हाथ छुड़ा लिए तो उसके मुंह से गालियां फूलों की तरह झड़ने लगीं।