ईश्वर की आवाज़ (अंग्रेज़ी कहानी) : खुशवन्त सिंह
Ishwar Ki Aawaz (English Story in Hindi) : Khushwant Singh
भम्बा कलौं और भम्बा खुर्द दो छोटे से गाँव हैं, जिनके बीच आधे मील से ज़्यादा की दूरी नहीं है और सच्चाई यह भी है कि दोनों के बीच बिखरी हुई घास-फूस और मिट्टी की झोपड़ियाँ, सैयद बुल्ले शाह की मज़ार और मिशन स्कूल एक-दूसरे को इस तरह जोड़ भी देते हैं कि दोनों गाँवों को भम्बा ही कहा जाने लगा है।
गाँव में ज्यादातर सिख किसान ही बसते हैं जो सारी ज़मीन के मालिक भी हैं। मुसलमान लोग इन सिख मालिकों की ज़मीन जोतते हैं, या कुम्हार और बुनकर के रूप में रोज़ी-रोटी कमाते हैं। कुछ ईसाई भी हैं जो गाँव के सिरे पर टूटी-फूटी ईश्वर की झोंपड़ियों में रहते हैं और सफ़ाई वगैरह के काम करते हैं । इनके अलावा हिन्दू दुकानदार हैं-जो आवाज़ तेल, साबुन, नमक, मसाले, कपड़े, कैंची, शीशे और जापानी खिलौने बेचते हैं।
भम्बा में कोई महत्त्वपूर्ण बात कभी नहीं होती । साल में एक बार सैयद बुल्ले शाह की मज़ार पर मेला लगता है-जिसमें पड़ोसी गाँवों के लोग-मुसलमान, हिन्दू और सिख सब-बड़ी तादाद में आते हैं। उनकी औरतें मज़ार पर चीज़ें चढ़ाकर मन्नत माँगती हैं कि उनकी कोख में बच्चा आये। साल में एक दफ़ा यहाँ के सिख कंधे पर लम्बी तलवार बाँधकर अमृतसर जाते हैं।
इनके अलावा कभी-कभी गाँव में पुलिस आती है, जिससे लोगों में उत्तेजना पैदा होती है। किसी ने शराब के नशे में दूसरे की गर्दन उड़ा दी; कोई किसी की औरत या बेटी को लेकर भाग गया, या किसी ने गैर-कानूनी ढंग से शराब बनाई-तो पुलिस का चक्कर लगता है। लेकिन कभी-कभी किसी ने कुछ नहीं किया, तो भी पुलिस अवैध शराब पीने और अंडा-मुर्गी खाने आ जाती है।
जो लोग उनका स्वागत-सत्कार नहीं करते, उनके घरों से पुलिस हथियार, शराब या अफ़ीम बरामद करके उन्हें जेल में डाल देती है-इस तरह वे स्वागत करना सीख जाते हैं।
इन बातों के अलावा भम्बा में कभी कोई परिवर्तन नज़र नहीं आता।
सवेरे घरों के मर्द खेतों पर काम करने चले जाते हैं, लड़के पशुओं को चराने ले जाते हैं और औरतें धान कूटती, खाना पकाती या सूत कातती हैं। दोपहर के बाद सब आराम करते हैं।
आटे की मिल चलने लगती है। इसमें डीज़ल का इंजन लगा है, जिसका धुआँ छत पर खड़े पाइप से आसमान में निकलता है। पाइप के सिरे पर एक मिट्टी का घड़ा लगा है जिससे धुआँ निकलते समय धक-धक की तेज़ आवाज़ें होती हैं-जो मीलों दूर तक सुनाई पड़ती हैं। इस पार्श्व संगीत के साये में लोग आराम और गप-शप करते हैं।
बसंत की एक शाम भम्बा के लोग सूरज की हल्की गर्मी में छोटे-छोटे दल बनाये बेमतलब की बातें करने में लगे थे। ज़मीन पर उकड़ूँ बैठे, मिट्टी की दीवारों को निहारते वे मिल की धक-धक भी सुनने में लगे थे। उनसे कुछ दूर औरतें अपनी खाटों पर बैठीं एक-दूसरे की खोपड़ियों में घी की मालिश करने में लगी थीं। फ़तल बहुत अच्छी होने जा रही थी और दूर-दूर तक फैले हरी-पीली सरसों के खेत शान्ति और समृद्धि का सन्देश दे रहे थे।
अचानक सारा गाँव हरकत में आ गया। बच्चे गलियों में शोर मचाते दौड़ने लगे। एक मोटरगाड़ी धूल उड़ाती रास्ते पर आई और गाँव के बीचोंबीच आकर रुक गई। यह भूरे रंग की स्टेशन वैगन थी और उसमें पाँच-छह लोग बैठे थे। गाड़ी ज़ोर-ज़ोर से भोंपू बजाती आई जो बच्चों को बहुत अच्छा लग रहा था। वे उसके पीछे दौड़े और पीछे के बंपर पर चढ़ने लगे। गाँव भर के कुत्ते भी इकट्ठे हो गये और गाड़ी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते भूकने लगे ।
गाड़ी जब बड़ी चौपाल पर पहुँचकर रुकी, तब इतनी धूल उड़ी कि सारा आसमान उससे भर गया। थोड़ी देर बाद जब धूल थमी तब गाड़ी में बैठे लोग नाक पर रूमाल लगाये बाहर निकले। सबसे आगे था अंग्रेज़ डिप्टी कमिश्नर मिस्टर फोर्साइथ, छोटे क़द का मोटा-सा आदमी जिसके सिर पर सोला टोप लगा था-उसकी पट्टी साहब की ठोड़ी से कसकर बँधी थी। उसके साथ थे दो सिपाही, गाड़ी का ड्राइवर और सरदार गंडा सिंह, ऑनरेरी मजिस्ट्रेट, जो बड़ा ज़मींदार भी था और बगल के गाँव गंडा सिंह वाला का मालिक था।
इन्हें देखकर गाँव के ज़ैलदार और तीनों लम्बरदार भीड़ से निकलकर बाहर आये और अंग्रेज़ अफ़सर के सामने लम्बे-लम्बे सलाम बजाने लगे।
साहब भम्बा में पहले कभी नहीं आया था । क्या वजह थी कि यह ग़रीब परवर, शाहों का शहंशाह, दयानतदार अंग्रेज आज यहाँ आया था ? डिप्टी कमिश्नर मुस्कुराया और जैलदार के घर की तरफ़ चला वहाँ पहुँचकर वह बेंत की बनी एक खुली हुई कुर्सी पर बैठा, और उसका साथी, सरदार गंडा सिंह, उसी के बगल में रखी एक लोहे की कुर्सी पर जमकर बैठ गया। गाँववाले चारों तरफ़ आकर खड़े हो गये और उनके आने पर खुशी ज़ाहिर करने लगें।
फो्सइथ ने सोला टोप उतारा जिसके नीचे उसकी गंजी गुलाबी खोपड़ी चमकने लगी। फिर उसने रूमाल निकालकर माथे का पसीना पोंछा और हाव-भाव से यह ज़ाहिर किया कि वह कुछ कहना चाहता है।
शान्ति छा गई। लेकिन वह पसीना पोंछने में ही लगा रहा, जिससे लोगों की उत्सुकता बढ़ने लगी। फिर उसने गंडा सिंह का ज़ोरदार शब्दों में परिचय दिया। दरअसल गंडा सिंह को परिचय की ज़रूरत ही नहीं थी। जिले का हर आदमी उसे जानता था। वह अंग्रेज़ सरकार की मदद करता था जिसके बदले में उसे ज़मीनें, उपाधियाँ और मजिस्ट्रेसी प्राप्त हुई थी ।
वह ठगों का जाना-माना सरदार था। उसके लोग निडर होकर डाके मारते और लूटी हुई रकम से पुलिस को हिस्सा देते थे। उसकी शराब बनाने की मशीनें खुलेआम काम करतीं और आबकारी के कर्मचारी भी गोबर के बड़े-बड़े ढेलों में सड़ाकर और भपकों में पकाकर बनाई जाने वाली तरह-तरह की शराब का मुफ्त स्वाद लेते। गंडा सिंह इस मामले में कंजूसी नहीं करता था। शराबों के साथ खाना भी होता था। कुछ खास लोगों को वह लड़कियाँ भी देता था जो इस तरह कुमारी और अजान बनाकर पेश की जातीं, जिनसे वासना एकदम जाग उठती थी।
गंडा सिंह से जिले का हर आदमी नफ़रत करता था और वह यह जानता भी था। वह जहाँ भी जाता, दो हथियारबन्द सिपाही उसके साथ रहते। उसके गले में काले चमड़ें की एक पट्टी नीचे कमर तक लटकी रहती थी जिसमें कारतूस खुसे होते थे और नीचे जुड़ी एक थैली में गोलियों से भरा रिवॉल्वर बन्द रहता था। ज़िले का हर आदमी उसे जानता था।
उसकी तुर्रेदार पगड़ी का एक सिरा उसके सिर के ऊपर चिड़िया की कलगी की तरह खड़ा होता और दूसरा गर्दन के पीछे लटकता नज़र आता था। उसकी आँखों में सुर्मां चमकता होता, करीने से कतरी और तेल से चुपड़ी काली दाढ़ी उसकी वासना की स्पष्ट सूचना देती थीं। वह खासा लम्बा और मोटा था। वह सफ़ेद रंग की लम्बी कमीज़ पहने था जिसके नीचे बड़ा-सा पंजाबी पाजामा और उसमें बँधा नीलीं सिल्क का नाड़ा बाहर से साफ़ दिखाई देता था। पैरों में काले रंग के पंप शू थे जों चलने पर चर्र-चर्र की आवाज़ करते थे। फोसईइथ ने गंडा सिंह की प्रशंसा की और कहा कि ज़िला उस पर गर्व करता है।
उसे यह जानकर अच्छा लगा कि गंडा सिंह पंजाब एसेम्बली के लिए चुनाव लड़ना चाहता है। उसने कहा कि सिख नेताओं ने उसे इस पद के उपयुक्त माना है और सरकार भी उसका समर्थन करती हैं। यह सुनते ही लोगों की आपस में खुसर-फुसर शुरू हो गई, लेकिन फोसईइिथ ने कोई ध्यान नहीं दिया। उसने भीड़ को जैसे एक तरफ़ करके जैलदार और लम्बरदारों के साथ लगान वगैरह की बात शुरू कर दी।
फोर्साइथ एक लम्बरदार से बातें करने में लगा था, तब गंडा सिंह दो लम्बरदारों को कन्धे पर हाथ डालकर अलग ले गया।
उसने कहा कि साहब उस पर बहुत मेहरबान हैं और लम्बरदार जो भी चाहेंगे, उनके लिए करेंगे। एक लम्बरदार को बन्दूक का लायसेंस चाहिये था। दूसरे का नाम, सेशन्स कोर्ट में अहलकारी के लिए भेजा गया था, जो उसे दे दिया जाता।
तीसरे का भतीजा आबकारी कानून के तहत पकड़ा गया था और उस पर मुक़दमा चल रहा था।
कया साहब मजिस्ट्रेट को यह इशारा कर देंगे कि यह उनका अपना आदमी है। गंडा सिंह ने ये सब बातें अपनी डायरी में नोट कर लीं और उनसे वादा लिया कि उसके पक्ष में सौ फ़ीसदी मतदान होना चाहिये।
उसने कहा कि यह सिख किसानों की इज़्ज़त का सवाल है। इसके अलावा उसकी अपनी उपजाति वही है जो यहाँ के और सिखों की है।
उसका विरोधी उम्मीदवार, जो राष्ट्रवादी है, वह किसान भी नहीं है। वह शहर में रहता है और पेशे से वकील है।
किसान दल का उम्मीदवार भी उन्हीं का है पर उसका कोई धर्म ही नहीं है। इसके अलावा सरकार हमेशा उसके खिलाफ़ रही है और सुरक्षा कारणों से कई दफ़ा उसे जेल भी भेज चुकी है। फोर्साइथ और गंडा सिंह का दल शाम को वापस लौट गया।
उनकी भम्बा गाँव की यात्रा यहाँ के शान्त जल में पत्थर फेंकने की तरह थी जिसकी लहरें कई दिन तक उठती-गिरती रहीं। भम्बा की शान्ति काफ़ी समय के लिए भंग हो गई थी।
दूसरे दिन गाँववाले फिर उसी तरह चौपालों में बैठे मिल के इंजन की कू-कू सुनते हुए फोर्साइथ साहब की बातें कर रहे थे, उन्हें बच्चों का शोर और कुत्तों _ के भृंकने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। इस दफ़ा एक पीले रंग की लॉरी प्रकट हुई जिसकी छत पर लाउडस्पीकर लगा था। नीचे मडगार्ड के दोनों तरफ़ मोटे-मोटे बाँस लगे थे। जिन पर नेशनलिस्ट पार्टी के झण्डे लहरा रहे थे।
लॉरी गाँव के बीचोंबीच आकर खड़ी हो गई। चारों तरफ़ उड़ती धूल धीरे-धीरे धरमी और भीतर बैठे लोग बाहर निकलने लगे, तभी लाउडस्पीकर में आवाज़ आनी शुरू हो गई। एक आदमी ने खासकर कहना शुरू कियां-
'भम्बा के लोगो, आपको पता है कि एसेम्बली के चुनाव होने वाले हैं? चुनावों में आपका कर्तव्य क्या है, यह आपको पता है? अपना वोट नेशनलिस्ट उम्मीदवार एडवोकेट करतार सिंह को दीजिए ।'
इसके बाद वह कुछ देर के लिए रुका। फिर उसने ज़ोर से करतार सिंह का नाम लिया और दर्जन भर आवाज़ों ने नारा लगाया-'ज़िन्दाबाद ।' ये नारे कई दफ़ा इतने ज़ोर-शोर से लगाये गये कि कुत्ते अपनी पूँछें पैरों के बीच दबाकर वहाँ से खिसक गये।
अब करतार सिंह सामने की सीट से उठकर बाहर आया।
पीछे की सीटों पर बैठे दर्जन भर लड़के सफ़ेद गाँधी टोपियाँ और खादी के कुर्ते-धोतियाँ पहने बाहर निकले। उनके हाथों में पोस्टरों के बंडल थे।
करतार सिंह भम्बा गाँव पहली दफ़ा आया था लेकिन कुछ गाँववाले उसे जानते थे। उन्होंने ज़बर्दस्त फीसें देकर उससे अपने फ़ौजदारी मुकदमों की पैरवी कराई थी। लेकिन उनके लिए भी इस समय उसे पहचान पाना मुश्किल हो रहा था।
उन्होंने उसे पहले काले कोट और को पैंट में देखा था, लेकिन अब वह लम्बी कमीज़ और सलवार पहने था।
करतार सिंह और उसका एक काला, मोटा-सा, उसी जैसे कपड़े पहने साथी तेज़ी से ज़ैलदार के घर की तरफ़ चले और दूसरे लोगों ने गाँव में पोस्टर लगाने शुरू कर दिये। ज़ैलदार के घर का दरवाज़ा बन्द था और वह कहीं भी नज़र नहीं आ रहा था।
गाँववालों ने कहा कि जब लॉरी यहाँ आई, तब वह यहीं था और शायद मेहमानों की ख़ातिर की तैयारी करने गया होगा ।
तभी घर के भीतर से ज़ैलदार का छोटा बेटा निकलकर आया और कहने लगा कि उसके पिता शौच को गये हैं ।
गाँववाले यह सुनकर मुस्कुराये और लॉरी के इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गये करतार सिंह और उसका साथी लॉरी की छत पर चढ़ गये और माइक्रोफ़ोन उन्हें पकड़ा दिया गया।
करतार सिंह ने अपने साथी का परिचय कराया कि उनका नाम सेठ सुखटनकर है।
वे नेशनलिस्ट पार्टी के मशहूर नेता हैं और पंजाब एसेम्बली में निर्विरोध चुनकर आये थे। बड़े पैसेवाले और करोड़पति हैं। कई कपड़ा मिलों के मालिक हैं। इन्होंने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के दिनों में यह सम्पत्ति अर्जित की। लड़ाई के पाँच
सालों में इनकी दौलत में बेहद बढ़त हुई है।
इनकों सरकार से कोई सहानुभूति नहीं थी इसलिए इन्होंने खुले मन से काला-बाज़ारी का लेन-देन किया।
लोग भूखों मर रहे थे और उनके बदन पर कपड़ा नहीं था, लेकिन आपने गल्ले के बोरों पर बोरे गोदामों में छिपा लिये
फिर ये सब भारी दामों पर बेचे | आप अंग्रेज़ों के ज़बर्दस्त विरोधी हैं। आप चाहते हैं कि सब हिन्दुस्तानी एक हो जायें। करतार सिंह के भाषण का खास मुद्दा यह था कि अगर चालीस करोड़ हिन्दुस्तानी थूक भी दें, तो उससे ही इतना बड़ा तालाब बन जायेगा जिसमें यहाँ रह रहे सारे अंग्रेज़ डूबकर मर जायेंगे।
लेकिन पता नहीं क्यों, यह करने की स्थिति बन नहीं पा रही। सेठ साहब समाजवाद के भी घोर विरोधी हैं। समाजवादी देशद्रोही हैं। उन्होंने इनकी मिलों में हड़तालें करवाई, और वह भी उस वक्त जब ये सारी विदेशी चीज़ों को भारत से निकालकर उनकी जगह सस्ती, देसी चीज़ों से भर देते | ये लोग विदेशियों के एजेंट हैं।
इसके बाद करतार सिंह ने अपने बारे में बोलना शुरू किया।
वे गंडा सिंह को अच्छी तरह जानते हैं।
जो आदमी शराब पीता है और अपनी दाढ़ी कतरता है, उसे किसी को वोट नहीं देना चाहिये
उसने किसान पार्टी के खिलाफ़ भी प्रचार किया और कहा कि जिन लोगों का कोई धर्म और नियम नहीं है और जो सबकी दौलत में हिस्सा बँटाना चाहते हैं, जिसमें औरतें बाँटना भी शामिल है, उनसे तो दूर रहना ही बेहतर है।
सेठ सुखटनकर की पार्टी जैसे आई थी, उसी तरह धूल के बादल उड़ाती और करतार सिंह के लिए “ज़िन्दाबाद' के नारे लगाती वापस चली गई।
अब हर रोज़ भम्बा में लोग भाषण देने के लिए आने लगे। गंडा सिंह की प्राइवेट ज़िन्दगी अब प्राइवेट नहीं रही। 'लेकिन इससे क्या हुआ, गंडा सिंह के समर्थक कहते “वह किसान है और कौन किसान नहीं पीता
वह शहर में वकील था और हिन्दू व्यापारी उसके पीछे थे। सेठ सुखटनकर ने भी तो लम्बरदारों से यही कहा है कि अगर वे उनकी पार्टी का समर्थन करेंगे, तो उन्हें पैसा दिया जायेगा। यह लॉरी, पोस्टर और लाउड-स्पीकर का पैसा आखिर कहाँ से आता है? करतार सिंह को तो वकालत से ज़्यादा मिलता ही नहीं है।
इन दोनों की आपसी तूूतू मैं-मैं के बावजूद गाँववालों ने तय किया कि किसान पार्टी को वोट नहीं दिया जायेगा । लेकिन किसान दल का कोई नेता अभी तक भम्बा प्रचार करने आया ही नहीं था और गाँववाले भगवान को ना मानने वाले और अनैतिक देशद्रोहियों को देखने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रहे थे।
फिर बसंत की एक शाम को, इस मौसम की और दूसरी शामों की तरह गाँववाले बेमतलब की बातें करते हुए धूप खा रहे थे, किसान नेता भी आ गया।
गाँव के लड़कों ने या कुत्तों ने शोर मचाकर और भौंककर उसका स्वागत नहीं किया, क्योंकि किसी ने उसे देखा ही नहीं। वह सफ़ेद कपड़े पहने उसी तरह सफ़ेद टटटूटू पर सवार वहाँ आ पहुँचा, उसकी लम्बी दाठी नीचे सीने तक लटक रही थी। उसका नाम था बाबा राम सिंह। भम्बा के हर आदमी ने उसके बारे में सुना था। किसान आन्दोलनों में उसे कई बार गिरफ़्तार किया गया था और कई दफ़ा उसने जेल भी काटी थी।
उसकी सब सम्पत्ति ज़ब्त कर ली गई थी और अब उसके पास अपना घर भी नहीं था, हालाँकि किसानों के सारे घर उसके लिए हमेशा खुले रहते थे।
वह जहाँ भी जाता, लोग उसके पैर छूते और औरतें बच्चों को लातीं जिन्हें वह आशीर्वाद देता था ।
उसकी उम्र और दया के कारण लोग उसे 'बाबाजी' कहते थे गाँववाले राम सिंह के इर्द-गिर्द आकर इकट्ठे हो गये और उसके धूल भरे जूतों को चूमने लगे। बाबाजी आज भम्बा क्यों आये हैं ?
उसने बताया कि वह एसेम्बली के चुनाव में खड़ा हो रहा है।
लोगों ने इस पर प्रसन्नता ज़ाहिर की। फिर एक गाँववाले ने उससे पूछा-राष्ट्रवादी दो उम्मीदवार तो खड़े नहीं कर सकते ? करतार सिंह वकील ने उन्हें बताया है कि इस पार्टी का वह उम्मीदवार है। बाबा का जवाब सुनकर सब दंग रह गये। उसने कहा, मैं किसान पार्टी से हूँ।
किसान ?
लेकिन वह तो भगवान का भक्त था। जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी किसानों की सेवा में बिताई थी। और देशद्रोही ? यह कैसे, क्योंकि सरकार ने उसे बीस बरस जेल में रखा था और उसका घरबार सब ज़ब्त कर लिया था। अनैतिक ? यह भी कैसे, क्यों वह तो सिख गुरु जैसा था। न वह शराब पीता था, न दाढ़ी काटता था।
बाबा राम सिंह ज़्यादा देर नहीं रुका। वह वोट इसलिए चाहता था क्योंकि वह विदेशियों को इस देश से भगायेगा और ज़मीदारों से उनकी रक्षा करेगा।
वह पुलिस के अत्याचारों और भ्रष्ट शासन के खिलाफ़ लड़ेगा।
उसने अपने विरोधी उम्मीदवारों का नाम तक नहीं लिया।
के उसके बाद कोई और किसान भम्बा नहीं आया । बाबा भी दोबारा नहीं आया। वह अकेला ही गाँव-गाँव घूमता था और उसकी शान्तिपूर्ण यात्राओं के सामने फोसइथ सरकार के गुर्गे और सेठ सुखटनकर का पैसा आँधी में रुई के टुकड़ों की तरह उड़ जाते थे।
चुनाव के लिए वोट पड़ने के एक दिन पहले उसे भड़काऊ भाषण देने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया।
और पड़ोसी गाँवों की तरह भम्बा में भी मतदान हुआ | सेठ सुखटनकर की लॉरियों में से गंदे-शंदे कपड़े पहने और गंडा सिंह की शराब पीकर लड़खड़ाते सिख बाहर निकले। वे जानते थे कि उन्हें किसे वोट डालना है। हज़ारों आदमी भीतर गये और अशिक्षित होने के कारण अपने उम्मीदवार का नाम बताकर पैदल घर चले आये, क्योंकि अब न सेठ की लॉरियाँ उन्हें वापस ले जाने के लिए कहीं थीं और न गंडा सिंह की शराब और ज़्यादा मौज-मस्ती के लिए।
दस दिन बाद फोरसइथ के दफ़्तर में वोटों की गिनती की गई । उसके सामने गंडा सिंह और करतार सिंह के समर्थक भीड़ लगाये नारेबाज़ी कर रहे थे। बाबा राम सिंह का कोई नाम भी नहीं ले रहा था। । बजे फोसईइिथ की तगड़ी शक्ल सीढ़ियों पर नमूदार हुई। वह मुस्कुरा रहा था। उसने नतीजे की घोषणा की।
1. सरदार गंडा सिंह, ऑनरेरी मजिस्ट्रेट - 11,560 वोट
2. सरदार करतार सिंह, एडवोकेट - 8,340 वोट
3. बाबा राम सिंह - 760 वोट
आखिरी उम्मीदवार की ज़मानत ज़ब्त हो गई। जनता ने फैसला कर दिया धा। जनता की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ कही जाती है।