ईर्ष्यालु सौतेली माँ : संथाली लोक-कथा
Irshyalu Sauteli Maan : Santhali Lok-Katha
किसी समय एक आदमी की पत्नी अपना नन्हा पुत्र छोड़ कर मर गई और उस आदमी ने एक वर्ष बाद दूसरी बार विवाह कर लिया। दूसरी पत्नी उस लड़के से द्वेष करती थी और उसने अपने पति से कहा वह उसके साथ नहीं रहेगी जब तक की वह उस लड़के को जान से न मार दे; पहले तो पति सहमत न हुआ लेकिन पत्नी के ज़िद्द करने पर बोला की उसे ऐसा करने में डर लगता है, यदि वह ऐसा स्वयं करना चाहे तो कर सकती है। वह बोली नहीं यह तुम्हारा लड़का है और तुम को ही उसे जान से मारना पड़ेगा; अगर वह मेरा लड़का होता तो, मैं ऐसा ही करती। तुम को डरने की आवश्यकता नहीं है; जब तुम उसको बाहर जुताई के लिए ले कर जाओगे तो उसे जुताई के समय हल जोतने के लिए आगे रखना, और तुम हल में का लंबा डंडा के छोर को नुकीला बना लेना और आगे चलते समय उसे पीछे से वार करके जान से मार डालना, उसके बाद यह ऐसा ज्ञात होगा की यह एक दुर्घटना है इस प्रकार उस आदमी ने वादा किया वह ऐसा ही करेगा और उसने हल में के लंबा डंडा के छोर को नुकीला बनाया, लेकिन जब कभी वह जुताई के लिए जाता तो उसका लड़का हल को ले कर बड़े तेजी से उसके आगे दूर चला जाता और उसका पिता उसका पीछा नहीं कर पाता और इस कारण वह लड़का को मार नहीं पाया; तब उसकी पत्नी ने अपने पति को बहुत भलाबुरा कहा और आक्षेप किया की वह उसे कपट दे रहा है। इस पर उस आदमी ने कहा की अगले दिन वह इस कार्य को पूरा कर देगा और उसने अपनी पत्नी से कहा की उनके जाने से पहले लड़के को गर्म स्वादिष्ट जलपान कराए, ताकि उसे अंतिम बार कृपा भाव मिल जाये और वह बोला इसको मारने का अब कोई दूसरा युक्ति खोजना होगा क्योंकि अब जुताई का कार्य समाप्त हो गया है; किन्तु उसकी पत्नी बोली हीरा नीचे जा कर साँवाँ का जुताई करेगा और बैल साँवाँ खाने लगेंगे इसलिए उस को रुकना पडेगा, तब तुम कदम बढ़ा कर अपने बेटे के पास पहुँच जाना और इस तरह तुम उसे सहूलियत से पकड़ सकोगे।
तदनुसार अगले सुबह बाप-बेटे जुताई के लिए बाहर गए तब पुत्र ने पूछा आज वे लोग कहाँ जुताई करेंगे, पिता ने कहा आज वे लोग नीचे जा कर साँवाँ के खेत की जुताई करेंगे। लेकिन लड़के ने कहा “हम लोग ऐसा क्यों करेंगे? वह तो अच्छी फसल है और एक-दो दिनों में पकने वाली है, दोबारा बुनाई करने में अधिक विलंब हो जायेगा और हम लोग यह फसल नष्ट कर खो देंगे, मौसम के बारे में कौन जनता है कि बाद में इसके बदले कुछ मिलेगा भी या नहीं?” और पिता ने सोचा बालक का कहना यथार्थ है, पहला उपज और पहला पुत्र दोनों एक जैसे हैं, यदि में इसका वध कर दूंगा तो वृद्धावस्था में मेरा भरण-पोषण कौन करेगा? कौन जानता है कि मेरी दूसरी पत्नी को संतान होगा भी या नहीं? नहीं, मैं इसकी हत्या नहीं करुंगा। हालाँकि पत्नी क्रोधित होगी, और उसने जुआठ से हल को खोल कर अलग कर दिया और अपने घर वापस चला गया। उसने अपनी पत्नी से कहा की वह अपने पुत्र की हत्या नहीं कर सकता। उसने पत्नी को झिड़का और पिटाई करके वृतांत का अंत किया। तब पत्नी दुःखी हो कर उसके पास से भाग गई लेकिन उसे पत्नी के भाग जाने का कोई संताप नहीं हुआ न ही वह उसे खोजने गया। कुछ दिनों के बाद पत्नी के पिता और भाई उसको ले कर वापस घर आये, तब पति ने उनको पूरी घटना का परिज्ञान दिया, उन्होंने भी अपनी पुत्री को भलाबुरा कहा और चेतावनी दिया की अपने व्यवहार में सुधार करे।
कहानी का अभिप्राय: बहकावे एवं शीघ्रता में लिया किया गया कार्य सर्वदा पछतावा का कारण बन सकता है, अतः कोई भी कार्य सोच-विचार कर करना चाहिए।
(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);
(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)