हिम युग की वापसी (विज्ञान कथा) : जयन्त विष्णु नार्लीकर
Him Yug Ki Wapsi (Story in Hindi) : Jayant Vishnu Narlikar
पापा, पापा ! जल्दी उठो। देखो, बाहर कितनी सारी बर्फ है! कितना अच्छा लग रहा
है!"
राजीव शाह की सुबह-सुबह की गहरी नींद बच्चों के शोरगुल से उचट गई। पहले तो
उसे समझ नहीं आया कि शोरगुल किस बात पर हो रहा है। कविता और प्रमोद क्यों
इतने उत्तेजित हो रहे थे?
'पापा, क्या हम नीचे जाकर बर्फ में खेल सकते हैं?" कविता ने पूछा।
बर्फ ! यहाँ मुंबई में! यह कैसे मुमकिन है ? राजीव की नींद फौरन गायब हो गई।
वह लपककर खिड़की के पास पहुँचा और बाहर झाँका। उसे अपनी आँखों पर विश्वास
नहीं हुआ। वाकई! बाहर बर्फबारी हुई थी। दूर-दूर तक घरों के बीच में बर्फ की
सफेद चादर बिछी हुई थी और तभी उसे महसूस हुआ कि कितनी ठंड पड़ रही थी। बच्चों
ने तो दो-दो स्वेटर तक चढ़ा लिये थे। गरम कपड़ों के नाम पर उनके पास वही
स्वेटर थे। वैसे भी मुंबई में गरम कपड़ों की जरूरत किसे पड़ती है। ये स्वेटर
भी उन्होंने पिछले साल ऊटी में खरीदे थे और तब उन्होंने सपने में भी नहीं
सोचा था कि एक दिन मुंबई में उनकी जरूरत पड़ेगी।
"नहीं! नीचे मत जाओ।" ठंड से सिहरते हुए राजीव बोला और फिर अपने चारों ओर शॉल
लपेटते हुए उसने भी हथियार डाल दिए, “हम छत पर चलेंगे। लेकिन पहले अपने
जूते-मोजे पहन लो।"
प्रमोद और कविता दौड़कर पहले ही छत पर पहुँच गए। राजीव ने भी एक और मोटा शॉल
निकाल लिया। उसकी दिली इच्छा हो रही थी कि उनके पास भी कोई हीटर होता। यहाँ
तक कि कोयलेवाली अँगीठी से भी काम चल जाता है।
पिछले एक हफ्ते से जलवायु में जो बदलाव आ रहे थे उसी की परिणति थी यह बर्फ।
आमतौर पर तापमान 15 डिग्री सेल्सियस तक गिरने पर ही मुंबईवाले शोर मचाने लगते
हैं कि ठंड पड़ रही है। कल दिन का तापमान मुश्किल से 5 डिग्री पहुंचा था और
रात में 0 डिग्री हो गया। लेकिन किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि बर्फ भी पड़ने
लगेगी। इस बर्फबारी ने मौसम के अच्छे-अच्छे पंडितों के मुँह बंद कर दिए थे।
अब मौसम में कहाँ और क्या परिवर्तन आएगा, कोई नहीं जानता।
"जल्दी आओ, पापा!" छत की ऊपरी सीढ़ी से प्रमोद चिल्लाया। अपार्टमेंट के सबसे
ऊँचे माले पर बने इस फ्लैट के मालिक होने के नाते छत पर भी उन्हीं का अधिकार
था। मुंबई जैसे शहर में यह बड़े शान की बात थी।
'मैं आ रहा हूँ। पर अपना ध्यान रखो। बर्फ फिसलन भरी हो सकती है।"
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए राजीव ने बच्चों को सावधान किया। वह समझ नहीं पा रहा था
कि छत पर कितनी ठंड होगी।
लेकिन छत पर पहुँचते ही आस-पास का नजारा देखकर वह अपनी चिंता भूल गया। उसे
लगा कि गरम और आर्द्र जलवायु के शहर मुंबई की बजाय वह क्रिसमस कार्ड पर छपे
किसी यूरोपीय शहर की तसवीर देख रहा हो। हिंदू कॉलोनी की कुंज गलियों में लगे
पेड़ों पर भी सफेद चादर बिछी हुई थी। लेकिन फुटपाथों और सड़कों पर यातायात के
कारण काले-सफेद का बेमेल संगम हो रहा था। दादर के पार जाती रेल लाइन भी
सुनसान पड़ी थी।
"मैं शर्त लगा सकता हूँ कि मध्य रेलवेवालों ने भी अपना तामझाम समेट लिया
होगा। उन्हें किसी बड़े बहाने की जरूरत नहीं पड़ती।" राजीव बड़बड़ाया, "मुझे
हैरानी है कि पश्चिम रेलवेवाले क्या कह रहे होंगे।" जवाब के तौर पर तभी उसे
माहिम की ओर जाती पटरी पर लोकल ट्रेन दिखाई दी।
लेकिन राजीव की कल्पनाएँ पाँच साल पीछे की उड़ान भर रही थीं, जब उसने एक शर्त
लगाई थी। उस वक्त तो शर्त लगाना बहुत आसान लग रहा था कि क्या मुंबई में बर्फ
पड़ेगी? उसका दावा था, 'कभी नहीं।' लेकिन वसंत ने बड़े यकीन के साथ कहा था,
'अगले दस वर्षों के भीतर मुंबई में बर्फ पड़ेगी।'
लेकिन ऐसा केवल पाँच वर्षों के भीतर ही हो गया।
वाशिंगटन में भारतीय राजदूत द्वारा दी गई दावत में पहली बार वह वसंत से मिला
था। वसंत यानी प्रो. वसंत चिटनिस, जो उस दौरान अमरीका में जगह-जगह पर
व्याख्यान दे रहे थे। राजदूत ने उस दावत में डी.सी. मैरीलैंड और वर्जीनिया के
बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को बुलाया था। कुछ पत्रकार भी थे, जिनमें राजीव भी एक
था।
विज्ञान और राजनीति पर गपशप का दौर जारी था। लेकिन वसंत चुपचाप बैठा था। ऐसी
दावतों और गपशप में वह शायद ही कभी शामिल होता हो।
'टेलीप्रिंटर पर अभी-अभी एक संदेश आया है। ज्वालामुखी वेसूवियस दोबारा फट
पड़ा है।' एक पत्रकार लगभग चिल्लाता हुआ अंदर दाखिल हुआ।
'हे भगवान् ! तीन महीनों के भीतर फटनेवाला यह चौथा ज्वालामुखी है। ऐसा लगता
है कि धरती माता का पेट खराब हो गया है।' राजीव ने वसंत से कहा, जो उसकी बगल
में ही बैठा था।
'पर हमें धरती माँ के पेट की बजाय उसकी खाल की परवाह करनी चाहिए।' वसंत ने
तुरंत ही जवाब दिया।
आपका क्या मतलब है ?' राजीव ने पूछा।
'हाँ-हाँ, वसंत! हमें भी बताओ।' मैरीलैंड विश्वविद्यालय से आए एक प्रोफेसर ने
कहा।
'अच्छा! जब कोई ज्वालामुखी फटता है तो उसका सबकुछ धरती पर ही नहीं गिरता है।
कुछ पदार्थ वायुमंडल में भी घुल-मिल जाता है। यह निर्भर करता है कि कितना?
क्योंकि एक निश्चित स्तर पार करने पर प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। मुझे
डर है कि हम उस सीमा को अगर पार नहीं कर गए हैं तो उसके निकट तो पहुँच ही गए
हैं।' वसंत ने गंभीरतापूर्वक बताया।
'प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा! फिर उससे क्या होगा?' किसी सनसनीखेज'कथा' की
उम्मीद में एक अमरीकी खबरनवीस पेन और पैड निकालकर तैयार हो गया।
उसकी आँखों में सीधे देखते हुए वसंत ने उलटा सवाल कर दिया, 'कल्पना करें कि
मैं अपनी सलाह दूं कि आप अपनी राजधानी वाशिंगटन से हटाकर होनोलूलू ले जाएँ।'
'पर उसकी जरूरत ही क्यों पड़ेगी?' खबरनवीस ने पूछा।
'क्योंकि आप खबरनवीसों को पहेलियाँ बुझाना अच्छा नहीं लगता, जवाब भी दूंगा।'
मुसकराते हुए वसंत ने कहा, 'मामूली हिम युग के आने से आपको न्यूयॉर्क, शिकागो
और यहाँ तक कि वाशिंगटन जैसे उत्तरी शहर खाली करने पड़ेंगे।'
इससे पहले कि प्रो. वसंत और कुछ बता पाते, विदेश मंत्रालय से एक खास मेहमान
के आने से उनकी बातचीत में व्यवधान पड़ गया। फिर आम बातचीत होने लगी। लेकिन
राजीव वसंत को थोड़ा और कुरेदना चाहता था। अतः जैसे ही बातचीत का मौका मिला,
उसने सीधे मतलब की बात की।
'आप अपने सभी दावों को ठोस सबूतों के साथ पेश करने के लिए विख्यात हैं। लेकिन
क्या हिम युग के बारे में आपकी भविष्यवाणी कुछ दूर की कौड़ी नहीं लगती? अवश्य
ही मैं आपके क्षेत्र का नहीं हूँ, मगर मेरा मानना है कि अगले हजारों साल तक
कोई हिम युग नहीं आएगा। बशर्ते कि हमारा पारंपरिक ज्ञान 'गलत साबित न हो !'
पापड़ खाते हुए वसंत ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, 'मैं साबित कर सकता हूँ
कि अगर हमारे वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकृति का संतुलन यों ही
बिगड़ता गया तो दस साल के भीतर ही यह मुसीबत आ जाएगी। लेकिन मिस्टर शाह, आपको
डरने की जरूरत नहीं। मुंबई में आप सुरक्षित हैं। भूमध्य रेखा के दोनों ओर
उत्तर-दक्षिण में 20 डिग्री अक्षांश तक की पट्टी को सुरक्षित रहना चाहिए।'
अगर मुझे स्कूल में पढ़ी भूगोल की कुछ मोटी-मोटी बातें याद हैं तो मुंबई भी
इसी अक्षांश के भीतर करीब 19 डिग्री उत्तर में स्थित है। आपकी पट्टी के
सीमांत पर।'
'तो हम मुंबईवालों को बर्फबारी और अन्य सब चीजों के साथ असली शीत लहर का
सामना करना पड़ सकता है। मुझे कहना चाहिए कि हम आसानी से बचे रहेंगे।' वसंत
ने चहकते हुए कहा।
'मैं यकीन नहीं कर सकता। केवल दस साल के भीतर मुंबई में बर्फ गिरेगी, यह
नामुमकिन है। अगर आप एक दमड़ी लगाएँ तो मैं दस डॉलर की शर्त लगा सकता हूँ कि
ऐसा कभी नहीं होगा।
निश्चित रूप से यह बहुत दुःसाहसपूर्ण शर्त है।' दस डॉलर का नोट निकालते
हुए राजीव ने कहा।
'मुझे डर है कि हालात मेरे पक्ष में कुछ ज्यादा ही अनुकूल हैं। निश्चित बातों
पर मैं शर्त नहीं लगाता हूँ। पत्रकार साहब, आप निश्चित रूप से यह दस डॉलर हार
जाएँगे। उसकी बजाय आइए, हम अपने कार्ड बदल लेते हैं। यह रहा मेरा कार्ड। मैं
इस पर आज की तारीख लिख देता हूँ। आप भी ऐसा ही करें। अगर दस साल के भीतर
मुंबई में बर्फ गिरती है तो आप मेरा कार्ड लौटा देंगे और अपनी हार मान लेंगे।
अगर नहीं पड़ी तो मैं अपनी हार मान लूँगा।'
अभी वे कार्यों का लेन-देन कर ही रहे थे कि मेजबान ने आकर घोषणा की, 'आइए और
हमारे खानसामे द्वारा बनाई गई खास मिठाई का आनंद लीजिए।'
एक बड़ा सा आइस केक उसी मेज पर लाया गया जिस पर कुछ देर पहले दावत चल रही थी।
केक का नाम पढ़कर राजीव और वसंत दोनों के चेहरों पर मुसकराहट दौड़ गई। केक का
नाम था-'आर्कटिक सरप्राइज'।
'वास्तविक 'सरप्राइज' तो दस साल के भीतर आने वाला है।' वसंत बुदबुदाया, 'पर
वह उतना खुशनुमा नहीं होगा।'
छत पर बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचा रखी थी। कविता द्वारा फेंका गया बर्फ का गोला
राजीव को आकर लगा और वह अतीत से तुरंत वर्तमान में आ गया।
सचमुच में वह शर्त हार चुका था। अब उसे डाक द्वारा प्रो. चिटनिस का कार्ड
वापस भेजना था। वह सीढ़ियों से नीचे उतरा।
पर डेस्क से कार्ड निकालते ही उसपर अंकित फोन नंबर से उसे एक बेहतर विचार
सूझा। अवश्य ही शर्त के अनुसार उसे कार्ड डाक द्वारा भेजना था।
पर फोन द्वारा उनसे सीधे बात क्यों न की जाए। उसने तुरंत ही फोन मिलाया।
"हाँ, चिटनिस?" उसने पूछा।
दूसरे छोर पर स्थित व्यक्ति ने उत्तर दिया, "जी हाँ, वसंत चिटनिस बोल रहा
हूँ। क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ प्लीज?"
"मैं राजीव शाह बोल रहा हूँ, आपको याद होगा।"
"हमारी शर्त ! बिलकुल, मैं आज तुम्हें ही याद कर रहा था। तो तुम हार मानते
हो?"
राजीव की आँखों के सामने दूसरे छोर पर वसंत का मुसकराता चेहरा घूम गया।
"सचमुच, पर क्या आप मुझे साक्षात्कार के लिए आधे घंटे का समय देंगे?
मैं आपकी भविष्यवाणी का वैज्ञानिक आधार जानना चाहता हूँ। मैं आपके सिद्धांत
को प्रकाशित कराना चाहता हूँ।'
"बिलकुल पत्रकार के अनुसार; पर अब इसका कोई फायदा नहीं होगा। फिर भी तुम्हारा
स्वागत है, बशर्ते कि तुम सुबह ग्यारह बजे तक संस्थान में पहुँच जाओ।"
राजीव तुरंत मान गया। वह झटपट दाढ़ी बनाने में जुट गया और साथ ही रेडियो भी
चालू कर दिया। रेडियो पर विशेष समाचार बुलेटिन आ रहा था-
समूचा उत्तर भारत जबरदस्त शीत लहर की चपेट में है। पश्चिमी राजस्थान से बंगाल
की खाड़ी तक और हिमालय से लेकर सह्याद्रि की पहाड़ियों तक जबरदस्त बर्फ पड़ी
है। हताहतों की संख्या का अनुमान लगाना संभव नहीं है। हजारों की संख्या में
आप्रवासी पक्षियों के झुंड मृत पाए गए हैं, जिन्हें मौसम में आए इस अचानक
बदलाव का जरा भी अंदाजा नहीं था। ज्यादातर फसलें चौपट हो गई हैं।
सड़क और रेल संपर्क बुरी तरह बाधित हो गया है। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों
ने अपने-अपने क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया है। बर्फ की आपदा का सामना
करने के लिए प्रधानमंत्री ने विशेष कोष की घोषणा की है। सभी से इस कोष में
खुलकर दान करने की अपील की गई है।"
राजीव ने दूसरा स्टेशन लगाया, पर वहाँ भी यही समाचार बुलेटिन आ रहा था।
तभी कविता की उत्साह भरी चीख सुनाई पड़ी, “पापा, पापा! आओ, टी.वी. देखो।
देखो, इस पर सब जगह बर्फ की तसवीरें दिखा रहे हैं।"
टेलीविजन पर भी विशेष समाचार बुलेटिन आ रहे थे। समूचे उत्तर भारत में गिरी
बर्फ के दृश्यों के अलावा उन बुलेटिनों में और कुछ नहीं था। कम-से-कम तकनीकी
तो सूचना के प्रवाह को थामने में समर्थ थी। राजीव को रूसी फिल्म 'डॉ. जिवागो'
में दिखाए गए दृश्य याद आ गए। टेलीविजन पर देश के प्रमुख शहरों के तापमान
दिखा रहे थे-श्रीनगर -20 डिग्री, चंडीगढ़ -15 डिग्री, बीकानेर -15 डिग्री,
दिल्ली -12 डिग्री, वाराणसी -10 डिग्री, कोलकाता -3 डिग्री।
केवल मुंबई के दक्षिण में पारा 0 डिग्री के मनोवैज्ञानिक स्तर से ऊपर रहने
में कामयाब हो पाया था। मद्रास 3 डिग्री, बैंगलोर 2 डिग्री, त्रिवेंद्रम 7
डिग्री तापमान के साथ अपेक्षाकृत गरम लग रहे थे। तभी एक न्यूज फ्लैश आया--
राष्ट्रपति ने एक आपात बैठक बुलाई जिसमें उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,
मंत्रिमंडल के सदस्य, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायाधीश और विपक्षी दलों के नेता शिरकत करेंगे। इस बैठक में फैसला लिया
जाएगा कि क्या राष्ट्रीय राजधानी को दिल्ली से मुंबई ले जाया जाए?
'तुम्हें अपनी राजधानी वाशिंगटन से होनोलूलू ले जानी पड़ सकती है।' राजीव को
पाँच साल पहले वसंत के कहे गए शब्द याद आ गए, जो उन्होंने अमरीकी खबरनवीस से
कहे थे। अगर भारत जैसे गरम देश में बर्फ ने इतना कहर बरपा दिया है तो यूरोप
और रूस जैसे ठंडे मुल्कों का क्या हाल होगा? वहाँ का हाल जानने के लिए उसने
बी.बी.सी. वर्ल्ड चैनल लगाया।
सचमुच चारों ओर भारी तबाही और बरबादी का आलम था। तापमान 20 से 30 डिग्री तक
गिर चुका था। चूँकि कनाडा, यूरोप और रूस ठंडे मौसम के अभ्यस्त थे, इसलिए
उन्हें इस बदलाव से कुछ विशेष फर्क नहीं पड़ा जितना कि भारत में, जहाँ भगदड़
मच गई थी।
अचानक ही राजीव को अपनी मुलाकात का खयाल आ गया। घड़ी में सुबह के 9 बजकर 5
मिनट हो रहे थे। सूरज अपनी पूरी क्षमता से चमकने का प्रयास कर रहा था, लेकिन
उसकी चमक किसी ग्रह या चाँद से ज्यादा नहीं थी।
कविता और प्रमोद मानकर बैठे थे कि उनका स्कूल आज बंद रहेगा, इसलिए वे दोनों
आराम से टेलीविजन देख रहे थे। उन्हें इस बात का भी सुकून था कि उनकी माँ अपने
मित्र की बेटी के विवाह में शरीक होने के लिए पुणे गई हुई थीं। वरना वह
उन्हें काम पर काम बताती रहतीं।
राजीव ने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और गैराज से अपनी कार बाहर निकाली। कार भी
ठंडी पड़ चुकी थी और बहुत माथा-पच्ची करने के बाद स्टार्ट हो सकी।
सड़क पर निकलने के बाद असली मुसीबत से सामना होने लगा। बर्फ से ढकी सड़क पर
कार बार-बार फिसल रही थी। पर चूँकि राजीव विदेशों में ऐसी सड़कों पर कार चला
चुका था, इसलिए थोड़ी-बहुत दिक्कत के बाद वह कार पर नियंत्रण रखने में सफल हो
गया। लेकिन मुंबई के ज्यादातर ड्राइवरों के साथ ऐसा नहीं था।
डकर रोड पर लावारिस पड़ी या टकराई हुई कारों और बसों को देखकर तो यही लगता था
कि मुंबईवालों को बर्फ पर चलने का अभ्यास नहीं है।
"हम हिंदुस्तानी भी खामख्वाह अपने आपको फन्ने खाँ ड्राइवर समझते हैं। भले ही
हमें केवल ब्रेक और एक्सलरेटर से ज्यादा कुछ और पता न हो।" राजीव बड़बड़ाया
और अपनी कार को कीचड़ व मलबे के बीच सावधानी से चलाने लगा।
उसे महसूस हुआ कि कोलाबा पहुँचने में उसे आज कुछ ज्यादा वक्त लगेगा, हालाँकि
वहाँ पहुँचने में आमतौर पर 40-45 मिनट ही लगते हैं। खैर, उसके पास अभी डेढ़
घंटे का समय था।
आइए पत्रकार साहब! आप एक घंटा लेट हैं। क्या आपको रास्ते में साक्षात्कार के
लिए कोई और शिकार मिल गया था?" दफ्तर में घुसते ही वसंत ने उसका स्वागत किया।
"मुझे खेद है प्रो. चिटनिस। अगर इस गड़बड़-झाले के बीच कार चलाने की बजाय मैं
पैदल आया होता तो शायद यहाँ जल्दी पहुँच जाता।" राजीव आरामकुरसी पर पसर गया।
वसंत भी उसके सामने अपने ओहदे के अनुसार रिवॉल्विंग चेयर पर बैठ गया।
पहले मेरी बधाइयाँ स्वीकार करें प्रोफेसर, उस दिन आपने क्या सटीक भविष्यवाणी
की थी! बिलकुल सही निशाना लगा। पर हम पत्रकार और कुछ चाहे न हों, वहमी जरूर
होते हैं। कृपया मेरा वहम दूर करें कि आपने ऐसी सटीक भविष्यवाणी की कैसे? और
यह क्यों कहा कि अब इसे प्रकाशित करने का कोई फायदा नहीं होगा?"
'आपको अपने सवालों के जवाब इन कागजात में जरूर मिल जाएँगे।"
यह कहते हुए वसंत ने एक फाइल राजीव के सामने रख दी।
उस फाइल में अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छप चुके आलेखों की टाइप की हुई
प्रतिलिपियाँ तथा हाथ से लिखे कागजों का पुलिंदा था। पर उस विषय में अनभिज्ञ
होने के कारण राजीव उनका सिर-पैर कुछ समझ नहीं पाया, वह केवल उनके शीर्षकों
और निचोड़ों को ही नोट कर सका।
"हिम युग की भविष्यवाणी करनेवाला मेरा वैज्ञानिक सिद्धांत प्रकाशित भाग की
बजाय अप्रकाशित भाग में ज्यादा मिलेगा।" वसंत ने सहज भाव से कहा।
'ऐसा क्यों?"
"झूठी वास्तविकता के कारण, हर चीज की बारीकी से नुक्ता-चीनी करने और
निष्पक्षता के झूठे अहसास के कारण, जिस पर हम वैज्ञानिकों को बहुत गुमान है।"
वसंत के चेहरे पर व्यंग्य और हताशा के भाव तैर रहे थे। आगे बोलने से पहले फिर
उसका चेहरा निर्विकार हो गया, "आम लोग सोचते हैं कि हम वैज्ञानिक प्रकांड
विद्वान् होते हैं, जो ईर्ष्या और लालच से परे केवल ज्ञान की खोज में लगे
रहते हैं। पर ये सब बकवास है। हम वैज्ञानिक भी आखिर मनुष्य हैं। मानवीय
स्वभाव की सभी कमजोरियाँ हमारे भीतर भी होती हैं। अगर वैज्ञानिक व्यवस्था को
नई खोजें हजम नहीं होती तो उसके पुरोधा लोग इन खोजों को दबाने के लिए सबकुछ
करेंगे। मुझे भी अपने सिद्धांतों और भविष्यवाणियों के स्वर को मंदा कर देना
पड़ा, ताकि मेरे विचार प्रकाशित हो सकें। और अन्य हाथ से लिखे विचार, जो आप
देख रहे हैं, उन्हें प्रकाशन के लिए कुछ ज्यादा ही अव्यावहारिक और फूहड़ माना
गया।"
"मुझे क्षमा करें, प्रो. चिटनिस।"
'मुझे वसंत कहो।" प्रोफेसर ने बीच में ही कहा।
धन्यवाद, वसंत! लेकिन आप जो कुछ कह रहे हैं, उसमें कॉपरनिकस और गैलीलियो के
दिनों से गजब की समानता दिखती है। अगर मुझे ठीक-ठीक याद है तो कॉपरनिकस ने
अपनी पुस्तक में जो प्रस्तावना लिखी थी उसे प्रकाशक ने पूरी तरह बदल डाला,
ताकि पुस्तक को धार्मिक संस्थानों की तरफ से प्रतिरोध न झेलना पड़े।" राजीव
ने बातचीत रिकॉर्ड करने के लिए टेप रिकॉर्डर चालू कर दिया था। इस बीच उत्तर
देने से पहले वसंत ने अपने विचारों को कुछ व्यवस्थित कर लिया था।
"उन दिनों धार्मिक व्यवस्था थी, जो वैज्ञानिकों को हतोत्साहित करती थी। आज
वैज्ञानिक नौकरशाही है, जो हम वैज्ञानिकों के सिर पर बैठी है। वे समझदार लोग
ही तय करते हैं कि क्या चीज प्रकाशन योग्य है और क्या नहीं। और यदि (चीज) यह
वास्तविक विज्ञान है तो इसे दिन की रोशनी भी नसीब न हो। पाँच सदी पहलेवाली
धार्मिक व्यवस्था की जगह ये आज वैज्ञानिक जगत् के धर्माधिकारी बन बैठे हैं।
माफ करना, अगर मैं कुछ ज्यादा ही कड़वा बोल गया हूँ तो।"
'बेशक वसंत, तुम इस पूरी व्यवस्था पर ही टिप्पणी कर रहे हो। व्यवस्था जैसी भी
हो, तुम अपने निजी अनुभव के आधार पर इसे कोस रहे हो। लेकिन अगर मुझे इसका
पक्ष लेना होता तो मैं यही कहता कि अपने पूरे कैरियर के दौरान वैज्ञानिकों को
सैकड़ों अजीबो-गरीब और अधकचरे विचार सूझते। लेकिन इन सबको परखने का वक्त
किसके पास है ? इसलिए अगर वे किसी नई लीक से हटकर विचार से बचने की कोशिश
करते हैं तो..."
"तो किसे दोष दिया जाए? मैं सहमत हूँ, लेकिन अगर लीक से हटकर सोचा गया विचार
भी तर्कों पर आधारित हो और उसके पक्ष में सबूत भी हों तो क्या उसकी सुनवाई
नहीं होनी चाहिए? निश्चित ही ऐसे किसी ठोस विचार को सैकड़ों अजीबो-गरीब और
अधकचरे विचारों से अलग पहचानना कोई कठिन काम नहीं है। खासकर इसे प्रतिपादित
करनेवाला वैज्ञानिक अपने क्षेत्र में अच्छी-खासी साख बना चुका हो; लेकिन इन
फिजूल की बातों को छोड़कर हमें अपने सिद्धांत पर आना चाहिए।"
ठीक है, वसंत। मुझे अपने सिद्धांत के बारे में बताओ और यह भी बताओ कि यह
क्यों भविष्यवाणी करता है?" राजीव ने कहा।
वसंत ने संसार का नक्शा निकाला और उसे राजीव के सामने मेज पर फैला दिया।
'यहाँ देखो, नक्शे में दरशाई गई ठोस जमीन पर गौर करो। इस जमीन ने नक्शे के
कुल क्षेत्रफल का लगभग एक-तिहाई भाग घेर रखा है। बाकी सारा भाग पानी
है—समुद्रों और महासागरों की शक्ल में। यही महासागर हमारी जलवायु को
नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके ऊपर की गरम हवा ऊपर
उठती है और धरती के वायुमंडल में घुल-मिल जाती है तथा दोबारा नीचे आने से
पहले चारों ओर फैल जाती है। ठीक?"
"यह सब तो स्कूल की किताबों में भी लिखा है।" राजीव ने कहा।
"पर सूर्य क्या कर रहा है? क्या वह महासागरों को पर्याप्त गरमी नहीं देता?"
राजीव ने पूछा।
"ऊष्मा के प्रत्यक्ष स्रोतों के तौर पर सूर्य बहुत ही अप्रभावी है। ध्रुवों
पर गरमी के मौसम में चौबीसों घंटे कितनी चमकदार धूप होती है। पर इससे कितनी
बर्फ पिघलती है ? इसके बजाय बर्फ धूप को परावर्तित कर देती है और उसकी गरमी
को अपने अंदर नहीं आने देती। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से धूप ज्यादा कारगर साबित
हो सकती है और होती है। अगर तुम मेरी प्रयोगशाला चलो तो मैं तुम्हें एक
प्रयोग करके दिखाता हूँ।" इतना कहकर वसंत उठ खड़ा हुआ और राजीव को गलियारे के
पास स्थित अपनी प्रयोगशाला में ले गया।
वहाँ उसकी मेज पर शीशे का एक बड़ा सा बरतन रखा था। एक उपकरण को चालू करते हुए
वसंत ने समझाना शुरू किया, "मैं इस बरतन के अंदर की हवा को धीरे-धीरे ठंडा कर
रहा हूँ। इसमें कुछ नमी है, यानी कि जलवाष्प। अगर मैं हवा को ठंडा करने की
प्रक्रिया को सावधानी के साथ पूरी करूँ तो इसका तापमान 0 डिग्री से नीचे गिर
जाना चाहिए और जलवाष्प को बर्फ में नहीं जमना चाहिए।" तापमान-सूचक नीचे गिर
रहा था और जब वह शून्य से भी नीचे चला गया तब भी बर्फ नहीं जमी थी। तब वसंत
ने बरतन के आर-पार एक प्रकाश-किरण छोड़ी। समकोण से देखने पर बरतन के भीतर
बिलकुल अँधेरा नजर आ रहा था। "ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रकाश इस नम हवा के
आर-पार गुजर जाता है।" वसंत ने समझाया, "पर अब मैं तापमान को और कम करूँगा।"
जब तापमान 0 से 40 अंश नीचे तक गया तो बरतन चमकने लगा। यह परिवर्तन एकदम जादू
जैसा लग रहा था।
"ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बरतन के भीतर हवा में मौजूद जलवाष्प अब जम गई है।
बर्फ के कण प्रकाश को छितरा देते हैं, जबकि नम हवा ऐसा नहीं कर पाती। यही
मुख्य बिंदु है।" वसंत ने कहा।
अपने कमरे में लौटते वक्त वसंत ने बताया, “यही क्रिया ध्रुवीय प्रदेशों में
भी होती है। वहाँ पर जब तापमान 0 से 40 अंश तक नीचे गिर जाता है तो हवा में
बर्फ के कण बन जाते हैं, जिन्हें हम 'हीरे की धूल' कहते हैं। ये वही बर्फ कण
हैं जिन्हें तुमने अभी प्रयोग में देखा था। प्रयोग की तरह ध्रुवों पर भी यह
धूल धूप को छितरा देती है। अन्य जगहों पर हमें ऐसा होता नजर नहीं आता,
क्योंकि कहीं भी तापमान कभी भी इतना नीचे नहीं गिरता है।"
वसंत का बयान हालाँकि टेपरिकॉर्डर में दर्ज हो रहा था, लेकिन राजीव शाह अपने
नोट बनाने में व्यस्त था। हालाँकि उसे अपने सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिल
पाया था। राजीव के चेहरे पर तैर रहे हैरानी के भावों को ताड़कर वसंत मुसकराया
और आगे बोला, "अब मैं तुम्हें अपने सिद्धांत का लब्बोलुआब बताता हूँ। कल्पना
करो कि महासागर ठंडे हो रहे हैं और वायुमंडल को पर्याप्त मात्रा में गरमी
नहीं पहुंचा पाते हैं। इससे हर जगह का तापमान कम होता जाएगा और ध्रुवीय
प्रदेशों के अलावा अन्य जगहों पर भी हीरे की धूल बनने लगेगी और यह धूल क्या
करेगी? धूप को छितराकर यह इसे जमीन तक पहुँचने से रोक देगी। कल्पना करो कि
धूल का यह परदा धरती को आंशिक तौर पर ढक रहा है।" बात राजीव की समझ में आ गई।
आगे की बात को उसी ने पूरा किया, 'फिर धरती और ठंडी हो जाएगी। महासागर भी कम
गरम होंगे। हीरे की धूल बढ़ती जाएगी और फैलती जाएगी। यह धूल धूप को
ज्यादा-से-ज्यादा धरती पर पहुँचने से रोक देगी और हम हिम युग की ओर बढ़ते
जाएँगे। लेकिन अगर महासागर गरम हों तो यह दुश्चक्र शुरू ही नहीं होने पाएगा।"
रुको, रुको!" वसंत ने कहा, "आमतौर पर महासागरों की ऊपरी परत इतनी गरम तो होती
है कि वह वायुमंडल को हीरे की धूल के खतरे से बचा सके। लेकिन अगर कुछ ऐसा हो
जाए जिससे महासागरों के ठंडे होने का दुश्चक्र शुरू होने लगे तो फिर हम हिम
युग से नहीं बच सकते। जैसे जब कभी कोई ज्वालामुखी फटता है तो उसके द्वारा
उगले गए कण वायुमंडल में भी घुल-मिल सकते हैं। वहाँ वे धूप को सोख लेते हैं
या छितराने लगते हैं। इसलिए अगर ज्वालामुखियों की गतिविधियाँ सामान्य से
ज्यादा बढ़ जाएँ तो वायुमंडल में धूल का परदा बनने का खतरा बढ़ जाता है, जो
धूप को गरम करने के अपने काम से रोकता है। जैसा कि मैंने कई साल पहले गौर
किया था कि प्रकृति द्वारा निर्धारित सुरक्षा परत धीरे-धीरे पतली होती जा रही
थी।" और अब राजीव को उस बातचीत का सिर-पैर समझ में आने लगा, जो पाँच साल पहले
वाशिंगटन में हुई थी और यह भी समझ में आ गया कि वेसूवियस ज्वालामुखी के फटने
की खबर सुनकर वसंत उतना चिंतित क्यों हो गया था।
और अब जबकि वसंत की आशंका सही साबित हो चुकी है तो आगे क्या होने वाला है?
'हिम युग आ गया! भारतीय वैज्ञानिक ने भविष्यवाणी की थी'-यह शीर्षक था राजीव
के सनसनीखेज आलेख का। इस आलेख को भारत में खूब वाहवाही मिली। बाद में यह
विदेशी समाचार एजेंसियों द्वारा पूरी दुनिया में खूब प्रचारित- प्रसारित किया
गया। जल्द ही वसंत चिटनिस एक जानी-मानी हस्ती बन गए। इस तथ्य से कि उन्होंने
जलवायु में विनाशकारी बदलाव की वैज्ञानिक तौर पर काफी पहले ही भविष्यवाणी कर
दी थी, उन्हें आम जनता के बीच पर्याप्त मान-सम्मान मिला और अपने वैज्ञानिक
सहयोगियों के बीच उनकी साख भी बहुत बढ़ गई। परिणामस्वरूप भविष्य के बारे में
उनकी भविष्यवाणियों को गंभीरतापूर्वक लिया जाने लगा।
लेकिन अभी भी ऊँचे ओहदों पर जमे हुए वैज्ञानिक ऐसे थे जो हिम युग की शुरुआत
से सहमत नहीं थे। वे मानते थे कि यह केवल जलवायु में अस्थायी गड़बड़ी है, जो
बेशक बड़े पैमाने की है और असाधारण है, लेकिन है अस्थायी, जो जल्द ही ठीक हो
जाएगी। उन्होंने जनता को भरोसा दिलाया कि पुराने व अच्छे गरम दिन कुछ साल के
भीतर फिर लौट आएँगे। बस, महासागरों और उनके ऊपर की हवाओं के गरम एवं ठंडे
होने के चक्र में संतुलन कायम हो जाए; लेकिन ठंड से जमे देशों को विश्वास
दिलाना वाकई काफी कठिन था।
संसार के विख्यात पत्रकारों के सम्मेलन में वसंत ने दोबारा सुस्ती के खिलाफ
चेताया, "हो सकता है कि अगली गरमी के मौसम में कुछ बर्फ पिघल जाए, लेकिन इसे
हिम युग का अंत मत मानिए, क्योंकि उसके बाद आनेवाला सर्दी का मौसम और ज्यादा
ठंडा होगा। इसे टालने का तरीका भी है; लेकिन उस तरीके को जल्द-से-जल्द अमल
में लाना पड़ेगा। इस चक्र को उलट देना अभी भी संभव है, पर इसमें बहुत सारा धन
खर्च होगा। कृपया इसे खर्च करें।"
लेकिन इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ। अप्रैल में वसंत का मौसम आया और
तापमान मामूली रूप से बढ़ा। उत्तरी गोलार्द्ध में हर जगह गरमी का मौसम चमकदार
और गरम था, यहाँ तक कि दक्षिणी गोलार्द्ध में भी सर्दी का मौसम उतना ठंडा
नहीं था जितना उत्तरी गोलार्द्ध में रह चुका था। इसलिए मौसम- विज्ञानी और
अन्य लोग भविष्यवाणी करने लगे कि बर्फ पिघलने लगी है।
विंबल्डन के मैच अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हुए, हालाँकि
खिलाड़ियों को गरम स्वेटर पहनकर खेलना पड़ा। हर कोई खुश था कि मैचों के दौरान
बारिश नहीं हुई। ऑस्ट्रेलिया ने दोबारा एशेज श्रृंखला जीत ली और इस बार कोई
मौसम को दोष नहीं दे सका। यू. एस. ओपन गोल्फ के मैच भी बड़े आरामदेह मौसम में
खेले गए, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। नीचे विषुवतीय प्रदेशों में भी भयंकर
गरमी का नामोनिशान नहीं था; लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून अपने समय पर
और पर्याप्त मात्रा में आया।
तो हमें घबराने की कतई जरूरत नहीं थी। दुनिया के सभी छोटे-बड़े देशों ने
सोचा, एक बार फिर भारत की भोली जनता ने लाल फीते में बँधी अपनी नौकरशाही का
अहसान माना, जो अभी भी राजधानी को दिल्ली से मुंबई ले जाने के मनसूबे बाँध
रही थी। गरमी का मौसम देखकर इन मनसूबों को भी बाँधकर इस टिप्पणी के साथ ताक
पर रख दिया गया कि 'अगली सूचना तक निर्णय स्थगित'।
लेकिन वसंत चिटनिस की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी। एक लौ भी बुझने से पहले
तेज रोशनी के साथ भकभकाती है। गरमी का मौसम उम्मीद के मुताबिक ही था। लेकिन
कोई भी उनकी बात को सुनने के मूड में नहीं था।
लेकिन एक आदमी था राजीव शाह, जिसे वसंत के तर्कों पर पूर्ण विश्वास था। एक
दिन जब राजीव अपने दफ्तर में बैठा टेलीप्रिंटर पर आई खबरों की काट-छाँट कर
रहा था कि तभी वसंत वहाँ पर आ धमका। उसके चेहरे से राजीव ने ताड़ लिया कि
उसके पास जरूर कोई खबर है।
"लो, देखो यह टेलेक्स।" यह कहते हुए वसंत ने उसे एक छोटा सा संदेश पढ़ने के
लिए दिया।
'आपके निर्देशानुसार हमने अंटार्कटिक पर जमी हुई बर्फ की पैमाइश की है। हमने
पक्का पता लगाया है कि बर्फ का क्षेत्रफल बढ़ा है और समुद्र के पानी का
तापमान पहले की तुलना में दो अंश गिरा है।'
"यह संदेश अंटार्कटिक में स्थापित अंतरराष्ट्रीय संस्थान से आया है।"
वसंत ने कहा, "मुझे इसी नतीजे की उम्मीद थी; लेकिन मैं इसे पक्का करना चाहता
था। बदकिस्मती से मेरी आशंका सही साबित हुई।"
तुम्हारा मतलब है कि आनेवाली सर्दी में हमें और ज्यादा ठंड का सामना करना
पड़ेगा?"
"बिलकुल ठीक, राजीव! तुम मेरे पूर्वाग्रहग्रस्त वैज्ञानिक सहकर्मियों से कहीं
ज्यादा समझदार हो। किसे परवाह है! हम सभी इन सर्दियों में जमकर मौत की नींद
सोने जा रहे हैं।"
'चलो भी वसंत, क्या इतना बुरा हाल होने जा रहा है? क्या इस बर्फीले दुश्चक्र
से निकलने का कोई रास्ता नहीं है?" राजीव ने पूछा।
"रास्ता है, लेकिन अब मैं चुप रहूँगा, जब तक कि ये पूर्वाग्रही और हठी
वैज्ञानिक मुझसे आकर पूछते नहीं। हाँ, दोस्त होने के नाते मैं तुम्हें एक नेक
सलाह जरूर दूंगा। भूमध्य रेखा के जितने निकट तुम जा सकते हो, चले जाओ। शायद
अगले कुछ महीनों में इंडोनेशिया का मौसम कुछ बरदाश्त करने लायक बचे। मैं तो
बानडुंग का टिकट खरीदने जा रहा हूँ।" और वसंत जल्दी से बाहर निकल गया।
मानव अपने आपको धरती का राजा कहता है। लेकिन जिस स्तर पर प्रकृति की शक्ति
काम करती है उसके समक्ष मनुष्य की सबसे अच्छी तकनीकी भी बौनी है।
2 नवंबर को मुंबई के लोगों ने एक अद्भुत नजारा देखा। हजारों-हजार पक्षी आसमान
में उड़े जा रहे थे। वे सारे-के-सारे पक्षी बहुत ही अनुशासित ढंग से उड़ रहे
थे। पक्षी विज्ञानी अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए, ताकि इस नजारे को देख
सकें और कुछ सीख सकें। उनमें से अनेक पक्षी पहले कभी भी इस दिशा में उड़कर
नहीं आए थे।
जल्द ही मुंबई के कौए, गौरैया और कबूतर भी इस झुंड में शामिल हो गए। राजीव ने
गौर किया कि वे सभी पक्षी दक्षिण दिशा की ओर जा रहे थे। उन पक्षियों ने अपनी
सहज वृत्ति से वह जान लिया था जो मानव अपनी तमाम उन्नत तकनीकों के बल पर भी
नहीं जान पाया था। स्पष्ट है कि पक्षियों में समझदारी थी और उन्होंने पिछले
साल के अनुभवों से काफी कुछ सीखा था।
आखिरकार दो दिन बाद आसमान में मँडरा रहे मानव निर्मित उपग्रहों ने भी मौसम
में किसी अनहोनी का पता लगा ही लिया। 4 नवंबर को एक चेतावनी प्रसारित की गई।
वायुमंडलीय बदलाव तेजी से हो रहे हैं और इस बात के संकेत हैं कि अगले चौबीस
घंटों के भीतर धरती पर. अनेक जगहों पर भारी बर्फ गिरेगी। गर्व से गरदन अकड़ाए
मौसम-विज्ञानियों ने बताया कि उनकी उन्नत तकनीकों के बगैर यह पूर्व चेतावनी
नहीं आ सकती थी। उन्हें शायद मालूम नहीं था कि पक्षी काफी पहले ही भूमध्य
रेखा के पास सुरक्षित जगहों पर पलायन कर चुके थे। पक्षियों के समान अनुशासन
के अभाव में मनुष्य के बीच भगदड़ मच गई।
जापान, कनाडा, अमरीका और तकनीकी रूप से विकसित यूरोपीय देशों का भरोसा था कि
पिछली सर्दियाँ बिता लेने के बाद वे इस बार फिर किसी भी तरह की ठंड का सामना
कर लेंगे। लेकिन वे इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि उनके बड़े-बड़े शहर भी
पाँच मीटर मोटी बर्फ के तले दब जाएँ। नतीजा यह हुआ कि उसके बाद मची भगदड़ में
केवल वे ही सौभाग्यशाली लोग बच पाए जो परमाणु हमलों से बचानेवाले बंकरों तक
पहुँच सके। पारंपरिक तौर पर गरम देशों में ठंड का कहर कुछ कम था। लेकिन उनमें
भी तैयारी के अभाव में काफी जनसंख्या हताहत हो गई।
राजीव शाह भी मद्रास में अपने चचेरे भाई के पास चला गया, लेकिन वहाँ भी ठंड
के मारे बुरा हाल था। प्रमोद और कविता को भी अब बर्फ में खेलने में मजा नहीं
आता था। अन्य लोगों की तरह वे भी पूछते कि अच्छे पुराने गरम दिन कब आएँगे।
लेकिन आम आदमियों को छोड़िए, विशेषज्ञ लोग भी यकीन के साथ कुछ भी बता पाने
में असमर्थ थे। विशेषज्ञ लोगों में भी, जो पिछली सर्दी के मौसम को बेहद हलके
रूप से ले रहे थे, ज्यादातर लोग मर-खप गए थे। उनमें से केवल एक व्यक्ति ही बच
पाया, क्योंकि वह वाशिंगटन छोड़कर मियामी बीच पर आ गया था। वह रिचर्ड होम्स
था, जो अमरीकी ऊर्जा बोर्ड का सदस्य था। एक दिन अचानक उसके फोन ने राजीव को
आश्चर्य में डाल दिया।
"हाय राजीव! कैसे हो तुम? शर्तिया तुम मद्रास में गरम मौसम का मजा ले रहे हो,
जबकि हम यहाँ मियामी में जमे जा रहे हैं।" रिचर्ड मजाकिया बनने की कोशिश कर
रहा था। लेकिन राजीव को उसके शब्दों में छिपी चिंता का एहसास हो गया।
"चलो भी रिचर्ड ! वास्तव में तुम वहाँ पर अच्छे-खासे गरम घर में दिन गुजार
रहे हो।" उसने कहा।
"मियामी में गरम घर! तुम बचकानी बात कर रहे हो। लेकिन राजीव, मैंने वसंत का
पता लगाने के लिए फोन किया है। तुम जानते हो न, वसंत चिटनिस, वह कहाँ गायब हो
गया? मुंबई और दिल्ली के तो फोन काम ही नहीं कर रहे हैं।"
"जैसे कि इन शहरों के फोन कभी ठीक से काम करते ही नहीं।" राजीव बड़बड़ाया।
उसके बाद उसने रिचर्ड को बानडुंग में वसंत का पता और फोन नंबर दिया।
"मैं जानना चाहता हूँ कि वह इन सबका क्या मतलब निकालता है। हो सकता है, उसके
पास इस संकट से निकलने का कोई रास्ता हो।" सूचना के लिए राजीव को धन्यवाद
देते हुए रिचर्ड ने कहा।
अब अक्लमंद लोग भी बात करने को तैयार हैं। राजीव ने सोचा। कुछ महीने पहले इसी
होम्स ने बुरे दिनों के लिए वसंत की भविष्यवाणी का मजाक उड़ाया था। पर अभी भी
देर नहीं हुई थी, बशर्ते कि वसंत सुनने के मूड में हो।
आपके वाशिंगटन के क्या हाल-चाल हैं, रिचर्ड ?" बानडुंग हवाई अड्डे पर रिचर्ड
का स्वागत करते हुए वसंत ने पूछा।
"वहाँ तो कोई नहीं बचा। दरअसल हमसे ज्यादा समझदार तो पक्षी ही निकले।
उन्होंने समय पर अपने इलाकों को छोड़ दिया।" होम्स ने उत्तर दिया। पिछली
मुलाकात की तुलना में इस बार उसके स्वर में वह जोश-खरोश नहीं था। उसे वसंत की
प्रतिक्रिया का अनुमान नहीं था, इसलिए वह राजीव को भी साथ लाया था। अब वे
चुपचाप वसंत के घर की ओर चले जा रहे थे।
'तुमने भी अपने लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं तलाशी है। तुम नहीं जानते कि सारी
दुनिया पर बर्फ कहर बरपा रही है। देखो, इन टेलेक्स और फैक्स संदेशों को
देखो।" राजीव ने कागजों का पुलिंदा वसंत को थमा दिया।
वसंत ने उन कागजों को गौर से पढ़ा। अगर परिस्थितियाँ सामान्य होती तो वे
सनसनीखेज सुर्खियाँ बन जातीं, पर अब कागजों पर लिखी बातें सामान्य लग रही
थीं-
'ब्रिटिश सरकार ने अपनी बाकी बची 40 प्रतिशत आबादी को केन्या पहुँचाने का
कार्यक्रम पूरा होने की घोषणा की। इस कार्यक्रम को पूरा करने में दो महीने
लगे।'
'मॉस्को और लेनिनग्राद खाली कराए गए रूसी प्रधानमंत्री की घोषणा।'
'हम अपने भूमिगत ठिकानों में एक साल तक जिंदा रहेंगे- -इजराइल के
राष्ट्रपति।'
'उत्तरी भारत में सभी नदियाँ पूरी तरह जम गईं, यू.एन.आई.की खबर।'
विस्तृत संदेशों को पढ़ने के बाद वसंत एक-एक कर कागज राजीव को थमाता गया।
उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। कागजों को पढ़ने के बाद उसने नपी-तुली
टिप्पणी की, “पिछले साल तो हमने केवल एक झलक देखी थी। अब पूरा नजारा देखने को
मिल रहा है। मुझे तो संदेह है कि हम अगला साल देखने के लिए जिंदा भी बचेंगे
कि नहीं।"
क्या इतना बुरा हाल होने जा रहा है ?" राजीव ने चिंतित होकर पूछा।
क्या इसे टाला नहीं जा सकता है?'' रिचर्ड ने पूछा।
'अब शायद बहुत देर हो चुकी है, रिचर्ड, लेकिन हो सकता है कि मैं गलत हूँ। हम
कोशिश कर सकते हैं, पर अब हमारे पास क्या विकल्प है ? हमें इसे पिछले साल ही
करना चाहिए था।"
वसंत ने अपनी डेस्क से टाइप किए हुए कागजों का पुलिंदा निकाला। उसके ऊपर
लिखा-'परियोजना : इंद्र का आक्रमण'।
"इंद्र स्वर्ग का राजा है, जिसका निवास ऊपर आसमान में है। वहीं सारी समस्याओं
की जड़ है।" आसमान की तरफ उँगली उठाते हुए होम्स ने कहा और चुपचाप कागजों का
वह पुलिंदा ले लिया-एक साल पहले वह इनकी तरफ देखना भी नहीं चाहता था।
होम्स और चिटनिस की मुलाकात को छह महीने बीत चुके थे। भूमध्य रेखा के उत्तर
और दक्षिण दोनों ओर केवल दस अक्षांश तक ही इलाका हरा-भरा और नीला था, जो धरती
की पहचान माना जाता है। बल्कि हर जगह हिम युग अपने पैर पसार चुका था और इसी
पतली सी पट्टी में समूची मानव सभ्यता सिमट गई थी और इसी पट्टी में इस सभ्यता
को बर्फ के आक्रमण को रोकने के लिए अपने प्रयास करने पड़े।
मरता क्या न करता!
लेकिन वसंत अब ज्यादा आशान्वित था कि वे अब रॉकेट छोड़ने के लिए तैयार थे।
धुंबा में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में रॉकेट लॉञ्चर के पास खड़ा वह
बेसब्री से अभियान शुरू होने का इंतजार कर रहा था।
"हम तैयार हैं।" अभियान प्रमुख ने कहा।
"तब दागो।" वसंत ने आदेश दिया। उसे किसी अभियान को शुरू करने के लिए शुभ घड़ी
का इंतजार करने से ही चिढ़ थी।
प्रमुख ने एक बटन दबाया। अगला पल बड़ी बेचैनी में बीता, फिर चमचमाता हुआ
रॉकेट नारंगी लपटें छोड़ता आसमान की ओर लपका। इंद्र का विजय अभियान शुरू हो
चुका था। सभी ने चैन की साँस ली।
इस अंतरिक्ष केंद्र से वायुमंडल की जानकारी हासिल करने के लिए पहले ही कई
रॉकेट छोड़े जा चुके थे। अब की बार छोड़ा गया रॉकेट वायुमंडल को काबू में
करने के लिए बनाया गया था। बशर्ते कि यह और भूमध्य रेखा की पट्टी से छोड़े
जानेवाले अन्य रॉकेट बखूबी अपना काम करने में सफल हो जाएँ। श्रीहरिकोटा,
श्रीलंका, सुमात्रा, केन्या और ग्वाटेमाला में भी लॉञ्च पैड ऐसे ही रॉकेटों
और उपग्रहों को छोड़ने के लिए तैयार थे। क्योंकि यह योजना वसंत के दिमाग की
उपज थी, इसलिए पहले प्रक्षेपण की अध्यक्षता करने का सम्मान उसे ही दिया गया।
अपने सामने पैनल पर लगे उपकरणों को देखकर पहली बार उसके चेहरे पर मुसकान आई।
उसने लाल रंगवाला फोन उठाया और रिसीवर पर बोलना शुरू किया-
"अभियान सफलतापूर्वक शुरू हो चुका है।" रॉकेटों, उपग्रहों, गुब्बारों और ऊँची
उड़ान भरनेवाले हवाई जहाजों-सभी को इस अभियान में झोंक दिया गया था। ये सभी
आक्रमणकारी सेना के चार अंग थे और समूची मानव जाति को उपग्रहों द्वारा भेजी
गई सूचनाओं का बेचैनी से इंतजार हो रहा था। ये उपग्रह आधुनिक महाभारत में
संजय की भूमिका निभा रहे थे।
राजीव ने अपनी डायरी में लिखा-'हमारे इस पुराण में धरती के राजाओं ने इंद्र
पर सफलतापूर्वक आक्रमण किया है। क्या यह आक्रमण सफल होगा?'
और आक्रमण क्या था? दरअसल यह वायुमंडल पर धातु के छोटे-छोटे कणों की बौछार
करने की महत्त्वाकांक्षी योजना था। ये कण धूप की गरमी को सोखकर नीचे जमीन पर
बैठ जाएँगे, यह वसंत की योजना थी। उसे उम्मीद थी कि अब तक ज्वालामुखियों के
फटने से निकली राख के कण-जो वायुमंडल में घुल-मिल गए थे, अब धूप को धरती तक
नहीं पहुँचने दे रहे थे-बैठ चुके होंगे उसे यह उम्मीद भी थी कि वायुमंडल पर
धात्विक कणों की बौछार से राख द्वारा हुआ नुकसान पूरा हो जाएगा।
लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं था। वायुमंडल में छितराए हुए हिमकणों को भी
तुरंत ही कम करना था। ऐसा केवल वायुमंडल को विस्फोटक द्वारा गरम करके ही हो
पाता। इसके लिए वसंत ने अस्त्र तकनीकी के विनाशक की बजाय रचनात्मक तरीके से
उपयोग करने की शर्त रख दी।
विनाश के कगार पर पहुँच चुके सभी देशों ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया
और सहयोग की भावना से कार्य करने लगे। इस तरह छह महीने वायुमंडल को विस्फोटक
तरीके से निकली ऊर्जा के द्वारा गरम करने के तरीके खोजने में जुट गए। इन
मिले-जुले प्रयासों के अंत में अब भी एक सवाल मुँह बाए खड़ा था—'क्या यह
तरीका काम करेगा?'
सितंबर का महीना आते-आते इस सवाल का जवाब भी मिल गया। जवाब मानव जाति के पक्ष
में था। सबसे पहले गंगा के मैदानों में जमी बर्फ पिघलने लगी। उसके तुरंत बाद
कैलिफोर्निया से लेकर फ्लोरिडा तक बड़े-बड़े इलाके बर्फ की कैद से मुक्त होने
लगे। मियामी से रिचर्ड होम्स ने वसंत को फोन लगाया-
बहुत-बहुत बधाइयाँ, वसंत! इंद्र के आक्रमण ने विजय प्राप्त की है। हीरे की
धूल तेजी से वायुमंडल से गायब हो रही है। संपूर्ण धरती का वायुमंडल गरम हो
रहा है। तुम वाकई बहुत महान् हो, वसंत।"
वसंत के चेहरे पर वैसा ही संतोष झलक रहा था जैसा तमाम कठिनाइयों को पार कर
कामयाबी हासिल करनेवाले वैज्ञानिक के चेहरे पर झलकता है। अब साथी वैज्ञानिक
भी उसके कार्य की सराहना कर रहे थे। लेकिन भीतर-ही-भीतर उसके मन में गहरी
चिंता और अनिश्चितता अब भी बनी हुई थी। यह युद्ध तो उन्होंने जीत लिया, पर
असली युद्ध तो अभी आने वाला था। जैसा कि अकसर होता है, किसी लड़ाई में अपनी
सारी ताकत झोंक देने के बाद विजेता भी थककर चूर हो जाता है। आदमी थोड़ी देर
रुककर अपनी उपलब्धियों के लिए खुद की पीठ थपथपा सकता है; परंतु बड़े संघर्ष
अभी आने बाकी थे। के कारण मनुष्य की आबादी घटकर आधी रह गई थी। इंद्र के
आक्रमण में बहुत सारी ऊर्जा एवं अन्य आवश्यक संसाधन झोंक दिए गए थे। और अब
पिघलती हुई बर्फ से बड़े पैमाने पर बाढ़ आने का खतरा पैदा हो गया था। क्या
मनुष्य आगे भी सहयोग की भावना के साथ इन समस्याओं का सामना करता रहेगा? यह
सोचते-सोचते वसंत के माथे पर पसीना आ गया। पिछले दो साल में उसे पहली बार
पसीना आया था।