हाथी का बच्चा : रुडयार्ड किपलिंग
Hathi Ka Baccha : Rudyard Kipling
बहुत पहले कभी किसी जमाने में हाथी के सूंड नहीं होती थी। होती थी तो बस एक काली मोटी-सी नाक, जो एक जूते के बराबर बड़ी होती थी। इसे वह एक तरफ से दूसरी तरफ हिला-डुला तो सकता था, लेकिन उससे वह कुछ चीज नहीं उठा सकता था।
उस समय एक हाथी था एक नया हाथी; यानी एक हाथी का बच्चा, जिसके अंदर बहुत अधिक जिज्ञासा थी। इसका मतलब है कि वह हर वक्त बहुत सारे प्रश्न पूछता रहता था। वह अफ्रीका में रहता था। वह अफ्रीका के बारे में अपनी कभी न खत्म होने वाली जिज्ञासा से भरा हुआ था। उसने अपनी लंबी शुतुरमुर्ग चाची से पूछा कि उसकी दुम के पंख इस तरह क्यों उगे हैं। शुतुरमुर्ग चाची ने अपने बहुत सख्त पंजे से उसको थप्पड़ मार दिया। उसने अपने लंबे चाचा जिराफ से पूछा कि उसकी चमड़ी पर ये धब्बे कैसे हो गए। जिराफ ने अपने सख्त खुर से उसको थप्पड़ लगा दिया।
फिर भी उसमें जिज्ञासा भरी रही। उसने मोटी-चौड़ी चाची दरियाई घोड़ी से पूछा कि उसकी आंखें लाल क्यों हैं और दरियाई घोड़ी ने अपने चौड़े-चौड़े खुर से उसको थप्पड़ मार दिया। उसने अपने बालों वाले चाचा बबून से पूछा कि खरबूजे का स्वाद ऐसा ही क्यों होता है, और चाचा बबून ने अपने बालों वाले पंजे से उसे थप्पड़ मार दिया। तब भी उसमें जिज्ञासा पूरी भरी थी। वह हर उस चीज के बारे में प्रश्न पूछता, जिसे वह देखता या सुनता या महसूस करता या सूंघता या छूता । उसके सब चाचा और चाचियां उसकी पिटाई करते रहते। तब भी उसकी जिज्ञासा में कोई कमी न आई।
एक सुहानी सुबह इस जिज्ञासु बच्चे ने एक नया बढ़िया प्रश्न पूछा, जिसे उसने आज तक कभी किसी से नहीं पूछा था। उसने पूछा, 'मगरमच्छ शाम के खाने में क्या खाता है ? " सब लोगों ने गुस्से में जोर से कहा, “हूंहऽऽ" और उसे फौरन ही सीधे मारना शुरू कर दिया। वे सब उसे बिना रुके देर तक पीटते रहे। किसी तरह जब यह सिलसिला खत्म हुआ, तब वह उस कोलो - कोलो चिड़िया के पास आया, जो कांटेदार झाड़ियों के बीच बैठी थी। उसने कहा, “मेरे पिता ने मुझे मारा, मेरी मां ने मुझे मारा, मेरे सब चाचाओं और चाचियों ने मेरी जिज्ञासा के लिए मुझे मारा, और अभी भी मैं यह जानना चाहता हूं कि मगरमच्छ शाम के खाने में क्या खाते हैं।"
कोलो - कोलो चिड़िया ने दुख भरी आवाज में कहा, “तुम बड़ी हरी - नीली चिकनी नदी लिम्पोपो के किनारे जाओ, वहां हर तरफ फोवर - ट्री लगे हैं और पता लगाओ ।"
अगले ही दिन सुबह इस जिज्ञासु बच्चे ने 50 किलो लाल छोटे केले, 50 किलो बैंगनी गन्ने और 17 हरे खरबूजे लिए और अपने परिवार वालों से विदा लेते हुए कहा, “गुड - बाई । मैं बड़ी हरी नीली चिकनी नदी लिम्पोपो के किनारे, जहां हर तरफ फोवर-ट्री हैं, यह पता लगाने के लिए जा रहा हूं कि मगरमच्छ शाम के खाने में क्या खाते हैं।" और उन्होंने उसे एक बार और मारा, उसके 'सौभाग्य' के लिए। हालांकि उसने बहुत ही विनम्रता के साथ उनसे ऐसा न करने का आग्रह किया।
फिर वह चल दिया, थोड़े जोश में; लेकिन चकित बिल्कुल नहीं - मस्ती में खरबूजे खाता और छिलके इधर-उधर फेंकता हुआ, क्योंकि वह उन्हें उठा नहीं सकता था।
वह ग्राहमस्टाऊन से किम्बरले पहुंचा और किम्बरले से खामा कंट्री। फिर खामा कंट्री से उत्तर की ओर होता हुआ पूर्व में चलता गया। सारे वक्त खरबूजे खाते हुए, वह आखिर में बड़ी हरी - नीली चिकनी नदी लिम्पोपो के किनारे पहुंच गया। जैसा कि कोलो - कोलो चिड़िया ने उससे कहा था, बिल्कुल वैसे ही उसके आसपास फोवर - ट्री थे।
तुम्हें भी अब यह जान लेना चाहिए कि उस हफ्ते तक, उस दिन, उस घंटे और उस मिनट तक हाथी के इस बच्चे ने मगरमच्छ को कभी कहीं देखा न था और न ही उसे पता था कि मगरमच्छ कैसा होता है। यह सब उसकी जिज्ञासा ही थी ।
पहली चीज जो उसे मिली वह एक दोरंगा पाइथन चट्टानी सांप था, जो एक चट्टान के चारों ओर कुंडली मारकर बैठा था।
"माफ कीजिए, " हाथी के बच्चे ने बहुत ही नम्रता के साथ कहा, “क्या आपने मगरमच्छ जैसी कोई चीज यहां आस-पास कहीं देखी है?"
"क्या मैंने एक मगरमच्छ देखा है?" दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने बड़ी नफरत के साथ कहा, “अब तुम मुझसे आगे और क्या पूछोगे ?"
"माफ कीजिए, " हाथी के बच्चे ने कहा, “क्या आप कृपा करके मुझे यह बता सकते हैं कि मगरमच्छ शाम के खाने में क्या खाता है?"
तब उस दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने बहुत जल्दी से अपने-आप को उस चट्टान से खोला और अपनी छिलकों वाली मूसल जैसी पूंछ से उसे थप्पड़ मारा।
"बड़ी अजीब बात है !" हाथी के बच्चे ने कहा, “मेरे माता-पिता, मेरे चाचा-चाची, मेरे दूसरे चाचा बबून और चाची दरियाई घोड़ी ने भी मुझे मेरी जिज्ञासा के लिए मारा। मुझे लगता है कि यहां भी वही बात है।”
इसलिए उसने बहुत शराफत के साथ दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप से विदा ली और चट्टान के चारों ओर फिर से कुंडली लगाने में उसकी मदद की। फिर वह चल दिया, थोड़े जोश में; लेकिन जरा-सा भी चकित नहीं - उसी प्रकार खरबूजे खाता और उसके छिलके इधर-उधर फेंकता हुआ, क्योंकि वह उन्हें उठा नहीं सकता था। वह चलता गया, चलता गया, जब तक कि उसे लगा कि वह एक लकड़ी के लट्ठे पर पहुंच गया है, उसी बड़ी हरी नीली चिकनी नदी लिम्पोपो के किनारे पर जहां सब तरफ फीवर-ट्री थे।
प्यारे बच्चो ! वास्तव में वह मगरमच्छ था। मगरमच्छ ने एक आंख मारी ।
"माफ कीजिए, " हाथी के बच्चे ने बहुत ही विनम्रता से कहा, 'क्या आपने यहां आस-पास के इलाके में किसी मगरमच्छ को देखा है?"
तब मगरमच्छ ने अपनी दूसरी आंख मारी और कीचड़ में से अपनी आधी पूंछ ऊपर उठाई। हाथी का बच्चा बड़ी शिष्टता के साथ पीछे कूद गया, क्योंकि वह फिर से और मार नहीं खाना चाहता था।
"छोटे बच्चे यहां आओ," मगरमच्छ ने कहा, “तुम ऐसी बात क्यों पूछ रहे हो?"
"माफ कीजिए," हाथी के बच्चे ने कहा, “मेरे पिता ने मुझे मारा, मेरी मां ने भी मारा। मेरी लंबी चाची शुतुरमुर्ग, लंबे चाचा जिराफ, सभी मुझे बहुत जोर से मारते हैं। साथ ही, मेरी चौड़ी चाची दरियाई घोड़ी और बालों वाले चाचा बबून भी। और दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने तो अपनी छिलकेदार मूसल जैसी पूंछ से सबसे जोर से मारा। इसलिए अगर आपके साथ भी बिल्कुल ऐसा ही है तो मैं और मार खाना नहीं चाहता।"
“ यहां आओ छोटे बच्चे," मगरमच्छ ने कहा, "क्योंकि मैं मगरमच्छ ही हूं।” और वह मगरमच्छी आंसू बहाने लगा, यह दिखाने के लिए कि वह सच बोल रहा है।
यह सुनकर हाथी के बच्चे की तो मानो सांस ही रुक गई। वह हांफने लगा और अपने घुटनों पर झुककर बोला, “आप ही वह जंतु हैं जिसे मैं बहुत दिनों से ढूंढ रहा था । कृपया क्या आप मुझे बताएंगे कि आप शाम के खाने में क्या खाते हैं?"
"यहां आओ छोटे बच्चे " मगरमच्छ ने कहा, "मैं तुम्हें चुपके से बताऊंगा।"
यह सुनकर हाथी का बच्चा अपना सिर मगरमच्छ के आरीनुमा दांतों वाले मुंह के पास ले आया । मगरमच्छ ने उसकी छोटी-सी नाक पकड़ ली जो उस हफ्ते, उस दिन, उस घंटे और उस मिनट तक एक जूते से ज्यादा बड़ी नहीं थी, हालांकि जूते से ज्यादा काम की थी।
प्यारे बच्चो! इस पर हाथी का बच्चा चिढ़ गया और उसने अपनी नाक में से कहा, “मुझे जाने दो, तुम मुझे चोट पहुंचा रहे हो।"
तभी वह दोरंगा पाइथन चट्टानी सांप नदी के किनारे से तेजी से नीचे रेंगा और बोला, “मेरे छोटे से दोस्त, तुम फौरन, अभी इसी पल, जितना ज्यादा से ज्यादा जोर लगाकर खींच सकते हो, खींचो। नहीं खींचोगे, तो मेरा ख्याल है कि तुम्हारा यह जानने वाला जो चमड़े का बड़े-बड़े डिजाइन वाला लट्ठ जैसा है ( उसका मतलब मगरमच्छ था ), तुम्हें एक क्षण में नदी की तेज धारा में धक्का दे देगा।"
दोरंगा पाइथन चट्टानी सांप हमेशा इसी तरह से बात करता था ।
तब हाथी का बच्चा अपने छोटे-छोटे पुट्ठों पर बैठ गया और खींचने लगा। वह खींचता गया, खींचता गया और खींचता गया, उसकी नाक ने फैलना शुरू कर दिया।
और मगरमच्छ पानी में तड़फड़ाने लगा और अपनी पूंछ को पानी में जोर-जोर से फटकारने लगा जिससे पानी में झाग ही झाग हो गए, और वह खींचता गया, खींचता गया, और खींचता गया ।
और हाथी के बच्चे की नाक फैलती गई। हाथी के बच्चे ने अपने चारों पैर फैलाकर जमा लिए और खींचा, खींचता गया, खींचता गया। उसकी नाक फैलती गई । मगरमच्छ अपनी पूंछ पतवार की तरह मार रहा था और वह खींच रहा था, खींच रहा था, खींच रहा था । हरेक बार खींचने के साथ ही हाथी के बच्चे की नाक और लंबी होती गई। उसे दर्द होने लगा।
उसी वक्त हाथी के बच्चे को लगा कि उसके पैर फिसल रहे हैं और उसने अपनी उस नाक में से कहा, जो अब तक लगभग पांच फुट लंबी हो गई थी, “इसे कटना ही होगा ।"
तब दोरंगा पाइथन चट्टानी सांप किनारे से नीचे आया और हाथी के बच्चे के पिछले पैरों पर लिपटकर अपने शरीर में दोहरी गांठ लगा दी और कहा, “मेरे जल्दबाज अनाड़ी दोस्त, अब हम लोग जरा गंभीरता के साथ अपने-आपको जोर का तनाव देंगे। मेरा ख्याल है कि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो कवच लगे जीव के साथ ( उसका मतलब मगरमच्छ था) अपने को खुद ढकेलने वाली लड़ाई में तुम अपना भविष्य हमेशा के लिए बिगाड़ लोगे।"
सब दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप हमेशा इसी तरह से बात करते हैं।
इसलिए उसने खींचा और साथ ही हाथी के बच्चे ने भी खींचा, और मगरमच्छ ने भी खींचा, लेकिन हाथी के बच्चे और मगरमच्छ ने ज्यादा जोर से खींचा और आखिरकार मगर ने नाक को एक छपाक के साथ छोड़ दिया। इस आवाज को तुम लिम्पोपो नदी के बिल्कुल ऊपर से नीचे तक सुन सकते थे।
हाथी का बच्चा धम्म से बैठ गया, लेकिन पहले उसने दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप को धन्यवाद देने का ध्यान रखा और फिर उसने अपनी बेचारी खिंची हुई नाक की परवाह की। उसने उसे ठंडे केले के पत्ते में लपेटकर नदी में लटका दिया ।
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?" दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने पूछा ।
“ माफ करना, मेरी नाक की शक्ल बुरी तरह से बिगड़ गई है। और मैं इसके सिकुड़ने का इंतजार कर रहा हूं।"
“ तब तो तुम्हें बहुत लंबे समय तक इंतजार करना होगा ।" दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने कहा, “कुछ लोगों को मालूम नहीं होता कि उनके लिए क्या अच्छा है।"
हाथी का बच्चा तीन दिन तक वहां अपनी नाक के सिकुड़ने के इंतजार में बैठा रहा। लेकिन नाक जरा-सी भी छोटी नहीं हुई, बल्कि इसने उसकी नजर को और भी बहंगा कर दिया। आप समझ सकते हो कि मगरमच्छ के हाथी के बच्चे की नाक को खींचने से वह वास्तव में असली सूंड जैसी बन गई थी। ठीक वैसी जैसी कि आज सभी हाथियों की होती है।
जब तीसरा दिन खत्म हो रहा था, तब एक मक्खी उड़ती हुई आई और उसने हाथी के बच्चे के कंधे पर डंक मारा। लेकिन यह सोचने से पहले कि वह क्या कर रहा है, उसने अपनी सूंड उठाई और उसके सिरे से मक्खी को मार दिया।
“लाभ नंबर एक," दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने कहा, “तुम ऐसा अपनी पुरानी नाक से नहीं कर सकते थे। अब थोड़ा-सा कुछ खाने की कोशिश करो।"
इससे पहले कि वह सोचता कि वह क्या करेगा, हाथी के बच्चे ने अपनी सूंड फैलाई और घास का एक बड़ा-सा गुच्छा उखाड़ लिया। अपने आगे के पैरों से उसने उसकी मिट्टी झाड़ी और उसे अपने मुंह में ठूंस लिया।
"लाभ नंबर दो” दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने कहा, "ऐसा तुम सिर्फ एक चिकनी-सी नाक से नहीं कर सकते थे। क्या तुम्हें नहीं लग रहा कि यहां धूप बहुत तेज है? "
"हां तो," हाथी के बच्चे ने कहा, और यह सोचने से पहले कि वह क्या कर रहा है, उसने बड़ी हरी नीली चिकनी नदी लिम्पोपो के किनारे से खूब सारी गीली मिट्टी उठाकर अपने सिर पर थोप ली और कानों के पीछे तक सिर पर मिट्टी की ठंडी टोपी बना ली।
"लाभ नंबर तीन, " दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने कहा, "ऐसा तुम सिर्फ एक छोटी-सी नाक से नहीं कर सकते थे। अब तुम फिर से थप्पड़ खाने के बारे में क्या सोचते हो?"
"माफ करना," हाथी के बच्चे ने कहा, “लेकिन मुझे यह जरा भी अच्छी नहीं लग रही है ।"
"तुम्हें किसी को मारना कैसा लगेगा,” दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने पूछा।
"सच कहूं तो मुझे यह बहुत अच्छा लगेगा, " हाथी के बच्चे ने कहा।
“ठीक है, तुम देखोगे कि तुम्हारी यह नई नाक लोगों को मारने में बहुत काम आएगी।"
“धन्यवाद!" हाथी के बच्चे ने कहा, “मैं इसे याद रखूंगा और अब मैं अपने प्यारे परिवारजनों के पास जाऊंगा और इसकी कोशिश करूंगा।”
इसलिए अब हाथी का बच्चा अफ्रीका पार अपने घर की ओर चल दिया, अपनी नाक को घुमाता - उछालता। जब वह फल खाना चाहता, पेड़ से फल नीचे खींच लेता। अब उसे पहले की तरह उसके नीचे फल गिरने का इंतजार नहीं करना पड़ता। जब वह घास खाना चाहता तो पहले की तरह घुटनों पर बैठकर नहीं खाता, बल्कि घास को जमीन से ही उखाड़ लेता। जब उसे मक्खियां सतातीं तब वह किसी पेड़ से एक टहनी तोड़कर उससे मक्खियां उड़ाता। जब धूप तेज होती तब अपने लिए नई ठंडी मिट्टी कीचड़ की टोपी बनाता । जब चलते-चलते उसे अकेलापन लगने लगता तब वह अपने लिए ही गाने लगता - अपनी नाक में से नीचे तक, और उसकी आवाज कई ब्रासबैंडों के शोर से भी ज्यादा जोर की होती ।
वह अपने रास्ते से अलग हटकर, खासतौर पर एक चौड़े दरियाई घोड़ी को ढूंढने गया। वह उसकी कोई रिश्तेदार नहीं थी । उसने उसे बड़ी जोर से अपनी सूंड से थप्पड़ मारा। वह जांच लेना चाहता था कि उसकी नाक के बारे में दोरंगे पाइथन चट्टानी सांप ने जो कहा था, क्या वह ठीक था ! बाकी के रास्ते वह उन छिलकों को उठाता गया जो उसने जाते हुए फेंके थे, क्योंकि वह एक साफ-सुथरा तरतीब पसंद हाथी था।
और एक दिन शाम को अंधेरा होने पर वह अपने परिवारजनों के पास पहुंच गया। उसने अपनी सूंड को ऊपर लपेट रखा था। उसने कहा, “आप लोग कैसे हैं।" वे सब उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए और फौरन कहा, "यहां आओ और अपनी जिज्ञासा के लिए मार खाओ।"
"ओफ्फोह !" हाथी के बच्चे ने कहा, “मेरे ख्याल से आप लोग थप्पड़ मारने के बारे में कुछ नहीं जानते। मैं जानता हूं और मैं आप लोगों को दिखाऊंगा।"
उसने अपनी सूंड खोलकर उससे अपने दो प्यारे भाइयों को ऐसा झापड़ मारा कि दोनों कलाबाजी खा गए !
उन्होंने कहा, “तुमने यह दांव कहां सीखा? तुमने अपनी नाक का यह क्या कर लिया है?"
"यह बड़ी भद्दी लग रही है," उसके बालों वाले चाचा बबून ने कहा।
"सो तो है, लेकिन है यह बड़े काम की चीज,” हाथी के बच्चे ने कहा और उसने अपने चाचा को उसका एक पैर पकड़कर उठा लिया और उसे ऊपर ततैये के छत्ते में फेंक दिया।
उसके बाद हाथी के उस गंदे बच्चे ने अपने सब परिवारवालों को मारना शुरू किया और उन्हें देर तक मारता रहा जब तक कि वे सब बहुत ताज्जुब में नहीं आ गए। उसने अपनी लंबी चाची शुतरमुर्ग की पूंछ में से पंख खींचकर निकाल लिए। अपने लंबे चाचा जिराफ का पीछे का पैर पकड़कर उसे कांटोंवाली झाड़ी में घसीटा। वह चौड़ी चाची दरियाई घोड़ी पर चिल्लाया और जब वह पानी में सो रही थी तब उसके कानों में बुलबुले छोड़े। लेकिन उसने किसी को भी कोलो - कोलो चिड़िया को कभी हाथ नहीं लगाने दिया ।
आखिर में सब कुछ इतना ज्यादा उत्तेजक हो गया था कि उसके परिवार के सब लोग बहुत जल्दी में एक-एक करके उस मगरमच्छ से नई नाक उधार लेने के लिए बड़ी हरी- नीली चिकनी नदी लिम्पोपो - जिसके पास फीवर - ट्री थे- के किनारे चल दिए ।
जब वे वापस आए उस दिन से किसी ने किसी दूसरे को नहीं मारा । वे सब हाथी जिन्हें तुम कभी देखोगे और साथ ही वे सब हाथी भी जिन्हें तुम कभी नहीं देखोगे, उनके बिल्कुल वैसी ही सूंड होगी जैसी उस अति जिज्ञासु हाथी के बच्चे की थी।