हैप्पी बर्थ डे (कहानी) : दामोदर माऊज़ो-अनुवाद : रमिता गुरव

Happy Birthday (Story in Hindi) : Damodar Mauzo

“हैलो, मैं आमोद बोल रहा हूँ- आमोद देसाई । फर्नांडीस, आई मीन, कैव्हीन फर्नांडीस है क्या?"

“हैलो, मिस्टर देसाई, मैं मिसेज़ फर्नांडीस बोल रही हूँ। कैव्हीन अभी बाबा को लेकर ग्राउंड पर गया है, फुटबॉल प्रैक्टिस के लिए। कुछ ही दिनों में उनका सिलेक्शन होनेवाला है ना। एनी मैसेज ?"

कैव्हीन अकाउंट्स सेक्शन में काम करता है। जब भी कभी काम की वजह से उससे मिलना होता है... तब... सिर्फ़ अपने बेटे की ही बातें बताता रहता है। क्या खेलता है, क्या दिमाग़ पाया है! कल ही कैव्हीन कह रहा था कि जूनियर फुटबॉल टीम में अगर वह चुन लिया गया तो अगले महीने उसे टीम के साथ पंजाब जाना होगा... बेटा सिलेक्ट हो इसलिए पता नहीं कितनों की जेब गरम की होगी। ये मिसेज़ फर्नांडीस भी ना... अपने बेटे का गुणगान करने का एक भी मौक़ा नहीं गँवाती । फुटबॉल प्रैक्टिस के लिए गया है! हं!

"कुछ मैसेज है उसके लिए मिस्टर देसाई ?"

"जी... जी हाँ । उसे ही नहीं, आपको भी । हमारे चैतन्य का, आई मीन माई सन, उसका बर्थ डे है। परसों, शनिवार को शाम को हमारे यहाँ एक छोटी- सी पार्टी रखी है। आप दोनों को, आई मीन आप तीनों को हमारे घर आना है। इनविटेशन देने के लिए ही आपको फ़ोन किया है।"

"शनिवार मतलब सैटर्डे ना? बाबा की प्रैक्टिस ख़त्म होने में ही साढ़े सात बज जाते हैं। सिलेक्शन..."

"नो प्रॉब्लम, मिसेज़ फर्नांडीस देर होती है तो हो जाने दीजिए, लेकिन आइएगा ज़रूर । आई एम काउंटिंग ऑन युअर विज़िट ।”

फ़ोन नीचे रखते समय आमोद की नज़र उस फुटबॉल पर पड़ गई जो वह चैतन्य के लिए लेकर आया था। कम-से-कम इसे देखकर तो चैतन्य खेलने में दिलचस्पी लेना शुरू कर देगा, इस ख़याल से आमोद उसे ले आया था। सुबह ही हर्षा ने फुटबॉल अलमारी के ऊपर से निकालकर, साफ़ करके नीचे रखा था। ज़ोर से किक मारने की तीव्र इच्छा को दबाते हुए उसने हल्के से पाँव लगाया और बॉल सोफ़ा के नीचे धकेल दिया।

"कोई किक मारे तो मेरे बेटे की तरह ! बॉल को रोकने की कोशिश करे तो बॉल के साथ गोलकीपर भी सीधे नेट के अन्दर ! " एक दिन फर्नांडीस बड़ी डींगें हाँक रहा था। फर्नांडीस के जाने के बाद प्यून गांवस ने कहा था, "इस फर्नांडीस ने अपने बेटे को कुछ ज़्यादा ही सिर पर चढ़ा रखा है। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन अपने बाप को ही किक मार दे।”

"मिला क्या फर्नांडीस ?” मोबाइल से अपनी सहेलियों को फ़ोन करते-करते हर्षा ने बीच में पूछ लिया।

"नहीं। लेकिन उसकी बीवी मिली। वो तो उससे भी आगे निकली..."

"क्यों, क्या कहा उसने?”

"सिर्फ़ बाबा की बातें..."

“बाबा?”

"बेटा उनका ! कह रही थी कि सिलेक्शन के लिए प्रैक्टिस करने जा रहा है। अच्छा खेलनेवाले बहुत होते हैं। पर सब कहाँ सिलेक्ट हो पाते हैं? मैंने ना है कि कैहन ने किसी मिनिस्टर को पकड़ रखा है। मैं बेट लगाता हूँ, कल अगर उसका बेटा सिलेक्ट हुआ ना तो सिक-लीव डालकर कैव्हीन भी टीम के साथ पंजाब जाए बग़ैर नहीं रहेगा।”

पर चैतन्य को किसी भी खेल में दिलचस्पी नहीं है। फुटबॉल ला दिया तो दो दिन में तीन गिलास और चार आईने तोड़ डाले ।

“हाऽय इन्दिरा ! अरे कब से फ़ोन लगा रही हूँ तुम्हें !”

"फिर मिस्ड कॉल कैसे नहीं मिला मुझे?"

“अरे, मैं तुम्हारे घर का नम्बर लगा रही थी । भूल ही गई ... तुम्हें यहाँ- वहाँ घूमने से फुरसत मिले तब ना! तो सोचा, मोबाइल ट्राय करके देखते हैं। हो कहाँ तुम ?”

"गार्डन में गई होगी। बच्चों का तो सिर्फ़ बहाना है ! इम्प्रेशन जमाती घूम रही होगी। "

आमोद को सुनते ही हर्षा पहले थोड़ी सकपका गई। फिर फ़ोन पर हाथ रखते हुए दबी आवाज़ में चिढ़कर बोली-

"इतनी ज़ोर से क्यों बोल रहे हो? उसे सुनाई देगा। ज़रा चुप रहो।" और फिर से उसने मोबाइल कान से सटाया-

"अरे, नहीं । आमोद चैतन्य से बात कर रहा था। पापा जब घर होते हैं ना तो बेटा चिपक के बैठता है उनसे। मुझे तक नहीं पहचानता । ऐs इन्दिरा, ये कैसा शोर सुनाई दे रहा है? गार्डन में हो क्या ? आँ...मुझे पता था ।”

"तुम भी चैतन्य को लेकर आ जाओ । गार्डन अब बहुत अच्छा बन गया है। बच्चे कितना एन्जॉय कर रहे हैं !! "

"आने का मन तो करता है। पर फ़ुरसत कहाँ है? समय ही नहीं मिलता। ऊपर से मुझे गाड़ी चलानी नहीं आती और तुम्हारी तरह मेरे पास स्कूटी भी नहीं है। आमोद के भरोसे तो नहीं रहा जा सकता। उसके घर पहुँचने तक शाम भी रात के क़रीब पहुँच जाती है। फिर कहाँ का गार्डन वार्डन, बोलो?"

"अभी आ जाओ ना! ऐs देखो, गौरवी भी अपने दोनों बच्चों को लेकर आ गई। तुम्हारा तो एक ही है। कितने दिन हो गए उसे देखे हुए। और 'तुम तो उसे लेकर घूमने भी नहीं आती हो। अब उसे लेकर आ जाओ। उसे भी खेलने का मौका मिलेगा। आमोद से कहो कि ज़रा पहुँचा दे तुम्हें इतना दूर भी तो नहीं है। "

इन्दिरा का आग्रह- कितना सच्चा, कितना झूठा, भगवान जाने !

"तुम्हें पता है ना, चैतन्य को घूमना पसन्द नहीं। ख़ासकर गार्डन तो उसे बिलकुल ही अच्छा नहीं लगता। और बहुत दिनों के बाद आज आमोद जल्दी घर पहुँचा है। उसने चैतन्य के साथ खेलने का प्रोग्राम बनाया है। देखो, फुटबॉल लिये खेल रहा है उसके साथ... ना ... ना...। घर में ही । "

इतने में चैतन्य के शाम के नाश्ते का समय हो गया। आमोद ने उसे उठाया और डाइनिंग टेबल के पास कुर्सी पर बिठा दिया।

“ऐ, आमोद। मैंने हॉर्लिक्स बनाकर रखा है। ज़रा उसे पिलाओगे? अरे नहीं, ज़िद्दी है । पर ज़रा लाड़-प्यार करें तो पी लेता है। पापा ने पिला दिया तो..."

"अच्छा, फ़ोन क्यों किया था?” इन्दिरा शायद जल्दी में थी ।

“मैं भी ना! देखो दुनिया भर की बातें करती रह गई। तुम्हें बर्थ डे के लिए बुलाना था, इसीलिए फ़ोन किया। हाँ... हाँ। चैतन्य का ही परसों-शनिवार को। शाम सात बजे तक पहुँच जाना। बच्चों को साथ लाना। और पति को भी।”

"किस हॉल में?"

इन्दिरा ने अपने बच्चे का चौथा जन्मदिन भी हॉल में मनाया था। आजकल सब यही करते हैं। ऊपर से नाचना, गाना, गेम्स, जादू के खेल....बच्चों के मुक़ाबले बड़े ही ज़्यादा हो-हल्ला मचाते हैं।

"अरे हॉल में क्यों? हमारा फ़्लैट इतना भी छोटा नहीं है। ऊपर से हमारे पास ओपन टैरेस है। तुमने देखा है ना? हाँ, हाँ। हमने वह बन्द करके रखा है। चैतन्य इतनी शरारत करता है ना... डर लगता है। और वैसे भी हम सभी को तो बुलानेवाले हैं नहीं। सिर्फ़ अपने नज़दीकी लोगों को ही बुला रहे हैं। आना, हं...! और मिस्टर को भी बता देना। नहीं तो कहेंगे कि बताया ही नहीं । "

"इन्दिरा को लगता है कि अगर उसने हॉल में बर्थ डे सेलिब्रेट किया तो अब बाक़ी लोगों को भी वही करना चाहिए।” हर्षा ने फ़ोन नीचे रखते हुए कहा।

हॉर्लिक्स पिलाते समय चैतन्य के शरीर पर जो गिरा था उसे अपने रुमाल से पोंछते हुए आमोद ने कहा, "हॉल में सेलिब्रेट करने में उसका क्या जाता है? उसका पति फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन में है। सब होटल्स उसकी जेब में हैं। हॉल भी मुफ़्त और केटरिंग भी मुफ़्त - ऐसा लोग कहते हैं... हं!"

"हो सकता है। पिछले साल इन्दिरा ने अपनी बेटी के लिए सोने के कंगन बनवाए थे। शायद डेढ़ तोले के होंगे। दिखाते समय ख़ुद ही बड़ी प्रशंसा कर रही थी। अब हमने चैतन्य के लिए जो सोने की चेन बनाई है ना, उसे देखकर कहीं उसकी आँखें फटी की फटी न रह जाएँ । ”

“मैं कह रहा था कि तुम्हारी उस इन्दिरा को हमें बुलाना ही नहीं चाहिए था। मुझे वो ज़रा भी पसन्द नहीं। बड़ी दिखावापसन्द है। और उसका वो पति! गवर्नमेंट अफ़सर का तमगा लिये घूमता है। पिछले दिनों जब हम बर्थ डे के लिए उनके यहाँ गए थे तब जो कुछ हुआ उसे मैं नहीं भूला हूँ ।"

“क्यों? क्या हुआ था?”

"भूल गईं? उन्हें बड़ी चिन्ता थी कि अभी तक हमने चैतन्य को के.जी. में क्यों नहीं डाला?

"वैसे भी इन्दिरा को मैंने पहले ही बताया था- के. जी., मांटेसरी इन सब पर हमारा रत्तीभर भरोसा नहीं है । कवि मनोहरराय ने देखो वह कितनी अच्छी बात कही है - के. जी. का मतलब है 'किलोग्राम' । इत्ते से बच्चे का दिमाग़ उसके बोझ से दब जाता है। यही कहा था मैंने उनसे तो ऐसे हँस दिए जैसे कोई जोक सुनाया हो।”

"अरे, मैंने भी उसके पति से यही कहा था। बच्चों को छह साल की उम्र में स्कूल में डालना चाहिए। बाक़ी नर्सरी राइम्स और खेल हम उसे घर में ही पढ़ानेवाले हैं। पर साहब कमाल के शक्की स्वभाव के निकले! पूछने लगे- आपका बेटा कहीं प्रॉब्लमैटिक तो नहीं है ना? ऐसाss गुस्सा आया था मुझे!”

“कहीं मिसेज़ अमोनकर ने उनसे इस बारे में कुछ कहा होगा क्या? इन्दिरा की उनसे अच्छी जान पहचान है।”

"मुझे नहीं लगता। वैसे वे बड़ी अच्छी इनसान हैं । तुम्हें याद नहीं? जब प्री-प्राइमरी में एडमिशन नहीं मिल रहा था तब उन्होंने ही हमारी बात रखी और प्रायॉरिटी पर हमें दिलवाया था।”

“लेकिन बाद में उन्होंने ही हमें बुलाकर कहा था ना - बच्चे डिस्टर्ब हो जाते हैं। पढ़ाई को छोड़ बच्चों का ध्यान चैतन्य पर ही चला जाता है ! "

“पर हमारे भले के लिए ही तो कहा था उन्होंने! शरारती बच्चे चैतन्य को चिढ़ाते थे। उसे तंग करते थे, इसलिए ...”

"फिर गुस्सा तो हमें आना चाहिए था ना ? पैरेंट्स ने शिकायत की है ऐसा क्यों कहा उन्होंने?"

"उन्होंने ऐसा नहीं कहा था। पैरेंट्स शिकायत करें इससे पहले ही उसे दूसरी जगह डालिए, ये कहा था। ऊपर से उन्होंने ही सलाह दी थी। चैतन्य का मन स्कूल में नहीं लगता है। वह दूसरों के मुक़ाबले ज़रा सा अलग है। लोग उसके बारे में कुछ भी अनाप-शनाप बोलना शुरू करेंगे। उससे अच्छा है...”

"एबनॉर्मल बच्चों के लिए स्कूल होते हैं ऐसा उन्होंने ही बताया था ना ? अगर हम चाहें तो वे खुद हमारी बात रखने के लिए तैयार थीं- जहाँ 'डैडी' ज़ होम' कहते हैं, वहाँ! आख़िर उन्हें भी यह एबनॉर्मल ही दिखाई दिया ना?"

"फिर भी उनका उद्देश्य अच्छा था। उन्होंने ही तो कहा था कि हम 'तारे ज़मीं पर' ज़रूर देखें!"

मिसेज़ अमोनकर ने कहा था इसीलिए वे उस फ़िल्म को देखने गए थे। ईशान की छटपटाहट को देख उन्हें रोना आया था। ईशान के माता-पिता पर उन्हें बड़ा गुस्सा आया था। फ़िल्म देखकर जब वे घर पहुँचे तो चैतन्य गहरी नींद में था। सोया हुआ चैतन्य कितना सुन्दर दिख रहा था! तब हर्षा ने कहा था, “हमें भी ऐसा ही एक राम निकुम्भ सर मिलना चाहिए था नहीं?"

फ़िल्म देखने के बाद चैतन्य के लिए आमोद कलरिंग बुक्स और क्रेयंस का एक बड़ा पैकेट लेकर आया था। पेंटिंग तो वहीं की वहीं रह गई। एक दिन जब भूख लगी तब वह दो क्रेयन्स ही खा गया ।

“मिसेज़ अमोनकर बड़ी समझदार हैं। उन्हें बच्चे पसन्द हैं। चैतन्य का भी अच्छी तरह से ख़याल रखती थीं। अगर वो कोई स्कूल खोल देंगी, तो मैं आँख मूँदकर चैतन्य को उनके हवाले कर दूँगा।”

"ठीक है, ठीक है। तुम मिसेज़ अमोनकर को बुलाना चाहते हो ना? बुलाओ। पर बाद में वह पूछेंगी - बंटी कैसी है? तो क्या बताओगे? बताओगे कि उसे अपने फ्रेंड को दे डाला?"

“ऐसा करते हैं, बर्थ डे के दिन सिरिल से फेवर लेकर बंटी को अपने यहाँ आते हैं। उसे बाबा से दूर बाँधकर रख देंगे।”

हर्षा की आँखें चमक गईं, “आइडिया ! आजकल पोमेरियन कुत्तों को पालने का फ़ैशन चल पड़ा है। जब लोग आएँगे तो इम्प्रेशन पड़ेगा, फ़्लैट की शोभा भी बढ़ेगी।"

"कितनी बार तुमसे कहा है कि लोग 'पोमेरियन' कहते हैं तो कहने दो। तुम सही-सही ‘पोमेरेनियन' कहना ।” फ़ोन डायल करते-करते आमोद ने हर्षा की ग़लती को सुधारते हुए कहा ।

पिछले साल के नवम्बर में मिसेज़ अमोनकर की पोमेरेनियन कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया था। एक पिल्ला हर्षा को देते हुए उन्होंने कहा था, “ये बंटी है। बच्चों को पेट्स बहुत अच्छे लगते हैं। चैतन्य को भी पसन्द आया तो उसे खेलने के लिए एक साथी मिलेगा । "

पहले ही दिन चैतन्य ने बंटी के सफ़ेद बालों में अपने हाथ डाल दिए और फिर उन्हें अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़े हुए बैठ गया। किसी भी तरह मुट्ठी खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा था । बंटी ने पहले चिल्लाना शुरू किया। फिर उसे काट डाला, खरोंच लिया... आख़र में जब रोएँ टूटकर उसके हाथ में आ गए तब जाकर चैतन्य ने मुट्ठी खोली। उसी रात आमोद बंटी को लेकर गया और सिरिल के पास छोड़ आया।

“मिसेज़ अमोनकर के घर का फ़ोन कोई उठा क्यों नहीं रहा? तुम्हारे पास उनका मोबाइल नम्बर है क्या?"

“नहीं बाबा! उसके बजाय रात को ट्राय करते हैं ना? तब तक तुम डॉ. केरकार को फ़ोन करो। "

डॉ. केरकार...चाइल्ड स्पेशलिस्ट। जब बाबू पैदा हुआ था तब मैटर्निटी होम ने ही उन्हें बुलावा भेजा था। जब मिले तो पता चला कि वे आमोद के स्कूलमेट थे। अच्छे डॉक्टर के रूप में उनका बड़ा नाम था। साथ ही लेखक के रूप में भी बड़े मशहूर थे ।

"बधाई हो! अ हेल्दी चाइल्ड !”

ख़ुश होकर उसने सबको तीन किलो पेड़े बाँटे थे। पेड़ा मुँह में डालते हुए केरकार ने कहा था-"हर्षा और आमोद का मतलब है असीम आनन्द और इनसे जिसने जन्म लिया है, वह है साक्षात चैतन्य!”

आमोद ने उसी शब्द को पकड़कर रखा। चैतन्य! नामकरण के समय विशेष रूप से डॉ. केरकार को बुलाया था। तब से वे उनके पारिवारिक मित्र बन गए थे।

महीना हो गया था फिर भी बेटा अपना सिर उठा नहीं पा रहा था ।

“कुछ बच्चों को समय लगता है गर्दन सीधी रखने में।" और ऐसा ही हुआ। तीन-साढ़े तीन महीने बाद गर्दन स्थिर हो गई। पलटने के लिए भी छह महीने लग गए । पड़ोसी ... जान पहचान वाले ऐसे ही किसी-न-किसी कमी को निकालने में लगे रहते-

- ओ माँ! अभी तक घुटनों के बल नहीं चल रहा?

- और आँखें देखो, कैसी बड़ी-बड़ी हैं!

- इसका गोरापन भी कितना फीका है। एकदम पीला दिखता है!

- दिखने में बड़ा सुन्दर है! पर ताक़त ही नहीं है, बेजान-सा !

सब बच्चे क्या एक जैसे होते हैं? हाथ की उँगलियाँ तक एक सी नहीं होतीं। पर बोलनेवाले का मुँह कौन बन्द कर सकता है?

हर्षा ने लोगों को घर बुलाना ही कम कर दिया। लेकिन पहला बर्थ डे बड़ी धूम-धाम से मनाया। खाने का अच्छा इन्तज़ाम किया था। आइसक्रीम भी थी। लोग खुश हुए थे। बाबू पहले रोया। फिर चुप हो गया। फिर सो गया ।

एक साल का हो जाने पर भी बाबू चल नहीं रहा था। दादी ने कहा, "आमोद सवा साल की उम्र में चलने लग गया था। बाप पर गया होगा ।

"बर्थ डे के लिए आए हुए केरकार ने आमोद को एक ओर बुलाया था-

“क्या तुम्हें लगता है कि चैतन्य नॉर्मल है?"

"ऐसा क्यों कह रहे हो? उसका प्रोग्रेस थोड़ा-सा स्लो है, बस इतना ही ।"

“मुझे क्रिटिनिज़्म का सन्देह हो रहा है...."

“क्या? क्या कहा?”

"नहीं, कुछ नहीं। लेकिन अगर प्रोग्रेस इसी तरह स्लो ही रहा तो ज़रा आकर मिल लेना। कुछ टेस्ट्स करते हैं...”

हाँ। चैतन्य का विकास बाक़ी की तुलना में धीमा था। वह कई घंटों एकदम चुपचाप पड़ा रहता। बेवक़्त हँसता रहता । जब हँसाने की कोशिश करते तो हँसता ही नहीं था। जब भूख लगती तभी रोता था। बाक़ी बच्चों की तरह कभी भी चैतन्य के कारण रातें जागकर बिताने की नौबत नहीं आई । लार टपकती रहती। पर बहुत से बच्चों के साथ होता है ऐसा। पॉटी या सूसू आए तो बता नहीं पाता था। लेकिन-

"मेरी माँ बताती थी कि मैं पाँच साल की होने तक बिस्तर गीला करती थी। चैतन्य में भी यह विरासत में आया होगा । " हर्षा कह देती ।

पर जब हर्षा की माँ ने चिन्ता जताई तब पहली बार आमोद उसे लेकर रकार के पास गया।

"वैसे हम चैतन्य को लेकर परेशान नहीं हैं। पर यह सही है कि उसकी बहुत हो रही है। तुमने कहा था ना, इसीलिए आया हूँ । अब तुम ही जाँच और बताओ - विरासत में आया है या फिर कुछ और है ?"

केरकार ने चैतन्य की जाँच की और कहा, “शरीर का विकास कम हुआ है इस बात की मुझे चिन्ता नहीं है, आमोद। लेकिन ठहरो । पहले ई.ई.जी. करते हैं। "

इलेक्ट्रो एन्सेफलोग्राम निकाला। स्कल ठीक-ठाक था।

“लेकिन खोपड़ी के भीतर दिमाग़ का विकास नहीं हुआ है इसी वजह से वह ऐसा..."

फिर और टेस्ट्स हुए। आयोडीन डिफिशिएंसी, थायरॉयड हार्मोन्स डिफिशिएंसी, एंडोक्रायन डिजॉर्डर.....

हर्षा का चेहरा रुआँसा हो गया। “हमारे नसीब में यह क्या आ गया है, डॉक्टर?”

"वह ठीक हो जाएगा ना, , केरकार?"

"हार्मोन्स बढ़ाने के लिए ड्रग्स दे देंगे। लेकिन डोंट एक्सपैक्ट मिरेकल्स | वह क्रेटीन चाइल्ड की तरह ही बड़ा होगा। यू मस्ट लर्न टु लिव विथ हिम। उसकी ज़रूरतों को समझते हुए उसके साथ पेश आना होगा...... "

"कितने दिन ? कितने साल?"

केरकार ने कुछ नहीं कहा। दवाइयाँ लिखकर दीं।

"तुम्हें कुछ दिखाता हूँ। कल सुबह आ जाना...” केरकार ने ऐसा क्यों कहा यह दूसरे दिन तब समझ में आया जब वह उन्हें लेकर एक पेशंट के पास गया।

"इसे देखो। "

उस कमरे के एक कोने में एक बच्चा खड़ा था। बीच में दीवार से सटाकर एक कॉट आड़ी रखी गई थी। उसी से लगकर दूसरी तरफ़ एक अलमारी सीधी रखी थी और इस तरह इनके घेरे के अन्दर बच्चे के लिए एक जगह बनाई गई थी। दो-ढाई फुट ऊँचाई का वह लड़का वीरान नज़रों से उनकी तरफ़ देख रहा था। उसके मुक़ाबले उसके शरीर पर जो कपड़े थे वही ज़्यादा अच्छे लग रहे थे। खुला मुँह, मुँह से टपकती लार और बड़ी सी आँखें... उनसे देखा नहीं गया।

"इसकी उम्र कितनी होगी पता है? बाईस साल !”

उन्हें बिलकुल सच नहीं लगा। उन्होंने बौनों को देखा था, पर यह उन जैसा नहीं लगता था ।

“ऐसे कैसे हो सकता है?" हर्षा ने पूछा।

आमोद ने उस लड़के के होंठों के ऊपर बढ़ आई पतली-सी मूँछ देख ली थी। पर उससे कुछ भी बोला नहीं गया।

"हमारा चैतन्य...? "

"नहीं। यह माइक्रोसेफली का केस है। इट इज कॉन्जेनिटल बनॉर्मलिटी | स्कल नहीं बढ़ता है इसलिए दिमाग़ भी नहीं बढ़ पाता । फिर दिमाग़ और शरीर दोनों का विकास नहीं हो पाता।”

“उसका भविष्य क्या है, केरकार ?"

"उसके शरीर को कुछ भी नहीं होगा। उम्र बढ़ती रहेगी लेकिन वह इसी तरह विकासहीन रहेगा। उसकी सब फैकल्टीस बन्द हुई हैं। उसका आई-क्यू सोलह मिला है। वह और बढ़नेवाला नहीं है । "

"और उसके माँ-बाप ?” हर्षा ने तड़पकर पूछा ।

"यह लड़का कम-से-कम उन्हें देखकर हँसे, उनसे बातें करे ऐसा उनका सोचना स्वाभाविक है। लेकिन ये नहीं हो सकता है।"

वहाँ से बाहर निकलते समय डॉ. केरकार ने कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि आपके साथ जो हुआ है वह इससे बेहतर है? युअर्स इज अ क्रेटीन चाइल्ड | नसीब मानो-ये माइक्रोसेफली नहीं है । "

"केरकार, क्या चैतन्य ठीक नहीं होगा?”

"ठीक होने से आपका मतलब क्या है— जवाब इस पर निर्भर है। वह पढ़ेगा, खेलेगा, गाएगा इस आशा में मत रहना। लेकिन उसको समझने की कोशिश ज़रूर करना। उसे ख़ुशी देने की कोशिश करना। उसका पैरेंटिंग तुम्हारे लिए एक चैलेंज होगा....”

और उन दोनों ने इस चैलेंज को स्वीकार किया था।

"क्यों, डॉक्टर को फ़ोन नहीं लगा क्या?"

“कब से एंगेज्ड आ रहा है। अरे देखो तो, तुमने पूछा और लग गया... हैलो, केरकार, मैं आमोद देसाई बोल रहा हूँ।”

"हैलो, आमोद! कैसे हो? और हमारा चैतन्य कैसा है?"

"वह ठीक है। "

"फिर से वाइलंट तो नहीं हुआ?"

"नहीं। मतलब ज़्यादा नही। बीच में एक बार..." हर्षा के बाल खींचे थे उस बारे में बात करे या न करे यह तय करने से पहले ही केरकार ने कहा-

"तुम लोग इतने प्यार से उसकी देखभाल कर रहे हो यह अच्छी बात है, आमोद बोलो, फ़ोन क्यों किया था?"

“केरकार, हम चैतन्य का बर्थ डे सेलिब्रेट करनेवाले हैं। "

पल भर के लिए डॉक्टर केरकार चुप रहे। क्या लगा होगा उन्हें ?

पहला बर्थ डे बड़ी धूम-धाम से मनाया था। उसके बाद दूसरा सीधा घर में ही मनाया गया। तीसरे जन्मदिन के समय सूतक का कारण मिल गया था। दूर के एक चाचा ने दुनिया को अलविदा कह दिया था ।

चौथे जन्मदिन से पहले चैतन्य की तबीयत बिगड़ गई थी। उसे दस्त और उल्टी होने लगी थी ।

डॉ. केरकार ने कहा था, “उसे किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से या सेहत के लिए हानिकारक चीज़ों से बचाना होगा। उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम है । "

पिछला साल चैतन्य के लिए अच्छा गया... सिर्फ...

"दैट्स ग्रेट, आमोद! गो अहेड ।” केरकार का ख़ुश चेहरा आँखों के सामने लाते हुए आमोद ने उसे निमंत्रण दे दिया।

“तुम्हें आना ही होगा केरकार । ज़्यादा लोगों को नहीं बुलाया है— क़रीबी लोगों को ही!"

"ओके ! कब है? किस दिन?"

"शनिवार को । परसों शाम सात बजे घर में ही । "

"अच्छा, आता हूँ। हाँ, अगर कोई इमरजेंसी आ गई तो फिर...."

"वह समझ सकते हैं। लेकिन देर हो तब भी चले आना।” हाँ, केरकार के फ़ोन रखने से पहले उससे पूछना पड़ेगा।

“केरकार, एक बात पूछूं?”

"ऑफ कोर्स ! क्या?”

“बाबा अच्छी तरह से बिहेव करेगा इसकी हमें गारंटी है, केरकार पर कह नहीं सकते ना! मतलब हो सकता है- अगर कहीं वह... याद है ना पिछली बार तुमने उसे नींद का सिरप दिया था। कल - मतलब शनिवार को -लोग-बाग आएँगे। तब उसे ... कुछ... आय मीन नींद की दवा दे सकते हैं?”

आमोद ऑफ़स का काम घर लेकर आया था और तब कुछ ज़रूरी काग़ज़ात पर चैतन्य ने सूसू कर दिया था। गुस्से में आकर आमोद ने चैतन्य की पीठ पर एक थप्पड़ जमा दिया। इसके बाद उसने ऐसा हल्ला मचाया कि किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा था । चिल्लाते हुए स्टूल उठाकर पिता पर फेंक दिया था। फिर किसी को भी पास आने नहीं दे रहा था। जब डॉ. केरकार ने आकर ज़बरदस्ती नींद का सिरप पिलाया तब शान्त हो गया था ।

केरकार कुछ बोल नहीं रहा है यह देख आमोद ने जल्दी-जल्दी कहा - "वैसे हम दवाई देंगे ही ऐसा नहीं है। देंगे ही नहीं। लेकिन..."

"अगर ज़रूरत पड़ी तो 'लार्गातील' सिरप दे देना।"

“थैंक्यू..." आमोद ने चैन की साँस ली।

"क्या कहा डॉक्टर ने?" फ़ोन रखते ही हर्षा ने पूछा ।

“कहा है कि दे सकते हैं। कल जब तुम डाइपर लाने जाओगी तब 'लार्गातील' सिरप लेकर आ जाना। "

“चलो अच्छा हुआ। अब मैंने सबको फ़ोन कर दिए। तुम मिसेज़ अमोनकर को फिर से फ़ोन लगाकर देखो। "

एक ही बार में लग गया।

निमंत्रण मिलते ही मिसेज़ अमोनकर ने कहा, “अरे वाह! हैप्पी बर्थ डे कहने के लिए तो मैं आऊँगी ही । चैतन्य ठीक है ना? क्या बंटी के साथ खेलता है?"

"हाँ, हाँ। खेलता है।"

"हमारे यहाँ डॉगी ने और चार पिल्लों को जन्म दिया है। चैतन्य के लिए प्रेजेंट के रूप में एक और लेकर आऊँ?”

"नहीं, और नहीं चाहिए। जो एक है वही काफ़ी है। और नो प्रेजेंट्स प्लीज़ । लेकिन आप ज़रूर आना । "

फ़ोन रखते ही उसे याद आया ।

“हैलो सिरिल, मैं देसाई बात कर रहा हूँ। एक एहसान करना। शनिवार को क़रीब छह बजे मैं आ जाऊँगा। मुझे बस एक रात के लिए बंटी को दे देना । इतवार को सुबह वापस पहुँचा दूँगा। ओके! प्लीज़! थैंक्यू ! "

हर्षा ने चैतन्य को उठाकर गोद में ले लिया और लिटा दिया। फिर छोटी कैंची लेकर बालों में हाथ घुमाते हुए, बीच-बीच में कहीं बालों के उलझने से जो जटाएँ बनी थीं, उन्हें काटकर निकालने लगी ।

“बाबू, तुम्हारे पाँचवें जन्मदिन पर बड़े मज़े करेंगे, है ना? मेरा राजा बेटा है तू । अच्छे बच्चे जैसा रहना अं...। कोई भी कुछ भी कहे- तुम सुनना ही नहीं, देखना ही नहीं।” सुन्दर घुँघराले बालों में से जटा को हल्के हाथों से हर्षा ने काटकर निकाल दिया।

"कितना समझदार है मेरा बेटा! लोगों के बच्चे तो एकदम पागल हैं। हाथ लगाते ही रो पड़ते हैं।”

कैंची जगह पर रखकर हर्षा ने बाबू को सोफ़े पर बिठा दिया।

“हो गई ना सब तैयारी? कुछ बाक़ी है क्या?” आमोद से पूछा ।

"केटरिंग का ऑर्डर कन्फर्म किया। सिर्फ़ मल्ल्या को बताना बाक़ी है। किराए के मकान में अभी तक उसे फ़ोन कनेक्शन नहीं मिला है। और उसका मोबाइल नम्बर भी मेरे पास नहीं है। कल ऑफ़स जाने से पहले सीधे उसके मकान पर जाकर उसे निमंत्रण देता हूँ। फिर सब निमंत्रण देने पूरे हो जाएँगे।"

बाबू के बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए हर्षा ने कहा, “ज़रा शान्त हुआ- लगता है ना बाबू ? लार टपकनी भी कम हो गई है ! थोड़ा लम्बा भी लग रहा है, है ना? कल नए कपड़े पहनते ही एकदम राजकुमार की तरह जँचेगा, देखना | फिर पता चलेगा सबको जैसा वे समझते हैं वैसा यह 'वह' नहीं है । "

दूसरे दिन सुबह आमोद ने मल्ल्या के फ़्लैट की बेल बजाई तब मल्ल्या पूजा कर बैठा था। ना करने के बावजूद उसकी पत्नी ने चाय लाकर दे दी।

वह मल्ल्या के किराए पर लिए गए नए फ़्लैट को सराह रहा था तभी शर्ट चढ़ाते हुए मल्ल्या बाहर आ गया।

"कैसे हैं, मिस्टर देसाई?"

“अपने बेटे के बर्थ डे का निमंत्रण देने आया हूँ। शनिवार शाम को... सबको आना है। "

“वाह, वाह! बड़ा सन्तोष हुआ ।”

इतने में मिसेज़ मल्ल्या ने अन्दर से ज़ोर से चिल्लाना शुरू किया। “तुम्हारे बेटे ने देखो क्या कर डाला, देखो। पूरा गन्दा...”

मल्ल्या दौड़ते हुए अन्दर चला गया। और अगले ही पल तड़क हुआ थप्पड़ और भैं करते हुए बेटे का रोना, दोनों की आवाज़ एक साथ सीधे आमोद के कानों में घुस गई। क्या हुआ यह जानने के लिए अन्दर गया तो देखा कि फ़्लैट की एकदम नई ताज़ी दीवार पर मास्टर मल्ल्या ने हाथ की पेंसिल से आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचते हुए, अपनी चित्रकारी प्रस्तुत की थी। ऑनरशिप पर लिया हुआ फ़्लैट होता तो बात अलग थी। मकान की दीवारों पर आड़ी-तिरछी रेखाओं को देखकर मकान मालिक चुप नहीं बैठेगा, यह सोचकर परेशान होते हुए मल्ल्या ने सिर पर हाथ मार दिया। आमोद धीरे से वहाँ से खिसक गया।

ऑफ़िस में पहुँचते ही आमोद ने गांवस को इस घटना के बारे में दिया।

"आप मेरी बात सुनोगे सायब? बच्चों की ऐसी चित्रकारी से ही घर की शोभा बढ़ती है। जिनके पास नज़र होती है ना, उन्हें इसमें उनकी कला नज़र आएगी। जिनके पास नहीं है उन्हें आड़ी-तिरछी रेखाएँ...”

आमोद की आँखों के सामने वे आड़ी-तिरछी रेखाएँ एक चित्र-सी बनकर खड़ी हो गईं। आसमान के बादल ? या घने पेड़ ? या फिर उस पोमेरेनियन के कसकर खींचे हुए रोएँ?

शाम को आमोद उत्तेजित होकर घर आया। हर्षा भी बड़े उत्साह के साथ उसी की राह देख रही थी। हॉल में लगाए हुए टी.वी. के सामने चैतन्य आँखें मिचकाते हुए बैठा था।

“मैं डाइपर लेकर आ गई हूँ। और नींद का सिरप भी ले आई हूँ। आमोद, एक बात कहूँ? हम सात बजने से पहले ही उसे दवा दे देंगे। लोगों के आने तक वह जमुहाइयाँ लेना शुरू कर देगा। फिर सुला देंगे। सोते समय बाबू कितना अच्छा दिखता है! कुछ पता नहीं चल पाता। जब नींद में हँसता है तब तो उसकी नज़र उतारने का मन करता है।”

"बेस्ट आइडिया । उसे यहाँ हॉल में ही लिटा देंगे। और ये देखो, कल सुबह बाबू का सब खेल का सामान बाहर लाकर रख देना। फुटबॉल, बार्बी, मोटरें, सॉफ्ट टॉयस ..."

"हाँ मैं अच्छी तरह करीने से सजाकर रख दूँगी।”

"करीने से सजाकर ? नहीं, नहीं फैलाकर रख देना । अस्त-व्यस्त। बच्चे वाला घर दिखना चाहिए।”

बोलते-बोलते आमोद ने जेब से पेंसिल निकाली और चैतन्य के पीछे की दीवार पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचता हुआ, कुछ भी बनाता चला गया।

"लोगों को भी पता चले। चैतन्य कितना खेलता है... दीवारों पर चित्रकारी करता है... शरारतें करता है...."

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