हाजी साहिब (कहानी हिन्दी में) : ग़मख़्वार हयात
Haji Sahib (Story in Hindi) : Ghamkhwar Hayat
हाजी साहिब! आइए ख़ुदा लाए आपको... बहुत दिन से नज़र नहीं आए...? मुराद ख़ान ने हाजी बोहर को अपने घर में ख़ुश-आमदीद कहते हुए कहा।
जी हाँ, बस जीने के लिए रंज-ओ-ग़म तो बहुत हैं। और ख़िदमत-ए-ख़लक़ में भी मसरूफ़ हैं। हाजी ने तस्बीह को घुमाते हुए जवाब दिया।
आजकल क्या मसरूफ़ियात हैं? गुज़र बसर कैसे चल रहा है?
जी अल्लाह का दिया हुआ बहुत है, मदरसे में मिला हूँ। बस तालिबों के वसीले मुझे भी निवाला मिल जाता है फिर रमज़ान के महीने में दोस्त अहबाब दुबई बुलाते हैं। वहाँ कुछ उन तालिबों के लिए फ़ित्राना भी जमा करता हूँ। क्या करें? ये ज़िंदगी तो वफ़ा नहीं करती। बस कहता हूँ कि चार दिन अल्लाह की राह में गुज़रीं।
ख़ैर ये बातें होती रहेंगी... हाजी साहिब आप तो बेहतर समझते हो कि आजकल क़ौम से क़ौमदारी चली गई है। काम के वक़्त ग़ीरके साथ खड़े हैं। मगर मेरा दिल कहता है कि आपसे रिश्तेदारी करके ताल्लुक़ को मज़बूत करूँ। तो हाजी साहिब तुम मेरे बेटे को दामाद बना लो। मुराद ख़ान ने हाजी के लिए चाय डालते हुए उनसे दरख़ास्त की।
नहीं बाबा ऐसे नहीं होगा। मुझे इस आज़माईश में ना डालो।
फिर भी हाजी! मेरा दिल कहता है। ये भी कार-ए-ख़ैर है।
आप इस तरह के काम में जल्द-बाज़ी ना करो... मैं देखूँगा... इस्तिख़ारा करूँगा... जो भी अल्लाह की रज़ा हुई... हाजी ने अपनी दाढ़ी पे हाथ फेरते हुए जवाब दिया।
ये बहुत मुश्किल काम है। मैं ये नहीं कहता कि आप आज ही फ़ैसला करो। बल्कि पहले अपनी बेटी और उसकी माँ से पूछो! मज़ीद कुछ इस्तिख़ारा भी आपकी रहनुमाई करेगा। मरुअद ख़ान उसके फ़ैसले से ख़ुश होते हुए बातों को चाशनी देने की कोशिश कर रहा था।
आप ऐसी सादगी वाली बात मत करो... क्योंकि पहले कभी हमारे मुआशरे में किसी ने अपनी बेटी और उसकी माँ से मश्वरा किया है कि मैं ख़ुद को मियारी* करूँ... बस! मैंने कहा कि जो ख़ुदा की मर्ज़ी होगी।
अच्छा! मुहतरम आप आलिम बंदे हैं। आप बेहतर जानते हैं। हम जाहिल तो वैसे भी बातें करते रहते हैं। मरुअद ख़ान ने हाजी की दलील के सामने घुटने टेक दिए।
कुछ दिनों के बाद मरुअद ख़ान की बीवी मालूम करने के लिए हाजी बोहर के घर गई... हाजी उस वक़्त घर में मौजूद नहीं था... उसकी बीवी से पूछा... मुहतरमा! हमने उस दिन हाजी साहिब से रिश्ता के हवाले से बात की थी। उसका क्या हुआ?
ऐसा नहीं हो सकता... हाजी मानें या न मानें लेकिन तुम्हारा बेटा मेरी बेटी के बिलकुल क़ाबिल नहीं।
आप इस तरह क्यों बोल रही हैं? क्यों! मेरा बेटा मुस्लमान नहीं क्या? मेरा बेटा चरसी, शराबी, या मवाली है? या चोर, धाड़ील, लोफ़र है?
नहीं बस! आप ग़ुस्सा ना हूँ। मैंने कहा कि आपके बेटे में वो क़ाबिलियत नहीं है।
कुछ वक़्त के बाद मुराद ख़ान की हाजी बोहर के साथ बाज़ार में अचानक मुलाक़ात हुई... पूछा हाजी साहिब सुना है कि बेटी की शादी हो गई है।
हाँ! मुहतरम ख़ैर ख़ुशी से शादी हो गई।
किसके साथ कहाँ शादी करा दी?
जी! मलिक साल जान के साथ।
अच्छा वही मलिक साल जान जो आठ दस साल से दुबई में था मुराद ख़ान के जवाब में हाजी साहिब ने इस्बात में सर हिलाते हुए जवाब दिया। जी वही मलिक साल जान आजकल दुबई की मुलाज़मत से रिटायर हो कर आ गया है।
नहीं हाजी साहिब! मलिक की क़ाबिलियत की सच्ची बात क्यों नहीं बता रहे हो? कि उसने आपको दस लाख रुपया लब** दिया है। वो ख़ुद तो 60 साल की उम्र में है... आपकी बेटी तो 20 साल की है!!
*मियारी : जिस पर तन्ज़ किया जाए।
** लब : बलोचिस्तान में लड़के वाले लड़की वालों को शादी के मौके पर रक़म या माल की सूरत में अदा करते हैं।
(अनुवाद : ख़ालिद फ़रहाद धारीवाल)