Thenkachi Ko. Swaminathan
तेनकच्ची को. स्वामीनाथन

तेनकच्ची को. स्वामीनाथन (1946 - 16 सितंबर 2009) तमिल वक्ता, टेलीविजन व्यक्तित्व और विभिन्न तमिल पुस्तकों के लेखक थे। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, चेन्नई के उप निदेशक के रूप में कार्य किया था। उनका जन्म तमिलनाडु के पेरम्बलुर के एक छोटे से गाँव थेनकाची में तमिल माता-पिता के यहाँ हुआ था। उन्होंने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर से कृषि में स्नातक किया। उन्होंने एक सरकारी कार्यालय में कृषि विस्तार अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने अपनी कृषि भूमि में खेती करने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। सात साल बाद 1977 में वे कृषि विषयों पर भाषण देने के लिए ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े।

बाद में सोचते हैं... (कहानी) : थेनकाची को अय्या. स्वामीनाथन

Baad Mein Sochte Hain... (Tamil Story in Hindi) : Thenkatchi Ko Ayya. Swaminathan

मेरे दोहरे बदनवाले मित्र ने कहा- 'आप जो कुछ कहते हैं वह हास्यपूर्ण तो है पर उसमें विचार करने लायक कुछ नहीं है।'

उन्हें मुझसे दोगुना ज्यादा कपड़ा खरीदना पड़ता है कमीज सिलाने के लिए। बहुत भारी बदन है।

उन्हें हँसाते-हँसाते लोट-पोट करने हेतु ही मैं चुटकुले सुनाता । मुझे अभी पता चला है कि वे विचार करने की इच्छा भी रखते हैं । उन्होंने कहा, 'एक अच्छे हास्य में हंसी के मसाले के साथ-साथ विचार करने की सामग्री भी होनी चाहिए।'

मैंने उनसे नम्रतापूर्वक कहा, 'मैं कोशिश करूँगा।'

'कब...?' वे पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थे।

'अभी...' मैंने कहा । दिनमणि पत्रिका के दीपावली अंक के लिए लिखने वाला हूँ.. यह लेख आपकी अपेक्षाओं के अनुकूल होगा, आप देख लीजिएगा । मेरी चुनौती को स्वीकारते हुए वे वहाँ से टल गए। उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा। यह लेख ऐसा होना चाहिए जो उन्हें कोई सीख दे... उन्होंने मुझे कितना मामूली व्यक्ति समझा है.. इस रचना के द्वारा उनको समझाऊंगा । एक उद्वेग मन में उठा और मैं कलम लेकर बैठ गया ।

हमारे देश के एक सज्जन अमेरिका गए। वे बहुत ही मोटे थे । वजन-मशीन पर चढ़ गए और सिक्का अंदर डाला । जैसे ही सिक्का अंदर गिरा वैसे ही भीतर से चरमराने की आवाजें आने लगीं । अत्यधिक संयम बरतते हुए वे सज्जन खड़े रहे।

थोड़ी देर बाद रेलवे टिकट की भांति आ हुआ टुकड़ा बाहर आया । पढ़कर देखा, उसमें लिखा था- 'एक वक्त केवल एक ही व्यक्ति इस पर खड़ा हो ।'

तुरंत उन्होंने निश्चय किया कि अमेरिका में दुबले होने के कितने ही यंत्र होंगे । किसी तरह अपने शरीर का वजन आधा करना होगा।

नगर-नगर भ्रमण किया । वजन कम करने का तरीका ढूंढ़ता रहा । झटपट असर करने वाला कोई यंत्र नहीं मिला । अंत में एक शहर की सड़क पर भ्रमण करते वक्त उस विज्ञापन पर नजर पड़ी जिसमें लिखा था-

“आपको वजन कम करना है तो तुरंत भीतर संपर्क कीजिए।"

इस विज्ञापन ने हमारे उस सज्जन को अत्यंत आकर्षित किया और वे खिंचे-खिंचे अंदर गए । बाहर एक व्यक्ति खड़ा था।

'भीतर आइए.. क्या चाहिए...?'

'मैं अपने शरीर के कारण बहुत परेशान हूँ।'

'क्यों क्या परेशानी है?'

'जहाँ जाता हूँ यह साथ आ जाता है ।'

वह व्यक्ति हँस पड़ा और बोला'

'शरीर होगा तो ऐसा ही करेगा।'

‘परंतु बहुत सारी परेशानियाँ हैं।'

'कैसे?'

'उदाहरण के लिए एक घटना का वर्णन देना चाहूँगा । एक बार मैं फिल्म देखने सिनेमाघर गया । मैं एक सीट पर नहीं बैठ पाऊँगा ऐसा सोचकर मैंने दो टिकटें ले लीं। टिकट दिखाकर मैंने बैठने की जगह मांगी । जानते हो उसने क्या कहा?'

'क्या कहा?'

'पहली पंक्ति की दसवीं सीट पर और तीसरी पंक्ति की आठवीं सीट पर बैठ जाओ।

इतना कहकर वह व्यक्ति हंस पड़ा।'

‘क्या हम आपकी कुछ मदद कर सकते हैं?'

'तभी तो मैं भीतर आया हूँ।'

'अच्छा !!'

‘जी ही...मैंने बोर्ड पड़ा लिखा था-वजन कम करने के लिए भीतर आओ।'

'ओह... तो आप उसी के लिए आए हैं । जाइए.....भीतर जाइए' उसने भीतर जाने का रास्ता दिखाया । वे धीरे-धीरे चलते हुए भीतर के कमरे में पहुँचे । वहाँ एक युवती ने उनका स्वागत किया और बिठाया ।

'वजन कम करने के लिए हमारे पास दो नुस्खे हैं । एक सामान्य (आर्डिनरी) और दूसरा ‘डीलेक्स' । उसने बताया ।'

'आंर्डिनरी ट्रीटमेंट की क्या फीस ली जाती है?'

'पचास डॉलर'

'तो वही ठीक रहेगा' कहते हुए उन्होंने पचास डॉलर थमा दिए । उसे लेकर युवती ने उन्हें पास वाले कमरे में भेज दिया।

वे भीतर गए। वहाँ एक बहुत बड़ा हॉल था । कुर्सी-मेज बिखरे पड़े थे । उस कक्ष के एक कोने में अट्ठारह वर्षीय खूबसूरत लड़की तैराकी की पोशाक पहने खड़ी थी। उन सज्जन ने उसकी तरफ देखा । उनके मन में उसे छूने की ओछी भावना जगी । वे उसकी तरफ खिसके । फिर चलने लगे और फिर दौड़ने लगे । वह लड़की भी उनकी पकड़ से बचती हुई कुर्सी-मेज के बीच से खिसकती-दुबकती भागने लगी।

वह भागने लगी... भागती ही गई। वह सज्जन भी भागने लगे... पीछा करते ही गए। तीस मिनट तक यह भागदौड़ चलती रही । थक हार कर वे एक कोने में गिर पड़े।

उसी वक्त विशेषज्ञों का दल वहाँ आया । उन्होंने नब्ज देखी फिर अपने-अपने विचार प्रकट किए।

'मित्र... यही हमारा सामान्य ट्रीटमेंट है। अगर आप हर रोज ऐसा करते रहे तो एक महीने में दुबले हो जाएंगे । उनकी साँस फूलने लगी थी । उन्होंने कहा-'थैक्स ।' तुरंत उनके मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई । सोचने लगे, यह सामान्य ट्रीटमेंट यदि ऐसा है तो डीलक्स ट्रीटमेंट कैसा होगा?'

'महाशय' झिझकते हुए सज्जन ने कहा ।

वहाँ खड़े विशेषज्ञों में से एक ने पूछा, 'क्या?'

'क्या मैं आज ही डीलक्स ट्रीटमेंट ले सकता हूँ?'

‘क्यों नहीं?'

'फीस कितनी होगी?'

'सौ डॉलर..?'

'कोई बात नहीं।'

उन्होंने तुरंत जेब से डॉलर्स निकालकर मेज पर रख दिए । पैसे लेकर उन्हें एक सुसज्जित कमरे में भेजा गया । द्वार पर लिखा था-डीलक्स। हमारे तथाकथित पात्र बड़ी उत्सुकता से भीतर गए। वहाँ भी मेज-कुर्सी बिखरे पड़े थे । वहाँ उनकी दृष्टि युवती को खोज रही थी। उनको वह कोने में दिखाई पड़ी । वह नब्बे वर्षीय बुढ़िया थी। उसी तरह की तैराकी पोशाक । बस एक अंतर था, वहाँ सज्जन युवती के पीछे भाग रहे थे यहाँ बुढ़िया सज्जन के पीछे भाग रही थी । अपने बचाव के लिए अब सज्जन भाग रहे थे । दस मिनटों में वे बेहोश होकर गिर पड़े।

विशेषज्ञों का दल दौड़ता हुआ आया । नब्ज देखी। धीरे-धीरे वे होश में आए।

'सर! यह हमारा डीलक्स ट्रीटमेंट है । इसे आप नियमित रूप से लें तो पाँच दिनों में आधे हो जाएंगे।'

कलम का ढक्कन बंद कर मैं अपना लेख ले मित्र से मिलने गया- ‘पढ़कर देखिए...'

उन्होंने पड़ा फिर बोले, 'इस लेख में हास्य का पुट भी और चिंतन की सामग्री भी ।' मुझे गर्वानुभूति हुई । मैंने कॉलर ऊपर कर लिया । अपने बालों को संवारा ।

'ही... ही... आपने ही तो कहा था कि लेख हास्य से भरपूर हो तो काफी नहीं । चिन्तन-मनन के लिए भी उसमें विषय होना चाहिए...इसलिए...' उन्होंने कहा-

'जी हाँ, आपका लेख पढ़कर पहले हम हँसते हैं फिर सोचते है.. क्यों हँसें?'

(अनुवाद : डॉ कमला विश्वनाथन)

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