Ram Sarup Ankhi
राम सरूप अणखी
राम सरूप अणखी (28 अगस्त 1932-14 फरवरी 2010) आज़ादी के बाद की पंजाबी कहानी में सम्माननीय नाम है। अपनी साहित्यिक यात्रा कविता से आरंभ करने वाले इस लेखक ने ढेरों अविस्मरणीय कहानियाँ पंजाबी साहित्य की झोली में डालीं और यह जितना पंजाबी में लोकप्रिय रहे, उतना ही हिंदी के विशाल पाठकों द्वारा भी सराहे गए। अपनी साहित्यिक यात्रा के अन्तिम दौर में यह एक बड़े उपन्यासकार के रूप में स्थापित हुए। इनके उपन्यास 'कोठे खड़क सिंह' को वर्ष 1987 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। अध्यापक की नौकरी से सेवा मुक्त होने के बाद पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका 'कहाणी पंजाब' का बखूबी संपादन किया और पंजाबी की नई कथा पीढ़ी के कथाकारों को प्रमुखता से प्रकाशित कर प्रोत्साहित करते रहे। पंजाबी में चौदह कहानी संग्रह -'सुत्ता नाग'(1966), 'कच्चा धागा'(1967), 'मनुख दी मौत'(1968), 'टीसी दा बेर'(1970), 'कंध विच उगिया दरख्त'(1971), 'खारा दुध'(1973), 'अद्धा आदमी'(1977), 'सवाल दर सवाल'(1980), 'छपड़ी विहड़ा'(1982), 'कदों फिरनगे दिन'(1985), 'किधर जावां'(1992), 'लोहे दा गेट'(1992), 'छड्ड के ना जा'(1994), 'चिट्टी कबूतरी'(2000)। कई कहानी संग्रह हिंदी में भी प्रकाशित। उपन्यासों में 'कोठे खड़क सिंह', 'सलफास', 'जमीनां वाले' 'कणक दा कत्लेआम', 'भीमा' आदि प्रमुख हैं।
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