Raja Radhikaraman Prasad Singh
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह (10 सितम्बर, 1890–24 मार्च, 1971) द्विवेदी युग के हिन्दी कथाकार-उपन्यासकार थे। कथा–लेखन में अपनी विशिष्ट कथा-शैली के कारण हिंदी कथा साहित्य में वे ‘शैली–सम्राट‘ के रूप में स्मरण किए जाते हैं। उन्होने ५० वर्षों तक हिन्दी साहित्य की महनीय सेवा की। राधिकारमण प्रसाद सिंह का जन्म बिहार के शाहाबाद के सूर्यपुरा नामक स्थान पर प्रसिद्ध कायस्थ जमींदार राजा राजराजेश्वरी सिंह 'प्यारे' के यहाँ हुआ था। आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। 1907 में आरा जिला स्कूल से इन्ट्रेन्स, 1909-1910 में सेन्ट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता से एफ.ए, 1912 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और 1914 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ (इतिहास) की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं।
कृतियाँ - कहानी संग्रह - 'कुसुमांजलि', 'अपना पराया', 'गांधी टोपी', 'धर्मधुरी'
कहानियाँ - ‘गाँधी टोपी’ (सन् 1938 ई.), ‘सावनी समाँ’ (सन् 1938 ई.), ‘नारी क्या एक पहेली? (सन् 1951 ई.), ‘हवेली और झोपड़ी’ (सन् 1951 ई.), ‘देव और दानव’ (सन् 1951 ई.), ‘वे और हम’ (सन् 1956 ई.), ‘धर्म और मर्म’ (सन् 1959 ई.), ‘तब और अब’ (सन् 1958 ई.), ‘अबला क्या ऐसी सबला?’ (सन् 1962 ई.), ‘बिखरे मोती’ (भाग-1) (सन् 1965 ई.)।
उपन्यास - ‘राम-रहीम’ (सन् 1936 ई.), ‘पुरुष और नारी’ (सन् 1939 ई.), ‘सूरदास’ (सन् 1942 ई.), ‘संस्कार’ (सन् 1944 ई.), ‘पूरब और पश्चिम’ (सन् 1951 ई.), ‘चुंबन और चाँटा’ (सन् 1957 ई.)
लघु उपन्यास - ‘नवजीवन’ (सन् 1912 ई), ‘तरंग’ (सन् 1920 ई.), ‘माया मिली न राम’ (सन् 1936 ई.), ‘मॉडर्न कौन, सुंदर कौन’ (सन् 1964 ई.) और ‘अपनी-अपनी नजर’, ‘अपनी-अपनी डगर’ (सन् 1966 ई.)।
नाटक - ‘नये रिफारमर’ या ‘नवीन सुधारक’ (सन् 1911 ई.), ‘धर्म की धुरी’ (सन् 1952 ई.), ‘अपना पराया’ (सन् 1953 ई.) और ‘नजर बदली बदल गये नजारे’ (सन् 1961 ई.)।
संस्मरण - 'सावनी सभा', टूटातारा, सूरदास
गद्यकाव्य - नवजीवन, 'प्रेम लहरी'
गद्य कृतियाँ - 'नारी एक पहेली', 'पूरब और पश्चिम', 'हवेली और झोपड़ी', 'देव और दानव', 'वे और हम', 'धर्म और मर्म', 'तब और अब'।
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह : हिन्दी कहानियाँ
Raja Radhikaraman Prasad Singh : Hindi Stories