Radhacharan Goswami
राधाचरण गोस्वामी
राधाचरण गोस्वामी (25 फरवरी 1859 - 12 दिसम्बर 1925 ) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने ब्रज भाषा का समर्थन किया। राधाचरण गोस्वामी खड़ी बोली पद्य के विरोधी थे। उनको यह आशंका थी कि खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार हो जाएगा।
उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस प्रकार हैं-'सती चंद्रावती', 'अमर सिंह राठौर', 'सुदामा', 'तन मन धन श्री गोसाई जी को अर्पण'।
राधाचरण जी ने समस्या प्रधान मौलिक उपन्यास लिखे। ‘बाल विधवा’ (1883-84 ई.), ‘सर्वनाश’ (1883-84 ई.), ‘अलकचन्द’ (अपूर्ण 1884-85 ई.) ‘विधवा विपत्ति’ (1888 ई.) ‘जावित्र’ (1888 ई.) आदि। वे हिन्दी में प्रथम समस्यामूलक उपन्यासकार थे, प्रेमचन्द नहीं। ‘वीरबाला’ उनका ऐतिहासिक उपन्यास है। इसकी रचना 1883-84 ई. में उन्होंने की थी। हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास का आरम्भ उन्होंने ही किया। ऐतिहासिक उपन्यास ‘दीप निर्वाण’ (1878-80 ई.) और सामाजिक उपन्यास ‘विरजा’ (1878 ई.) उनके द्वारा अनूदित उपन्यास है। लघु उपन्यासों को वे ‘नवन्यास’ कहते थे। ‘कल्पलता’ (1884-85 ई.) और ‘सौदामिनी’ (1890-91 ई.) उनके मौलिक सामाजिक नवन्यास हैं। प्रेमचन्द के पूर्व ही गोस्वामी जी ने समस्यामूलक उपन्यास लिखकर हिन्दी में नई धारा का प्रवर्त्तन किया था।
राधाचरण गोस्वामी : हिन्दी व्यंग्य
Radhacharan Goswami : Hindi Satire
राधाचरण गोस्वामी : हिन्दी अनुवाद
Radhacharan Goswami : Hindi Translations