Nikolai Teleshov निकोलाई तेलेशोव
निकोलाई तेलेशोव का जन्म 1867 में हुआ था, यानी रूस में भूदास प्रथा खत्म किये जाने के छः वर्ष
बाद,और मृत्यु 1957 में हुई जब समाजवादी क्रान्ति के बाद चालीस वर्षों का समय बीत चुका था। युवावस्था
मे तेलेशोव ने ज्ञान प्रसार का काम किया। बच्चों के लिए वे कहानियों और कविताओं के संग्रह छापते थे।
मास्को के पास ही उन्होंने एक स्कूल भी खोला था। 1894 में उस समय के एक महान मानवतावादी और
यथार्थवादी लेखक अन्तोन चेखोव की सलाह पर तेलेशोव ने सुदूर साइबेरिया की यात्रा की, ताकि जनता के
जीवन को अच्छी तरह देख जान सकें।
उन दिनों ज़ार की सरकार रूस के यूरोपीय भाग के गरीब किसानों को साइबेरिया के निर्जन इलाकों में
बसा रही थी। उराल पार के क्षेत्र में रेल लाइनें न के बराबर ही थीं। किसान अपने परिवारों के साथ
घोड़ागाड़ियों पर यात्रा करते थे। लंबे रास्ते में वे भूखे रहते थे, रोगों के शिकार होते थे, ठंड से मरते थे, बच्चे
अनाथ हो जाते थे, माँ-बाप बच्चों के बिना रह जाते थे। साइबेरिया के केन्द्रीय भाग में तेलेशोव ने ऐसी बहुत
सी बैरकें देखीं, जो इन किसानों के बेघरबार हो गये बच्चों से भरी हुई थीं। साइबेरिया से लौटने पर तेलेशोव
ने लिखा: “इन बच्चों के माता-पिता या तो रास्ते में मर गये,या फिर बाकी परिवार को कंगाली और भूख
से बचाने की कोशिश में अपने बच्चे को, जिसके बचने की उन्हें कोई उम्मीद न थी, छोड़कर आगे बढ़ गये।
उनके पास न इतनी शक्ति थी, न इतना पैसा ही कि वे रुककर बच्चे के मर जाने का इंतजार करें और
वे उसे मरा हुआ ही मानकर आगे बढ़ जाते हैं। बेशक, इस तरह छोड़े गये अधिकांश बच्चे बीमारी से ठीक
नहीं हो पाते, पर ऐसा भी होता है कि बच्चे की हालत सुधर जाती है और फिर वह 'खुदाई औलाद' बन जाता
है।"
