Bharat Ramaswami भारत् रामस्वामी
भारत् रामस्वामी तमिल लेखक हैं।
ससुर की राजनीति (तमिल कहानी) : भारत् रामस्वामी
Sasur Ki Rajneeti (Tamil Story in Hindi) : Bharat Ramaswami
मेरे ससुर के शत्रुओं में से एक था चावल वाला सेंजय्या जैसा कि युगयुगों से यह धारणा चली आ रही है अधिकांश राजनीतिज्ञ भ्रष्ट होते हैं वैसे ही मेरे ससुर की धारणा है कि चावल वाले भी कभी ईमानदार नहीं होते ।
उसके आने पर या उसे कोने में खड़े होते हुए देखकर भी ससुर जी अनजान बने या तो अखबार पढ़ते रहते या नृसिंगप्रिया, नहीं तो कॉफी पीते हुए बैठे रहते ।
मैं अंदर से निकलकर यह कहती हूँ कि लगता है संजय्या आया है। 'उसको अपना धंधा चलाना है इसीलिए वह आया है ।' कहकर वह फिर दस मिनट के लिए मौन हो जाते । अखबार पढ़ने का नाटक करने पर उनका मन इसी में लगा है कि संजय्या से क्या डायलॉग मारा जाए । अखबार नीचे कर उसे देखते हैं और पूछते हैं- 'क्यों रे। कैसे आना हुआ ।'
सेंजय्या बहुत ही विनम्र भाव से सिकुड़-सिमटकर कहता है....चा...व.. ल... ।
'क्या तू थोथे का व्यापार करने आया है?' पूछते हैं ।
सेंजय्या बहुत ही सयाना था । मेरे ससुर जैसे कितनों को उसने देखा होगा।
'सोच रहा हूँ इस व्यापार को छोड़ दूं पिताजी ।'
वह जवाब देता है। ससुर को वह पिताजी कहकर ही पुकारता है। मेरे ससुर भी जवाब में कहते,
'पहले यही कर....हम भी किसी और से अच्छा चावल खरीद कर खाएँगे।'
'पिताजी आप मुझे चाहे जितना भी भला-बुरा कहिए लेकिन मेरे चावल को बुरा मत कहिए।' वह भी तनिक रोष से कहता है ।
'तेरे चावलों में क्या बड़ी खूबी है...? परसों देखा उसमें कीड़ा पड़ा हुआ था । गधे। उसमें कीड़ा क्यों पड़ा?'
सेंजय्या इन सब बातों से डरने वाला नहीं है, वह कहता है- 'हमारे चावलों का बहुत ही अच्छा स्वाद है इसीलिए कीड़ा आया होगा।'
जैसे-तैसे अपने चातुर्य से वह पचहत्तर किलो चावलों की बोरी घर में रखकर चला जाता है। पैसे... उसके बारे में वह बात ही नहीं करता।
चावल का बोरा ऐसे छोड़ जाता है जैसे मुफ्त में माल देना हो । सिर को खुजलाते हुए यदि खड़ा रहेगा तो गलती है, डर के मारे बिना मांगे जाएगा तो भी गलती है । कितने गर्व के साथ जा रहा है । उसके आध में तीन सिनेमाघर हैं पचास एकड़ जमीन, 10-12 ट्रेक्टर खाने की कोई कमी नहीं । यहाँ आकर मैली-कुचैली बनियान पहन हमें ठग रहा है। अगर ससुर अच्छे मूड में होते तो कहते
'अरे... पैसे तो लेकर जा...क्या तुझे पैसे देने के लिए मुझे तेरे इंतजार में दरवाजा खोलकर रखना होगा...? और मुझे बुलाकर कहते-उसका पूरा हिसाब खर दे... उसका बकाया क्यों रखना...? गाँव भर में जगह-जगह बोलता फिरेगा । प्यार और नफरत का बंधन जिस प्रकार होता है उसी प्रकार का बंधन ससुर और संजय्या के बीच था।
इसी समय ससुर के मित्र प्रवचन सुनने साथ जाने वाले देमे मामा उष्ट्रग्रीवा हिलाते आ जाते हैं और चुगली करते हैं। लगते तो वह बिल्कुल सज्जन है किंतु चुगलखोर है। ससुर के कहने पर सेंजय्या उनके घर भी चावल सप्लाई करता है।
महीने में आधी बोरी लाएगा । पैसा देमे मामा ही देते हैं। हम जो चावल लेते हैं वही चावल सारा जगत् ले... ऐसी नीति मेरे ससुर जी की है।
बोरी के चावलों को अच्छी तरह तौल कर ही देमे मामा वहाँ से टलेंगे। पिछली बार देमे मामा अपनी आधी बोरी के चावलों का वजन ठीक साढ़े सैंतीस किलो किया तो देखा कि तीन किलो चावल कम है। इसकी शिकायत ससुर से की गई।
अगली बार सेंजय्या चावल देने आया।
'हाथी आए पीछे घंटी की आवाज आए पहले' यह पुरानी कहावत है। हमारे घर में सेंजय्या आए पीछे उसका चावल आए पहले।
सेंजय्या के आने के पहले ही उसके साथ आया मोटा आदमी बोरा उठाए चला आएगा । रास्ते में रखे साइकिल, बाहर का दरवाजा, परदा, कपड़ों को तह करने वाली चौकी, चटाई ऊपर अलगनी पर टँगे कपड़े, कुर्सी, तिपाई, गुलदस्ता सबसे टकराता हटाता एक बुलडोजर की भांति हॉल में प्रवेश कर बोरे को रसोईघर की अलमारी के सामने बनी शेल्फ पर रखकर अपना काम खत्म कर चला जाएगा।
जैसे डिपार्टमेंट स्टोर्स में डाइनसोर घुसा हो । उसी भांति कमरे से रसोईघर में चावल के दाने ही दाने बिखरे होंगे । ससुर को जमीन पर चावलों का बिखरना पसन्द नहीं है। उनका कहना है कि लक्ष्मी बाहर निकल जाती है।
इस बार जब संजय्या चावल लाया तो ससुर ने कहा-वहीं रुक जाओ।
ससुर की फटकार सुनकर वह डर गया । इस बार वह स्वयं चावलों की बोरी पीठ पर लादकर लाया था । बड़े ही सुंदर ढंग से सिलाई की गई थी । उस पर हरे रंग की स्याही से आधा की किसी चावल कम्पनी का नाम, शहर के नाम के साथ बकरा छाप चिह्नित था । उस पर लिखे अक्षरों में केवल पचहत्तर किलो ही पढ़ा जा सकता था शेष अस्पष्ट था । लेकिन बोरा अच्छी तरह सिला हुआ था । ससुर की आवाज को सुनते ही वह सकपका गया । बोरा उठाए वह उसी तरह खड़ा रहा । 'पिताजी आदमी न मिलने के कारण मैं खुद बोरा उठाकर लाया हूँ नम्बर वन क्वालिटी का पोली चावल कहीं नहीं' मिलेगा पुराना चावल।
इस बार सबको नया चावल ही दिया है। आपके लिए पुराना चावल छिपाकर रखा था । भगवान वेंकयचलपति की सौगंध ।
उसके स्वर की आद्रर्ता इस प्रकार थी कलई के लिए आग पर रखे लोहे के बर्तन क्या पत्थर तक पिघल जाए पर ससुर नहीं पिघले । ससुर क्यों नाराज है समझ में नहीं आया अच्युत भी दफ्तर जा चुके थे । घर में ऐसा कोई भी नहीं था जो अपने व्यवहार कौशल से ससुर की नाराजगी का कारण बता सके ।
'कहा न... दहलीज पर पाँव मत रखो... तो मत रखो । चला जा... तो चला जा... ।' ससुर चिल्लाए। - संजय्या अच्छा अभिनेता है उसने अपनी मुखमुद्रा इस प्रकार भोली बना ली है और कहता है- 'मैंने कोई गलती नहीं की।'
‘क्यों बे, तूने मुझे बुद्धू.... उल्लू समझा है क्या...?' यह हेराफेरी...सब गोलमाल मेरे साथ नहीं चलेगा।' ससुर सिंह की भांति गरजे ।
सेंजय्या पीठ पर बोरा लादे कांप रहा था । पीठ का बोझ असहनीय होने के कारण उसने बोरा दहलीज पर रख । दोनों हाथ बाँध खड़ा हो गया ।
‘पीठ पर बेशक मार दीजिए पर चावलों को लेने से इंकार मत कीजिए। शुक्रवार की सुबह घर आई लक्ष्मी को मत ठुकराइए। सेंजय्या तुम्हारी माँ के समान विश्वसनीय है । नाराज मत होइए....बड़े आदमी का गुस्सा ठीक नहीं । आपका गुस्सा मुझसे देखा नहीं जाता।'
क्रुद्ध दुर्वासा मुनि की भांति ससुर ने उसे पूरा । ‘बड़ी योग्यता से बात कर रहा है। उस सडगोपू अय्यर के घर में तीन किलो चावल कम निकले....तुझे जूते से मारना चाहिए।'
'किसने कहा?'
'तुम्हारे दादा ने कहा । मालूम है वह कौन है? मेरा दोस्त । उसके पिता कौन हैं तुझे मालूम है? अगोबलीमठ के श्री कार्ययतुक्कु चचेरे भाई के समधी देखने में गरीब ब्राह्मण मैली-कुचैली धोती पहने...काले रंग के... तूने तीन किलो चावल कम दिए... ठग कहीं का...।'
'पिताजी, यह आप क्या कह रहे हैं?'
नाटक मत कर । तीन किलो चावल के पैसे उनचालीस रुपए हुए। तूने कहा सैंतीस किलो दिए हैं पर चौंतीस किलो ही दिए हैं । तीन किलो कहाँ गए? तूने उनचालीस रुपए ठग लिए।
संजय्या... चिल्लाकर कहा और मुझे पुकारा । 'आई मामा...' कहती हुई मैं बाहर आ गई।
'आज के बाद इस छोकरे से चावल कभी मत खरीदना । मुझे धोखा दे मैं सह लूँगा। भगवान ने मुझे सहनशक्ति दी है लेकिन गोपू को उनचालीस रुपए के लिए ठगा यह मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा।'
'पिताजी... झिझकते हुए सेंजय्या ने अपनी सफाई में कुछ कहना चाहा ।
आधी बोरी चावल देते समय कोई गलती हुई होगी । नाराज मत होइए। मैं अभी तीन किलो चावल लेकर आता हूँ। मेरे साथ जो दुरै है न वह ठगता है । शिकायत आती है इसलिए ही मैं खुद बोरा उठाकर लाया हूँ। ग्राहक हमारे लिए मुख्य है । नमक डालकर ही यह सेंजय्या भात खाता है। फिर यदि कोई गलती हुई तो मैं यह चावलों का व्यापार ही छोड़ दूंगा प्रभु सप्तगिरि की सौगंध ।
ससुर का गुस्सा थोड़ा कम हुआ ।
'बस कर.. बोरे को ऐसे ही छोड़कर मत जा तोलकर दिखा...'
सेंजम्पा ने बरामदे में बोरी को रखा।
'तोलता हूँ.. थोड़ा भी कम हुआ तो पैसा मत देना । देखिए फैक्ट्री में पैक कर सील किया हुआ है।'
'तुझे यह दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। कोई कितना भी सील लगाए। सील तो लगाई जा सकती है। मुझे देख बारह छापे (दक्षिण में धर्म के अनुसार अंगों पर छापा-तिलक लगाया जाता है) लगे हैं। छापे लगने से क्या होता है ।'
'तराजू नहीं है।' सेंजय्या हिचका ।
'जा कहीं डूब मर.. उस्तरे के बिना हजामत करने आए हो... जाकर तराजू लेकर आ ।'
'तिरुवल्लीकेनी जाना पड़ेगा...' सेंजम्पा ने कहा।
'उसके उस पार समुद्र है.. जा.. डूब मर उसमें । मुझे तेरी हेराफेरी नहीं चाहिए।'
पिताजी! मैंने बीच में टोकते हुए एक युक्ति बताई।
हमारे पास वह एक किलो का ‘मापी गिलास' है न उससे नापने दो । आपका पुत्र वह केलकुलेटर आज घर रख गया है उससे हम गिनती कर लेंगे।'
'नहीं.. नहीं...' वह ठीक तरह से नहीं तौलेगा।'
'अम्मा, तुम मेरे साथ आओ । पास में ही लकड़ी का टाल है, वहाँ सौ किलो तक तौला जा सकता है। आपके सामने ही तौल कर दिखाता हूँ', सेंजय्या ने कहा ।
'बक... बक... बन्द कर' ससुर गरजे ।
तेरे दो कौड़ी के चावलों को तौलने के लिए मेरी बहू धूप में लकड़ी के टाल पर जाएगी । तू जानता है वह कौन है ? कुड्डलूर के डिप्टी कलेक्टर की इकलौती बेटी है । डोलोत्सव करते हैं तो दो सौ लोगों को भोजन परोसते हैं । डबल दहेज दिया है। घर में नौ गाएं हैं, गली के सारे घरों को मुफ्त में दूध देते हैं । बेचारी यह बच्ची यहाँ आकर फंस गई।'
‘फिर कैसे तौलूँ... सेंजय्या ने पूछा ।
'बोरे को उठाकर ले जा, जब तराजू मिले तब उठाकर ले आना । तभी अलमारी के नीचे रखी भार तौलने की मशीन दिखाई दी, 'पिताजी! क्या वह तौलने की मशीन है?'
'हाँ, तुम्हें अभी अपना वजन देखना है क्या...? तेरा तो वजन ही नहीं होगा... तू तो इतना जलभुन चुका होगा।'
‘एक बड़े से बर्तन में चावल डाल-डालकर इस मशीन पर तौल लेते है ।' सेंजय्या ने सुझाव दिया।
'यह सब यहाँ नहीं चलेगा । पचहत्तर किलो वाला बर्तन घर में नहीं है। यह घर है कोई बारात घर नहीं।'
‘पन्द्रह किलो वाले बर्तन से भी काम चल जाएगा।'
'बर्तन का वजन पाँच बार तो रखकर लेगा तो हो गया न फिर तीन किलो कम । क्या गोलमाल करने की सोच रहा है।' ससुर ने कहा ।
'आपको मुझ पर संदेह है लेकिन आप जैसा कहते हो वैसा ही तो मैं तौल कर देता हूँ।'
‘एक काम कर.. इधर आ... कहते हुए ससुर ने उसे बुलाया और मशीन दिखाते हुए पूछा, 'इस पर कितने निशान लगे हैं जरा देखकर बता।'
‘एक सौ पचहत्तर किलो तक हैं ।' संजय्या ने कहा ।
'बहुत अच्छा...' ससुर खुश हुए बोले, 'लो सेंजय्या यह बात पक्की हुई कि अब तेरी इस घर में दाल नहीं गलेगी।'
जया ने हँसकर कहा, 'मैं तो चावलों का व्यापार कर रहा हूँ।'
‘बातें करना तो कोई तुमसे सीखे । चल अब एक काम कर इस चावल के बोरे को उठाकर इस मशीन के ऊपर रख ।'
‘बोरे को बड़ी मुश्किल से उठाकर मशीन पर रखा पर बोरा पूरी तरह से उस पर न समाकर नीचे की ओर लटका रहा।'
'जया! अलमारी के नीचे जो चौकी तेरी शादीवाली पड़ी है, वह लेकर आ।' ससुर ने कहा।
'मैं जाकर ले आई ।'
उस पर पीतल की भारी धुंडियाँ लगी थीं । उस पर कोई नहीं बैठता था । वह घोड़े की तरह ऊँची थी । उस चौकीनुमा तख्ते को मशीन पर रख मैंने बोरा उठाने की कोशिश की।
'तू ठहर, उसे रखने दे... तू क्या राहगीर की तरह खड़ा देख रहा है.. तुझे इतनी भी तमीज नहीं.. गंवार, गधा... जाहिल... 'ससुर ने डाँटा ।
उसने तख्ते को मशीन पर रखा।
'अब उठाकर रख बोरे को... तेरी हेराफेरी का भांडा अब फूटेगा...' ससुर बडबड़ाए।
'रख दूँ..?'
'अरे रख न... पंचांग देखकर बताऊँ क्या?'
सेंजय्या ने श्वास थामी और एक झटके से बोस उठाकर बड़ी कठिनाई से धप्प करते तख्ते पर रख दिया । दूसरे क्षण फटाक की आवाज के साथ तख्ता टूट गया । फिर कुछ टूटने-गिरने की छोटी-छोटी आवाजें । मशीन का ऊपरी भाग प्लास्टिक का होने के कारण वह चूर-चूर हो गया । फिर फुर्र की आवाज समेत स्टिंग उछलकर बाहर आ गिरा । वजन मशीन चूर-चूर हो गई । यानी कि नौ सौ अस्सी रुपए मिट्टी में मिल गए। उसी वक्त मित्रभाषी देमे मामा ने प्रवेश किया और किसी प्रमुख खबर बताने के लहजे में बोले...
'चावलवाला... बहुत अच्छा... बहुत अच्छा । मैं यह सोचकर ही आया था । चावल खत्म हो गया है। पिछली बार तीन किलो कम था । गलती से नापने के पहले ही मेरी पत्नी ने पड़ोसी को तीन किलो उधार दिए थे । आज ही उन्होंने वापस किए हैं। उन्होंने कहा और फिर पूछा, 'मशीन को क्या हुआ । लगता है टूट गई है । ससुर की हिम्मत सेंजय्या का सामना करने की नहीं रही । ओम हरे मुरारे वासुदेव... कहते हुए वे अंदर चले गए।'
सेंजय्या ने चावलों का बोरा उठाया और रसोईघर की अलमारी के सामने रख दिया।
'मैं चलता हूँ माँ जी... मशीन भी बेकार हो गई । इस बार मुझे चावलों के पैसे नहीं चाहिए। मेरे कारण इतना नुकसान हुआ... पिताजी का भी मन खराब हुआ.... कहते हुए सेंजव्या बाहर निकल गया ।'
'उसको ठहरने के लिए कह...'
अंदर से ससुर का सिंह की तरह गरजता स्वर सुनाई दिया... 'हमारे घर की मशीन टूटने से उसे क्यों नुकसान हो । चावलों के पैसे के साथ दस रुपए ज्यादा देकर भेज । बेचारा... दो-दो बार बोरा उठा-उठाकर रखता रहा ।'
'अच्छे ससुर भी हैं । अच्छे चावल वाले भी हैं ।'
(अनुवाद : आर. पार्वती)