Anuradha Ramanan अनुराधा रमणन्
अनुराधा रमणन् (29 जून 1947 - 16 मई 2010) तमिल लेखिका, कलाकार और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उनका जन्म तमिलनाडु के तंजावुर में हुआ था। उनके दादा आर. बालसुब्रमण्यम एक अभिनेता थे जिन्होंने अनुराधा को लेखक बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अनेक उपन्यास और कहानियां लिखीं। उनका काम मुख्य रूप से परिवार और रोजमर्रा की घटनाओं पर केंद्रित था । उनकी रचनाओं पर कई प्रतिष्ठित फिल्में भी बनीं हैं।
अम्बुलु की बहुमंजिली योजना (कहानी) : अनुराधा रमणन्
Ambulu Ki Bahumanjili Yojna (Tamil Story in Hindi) : Anuradha Ramanan
अम्बुलु चॉक पीस से फर्श पर इस तरह चौकोर लकीरें खींच रही है जैसे सतधरा के खेल में खींची जाती हैं । पास ही चीनू हथेली पर ठुड्डी टिकाए चिंता की मुद्रा में बैठा
_‘एक ब..ब..ड़ा... सा हॉल... एक तरफ एक बैडरूम विद अटैच बाथरूम दूसरी तरफ एक छोटा-सा बैडरूम... चाहे तो उसे गेस्टरूम भी बना सकते हैं । उसका बाथरूम उसी तरफ... और... ।'
'रुको... रुको...' चीनू अपनी पूरी शक्ति समेटकर चिल्लाता है।
'गेस्टरूम की क्या जरूरत है? अब जो गेस्ट हमारे घर आते हैं क्या वे हॉल में दरी बिछाकर नहीं सो जाते... मेरी माँ मेरी बहन मीना यहाँ तक कि मीना के हसबैंड भी हॉल में लेट जाते हैं भले ही विरक्तिपूर्ण गीत गाते हुए-
"जिन्दगी के खेल में अंत में क्या बचता है..?
केवल छह फुट की जमीन पर ही हमारा अधिकार है।"
'इश... चुप रहिए । आपकी माँ, मीना का परिवार...क्या हमारे लिए मेहमान है..
'फिर...?'
'ये सब हमारे घर के सदस्य हैं..... मैं गेस्ट की बात कर रही हूँ... दूर के रिश्तेदार.. फुफेरा... ममेरा भाई... ऐसे कितने ही हैं...।'
चीनू ने दिमाग को कुरेद-कुरेद कर देखा । आखिर वह चिढ़ गया।
'हमारी शादी के इन दस सालों में फुफेरा ममेरा भाई का नाम लेकर कोई भी पंछी इस तरफ पर नहीं मार सका है अम्बुलु.. ।'
अम्बुलु तरबूज की तरह फुलाए चेहरे को लेकर सीधे सास के सामने जा खड़ी हुई।
'माँ, देखिए.... यह मुझे किस तरह छेड़ रहे है.... पता नहीं आपका पुत्र होकर भी यह इस प्रकार क्यों हैं? आप तो निष्कपट और सीधी हैं स्पष्ट यथार्थवादी । मीना भी इस प्रकार टेढ़ी-मेढ़ी बातें नहीं करती है ।'
चीनू पत्नी को इस प्रकार देखने लगा मानों संसार का कोई अजूबा हो। “मुँह में राम और बगल में छुरी ऐसे लोगों से रखो दूरी..." ऐसा कहने वाले कवि महाराज को ढूँढकर चीनू उनसे पूछना चाहता है-
'क्यों जी.... कवि महाराज यहाँ माँ डबल रोल कर रही है... और पत्नी तो एक साथ नौ-नौ रोल कर रही है... मैं तो इनसे बचकर भाग नहीं पाया लेकिन आपने कैसे किया...?'
माँ मंगलम् इस भांति बहू की ओर झुक गई है जैसे दस रुपए में सस्ते खरीदे गए मतदाता।
‘क्यों रे अम्बुलु ने क्या गलत कहा क्या उसे हमारे रिश्तेदारो से बैर है...? यह हमारा घर क्या चार लोगों को घर बुलाने लायक है? डेढ़ बित्ते भर का हॉल... ऐसा भी नहीं कि खाने के वक्त पाँच मिनट इत्मीनान से बैठकर खाना खाया जा सके । बेडरूम तो तुम दोनों के लिए ही छोटा है । मैं और बच्चे हॉल में इस तरह बिस्तर लगाते हैं जैसे बर्मा से आए शरणार्थी हों ।'
माँ! ऐसी बात नहीं कि बेडरूम में दो बच्चों के लिए जगह नहीं है। इनके खर्राटों के शोर से बच्चे बिचारे बहुत डर जाते हैं । उसका कष्ट भी तो तुम्ही को होगा... झाडूफूंक... ओझा को लिवाने... भागदौड़ भी तुम्हें करनी होगी... आगे चीनू कुछ और भी बोलने वाला था कि अम्बुलु के चेहरे के नक़्शे को देखकर उसने मुँह बंद कर लिया।
बात सिर्फ इतनी-सी थी कि चीनू के दफ्तर में मकान बनाने के लिए ऋण देने की योजना है । पूरे खर्चे में एक तिहाई पूँजी घर बनाने वाले को डालनी पड़ती है, शेष मैनेजमेंट देता है । यानी कि अगर प्लॉट की कीमत तीन लाख है तो खरीदने वाले को भी एक लाख भरना होगा, चाहे वह भीख माँगकर ही क्यों न भरे । अब तक चीनू दफ्तर की इस योजना के प्रति लापरवाह था । जिस मकान में अब है उसका किराया सिर्फ सात सौ पचास रुपए है । जब उसकी शादी हुई थी तब उस घर का किराया पाँच सौ रुपए ही था । इन दस सालों में दो सौ पचास रुपए की बढ़ोत्तरी की गई । वैसे तो किराया ज्यादा नहीं है । हॉल में अराम से दस जन सो सकते हैं । बेडरूम भी बड़ा ही है, मगर अम्बुलु के लिए यह पर्याप्त नहीं है । सास-बहू दूसरे मामलों में चाहे जैसी हों, सामान इकट्ठा करने में वे एक-दूसरे से कम नहीं ।
एक तरफ मंगलम् ने चीनू का बचपन का पालना सास-ससुर की तस्वीर, दिल्ली से खरीदा हुआ मोड़ा, आइने वाली अलमारी, इमामदस्ता, उन दिनों के फिल्म स्टारों का फोटो, अलबम आदि जुटा रखे हैं तो दूसरी ओर अम्बुलु ने तो कमाल ही कर दिया है । कोई कलकत्ता गया तो उससे अँलाय मेटल की कड़ाहियां मंगवा लीं । बड़ी से लेकर हथेली भर के साइज की एक दर्जन । गोदरेज की दो अलमारियाँ । इनमें से एक बंद हो जाए तो खुलती नहीं, दूसरी बंद ही नहीं होती । उसके हैंडिल को कभी चीनू ने रसोई में देखा था । मामूली से 'बेलन' अम्बुलु के पास दस-पंद्रह थे । सब कुछ बैडरूम की अलमारी में । एक दिन चीनू ने हिम्मत करके अम्बुलु से पूछ ही लिया।
‘एक ही अलमारी में हमारी शादी की फोटुएँ और इतने सारे बेलन रखोगी तो देखने वाले क्या समझेंगे...?' ऊपर से शादी के समय मेरे चेहरे पर भय की भी लकीरे हैं...'
‘सोचने वाले चाहे कुछ भी सोचें, यह हमारा घर है। हम इसे जैसा चाहे रखें...'
'रोटी के लिए क्या एक बेलन काफी नहीं है अम्बुलु?'
‘बस कीजिए... रोटी के बेलन से पूड़ी नहीं बनती । पूड़ी के लिए जस पतला बेलन चाहिए। वह काला वाला पापड़ बेलने के लिए है....'
'और....वह रंगों वाला...?'
'वह तो मेरी शादी का शगुन है। मेरी नानी ने मेरी माँ के लिए खरीदा था श्रीरंगम् से । मेरी माँ कहती है कि उसे वैसे ही रख लूँ और अपनी कुम्भी को उसके विवाह पर शगुन के तौर पर दूं....'
कुम्भी यानी कि कुमारी जो अभी-अभी तीन साल की हुई है ।
'उसके जमाने में बेलन ही नहीं रहेंगे अम्बुलु...'
चीनू ने व्यर्थ ही कहा । अम्बुलु में जिद बहुत है। उसकी जिद में मंगलम् का बहकावा भी यदि शामिल हो जाए तो बस... यदि कोई छोटी-मोटी बात होती तो चीनू फिर भी संभाल लेता.....मगर यह तो लाखों की बात है ।
'कल अगर वह साम्बन् मिल गया तो उसे गुण्डों के हाथों पिटवाऊँगा....' चीनू मन-ही-मन निश्चय करता है। इसी वजह से वह दफ्तर के दोस्तों को घर में ज्यादा आने-जाने नहीं देता है। कोई कुछ भी आकर कह देगा लेकिन सामना तो उसे ही करना है न....?
'मगर केवल साम्बन को छूट है । मित्रद्रोही... चीनू की माँ का दूर का रिश्तेदार है।'
हमारे बगीचे का है... मामी की पसन्द का है न इसीलिए लाया हूँ... ऐसा कुछ न कुछ कहते हुए दो छोटे-छोटे नींबू देकर कुछ ऐसा मंत्र रुक जाता है जिससे घर की औरतों की रात की नींद हराम हो जाए ।
चार दिन पहले नींबू के बदले हल्दी-कुंकुम लगा हुआ अपने नए घर के गृहप्रवेश का निमंत्रण-पत्र देने आया था।
'क्या है... रे...?'
गिंडी के पास एक नया फ्लैट खरीदा है मामीजी, पाँच सौ वर्गफुट का तीसरी मंजिल पर.... गरीब के लिए तो यह तिल के लड्डू हैं।'
मंगलम् का मुँह हैरत से खुला रह गया । साम्बन् की तनख्वाह कुछ खास न थी । उसकी नौकरी भी चीनू की तरह न थी। पिछले बीस वर्षों से वही क्लर्की किए जा रहा था । और चीनू का कहना था कि दफ्तर के काम में भी वह कुछ खास न था।
मगर अम्बुलु और मंगलम् ने इस बात पर तनिक भी विश्वास न किया था। जिसमें सामर्थ्य न हो वह अपना खुद का फ्लैट कैसे खरीद सकता है....
चीनू चीख-चीखकर थक गया । उसके पास पहले से ही तिरुचि के पास चार-पाँच एकड़ खेती के लिए उपजाऊ जमीन थी न...? उन सबको बेचकर ही फ्लैट खरीदने की पूँजी उसने जुटाई है । पागल कहीं का...पाँच एकड़ जमीन को पचास हजार में बेच दिया और यहाँ तो केवल पाँच सौ वर्गफुट है। वह भी कहाँ तीसरी मंजिल पर। न जमीन अपनी न छत । दफ्तर में यदि ऋण दिया जाता है तो उसके लिए मर थोड़े ही सकते हैं।'
बस घर में दो दिन तक मातम मनाया गया। जब-तब माहौल ठीक करने के लिए चीनू ने एकाध चुटकुला भी सुना दिया तो भी अम्बुलु ने जवाब में चेहरा फुला लिया । परछती पर रखी वॉयलिन निकालकर धूल झाड़ी और एक कोने में बैठकर रि...रि. तान छेड़ने लगी।
'यह कैसा जी ऊबाड स्वर है....सहन नहीं होता...' चीनू ने कहा ।
'तू चुप रह.. उसको भी तो दुख होगा... मंगलम् उलटा बेटे को डाँटने लगी।
अब और सहन नहीं होगा । ऐसी स्थिति के आने पर चीनू दो-तीन दुमंजिलेतिमजिले मकानों के ठेकेदारों को मिलकर तरह-तरह के घरों के नबी लेकर आ गया। अम्बुलु और मंगलम् हर नक़्शे में इच्छानुसार चौकोर बनाकर कमरों को बढ़ती ही गई।'
'हमें पोर्टिको तो नहीं चाहिए न? उस जगह को भी एक कमरा बना देंगे।'
रुको...रुको... मेरी बात मानो... क्यों रे चीनू... दूसरे बेडरूम में एक फ्रेंचविण्डो बनाकर उसे विस्तार दें तो अच्छा नहीं लगेगा...'
अच्छा क्यों नहीं लगेगा....जरूर लगेगा... मगर बगल वाले मकान का मालिक हमें छोड़ेगा नहीं, क्योंकि जिस फ्रेचविण्डो की तुम बात कर रही हो वह हमारे कम्पाउण्ड की दीवार के ऊपर ही तो होगी।'
मंगलम् ने हाथ की पेंसिल दूर फेंकी और बोली,
'गलती तो मेरी है, जो तुम्हें सुझाव देने चली । मेरा क्या तुम जानो तुम्हारा घर जाने। जो भी घर हो मुझे तो हॉल में ही सोना होगा और रसोई में खाना । मुझे क्या जरूरत है यह सब कहने की।' मैंने सोचा अपना खुद का मकान है...बाद में अगर हम चाहेंगे तो भी बदलना आसान थोड़े ही होगा....इस जमाने के बच्चों को तो बुजुर्ग सुहाते ही नहीं । जैसे ही पचपन साल से ऊपर हो जाएँ तो उन्हें माँ-बाप को पार्सल बनाकर स्वर्गलोक भेजने की उत्सुकता रहती है।
चीनू सहम गया । उसी रात अम्बुलु ने उसे साफ-साफ कह दिया- 'देखिए, हमें बैडरूम नहीं चाहिए। अपनी माँ के लिए एक बड़ा-सा बैडरूम बाथरूम समेत बना दीजिए। उनको यह बात सालती रहती है कि उनका कोई अपना कमरा नहीं है।'
_ 'अम्बुलु....मकान का पूरा दायरा ही पांच सौ वर्गफुट है। इसी को खरीदने में तीन लाख से ज्यादा लग जाएगा, ऐसा ठेकेदार का कहना है। मेरे बचत खाते में तकरीबन सत्तर हजार है और पच्चीस-तीस हजार तो चाहिए...उसका जुगाड़ कैसे होगा इसको लेकर मैं परेशान हूँ।'
'परेशान क्यों होते हो...? साम्यन् की तरह आप भी अपनी तंजाऊर की जमीन को बेच डालिए... बेकार ही तो पड़ी है। हो सकता है कि आपके दादा-परदादा के जमाने में ईख और धान उस जमीन पर बेशुमार हुए हों... मगर अब क्या है..
'अरी... चार एकड़ जमीन है और उस पर चार सौ नारियल के पेड़ लगे हैं।'
'उससे हमें क्या फायदा...? महीने में मुश्किल से बीस नारियल मिलते है । उन्हें भी आपकी माँ हर मंगलवार और शुक्रवार को ऊपर की मंजिल पर रहनेवाली औरतों को भेंट रूप में दे देती है।
‘वेत्तलै-पाक्कु' (दक्षिण की यह परम्परा है कि घर आए मेहमान विशेषकर नारियाँ जब जाने लगती हैं तो उन्हें थाली में पान-सुपारी तथा नारियल भेंट रूप में शगुन के लिए दिया जाता है तथा सिंदूर का टीका लगाया जाता है।) में देकर अपने गाँव के नारियलों का ढिंढोरा जो पीटना है। लोग सुनेंगे तो हंसेंगे कि अंत में मुझे चटनी बनाने के लिए नारियल खरीदने पड़ते हैं । अम्बुलु सिसक कर रोने लगी... और कोई चारा नहीं.. घर में यदि शांति चाहिए तो उसके लिए सब कुछ त्याग करना ही पड़ेगा।
माँ उतनी आसानी से नहीं मानी । अंत में पाँच सौ वर्गफुट सात सौ वर्गफुट हो गया माँ अपने लिए अलग कमरे का प्रस्ताव सुनकर भी अनमनी-सी रही ।
'मेरा तो जमाना चुक गया है । अधिक से अधिक दो साल रहूँगी । परलोक जाते समय क्या कमरे को सिर पर रखकर साथ ले जाऊँगी... मेरे बाद तो यह कमरा कुम्मी और बाबू की पढ़ाई के लिए इस्तेमाल होगा ।
अब तक चीनू के घर की योजना तीन से साढ़े पाँच लाख तक चली गई । जो सत्तर हजार हाथ में थे तथा तंजाऊर की जमीन बेचने पर एक लाख मिला था वह सब उसने बैंक में डाल दिया था । अब चीनू दफ्तर से ऋण लेने हेतु आवेदन-पत्र लिखने लगा।
'तुम एक बार साम्बन से बात कर लो । इसमें शरमाने की क्या बात है? उसके गृहप्रवेश पर भी मैं नहीं गई । हो सके तो उसके घर के आसपास ही अपने लिए भी कुछ मिल जाए, देख लेना...।'
साम्बन को इतना गर्व महसूस हुआ मानों उसको किसी ने मुकुट पहना दिया हो ।
'गिंडी में कहाँ है...रे...तेरा घर?'
'उस तरफ जिधर गवर्नर का बंगला है न...'
'हाँ..'
'उसके बाद सीधे जाओ तो गलेक्सो कम्पनी आएगी... चौबीसों घंटे बस सुविधा है।'
'अच्छा !'
'उस बसमार्ग में ही बायीं ओर जाओ तो बेल्लाचेरि आएगा।'
'वेल्लाचारि में खरीदा है क्या...?'
'नहीं.. नहीं.. मामीजी वेल्लाचैरि से सीधे जाओ तो मडिपाक्कम्.. उसके बाद शॉर्टकट से ताम्बरन् सेनिटोरियमू... पास ही सेलैयुर है।'
चीनू उसे ऐसे देखने लगा मानों नोंच खाएगा।
'तुमने तो कहा था गिंडी में है..'
'हाँ, गिंडी से बस पकड़ोगे तो बीस मिनट में सेलैयुर गिंडी से माउण्ट रोड....दफ्तर पहुंचने के लिए आधा घंटा...'
'तू.. क्यों बस पकड़ने लगा...? तेरी तो लूना.. बुना... कुछ है न?' चीनू की लगा मानो उसी क्षण उसकी समस्त हड्डियाँ चकनाचूर हो गई हों।
‘साम्बन पर विश्वास करने से कोई फायदा नहीं है.. माँ। एक अच्छे ब्रोकर को पकड़ना होगा । पता नहीं उसने किस घड़ी यह बात कही थी । उसके बाद हर रविवार हाथ में टिफिन कैरियर और खाता लेकर अम्बुलु और मंगलम् बच्चों समेट ब्रोकर के पीछे-पीछे इस प्रकार चल पड़ती जैसे चुनाव के पहले गर्द उड़ाते गली-गली नेता ।
‘सर.. पोरुर में एक बढ़िया जगह है। एक साथ दस फ्लैट बन रहे हैं, बहुत मांग है। इसी को आज जाकर तय कर देते हैं।'
'पिछले हफ्ते टैक्सी के लिए दो सौ रुपए खर्च हो गए। तुमने एक सुनसान जगह दिखाकर कहा था कि वहाँ पाँच सितारा होटल आ रहा है।'
'जी... हाँ.. आपने देखा नहीं..?
'कहाँ..?'
'झोंपडपट्टी के बाद, एक बुढ़िया बैठी थी... ताड़ के फल और मसालवड़े बेचती हुई?' उसके बगल में ही ऐरोमार्क था न.'कि उस तरफ देशी दारू की दुकान है।'
'हाँ.. वही तो...जहां एक बुढ़िया बैठी थी । वही पाँच सितारा होटल बनेगा.... दारू की दुकान ही बार बनेगी । फिर देखना इस जगह पर एक ग्राउण्ड बीस लाख में बिकेगी । आज जो वहाँ प्लाट खरीदेगा वह कल कुबेर हो जाएगा।'
'चुपचाप इसी जगह को खरीद लेते हैं।'
'हाँ पीछे बच्चों के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज भी तो है ।'
एक दिन चीनू ने शुभदिन की शुभघड़ी में छह मजिलों वाली इमारत की पांचवीं मंजिल के कोने वाले सात सौ वर्गफुट वाले फ्लैट के लिए पचास हजार रुपए अग्रिम के तौर पर जमा कर दिए। उसे विश्वास था कि लिफ्ट लग जाएगी। उसी दिन अम्बुलु मकान मालकिन से कह आई,' अधिक से अधिक छह महीनों में हम आपके फ्लैट में चले जाएँगे।'
1. मसालवड़े : चने की दाल से बने वडे
2. ग्राउण्ड : 1 ग्राउण्ड - 2240 वर्गफुट
'तो मैं एडवांस को किराए से घटा लूं..
'बेशक...'
छह महीने का लगभग एक साल होने को आया है... भूमिपूजा हुए, किंतु एक फुट भी जमीन नींव के लिए अभी तक नहीं खोदी गई है।
‘लगता है यह ठीक नहीं जमेगी । ठेकेदार और जमीन बेचनेवाले के मध्य समस्या है। हम... दूसरी जगह देखें तिरुवल्लूर में मार्केट के पास एक बढ़िया जगह है । उस इमारत में केवल तीन मंजिलें ही हैं।' पसीने से तरबतर देह से चिपके हुए कुर्ते को ठीक करते हुए ब्रोकर ने कहा।
इस एक साल में ब्रोकर कुछ मालदार हो गया है। कार में सवारी अमृत्व के हाथ का बना खाना... इन सबने उसे इस हद तक बदल दिया है कि अब वह पहचाना ही नहीं जाता।
'माँ जी, पिछले हफ्ते तो आप बिरयानी लाई थी.. इस बार बढ़िया इमली भात बनाइए। आपके घरों में बने इमली भात का स्वाद ही कुछ और होता है...' ब्रोकर हॉल में बैठकर अम्बुल को आदेश देने की हद तक बढ़ गया है। अग्रिम के रूप में पचास हजार दिए थे उसके लौट आने की संभावना की जानकारी हेतु मंगलम् ज्योतिषों के पीछे घूम रही थी तो अम्बुलु मनौती मांग रही थी कि जैसे ही पचास हजार हाथ आ जाएँगे तो वह सपरिवार तिरुपति के दर्शन करने आएगी।
पाँच-दस करके उस रकम को वसूल करते-करते चीनू गंजा हो गया । एक लाख सत्तर हजार में टैक्सी...पैट्रोल... ब्रोकर..भगवान...मंदिर...ज्योतिषी...कोर्ट-कचहरी इन सभी के बाद कितना बचा है यह जाने बिना ही अम्बुलु ऊब कर कहने लगी है- 'हमें सात सौ वर्गफुट वाला घर....वर....नहीं चाहिए।'
'अब हमारी ऐसी स्थिति है कि हम एक बाथरूम भी नहीं बना सकते अम्बुलु....'
'तंजाऊर की जमीन जिसने हमसे खरीदी थी उसने उस पर बहुत बड़ा फार्म बनाया है।
'चीनू मकान मालकिन पूछ रही थी कि हम घर कब खाली करने जा रहे हैं? एडवांस खत्म हुए छह-माह बीत चुके हैं । हमारे बाद आनेवाले किराएदार बारह महीनों का एडवांस देने को तैयार हैं।'
'हम दस सालों से यहाँ रह रहे है । क्या उसके लिए कोई विशेष अनुग्रह नहीं दिखा सकते? हम पहले की तरह छह माहे का एडवांस उसको थमा देंगे ।' अम्बुलु चिढ़कर बोली।
'छह माह का एडवांस कितना हुआ अम्बुलु...?
'चार हजार पाँच सौ... क्यों पूछ रहे हो...?'
'कुछ नहीं...चार हजार पांच सौ के लिए हजार कम पड़ रहा है अम्बुलु...क्या वे अगले महीने बाकी का ले लेंगे...?' चीनू ने गहरी सांस लेते हुए पूछा ।
(अनुवाद : शिवकामी अमृत्व)