Ajit Kaur
अजीत कौर

अजीत कौर (16 नवंबर 1934, का जन्म लाहौर में हुआ। इन्होंने अर्थशास्त्र में एम.ए. की। अब तक उन्नींस कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, एक रेखा चित्र, एक यात्रा संस्मरण और आत्मकथा की दो पुस्तकें 'खानाबदाश' और 'कूड़ा-कबाड़ा'। अनेक कहानियों का भारतीय एवं विदशी भाषाओं में अनुवाद। पाँच कहानियों पर टेली फिल्मों का निर्माण। वर्ष 1985 में आत्म कथा 'खानाबदोश' पर साहित्य अकादमी, दिल्ली की ओर से सम्मानित। 'गुलबानो'(1063), 'महिक दी मौत'(1966), 'बुत शिकन'(1966), 'फालतू औरत'(1974), 'सावियाँ चिड़ियाँ'(1981), 'मौत अलीबाबा दी'(1985), 'ना मारो'(1990) और 'नवम्बर चौरासी'(1996) इनके प्रमुख कहानी संग्रह है। फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर की प्रेजीडेंट। नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान में सार्क देशों के लेखकों की कांफ्रेंस का सफल आयोजन। इनका लेखन जीवन के उहापोह को समझने और उसके यथार्थ को उकेरने की एक ईमानदार कोशिश है। इनकी रचनाओं में न केवल नारी का संघर्ष और उसके प्रति समाज का असंगत दृष्टिकोण रेखांकित होता है बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विकृतियों और सत्ता के गलियारों में व्याप्त बेहया भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक जोरदार मुहीम भी नजर आती है। पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए इन्होंने सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाइयाँ लड़ी है।