गुंगु और छतरी : मुंडारी/झारखण्ड लोक-कथा

Gungu Aur Chhatri : Lok-Katha (Mundari/Jharkhand)

एक समय की बात है, रिमझिम बारिश हो रही थी। गांव की लड़कियां खेतों में धान निकाई कर रही थी।
वह सभी काम करते हुए गीत गा रही थी-

दिसुम ताबु गुले-गुले
निमिन बुगिन दिसुम रेबु जोनोमा कना।
बुरू कोते बइया कना
ऊनमिन सुगड़ दिसुम रेबु
बकॉड़ा तान।

धान निकाई जैसे कुछ बचा था। बिजली चमकने लगी और बादल गरजने लगा। लड़कियां डर गईं, लड़कियां खेत के आड़ में छलांग लगाते हुए भागने लगीं। भागते हुए एक दूसरे के ऊपर गिरने लगी। लड़कियों के साथ एक बुजुर्ग महिला भी खेत में निकाई कर रही थी। उसने कहा -तुम सब जवान होते हुए भी बादल के गरजने से डरती हो, उसकी बात सुनकर लड़कियां बोलीं- जिया (दादी) आपने कई बसंत देख चुकी हैं। तो आप क्यों डरेंगे। हम लोग को डर तो लगेगा ही। कुछ देर के बाद बादल गरजना बंद हो गया और बारिश भी थम गई। बारिश थमने के बाद युवतियां गुंगु और छतरी को खेत किनारे एक स्थान पर रखकर फिर से गीत गाते हुए काम करने लगीं।
कुछ देर बाद छतरी गंगू से पूछा- कौन हो तुम
गुंगु बोला- नहीं पहचाना मैं गुंगु …

छतरी ने कहा-अरे तुम हो मैं तो सोचता था गुंगु मुझसे अधिक सुंदर होगा। गुंगु बोला -सुंदर नहीं हूं, तो तुम्हारा क्या जा रहा है।

अब छतरी के मन में गुंगु के प्रति हीन भावना उत्पन्न होने लगी क्योंकि छतरी शहरी इलाकों से होकर आया था और गुंगु इन्हीं बिहड़ जंगलों के बीच उत्पन्न हुआ और इन्हीं के बीच अब तक है। इसलिए वह चुपचाप छतरी की बात सुनता रहा।

छतरी ने कहा -गुंगु मुझे तो छोटे बड़े सभी लोग प्यार करते हैं, क्योंकि मैं भी उन्हें गर्मी तथा बारिश से बचाता हूं। तुम्हें तो गर्मी में कोई पूछता भी नहीं होगा।

छतरी की बात सुनकर गुंगु चुपचाप रहा। घर लौटने के वक्त भी छतरी मुस्कुरा रहा था। गुंगु बिल्कुल सीधा साधा था। वह कभी किसी की बुराई नहीं करता था। दूसरे दिन लड़कियां फिर निकाई के लिए खेतों में जा रही थी। रास्ते में बारिश होने लगी। सभी लड़कियां अपना अपना गुंगु निकाल कर ओढ़ ली और एक लड़की के पास छतरी था उसने उसे ओढ़ लिया और कुछ देर बाद तेज हवा चलने लगी हवा पानी में छतरी संभल नहीं रही थी। वह हवा के झोंकों से पलट गई। लड़की भींगने लगी उसे ठंड भी लगने लगा, वह तुरंत एक लड़की की गुंगु में घुस गई। कुछ देर अंदर रहने के बाद वह काफी गर्म महसूस की उसने कहा तुम्हारा गंगू अच्छा है। मेरा छतरी नहीं। मेरा छतरी तो धोखेबाज है। यह सुन गुंगु को बहुत गर्व महसूस हुआ वहीं लड़की की बात सुनकर छतरी काफी दुखी हुआ। कुछ देर बाद हवा तो बंद हो गई मगर बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। बारिश में ही लड़कियां निकाई करते हुए गीत गाने लगी।

दो चार घंटे बाद अपने -अपने गुंगु को खेत के किनारे रख दी और जो लड़की छतरी ओढ़ी थी वह भी छतरी को गुंगु के पास रख दी। थोड़ी देर में फिर से हवा चलने लगी।

गुंगु को मौका मिला और छतरी से कहा -गिर रहे हो क्यों खाना नहीं खाए हो क्या। गुंगु के यह बात सुनकर छतरी ज्यादा ही कुड़कुडाने लगा। जब छतरी एक बार पलट गया, तो गुंगु ने कहा मैंने तुम्हारा पैर पकड़ लिया था इसलिए तुम बच गए नहीं तो इस कीचड़ वाले खेत में तुम गिर जाते। छतरी ने अपने सामने देखा तो सच में कीचड़ से भरा खेत था।

गुंगु छतरी से कहने लगा तुम बहुत बड़ी-बड़ी बात करते हो तुम सोचते हो मुझसे बड़ा कोई नहीं, तुम तो बाजार की चीज़ हो और बाजार की चीज़ ऐसी ही होती है। तुम में ताकत तो रहेगी नहीं और बात करोगे सोलह आने की। छतरी शर्मा कर सिर झुकाए चुपचाप खड़ी थी। लड़कियों ने काम खत्म किया और अपने गुंगु और छतरी को लेकर घर की ओर चल दी।

वर्षा ऋतु के बाद जाड़े का मौसम आ चुका था। जाड़े में आज भी आदिवासी समुदाय गुंगु को ओढ़ कर सोया करते हैं। गांव के जिस घर में छतरी था उस लड़की का छोटा भाई सोया था। उसे काफी ठंड लग रही थी। वह उठा और छतरी को ओढ़ा मगर उसे ठंड काफी लगने लगी। वह दूसरे के घर गया और गुंगु में घुस गया गुंगु में घुसने के बाद उसे थोड़ा आराम और गर्मी महसूस हुआ और गहरी नींद सो गया।

सुबह उसकी मां उठी थोड़ी देर के बाद अपने बच्चों को उठाने गई बच्चे को वहाँ नहीं देख। वह घबराई और खोजने लगी। अपने घर में चारों तरफ खोजी मगर बच्चा नहीं मिला। वह काफी रो रही थी। उसके रोने की आवाज सुनकर अगल-बगल के लोग जमा होने लगे। जो भी लोग जाते उनसे उसकी मां रो-रो कर अपने बच्चों के गुम हो जाने की बात करने लागी। उसके बाद घर के पास काफी लोग इकट्ठा हो चुके थे।

उस भीड़ में एक बूढ़ा भी था। उस बूढ़े ने कहा रात में काफी ठंड थी, हो सकता है तुम्हारा बच्चा गुंगु में घुसकर सो रहा हो। बच्चे की मां ने कहा मेरे घर में गुंगु नहीं है। फिर उस बूढ़े ने कहा तो फिर किसी बगल वाले घर के गुंगु में घुसकर सोया होगा। बूढ़े की बात सुनकर उसकी मां अपने पड़ोसी के घर गई और उसके गुंगु में जाकर देखा, बच्चा वहीं आराम से सो रहा था। बच्चे को देख कर वह बहुत खुश हुयी। लोग आपस में बात कर रहे थे गुंगु कितना अच्छा है। हमें बरसात और ठंड से बचाता है। लोगों की बात सुनकर बच्चे की मां ने सोचा आज अगर मेरे घर में गुंगु होता, तो मेरा बच्चा दूसरे घर नहीं जाता। वह अचानक उठी और कोने में पड़ी छतरी को जोर से फेंक दिया।

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