ग्रीन कार्ड धारक (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा
Green Card Dharak (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma
निर्मला आंटी अपने संदूक में कपड़ों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के अचार, मुरब्बे, गरम मसाले, काली मिर्च पाउडर, पता नहीं और क्या क्या सब कुछ तैयार करके अपने संदूक में भर रही थी और अमेरिका जाने की तैयारियां उन्होंने शुरू कर दी।
अमेरिका के न्यूजर्सी में ही रहने वाले अपने इकलौते बेटे आर्यन के पास निर्मला आंटी पहले भी कई बार जा चुकी थीं, पर उस समय उनके पति भी उनके साथ होते थे। अबकी बार तो उन्हें अकेले जाना पड़ रहा था।
एक साल पहले अचानक ही हार्ट अटैक से निर्मला आंटी के पति राजीव गुजर गए। उस समय बेटा आर्यन अपनी पत्नी के साथ आया और सारे कार्यों को निपटा कर चला गया। दोबारा बरसी पर आया तो अपनी मम्मी के लिए ग्रीन कार्ड बनाकर लाया।
बुजुर्ग मां-बाप को आजकल के बच्चे अधिक पूछते ही नहीं है। ऐसे समय में मेरा बेटा मुझमें पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। हाथों हाथ ग्रीन कार्ड बनवा कर साथ ले जाने को भी तैयार है। उन्हें यह सुनकर अपने ऊपर निर्मला आंटी को गर्व हुआ। परंतु फिर भी उन्हें एक अजीब तरह का डर और घबराहट भी उन्हें महसूस हो रही थी।
अब तक वे जितने भी बार भी अमेरिका गई थी तो सिर्फ एक महीने ही रहीं थीं। साधारणतया जिनके बच्चे अमेरिका में होते हैं उनके मां बाप अपने बेटों के घर जाने वाले ज्यादातर लोग वीसा लेकर 6 महीने पूरे वहां पर रह कर वीसा का पूरा आनंद लेकर ही भारत वापस लौटते हैं।
जब निर्मला आंटी का पोता पैदा हुआ था, उसी समय निर्मला आंटी तीन महीने उनके घर रुक कर आई थी। अभी सोचती हैं तो भी उन्हें आश्चर्य होता है कि वे कैसे तीन महीने वहां रह कर आई थी।
उन्हें उस समय वह तीन महीने भी उनको तीन युगों जैसे लगा था। यहां भारत से जाने वाले बुजुर्गों को अमेरिका का वास ऐसा लगता है जैसे सोने के पिंजरे में कैद हुए हो ।
परंतु निर्मला आंटी की अभी जो परिस्थिति थी वह अलग थी। दिल्ली में रहने वाले उनके पति जब तक रहे दोनों लोग साथ ही टीवी देखते, रिश्तेदारों के घर, आते जाते, मंदिर, पिक्चर दोनों साथ-साथ जाते एक दूसरे के साथी बनकर दोनों रह रहे थे।
पति के जाने के बाद अकेलापन उन्हें बहुत ही परेशान करने लगा। जो रिश्तेदार और जान पहचान वाले थे, वे भी इनसे थोड़ी दूरी बना ली थी। उन्हें लगा कहीं यह उनसे ना चिपक जाए।
निर्मला आंटी के बेटे ने भी कह दिया मम्मी आपकी तबीयत यदि खराब हो तो मैं तुरंत आकर बार-बार आप को संभालना मेरे लिए मुश्किल है । इसलिए आपका ही हमारे साथ आकर रहना ठीक रहेगा। उसके लिए जो कुछ करना था उसकी तैयारी भी उसने कर दिया। निर्मला आंटी अपने बेटे से कुछ कह भी नहीं पाईं। इसलिए वे अमेरिका के लिए रवाना हो गईं।
अमेरिका पहुंचने के बाद उनके थकावट दूर होने में ही उन्हें दो-तीन हफ्ते लग गए । थोड़ा-थोड़ा कर उन्होंने अमेरिका के जीवन में जीने के लिए प्रयत्न करने लगीं।
उनके घर में उनके बेटे आर्यन और बहू ,पोता-पोती सभी लोग सुबह सुबह निकल जाते फिर वापस रात को 7:08 बजे के बाद ही आते। निर्मला आंटी को अकेले ही सारे दिन घर में कैद रहना पड़ता। अड़ोस पड़ोस में जैसे दिल्ली में खड़े होकर बात कर लेते थे ऐसा तो यहां नहीं हो सकता था !
न्यूजर्सी में आप पूरे ही साल वाकिंग पर नहीं जा सकते। क्योंकि बाहर बहुत ठंड रहती है। यदि और दिन भी वॉकिंग पर जाओ तो कार ही आते-जाते दिखाई देंगे। एक भी मनुष्य नहीं तो कौवा पक्षी भी नहीं दिखाई देंगे। एकदम सुनसान सड़क ही होगी।
एक इतवार को तो उन लोगो का घर के सामान खरीदने में ही खर्च हो जाता और बच्चों को विभिन्न क्लासेस में छोंड़ना लेकर आना इन्हीं में वे लगे रहते थे।
कभी-कभी इंडिया के दोस्तों के यहां पर गेट-टुगेदर होता तो उस समय वे निर्मला आंटी भी साथ में जाती थी। उसी समय साड़ी पहनने का एकमात्र मौका भी मिलता था।
ऐसे ही एक गेट टूगेदर के समय ही उन्होंने रमाकांत अंकल से उनकी मुलाकात हुई। वह भी उनके जैसे ही पत्नी के गुजरने के बाद अकेले हो गए थे और बेटे उनको यहां ग्रीन कार्ड लेकर उन्हें साथ लेकर आए थे।
रमाकांत अंकल ने निर्मला आंटी से पूछा “आपका दिन यहां कैसे कटता है?”
उनके जवाब के इंतजार किए बिना ही वे स्वयं बोलने लगे। “सुबह उठते ही एक हाथ में पेपर और एक हाथ में कॉफी अपने देश भारत में होता था। यहां तो पेपर देखने कोई नहीं मिलता। उसको पूरा चाट-चाट कर पढ़ने के बाद, दोपहर को उसके बारे में आपस में डिस्कस करने में बड़ा मजा आता।” यहां ऑनलाइन पढ़ लो, पापा बेटा कहता है। ऐसा कैसा हो सकता है? सुबह उठकर घूमने जाते थे। बाहर कहीं नाश्ता भी कर लेते थे। दोपहर तक घर लौटते। आधा दिन तक आराम से कट जाता। फिर शाम को बगीचे में बैठकर गपशप हांकते थे। रात को समाचार और धारावाहिक ऐसे ही दिन गुजर जाता था।”
“यहां तो मेरे उठने के पहले की बहू ऑफिस चली जाती। नाश्ता तो कुछ होता ही नहीं ओट्स खा लो या ब्रेड।”
“दोपहर को फ्रिज को टटोलो जो मिले उनको गर्म कर करके खा लो।
दिल्ली में तो उनको पत्नी के जाने के बाद भी इतनी परेशानी नहीं हुई इतना अकेलापन महसूस नहीं हुआ जितना यहां पर आकर।”
ऐसे ही वक्त तो रमाकांत अंकल और निर्मला आंटी दोनों जब-जब गेट टुगेदर में मिलते थे उनकी यही बातें होती।
शुरू में तो निर्मला आंटी को थोड़ा संकोच हुआ अंकल से बात करते समय। फिर तो वे भी उनसे खुलकर बात करने लगी।
उन दोनों ने आपस में फोन नंबर का भी आदान-प्रदान हो गया।
एक दिन रमाकांत जी बोले “हम क्यों इस तरह कहते हुए यहां रहे? हमें नहीं चाहिए ग्रीन कार्ड? हमें अमेरिका भी नहीं चाहिए? कहकर हम क्यों न भारत लौट जाए?” उन्होंने निर्मल आंटी से पूछा।
निर्मला आंटी एकदम से परेशान हो गई। उनके हाथ पैर कांपने लगे।
“आप क्या कर रहे हो? यह कैसे हो सकता है? हमारे बच्चों ने कितने मुश्किल से हमारे लिए ग्रीन कार्ड लिया है? अभी हम उसे वापस कर देंगे बोले तो हमारे बच्चे इसके लिए मानेंगे क्या?” निर्मला आंटी बोली।
“हमारे बच्चों को यही फिकर है कि हम भारत में अकेले कैसे रहेंगे? अब हम एक दूसरे के सहायक बनकर हम दो जने रहेंगे ना?” बिना किसी संकोच के रमाकांत जी बोले।
रमाकांत जी यहीं नहीं रुके घर जाकर अपने बेटे बहू को भी उन्होंने बता दिया तो उनके घर सुनामी भयंकर भूचाल सब कुछ एक साथ आ गया।
“तुम्हारे पिताजी ने पहले से ही ऐसा सोचकर उस दिल्ली वाले मकान को हमें बेचने नहीं दिया था। उसकी चाबी भी स्वयं ही रखते हैं। देख लिया कैसे हैं?” उनकी बहू शुरू हो गई। उसको भी मौका मिल गया। अब क्या! इस सुनहरी अवसर को कैसे खोतीं!
रमाकांत अंकल के कहते ही इस बारे में निर्मला आंटी भी सोचने लगी।
जब पोते-पोती छोटे थे तो दादी-दादा से चिपकते थे। अपनी पसंद की खाने-पीने की चीजों को उनसे बनवा कर खाते पीते थे।
अब तो वे क्या खाते हैं क्या खाएंगे निर्मल आंटी के तो कुछ भी समझ में नहीं आता। बेटी-बहू भी “इसमें मिर्ची है। इसमें तो बहुत ज्यादा ऑयल और इसमें शुगर है इससे तो कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाएगा।”ऐसा कहकर वे लोग आंटी के बनाए हुए खानों को ना खाकर अपने लिए स्वयं ही कुछ बना लेते हैं। वे स्वयं ही अपना खाना आंटी बना लेती थी। बेटे के घर में किसी को भी बोलने की फुर्सत नहीं है। अब तो निर्मला आंटी को लगा रमाकांत जी सही कह रहे हैं। उनका डिसिशन उन्हें भी सही लगा।
उन्होंने साहस को बटोर कर रमाकांत जी ने जो कुछ बोला वह अपने घर वालों को बताया तो उनके घर भी बहुत बड़ा भूकंप आया। “दिल्ली में आपके फ्लैट को भी बेच दिया। अब वापस कहां रहने उद्देश्य है?” बड़ी फिक्र के साथ बेटे ने पूछा। निर्मला आंटी को थोड़ा संकोच हुआ।
“वह रमाकांत जी के भी दिल्ली में अपना मकान है? हम दोनों एक दूसरे के सहायक बनकर वहां रह जाएंगे।” उनके बोलते ही उनके बेटे-बहू आश्चर्यचकित होकर स्तंभित रह गए।
“अभी तो ठीक है अगले 10 साल बाद जब तुमसे अकेले नहीं रहा जाएगा?” सचमुच के फिक्र से बेटे ने पूछा।
“इसके बारे में भी हम लोगों ने सोच लिया बेटा। जब ऐसा समय आएगा तो हम वैसे ही बंदोबस्त कर लेंगे” बड़े विश्वास के साथ निर्मल आंटी ने जवाब दिया।
उनकी बहू चित्कारती हुई बोली “इस उम्र में तुम्हारी मां कोई अक्ल का काम थोड़ी ना कर रही है?” मुंह बना कर उनकी बहू बोली।
इन सब बातों को सुनकर निर्मला आंटी बिल्कुल परेशान नहीं हुई।
“क्यों तुम्हारे अमेरिका में छोटी उम्र की लड़के-लड़कियां लिविंग टुगेदर जैसे रहते है तुमने वैसा ही हमें समझ लिया क्या? हम इस बड़ी उम्र में एक दूसरे के सहायक बनकर जीने वाले हैं। वह तुम्हें क्यों गलत लग रहा है? हमें हमारी इच्छा से जैसे है वैसे जीवित रहने दो” ऐसा कहकर उन्होंने उनके मुंह को बंद कर दिया।
“हमारे मुंह को तो आपने बंद कर दिया। दुनिया के मुंह को कैसे बंद करोगे?” ऐसे बहू के पूछे प्रश्न को जवाब देना निर्मला आंटी ने जरूरी नहीं समझा।
उन्होंने अपना सूटकेस निकालकर अपना सामान जमाना शुरू कर दिया। वहां बाहर उनका ग्रीन कार्ड एक कोने में पड़ा हुआ था।