गोपाल ने नापी धरती (कहानी) : गोपाल भाँड़

Gopal Ne Naapi Dharti (Bangla Story in Hindi) : Gopal Bhand

एक दिन गोपाल भांड जब कृष्‍णनगर के राजा कृष्‍णचंद्र राय के दरबार में पहुंचा, तो उसे वहां का वातावरण कुछ बदला–बदला सा लगा। राजा कृष्‍णचंद्र  उदास भाव से अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। सारे दरबारी चिंतित भाव में अपने स्‍वामी की तरफ ही देख रहे थे।

गोपाल ने अपनी विशिष्‍ट हास्‍य शैली में राजा को हंसाने की कोशिश की, लेकिन राजा के चेहरे पर मुस्‍कान पैदा न हुई। गोपाल समझ गया कि अवश्‍य ही कोई गंभीर समस्‍या पैदा हो गई है, तभी महाराज इतने गंभीर हैं।

जब बहुत देर तक महाराज की चुप्‍पी न टूटी तो गोपाल ने पूछ लिया—‘अन्‍नदाता! आज आप कुछ ज्‍यादा ही चिंतित लग रहे हैं। क्‍या कोई गंभीर समस्‍या पैदा हो गई है? मुझे बताइए। शायद मैं आपकी समस्‍या का कोई हल निकाल सकूं।’

महाराज ने एक गहरी सांस भरी। बोले—‘तुमने ठीक अंदाजा लगाया है, गोपाल। सचमुच मैं एक गंभीर समस्‍या से घिर गया हूं। समझ में नहीं आता कैसे निपट पाऊंगा इस समस्‍या से।’ 

‘पर समस्‍या क्‍या है, अन्‍नदाता? वही तो मैं जानना चाहता हूं, क्‍योंकि आपको चिंतित देखकर मुझे भी उलझन हो रही है।’ गोपाल ने कहा।

‘तो सुनो। मुर्शिदाबाद के नवाब का आदेश प्राप्‍त हुआ कि उसे एक ऐसा आदमी चाहिए, जो इस धरती का सही माप बता सके। ये बता सके कि धरती की लंबाई कितनी है और चौड़ाई कितनी है। है न पागलपन की बात? भला संपूर्ण धरती की लंबाई–चौड़ाई आज तक कोई माप सका है? अब तुम्‍हीं बताओ, मैं ऐसा आदमी कहां से खोजूं जो धरती के धरातल की सटीक जानकारी नवाब को दे सके।’

महाराज ने आगे कहा—‘उस बदमिजाज आदमी की हिम्‍मत तो देखो। उसने आदेश के साथ–साथ यह धमकी भी दी है कि यदि मैं यह कार्य नहीं करा सका तो वह अंग्रेजी सरकार से कहकर मुझे राजसत्ता से हटवा देगा।’

‘यह तो सचमुच गंभीर बात है, महाराज!’ गोपाल बोला—‘लेकिन क्‍या यह सचमुच ऐसा करा सकता है?’

‘क्‍या पता क्‍या करा सकता है? यह आदमी हमेशा ही मेरे लिए नई–नई मुसीबतें खड़ी करता रहा है। जानते हो गोपाल, इस बार इस संदेश के साथ–साथ उसने क्‍या नया शिगूफा उछाला है? उसने अशर्फियों से भरी दो बड़ी–बड़ी थैलियां भेजी हैं, इस निर्देश के साथ कि धन चाहे जितना खर्च हो जाए, काम हर हालत में होना चाहिए।’

‘तो हो जाएगा उसका काम। इसमें चिंता करने वाली कौन–सी बात है?’ गोपाल ने कहा।

‘बड़ी आसानी से कह दी तुमने यह बात?’ महाराज बोले—‘पर यह काम करेगा कौन?’

‘मैं करूंगा, महाराज! मैं नवाब के प्रश्‍न का उत्तर दूंगा।’ गोपाल बोला—‘बस, आप वह दोनों थैलियां मेरे हवाले कर दीजिए और आराम की नींद सोइए।’

महाराज कृष्‍णचंद्र ने दोनों थैलियां गोपाल के हवाले कर दीं। सोने की अशर्फियां पाकर गोपाल की तो मौज हो गई। दो महीने उसने खूब मौज–मस्‍ती मारी। नवाब के धन से खूब गुलछर्रे उड़ाए।

दो महीने बीतते–बीतते नवाब का फिर संदेश मिला, जिसमें पूछा गया कि कार्य कब तक होगा? उत्तर में गोपाल ने महाराज के माध्‍यम से कहलवा भेजा कि कार्य प्रगति पर है। ऐसा व्‍यक्‍ति खोज लिया गया है, धरती के माप का कार्य आरंभ कर दिया है, लेकिन धन बहुत खर्च हो रहा है, इसलिए और अशर्फियां भेजी जाएं।

ख़ैर, इस बार कलपते हुए नवाब ने अशर्फियों से भरी एक थैली और भेज दी। अशर्फियां मिलते ही गोपाल अपनी कार्य योजना को मूर्तरूप देने में जुट गया।

सबसे पहले उसने नगरभर की दुकानों से सूत के महीन धागों के ढेरों गोले खरीदे। जब नगर के व्‍यापारियों की दुकानों पर गोले समाप्‍त हो गए तो उसने दूसरे नगरों से मंगवाए। उसने इतने गोले खरीद लिए कि दस–बीस छकड़ों में समा जाएं।

फिर उसने लंबे और चौड़े–चौड़े ताल–पत्र मंगवाए और कई व्‍यक्‍तियों को इस बात की जिम्‍मेदारी सौंप दी कि वे उन ताल–पत्रों पर स्‍याही से आड़ी–तिरछी रेखाएं बनाते जाएं। वे आड़ी–तिरछी रेखाएं पहली नजर में देखने पर ऐसे लगें जैसे किसी गुप्‍त भाषा में कोई हिसाब बनाया गया हो। इसके लिए ढेरों ताल–पत्र तोड़े गए और उन पर आड़ी–तिरछी रेखाएं अंकित कर दी गईं। फिर एक दिन उन ताल–पत्रों और सूत के गोलों को पचास छकड़ों में लदवाकर गोपाल मुर्शिदाबाद के लिए चल पड़ा।

नगर में पहुंचकर गोपाल ने नवाब के महल के पास ही पड़ाव डाला। और छकड़ों की जिम्‍मेदारी अपने आदमियों को सौंप कर नवाब के दरबार में जा पहुँचा। उसने शाही परंपरा के अनुसार झुक कर नवाब को आदाब किया। नवाब ने पूछा—‘ले आए मेरी इच्छित चीजें?’

‘हां हुजूर। आपके हुक्‍म की उदूली कैसे करता? सारी चीजें आपके महल के पास वाले मैदान में हैं। चलकर देख लीजिए।’

नवाब बड़े उत्‍साह के साथ गोपाल के साथ मैदान में पहुंचा। उसकी दृष्‍टि छकड़ों पर पड़ी तो उसने पूछा—‘ये सब क्‍या है गोपाल? क्‍या भरा है इन छकड़ों में?’

‘धरती का सही माप है हुजूर।’ गोपाल बोला—‘सूत के वे गोले हैं जिनसे धरती की सही माप की गई है? आप चाहें तो इन्‍हें नपवा कर अपनी तसल्‍ली कर सकते हैं।’

‘ऐसा करने में तो पूरा साल ही गुजर जाएगा।’ नवाब असमंजस भरे स्‍वर में बोला—‘तुमने माप का सही हिसाब भी तो लिखा होगा। हमें वह हिसाब दिखा दो।’

‘वह भी हाजिर है हुजूर। ये देखिए इन दस छकड़ों में उसी का हिसाब–किताब लदा हुआ है।’

नवाब ने ताल–पत्रों को पहाड़–सा देखा तो उसकी सारी हेकड़ी गायब हो गई। वह टुकुर–टुकुर ताल–पत्रों से लदे छकड़ों को देखता रह गया।

गोपाल ने कहा—‘हुजूर! अपने आदमियों से कहो कि वे ताल–पत्रों पर लिखे सारे हिसाब को अच्‍छी तरह से जांच लें। बेहतर तो यही रहेगा कि आप स्‍वयं ही इसकी जांच करें।’

‘नहीं–नहीं। हमारे पास इतना समय कहां है? तुम कहते हो तो ठीक ही होगा।’ नवाब जल्‍दी से बोला, जैसे वह गोपाल से पिंड छुड़ाना चाहता हो।

‘तो हुजूर संतुष्‍ट हुए न। अब हुक्‍म दीजिए कि छकड़ों से लदे सामान का क्‍या करूं? क्‍या इसे सरकारी मालखाने में जमा करवा दूं?’ गोपाल बोला।

‘कोई जरूरत नहीं है। तुम इसे वापस ले जा सकते हो। हमारी आज्ञा है।’

यह कहकर नवाब जाने के लिए मुड़ा, लेकिन तभी गोपाल ने उससे कहा—‘हुजूर! मेरी एक गुजारिश है।’

‘बोलो, क्‍या चाहते हो?’

‘हुजूर। धरती का सही माप लेने के चककर में मैंनें बहुत खाक छानी है। क्‍या हुजूर मेरे काम से खुश होकर मुझे कोई इनाम–इकराम नहीं देंगे?’

‘हां–हां, क्‍यों नहीं।’ बेमन से नवाब ने कहा। फिर मुड़कर अपने कर्मचारी से बोला—‘इसे सरकारी खजाने से सौ अशर्फियां दिलवा दो।’

इस प्रकार चतुर गोपाल ने नवाब से खरीदा गया सारा सामान भी ले लिया और उससे सौ अशर्फियां भी झटक लीं।

कृष्‍णानगर लौट कर उसने दरबार में सारा किस्‍सा सुनाया तो महाराज और सभी दरबारी हंसते–हंसते लोट–पोट हो गए।

राजाकृष्‍णचंद्र ने खुश होकर गोपाल को पुरस्‍कृत में सौ अशर्फियां दे डालीं। आखिर गोपाल ने एक असंभव काम जो कर दिखाया था।

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