घोंसला (कहानी) : शर्मिला बोहरा जालान

Ghonsla (Hindi Story) : Sharmila Bohra Jalan

मीता ने आज फिर अपनी खिड़की से देखा, वही कौआ उसी हरे-भरे पेड़ के बीचोंबीच उसी एक खास जगह पर कुछ तिनके ला-लाकर घुसा रहा था। वह उसे देख ही रही थी कि सुनीता जो रिश्ते में उसकी ननद लगती है, आ गई और भाभी-भाभी कहती हुई मीता के गले लग गई। उसकी आँखें बता रहीं थी कि उसे मीता का नया घर बहुत अच्छा लगा है। तभी वह यह कहे बिना नहीं रह सकी की यहाँ आकर भाभी आपकी जिंदगी बदल गई है। मीता मुस्कुरा दी। वह जानती तो है कि सुनीता खाने-पीने, सजने-सँवरने की शौक़ीन आधुनिक लड़की है। उसे भीड़-भाड़ पसंद नहीं है और एक ऐसा इलाका जहाँ डिजाइनर कपड़ों के नए-नए बूटिक खुल रहे हों, नए-नए शॉपिंग माल हों, इनाक्स हों उसे अच्छे लगते हैं। वह मीता के श्यामबाजार से निकलकर बालीगंज आने से बहुत खुश है। बोल रही है - भाभी, आप कितनी बदली-बदली लगने लगी हैं।

क्या यहाँ की हवा का असर नहीं है? मीता क्या बोले, बात पूरी तरह गलत भी कहाँ है। कुछ तो उसे अपने में बदलाव महसूस होने लगा है। उत्तर कोलकाता व दक्षिण कोलकाता में फर्क तो है ही। उत्तर कोलकाता में इतनी घनी आबादी कि दम घुटने लगे। वहीं दक्षिण कोलकाता का खुलापन, कौन नहीं बदल जाएगा!

जाने तो लगी है वह भी ब्यूटी पार्लर और कपड़ों के नए-नए बूटिकों में। फोरम, मॉल, इनाक्स भी कहाँ बचे रहे। नए अच्छे रेस्त्राँ भी घूम आती है। क्या सचमुच जिंदगी बदल गई है। राकेश जो मीता का पति है यही कहता है तो और क्या। कहाँ श्याम बाजार का इलाका और कहाँ बालीगंज। छोटी-छोटी चीजों से ही बदलाव समाज में आ जाता है और कुछ नहीं तो यही देख लो कि श्याम बाजार में बच्चे को घुमाने आस-पास के कोई भी पार्क में ले जाओ तो मिले बंगाली औरतों की भीड़। दुनिया भर की औरतें भड़ी पड़ी मिलेंगी। इससे-उससे झट से बात करती सबको सहेलियाँ बनाती फिरतीं। एकदम शांति नहीं। कुछ भी मजा नहीं। यहाँ इधर के इलाकों में यह सब थोड़े न है। एक उम्दापन है। मीता यह सब याद करते हुए सुनीता से बात करते-करते बीच में फिर उस पेड़ को देखने लगी। यह क्या वहाँ तो एक घोंसला नजर आ रहा है। वह हँसने लगी। उसका मन हुआ वह सुनीता को भी उस नए घोंसले के बारे में बताए, उसे दिखाए। पर यह सोच चुप हो गई कि कहीं सुनीता भी राकेश की ही तरह सोचनेवाली न निकले।

राकेश को सुबह जब वह पेड़ के बारे में कुछ बताने लगी, तो वह बोला, "क्या वाहियात बात लेकर बैठ गई। मैंने तुम्हें खिड़की से मकान के मुख्य दरवाजे पर बैठे सिक्योरिटी गार्ड पर नजर रखने को कहा था कौओं पर नहीं, पर तुम सच में कभी नहीं बदलोगी। राकेश की बात याद आते ही मीता ने जल्दी से गार्ड को देखा तो पाया वह सो रहा है।

रात राकेश घर आया तो मीता ने राकेश से कहा। वह आज फिर सो रहा था। क्या? तो फिर हटाना होगा। निकाल दूँगा ऐसे आदमी को। पैसे देकर रख रहे हैं। मुफ्त में थोड़े न रह रहा है। सोना है तो किसी और का घर ढूँढ़े - राकेश गुस्से में बोलने लगा। जब वह गुस्से में बोलता तो क्या बोलता समझना मुश्किल हो जाता। शब्द एक-दूसरे पर चढ़ जाते और इतनी जल्दी-जल्दी मुँह से निकलते कि कौन शब्द पहले निकला और कौन-सा बाद में समझना आसान नहीं रहता। उसका मुँह भी कैसा गोल और टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता। राकेश कुछ महीनों पहले अपनी पत्नी और बच्चे के साथ दक्षिण कोलकाता के बालीगंज इलाके में आया है। वहाँ उसने अपना एक मकान खड़ा किया है। अब जब वह वहाँ रहने लगा है, तो मुख्य दरवाजे को खोलने बंद करने के लिए आदमी तो चाहिए। आजकल सिक्योरिटी रखने का चलन है। एजेंसी से बात करके रख लो। पूरे बारह-बारह घंटे की ड्यूटी। सुबह नौ से रात नौ बजे तक आदमी और रात की शिफ्ट के लिए दूसरा। कोई झमेला नहीं। ऐसा राकेश ने सोचा था पर सबसे बड़ा झमेला तो यही हो गया कि जब से वह यहाँ आया है तब से एक भी सही आदमी सही गार्ड नहीं मिला।

इसी बीच एजेंसी से बात कर वह दो आदमी बदल चुका। पहला गार्ड - उसे कैसे रखा जा सकता था। वह एकदम अनपढ़ गँवार था। सुबह-सुबह राकेश तैयार हो काम के लिए निकलता वह सलाम ठोंकता कहता, "गुड इवनिंग।" चलो एक दिन भूल से मुँह से निकल गया पर वह तो रोज गुड इवनिंग ही किए जा रहा है। राकेश ने एजेंसी को फोन कर वहाँ के मुख्य आदमी को खूब सुनाया। आखिर कैसे आदमी को भेजा है। हमारी सुबह चौपट कर देता है। मोर्निंग में कहता है गुड इवनिंग। नहीं चलेगा। हटाओ ऐसे वाहियात आदमी को तुरंत हटाओ।

दूसरा पहले से बेहतर आया। चुस्त और फुर्तीला। बार-बार सलाम ठोंकता। झट से दरवाजा खोलता-बंद करता। कुछ दिनों बाद देखा गया वह कान में इयर फोन लगाकर बैठा है। मीता भी आजकल इयर फोन लगाती है। मोबाइल फोन से बात करने के लिए तब जब सुबह-सुबह टहलने निकलती है, पर गार्ड इयर फोन लगाकर क्या करता है? राकेश को गुस्सा आ गया। यह सब फुटानी नहीं चलेगी। मीता को भी गुस्सा तो आया कि गार्ड भी कान में तार लगाए बैठा है और वह भी। पर वह राकेश को बोली - मन लगाने के लिए रेडियो सुनता होगा। कहीं शर्ट में एफएम घुसाकर रखता होगा। तभी तो वह जमीन पर पाँव से थाप देता रहता है। दो-तीन दिन बाद देखा गया वह अँग्रेजी अखबार लेकर बैठा है। पूरे दिन मुख्य पृष्ठ की किसी एक खबर में आँखें गड़ाए। क्या अँग्रेजी पढ़ना जानता है, मीता चौंकी। दूसरे दिन देखा बांग्ला अखबार हाथ में पकड़े हुए है। मीता यह सब तब देखती जब स्वीमिंग करने के लिए निकलती। एक नए बड़े क्लब का राकेश सदस्य बन गया है, सो मीता जब-तब वहाँ जाती है। वह जब-जब नीचे उतरती गार्ड पर नजर रखती है। चौकन्नी रहो - ऐसा राकेश उसे बार-बार कहता रहता है। वह राकेश को गार्ड के बारे में बताती तो रहती है, पर साथ ही यह जोड़े बिना नहीं रहती कि - बताओ बेचारे का मन कैसे लगे। हमारा मकान उस तरफ है, जहाँ कोई आता जाता नहीं। फिर हम उसे दरवाजे के अंदर बिठाते हैं, जहाँ और सन्नाटा है। नीचे भी कोई नौकर-चाकर घूमते नजर नहीं आते कि वह आते-जाते किसी को देख ले और उसे लगे कि वह इनसानों के बीच है। फिर इतनी गर्मी, वह सोएगा ही। अखबार वगैरह पढ़ेगा ही। राकेश मीता की बात सुन तुनककर बोला, "वह नौकरी कर रहा है। मन लगाना है तो जाकर घर बैठे।" राकेश गुस्से में मीता को यह सब बोल चुकने के बाद यह समझकर चुप भी हो जाता कि मीता ने शुरू से पैसा तो देखा नहीं। गरीबों के प्रति कुछ भी बोलने के साथ वह यह जोड़ ही देती है कि बेचारा ऐसा तो करेगा ही।

राकेश को एक स्मार्ट चुस्त आदमी चाहिए, जो दरवाजे पर मुस्तैदी से तैनात रहे। राकेश को इस आदमी को भी बदलना पड़ा। वह शुरू में तो ठीक रहा पर बाद में धीरे-धीरे देखा गया उसका ध्यान दरवाजा खोलने बंद करने में उतना नहीं रहता जितना गाना सुनने, अखबार पढ़ने में।

तीसरा गार्ड आया। वह पहले दो की तरह नौजवान नहीं था। उम्र पचास से ज्यादा। शांत, गंभीर और उदास। आदमी ऐसा चाहिए जो सोए नहीं। वह क्यों उदास रहता है ऐसी वाहियात बात से राकेश को क्या लेना-देना। उसे बस काम से मतलब है। और मीता वह तो जब-जब नए सिक्योरिटी गार्ड को देखती खो जाती। क्या हुआ? उसे क्या हुआ? कोई बात है? क्या? क्या वह पूछे? इससे अच्छा तो वह सोता हुआ आदमी ही ठीक था। हाँ उसकी आँख लग जाती पर झट से उठ चंचल आँखों से देखता और ऐसा चुस्त व फुर्तीला बन जाता कि छायी उदासी कट जाती। इसे देखना मन भारी करना है। नहीं-नहीं, राकेश को इसे हटाना ही होगा। मीता राकेश के पीछे पड़ इस उदास आदमी को बदलने की जिद करने लगी। राकेश झुँझला गया। इतने सारे काम के बीच सिक्योरिटी गार्ड को लेकर मगजपच्ची। छह महीने हो गए यहाँ आए। न यहाँ शोर-शराबा न प्रदूषण। हर तरह से जीवन शांत व सुखमय, पर इस मामले को लेकर तनाव। राकेश ने गुस्से में सिक्योरिटी गार्ड को फोन किया, "हमें आपकी एजेंसी से आदमी नहीं चाहिए। आप अभी आकर हिसाब कर मामला खत्म कीजिए।"

थोड़ी देर में एजेंसी का आदमी प्रकट हुआ। क्या हुआ? इस बार तो आपको अच्छा समझदार बुजुर्ग आदमी दिया था, कोई छैल-छबीला नहीं कि रेडियो सुने, पाँव से थाप दे, सो जाए। अब क्या हुआ? राकेश बोला, "क्या हुआ यह आप नहीं समझेंगे।" बस हमें नहीं रखना। राकेश और एजेंसी वाले मुखर्जी के बीच बाताबाती हो गई। अंत में मुखर्जी के बार-बार पूछने पर कि आखिर इस आदमी के साथ आपको क्या दिक्कत है, कुछ तो कहिए। मीता के मुँह से निकला - "वह बहुत उदास रहता है।" तो यह कहिए न। मैं आपको हँसमुख गार्ड दूँगा। पर आप हम पर विश्वास कीजिए, हमें मौका दीजिए। कल ही मैं एक मुस्कुराता सिक्योरिटी गार्ड भेज दूँगा, ऐसा आश्वासन दे मुखर्जी चला गया।

अगले दिन चौथा गार्ड प्रकट हुआ। कम उम्र का लड़का एकदम टटका। मासूम आँखें। मुस्कराता चेहरा। इतना नया कि लगता बाहर की हवा ने इसे छुआ भी नहीं है। एकदम स्वच्छ। इस बार राकेश और मीता दोनों खुश हुए। आश्वस्त भी कि चलो इस बार सही लड़का हाथ लगा है। राकेश को दूर से ही देखते वह नया गार्ड झट से कुर्सी से उठ जाता। गुड मार्निंग करता, दरवाजा खोलता बंद करता फिर बैठ जाता। मीता जब-जब अपनी खिड़की के उस हिस्से से जहाँ से कौवे का घोंसला दिखता उसे पूरे-पूरे दिन में कई-कई बार देख लेती। वह वैसे ही उसी जगह बैठ मुस्कुराता नजर आता। मीता राकेश के घर आने पर उसे कुछ नहीं कहती। राकेश समझ जाता सबकुछ ठीक है।

धीरे-धीरे कुछ दिन निकल गए। इस बीच मीता ने अपने ड्राइवर भोला को उससे बात करते हुए देखा। इसमें क्या खास है कोई भी इनसान दूसरे से बात तो करेगा ही। चलो यह अच्छा है कि ये आपस में बात करें, जिससे गार्ड का मन लगा रहे। एक दिन मीता ने देखा, दोनों में आपस में बहस हो रही है। भोला सिक्योरिटी गार्ड को खूब डाँट रहा है। मीता ने तुरंत भोला को बुलाया और पूछा, "क्या हुआ?" भोला ने कहा, "है बच्चा पर मुझसे पूछ रहा है यहाँ दारू कहाँ मिलती है।" "क्या?" मीता चौंकी, "वह तुमसे यह सब पूछ रहा था? क्यों? क्या वह पीता है?" "पता नहीं भाभी जी, पर वह बहक रहा है। रात भर जाता है, तो न जाने कैसे लोग के साथ रहता-सोता है। ऐसे लड़के को कभी काम पर नहीं रखना चाहिए।" मीता यह सब सुनकर घबरा गई। राकेश से बोले या नहीं। राकेश इस बार न जाने क्या कर बैठे।

मीता ने राकेश से कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन जब राकेश दफ्तर चला गया वह चुपचाप नीचे सिक्योरिटी गार्ड के करीब गई। उसे बुलाकर पूछा, "आजकल तुम भोला ड्राइवर से क्या बात करते रहते हो?" गार्ड मुँह नीचे किए खड़ा रहा। वह कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर उसी तरह खड़ा रहने के बाद बोला, "भाभी जी, चाचा आपके यहाँ चोरी करता है।" "चाचा? ...कौन? भोला तुम्हारा चाचा है। पर वह तो कह रहा था तुम उससे कुछ उलटी-सीधी बात पूछ रहे थे। क्या उसी ने तुम्हें यहाँ नौकरी पर लगाया है?"

"नहीं, आया तो मैं एजेंसी से हूँ और वह तो झूठ बोलेगा ही, मैंने उसे पकड़ जो लिया है।"

"क्या करते पकड लिया है?"

"वही तेल चुराते। गाड़ी से।"

मीता को मालूम है, भोला तेल चुराता है। राकेश कुछ दिन पहले कह रहा था - सभी ड्राइवर गोलमाल करते हैं। क्या किया जाए, जो कम करे वही ठीक है। भोला दूसरे ड्राइवरों से ठीक है।

गार्ड ने एक बात मीता से और कही कि वह ड्राइवर आजकल मोबाइल लिए हुए है, वह उसे एक जगह पड़ा मिल गया था। मीता को याद आया कुछ दिन पहले ही भोला राकेश को कह रहा था - बाबू आजकल सभी ड्राइवर मोबाइल रखते हैं। मोबाइल जरूरी हो गया है। भाभीजी शॉपिंग करने जाती है। गाड़ी कहाँ से कहाँ पार्क होती है, खोजने में कितनी दिक्कत होती है। फोन होने से सब तरह का आराम रहता है। मैंने एक फोन खरीद लिया है। बस आप पैसे दे दीजिएगा।

मीता को भोला ड्राइवर की यह बात एकदम अच्छी नहीं लगी थी। उसने राकेश से कहा कि यह भी कोई बात हुई अपने आप मोबाइल फोन खरीद लाया और अब उसके आराम गिना रहा है। बोलता है भाभी जी को आराम हो जाएगा। मेरे आराम के बारे में वह सोचेगा? न जाने कितने पैसे का खरीदा है और कितना बता रहा है। पर यह सब बातें इस सिक्योरिटी गार्ड को कैसे मालूम हुईं। लगता है यह सचमुच भोला ड्राइवर का भतीजा है और उसके बारे में बहुत कुछ जानता है। जो भी हो, एक बात समझ में नहीं आई - भोला ड्राइवर अगर उसका चाचा है तो उसे अपने चाचा की बदमाशी छिपानी चाहिए थी और कोई लड़का होता तो चाचा-भतीजा एक हो जाने क्या-क्या गोलमाल करते। यह लड़का वैसा नहीं हिया। सिक्योरिटी गार्ड को देख उसके मन में उसके लिए ममता जागी। मीता ने उससे कहा, "देखो, तुम अपने चाचा से कोई बात मत करना, हम उससे निपट लेंगे।" मीता ने सारी बात राकेश से छिपा ली। रोज-रोज सिक्योरिटी गार्ड और ड्राइवर की बात कर वह राकेश को खिजाना नहीं चाहती थी।

इस घटना के बाद दो दिन निकले, तीसरे दिन मीता ने देखा सुबह-सुबह सिक्योरिटी एजेंसी वाले मुखर्जी आए हैं और उनके साथ है एक नया नौजवान जो नई जगह को अजीब तरह से देख रहा है। उस सिक्योरिटी गार्ड का क्या हुआ। कल तो यहाँ से ठीक-ठाक गया था। अचानक बीमार हो गया? कहीं कोई एक्सीडेंट? घर में तो उसके सबकुछ ठीक है न? मीता यह सब सोच रही थी कि मुखर्जी बोले, "वह काम छोड़कर घर चला गया। उसकी शादी होने वाली है।"

शादी। कल तक तो कोई बात नहीं थी। अचानक! भोला ने भी कुछ नहीं बताया। उसको बुलाकर पूछने से पता चले कि मामला क्या है? पर क्या होगा उसे बुलाकर? यह सारा मामला हो सकता है, उसी का किया धरा हो। मीता का मन कैसा-सा हो गया। वह उस गार्ड की जगह किसी दूसरे सिक्योरिटी गार्ड को देख कमरे में चली गई।

कमरे की खिड़की से बाहर देखा। गार्ड जहाँ बैठता था वह जगह खाली पड़ी थी। फिर उसकी नजर उस हरे-भरे पेड़ पर गई वहाँ घोंसले के बीचोबीच कौवा बैठा था। उसका आधा शरीर घोंसले में धँसा हुआ था आधा बाहर नजर आ रहा था। वह कौवे को देख मुस्कुरा दी। इस कौवे की जिंदगी कैसे बदल गई है तब से जब से इस पेड़ ने उसे शरण दी है। उस गार्ड का जीवन भी शादी करके बदल जाएगा? दक्षिण कोलकाता में नौकरी करके जीवन बदल गया था? तभी राकेश कान में फोन लगाए अपने दोस्त से बात करते हुए कमरे में दाखिल हुआ। वह कह रहा था - क्या यार, तुम भी कहने लगे कि बदल गया हूँ। कहाँ बदल गया हूँ और कैसे?

मीता ने राकेश को बात के बीच में टोका। बोली, "बाहर सिक्योरिटी एजेंसी वाले मुखर्जी बैठे हैं।" अब क्या हुआ? फिर एक नया लड़का? राकेश झुँझला गया। फोन पर बात करना छोड़ गुस्से में बड़बड़ाता कमरे से बाहर निकला - सबकुछ बदल गया, पर यह वाहियात गार्ड का झमेला कभी नहीं बदलेगा।