फाख्ता के अंडे और मैं - बचपन की एक सच्ची घटना : कर्मजीत सिंह गठवाला
Faakhta Ke Ande Aur Main (Hindi Baal Kahani) : Karamjit Singh Gathwala

जब हम छोटे थे, तो हमारे दिलों में दुनिया का सबसे प्यारा और सबसे अनमोल स्थान होता था, हमारा ननिहाल अर्थात नाना-नानी का घर । हमारा ननिहाल पंजाब में नाभा के पास रोहटी मौड़ां गाँव था । मेरे नाना जी सरदार हरमील सिंह साधु स्वभाव के थे, वे बाद में गाँव के मुखिया भी रहे । नाना जी के बगीचे में खिला हुआ हर फूल, हर पेड़, और हर फल और पेड़ों पर चहकते पक्षी हमें किसी खजाने से कम नहीं लगते थे । उनका बगीचा, जिसे हम "वाड़ी" कहते थे, न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ था, बल्कि वहाँ खेलने कूदने और शरारतों में खो जाने के लिए मन सदैव लालायित रहता था।
बगीचे में रहते हुए समय का अहसास ही नहीं होता था। वहाँ तरह-तरह के पेड़-पौधे थे; जिनमें आम, अमरूद, अनार और अंगूर प्रमुख थे, साथ में शिकंजवी और आचार के लिए निम्बू के कई बूटे थे । लेकिन एक पेड़ था, जो मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता था—वो था आम का पेड़। उस पेड़ की शाखाओं में लटके हुए आम मुझे हमेशा अपनी ओर खींचते थे। उस आम के पेड़ के साथ एक घटना जुड़ी हुई है, जिसने मेरी सोच को एक नया मोड़ दिया।
उस आम के पेड़ पर फाख्ता ने अपना घोंसला बनाया हुआ था और उस घोंसले में उसने अंडे दिए थे। मुझे याद है, तब मैं ५-६ साल का था, मैं फाख्ता और उसके अंडों को देर तक देखता रहता । फाख्ता अपने अंडों की बहुत देखभाल कर रहे थे । एक दिन मैंने देखा कि एक कौआ बार-बार अण्डों की तरफ झपटता और फाख्ता उसको भगा देती, मेरे लिए ये हैरान करने वाली बात थी—मुझे लगा कि वह उनको खाना चाहता है ।
यह दृश्य मुझे बहुत दुःखी करता था। आमतौर पर बच्चे अपनी शरारतों में व्यस्त रहते हैं, लेकिन उस दिन मेरी सोच में कुछ खास था। मैंने ठान लिया कि अब मुझे फाख्ता के अंडों की रक्षा करनी होगी। मैंने दृढ निश्चय किया कि मैं उन अंडों को सुरक्षित रखूंगा।
मैंने नाना जी से कहा, "नाना जी, मैं इस बगीचे में बैठूंगा और फाख्ता के अंडों की रक्षा करूंगा।" नाना जी हंसे और बोले, "बिलकुल बेटा, लेकिन तुम अकेले कैसे रहोगे?" मैंने उत्साह से कहा, "मैं वहीं बैठकर देखूंगा और किसी को भी उनके अंडे खाने नहीं दूंगा।"
नाना जी ने मुझे अपना काम करने दिया। मैं रोज बगीचे के कोने में बैठकर फाख्ता के अंडों की निगरानी करता। दिन में खाने-पीने का मेरा सामान पेड़ के नीचे ही पहुँच जाता। कभी-कभी फाख्ता मुझे देख कर डर जाते, लेकिन धीरे-धीरे वह समझने लगे कि मैं उनका दोस्त हूं और उनकी मदद करना चाहता हूं। समय के साथ, फाख्ता मुझे पहचानने लगे और अब वह मुझे देखकर डरते नहीं थे।
लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। बगीचे में दूसरे पक्षी अंडों को खाने के लिए आ जाते थे। मुझे यह देखकर बहुत गुस्सा आता था, लेकिन मैं उनकी ओर बढ़ता और उन्हें भगाने की कोशिश करता। यह मेरे लिए एक जिद्द बन गई थी। मैं वहां बैठा रहता, और अगर कभी कोई पक्षी अंडों के पास आता, तो मैं दौड़कर उन्हें उड़ा देता। मुझे लगता था कि अगर मैंने फाख्ता के अंडों को बचा लिया, तो यह सबसे अच्छा काम होगा।
एक दिन फाख्ता के बच्चे अंडों से बाहर आ गए । मैं बहुत खुश हुआ, क्योंकि मुझे लग रहा था कि यह मेरी कोशिश का परिणाम था। मैंने देखा कि फाख्ता के बच्चे अब पूरी तरह से सुरक्षित थे, और मुझे यह महसूस हुआ कि मैंने कुछ अच्छा किया है।
जब वे बच्चे उड़ने के लिए तैयार हुए, तो उनका उड़ना एक अद्भुत दृश्य था। वे छोटे-छोटे पंख फैलाकर आकाश में उड़ने लगे। उस पल मुझे महसूस हुआ जैसे मैंने दुनिया में कोई महत्वपूर्ण काम किया हो। मुझे समझ में आया कि किसी का भला करना, चाहे वह कितना भी छोटा काम क्यों न हो, कितना संतोषजनक और खुशी देने वाला हो सकता है।
आज भी, जब मैं उस बगीचे के बारे में सोचता हूँ, तो वह छोटी सी कहानी मेरे दिल को बहुत खुशी देती है। मुझे लगता है कि उस समय मैंने जो किया, वह केवल बचपन की एक शरारत नहीं थी, बल्कि एक दायित्व था जिसे मैंने पूरी गंभीरता से निभाया। उस दिन से मैंने यह सीखा कि कोई भी छोटा काम, जब अच्छे उद्देश्य से किया जाता है, तो वह बड़ी खुशी और संतोष का कारण बन सकता है। जब हम किसी की मदद करते हैं—चाहे वह एक पक्षी हो या इंसान—तो हमें सच्ची खुशी मिलती है।