एक रोगी का वृतान्त (रूसी कहानी) : आंतोन चेखव

Ek Rogi Ka Vritaant (Russian Story) : Anton Chekhov

एक प्रोफेसर को ल्यालिकफ़ कारख़ाने से फ़ौरन आने के लिए एक तार मिला। उस मुड़े-तुड़े तार के बिखरे अक्षरों से उसने सिर्फ इतने ही मायने निकाले कि कारखाने की मालकिन मिसेज ल्यालिकोवा की बेटी बीमार है।

प्रोफेसर खुद नहीं गए और अपने बदले उन्होंने अपने हाउस सर्जन कराल्योफ़ को भेज दिया.हाउस सर्जन को दो स्टेशन रेलगाड़ी से और बाकी तीन मील सड़क के रास्ते से जाना था.उसे स्टेशन से लाने के लिए तीन घोड़ोंवाली गाड़ी भेजी गयी थी जिसका कोचवान एक फ़ौजी की तरह हर सवाल पर “एस सर और “नो सर ” के साथ चीखकर जवाब देता था.जब कोरोल्योव घोड़ागाड़ी से जा रहा था,कारखाने से लेकर स्टेशन तक सडक के किनारे पर खड़े कामगार उन घोड़ों को देखकर झुक जाते थे.उस शाम अपने दोनों तरफ के ज़मीन-जायदाद और बंगले,सनोबर के दरख्तों और चारों और फ़ैली ख़ामोशी के जादू में वह गिरफ्तार था जबकि ऐसा लग रहा था कि उस शनिवार की शाम जमीन-जंगल और सूरज उन कारखाने के कामगारों की छुट्टी में शामिल होने जा रहे थे और यही नहीं.शायद उनके साथ प्रार्थना भी करने जा रहे थे.

कराल्योफ़ मास्को में पैदा हुआ था.वहीं बड़ा हुआ था.गाँव की ज़िन्दगी उसके लिए अजनबी थी.उसकी दिलचस्पी कभी कारखाने में नहीं थी.यहाँ तक कि वह वहां कभी गया भी नहीं था.लेकिन उसके बारे में पढ़ चुका था.कारखाना मालिकों ने उसे कई बार बुलाया था जहाँ उनसे बात करने का मौका मिला था.चाहे दूर से हो या करीब से वह कारखानों के बारे में हमेशा सोचता था कि वैसे बाहर से वहां सब कुछ अमन-चैन भरा लगता है लेकिन इनकी दीवारों के भीतर वहाँ पक्के तौर से और कुछ नहीं,मालिकों का अँधा अहंकार होता है.वे पूरी तरह से अज्ञानी होते हैं,उबाऊ होते हैं.सेहत खराब करने वाले जितने काम होते हैं,वे वहां के बंधुआ कामगार करते हैं.वहां गंदगी,वोदका और कीड़े-मकोड़े होते हैं.और अब जब ये कामगार उसकी घोड़ेगाड़ी के लिए आदर और विनम्रता से रास्ता दे रहे थे,तो उसे उन कामगारों के चेहरों पर गंदगी,शराब की खुमारी,बैचनी और घबराहट के पक्के निशान दिख रहे थे जो माथे पर उनकी झुकी हुई टोपियों और उनके चाल से पता चल रही थी.

कारखाने गेट से उनकी घोड़ागाड़ी दाखिल हुई.दोनों तरफ कामगारों की झोपड़ियों,कपड़े पचीछटती औरतों के चेहरों और आगे की सीढियों पर बिछे कंबलों पर उसकी उड़ती हुई नजर पड़ी.जब घोड़ों की लगाम को कोचवान पूरे जोर से छोड़ देता तो चिल्लाता ,”बचो”.वे एक खुले चौरस्ते पर पहुंचे जहाँ घास नहीं थी.यहाँ चिमनी के साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर चिमनीवाले पांच बड़े-बड़े कारखाने मौजूद थे,गोदाम थे और लकड़ी से बनी झोपड़ियाँ थीं.हर चीज़ पर एक अज़ीब किस्म की मटमैली परत छाई हुई थी जो धूल भी हो सकती थी.छोटी-छोटी दयनीय फुलवारियां और प्रबंधकों के हरे-लाल छतवाले मकान रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह इधर-उधर छितरे हुए थे.कोचवान ने एकाएक रास खींची और घोड़ागाड़ी एक मकान के बाहर रुक गयी जिसकी पुताई हाल में धूसर रंग से हुई लगती थी.वहां बाहर एक छोटा सा बगीचा भी था जिसमें धूल से अटा एक बकाइन का पेड़ भी था.यही नहीं,पीले पोर्च से नये पेंट की तीखी गंध आ रही थी.

“इस तरफ़ से आइए डॉक्टर साहब” दाखिल दरवाज़े पर कुछ महिला आवाजें आईं जिनके साथ कुछ ठंडी आहें और कनबतियां सुनाई दे रही थीं.” आ जाइए ! इंतज़ार करते-करते हम थक चुके हैं.यह बड़े सदमे की बात है.जी इधर आइये !”

मिसेज ल्यालिकोव गोलमटोल उम्रदराज़ महिला थीं.वह हालांकि आधुनिक फैशन का बांहवाला काला रेशमी लिबास पहने हुए थीं लेकिन उनका चेहरा बताता था कि वह सीधी-सादी एक अनपढ़ औरत थीं.उन्होंने डॉक्टर पर उत्सुकता से नजर डाली और अपना हाथ उनसे मिलाने के लिए अपने को तैयार नहीं कर सकीं या यूँ कहिए कि वह साहस नहीं कर सकीं.एक दुबली पतली,मझौली उम्र की औरत उनके बगल में खड़ी थी जिसके छोटे-छोटे कटे बाल थे,नाक पर चश्मा टिका था और चमकीले फूलोंवाला ब्लाउज पहने हुए थी.नौकर-चाकर उसे क्रिस्टीना कहकर पुकार रहे थे.कोरोल्योय ने अंदाजा लगाया कि वह गवर्नेस होगी.वह इस घर में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी थी और यही शायद कारण था कि जरा सा भी समय बर्बाद किये बिना सही तरीके से डॉक्टर के अगवानी की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी गयी थी.बिना यह बताये कि कौन बीमार है और उसे क्या तकलीफ़ है,उसने थकानेवाले छोटी-छोटी जानकारियों के साथ बीमारी की वजहों का एक बारीक लेखाजोखा उसके सामने पेश कर दिया.

डॉक्टर और गवर्नेस बैठकर बात कर रहे थे जबकि घर की मालकिन एक इंच हिले-डुले बिना दरवाज़े के पास खड़ी इंतज़ार कर रही थी.बातचीत से कोरोल्योव को पता चला कि इक्कीस साल की लड़की लीज़ा बीमार है.वह मिसेज ल्यालिकोव की एकलौती बेटी है और इस जायदाद की उत्तराधिकारी है.वह लंबे समय से बीमार है.कई डॉक्टर उसका इलाज़ कर चुके हैं.पिछली पूरी रात उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि घर में कोई सो नहीं पाया था और हर कोई उसकी ज़िन्दगी को लेकर डरा हुआ था.

“वह छुटपन से ही बीमारू बच्ची रही है” मिस क्रिस्टीना ने अपने होंठ थोड़े-थोड़े वक्त पर अपने हाथों से पोंछते हुए सुरीली आवाज़ में डॉक्टर से कहा.फिर बात आगे बढ़ाई,”यह नाड़ियों का मामला है,जब वह छोटी थी,गण्डमाला की शिकार हो गयी थी.हो सकता है कि बीमारी की यही वज़ह हो.”

कराल्योफ़ ने मरीज़ पर एक नज़र डाली.वह एक भरी-पूरी,लंबी,काफ़ी बड़ी लड़की थी.लेकिन अपनी माँ की ही तरह बदसूरत थी.उसी की तरह छोटी-छोटी आँखें थीं.उसी की तरह उसका निचला जबड़ा बड़ा और फैला हुआ था.उसके बाल काढ़े हुए नहीं थे.कम्बल ठोढी तक खींचा हुआ था.कोरोल्योव को उस लड़की को देखकर सीधे यह ख्याल आया कि वह एक दयनीय और नाखुश प्राणी है और चूंकि वे सब उस पर दया करते हैं,इसलिए उसे ठण्ड से बचाने के लिए भलीभाँति कम्बल ओढ़ाया गया है.उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह लड़की पांच बड़े कारखानों की उत्तराधिकारी है.

“मैं आपका कुछ इलाज़ करने आया हूँ.आप कैसी हैं?” डॉक्टर ने बातों का सिलसिला शुरू किया.उसने अपना परिचय दिया और उसके बड़े,ठंडे और बदसूरत हाथ मिलाकर उसने हिलाया.वह उठकर बैठ गयी और उसको अपनी पूरी कहानी सुनायी.ज़ाहिर है कि उसे डॉक्टरों की आदत पड़ी हुई थी और वह अपने खुले हुए कंधे-छाती को लेकर बेपरवाह थी.

“मेरी धड़कन बढ़ी हुई है.मैं पूरी रात अपनी ज़िन्दगी को लेकर डरी रही.हालत इतनी खराब थी कि मैं मर ही जाती.कोई दवा मुझे दीजिए”उसने कहा.

हाँ ज़रूर दूंगा,ज़रूर,अब शांत हो जाओ”

कराल्योफ़ ने उसकी जांच की और नकारने की मुद्रा में अपने कंधे उचकाये.”आपका दिल पूरी तरह से दुरुस्त है.उसमें कोई गड़बड़ी नहीं है.आपकी नाड़ियाँ बहुत अच्छी तरह नहीं चल रही हैं.लेकिन सामान्य हैं.मुझे नहीं लगता कि अब आपकी और धड़कन बढ़ेगी.नींद लाने की कोशिश कीजिये और सो जाइए.”

तभी एक लैंप लाया गया.रोशनी से लड़की ने अपनी आँखें मिचमिचाकर बंद कर ली.अपना सिर पकड़कर बैठ गयी और फूट-फूट कर सुबकने लगी.बेचारी और बदसूरत वाली उसकी पहली छवि सहसा कोरोल्योव के सामने से गायब हो गयी और अब उसे न तो उसकी छोटी-छोटी आँखें दिख रही थीं और न ही गैरमामूली बड़ा जबड़ा बल्कि उसके चेहरे पर एक शरीफ़ाना अक्स दिख रहा था जो बहुत समझदारी भरा और दिल को छूने वाला लग रहा था. अब वह सभी स्त्रियोचित,गरिमापूर्णऔर स्वाभाविक गुणों की खान लग रही थी और वह उसे अब सोने वाली दवाइयां अथवा बीमारी से जुड़ी सलाह देना नहीं चाहता था बल्कि उसकी ज़गह कुछ मामूली और मरहमभरे लफ्ज़ कहना चाहता था.उसकी माँ ने उसका सिर पकड़ लिया और उसे हौले-हौले दबाने लगी.उफ़ ! उस बूढ़ी औरत के चेहरे पर कितनी गहरी निराशा छाई हुई थी ! एक सच्ची माँ की तरह उसने अपनी बेटी को पाला-पोसा,बड़ा किया,खर्च की परवाह किये बिना अपनी पूरी ज़िन्दगी उसके लिए सर्फ़ कर दी ताकि वह फ्रेंच भाषा,नृत्य और संगीत सीख सके.उसके लिए दर्ज़न भर ट्यूटर,डॉक्टर रखे,एक गवर्नेस रखी.अब वह उसके उन सभी आंसुओं और उन सभी तकलीफ़ों की वज़ह समझ नहीं पा रही थी.नतीजा था कि वह बुरी तरह चकरायी हुई थी.उसके चेहरे पर अपराधबोध,चिंता,निराशा छायी हुई थी मानो उसने कुछ ऐसी चीज़ की अनदेखी की है,कुछ चीज़ों को जाने दिया है,जो बहुत महत्त्वपूर्ण था.कुछ ऐसे लोगों को बुलाना भूल गयी थी लेकिन कौन से लोग,यह भी एक रहस्य है.

“लिज़नका! अब क्या हुआ ! मेरी छोटी गुड़िया! मुझे बताओ,क्या परेशानी है? मेहरबानी करके कुछ तो बताओ” उसने अपने बेटी को सहलाते हुए कहा.

दोनों बुरी तरह रोने लगे.कोरोल्योव बिस्तर के किनारे बैठ गया और लीज़ा का हाथ थाम लिया.”अब बहुत हो चुका.इस रोने का अब कोई मतलब है?यकीन करो इन आंसुओं की कीमत के बराबर संसार में कोई चीज़ नहीं हो सकती,अब आप रोना बंद करने जा रहे हैं.रोने की कोई जरूरत नहीं है ”उसने स्नेह भरी आवाज़ में कहा. फिर उसके मन में ख्याल आया,”अगर यह शादीशुदा होती”

“कारखाने के डॉक्टर ने इन्हें थोड़ी ब्रोमाइड दी है लेकिन उससे इनकी हालत और खराब हो गयी है.मेरा ख्याल से दिल में कुछ गड़बड़ है तो कुछ बूंदे दी जा सकती हैं.मैं उसका नाम भूल रही हूँ. मेरे ख्याल से घाटी की कुमुदनी सा कुछ नाम था “ गवर्नेस ने कहा.

फिर एक बार उसके ब्यौरों की बाढ़ आ गई. वह गवर्नेस डॉक्टर की बातों में दख़ल देती रही.उन्हें एक भी लफ्ज़ सुनने का मौका नहीं देती और उसकी यह कोशिश उसके चेहरे पर दिख रही थी.ऐसा लग रहा था कि उसने मान लिया था कि वह इस घर में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी औरत है और यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह डॉक्टर से लगातार बात करती रहे.ज़ाहिर है बातचीत केवल इलाज़ के बारे में.

कराल्योफ़ को ऊब होने लगी था.

कमरा छोड़ने के बाद उसने उसकी माँ से कहा,” अगर कारखाने का डॉक्टर आपकी बेटी का इलाज़ कर रहे है तो मुझे कोई वज़ह नहीं दिखती कि उन्हें रोका जाय.अब तक उनका इलाज़ सही रहा है और मुझे डॉक्टर बदलने की जरूरत नहीं लगती.दरअसल बीमारी बहुत मामूली है,जरा भी गंभीर नहीं है.”

अपने दस्ताने पहनने के दौरान उसके बोलने में कोई हड़बड़ी नहीं थी.लेकिन मिसेज ल्यालिकोव पत्थर सी खडी रहकर आंसू भरी आँखों से उसकी ओर ताकती रहीं.

दस बजे वाली रेलगाड़ी आधे घटे बाद यहाँ से चलेगी और मैं नहीं चाहता हूँ कि वह गाड़ी छूटे” कराल्योफ़ ने कहा.

“ लेकिन क्या आप रात में रुक नहीं सकते?मुझे इस तरह चिंता जताते हुए शर्म आ रही है लेकिन ईश्वर के लिए मुझ पर मेहरबानी कीजिये,”दरवाज़े के चारों ओर नज़र फिराते हुए वह फुसफुसाकर बोली.”मेहरबानी करके रात में यहाँ रुक जाइये.मेरे लिए बस यही है मेरी इकलौती बेटी.बीती रात उसने मुझे बेहद डराया.मैं अब तक उससे नहीं उबर पायी हूँ “ मिसेज ल्यालिकोव ने आगे जोड़ा.

कराल्योफ़ कहना चाहता था कि मास्को में उसे बहुत काम करने हैं,उसका परिवार उसका इंतज़ार कर रहा है.एक पूरी शाम और रात एक अजनबी घर में बिताने के ख्याल से ही उसे हताशा महसूस होने लगी जबकि ऐसी कोई ज़रूरत भी नहीं थी.लेकिन उसने उसके चेहरे की तरफ देखा,ठंडी सांस ली और खामोशी से अपने दस्ताने उतारने लगा.

हॉल और बैठक में उसके लिए सभी लैम्प जला दिये गये.उसने ग्रैंड पियानो पर बैठकर संगीत के कुछ पन्ने उलटे-पलटे.दीवारों पर टंगी तस्वीरों पर नज़र डाली.मढ़े हुए फ्रेमों में तैलचित्र के विषय थे: क्रेमीयाई भू सैरे,समुद्र में तूफ़ान के बीच एक छोटा जहाज़,मदिरा का गिलास हाथ में लिए हुए एक कैथोलिक सन्यासी.ये सभी चित्र फ़ीके,विषयबहुल और कच्चे लग रहे थे.शबीहों में एक भी सजीला दिलचस्प चेहरा नहीं था.सबके गालों की हड्डियां फ़ैली हुईं थीं और आँखें चौंधियायी हुई थीं. मिस्टर ल्यालिकोव (लीज़ा के पिता)का माथा छोटा था,चेहरे पर दंभ था,उसके बेडौल शरीर पर बोरे की तरह वर्दी लग रही थी.अपनी छाती पर लगे रेड क्रॉस के निशान को वह दिखा रहा था.घर में तहजीब के जो कुछ निशान थे,वे ख्यालों की गरीबी को दर्शा रहे थे.यह उसी तरह असुविधाजनक था जिस तरह वह वर्दी थी.वहां वैसे विलासिता का स्पर्श शुद्ध रूप से संयोग था.फर्श पर भद्दी सी चमक थी (उसी तरह झाड-फानूश में कुछ खिजाने वाली बात थी.)किन्हीं वजहों से यह मुझे उस व्यापारी की कहानी की याद दिला रहा था जो नहाते समय अपने गले में मैडल पहने रहता था.

हॉल से फुसफुसाहट आ रही थी और उसे कुछ हलके खर्राटे सुनाये दे रहे थे.सहसा बाहर तीखी एकाएक एक धातुई आवाज़ हुई.ऐसी आवाज़ कोरोल्योव ने पहले कभी नहीं सुनी थी और इसे सुनकर वह परेशान हो गया.इससे उसके भीतर एक अप्रिय भावना जग गयी और दुबारा संगीत की किताब के सफे पलटते हुए उसने सोचा,” मेरा ख्याल है कि मैं यहाँ नहीं रह सकता-किसी भी कीमत पर भी नहीं.”

“डॉक्टर साहब मेहरबानी करके यहाँ आइये ! और कुछ खा लीजिये “गवर्नेस ने दबी आवाज़ में उसे पुकारा. वह खाने के लिए आया.एक बड़ी मेज़ खाने की लज़ीज़ चीजों और मदिराओं से सजी हुई थी लेकिन उस पर खाने के लिए दो लोग ही बैठे.वह और मिस क्रिस्टीना.मिस क्रिस्टीना ने मदिरापान किया.जल्दी-जल्दी खाना खाया,आपनी नाक पर टिके चश्मे से झांकते हुए कहा,”कामगार बहुत खुश रहते हैं.कारखाने में हर जाड़ों के दिनों में शौकिया नाटक होते हैं.इसमें कामगार खुद हिस्सा लेते हैं.जादुई लालटेन स्लाइड के साथ व्याख्यान होते हैं.उम्दा कैंटीन है और भी बहुत कुछ है.वे पूरी तरह से हमारे लिए समर्पित हैं.जब उन्होंने सुना कि लीजा की हालत ख़राब होती जा रही है,उन्होंने उसके लिए प्रार्थना की.वे पढ़े-लिखे भले न हो लेकिन उनकी भी अपनी भावनाएं हैं. “मुझे लगता है कि इस घर में कोई मर्द नहीं है.”कराल्योफ़ ने कहा.

“एक भी नहीं.मिस्टर ल्यालिकोव अठारह महीने पहले गुज़र गये और अब हम केवल तीन महिलाएं यहाँ हैं.हम गर्मियां यहां बिताते हैं लेकिन जाड़ों के दौरान मास्को के पोल्यंका में रहते हैं.मैं ग्यारह साल से इनके साथ हूँ.एक तरह से इस परिवार का हिस्सा हूँ.”

उन्होंने स्टर्जन मछली,तला चिकन और स्टू किये गये फल खाये.फ्रांससी महंगी शराब भी थी.

“ डॉक्टर साहब ! तकल्लुफ़ मत करिये.अच्छे से खाइये”मिस क्रिस्टीना ने खाने के बाद अपनी बांहों से मुंह पोंछते हुए कहा.साफ़ लग रहा था कि वह इस घर में अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं.

खाना खाने के बाद डॉक्टर को एक कमरे में ले जाया गया जहाँ उनके लिए एक बिस्तर लगा हुआ था.लेकिन उनका सोने का मन नहीं कर रहा था क्योंकि उस कमरे में घुटन थी और उसमें पेंट की गंध भरी हुई थी.उसने अपना ओवरकोट पहना और बाहर निकल गया.

बाहर मौसम ठंडा था.पौ फटनेवाली थी.ऊँची चिमनियों वाले पाँचों कारखानों के सभी ब्लॉक, झोपड़ियाँ,गोदाम गीली हवा में साफ़ खड़े हुए दिख रहे थे.छुट्टी का दिन था लिहाज़ा कोई काम नहीं कर रहा था.एक ब्लॉक को छोड़कर सभी खिड़कियों पर अँधेरा था,जहाँ एक स्टोव जल रहा था जिससे खिड़कियां गहरे लाल रंग की दिख रही थीं.कभी-कभार चिमनियों से लपटें निकल रही थीं.धुंआ भी निकल रहा था.कारखाने के अहाते से दूर मेढ़क टर्र-टर्र कर रहे थे और एक कोयल कुहुक रही थी.

जब उसने कारखाने को ब्लाकों और उन झोपड़ियों को देखा जहाँ कामगार सोते थे,उसके मन में वैसे ही ख्याल आने लगे जैसे उसे तब आते थे जब वह कारखानों को देखता था.हालांकि यहाँ कामगारों की ज़िन्दगी के स्तर को बेहतर बनाने के लिए लालटेन स्लाइड शो,कारखाने के लिए डॉक्टर और तमाम सुविधाएँ थीं लेकिन वे वही कामगार थे जिनसे स्टेशन से आने वाले रास्ते में आज पहले मिल चुका था और वे उन लोगों से जरा भी अलग नहीं थे जिन्हें अपने बचपन से वह लम्बे समय से जानता था जब कारखाने की हालत को बेहतर बनाने के लिए न कोई शो होते थे और न ही बेहतरी के उपाय किये जाते थे.एक ऐसे डॉक्टर की तरह जो ठीक न होनेवाली उस गंभीर बीमारी की सही पहचान कर लेता है जिसका कारण उसे पता नहीं होता.उसने कारखाने को उसी तरह की पहेली की तरह देखा,उसी तरह अस्पष्ट और उसी तरह समझा पाना मुश्किल.दरअसल वह यह नहीं सोचता था कि ऐसे सुधार गैरजरूरी हैं बल्कि यह सोचता था कि यह कुछ वैसा ही है जैसे किसी न ठीक होने वाली बीमारी का इलाज़ करना है.

लाल रंग की खिड़कियों पर एक नज़र डालते हुए उसने सोचा,” हाँ इन सबका कोई मतलब नहीं है.पंद्रह सौ या दो हज़ार कामगारों को बिना छुट्टी दिए बीमारू हालातों में घटिया सूती प्रिंट के उत्पादन के लिए गुलाम बना कर आधे पेट भूखा रखा जाय जिन्हें कभी-कभार दु:स्वप्न से राहत देने के लिए शराबखाने में शरण मिलती हो.सैकड़ों लोग उनके काम की निगरानी करते हैं और इन सैकड़ों सुपरवाइजरों की ज़िन्दगी रिकॉर्ड बहियों में कामगारों पर किये गये जुर्माना को इन्दराज करने,उनको गालियाँ बकने और उनके साथ नाइंसाफी करने में बर्बाद हो जाती है,उनमें दो या तीन तथाकथित बॉस मुनाफ़े का मज़ा उठाते हैं जबकि वे खुद कोई काम नहीं करते हैं और सस्ते सूती कपड़ों के लिए उनके मन में और कुछ नहीं,बस हिकारत होती है.लेकिन सही मायनों में यह मुनाफ़ा क्या है और वे इसका इस्तेमाल किस तरह करते हैं ? मिसेज ल्यालिकोव और उनकी बेटी दुखी हैं और उनको इस हालत में देखकर दुःख होता है.केवल कमबख्त बूढ़ी नौकरानी मिस क्रिस्टीना नाक पर ऐनक टिकाये ज़िन्दगी के मज़े ले रही है.मैं इसे इस तरह देखता हूँ कि पूर्वी बाज़ार में सस्ती सूती प्रिंट की बिक्री के लिए ये पाँचों कारखाने चल रहे हैं ताकि मिस क्रिस्टीना को शराब और मछली मिलती रहे.

अचानक उसे एक ख़ास किस्म का शोरगुल सुनायी दिया जैसे खाने के पहले सुनायी दिया था.कुछ ही दूर पर किसी एक ब्लॉक में धातु से बनी थाली को कोई बजा रहा था और उस आवाज़ के तुरंत बाद घुटी-घुटी आवाजें आ रही थीं.फिर तीखी अस्पष्ट आवाज़ के साथ एक छोटी सी चुप्पी छा गयी.लगभग आधे मिनट की चुप्पी के बाद पास में किसी दूसरे ब्लॉक से एकाएक नागवार आवाजें आने लगीं जिनके कमतर शोर में गहरी गूँज थी.उसने ग्यारह बार घडियाल बजाया था -जाहिर था कि यह रात का पहरेदार था जो समय बताने के लिए उसे बजा रहा था. फिर तीसरे ब्लाक के पास से धातुई आवाज़ सुनायी दी.फिर बाकी ब्लॉकों से.फिर झोपड़ियों के चारों ओर से और गेट से परे से ऐसी आवाज़ सुनायी दी.ऐसा लग रहा था कि कोई राक्षस या खुद शैतान रात की ख़ामोशी में यह हुडदंग मचा रहा है.

कराल्योफ़ खुले मैदान में चला आया.

गेट पर किसी ने चुनौती भरी आवाज़ में पूछा,” वहां कौन है”

“यह एक कैद की तरह है”कराल्योफ़ ने सोचा और उसको कोई जवाब नहीं दिया.

कराल्योफ़ अब कोयल और मेढ़क की आवाज़ों को और साफ़ सुन रहा था.उसे यह मालूम था कि मई की रात का आलम चारों तरफ है.स्टेशन से ट्रेन की आवाज़ आ रही थी.कहीं-कहीं अलसाये मुर्गे बांग दे रहे थे.वैसे बाक़ी जगहों पर ख़ामोशी थी.दुनिया चैन से सो रही थी.कारखानों से ज्यादा दूर नहीं,एक खुले मैदान में लकड़ी और इमारती सामान का ढेर लगा हुआ था.

कराल्योफ़ एक पटरे पर बैठ गया और उसके ख्यालों की गाड़ी जारी रही केवल गवर्नेस इस जगह पर खुश है- और कारखाना उसके आनन्द के लिए काम कर रहा है.लेकिन ऐसा लगता है कि उसका यह कोई महत्त्व नहीं है.सबसे अहम बात यह है जिसके लिए सब काम कर रहे हैं,वह शैतान है.”उसने शैतान के बारे में सोचा जिसके वजूद के बारे में उसे पता नहीं था.उसने फिर उन दो खिड़कियों को ताका जहाँ रोशनी जल रही थी.ऐसा लग रहा था कि वहां शैतान की दो लाल लाल आँखें हैं जो उसे घूर रही हैं.एक ऐसी रहस्यमय ताकत जो कमजोर के साथ ताकतवर के किये गये व्यवहार का जिम्मेदार हो,उस गंभीर ग़लती के लिए जिसे ठीक किया जाना नामुमकिन हो.यह कुदरत का नियम है कि ताकतवर कमज़ोर को सताये लेकिन यह सिर्फ अखबार के लेखों और स्कूली किताबों में आसानी से समझ में आता है.उस अव्यवस्था में जहाँ रोजाना की ज़िन्दगी गढ़ी हुई लगती है.उस मामूली जीवन की अस्तव्यस्तता में जिनसे इंसान की बीच जटिल रिश्ते बनते हैं.हालांकि यह कोई क़ानून नहीं था बल्कि एक तार्किक असंगति है जब ताकतवर और कमजोर दोनों एक दूसरे के बीच के अपने रिश्तों के शिकार बनते हैं और मनुष्य से पराये,आम ज़िन्दगी से परे खड़े किसी रहस्यमय ताक़त के प्रति आत्मसमर्पण के लिए दोनों मजबूर होते हैं.लकड़ी के पटरे पर बैठे-बैठे कोरोल्योव के मन में ऐसे ख्याल आये और धीरे-धीरे वह इस अनुभूति से उबर गया कि वह अज्ञात रहस्यमयी ताकत वास्तव में उसके बेहद करीब है और उस पर नज़र रखे हुए है.

इस दरम्यान पूरब में आसमान कुछ पीला होता गया और वक्त कुछ जल्दी-जल्दी गुजर गया.धूसर भोर की छाया में कारखाने के पाँचों ब्लॉक और उनकी चिमनियाँ दिख रही थीं जहाँ एक भी आदमी दिखाई नहीं दे रहा था गोया सब कुछ खत्म हो गया हो.एक ऐसा नज़ारा जो दिन से बिलकुल अलग था.वह पूरी तरह से भूल गया कि इन ब्लॉकों के भीतर भाप के इंजन हैं,बिजली और टेलीफोन है लेकिन कुछ अजीब वजहों से वह वहां जमा इमारती सामानों और लौह युग के बारे में ही केवल सोचता रहा और उसे यह महसूस हुआ कि कोई बेहूदी बेदिमाग ताकत घात लगाए करीब बैठी है.

उसे घड़ियाल बजने की आवाज़ फिर से सुनायी दी.

इस बार बारह बार घंटे बजे थे.फिर यह आधे मिनट के लिए बंद हो गया.और कारखाने के अहाते के आख़िरी सिरे पर फिर शुरू हुआ लेकिन इस बार आवाज़ ज्यादा गहरी थी.

“कितना बुरा है” कराल्योफ़ ने सोचा.

फिर तीसरी जगह से टूटी बिखरी थपथापने की आवाज़ आयी जो तीखी और एकाएक थी और उसमें कोई भी नाराजगी को सुन सकता था.

बारह बजाने के लिए पहरेदार ने चार मिनट लिये.फिर सन्नाटा छा गया और उसे वही अनुभूति हुई जैसे सब कुछ मर गया हो.

कराल्योफ़ कुछ मिनट वहां और बैठा और फिर घर लौट आया.लेकिन वह बहुत देर बाद बिस्तर पर सोने गया.कमरे के दोनों तरफ उसे कानाफूसी,फर्श पर चप्पलों और नंगे पैर घिसटने की आवाज़ सुनायी दे रही थी.

“ पक्के तौर पर उसे दूसरी बार दौरा नहीं पड़ा है.”कराल्योफ़ ने सोचा.

उसने अपना कमरा छोड़ा और उस बीमार लड़की को देखने चला गया.कमरा चमकीली धूप से पहले ही भरा हुआ था और सुबह की धुंध से छनकर आती हुई सूरज की कमज़ोर किरणें हॉल की दीवारों पर खेल खेल रहीं थीं.लीज़ा के बेडरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था.एक शाल की तरह हाउस कोट को अपने चारों तरफ लपेटे हुए और बिखरे बालों के साथ अपने बिस्तर के करीब आराम कुर्सी पर बैठी हुई थी.परदे खींचे हुए थे.

“आपको कैसा लग रहा है” कराल्योफ़ ने पूछा

“अच्छी हूँ ! शुक्रिया “

डॉक्टर ने उसकी नाड़ी देखी और उसके माथे पर गिरे हुए बालों को ठीक करते हुए पीछे कर दिया.

“ तो आप सो नहीं रही हैं.बाहर खुशगवार मौसम है.बसंत आ गया है.कोयल कूक रही हैं और आप हैं कि यहाँ अन्धेरे में ख्यालों में खोयी हुई हैं.” उसने कहा.

लड़की ने सुना और उसके चेहरे पर अपनी सीधी नज़र से टिका दी.लड़की की आँखें उदास और सजग थी और साफतौर से लग रहा था कि वह कुछ कहना चाहती थी.

“ क्या यह अक्सर होता है” डॉक्टर ने पूछा.

“ हाँ ! लगभग हर रात बुरा महसूस होता है”

ठीक इसी समय पहरेदार ने दो का घंटा बजाया.उस तीखी धातुई टनटनाहट से वह काँप गई.

“क्या आपको इस आवाज़ से परेशानी होती है ?”

“मैं पक्के तौर से नहीं कह सकती.यहाँ मुझे हर चीज़ परेशान करती है.” उसने जवाब दिया और ख्यालों में डूबी हुई बोली,”हर चीज़ परेशान करती है.मैं आपकी आवाज़ को सुनकर कह सकती हूँ कि आप मुझे लेकर चिंतित हो और जिस पल मैंने आपको देखा.मुझे लग गया था कि मैं आप सरीखे किसी से अपने मन की बात कह सकती हूँ -हर चीज़ कह सकती हूँ.

“ फिर तो आप जरूर कहिए “

मैं आपसे वह सब कहना चाहती हूँ जो सोचती हूँ.ऐसा लगता है मैं बीमार नहीं हूँ.इस वज़ह से मैं चिंतित हूँ और डरी हुई हूँ.खासतौर से इसलिए कि चीज़ें शायद बदल नहीं सकतीं.सेहतमंद आदमी भी चिंता करने से बच नहीं सकता- जबकि आपकी खिड़की के नीचे बीमारी सेंधमार की तरह घात लगाये बैठी है.”उसने फ़ीकी मुस्कान के साथ अपने टखनों को देखा और अपनी बात जारी रखी,”मेरा इलाज़ हमेशा होता रहा है और मैं इसके लिए शुक्रगुजार भी हूँ.मैं यह भी नहीं कहूंगी कि यह सब बेकार है.दरअसल मैं डॉक्टरों से बात नहीं करना चाहती बल्कि उनसे करना चाहती हूँ जो मेरे करीब हैं -मेरे दोस्त जो मुझे समझ सकें और मुझे यकीन दिला सके कि मैं सही हूँ या ग़लत.”

“क्या तुम्हारे कोई दोस्त नहीं हैं “कराल्योफ़ ने पूछा.

“ सब कुछ मैं ही हूँ.मेरी माँ हैं और मैं उन्हें प्यार करती हूँ लेकिन फिर भी मैं अकेली हूँ.इस तरह मेरी ज़िन्दगी बन गयी है ....अकेले लोग बहुत पढ़ते हैं लेकिन वे ज़्यादा कुछ नहीं कहते और सुनते नहीं.ज़िन्दगी इनके लिए रहस्य होती है.ऐसे लोग रहस्यवादी होते हैं और अक्सर उन्हें शैतान दिखाई देते हैं.लेर्मोंतोवा कथा की तमारा अकेली थी और उसे शैतान दिखायी देते थे.”

“क्या आप बहुत पढ़ती हैं ? “

“हाँ बहुत ! आप देख ही सकते हैं कि सुबह से लेकर शाम तक मेरे पास अपना निजी समय है.दिन में मैं पढ़ती हूँ लेकिन रात के समय मेरा सिर खाली हो जाता है और विचारों की ज़गह पर काले साए दिखते हैं.”

“ क्या रात में आपको चीज़ें दिखायी देती हैं ?”कराल्योफ़ ने पूछा.

“ नहीं,लेकिन मैं महसूस कर सकती हूँ”

वह लड़की डॉक्टर को देखकर फिर मुस्करायी और उसने एक उदास परिचित नजर से उन्हें देखा.डॉक्टर को लगा कि वह लड़की उसमें भरोसा करती है और वह दिल से दिल की बात करना चाहती है और वह उसी तरह सोचती है जैसा कि वह सोचता है.लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और शायद वह लड़की भी डॉक्टर के बोलने का इंतज़ार कर रही थी.

डॉक्टर जानता था कि उसे उस लड़की से क्या कहना है.डॉक्टर के मन में जरा भी शक नहीं था कि उस लड़की को जल्दी से जल्दी अपनी पाँचों कारखानों और लाखों रूबलों को यह सोचकर तज देना चाहिए कि उनके पास बहुत धन है.उस शैतान को जो रात में उस पर नजर रखता है.जाहिर था कि वह लड़की भी उसी तरह सोच रही थी और वह भी उस आदमी का इंतज़ार कर रही थी जिस पर भरोसा करके इस बात की तस्दीक कर सके.

लेकिन डॉक्टर नही जानता था कि इसे लफ्ज़ों में किस तरह बयान कर सके.वह इसे कैसे कह सकता है ? सज़ायाफ्ता आदमी से कोई उसकी सजा का कारण पूछना नहीं चाहता.और इसी तरह अमीर आदमियों से यह सवाल पूछना अटपटा लगता है कि वे इतने अमीर क्यों हैं और अपने धन का इतना ख़राब इस्तेमाल क्यों करते हैं,वे इसे क्यों नहीं छोड़ देते हैं जबकि वे जानते हैं कि उनके दुःख की वज़ह यही है.इस मुद्दे पर कोई चर्चा आमतौर से निषेधी,शर्मिंदगी भरी और ज़रूरत से ज्यादा लंबी खिंच जाती थी.

“मैं उससे यह कैसे कह सकता हूँ” कराल्योफ़ संदेह से घिरा था ,”क्या मुझे कहना चाहिए.”

और डॉक्टर ने उससे वह कहा जो वह कहना चाहता था -सीधे सीधे नहीं,कुछ घुमा फिराकर उसे कहा.

“कारखाने की मालकिन और अपार सम्पत्ति की उत्तराधिकारी होते हुए भी आप खुश नहीं हैं.आप अपने हकों में यकीन नहीं करती हैं और अब आप सो तक नहीं पाती हैं.संतुष्ट होने,गहरी नींद सोने और दुनिया में सब ठीक है,सोचने से ज़रूर यह बेहतर है.आपकी अनिद्रा कुछ आदर के काबिल है.आप जो कुछ भी सोचती हैं,यह अच्छी निशानी है.दरअसल हम जिस तरह बातचीत कर रहे हैं,वह हमारे माता-पिता के लिए अकल्पनीय है.उन्होंने रात में कभी कोई इस तरह बात नहीं की होगी बल्कि गहरी नींद लेते रहे होंगे.लेकिन हमारी पीढ़ी की नींद खराब रहती है,हम थके-मांदे रहते हैं.हमें लगता है कि हम हर चीज़ का जवाब खोज सकते हैं चाहे वह सही हो या गलत.समस्या चाहे सही हो या गलत,उसे हमारे बच्चों,पोते-पोतियों के लिए पहले ही हल किया जा चुका है.वे चीज़ों को हमसे ज्यादा साफ़तौर से देखेंगे.पचास साल बाद ज़िंदगी अच्छी हो जायेगी लेकिन अफ़सोस है कि हम तब तक नहीं जियेंगे.यह देखना दिलचस्प होगा.”

“हमारे बच्चे,पोते-पोतियां क्या करेंगे?” लीज़ा ने पूछा.

मैं नहीं जानता.शायद हर चीज़ छोड़ देंगे और कहीं चले जायेंगे “

“कहाँ जायेंगे?”

“कहाँ जायेंगे ? अरे! जहाँ उनका मन होगा. अच्छे और चतुर आदमी के लिए जगहों की कमी नहीं है “कराल्योफ़ ने हँसते हुए कहा.

डॉक्टर ने अपनी घड़ी देखी.

“सूरज चढ़ आया है.आपको कुछ नींद ले लेनी चाहिए.कपडे बदल लीजिये और अब अच्छे से आराम करिए.”

डॉक्टर ने लड़की से हाथ मिलाया और फिर बोला,”मुझे खुशी है कि आपसे मुलाक़ात हुई.आप कमाल की दिलचस्प इंसान हैं.गुड नाईट  !”

डॉक्टर अपने कमरे में गया और बिस्तर में धंस गया.

अगली सुबह जब घोड़ागाडी आयी,विदा देने के लिए हर कोई आगे की सीढ़ी पर पहुंच गया.लीज़ा रविवार की सबसे उम्दा सफ़ेद कपड़ों में अपने बालों में फूल लगाकर सजी-धजी खड़ी थी.वह मुरझायी और निस्तेज लग रही थी.उसने उदास और परिचित निगाहों से डॉक्टर की ओर देखा जैसा वह एक दिन पहले मुस्करायी थी.उसकी आवाज़ का लहज़ा यह इशारा कर रहा था कि वह उससे कुछ ख़ास और महत्वपूर्ण बात कहना चाहती है.(सिर्फ़ उससे अकेले में)लार्क पक्षी की चहचहाहट सुनायी थी.गिरजाघर की घंटियाँ बज रही थीं.कारखाने की खिड़कियाँ खुशी से चमक रही थीं.जैसे ही उसकी घोडागाड़ी कारखाने के अहाते को पारकर स्टेशन की सड़क पर पहुंची,कराल्योफ़ कारखाने के कामगारों,वहां जमा इमारती लोहा- लंगड़ों,शैतान आदि को पूरी तरह भूल गये और उस वक्त के बारे में सोचने लगे जब उनकी ज़िन्दगी उस तरह चमकदार और ख़ुशगवार होगी जैसी इतवार की सुबह होती है जो शायद बहुत दूर नहीं है.उसने यह भी सोचा कि उस वसंत की सुबह एक शानदार त्रोइका घोड़ागाड़ी पर सवारी करना और धूप में अपनी देह सेंकना कितना सुखद रहा.

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