एक मुलाकात (कहानी) : जेम्स जॉयस
Ek Mulakat (English Story in Hindi) : James Joyce
'वाइल्ड वेस्ट' के बारे में हमें जो डिल्लों ने बताया था, उसके पास एक छोटी सी लाइब्रेी थी, जो द यूनियन जैक, प्लक और द हॉफपेनी मार्बल के पुराने नंबरों से तैयार की गई थी। रोज शाम को स्कूल से आने के बाद हम उसके गार्डन में मिलते थे और भारतीय खेल खेला करते थे। वह और उसका छोटा भाई लियो घुड़साल के मचान को पकड़े रहते थे और हम उसे लेकर भागते थे। कभी-कभी हम घास के ऊपर कुश्ती भी लड़ते थे, जिसमें हर बार जो डिल्लनों ही जीतता था। उसके माता-पिता रोज सुबह गार्डिनर स्ट्रीट में आठ बजे की प्रार्थना में जाया करते थे। हम उम्र में उससे छोटे थे और थोड़ा डरते भी थे। जब वह हाथ से डिब्बा बजाता हुआ और मुँह से 'याका, याका, याका, याका' की चीख निकालता हुआ गार्डन में उछलता था तो बिल्कुल किसी भारतीय की तरह लगता था।
जब यह बात पता चली कि उसे पादरी का काम मिल रहा है तो इस पर किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन बात सही थी।
हम सब मस्ती के मूड में थे और उसके प्रभाव से हमारे बीच मौजूद सांस्कृतिक और संवैधानिक भेदभाव मिट गया था। हमारा एक-दूसरे के साथ भावनात्मक जुड़ाव हो गया। 'वाइल्ड वेस्ट' में जो कहानियाँ थीं, वे मेरी स्वाभाविक पसंद से बिल्कुल हटकर थीं। मुझे अमेरिकी जासूसी कहानियाँ ज्यादा पसंद थीं। इन कहानियों में वैसे तो कोई बुराई नहीं थी और इनका परिप्रेक्ष्य भी प्रायः साहित्यिक था, लेकिन स्कूल फादर बटलर रोमन इतिहास के चार पेज सुना रहे थे तो लियो डिल्लों के पास द हॉफपेनी मार्बल की एक प्रति मिली। इस पर फादर बटलर बहुत नाराज हुए थे—'क्या है यह? रोमन इतिहास पढ़ने की बजाय यही सब पढ़ते हो तुम लोग? कॉलेज में दुबारा ऐसा कोई साहित्य मुझे नहीं दिखाई देना चाहिए। इसे लिखनेवाला आदमी भी कोई पागल रहा होगा, जो अपनी पीने की लत के लिए इस तरह की सामग्री लिखता रहा होगा। तुम जैसे पढ़े-लिखे लड़कों को इस तरह की कहानियाँ पढ़ते देखकर मुझे हैरानी होती है। डिल्लों, अब मैं तुम्हें साफ-साफ कह देता हूँ, चुपचाप अपनी पढ़ाई करो, वरना...'
लियो डिल्लों का चेहरा देखने लायक था। फादर की इस डाँट के बाद 'वाइल्ड वेस्ट' की जो छवि मेरे मन में थी, वह धूमिल पड़ गई और मेरी आँखें खुल गईं, लेकिन धीरे-धीरे जब सुबह स्कूल जाना, शाम को स्कूल से आकर खेलना, यह रोज की दिनचर्या मुझे उबाऊ लगने लगी तो एक बार फिर मन कुछ यथार्थ एवं साहसिक गतिविधियों के लिए भटकने लगा और इतना मैं जानता था कि इस प्रकार की साहसिक गतिविधियों का आनंद उन लोगों को नहीं मिलता, जो घर में पड़े रहते हैं, इसके लिए बाहर निकलना पड़ता है।
गरमी की छुट्टियाँ निकट थीं। मैंने पूरा मन बना था कि ज्यादा नहीं तो कम-से-कम एक दिन के लिए इस उबाऊ स्कूली दिनचर्या से बाहर निकलकर जरूर देखूँगा। लियो डिल्लों और एक अन्य लड़के के साथ, जिसका नाम महोनी था, मैंने स्कूल से एक दिन की छुट्टी करने की योजना बनाई। तीनों के पास छह-छह पैसे थे। हमने सुबह दस बजे कैनाल ब्रिज पर मिलना तय किया। महोनी ने अपनी बड़ी बहन से एक प्रार्थना-पत्र लिखवा लिया और डिल्लों ने अपने भाई से कहलवा दिया कि वह बीमार है। हमें हवार्फ रोड से होते हुए पिजम हाउस तक जाना था। लियो डिल्लों के मन में डर था कि कहीं वहाँ फादर बटलर न मिल जाएँ, लेकिन महोनी ने समझदारी दिखाते हुए कहा कि फादर बटलर वहाँ पिजम हाउस क्या करने जाएँगे? मैंने अपने छह पैसे निकाले और उन दोनों के छह-छह पैसे भी लेकर इकट्ठा किए तथा मन में अगले दिन की साहसिक यात्रा का उत्साह लिये हम एक-दूसरे से हाथ मिलाकर घर के लिए चल पड़े। रात में मैं चैन की नींद सोया और सुबह सबसे पहले उठकर कैनाल ब्रिज पर पहुँच गया। किताबें गार्डन के छोर पर कूड़ेदान के पास उगी लंबी-लंबी घासों में छिपाईं और कैनाल (नहर)के किनारे-किनारे चलने लगा। जून का महीना था। धूप खिली हुई थी। मैं पुल पर आराम से बैठ गया और अपने जर्जर जूतों की ओर देखने लगा। पहाड़ी की ओर नजर गई तो देखा कि एक घोड़ागाड़ी में बैठकर कुछ लोग जा रहे थे। पेड़ों की हरी-हरी पत्तियाँ धूप में चमक रही थीं और सूर्य की रोशनी उनसे छनकर पानी पर पड़ रही थी। पुल का ग्रेनाइट पत्थर गरम होने लगा था। मैं बहुत खुश था।
पाँच या दस मिनट के बाद मुझे महोनी आता दिखाई दे गया। मुसकराते हुए आकर वह मेरी बगल में बैठ गया। वह अपनी जेब में गुलेल लेकर आया था और कह रहा था कि इससे वह चिडि़यों को मारेगा। डिल्लों अब तक नहीं आया था। लगभग आधा घंटा इंतजार करने के बाद महोनी एकदम उठा और कहने लगा,
'चलो, चलते हैं। मुझे पता था वह भोंदू नहीं आएगा।'
'और उसके छह पैसे?' मैंने कहा।
'वे जब्त हो गए।' महोनी ने कहा।
नॉर्थ स्ट्रैंड रोड से होते हुए हम पहले विट्रिऑल वर्क्स तक गए, फिर वहाँ दाएँ मुड़कर चलते हुए हवार्फ रोड आ गए। जब हम लोगों की नजरों से दूर हुए तो महोनी ने अपनी चाल-ढाल किसी भारतीय की तरह ही बना ली। अपनी खाली गुलेल को भाँजते हुए वह लड़कियों के एक झुंड का पीछा करने लगा। लड़कियों के सामने अपना प्रभाव जमाने के लिए दो लड़कों ने हमारी ओर पत्थर मारना शुरू कर दिया। जवाब में महोनी ने कहा कि हम भी पत्थर मारेंगे, लेकिन मैंने उसे रोक दिया। हमें चिढ़ाते हुए वे कुछ दूर तक हमारे पीछे-पीछे आए, लेकिन हम उनसे उलझने की बजाय चुपचाप चलने लगे।
वहाँ से चलकर हम नदी के पास आए। पत्थर की ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरी और शोरगुल से भरी सड़कों पर हमें काफी समय लग गया, क्योंकि हम क्रेनों और इंजनों को देखते हुए चल रहे थे। जब हम घाटों पर पहुँचे, उस समय दोपहर हो चुकी थी। सारे मजदूर लंच कर रहे थे। हमने भी दो बड़ी डबलरोटियाँ खरीदीं और एक ओर आराम से बैठकर खाने लगे। वहाँ डबलिन का वाणिज्यिक कारोबार देखकर हमें बहुत अच्छा लग रहा था। ऊन के गुच्छों की तरह धुआँ छोड़ते मालवाहक पोत, मछली पकड़नेवाला बेड़ा और सामने के घाट पर खड़ा सफेद रंग का बड़ा सा जहाज, जिस पर से माल खाली किया जा रहा था। उस समय स्कूल और घर की चिंता हमारे मन में बिल्कुल नहीं थी।
एक नाव में बैठकर हमने लिफी पार की। नाव में हमारे साथ दो मजदूर और हाथ में थैला लिये एक यहूदी बैठे थे। वैसे तो हम पूरी तरह से संजीदा थे, लेकिन जब एक बार हमारी निगाहें मिलीं तो हम हँस पड़े। दूसरी तरफ पहुँचकर हमने उस सफेद रंग के जहाज को नजदीक से देखा, जो हमें पहले घाट से दिखाई दे रहा था। पास में खड़े एक व्यक्ति ने बताया कि यह नॉर्वे का जहाज है। मैं वहाँ खड़ेविदेशी नाविकों को देखने लगा। मैं देखना चाहता था कि क्या उनमें से कोई हरी आँखों वाला भी है? सब नाविकों की आँखें नीली, भूरी या फिर काली थीं। एक ही नाविक ऐसा था, जिसकी आँखें कुछ हरी थीं, वह एक लंबा सा आदमी था, जो बीच-बीच में बहुत अच्छे! बहुत अच्छे! बोलते हुए वहाँ काम कर रहे मजदूरों का उत्साह बढ़ा रहा था।
यहाँ के दृश्य से जब मन भर गया तो हम रिंगसेंड की ओर निकल गए। तब तक दिन काफी गरम हो चुका था। हमने एक दुकान से कुछ बिस्कुट व चॉकलेट खरीदे और रिंगसेंड की उन गलियों से होकर घूमने लगे, जिनमें मछुआरों के परिवार रहा करते हैं। वहाँ कोई डेयरी दिखाई नहीं दे रही थी, इसलिए हमने एक दुकान से एक-एक बोतल रसभरी शिकंजी खरीदी। उसे पीने के बाद हम तरोताजा महसूस कर रहे थे। तभी महोनी की नजर एक बिल्ली पर पड़ी और वह उसका पीछा करने लगा, लेकिन वह एक बड़े से खेत में निकल गई।
अब तक काफी देर हो चुकी थी और दिनभर घूमते-घूमते हम काफी थक भी गए थे। हमें चार बजे से पहले-पहले घर भी पहुँचना था, ताकि किसी को यह पता न चले कि हम कॉलेज जाने की बजाय कहीं घूमने गए थे। महोनी अपनी गुलेल की ओर देख रहा था। सूर्य बादलों के पीछे कहीं छिप गया था। महोनी किसी नए खेल में उलझता, इससे पहले ही मैं उससे कहने लगा कि हमें रेल द्वारा घर चलना चाहिए।
वहाँ उस बड़े से मैदान में हम दोनों के अलावा और कोई दिखाई नहीं दे रहा था। हम वहीं लेट गए। थोड़ी देर बाद मुझे मैदान के एक छोर से एक आदमी आता दिखाई दिया, जो धीरे-धीरे हमारी ओर बढ़ रहा था। उसका एक हाथ कमर पर था और दूसरे हाथ में एक छड़ी थी, जिसे वह जमीन पर पटकता हुआ चल रहा था। मैं लेटे-लेटे उसे ही देख रहा था। वह गहरे हरे रंग का सूट पहने हुए था और सिर पर जैरी की टोपी लगा रखी थी। उसकी सफेद होती मूँछें और चाल-ढाल देखकर उसकी उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता था। हमारे ठीक बगल से गुजरते हुए उसने एक नजर हम दोनों पर डाली और आगे चला गया। हम उसे ही देख रहे थे। लगभग पचास कदम आगे चलने के बाद वह पीछे मुड़ा और धीरे-धीरे चलते हुए वापस हमारे पास आ गया। उसे जमीन पर छड़ी पटक-पटककर चलते हुए देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वह कुछ ढूँढ़ रहा हो।
हमारे बिल्कुल पास आकर वह रुक गया और हमें 'शुभ दिन' कहते हुए वहीं बैठ गया। हमने भी जवाब में उसे 'शुभ दिन' कहा। अब वह हमारे साथ बातें करने लगा, 'इस बार गरमी ज्यादा है, हम लोग छोटे-छोटे थे, तब से अब तक मौसम की दशाओं ने कितना बदलाब आ चुका है! बातों-बातों में उसने यह भी कहा कि स्कूल के दिन जिंदगी के सबसे अच्छेदिन होते हैं, अपने उन दिनों को वापस पाने के लिए मैं कुछ भी दे सकता हूँ।' हम चुप थे, क्योंकि उसकी ये सब बातें हमें उबाऊ लग रही थीं। उसके बाद वह स्कूल और किताबों के बारे में बात करने लगा। उसने हमसे पूछा कि क्या तुमने थॉमस मूरे की कविताएँ या सर वॉल्टर स्कॉट और लॉर्ड लिटन की रचनाएँ पढ़ी हैं? मैंने कुछ इस तरह बात की कि उसे लगा कि मैंने ये सब किताबें पढ़ी हैं।
उसने कहा, 'अच्छा, तो तुम भी मेरी तरह किताबें पढ़ने के शौकीन हो।' उसके बाद जब वह महोनी की ओर इशारा करते हुए कुछ कहने वाला था, तब झट से मैंने कह दिया, 'यह थोड़ा अलग है, इसे खेल-कूद में ज्यादा दिलचस्पी है।'
वह हमें बताने लगा कि उसने अपने घर पर सर वॉल्टर स्कॉट और लॉर्ड लिटन की सारी रचनाएँ रखी हैं और बड़े चाव से उन्हें पढ़ता है। उसने कहा, 'लॉर्ड लिटन की कुछ रचनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें लड़के नहीं पढ़ सकते।' इस पर महोनी एकदम पूछ पड़ा, 'क्यों, लड़के क्यों नहीं पढ़ सकते?' उसके इस सवाल से मैं थोड़ा परेशान सा हो गया, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं यह आदमी मुझे भी महोनी की तरह भोंदू न समझ बैठे! खैर, वह आदमी बस मुसकराकर रह गया। मैंने देखा कि उसके पीले-पीले दाँतों के बीच बड़े-बड़े सुराग थे। तब उसने प्रेमिकाओं की बात छेड़ दी और पूछने लगा कि किसके पास सबसे ज्यादा प्रेमिकाएँ हैं?
महोनी ने बताया कि उसके पास तीन प्रेमिकाएँ हैं। जब मैंने बताया कि मेरे पास एक भी प्रेमिका नहीं है तो उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसने कहा कि कम-से-कम एक तो जरूर होगी!
तब महोनी ने उससे पूछा, 'अच्छा, आप बताइए, आपके पास कितनी हैं?'
वह आदमी पहले तो मुसकराया, फिर कहने लगा कि जब वह हमारी उम्र का था, तब उसके पास कई-कई प्रेमिकाएँ हुआ करती थीं। उसने कहा, 'हर लड़के की कोई-न-कोई प्रेमिका होती है।'
लड़के-लड़कियों और प्रेमी-प्रेमिकाओं के विषय पर वह बड़े खूबसूरत अंदाज में बातें कर रहा था, लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि बात करते-करते वह अंदर से डर सा रहा था। वह हमें अपने बारे में बता रहा था कि कैसे उसे खूबसूरत बालों, गोरे-गोरे हाथोंवाली लड़कियाँ अच्छी लगती थीं। वह कुछ ऐसे अंदाज में बता रहा था, जैसे ये सारे शब्द उसके रटे-रटाएँ हों। बीच-बीच में बहुत धीमी आवाज में बोलने लगता था, जैसे वह चाहता था कि कोई और उसकी बात को न सुन पाए। उसकी बातें मैं सुन तो रहा था, लेकिन मुझे उसमें कोई मजा नहीं आ रहा था। काफी देर तक वह इसी तरह बातें करता रहा और फिर उठा और कहने लगा कि उसे चलना चाहिए। इतना कहकर वह धीरे-धीरे मैदान के दूसरे छोर की ओर चल पड़ा। उसके जाने के बाद एक-दो मिनट तक हमने कोई बात नहीं की। तभी अचानक महोनी बोल पड़ा, 'अरे, देख तो क्या कर रहा है वह?'
लेकिन न मैंने उसकी ओर देखा और न ही कोई जवाब दिया। तब महोनी ने फिर कहा, 'अरे, देख न, वह बूढ़ा सनकी है।'
'अच्छा, अगर वह हमारा नाम पूछे तो तुम अपना नाम मरफी बताना और मैं अपना नाम स्मिथ बता दूँगा।' मैंने उसे सावधान करते हुए कहा।
हम वहाँ से चलने की सोच ही रहे थे कि वह बूढ़ा दुबारा हमारे पास आकर बैठ गया। इतने में महोनी को वह बिल्ली दुबारा दिखाई दे गई, जिसका थोड़ी देर पहले वह पीछा कर रहा था। वह झट से उठा और एक बार फिर उसका पीछा करने लगा, लेकिन इस बार भी वह भाग निकली और एक दीवाल पर चढ़ गई। महोनी थोड़ी देर तक उस दीवाल पर पत्थर मारता रहा, उसके बाद यों ही इधर-उधर घूमने लगा।
थोड़ी देर बाद वह आदमी मुझसे बात करने लगा। महोनी के बारे में कहने लगा कि तुम्हारा दोस्त तो बहुत शरारती लगता है, जरूर स्कूल में उसे सजा मिलती होगी। मैं कहनेवाला था कि हम लोग कोई नेशनल स्कूल के छात्र नहीं हैं, जो हमें सजा मिलेगी; लेकिन कुछ सोचकर मैं चुप ही रहा। इस बार उसने स्कूल में लड़कों को अध्यापक द्वारा सजा देने को अपनी बातचीत का विषय बनाया था। इस विषय पर अपनी राय रखते हुए उसने कहा कि स्कूल में बच्चा अगर शरारत करे तो उसे सजा मिलनी चाहिए, जरूर मिलनी चाहिए और हलकी-फुलकी नहीं, अच्छी-खासी सजा मिलनी चाहिए। उसकी बातें सुनकर मुझे हैरानी हो रही थी, मैं उसके चेहरे की ओर देखने लगा। उसने भी मेरी ओर देखा, तब मैंने अपनी आँखें हटा लीं। वह फिर शुरू हो गया। कहने लगा कि अगर मैं किसी लड़के को लड़की से बात करते या प्रेमिका के साथ घूमते देख लूँ तो उसकी खूब पिटाई करूँ, इतनी कि वह जिंदगी भर किसी लड़की से बात करने की हिम्मत न जुटा पाए। उसने आगे कहा कि अगर किसी लड़के को अपनी प्रेमिका के बारे में झूठ बोलते पकड़ लूँ तो उसे ऐसी सजा दूँ, जैसी कभी किसी लड़के को न मिली हो। ये सब बातें वह मुझे कुछ इस अंदाज में बता रहा था, जैसे कोई बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन कर रहा हो।
मैं इंतजार कर रहा था कि कब उसका नीरस प्रवचन खत्म हो और मैं उठूँ! जैसे ही उसने बोलना बंद किया, मैं तुरंत वहाँ से उठा और उसे 'शुभ दिन' कहते हुए ढाल से ऊपर की ओर चल पड़ा। पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि कहीं यह आदमी मुझे पकड़ न ले और इसी डर से मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। ढाल के ऊपर पहुँचकर मैंने इधर-उधर देखा और जोर से आवाज लगाने लगा—'मरफी!'
अंदर से तो मैं डरा हुआ था, लेकिन आवाज में अपना डर प्रकट नहीं होने दे रहा था। जब महोनी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने दुबारा आवाज दी। इस बार महोनी ने जवाब दिया। जब वह दौड़ता हुआ मेरे पास आया तो मेरा दिल कितनी जोर-जोर से धड़क रहा था! ऐसा लग रहा था, जैसे मुझे मदद पहुँचाने के लिए वह दौड़ा आ रहा था।
(अनुवाद : आनंद अभय)
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