एक बचपन ऐसा भी (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा

Ek Bachpan Aisa Bhi (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma

मैं प्राथमिक कक्षा में पढ़ता था तब से मेरी मम्मी-पापा ने अपने अलग-अलग विचार मुझ पर थोपना शुरू कर दिये। उन दोनों में से किसी ने भी नहीं सोचा कि मैं क्या बनना चाहता हूं। मुझे हमेशा कहानी व कविता पढ़ने में रूचि रही। मुझे हमेशा लगा मैं गलत हूं। मुझे मम्मी की बात माननी चाहिए कि पापा की - कभी मुझे लगता पापा सही तो कभी लगता कि मम्मी सही। दोनों की बात एक साथ मान नहीं सकता ना! मैं क्या करूं? मेरे मन की बात का क्या ? उसे कैसे मानूं ? अपने मन को मसोस कर मम्मी की बात मान लेता तो पापा नाराज होते। उन्हें खुश करना चाहूं तो मम्मी नाराज होतीं। मैं आपको बताना भूल गया। मेरी मम्मी की आवाज बहुत ही मधुर है। वह बहुत अच्छा गाती भी हैं। पर उन्हें गायन की शिक्षा नहीं मिल सकी। उनका जन्म गरीब परिवार में हुआ। वे चार भाई-बहिन थे। उनके परिवार में सिर्फ उनके पापा ही एक मात्र कमाने वाले थे। तब उन्हें खाना-पीना व पढ़ाई के ही लाले पडे थे। वहां उनको गाने की तालिम कौन दिलाता। अब मम्मी चाहती है कि मैं तो आफिस में नौकरी करती हूं व मेरा एक ही बेटा है, इसे गायन की तालिम दिलाऊँ। मुझे गाना अच्छा लगता है। किसे गाना अच्छा नहीं लगता ! क्या मैं औरंगजेब हूं जो गाने से नफरत करता हूं। पर पढ़ायी में भी मेरी रूचि है। मैं शौक के लिए गाना तो चाहता हूं पर सारे दिन उसी के लिए व्यतीत करना मुझे मजूंर नहीं । रही पापा की बात तो वह मुझे विज्ञान विषय पढ़ने पर जोर देते हैं ताकि डाक्टर बनूं। "अभी से ही तुम्हारी रूचि विज्ञान पर होनी चाहिए। गाना - वाना बंद करो " पापा कहते हैं।

क्या कोई मेरी भी बात सुनेगा ! स्कूल की टीचर मेम मुझे बहुत चाहती हैं। वे कहती है कि तुममे बोलने की बड़ी खूबी है। तुम भाषण व वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लो। मुझे खेलना-कूदना अच्छा लगता है। हमारे पी.टी.आई सर भी कहते हैं "तुम्हारा बॉडी स्ट्रेक्चर भी खिलाड़ी जैसे है। तुम खेल कंपटीशन में भाग लो।"

हे ईश्वर ! मैं क्या करूं ? मुझे क्या पसंद है। मेरी क्या इच्छा है, ये तो कोई भी नहीं पूछता। सब मुझसे अपनी-अपनी उम्मीदों को पूरा कराना चाहते हैं।

मेरी मम्मी मुझे सुबह साढे चार बजे उठा कर रियास करने को कहती हैं । पापा कहते हैं "सुबह ब्रह्म मूहुर्त का समय पढ़ने का है बेटा, विज्ञान के फार्मूले याद करो। गणित के लिए सुबह का समय फ्रेश रहता है।" मुझे जगा कर मेरे मम्मी-पापा सो जाते हैं। मैं सोचता हूं कि मैं क्या करूं। मुझे लगता है कि सुबह-सुबह ताजी हवा में दौड़ लगाऊँ । कभी-कभी तो पापा पर्मिशन दे देते हैं जब पापा अकेले होते हैं और मम्मी बाहर गई होती हैं। तब आपको मैं क्या बताऊँ मुझे बहुत सकून मिलता है। मुझे ऐसा लगता है कि मुझे दुनियां भर की खुशी मिल गई। वह सारा दिन मैं तरो-ताजा रहता हूँ। सबसे बात करने की, हंसी मजाक करने की, पूरे दिन गुनगुनाने की इच्छा होती है। मेरी रियाज करने की भी इच्छा होती। मेरा मन पढ़ने में भी लगता है। टीचर की हर बात को मानने का मेरा मन करता है । पर मम्मी को ये बात कैसे समझा सकता हूं। उन्हें ये बात समझ क्यों नहीं आती?

वैसे एक बात मेरी समझ में नहीं आती, पापा बड़े है और बड़ी कंपनी में सी.ई.ओ. होने के बावजूद भी वे मम्मी को समझा कर कोई फैसला क्यों नहीं ले पाते ?

मेरी मम्मी भी बड़ी कंपनी में काम करती है। वह भी अपने कार्यस्थल पर बड़े फैसले लेती हैं। रोज न्यूज पेपर में उनके काम की तारीफ होती है। पर पता नहीं क्यो दोनों मिलकर मेरे लिए मेरी रूचि के अनुसार एक ही फैसला भी नहीं कर पाते। क्या उन्हें मेरी बात समझ नहीं आती? उन्हें मेरे लिए सोचना व फैसला लेना बहुत बड़ा कठिन काम लगता है। वे इस मामले मे मेरी मदद भी तो ले सकते हैं! मुझसे मेरी इच्छा पूछ भी तो सकते हैं ना ।

मैं मंद बुद्धि नहीं हूं। मेरी होशियारी व अंक्ल की सब तारीफ करते हैं। जाने क्या बात है मेरे मम्मी-पापा मुझे क्यों नहीं समझ पाते। मेरे मन के मुताबिक फैसला क्यों नहीं लेते।

ऐसी बात नहीं कि मम्मी व पापा मुझे नहीं चाहते। मेरे लिए खूब खिलौने एक से एक मंहगें खरीद कर लाते हैं। पर वे भी मेरे रूचि के अनुरूप नहीं। जो उन्हें पसंद आता है वहीं लाते हैं। मुझे कोई बताए क्या वे खिलौने से खेलेगे ? मुझे ही तो खेलना है फिर क्या बात है, मेरी छोटी सी अक्ल में ये बात नही आती। वे कहते हैं "तुझे नहीं पता है ये खिलौंने कितने मेहगें है।" कितने भी महंगा हो क्या फर्क पड़ता है। मैं शाम को अपने बराबर के बच्चों के साथ खेल नहीं सकता। " शाम को रानी आण्टी के साथ खिलौनें से बरामदे मे ही खेलो।" ये कोई बात है ! रानी आण्टी कहती है "थक गए हो बच्चे स्कूल से पढ़कर आए हो खाना खाकर सो जाओ। फिर आपको पढ़ाने के लिए टीचर आयेंगी।"

"मैं तो थका ही नहीं ! “ मुझे लगता है रानी आण्टी थक जाती हैं। वह चाहती हैं कि मैं सोऊँगा तो वह भी सो जायेंगी। मुझे लगता है ठीक है, मैं सो जाता हूं ताकि आण्टी को आराम मिले। पर यहां भी मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई।

सोकर उठूंगा तो टीचर आ जाती है पढ़ाने। वह भी वही पढ़ाती हैं जो उन्हें पढ़ाना हो!

मैं मेरे हम उम्र बच्चों के साथ कब खेलूं। रानी आण्टी कहती हैं "अब शाम हो रही है, बाहर मच्छर हो जाते है। उसके काटते तुम बीमार हो जाओगे।”

मेरे सारे दोस्त खेलते हैं वे बीमार नहीं होते, फिर मैं ही कैसे हो जाऊँगा। रानी आण्टी का बेटा तो खेलता है। वह मुझे भी खेलने बुलाता है, पर आण्टी नहीं खेलने देती।

मैं रोज सोचता हूं किसी दिन मम्मी-पापा दोनों शाम को जल्दी आ जाए तो मेरी समस्या उनके सामने रखूं। पर ऐसा कभी होता ही नहीं है। कभी हो भी जाय जैसे दोनों जल्दी आ गये तो मैं उनके पास जाऊँ और बोलूं उसके पहले ही दोनों मुझ पर अपनी-अपनी बातें थोपने लगते हैं। उन्हें अकसर पार्टियों में भी जाना होता है। पार्टियां तो देर रात तक चलती हैं तब मुझे तो आण्टी के बदले रामू काका के साथ रात गुजारनी पड़ती है। रामू काका मुझसे तो बात नहीं करते पर पता नहीं मोबाइल में गंदी-गंदी फोटोओं को देखते रहते हैं। मेरा मन अकेले नहीं लगता। मैं बोर होता हूं तो वे कहते हैं, "तू भी इसे देख ले।” 'अरे ! इसमें तो अंकल-आण्टी गंदे-गंदे काम कर रहें हैं।' मैं मेरे पापा-मम्मी से कह भी नहीं सकता, क्योंकि कहने पर रामू काका को वे आने नहीं देंगें तो रात को मै कैसे अकेले रहूंगा ! मेरे दोस्तों के घर तो सबके भाई-बहिन हैं। वे साथ-साथ रहते हैं पर मैं तो अकेला ही ठहरा! मेरे स्कूल के साथी कहते हैं, "तू तो बड़ा लकी है रे इकलौता मम्मी-पापा का । दोनों बड़ी पोस्ट पर हैं। खूब कमाते हैं। तेरी तो मौज ही मौज है। ऐसा कह वे मुझसे ईर्ष्या करते हैं।

“हे भगवान उन्हें कैसे बताऊँ मैं कितना अकेला, बेसहारा, मम्मी-पापा के होते हुए भी अनाथ जैसा, घुटा-घुटा अपनी बात कहने में असमर्थ हूं। मैं तो कैदी जैसे जिंदगी जी रहा हूं। कोई मुझसे प्यार नहीं करता। ऐसा जीना भी कोई जीना है ! मेरी पाठ्य पुस्तक में कविता बचपन में लिखा है- 'मेरा बचपन कोई मुझे लौटा दें'

क्या वे ऐसा बचपन चाहते थे, या उनका बचपन कुछ और ही रहा होगा ?

मैंने तो ये सारी बातें इस डायरी में लिख दीं। अब ये डायरी रद्दी में बिकने जाय, या कोई पढ़े और शायद मेरी समस्या का समाधान निकाल सके। इसी उम्मीद में मैं इकलौता अमीर बेसहारा अनाथ पुत्र अपनी बात यहीं समाप्त करता हूं।

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