एक और वापसी (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा
Ek Aur Wapasi (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma
गजाधर बाबू रिटायर होकर घर आ गए थे उनका सामान गाड़ी से उतारा जा रहा था। शकुंतला देवी खुशी-खुशी उनका सामान उठा-उठा कर उनके कमरे में व्यवस्थित कर रही थीं। उनका पूरा सामान जम गया तो उन्होंने एक सरसरी नजर पूरे कमरे पर डाली और बहुत ही आनंदित हो उठीं, अब अब उन्हें सुकून था कि पति घर आ गए हैं। अब वे उनके मन पसंद का खाना उन्हें बना बनाकर खिलाएंगी उनकी सेवा टहल करेंगी और उनके पास रहने का, उनके सान्निध्य में समय बिताने का उन्हें मौका मिलेगा
25 वर्षों से वे उनसे अलग थी।उनकी पोस्टिंग दूर दूरदराज इलाके में थी और हर 3 साल में उनका ट्रांसफर भी हो जाता था।बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान ना हो क्योंकि हर बार नया स्कूल नया घर नई परिस्थितियों से सामना करने में बहुत मुश्किल होती थी इसलिए तय किया गया कि उनके मायके के शहर में ही उनको रखा जाए और वे बच्चों का पालन पोषण भली-भांति करती रहें।
घर में एक बहू भी आ गई थी छोटा बेटा भी ब्याह के लायक हो चला था और बिटिया की भी शादी धूमधाम से कर दी थी।
इन सब जिम्मेदारियों को निभाने में शकुंतला को अकेले ही बहुत सारी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। वे कम पैसों में ही पूरी गृहस्थी को संभाले रहीं पर पति से उसकी दूरी बनी रही। उनके मन में बस यही एक आश थी कि रिटायरमेंट के बाद गजाधर बाबू घर आएंगे और वे उनके साथ अपने सुरमई जीवन के शेष दिन अच्छे से गुजार लेंगी। गजाधर बाबू के साथ अधिक से अधिक समय शकुंतला देवी बिताना चाह रही थी। वे उनके पास बैठी रहती घर-गृहस्थी का काम भी उन्होंने बहू के जिम्मे छोड़ रखा था और इसकी प्रैक्टिस भी वह उसको 5 महीने से लगातार करवा रही थी ताकि एक पल को भी वे अपने पति से दूर ना रह सके। रिक्तता का जो समय अभी तक गुजारा है उसकी पूर्ति करना चाहती थीं।
शकुंतला देवी ने देखा कि मैं जब भी गजाधर बाबू के पास जाती हूँ वे अपने मोबाइल में ही डूबे रहते हैं और न जाने क्या खटर पटर पटर पटर उसमें करते रहते ।शकुंतला देवी को समझ में नहीं आता कि इतने दिनों बाद वे अपनी पत्नी से मिल रहे हैं पर कोई उत्साह नहीं है। शकुंतला देवी ने उषा प्रियंवदा की कहानी वापसी पढ़ रखी थी और तब से ही उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि जब भी उनके पति वापस आएंगे वह ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न नहीं होने देंगी ...उनका पूरा ध्यान रखेंगी.. उन्हें उपेक्षित नहीं करेंगे इसलिए वे हर पल गजाधर बाबू के पास बैठी रहतीँ। लेकिन गजाधर बाबू थे कि उन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे थे। वे उनके पास बैठतीं या उनसे बात करतीं तो वे असहज हो जाते। जब वो अकेले रहते तो फेसबुक व्हाट्सएप ही उनके साथी बन चुके थे इंस्टाग्राम से शब्दों ने दोस्ती कर ली थी और फिर विकिपीडिया से उन्होंने दोस्ती कर रखी थी। फेसबुक तो जैसे उनकी पहचान ही बन गई थी उसी पर अपनी कुछ भी पोस्ट डालते रहते और लोगों से बतियाते रहते । शकुंतला देवी कौंचती कि हम पास बैठे हैं हमसे बात तो करो। वे अपने जीवन भर के संचित दुख को उनसे बांटना चाहती थी ... बताना चाहती थी कि किस तरह से उन्होंने किन कठिनाइयों का सामना इन 25 सालों में किया है किस तरह से उन्हें भनक तक नहीं लगने दी कि वे किस संकट में रहीं ... क्योकि आप तो अकेले रहते थे आप किसी भी दुविधा में या चिंता में न पढ़ें इसलिए दुःख कभी साझा हकन किया यही सोचा कि यहाँ मेरे पास मायके वाले थे मैं अपना मन और दुःख बांट सकती थी लेकिन पति तो पति होता है ना वह जीवन का आधा भाग होता है। शकुंतला देवी अच्छे से तैयार होकर उनके पास आती लेकिन क्या मजाल थी कि फोन से नजर हटा कर वे उनकी तरफ देखते। फेसबुक पर लगी हुई सुंदरियों में ही उनका मन रमा रहता।अब स्थिति यह बन रही थी कि शकुन्तला देवी कुछ भी कहती और गजाधर बाबू असहज हो जाते और छोटी मोती नौंक झौंक शुरू हो गई थी ।शकुंतला देवी रात में भी उनके पास आकर बैठती लेकिन वे अपने ही बुद्धू बॉक्स में उलझे रहते शकुंतला देवी सो जाती और वे देर रात तक जागते रहते। शकुंतला देवी सुबह जल्दी उठतीं और वे सुबह देर तक सोते रहते ।
अचानक शकुंतला देवी को मालूम पड़ा कि गजाधर बाबू फिर से जा रहे हैं गजाधर बाबू ने बताया कि मैंने एक जगह नौकरी कर ली है
वे घर मे ऐसे कपड़ों में घूमते जैसे अकेले ही हों। बेटा शकुंतला देवी से कहता मम्मी पापा को समझाओ घर में बहू है वे ढंग से रहें। शकुंतला देवी गजाधर बाबू को समझातीं तो वे बुरा मान जाते। वे कमरे का दरवाजा उड़का कर रखते ।
कई बार शकुंतला देवी ने महसूस किया कि वे किसी से बात कर रहे हैं उनके आते ही वे शांत हो जाते। उन्हें महसूस होता कि वे अब इक्कीसवीं सदी के गजाधर बाबू बन गए हैं। वे उनके पुराने गजाधर बाबू नहीं हैं जो पच्चीस साल पहले कहते थे कि शकु तुम्हारे बिना रहना मेरे लिए मौत से भी बदतर है।
गजाधर बाबू ने बेटे रमेश को बैठक में बुलाया और कहा कि मेरी नौकरी लग गई है और मैं फिर से जा रहा हूँ। शकुंतला देवी अचानक लिए उनके फैसले से हतप्रभ हो गईं। कहां जा रहे हो ?
तब उन्होंने बताया कि सरकार ने रिटायर्ड लोगों को भी नौकरी पर रखने की बात कही थी और मैंने उसके लिए अपनी स्वीकृति दे दी है।वहां से बुलावा आया है इसलिए मैं जा रहा हूँ। शकुंतला देवी ने कहा कि अब घर गृहस्थी बहू सम्हालने लग गयी है। बेटे भी बड़े हो गए हैं अब मैं तुम्हारे साथ ही चलूंगी।
लेकिन गजाधर बाबू बोले कि मुझे पता नहीं कहाँ-कहाँ जाना पड़ेगा..
तुम वहां अकेली कैसे रहोगी। यहां बाल बच्चों के साथ रहो, नाती पोतों को भी देखभाल की जरूरत है।
शकुंतला देवी बोल उठी कि
आपको नौकरी की क्या जरूरत है इतना पैसा मिला है आपको जीपीएफ का, पेंशन भी में अच्छी खासी मिल रही है। क्यों जाना चाहते हो यहीं सब जीवन के क्षणों में सभी के साथ रहो तो अच्छा लगेगा।
गजाधर बाबू मन में सोच रहे थे कि मैं कैसे बताऊं कि मुझे अकेले रहने की आदत पड़ गई है। इंस्टाग्राम फेसबुक और यही मेरी दुनिया है और इसी में जीना अच्छा लगता है इसलिए तुम्हारा साथ में रहना तुम्हारा टोकना मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं अपने एकाकी जीवन में ही मस्त और व्यस्त होने जा रहा हूं गजाधर बाबू का सामान एक बार फिर से बंद।
गजाधर बाबू का वह सामान जो आया था वो चढ़ने लगा। दरवाजे पर गाड़ी खड़ी थी और गजाधर बाबू एक बार फिर से वापस हो रहे थे अपने दूसरे गंतव्य के लिए पर इसके पीछे शकुंतला देवी इस बार बहुत उदास थी और अंदर से टूट रही थी सोच रही थी क्या मुझे अकेले ही इस रास्ते को फिर से संभालना होगा।
शकुंतला देवी ने फिर से किचिन सम्हाल ली थी। गजाधर बाबू की गाड़ी में सामान रखा जा रहा था।