एडवर्ड मिल्स और जॉर्ज बेंटन की कहानी (कहानी) : मार्क ट्वेन

Edward Mills and George Benton A Tale (English Story in Hindi) : Mark Twain

उन दोनों का दूर का रिश्ता था। सातवीं जगह पर कहीं रिश्ते के भाई या ऐसा ही कुछ। अभी शिशु ही थे कि वे बेचारे अनाथ हो गए। निस्संतान ब्रांट दंपती ने उनको गोद ले लिया और जल्दी ही उन्हें बहुत प्यार करने लगे। ब्रांट दंपती हमेशा कहा करते थे, "पवित्र आचरणवाले, ईमानदार, सौम्य, परिश्रमी रहो और दूसरों का सदा ध्यान रखो तो जीवन में सफलता निश्चित है।"

बच्चों ने इसे हजारों बार सुनकर समझ लिया। वे इसे प्रार्थना से पहले आसानी से दोहरा सकते थे। उनके शिशु कक्ष के दरवाजे पर भी ये आदर्श वाक्य लिखे हुए थे। जब उन्होंने पढ़ना सीखा तो पहली बातें यही थीं। इसे एडवर्ड मिल के जीवन का निर्देशक सिद्धांत बनना था। कभी-कभी ब्रांट इस शब्दावली में थोड़ा परिवर्तन कर देते, “पवित्र आचरणवाले, ईमानदार, सौम्य, परिश्रमी रहो और दूसरों का सदा ध्यान रखो तो तुम्हें मित्रों की कभी कमी नहीं होगी।"

शिशु मिल सबके लिए सुखद था। जब वह लेमनचूस माँगता और नहीं मिलता तो उसका कारण समझकर संतोष कर लेता। शिशु बेंटन लेमनचूस माँगता तो तब तक रोता-चिल्लाता, जब तक कि उसे वह मिल नहीं जाता। शिशु मिल सदा अपने खिलौनों का खयाल रखता। शिशु बेंटन हमेशा थोड़े ही समय में उनको तोड़फोड़ देता। उसके बाद ऐसा कोहराम मचाता कि घर में शांति बनाए रखने के लिए मिल को उसे अपने खिलौने देने को राजी किया जाता।

जब ये बच्चे थोड़े बड़े हो गए तो जॉर्ज बेंटन काफी खर्चीला हो गया। यानी वह अपने कपड़ों का जरा भी ध्यान न रखता, लिहाजा अकसर नए कपड़ों में नजर आता। लेकिन एडी मिल ऐसा न था। बच्चे तेजी से बढ़ने लगे। एडी और भी सुखद होता गया, जॉर्ज और अधिक परेशान करनेवाला। अपने समझाने में एडी हमेशा यही कहा करता, "मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसा न करो तो बेहतर होगा।" उसका मतलब तैराने, स्केटिंग करने, पिकनिक मनाने, बेर चुनने, तमाशे जैसी हरकतें करने से होता, जिनको लड़के बहुत पसंद करते हैं। लेकिन जॉर्ज के लिए कुछ भी पर्याप्त न था। उसकी हर इच्छा पूरी होनी ही चाहिए थी, वरना वह बावेला खड़ा कर देता। स्वाभाविक ही किसी भी लड़के को इतनी अधिक तैराकी, स्केटिंग, वगैरह नसीब नहीं होती, न ही कोई लड़का उस जैसी मौज-मस्ती कर पाता। गरमी के दिनों में भी भले ब्रांट लड़कों को रात को नौ बजे के बाद बाहर रहने की अनुमति न देते। उनको उस समय सोने भेज दिया जाता। एडी आज्ञा का पालन करते हुए कमरे में सोता, जबकि जॉर्ज खिड़की के रास्ते भाग निकलता और आधी रात तक मौज करता। उसकी बुरी आदतों को सुधारना असंभव लगता था। लेकिन ब्रांट दंपती ने उसे सेब देकर और खेलने के लिए कंचे देकर कमरे में रहने के लिए फुसलाया। भले ब्रांट अपना बहुत सा समय जॉर्ज को सुधारने में लगाते। वे अपनी आँखों में कृतज्ञता के आँसू भरकर कहते कि एडी के लिए उनको कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। वह इतना अच्छा, विचारशील और निर्दोष था।

धीरे-धीरे लड़के और बड़े हो गए। उनको काम-धंधा सिखाया गया। एडवर्ड खुशी-खुशी गया। जॉर्ज को फुसलाकर और रिश्वत देकर भेजा गया। एडवर्ड ने ईमानदारी और मेहनत से काम किया। अब ब्रांट दंपती को उसपर खर्च नहीं करना पड़ता था। वे और उसका मालिक भी उसकी प्रशंसा करते। लेकिन जॉर्ज भाग गया। श्री ब्रांट को उसे खोजकर वापस लाने में मेहनत और पैसा दोनों खर्च करने पड़े। कुछ समय बाद वह फिर भाग गया, यानी और तकलीफ उठानी पड़ी और धन खर्च करना पड़ा। वह तीसरी बार फिर भागा। इस बार अपने साथ कुछ छोटी-मोटी चीजें भी चुराकर ले गया। एक बार फिर श्री ब्रांट को तकलीफ उठानी पड़ी और खर्च करना पड़ा। इसके साथ ही उनको उसके मालिक को मनाने में बहुत अधिक कठिनाई हुई कि युवक पर चोरी का अभियोग न लगाएँ।

एडवर्ड ने कड़ी मेहनत की। फिर वह अपने मालिक के व्यापार में भागीदार बन गया। जॉर्ज में कोई सुधार न हुआ। उसने अपने प्यार करनेवाले बूढ़े हितकारियों को परेशानी में रखा। उनको सदा उसे बरबादी से बचाने के लिए व्यस्त रहना पड़ता। एडवर्ड जब लड़का था, तब रविवार की धार्मिक पाठशाला में बहुत रुचि लेता था। वह वाद-विवाद सोसाइटियों, धार्मिक मामलों, तंबाकू विरोधी संगठनों, अपवित्रता विरोधी संगठनों आदि में भी बहुत रुचि लेता। बड़ा होने पर वह चुपचाप गिरजाघर एवं मद्य त्याग संगठनों की सेवा करनेवाला और जन-कल्याण की गतिविधियों में सहायता करनेवाला बना। इसपर कोई प्रशंसा नहीं हुई, न किसी का ध्यान आकर्षित हुआ। आखिर ये तो सहज व स्वाभाविक बातें थीं।

अंततः वे वृद्ध दंपती संसार से विदा हो गए। उन्होंने अपनी वसीयत में एडवर्ड के लिए गर्व प्रदर्शित किया। लेकिन अपनी छोटी सी संपत्ति जॉर्ज के नाम कर गए, क्योंकि उसे इसकी जरूरत थी। प्रभु कृपा से एडवर्ड जरूरतमंद नहीं था। लेकिन इसमें एक शर्त थी कि वह एडवर्ड के भागीदार को खरीदेगा। वरना यह संपत्ति 'बंदियों के मित्र' नामक संस्था को दे दी जाएगी। वे एडवर्ड के नाम एक पत्र भी छोड़ गए थे। इसमें उन्होंने अपने प्रिय पुत्र एडवर्ड से अनुरोध किया था कि वह उनका स्थान लेकर जॉर्ज का ध्यान रखे और उन्हीं की तरह उसकी रक्षा एवं सहायता करे।

एडवर्ड ने चुपचाप इसे स्वीकार कर लिया और जॉर्ज व्यापार में उसका भागीदार बन गया। वह किसी काम का भागीदार न था। उसे पीने की लत थी, जो जल्दी ही इतनी बढ़ गई कि उसकी आँखों और चेहरे से अपने पूरे भद्देपन में प्रकट होने लगी। एडवर्ड एक मधुर और नेक स्वभाव की लड़की से मिला करता था। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन तभी जॉर्ज आँखों में आँसू भरकर और याचनाएँ करते हुए उसके पीछे पड़ गया। एक दिन वह रोती हुई एडवर्ड के पास आकर बोली कि मैं अपने स्वार्थ को बीच में नहीं आने दूंगी। मुझे बेचारे जॉर्ज से विवाह करके उसे सुधारना चाहिए। इसमें मेरा दिल टूटेगा, लेकिन कर्तव्य तो कर्तव्य है। लिहाजा उसने जॉर्ज से शादी कर ली। इससे एडवर्ड का दिल लगभग टूट ही गया। उस लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ। लेकिन एडवर्ड सँभल गया और उसने एक दूसरी लड़की से शादी कर ली। वह भी बहुत अच्छी थी।

दोनों परिवारों के बच्चे हुए। मेरी ने अपने पति को सुधारने की बहुत कोशिशें कीं। लेकिन वह काम अत्यंत कठिन था। जॉर्ज की पीने की लत बरकरार रही। वह मेरी और बच्चे के साथ बहुत बुरा सुलूक करता। बहुत से भलेमानसों ने जॉर्ज को समझाया। वह उनकी बातें यह सोचकर चुपचाप सुनता कि ये अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं, लेकिन सुधरा जरा नहीं। उसने एक और ऐब पाल लिया। वह कंपनी के नाम पर कर्ज ले लेता और चोरी-छिपे जुआ खेलता। उसने यह काम इतनी सफलता से किया कि जरा भी भनक न लगे। एक दिन नौबत यहाँ तक आ गई कि शेरिफ ने कंपनी को जब्त कर लिया और दोनों भाई कंगाल हो गए।

अब बुरे दिन थे और वे बदतर हो गए। एडवर्ड एक दुछत्ती में चला गया और रात-दिन काम की तलाश में सड़कों पर मारा-मारा फिरने लगा। उसने बहुत प्रार्थना की, लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ। वह हैरान था कि उसका चेहरा कितनी जल्दी अपरिचित और अनचाहा हो गया था। उसे यह देखकर बहुत दुःख पहुँचा कि लोगों को पहले उसमें जो दिलचस्पी थी, वह कितनी तेजी से खत्म हो गई थी। लेकिन उसे काम तो चाहिए था। लिहाजा अपमान का चूंट पीकर काम की तलाश में भटकता रहा। आखिरकार उसे ईंटें ढोने का काम मिल गया तो उसने अपने भाग्य को धन्यवाद दिया। अब न कोई उसका परिचित था, न उसकी परवाह करता था। वह जिन नैतिक संगठनों को चंदा दिया करता था, अब वहाँ अपना सहयोग निभाने लायक नहीं रहा था। अत: उसका नाम उन सूचियों में से भी हटा दिया गया और उसे यह पीड़ा भी सहन करनी पड़ी।

जितनी तेजी से लोगों की दिलचस्पी एडवर्ड में खत्म हुई थी, उतनी ही तेजी से जॉर्ज में बढ़ रही थी। एक दिन वह नशे में धुत नाले में पड़ा पाया गया। महिलाओं की एक मद्य निषेध संस्था की सदस्या ने उसे वहाँ से निकलवाया, उसे अपनी शरण में लिया, उसके लिए चंदा किया, उसे एक सप्ताह तक नशे से बचाए रखा और उसे काम दिलाया। इसका पूरा ब्योरा प्रकाशित भी हुआ।

उस बेचारे के प्रति जनता का ध्यान आकर्षित हुआ। बहुत से भले लोग उसे सुधारने के लिए सहायता को आए और उसका उत्साह बढ़ाने की चेष्टा की। उसने एक महीने तक शराब की एक बूंद भी नहीं चखी और भले लोगों का चहेता बन गया। उसके बाद वह फिर नाले में पड़ा पाया गया और लोगों को उसकी दशा पर बहुत दुःख हुआ। पर भली महिलाओं की संस्था ने एक बार फिर उसे वहाँ से निकलवाया। उन्होंने उसे नहला-धुलाकर साफ-सुथरा किया, उसके पछतावे की दास्तान सुनी और एक बार फिर उसे काम दिलवाया। इसका भी विवरण प्रकाशित हुआ। संघर्ष करनेवाले दरिंदे के सुधार की कहानी सुनकर सारे शहर की आँखें खुशी के आँसुओं से छलक उठीं। एक समारोह का आयोजन किया गया। भाषण हुए, जिनके अंत में अध्यक्ष ने घोषणा की कि अब कुछ संगीत होगा और फिर आप लोग वह दृश्य देखेंगे, जो आप में से बहुत से लोग भीगी आँखों के बिना न देख सकेंगे।

कुछ समय के बाद लाल कमरबंद वाली महिला संस्था की सदस्यों की अगवानी में जॉर्ज बेंटन मंच पर आया। उसने शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर किए और वातावरण तालियों से गूंज उठा। हर कोई खुशी का इजहार कर रहा था। समारोह की समाप्ति पर सबने नवपरिवर्तित से हाथ मिलाया। अगले दिन उसकी तनख्वाह बढ़ा दी गई। शहर भर में उसकी चर्चा थी और समाचार-पत्रों में भी इसका ब्योरा प्रकाशित हुआ।

जॉर्ज बेंटन नियमित रूप से हर तीन महीने में एक बार नाले में गिरता और वहाँ से निकालकर लाया जाता। उसे फिर से सुधारा जाता और उसके लिए अच्छा काम खोजा जाता। अंतत: उसे इलाके में जगह-जगह सुधरे पियक्कड़ के बारे में भाषण देने के लिए ले जाया गया। उसने बहुत भलाई की।

अपने बिना नशे के अंतरालों में वह स्थानीय स्तर पर इतना लोकप्रिय हो गया था कि एक सम्मानित नागरिक के नाम पर बैंक से बड़ी रकम लेने में सफल हो गया। उसे इस जालसाजी के परिणाम से बचाने के लिए बहुत जोर लगाया गया, जो आंशिक रूप से सफल रहा। उसे सिर्फ दो साल की ही सजा मिली। एक साल बीतने पर परोपकारियों के अथक प्रयत्न सफल हुए और वह अपनी जेब में माफीनामा लेकर बंदीगृह से आजाद हुआ। बंदियों के मित्र संस्थावाले उसे जेल के दरवाजे पर ही अच्छी तनख्वाहवाले काम के प्रस्ताव के साथ मिले। उन्होंने उसे सलाह, हौसला और सहायता दी। एडवर्ड मिल्स ने भी एक बार काम के लिए बंदियों की मित्र संस्था को पत्र लिखा था। लेकिन वह इस जवाब के साथ लौटा दिया गया कि क्या तुम कभी बंदी रहे हो?'

जब यह सब चल रहा था, एडवर्ड मिल्स धीरे-धीरे मुसीबतों से उबर रहा था। वह अब भी गरीब तो था, लेकिन एक बैंक में खजांची के पद पर पर्याप्त वेतन पा रहा था। जॉर्ज बेंटन कभी उसके पास भी नहीं फटका और न ही कभी उसका हाल-चाल जानने की कोशिश की। जॉर्ज शहर से लंबे समय तक गायब रहा करता। उसके बारे में खराब खबरें मिलतीं, लेकिन कुछ निश्चित नहीं था।

सर्दियों की एक रात में कुछ नकाबपोश चोर बैंक में घुसे। उन्होंने वहाँ एडवर्ड मिल्स को अकेले पाया। उन्होंने उससे कहा कि तिजोरी का ताला खोलनेवाला नंबर बताए। किंतु उसने मना कर दिया। उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी। उसने कहा कि उसके मालिक उसपर विश्वास करते हैं और वह उनके साथ विश्वासघात नहीं कर सकता। अगर मरना ही है तो वह मरने को तैयार है, लेकिन जीते-जी वफादार रहेगा और नंबर नहीं बताएगा। चोरों ने उसकी हत्या कर दी।

गुप्तचरों ने अपराधियों को पकड़ लिया। उनका मुखिया जॉर्ज बेंटन था। मृतक की विधवा और बच्चों के लिए व्यापक स्तर पर सहानुभूति अनुभव की गई। क्षेत्र के सभी समाचार-पत्रों ने अनुरोध किया कि मारे गए खजांची की वीरता और ईमानदारी की प्रशंसा-स्वरूप परिवार को नकद सहायता देकर उसकी मदद की जाए। फलस्वरूप उनके लिए पाँच सौ डालर इकट्ठे हुए, यानी औसतन सेंट के तीन बटा आठवाँ हिस्सा प्रति बैंक के हिसाब से। खजांची के अपने बैंक ने उसके बारे में यह घोषणा करने की कृतज्ञता दिखाई कि उसके अपने खाते सही नहीं थे और भेद खुल जाने तथा सजा से बचने के डर से उसने सोंटा मारकर अपना सिर खुद फोड़ लिया था।

जॉर्ज बेंटन के मुकदमे की सुनवाई आरंभ हुई। तब सब लोग बेचारे जॉर्ज के भले की चिंता में पड़कर विधवा और अनाथ बच्चों को भूल गए। उसे बचाने के लिए पैसे और असर-रसूख से जो कुछ किया जा सकता था, किया गया। लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। उसे मौत की सजा मिली। उसके बाद गवर्नर के पास माफी देने के अनेक प्रार्थना-पत्र आए। वे प्रार्थना-पत्र आँखों में आँसू भरी लड़कियों ने दिए, गम में डूबी वृद्ध नौकरानियों ने दिए, दयालु विधवाओं के प्रतिनिधिमंडल ने दिए और अनाथ बच्चों के झुंड ने दिए। लेकिन गवर्नर टस से मस न हुए।

अब जॉर्ज बेंटन को धार्मिक अनुभूति हुई। सर्वत्र यह खुश खबरी फैल गई। उसके बाद से उसकी कोठरी लड़कियों, औरतों व ताजे फूलों से भरी रहती। सारा दिन वहाँ भजन गाने, प्रार्थनाएँ करने, प्रभु का धन्यवाद करने और आँसू बहाने में बीतता। पाँच मिनट के अल्पाहार के अंतराल के सिवा उसमें कोई व्यवधान न होता।

इस तरह का सिलसिला ठीक फाँसीवाले दिन तक चला। वह बड़े गर्व से काली टोपी के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ा। उसके लिए धार्मिक दर्शकों की सर्वश्रेष्ठ भीड़ आँसू बहा रही थी। उसकी कब्र पर कुछ अरसे तक रोज ताजे फूल चढ़ाए जाते थे। उसकी कब्र के शिलालेख पर लिखा था-'उसने अच्छा संघर्ष किया।'

उस बहादुर खजांची की कब्र के शिलालेख पर लिखा था-'पवित्र, ईमानदार, सौम्य, परिश्रमी, दूसरों का ध्यान रखनेवाले बनो तो तुम...'

किसी को पता नहीं किसने उसे इस तरह अधूरा छोड़ देने का आदेश दिया था। लेकिन ऐसा ही किया गया।

बताया जाता है कि खजांची का परिवार बड़ी तंगी में गुजारा कर रहा है। लेकिन बहुत से प्रशंसक नहीं चाहते थे कि इतनी बहादुरी व सच्चाई का कारनामा अपुरस्कृत रह जाए। उन्होंने चालीस हजार डॉलर एकत्र करके उसकी याद में एक गिरजाघर बनाया।

(अनुवाद : सुशील कपूर)

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