दुष्ट कौआ : बिहार की लोक-कथा
Dusht Kaua : Lok-Katha (Bihar)
एक बटोही कहीं जा रहा था। उसके पास तीर और धनुष भी था। इस तरह से वह एक शिकारी मालूम पड़ता था। बैशाख का महीना था। चलते-चलते जब बटोही थक गया तो वह एक पेड़ की घनी छाँव के नीचे अपना गमछा बिछा कर सो गया।
बटोही जब गमछा बिछाकर सो रहा था तब पेड़ में एक जगह पत्ते न होने के कारण उस जगह से आ रही धूप ठीक बटोही के चेहरे पर पड़ रही थी।
उसी पेड़ पर एक राजहंस भी सुस्ता रहा था, आराम कर रहा था। उसने जब बटोही के चेहरे पर धूप पड़ते देखा तब उसे दया आ गई। उसने अपना पंख फैला दिया और जहाँ से धूप आ रही थी वह अब रुक गई। अब बटोही के चेहरे पर धूप नहीं आ रही थी। इससे वह और गाढ़ी नींद में सो गया।
उसी पेड़ पर एक कौआ भी बैठा था। वह स्वभाव से बहुत दुष्ट था। उसे निश्चित भाव से पेड़ की छाँव में सोए बटोही का सुख देखा नहीं जा रहा था। उसने बटोही के मुँह पर बीट कर दी और उड़ गया।
बीट पड़ते ही बटोही जग गया। उसने उस पक्षी को मारने के लिए अपना तीर-धनुष उठा लिया। बटोही ने जब ऊपर देखा तब उसके ठीक ऊपर राजहंस बैठा दिख गया। उसने सोचा कि इसी पक्षी ने मेरे मुँह के ऊपर बीट की है।
बटोही ने तीर-धनुष तानकर निशाना लगाया और राजहंस को बेध दिया। यहाँ दोष कौआ का था और मारा गया राजहंस।
इसलिए कहा जाता है कि आजकल के ज़माने में किसी का भला नहीं करना चाहिए और यदि भलाई करनी है तो सोच-समझकर कीजिए और दुष्ट लोगों से बचकर रहिए।
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)