दु:ख का उत्सव (ओड़िआ कहानी) : दाशरथि भूयाँ

Dukh Ka Utsav (Odia Story) : Dasarathi Bhuiyan

गाँव-शहरों में चारों ओर सन्नाटा। चौक, बाजार, गली, महल्लों में श्मशान का सूनापन। हर तरफ नीरवता का दबदबा और निस्तब्धता का करुण चित्र। हर तरफ फैल गया था कोरोना महामारी के जीवाणु का आतंक। सभी हताश और हैरान। कोरोना से मौत की घटनाएँ दिन पर दिन बढ़ती जा रही थीं। संक्रमण धीरे-धीरे उग्र होता जा रहा था और मौत की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। रईस-गरीब, विद्वान-मूर्ख, नेता-अभिनेता, छोटा-बड़ा कोई नहीं छूट पा रहा था। बीमारी और मौत के साथ-साथ कोरोना ने ढेर सारे परिवारों को तबाह कर डाला था।

शहर के निचले इलाके में रह रहे सुरेश पिछले पाँच दिनों से बुखार से पीड़ित थे । उनके चेहरे पर भय और पीड़ा की गहरी छाप साफ नजर आ रही थी। वे महसूस कर रहे थे कि कोरोना के लक्षण उनमें हैं। मौत की संभावना उन्हें तीखी छुरी की तरह चुभ रही थी। उन्हें लग रहा था मानो घर के सभी असबाब उन्हें घेर कर भूतों की तरह नाच रहे हों। पंखे की सरसराहट उन्हें चक्रबाती तूफान के ताण्डव की तरह लग रही थी। मकान उन्हें अदृश्य शत्रु और अनजान भय से भरा हुआ लग रहा था।

बदन से बुखार छूट नहीं रहा था । उनके मन में शंका उपज रही थी कि उनकी कहीं अकाल मृत्यु न हो जाए। धत्! उन्हें कुछ अच्छा लग नहीं रहा है। अखबार पढ़ो, टीवी देखो, दोस्तों के साथ मोबाइल पर घण्टों गपशप करो, फिर भी उन्हें अच्छा लग नहीं रहा है। न खाना ! न पीना! कुछ भी उन्हें अच्छा लग नहीं रहा है। केवल आसन्न मृत्यु की बात उनके मन में समा गयी है। उफ ! कैसी भयंकर पीड़ा से छटपटाते हुए वे मरेंगे। सुरेश की पीड़ा को महसूस करते हुए पत्नी अनुपमा ने कहा कि क्या अस्पताल चलें? कोविड अस्पताल की बात सुनते ही सुरेश सहम गये और मना किया। कहा-सुना है कि वहाँ संक्रमण के फैलने के डर से मरीज को जान-बूझ कर इलाज में लापरवाही बरतते हुए मौत के घाट उतार देते हैं । अनुरोध करते हुए कहा कि आसपड़ोश के लोगों को मत बताओ। बाहर से दवाई ले आओ, जैसे किसी की नजर तुम पर न पड़े। पत्नी स्कूटी लेकर दवाई लाने गइर्। चारपाई पर पड़े-पड़े सुरेश आसन्न मृत्यु की बात सोचते रहे। उनके मन में एक समानान्तर ब्रह्माण्ड पैदा हुआ। एक और जगत पनपने लगा, जहाँ सिर्फ मृत्यु की पृष्ठभूमि में सारे दृश्य उभर रहे थे। जीवन अर्थहीन लग रहा था। वे चारपाई से उठे और कोरोना में मरने वालों की सूचना को संग्रह करने के लिए पुराने अखबारों को पलटने लगे। यू-ट्यूब से जुड़ी हुई विडियो देखने लगे। फिर टी.वी लगाकर कोरोना की खबरें सुनते हुए सोचने लगे कि उनकी मृत्यु सुनिश्चित है।

सभी संभावित दृश्य उन्हें विचलित कर रहे थे। संभावित मृत्यु के साथ कुछ लोगों को वे अपने जीवन के साथ जबरदस्ती जोड़ रहे थे, जो उनके शून्य स्थान को पूरा करेंगे। पत्नी की दूसरी शादी की कल्पना। उनकी लाश को किसी के छूने की विड़म्बना। अग्नि में जलाने के बदले मिट्टी में गाड़े जाने की कल्पना, उनके शत्रुओंके खुश होने की कल्पना.. आदि आदि...।

घंटी की आवाज सुनते ही उनकी भावना के आगे एक पूर्ण विराम खिंच गया। पत्नी अनुपमा दवाई लेकर लौटी थीं। सुरेश की साँसें तीव्र से तीव्रतर होती जा रही थीं। पत्नी ने ढा़़ड़स बँधाते हुए कहा- हम तो मामूली इंसान हैं। आषाढ़ के महीने में स्वयं ठाकुर जगन्नाथ जी को हर साल रथयात्रा से पन्द्र दिन पहले बुखार होता है और वे एक रुद्ध कोठरी में लेटे रहते हैं। यह सीजॅन का बुखार है। डरने का कोई कारण नहीं है। जगन्नाथ जी हमारी सहायता करेंगे। लेकिन सुनो! सरकार के कानून के अनुसार दवाई बेचने वाले दुकानदार ने बिना परिचय-पत्र के दवाई देने से मना कर दिया। परिचय-पत्र देकर दवाई खरीदने के बाद उसने कहा कि हमारे घर स्वास्थ्य कर्मी आयेंगे।

स्वास्थ्य कर्मी के आने की बात सुनकर सुरेश और ज्यादा घबरा गये। डर के मारे काँपने लगे। उन्हें कोविड अस्पताल ले लिया जाएगा। इलाज में लापरवाही बरतते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा। वे जिस बात से डर रहे थे, अन्त में वही हुआ। कुछ घंटों बाद स्वास्थ्य कर्मी पहुँच कर उन्हें नजदीक के स्वाव परीक्षण केन्द्र में परीक्षण के लिए ले गये। परीक्षण के बाद रिपोर्ट के आने तक उन्हें घर में ही रह कर इलाज कराने की सलाह दी।

उन्हें कोरोना होने की अफवाह महल्ले में फैल गयी। स्वाव परीक्षण केन्द्र से लौटते समय रास्ते में जो भी मिला सबको मुस्कराते हुए देखा। लेकिन उनकी मुस्कान के उत्तर में किसी के होंठांे पर मुस्कान की क्षीण रेखा भी नहीं फैली। जिस किसीने उन्हें देखा उल्टा मुँह बिदका लिया। किसी किसीने न देखने का बहाना बनाया। उसके अगले दिन से ही दूधवाले, अखबार वाले और सब्जीवाले ने घर आना बन्द कर दिया। महल्ले के राशन वाले ने उन्हें राशन देने से मना कर दिया। उन पर एक किस्म की बिना घोषणा की पाबन्दी लगा दी गयी। महल्ले के लोगों के बरताब से मौत के प्रति उनका भय और ज्यादा बढ़ गया।

सुरेश मध्याह्न भोजन के बाद आराम कर रहे थे। उन्हें नींद आ गयी थी। नींद में एक भयंकर सपना देखा कि वे दौड़ रहे हैं। काले-काले, मोटे-मोटे.. लम्बे-लम्बे नाखून वाले..लम्बी-लम्बी साँसों से शोले उगलने वाले.. ड्रैगन की तरह काँटेदार मुँहवाले..खून से सने लम्बे-लम्बे दान्तों वाले...। सिर पर भैंस की तरह सींग वाले एक भयंकर राक्षस ने दौड़ते हुए उन्हें अपने कब्जे में कर लिया है। सुरेश के दोनों पैरों को पकड़ कर चक्राकार घुमाते हुए वह राक्षस खेल रहा है। सुरेश की नाक से खून की बूँदें छितर रही हैं ...। फिर ठहाके लगाते हुए उस राक्षस ने सुरेश को उछालते हुए फेंक दिया है...। सुरेश तनिक दूर धड़ाम से जा गिरते हैं। गले में मुण्डों की माला डाले हाथ में बारह हाथ लम्बी तलवार लिए कई राक्षसियाँ उनका रास्ता रोक रही हैं। राक्षसियों के चेहरे उनके महल्ले की परिचित महिलाओंके चेहरे में तबदील होते रहे हैं ।

उनके कब्जे से मुक्त होने के लिए सुरेश अपनी बाँहों को हवा में डाँड़ की तरह लहराते हुए शून्य में उड़ रहे हैं। वे जितना आगे की ओर उड़ते जा रहे हैं, उन्हें सिर्फ गहरे गड्ढों मे जलते हुए ज्वालामुखी दिखाई पड़ रहे हैं, जिनसे दहकते हुए लाल अंगारों की तरह जलता हुआ लावा निकल रहा है। उसमें अपने यार-दोस्तों के चेहरे साफ नजर आ रहे हैं। सभी भयंकर ठहाके लगा रहे हें। वे उड़ते हुए और आगे की ओर जा रहे हैं। अब उनका रास्ता रोक रहे हैं, उनके ही कार्यालय के परम शत्रु, विभाग के अधिकारी नित्यानन्द। नित्यानन्द के गले में है मुण्डों की माला, हाथ में जादू की हड्डी और माथे पर सिन्दूर। सुरेश आगे की ओर..काफी आगे की ओर उड़ते जा रहे हैं...ब्रह्माण्ड के बाहर...फिर वे गिर पड़ते हैं पाताल में। वे विकल होकर चीख रहे हैं... मैया-मैया..उनकी चीख-पुकार सुन कर सफेद साड़ी में बिखरे हुए सफेद बालों वाली एक बूढ़ी राक्षसी उन्हें गोद में लेने के लिए बाँहें फैला कर आ रही है। बुढ़िया की दोनों आँखें माथे पर सटी हुई हैं। मेले की झाँकी में दिखने वाली राक्षसी की लाल बत्ती जैसी आँखें...उन आँखों पर पलकें नहीं है। गहरे लाल रंग की आँखें अंगारों की तरह दमक रही हैं। अब सुरेश के मुँह से बात निकल नहीं रही है.. वे कोरोना .कोरोना....कोरोना.... कहते हुए चीख रहे हैं। लेकिन उनकी चीख किसी को सुनाई नहीं पड़ रही है।

पत्नी अनुपमा ने उन्हें हल्का-सा झकझोरते हुए कहा- “नींद में इस तरह क्यों बड़बड़ा रहे हो। सुरेश की नींद टूटी। पत्नी ने बदन पर हाथ रख कर देखा कि बदन पसीने से लथपथ हो रहा है, पर बदन बिलकुल तप नहीं रहा है। सुरेश ने कहा- एक बुरा सपना देखा! उस भय से शायद...। ”

उसी पल घर की घण्टी बज उठी। कौन हो सकता है। संदेह में दरवाजा खोल कर देखा। स्वाव परीक्षण केन्द्र से रिपोर्ट लेकर एक कोरोना-योद्धा खड़े हुए थे। सुरेश के कुछ बोलने से पहले योद्धा ने कहा-बधाई हो। आपकी नेगॅटिव रिपोर्ट आयी है। सुरेश खुशी के मारे नाच उठे। खुशी से उनके मुँह से निकल पड़ा- “मैंने कोविड़ को हराया है..हाँ..हाँ.. मैंने एक अपरिचित शत्रु कोरोना को हराया है।”

कोरोना की दूसरी लहर फैलने लगी। सरकार ने लॉक़ डाउन की घोषणा की। लॉक़ डाउन की खबर सुनते ही दस रुपये में एक किलो मिलने वाला आलू चालीस रुपये में मिलने लगा। सात सौ रुपये रुका आक्सि मीटर ग्यारह सौ में, पाँच हजार रुपये का रेमडेसिविर इंजेक्शॉन बीस हजार में बिकने लगा। अम्लजान-सिलिंङॅर की कालाबाजारी हुई। लाशों को जलाने की लक़ड़ियों में भी बेईमानी नजर आने लगी। हर जगह लूट चल रही थी। डाक्टरों ने जैसे ही विटामिन सी खाने की सलाह दी, पचास रुपये में एक किलो मिलने वाला नींबू अचानक दो सौ में बिकने लगा। तीस रुपये का डाभ सौ रुपये में मिलने लगा। ऐंम्ब्युलॅन्स वालों ने कोविड मरीज को अस्पताल से दस किलोमिटर दूर ले जाने के लिए पन्द्र हजार,लाश को ले जाने के लिए चालीस हजार की माँग की। इंसान की लाश से मांस नोचने वाले गिद्धों की तरह हो गये इंसान। हर कहीं इंसानियत गायब थी। कोरोना मरीज के रिश्तेदारों ने लाश को कंधा देने से इनकार कर दिया। गाँववालों ने कोरोना की आशंका से लाशों को गाँव के श्मशान में घुसने नहीं दिया। अंतिम समय में भी अपने प्रिय व्यक्तियों से मिलना संभव नहीं हो सका। इन सब घटनाओंसे यह साफ झलक रहा था कि मनुष्य कितना असहाय है और उसके हाथ कितने असमर्थ ।

माताएँ रोती रहीं पर अपने बच्चे के पास जा नहीं सकीं। अस्पताल में भरती होने वाले बड़े-बूढ़ों से परिवार के लोग मिल नहीं सके। कोरोना ने कई लोगों को अपने परिवार से दूर धकेल दिया था। कोरोना में मरने वालों का अंतिम संस्कार रीति- नीति के साथ किया नहीं जा सका। जीवन-मृत्यु, सुख-दु:ख, हँसी-आँसू, हानि-लाभ ये सब जीवन का एक-एक हिस्सा हैं। कभी जीवन में खुशी का प्रकाश फैल जाता है, तो कभी जीवन में दु:ख के बादल छा जाते हैं।

कोरोना को पराजित करने के कारण सुरेश खुश थे। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। ऐसी परिस्थिति में सरकार के कोविड़-टीका ने मन में आशा का संचार किया। सुरेश ने टीका की दोनों डोज ले ली, इसलिए मन से कोरोना का भय पूरी तरह दूर हो गया। वे खुश थे कि उन्हें फिर कोरोना नहीं होगा। लेकिन खुशी और मस्ती के परिवेश पर दु:ख के काले बादल मँडराने लगे। विधि की इच्छा कुछ अलग ही थी। अचानक एक दिन उन्होंने महसूस किया कि उन्हें बुखार हुआ है। परीक्षण से पता चला कि वे कोरोना पॉजटिव हैं। वे नगर निगम के एक अस्पताल में भरती हो गये । लेकिन अब की बार वे जीवन-संघर्ष में हार गये। कोरोना रूपी काले बादलों ने उनके परिवार में अंधकार बिखेर दिया। उफ्! कैसा भयंकर दु:ख था। नियति का यह खेल कैसा है? अनुपमा ने प्रेम-विवाह किया था। वह भी दूसरी जाति में। इसलिए वह न अपने पिता के घर जा पा रही थांr, न अपने ससुर के घर। दोनों परिवारों ने उन्हंे स्वीकार नहीं किया था। अपनी नन्ही बिटिया और पति के साथ वे शहर में रह रही थीं। पति को खोने के बाद पत्नी अनुपमा अपना मानसिक संतुलन खो बैठीं और पागल हो गयीं। वे अब क्यों जीवित रहेंगी। अपने जीवन के प्रति घोर वितृष्णा उपजने लगी। अब किसीके लिए उनकी आवश्यकता नहीं हैँ। उन्होंने सोच लिया कि उनके भाग्य का सूरज डूब गया है और उनके भविष्य में अन्धकार के सिवा कुछ भी नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्होंने खुद को खत्म करने की बात सोच ली।

सावन का महीना था। मूसलाधार वर्षा के कारण हहराती नदी दोनों तटों को पूरी तरह लाँघते हुए बह रही थी। आकाश में बादल गरज रहे थे और बीच-बीच में बिजली काैंध रही थी। ऐसी एक दुखद संध्या में अनुपमा पास ही एक बरगद के पेड़ के मण्डप पर नन्ही बिटिया को सुलाकर, नदी में कूद कर आत्महत्या करने जा रही थीं। लेकिन कूदने के लिये नदी के किनारे पहुँचते ही किसी की दो शक्तिशाली भुजाओंने उन्हें रोक दिया। तब बिजली कौंध उठी और उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें पकड़ रखा है।

उस वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें इस निराशा का कारण पूछा। अनुपमा ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया। सब कुछ सुनने के बाद वृद्ध व्यक्ति ठहाके लगाने लगे और कहा-“इसका मतलब यह कि तुम ने सोच लिया था कि इससे पहले तुम सुखी थीं ? ”

अनुपमा ने कहा-“हाँ, मेरे भाग्य का सूरज पूरी तरह प्रकाश से जगमगा रहा था और अब मेरे जीवन में अन्धकार कार के सिवा और कुछ भी नहीं है। ”

इसके बाद वृद्ध व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा-“ दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिन। जैसे दिन बारह घण्टे से ज्यादा नहीं रहता, रात भी कैसे रहेगी? परिवर्तन जीवन का नियम है। ध्यान देकर सुनो! जब अच्छे दिन हमेशा रहते नहीं है, तो बुरे दिन कैसे रहेंगे। जो व्यक्ति इस सत्य को जानता है, वह खुशीr में खुश नहीं होता है ओर नही दु:ख में दु:खी। उनका जीवन एक ठोस पत्थर की तरह हो जाता है, जो बरसात हो या कड़ी धूप एक समान रहता है। जो सुख और दु:ख को समान रूप से ग्रहण करता है, वह खुद को अच्छी तरह पहचानता है। सुख-दु:ख आते हैं और जाते हैं । जो आया है, वह जायेगा ही। जो चला गया है, वह फिर से आयेगा। ”

वृद्ध व्यक्ति ने अपना परिचय-पत्र उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा-“मेरा एक विशेष अनुरोध है! मैं आपको फोन करूँगा ओर जिस जगह कहूँगा, कृपया वहाँ आइएगा। आपसे कुछ महत्वपूर्ण बातें करनी है।”

इतने में बिटिया के रोने की आवाज सुनकर अनुपमा दौड़ते हुए गयी और उसे गोद में उठा कर खूब रोने लगीं। वे कितनी निठुर हो गयी थीं। वृद्ध व्यक्ति की ढाड़स से भरी बातें सुनकर अनुपमा घर लौटीं ।

पति की मृत्यु के बाद म्रियमाण होकर अनुपमा अत्महत्या करने के लिए जा रही थीं। भगवान के रूप में आकर उस वृद्ध ने उनका उद्धार किया । उस महान् पुरुष का अशेष धन्यवाद।

एक दिन उस महान् पुरुष ने एक निश्चित स्थान पर उन्हें पहुँचने के लिये फोन पर अनुरोध किया। शाम को वे उस निश्चित स्थान पर पहुँची। एक बहुत बड़ी हवेली में एक बड़ा-सा मंच सजा हुआ था। कुर्सियों पर गुलदस्ते रख कर उन पर सबका नाम लिखा गया था। परिचारिका से पूछ कर वह अपने स्थान पर जा बैठीं। उनकी तरह कई दुखियारे लोग वहाँ इकट्ठे हुए थे।

सही समय पर सभा आरंभ हुई। वह महान् पुरुष मंच पर जाते ही कह उठे-“शुभ संध्या।”

फिर उनका भाषण शुरू हुआ- “मेरे प्रिय मनुष्यों। मैंने सबको यहाँ क्यों बुलाया, इसका पता आप लोगों को नहीं होगा। अलग-अलग कारणों से आप लोगों को लगता है कि आप सभी विफल और पराजित हैं। लेकिन... आप लोग हार चुकने के बावजूद विजेता हैं। आप लोग समाज को यह संदेश दीजिए कि आप सभी विजेता हैं। आप लोगों को यह प्रमाणित करना होगा कि यह जीवन सबसे कीमती हीरा है। विफलता एक विराम चिन्ह नहीं है। दुःखएक स्थायी स्थिति नहीं है। आप अपने बचपन की बातों को याद कीजिए। मेले या बाजार से जरूर गुब्बारा खरीदा होगा। अगले दिन गुब्बारे का हाल क्या होता था, जरूर गौर किया होगा। काफी हिफाजत से रखने के बाद भी उससे हवा रिसते हुए वह ढीला हो जाता था। हवा आजाद रहती हैं उसे हम गुब्बारे में जितना भी कैद करके रखें, वह कुछ समय के बाद निकल जाती है। आप किसी भी दु:ख, जंजाल, मोह या माया में कैद होकर रह नहीं सकते। आप लोग वहाँ से धीरे-धीरे मुक्त हो जाएँगे।”

उसके बाद उस महान पुरुष ने प्रश्न पूछा- “एक व्यक्ति हैं, जो कई चुनावों में पराजित हुए, फिर भी वे अमेरिका के सर्वकालीन और प्रिय राष्ट्रपति रहे। उनका नाम क्या है? ”

हिस्सा लेने वालों में से किसी एक ने कहा-“ अब्रहाम लिंकन।”

फिर एक बार उन्होंने प्रश्न पूछा- “एक व्यक्ति अपने कॅरिअर में १०० से ज्यादा सट् गँवा चुके थे, करीब ३०० मैचों में विफल हुए थे, २६ बार जीत कर भी सट् गँवा चुके थे। आप जानते हैं? यह बात किस श्रेष्ठ बास्किट के खिलाड़ी की है? ”

हिस्सा लेने वालों में से और एक की आवाज तैरती हुई आयी-“माइकेल जोर्डान।” महान् पुरुष ने तीसरा प्रश्न पूछ़ा-“एक बालक रामेश्वरम् में अखबार बेच रहा था। वह मिसाइल मेन आफ इंडिया के नाम से परिचित हुआ। वे कौन हैं? ”

हिस्सा लेने वालों में से एक और आवाज आयी-“ अबदुल कलाम।”

महान् पुरुष ने एक और प्रश्न पूछा - “ तुम उस युवक के बारे में जानते हो... जिन्हें एक अखबार के दफ़्तर से हटा दिया गया था। किन्तु बाद में अमेरिका की ऐनिमेशन इंडॅस्ट्रि और काटून उत्पादन के अग्रदूत रहे। वे कौन है? ”

हिस्सा लेने वालों में से एक और आवाज आयी- “वाल्टर एलियस डिजनी।”

महान् पुरुष ने फिर से पूछा- जो कंप्यूटर या ई-“मेल या इण्टरनेट के बारे में कुछ नहीं जानते थे, फिर भी इण्टरनेट देखने के बाद उनकी पहली प्रतिकिया थी कि वे भी कुछ स्मरणीय कार्य कर सकते हैं। वे दुनिया के सबसे बड़े धनी व्यक्ति हुए । उन्होंने चीन को विश्वव्यापी वेब् लाने का एक सुअवसर प्रदान किया था। वे कौन हैं? ”

कुछ देर तक नीरवता छा गयी। फिर, हिस्सा लेने वालों में से एक और आवाज आयी- “ज्याक मा। ”

महान् पुरुष ने अंतिम प्रश्न पूछा - “एक व्यक्ति का बचपन बहुत कष्टदायक था। जन्म के बाद उनकी माँ को मानसिक अस्पताल भेज दिया गया था और उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उन्होंने खूब मेहनत करके खुद को और अपने भाई को पाला । वे मूक फिल्म युग के विश्व के सबसे बड़े सफल हास्य अभिनेता रहे।”

प्रश्न के खत्म होते ही फौरन एक उत्तर अया-“ चार्लि चापलिन। महान् पुरुष ने अपना भाषण जारी रखा- आवार ग्रेटेस्ट ग्लोरि इज नेवर फालिंग, बट इन राइजिंग एवरि टाइम उइ फाल। अर्थात, हमारा सबसे बड़ा गौरव है-कभी भी गिरेंगे नहीं, बल्कि गिरते-गिरते उठेंगे। सफलता को मनाना अच्छा है, लेकिन विफलता से मिलने वाली सीख के प्रति ध्यान देना ज्यादा महत्वपूर्ण है। विफल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए... यही वास्तव में विजय का संकेत है.. ..। इसलिए आप लोग ही कहिए कि आज का असली विजेता कौन है।”

सबने एक ही अवाज में जोर से उतर दिया-“हम हैं।”

उस महान् पुरुष को सुनते समय वहाँ उपस्थित दु:खी लोगों के चेहेरे से दु:ख धीरे- धीरे मिटता जा रहा था और मन का हौंसला बढ़ता जा रहा था। अनुपमा ने पहली बार दु:ख के उत्सव को देखा और दुखियों के दु:ख के उत्सव को सफल होने का अनुभव किया। कड़ी शिक्षा के बाद परीक्षा, तो कभी परीक्षा के बाद शिक्षा! हाय! कैसी विचित्र है यह दुनिया।

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