सपने (कहानी) : गाय दी मोपासां

Dreams (French Story) : Guy de Maupassant

पाँच पुराने दोस्तों ने अभी- अभी एक साथ बैठकर रात का खाना खाया था । उनमें से एक लेखक था, दूसरा डॉक्टर और बाकी के तीन बिन ब्याहे अमीरजादे थे, जिनके पास कोई काम- धंधा नहीं था ।

खाने के दौरान उन्होंने तकरीबन हर विषय पर बातचीत की थी । और अब वैसी ही थकान महसूस कर रहे थे, जैसी अकसर महोत्सवों के खत्म होने पर , मेहमानों के चले जाने के बाद , मेजबान महसूस किया करते हैं । तभी उनमें से एक , जो पिछले पाँच मिनट से लगातार कतारबद्ध जलती बत्तियों से रौशन सड़क पर जाती गाडियों को निहार रहा था , अचानक बोल पड़ा-

" जब सुबह से रात तक आपके पास करने को कोई काम न हो, तो दिन बड़ा लंबा लगने लगता है । " उसकी बगल में बैठे दूसरे व्यक्ति ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, " और रात भी लंबी लगती है । मैं बहुत कम सो पाता हूँ । आमोद-प्रमोद से थक जाता हूँ । बातचीत भी नीरस लगने लगती है । व्यर्थ की इन बातों में कभी कोई नया विचार नहीं मिला। कभी कभी तो इतना गुस्सा आता है कि यह फैसला कर लेने को जी करता है - अब न किसी से बात करूँगा और ना किसी की बात सुनूँगा । समझ नहीं आता कि मैं अपनी शाम आखिर कैसे बिताऊँ । "

तभी तीसरा आलसी भी बोल पड़ा-

“ अगर कोई ऐसा उपाय बता दे, जिससे मैं दिन के दो घंटे भी खुशी- खुशी बिता सकूँ तो मैं उसे मुँह माँगी कीमत अदा करने को तैयार हूँ । "

उनके बीच बैठे लेखक ने बाहर निकलने के लिए अभी अपना ओवरकोट पहना ही था कि इन शब्दों ने उसे कुछ कहने पर मजबूर कर दिया । उन तीनों की ओर देखते हुए उसने कहा

" यदि कोई मनुष्य एक बुरी आदत ढूंढ़ निकालता है, और फिर अपने दोस्तों को उस बुरी आदत का आदी बना देता है , तो मैं समझता हूँ कि वह इनसानियत की महान् सेवा कर सकता है । उसका योगदान उस व्यक्ति से कहीं ज्यादा होगा, जो इनसान को मुक्ति दिलाने और अनंत काल तक युवा बनाए रखने का उपाय जानता हो । "

डॉक्टर इतना सुनते ही ठहाका लगाकर हँस पड़ा । उसने अपने सिगार को चबाते हुए कहा -

" ठीक कहा, लेकिन इस बुरी आदत को ढूँढ़ निकालना आसान नहीं है । जब से दुनिया बनी है, तभी से इनसान इसे ढूँढ़ रहा है, और लोगों में जिस लत को डालने की बात तुम कर रहे हो , उसके लिए भी प्रयास करता आ रहा है । मगर जो लोग धरती पर सबसे पहले आए, वे इस काम में माहिर थे। हमारा तो उनसे कोई मुकाबला ही नहीं। "

तीन आलसियों में एक बड़बड़ाया -

"कितने दुख की बात है! "

एक मिनट तक चुप रहने के बाद वह फिर बोला -

" काश! हम जब भी सोते तो गहरी नींद में सोते , उसी तरह बेसुध, जैसे थकान से चूर होने के बाद हम रात में सोते हैं । न गरमी का अहसास होता, न ठंड का पता चलता । इतनी गहरी नींद में सोते कि सपने भी नहीं आते । "

" ये सपने क्यों नहीं आते ? "

दूसरे ने इसका जवाब दिया-

" इसलिए कि सपने हमेशा सुहाने नहीं होते । वे अकसर काल्पनिक , विचित्र और असंगत होते हैं । चूँकि हम सो रहे होते हैं , इस वजह से हम वैसे सपने नहीं देख पाते जैसा हम देखना चाहते हैं । हमें दिन में जागकर सपना देखना चाहिए । "

" और तुम्हें ऐसा करने से रोकता कौन है? " लेखक ने पूछ लिया ।

डॉक्टर ने सिगार के अंतिम सिरे को फेंकते हुए कहा-

" मेरे दोस्त, जागते हुए सपने देखने के लिए तुम्हारे अंदर असीम शक्ति और अपने मन पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए । जब तुम ऐसा करोगे , तो तुम्हें बेहद थकान महसूस होगी । जहाँ तक वास्तविक सपने देखने की बात है और तो हम मन में अलौकिक सौंदर्य के जिन दृश्यों की कल्पना करते हैं , वे निश्चित रूप से संसार के सबसे अद्भुत अनुभवों में से एक हैं । लेकिन ये विचार मन में स्वाभाविक रूप से आने चाहिए । इसमें कोई जोर - जबरदस्ती या कष्ट नहीं होना चाहिए , बल्कि शरीर का एकदम आराम की अवस्था में होना जरूरी है । मैं तुम्हें इस तरीके से सपना देखने की शक्ति दे सकता हूँ , बशर्ते तुम मुझसे वादा करो कि कभी इसका गलत इस्तेमाल नहीं करोगे। "

लेखक ने कंधा उचकाते हुए कहा-

" ओह! मैं समझ गया हशीश , अफीम , हरी चाय — इन्हीं की काल्पनिक दुनिया की बात कर रहे हो न तुम । मैंने बोदलेख को पढ़ा है और उस मशहूर ड्रग को भी चखा है, जिसने मुझे एकदम कमजोर कर दिया था । "

डॉक्टर इस बात से जरा भी उत्तेजित नहीं हुआ, उसने अपनी जगह पर बैठे - बैठे ही कहा-

" नहीं, बिलकुल नहीं, मैं ईथर की बात कर रहा हूँ, ईथर की । और मैं कहूँगा कि तुम्हारे जैसे विद्वानों को भी कभी- कभार इसका इस्तेमाल करना चाहिए । "

तीनों अमीरजादे अब डॉक्टर के करीब आ चुके थे ।

उनमें से एक ने कहा-

" हमें बताओ, यह कैसे काम करता है? "

तब डॉक्टर ने उन्हें बताया -

" चलो, पहले बड़ी - बड़ी बातों को एक तरफ रख देते हैं , ठीक है न ? मैं औषधि या नैतिकता की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं मजा लेने की बात कर रहा हूँ । हर दिन तुम उन बुरी आदतों से हार मान लेते हो , जो एक दिन तुम्हारी जिंदगी खत्म कर देती हैं । मैं तुम्हें एक नई उत्तेजना का बोध कराता हूँ , क्योंकि इसे सिर्फ बुद्धिमान लोग ही समझ सकते हैं । सच कहूँ तो बेहद बुद्धिमान व्यक्ति । यह उन चीजों की तरह ही खतरनाक है , जो हमारे अंगों को अति उत्तेजित कर देते हैं , लेकिन यह है एकदम अद्भुत । मगर उससे पहले मैं यह भी बता दूँ कि इसके लिए थोड़ी तैयारी की जरूरत पड़ती है । यानी, ईथर का पूरा मजा लेने के लिए थोड़ा अभ्यास होना चाहिए ।

" ईथर का जो मजा होता है, वह हशीश, अफीम या अफीम के सत्त्व से थोड़ा अलग होता है । जैसे ही इसे सूंघना बंद कर दो तो इसका असर भी खत्म हो जाता है । इसकी बजाय दिन में सपने दिखानेवाले जो दूसरे उत्तेजक पदार्थ हैं , उनका असर कई घंटे बाद तक रहता है ।

" अब मैं इससे होनेवाले अनुभवों को जहाँ तक संभव हो , स्पष्ट रूप से समझाता हूँ । मगर ईथर को समझना इतना आसान भी नहीं है । इतना जरूर है कि इससे पैदा हुई उत्तेजना इतनी सुगम और मजेदार होती है कि ईथर के प्रभावों का अहसास तक नहीं होता ।

" सबसे पहले मैंने इसे तब रामबाण के तौर पर अपनाया जब मेरी नसों में भयानक दर्द उठा था । तब से लेकर अब तक मैं इतनी बार इसका इस्तेमाल कर चुका हूँ, कि तुम यह कह सकते हो कि मैं इसका गुलाम हो गया हूँ ।

" मेरे सिर और गरदन में तेज दर्द था । त्वचा अंगारों की तरह जल रही थी और मैं बुखार से तड़प रहा था । मैंने ईथर की एक बड़ी बोतल उठाई और लेटकर धीरे- धीरे सूंघने लगा । कुछ मिनट बाद मुझे हलकी सी बड़बड़ाहट सुनाई पड़ी । धीरे- धीरे वह गुनगुनाहट में बदल गई और मुझे अहसास हुआ कि मेरा शरीर हलका होता जा रहा है , हवा की तरह हलका । इतना हलका जैसे यह भाप बनकर हवा में उड़ रहा हो ।

" उसके बाद आलस सा आने लगा , दर्द कम नहीं हुआ था , लेकिन वैसा ही आराम मिलने लगा जैसे नींद में मिलता है और उसकी वजह से दर्द का अहसास होना बंद हो गया । यह ऐसी संवेदना थी , जिसे हम बरदाश्त करने के लिए तैयार रहते हैं । यह उस भयानक ऐंठन की तरह नहीं होता , जिसे सहने से हमारा टूटा शरीर भी इनकार कर देता है ।

" जल्दी ही वह अजीब सी और खालीपन की सुखद अनुभूति , जो मुझे अपने सीने में महसूस हो रही थी , मेरे हाथों और पैरों की तरफ जाने लगी । हाथ- पैर हलका लगने लगे । ऐसा लगा जैसे मांस और हड्डियाँ गलते जा रहे हैं और बस चमड़ी बची है । चमड़ी की वजह से ही मुझे जीने के आनंद का अहसास हो रहा था , और मैं स्वस्थ होने की संवेदना में गोते लगा रहा था । फिर लगा कि मुझे कोई कष्ट नहीं है । दर्द जा चुका था , गल चुका था, भाप बनकर उड़ चुका था । और फिर मुझे कुछ बातें सुनाई पड़ी, चार अलग आवाजों में , उनमें दो डायलॉग थे, पर मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनका मतलब क्या है । एक पल के लिए लगा कि कुछ अस्पष्ट से स्वर हैं , दूसरे ही पल मुझे एक शब्द समझ आ गया । लेकिन मैं समझ पाता कि यह वही गुनगुनाहट है जो मैं पहले सुन चुका हूँ , पर अब यह थोड़ी और तेज हो चुकी है । ना मैं सोया था, ना मैं जागा था । मैं सबकुछ समझ रहा था , महसूस कर रहा था । एक अद्भुत ऊर्जा और बौद्धिक खुशी के साथ , मैं स्पष्ट तौर पर और पूरी गहराई से तर्क -वितर्क कर पा रहा था । एक अद्भुत नशे की वजह से मेरे दिमाग के विभिन्न अंग अलग अलग हो चुके थे ।

" यह उन सपनों की तरह नहीं था , जो हशीश के सेवन से आते हैं या फिर कुछ बीमार कर देनेवाले सपने , जो अफीम के सेवन से आते हैं । इसके नशे से तर्क करने की एक सटीक क्षमता पैदा हुई , जिसकी वजह से जिंदगी के पहलुओं को देखने और समझने का एक नया नजरिया मिला। पूरे होशो-हवास के साथ, मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूँ कि यह सोचने का सही तरीका है ।

" और फिर धर्मग्रंथों की एक पुरानी तसवीर मेरे मन में उभरी । मुझे लगा जैसे मैंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान हासिल कर लिया है । जीवन के सभी रहस्य सुलझ गए हैं । मैं इतना कुछ जान गया हूँ कि मेरे पास एक नया , अद्भुत और निरुत्तर कर देनेवाला तर्क है । मेरे दिमाग में तर्क, वाद-विवाद , सबूत एक के बाद एक इकट्ठा होते चले जा रहे थे । उनके बाद उनसे भी पुख्ता सबूत और तर्क आ रहे थे। मेरा दिमाग विचारों की युद्धभूमि में तब्दील हो गया था । मैं अदम्य बौद्धिकता से युक्त एक श्रेष्ठ व्यक्ति बन गया था । मुझे अपनी शक्ति के प्रचार - प्रसार से अपार हर्ष का अनुभव हो रहा था ।

" यह सब लंबे समय तक चलता रहा, लंबे समय तक । मैं अब भी अपनी सुराही से ईथर सूंघ रहा था । अचानक मुझे लगा कि यह खाली हो चुकी है । "

चारों व्यक्ति एक साथ बोल पड़े -

" डॉक्टर , तुरंत एक लीटर ईथर की परची लिख दो! "

मगर अपना हैट पहनते हुए डॉक्टर ने कहा-

" हरगिज नहीं , जाओ किसी और से यह जहर माँग लो! "

और वह चला गया ।

देवियो और सज्जनो! इस विषय पर आप क्या सोचते हैं ?