दोस्ती के रंग : बिहार की लोक-कथा
Dosti Ke Rang : Lok-Katha (Bihar)
राम और श्याम दो बहुत घनिष्ठ मित्र थे। दोनों में दाँत-काटी रोटी की दोस्ती थी। यद्यपि राम बहुत अमीर था और श्याम बहुत ग़रीब, फिर भी दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे।
एक दिन की बात है। लंबे समय से दोनों देशाटन के लिए दूर देश निकले थे। अब उनके अपने राज्य वापस लौटने की बारी थी। रास्ता बहुत लंबा था। चलते-चलते वे दोनों एक घने वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। राम की तो आँख लग गई, पर श्याम अभी जगा हुआ था।
जब राम और श्याम वृक्ष के नीचे सो रहे थे तो वृक्ष पर दो पंछी भी कहीं से आकर बैठ गए। वे आपस में कुछ बातें करने लगे। श्याम बुद्धिमान तो था ही, वह पक्षियों की भाषा भी समझता था। वृक्ष पर बैठे दोनों पंछी जब आपस में बातचीत करने लगे तो श्याम ने सुना, एक पंछी कह रहा था, “श्याम और राम एक-दूसरे को प्यार तो ख़ूब करते हैं, परंतु कल इन दोनों का साथ छूट जाएगा।”
दूसरे पंछी ने पूछा, “कैसे?”
पहले पंछी ने बताया, “यहाँ से चलकर राम जब अपने गाँव में पहुँचेगा तो इसके पिता इसकी सवारी के लिए हाथी भेजेंगे। उस हाथी पर चढ़कर राम जब अपने घर की ओर जाने लगेगा तो हाथी इसे पटककर मार डालेगा।”
दूसरे पंछी ने कहा, “यह तो बड़े दुख की बात है। क्या किसी तरह से राम के प्राण नहीं बच सकते?”
पहले पंछी ने बताया, “यदि राम को हाथी के स्थान पर घोड़े की सवारी दी जाए तो यहाँ तो इसके प्राण बच जाएँगे, किंतु राम जब घर के फाटक पर पहुँचेगा तो फाटक टूटकर इसके सिर पर गिर पड़ेगा और राम की मृत्यु हो जाएगी।”
दूसरे पंछी ने कहा, “यह भी दुख की बात है। क्या राम के प्राण वहाँ भी किसी तरह बच नहीं सकते?”
पहले पंछी ने कहा, “यदि घर के फाटक को पहले ही गिरा दिया जाए तो वहाँ भी राम के प्राणों का ख़तरा टल जाएगा। परंतु फिर आधी रात को विषधर सर्प के डसने से राम की मृत्यु हो जाएगी।”
दूसरे पंछी ने पूछा, “क्या यहाँ भी राम की रक्षा किसी तरह हो सकती है?”
पहले पंछी ने कहा, “यदि सर्प को कोई मार दे तो राम के प्राण बच जाएँगे, किंतु यदि राम की रक्षा करने वाला किसी से इन बातों को बताएगा तो पत्थर का हो जाएगा।”
दूसरे पंछी ने पूछा, “क्या वह पत्थर से कभी मनुष्य भी बन सकेगा?”
पहले पंछी ने कहा, “यदि उस पत्थर के सामने राम के दो पुत्र बलिदान कर दिए जाएँगे तो वह पत्थर जीवित होकर मनुष्य हो जाएगा।”
दूसरे पंछी ने कहा, “अंत में फिर भी राम के दो पुत्रों को बलिदान होना ही पड़ेगा। क्या राम के दोनों पुत्रों के जीवित होने का भी कोई उपाय है?”
पहले पंछी ने कहा, “वही मनुष्य जो पत्थर-शरीर से जीवित होकर मनुष्य-शरीर धारण करेगा, यदि उन पर अपना हाथ फेर देगा तो वे जीवित हो जाएँगे।”
सुबह हो गई थी। दोनों पंछी उड़ गए। श्याम उनकी सारी बातें सुनता समझता रहा था। क्योंकि उसकी नींद ग़ायब हो गई थी। उसने राम को जगाया और गाँव की ओर दोनों चल पड़े।
दूसरे दिन राम जब अपने गाँव की सीमा में पहुँचा तो चारों ओर ख़ुशियाँ मनाई जाने लगीं। उसके पिता ने सीमा पर ही उनके लिए हाथी, घोड़ा और पालकी भेज दी, किंतु राम जब हाथी पर सवार होने लगा तो श्याम ने, जिसे पंछी की बातें याद थीं, राम से कहा, “राम, मेरी इच्छा है कि आज मैं हाथी पर चढ़कर घर तक चलूँ और तुम घोड़े पर चढ़कर चलो।”
राम ने कहा, “इसमें कौन-सी बड़ी बात है! लो, मैं घोड़े पर बैठता हूँ, तुम हाथी पर चढ़ जाओ।”
श्याम हाथी पर और राम घोड़े पर चढ़कर दोनों घर तक आए। घर के फाटक के पास पहुँचकर श्याम ने पंछी की बात याद करके राम से कहा, “राम, यदि तुम मेरी बात मानो तो यह फाटक गिरवाकर फिर घर के भीतर घुसो।”
राम श्याम की कोई भी बात नहीं टालता था! उसने पिता से कहकर घर का फाटक गिरवा दिया। इसके बाद राम और श्याम घर में गए।
उस दिन सारे गाँव में बाजे बजा-बजाकर ख़ुशियाँ मनाई जा रही थीं, किंतु श्याम का चित्त पंछी की बातों को सोचता रहा। रात को बारह बजे जब सारा गाँव सो गया तो श्याम तलवार लेकर राम के कमरे में गया। राम के कमरे के बाहर ही परिवार के अन्य सदस्य भी सो रहे थे। उन्होंने श्याम को राम के कमरे की तरफ़ जाते देखा, परंतु श्याम से राम की प्रगाढ़ मित्रता थी, इसीलिए किसी ने उसे रोका नहीं।
राम के कमरे में पहुँचकर श्याम ने देखा कि राम गहरी निद्रा में सोया पड़ा है, और एक काला साँप उसे डसने के लिए पलंग पर चढ़ रहा है।
श्याम ने खट से तलवार निकालकर साँप का सिर काट दिया। तलवार की आवाज़ सुनकर राम जाग पड़ा और बाहर सो रहे परिवार के अन्य सदस्य भी दौड़े। सभी ने श्याम के हाथ में नंगी तलवार देखकर बड़ा आश्चर्य किया। सारे घर में तहलका मच गया। परिवार के लोगों ने श्याम को राम के पिता के सामने पेश किया। क्रोध में आकर राम के पिता ने बिना कुछ सोचे-समझे श्याम को जान से मारने का हुक्म दे दिया।
श्याम रात-भर एक कमरे में बंद रहा। दूसरे दिन पूरे गाँव के सामने उसे मौत की सज़ा दी जाने वाली थी। राम श्याम के इस व्यवहार को समझ नहीं पा रहा था। परंतु बात कुछ हुई ही ऐसी उलटी थी कि किसी का कोई दोष नहीं था।
दूसरे दिन जब उसकी मौत की सज़ा का समय हुआ तो पूरे गाँव के सामने राम के पिता ने कहा, “हमारे यहाँ यह नियम है कि मौत की सज़ा देते समय अपराधी की आख़िरी इच्छा पूरी करने की कोशिश की जाती है। बोलो, “तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?”
श्याम ने कहा, “आदरणीय आप न्यायी और कृपालु हैं। यदि आपका यही नियम है तो राम को भी दरबार में बुलाया जाए। उसके सामने मैं कुछ गुप्त भेद की बातें बताना चाहता हूँ।”
राम जब सभा में आ गया तो श्याम ने कहा, “यद्यपि सारी बातें कह चुकने के बाद थोड़ा-थोड़ा करके मेरा शरीर पत्थर का हो जाएगा, फिर भी मुझे इसकी तनिक भी चिंता नहीं है, परंतु मैं मित्रद्रोही कहलाकर इस लोक से जाना नहीं चाहता।”
श्याम ने कहना शुरू किया, “आदरणीय, जब राम के साथ मैं देशाटन से लौट रहा था तो एक वृक्ष पर दो पंछी आपस में बात कर रहे थे। मैं पक्षियों की भाषा समझता हूँ। एक पंछी कह रहा था कि घर जाते समय राम को हाथी पटककर मार डालेगा। यदि उसे घोड़े पर बैठाया जाए तो उसके प्राण बच सकते हैं। इसी कारण मैंने राम को घोड़े पर बैठाया था और स्वयं हाथी पर बैठा था।” इतने कहने के बाद श्याम पैरों तक पत्थर का हो गया। यह देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ।
श्याम ने आगे बताया, “पंछी ने यह भी कहा था कि राम यदि हाथी से बच जाएगा तो घर का फाटक गिरने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। यदि उसके नीचे पहुँचने से पूर्व ही फाटक को गिरा दिया जाए तो राम बच सकता है। इसीलिए मैंने राम से कहकर फाटक गिरवा दिया था।” इतना बताने के बाद श्याम का शरीर गले तक पत्थर का हो गया। सभा में बैठे सभी पंच दुखी होकर ‘आह-आह’ करने लगे।
श्याम ने आगे कहा, “तीसरी बात पंछी ने यह कही थी कि रात को बारह बजे जब राम सो रहा होगा तो एक विषधर सर्प उसे डस लेगा। यदि कोई उस सर्प को मार दे तो राम के प्राण बच सकते हैं। उसी सर्प को मारने के लिए मैं राम के कमरे में तलवार लेकर गया था। आप सब जाकर देखिए, राम के पलंग के नीचे मरा हुआ सर्प पड़ा होगा। पंछी ने कहा था, यदि ये सब बातें राम की रक्षा करने वाला किसी को बताएगा तो पत्थर का हो जाएगा, इसीलिए मैं बताना नहीं चाहता था।” — इतना कहने के तुरंत बाद ही श्याम का शेष शरीर भी पत्थर का हो गया।
राम के पिता, पंच और गाँव के सभी लोग यह सारा कौतुक देख-सुनकर बड़े दुख में पड़ गए। सबके मुँह से यही निकलता, “बेचारे श्याम के प्राण भलाई-भलाई में चले गए।”
राम ने शोक के मारे कई दिनों तक कुछ खाया-पिया नहीं। श्याम के पत्थर-शरीर को राम ने अपने महल में मंदिर बनवाकर उसमें रख दिया था। राम नित्य उस पत्थर-शरीर की पूजा किया करता था। इसी प्रकार बहुत दिन बीत गए। राम के पुत्र भी उत्पन्न हुए, पर वे श्याम के पत्थर-शरीर की पूजा निरंतर करते रहे। ए
क दिन राम जब पत्थर-शरीर की पूजा कर रहा था तो श्याम प्रकट होकर बोला, “राम, यदि तुम मुझे निरपराध समझते हो और चाहते हो कि मैं फिर से जीवित हो जाऊँ तो अपने दोनों पुत्रों का बलिदान मेरे सामने कर दो।”
राम श्याम की यह बात सुनते ही अपनी पत्नी के पास गया, बोला, “श्याम आज स्वयं प्रकट होकर कह रहा था कि यदि तुम मुझे निरपराध समझते हो और चाहते हो कि मैं फिर जीवित हो जाऊँ तो अपने दोनों पुत्रों का मेरे सामने बलिदान कर दो। तुम्हारा क्या विचार है?”
उसकी पत्नी ने कहा, “श्याम ने तुम्हारे प्राण बचाए हैं, इसलिए उनके प्राण के लिए हम अपने प्राणों से प्यारे दोनों पुत्रों को अर्पित कर देंगे।”
उसी समय राम और उसकी पत्नी ने अपने दोनों पुत्रों का श्याम के पत्थर-शरीर के सम्मुख बलिदान कर दिया।
श्याम पुनर्जीवित हो गया। उसने राम और उसकी पत्नी को ‘धन्य-धन्य’ कहा और हाथ फेरकर उनके दोनों पुत्रों को जीवित कर दिया।
राम और उसकी पत्नी अपने बीच श्याम को फिर से जीवित देखकर बहुत प्रसन्न हुए। पूरे ज़िले-जवार में श्याम की प्रशंसा की जाने लगी।
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)