दोष किसका (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा

Dosh Kiska (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma

'दादी....आज रात को पापा जी आपको चाचा जी के वहां भेजने वाले हैं। मैं भी आज दिल्ली एक काम्पटीशन में भाग लेने जा रही हूं। मुझे वापस आने में हफ्ता लग जायेगा। आप तो मुझे गांवों के बारे में वहां के त्यौंहारों व वहां की संस्कृति तथा वहां के आचार-विचार के बारे में आप बताती रहती हैं। अब आप जा रहीं है तो मुझे चिंता हो रही है।" पोती जयु दुखी होकर बोली। कोई दूसरा समय होता तब तो अर्चना पोती को बहलाती समझाती पर अभी उसका ध्यान तो इस बात में था कि ‘आज मुझे छोटे के पास भेज रहे हैं। बेटे ने न ही बहू ने मुझसे इसके बारे में बोला। मुझसे सम्बधित बात होने पर भी मुझसे बिना पूछे अपने आप फैसला कर लिया।

नदी का दूसरा किनारा इस किनारे से दूर अधिक हरा नजर आता है। पास जाओ तो असलियत का पता चलता है। ये सब मालूम होने के कारण ही तो इन्होंने कहा था। भले ही आधा पेट भर ही खाए पर हम गाँव में ही रहेंगें।” याद कर दीर्घ श्वास छोड़ा। अंदर बेटा अपनी पत्नी से " अनिता 11 बजे मां के बस के रवाना होने का समय है। हम 9 बजे उन्हे बस स्टाप पर छोड़ कर वहां से मेरे दोस्त की 'बर्थ डे' पार्टी में चले जाएंगे।" ये बात वहां से गुजर रही अर्चना को भी सुनाई दी। "पार्टी के खतम होने के समय ही हम पहुंचेगे। पर क्या करें ! दूसरा रास्ता भी नहीं है। तुम्हारे भाई ने तो कह दिया था, पूरे छः महीने खतम होने के बाद ही अम्मा को भेजना। ऐसी कंडिशन डाल दी। एक दो दिन पहले जाने से क्या है। आपके भाई की पत्नी तो होशियार है। मैं तो बुद्ध हूं।" अनिता ऐसा कह कर भुनभुनाई ।

"मेरा छोटा भाई भी होशियार है। अम्मा यहां पर है सोचकर कभी एक रूपया भी नहीं भेजा । पापा जी थे तब तो उनके डर के मारे हर महीने गाँव रूपए भेजता था। पिता के मृत्यु के बाद माँ को हम छः छः महीने रखेंगे ऐसा बोला। फिर बोला तुम ही तो बड़े हो, पहले आप रखो कहकर मेरे पास धकेल दिया। इस छः महीने में कभी जयपुर आकर झांका भी नहीं। मैं भी अम्मा को बस टिकट के अलावा 50रू. ही दूंगा।" बोला रवि ।

बेटे की बात सुन आहत नहीं हुई अर्चना । इस छः महीनों में उसको इन सब बातों की आदत पड़ गई थी। सिर्फ दावत, दवाई व मेहमान ही नहीं माँ-बाप भी तीन दिन से ज्यादा रह नहीं सकते! दुनिया ऐसी हो गई है ! सभी घरों में मनुष्य रहते हैं पर सब भांति भांति के लोग होते है ऐसा कहीं पढ़ा था ऐसा उसे याद आया। बस स्टेंड पर मां को उतार कर, "बस यहीं आयेगी, टिकट को दिखा कर बस में बैठ जाना। किसी से पूछकर बैठना। सावधानी से चली जाना मां। तुम्हारी छोटी बहू थोड़ी कठोरता से बोलती है। वह अनिता जैसे नहीं है। माँ थोड़ा एडजस्ट कर लेना। "बेटा रवि बोला। "पार्टी में जाने के लिए देर हो रही है, रवाना होता हूँ । बस ग्यारह बजे रवाना होगी। बहुत सुबह व रात में ठण्ड में नहीं जाना चाहिए, इसीलिए इस बस से भेज रहा हूँ। आखिरी स्टाप आगरा ही होगा। भाई आकर ले जाएगा।” बेटा बोला। "ठीक है बेटा, बॉइक पर ध्यान से जाना। समय पर खाना खाना। खांसी की दवाई बिना भूले ले लेना।" आखों में आए थोड़े आंसू को पल्ले से पोछकर वही पड़े सीमेन्ट की बैन्च पर बैठ गई अर्चना ।

बस स्टैंड पर शोर-गुल आदमियों की आवा-जावी अधिक होती ही है। उस रात के समय में भी "पांच अमरूद 10 रूपए में ले लो। " कह कर एक फल वाली याचना कर रही थी। टिकट के सिवा अर्चना के पास सिर्फ 50रू ही थे। दस रूपये का खरीद कर छोटी बहू को प्रसन्न नहीं कर सकते तो भी अपने से बड़ी उम्र की औरत की मदद करना चाहिए, सोच 10रू के अमरूद ले लिए। चालीस रूपये को पर्स में डालते समय ही उसे याद आया कि पानी की बोतल लाना तो भूल गई। पोती जयु होती तो बस में चढ़ने तक साथ ही रहती। सूखी खांसी न होती तो पानी की जरूरत नहीं होती। उसी समय एक युवा लड़की गोदी में बच्चे को लेकर उसके पास आकर बैठी। रोते बच्चे को गोदी में डालकर उसे थपकी देते हुए पूछा “आगरा की बस कब आयेगी ?”

“पता नहीं बेटी 10.30 बजने वाले है अभी तक नहीं आई " वह बोली "वाल्वो बस समय से आती है। सही समय पर रवाना होती है। ये बेकार बस है खटारा बस। जब चाहे तब आयेगी, जब चाहे रवाना होगी। इसका टिकट सस्ता है इसीलिए मेरा पति मुझे इसी में भेजता है। क्या करें ? भूत के पल्ले पड़े तो इमली के पेड़ पर ही तो चढ़ना पड़ेगा।" दुखी मन से बोली। "मैं पानी की बोतल लेकर आती हूं...... इतने में बस तो नहीं आ जाएगी ना ?" अर्चना ने पूछा।

"आयेगी तो क्या तुरन्त रवाना हो जायेगी। आप जाकर पानी लेकर आओ, मैं यहीं बैठी रहूंगी। ये मरजानी बेटी रोये जा रही है, बिल्कुल अपने बाप पर गई है। जिद्दी कहीं की। " कह कर बच्ची के छाती पर जोर-जोर से थपकी देने लगी । अर्चना, जब पानी की बोतल लेकर वापस आई, तब वहां एक बुजुर्ग दम्पति वहां बैठे हुए थे। "तुम क्यों खड़ी हो ! इन्हें थोड़ा सरकने को कहकर बैठ जाओ ना ?" बच्चे वाली स्त्री बोली। “हां बेटी तुम बैठ जाओ, बस आए तो हमें बताना । हम दोनों की आंखें ठीक नहीं हैं। दिखाई नहीं देता।" कांपती हुए आवाज में बुजुर्ग बोले। “बच्चे नहीं हैं आपके, आंखों से दिखता नहीं है फिर आगरा में किसके पास जा रहे हो ?" बच्ची वाली ने पूछा।

"वहां मेरे बचपन का दोस्त रहता है। जो उसके बेटी के घर में रह रहा है। उसी की बेटी ने कहा कि 'आप भी यहीं आकर रह जाओ।' इसीलिए जा रहें है।" बुजुर्ग बोले। "इस जमाने में लड़की पैदा करने वाले ही भाग्यशाली हैं। मुझे तो वह सौभाग्य भी नहीं मिला। एक बेवकूफ शराबी से शादी हुई, उसको अपना वारिस लड़का ही चाहिए था। अब कहता है इस छः माह की बच्ची को 1/2 तोला सोने की चेन चाहिए। तेरे बाप से लेकर आ । कह धक्का देकर पीहर भेज दिया। मेरा पति यहां मकान बनाने वाला मिस्त्री का काम करता है। मेरे पिता जी को अपना पेट भरने में ही परेशानी हो रही है, सोने की चेन कहां से लाएगा ? क्या करें ?"

उसी समय वहां एक अदरक की कैण्डी बेचने वाला एक छोटा लड़का आया। जिसे उस बच्ची वाली महिला ने बुलाकर बोली, "चार कैण्डी दे। बस में जाऊँ तो क्या करूं उलटी आती है। ये भी एक मुसीबत ही है।" बड़बड़ाते हुए पर्स को खोल, 50 रूपए के नोट को निकाला। "खुले हो तो आप ....ही दे दो। अभी पहली बोहनी आपके हाथ से ही होगी।” अदरक की कैण्डी बेचने वाले ने बोला । "अरे झूठे..... बोहनी करेगा, रात को ! क्या रे बोहनी..... "दीदी मेरा व्यापार तो रात में ही है। दोपहर में मैं स्कूल जाता हूं।" वह बोला । 'बेचारा पढ़ने वाला लड़का है, गरीब है अतः ऐसा काम कर कमाता है।' ऐसा सोच "बच्चे... कितने पैसे देना है..... अपने छोटे से बटुवे को खोलते हुए अर्चना ने पूछा। "चार रूपए दादी मां।" "अरे आप क्यों दे रहीं हैं ?" चिल्लाई बच्चे वाली। खुले रूपये निकाल कर देकर, "इसमें क्या बात है। कोई हजार रूपये थोड़े ना हैं।” मुसकराते हुए बोली।

उसी समय, पों-पों होर्न बजाते हुए लाल रंग की बस आकर खड़ी हुई। बच्चे वाली औरत अपने बच्चे को कंधे में उठाकर बस की तरफ जाती हुई बोली "आप ठहरो, मैं पूछकर आती हूं। आगरे की अपनी ही बस है क्या ?" "बच्चे को मुझे दे जाओ, तुम्हारा हाथ दुखेगा।" अपनत्व से अर्चना बोली। इतने में बड़ी फुर्ती से उठकर पूछकर आ गई। “आगरा की ही बस है। आईये। ये बस पैसेन्जर रेल जैसी है हर जगह रूक-रूक कर सब सवारियों को भर-भर कर ही जा पहुंचेगी। इसके रवाना होने व पहुंचने का समय कोई तय नहीं है। पर पहुंच जरूर जाएगी।" कहकर वह हंसी।

उसके कहे जैसे ही रात 11.45 को रवाना हुई बस । पूरे रास्ते रूक-रूक कर चली। एक जगह चाय पीने के लिए 1/2 घंटा रूकी। फिर चली तो सुबह ही हो गई। सुबह के साढ़े सात बज गए। करीब करीब सबके मोबाइल बजने लगे। अर्चना को पूरी रात सूखी खांसी ने चैन लेने नहीं लेने दिया। सुबह-सुबह ही उनकी आंख लगी। "मांजी, उतरियेगा ये बस आगरा नहीं जाएगी।" बच्चे वाली औरत ने उसे उठाया । "क्या हुआ ?" डर कर अर्चना ने पूछा। "कुछ गूजरों के आरक्षण का झगड़ा है। लोग बस को आगे जाने नहीं दे रहे। लोकल बस ही जाएगी। बसों पर पत्थर फेंक रहे हैं।" घबराई हुई वह बोली ।

"अब क्या होगा ?" अर्चना फिकर करती हुए उठी। याद से पैर के पास रखे थैले को भी उठा लिया। "पता नहीं क्या है ? सब राजनेताओं का ही खेल है। सब नाटक करते हैं। परेशान होती है हमारे जैसी जनता ।" "मेरी पोती तो दिल्ली जा रही है वह भी नहीं जा पायेगी।" "वहां यह सब नहीं है। यहीं है। भरतपुर के पास ये अचानक ही हुआ । उतरिए। दूसरी बस पकड़ कर ही हमें जाना होगा।"

कई यात्री कण्डक्टर से झगड़ा करने लगे। “ऐसे कैसे होगा ? हमने तो आगरे तक के पूरे टिकट के पैसे दिए हैं। यहीं कैसे उतार दोगे ? अब दुबारा टिकट लेने में 30-40 रूपये लगेगें ना ?" "इसमें हम क्या करें ? यदि यहां से कोई बस शहर के अंदर जा रही हो तो आप जरूर हिम्मत कर जाईये। नहीं तो लोकल बस में ही जाना पड़ेगा।" परेशान होकर झल्लाया कण्डक्टर। "अब क्या करें माजी....आप किसके घर जा रहीं हैं ?" बच्ची वाली ने पूछा। "बेटे के घर ।" "आप फोन करके उन्हें समाचार दे दो। मैं किसी बस में लटक कर जाती हूं।" कह कर रोते बच्चे को कंधे में डाल बस की तरफ तेजी से जाने लगी।

पहले कभी पोती जयु ने मोबाइल नंबर लिखकर दिया था। उसे उसने इस छोटे से बटुवे में रख लिया था। उसे लेकर पास के एक छोटी सी दुकान में जाकर जयु को फोन पर सब कुछ बताया। "दादी डरो मत, चाचा जी का फोन नंबर बताती हूं उसे लिख लो। मैं भी चाचा जी से बात करती हूं। वहीं रहो आप। वहां से जाना नहीं।" जयु बोली। अर्चना ने अपने दूसरे बेटे को फोन किया तो वह झल्लाते हुए "अम्मा वह बेवकूफ भैया तुम्हें आराम से भेज नहीं सकता ? अब देखों मैं भी घर से बाहर आ नहीं सकता। टी.वी. में शहर की खराब हालत के बारे में बता रहा है। बस, बाइक, कार व सभी वाहनों को जला रहें हैं। चुपचाप आप वापस चली जाओ व अगले हफ्ते आ जाना। तब तक सब शान्त हो जाएगा।" मन व शरीर दोनों ही अशक्त होने के कारण वहीं वह बेहोश हो गई। "अरे! ये मांजी गिर गई। लगता है बेहोश हो गईं। कोई इनके चेहरे पर पानी के छींटे मारो।” एक बुजुर्ग आदमी चिल्लाने लगा। सब लोग अपनी-अपनी पानी की बोतल लेकर आने लगे। ये किसका पानी है पता नहीं। जाट, गुर्जर, ब्राह्मण या हरिजन ! किसका पानी है!

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