दूर होती रोशनी (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा
Door Hoti Roshani (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma
बच्चों की लम्बी कतार ...
कई स्कूलों के बच्चे अपनी-अपनी यूनीफॉर्म में पंक्तिबद्ध थे। सपना भी अपने स्कूल की लाइन में खड़ी थी। दो घण्टे व्यतीत हो गये लाइन में खड़े ... अब तो पाँव भी जबाब देने लगे थे। पेट भी खाने की जुगाड़ देख रहा था। अलग-अलग स्कूलों की पंक्ति , पंक्ति के आगे स्कूल का बैनर लिए दो-दो बच्चे खड़े थे। बैनर भी स्पेशल बनबाये गये थे जिसके दोनों सिरों पर नेफा टाइप सिलाई थी ताकि उनमें डण्डे फंसाये जा सकें।
एक दिन पहले ही स्कूल की सभी कक्षाओं में सूचना आ चुकी थी कि सभी बच्चे अपने साथ दो लंच बॉक्स लेकर आयें। स्कूल के बाद सरकारी कार्यक्रम में जाना है। सपना ने एक टिफिन रेसिस में और एक छुट्टी के बाद खा लिया था। प्यास से उसका गला चटक रहा था। पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी और न ही धूप से बचने का कोई साधन ...। सपना ने अपने साथ आयीं स्कूल की मैडम से पूछा- ‘‘मैडम कब निकलेगी रैली ?’’
‘‘ हाँ ... देखो अधिकारी आते ही होंगे, वे आकर हरी झण्डी दिखायेंगे और रैली शुरु हो जायेगी।’’
अन्य लड़कियाँ भी शिकायत भरे लहजे में बोलीं - ‘‘ मैडम पैर दुखने लगे, हम बैठ जायें क्या ? ’’
‘नहीं, बैठो नहीं बस अधिकारी आते ही होंगे। ’’ अन्य बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘‘देखो सब बच्चे खड़े हैं।’’
सपना ने अपने आगे खड़ी सुनीता से कहा- यही उत्तर दस बार सुन चुके हैं कि अधिकारी आ रहे हैं .. ये लोग क्यों नहीं सोचते कि हमें भूख लग रही होगी... हम थक गये होंगे... ।’’ सबकी अपनी-अपनी परेशानियाँ थीं, सबको अपने-अपने काम याद आ रहे थे ,सबके मन में चिंताएँ ... ‘‘घर कब लौटेंगे’’
‘‘स्कूल का होमवर्क भी करना है।’’
‘‘मम्मी की तबियत खराब है, खाना बनाना है।’’
‘‘मुझे भाई को पढ़ाना है।’’
ग्वालियर संभाग के शिवपुरी जिले में चुड़ैल छज्जा, भूराखो, भरखा खो, परी बरी का झौरा जैसे कई ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक स्थल है। यहाँ तात्या टोपे को फांसी भी लगायी गयी इसके प्रमाण मिलते हैं। मुगलों के शासनकाल में शिवपुरी मालवा सूबा नरवर का सदर मुकाम था। राजा अनूपसिंह को मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर ने नरवर का जागीरदार बनाया। 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में शिवपुरी सिंधिया राजवंश के अधीन रहा। यह सिंधिया राजवंश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के नाम से प्रसिद्ध था। यहाँ स्थित छत्रियाँ सिंधिया राजवंश की देन हैं जो स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। यहाँ माधव नेशनल पार्क है जिसमें जार्ज कैसल की कोठी स्थित है। सन् उन्नीस सौ ग्यारह मे ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम भारत के दौरे पर आए थे उनके द्वारा बाघ का शिकार और रात्रि विश्राम करने हेतु जार्ज कैसल का निर्माण करवाया गया।
तभी एक जीपनुमा गाड़ी ने ग्राउण्ड में प्रवेश किया। बच्चों के चेहरे चमक उठे, चलो अब तो अधिकारी आ गये जल्दी रैली निकले और जल्दी घर जायें। जीप से कुछ लोग उतरे और दो तीन कार्टून उतारे गये । सपना ने देखा बच्चों की आँखों में आशा जाग गयी। शायद इन कार्टून में ंनाश्ता होगा जो हमारे लिए लाया गया होगा।
दो लोग कार्टून लेकर हॉल की तरफ चले गये।
थोड़ी ही देर में अंदर से खबर आयी कि हर स्कूल का एक-एक व्यक्ति अन्दर आकर रैली में आये बच्चों की संख्या के हिसाब से मोमबत्ती ले लें और बच्चों को बांट दें।
सभी स्कूलों के प्रतिनिधि के रूप में कुछ लोग अन्दर जाने लगे।
मैडम ने कहा - ‘‘सपना चलो अन्दर मेरे साथ ... मोमबत्ती लेकर आते हैं।’’ सपना बिना कुछ कहे मैडम के पीछे-पीछे चल दी। अन्य स्कूलों के सर मोमबत्ती लेने के लिए भीड़ लगाए थे। मैडम मोमबत्ती बांटने वाले के पास तक नहीं पहुँच पा रही थीं पुरुषों को धकेलकर उनके बीच से जगह बनाकर अन्दर तक पहुँचना मुश्किल हो रहा था। भीड़ में मैडम की साड़ी का पल्ला खिंच गया और उसमें लगी पिन के स्थान से साड़ी फट गयी। यह देख सपना मैडम के आगे हो गयी।
देने वाले कह रहे थे- ‘‘एक पैकेट में छह मोमबत्ती हैं उसी हिसाब से लेना।’’
आवाजें आ रही थीं- ‘‘हमें सात पैकेट दे दो’’
‘‘हमें दस पैकेट दे दो’’
‘‘हमें बारह पैकेट दे दो’’
इस बंदरबांट में सपना को लगा उसके सीने को किसी की कोहनी टच कर रही है, फिर लगा किसी का हाथ भी है। वह अपनी जगह खड़ी रह गयी। मैडम कहने लगीं- ‘‘सपना आगे बड़ो’’ वो मैडम को कैसे कहे कि उस पर क्या गुजर रही है। सपना ने देखा एक कोने में दो सज्जन बैठे अपने-अपने बैग में मोमबत्ती के पैकेट रख रहे थे उन्होंने चारों ओर देखा फिर अपने-अपने बैग में मोमबत्ती रखे पैकेट को तौलिए से अच्छी तरह छुपाया और जल्दी से बैग की चैन बंद कर दी। सपना सारा माजरा समझ गयी। बड़ी मुश्किल से सपना को मोमबत्ती मिल पायीं।
मैडम ने मोमबत्ती अपने स्कूल के बच्चों में बांट दीं। सपना ने मोमबत्ती अपने बैग में रख ली उस ने सोचा लाइट चली जाती है फिर पढ़ने में परेशानी होती है। तब ये मोमबत्ती काम आयेगी। सभी बच्चे और टीचर अपने अपने हाथों में मोमबत्ती लिए थे। वही सज्जन जो बैग मे मोमबत्ती रख रहे थे, जलती मोमबत्ती लेकर आए और सबकी मोमबत्ती जलाने लगे। सपना ने सोचा अभी मोमबत्ती जला लूँगी तो जन्दी ही खत्म हो जायेगी। मोमबत्ती जलाने वाला व्यक्ति सपना से बोला- तुम्हारी मोमबत्ती कहाँ है?
बैग में रखी है।
बैग में रखने के लिए नहीं दी गयी हैं वह कड़क स्वर में बोला - यहाँ खैरात नहीं बंट रही जो घर ले जाओगी। सपना को बहुत बुरा लगा। सारे बच्चे उसे देखने लगे, वह शर्म से पानी-पानी हो गयी। वह कहना चाहती थी कि मोमबत्ती चुराकर तो आप ले जा रहे हो ... देखो अपने बैग में कितने पैकेट रख लिए।
जलती मोमबत्ती हाथ में पकड़े बच्चों के साथ, स्कूल के नाम के बैनर लगाकर, कुछ सर और मैडम फोटो खिंचा रहे थे। तभी दूसरे सर ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा- ‘‘क्यों राष्ट्रपति पुरस्कार पाने के लिए फोटो खिंचवाये जा रहे हैं। इस तरह के फर्जी फोटो खिंचवाकर पुरस्कार की दौड़ में शामिल होने की फाइल तैयार की जायेगी।’’
सपना ने अपनी सहेली से पूछा -‘‘ये रैली क्यों निकल रही है ?’’
‘‘ज्यादा तो नहीं पता पर दिल्ली में कोई केस हुआ है इसलिए ये रैली निकल रही है। लड़कियों की रक्षा के लिए’’
सपना सोच रही थी दिल्ली के केस से इस छोटे से शहर शिवपुरी का क्या लेना देना। हर रैली में बच्चों को ही क्यों माध्यम बनाया जाता है। चिलचिलाती धूप हो, कड़ाके की सर्दी या बारिश हो लोगों को बच्चों की भीड़ चाहिए। जितनी ज्यादा भीड़, उतनी ज्यादा सफलता।
सपना ने सुना उसकी मैडम दूसरी मैडम से कह रही थीं - ‘‘जितनी संख्या कही थी हम उससे ज्यादा बच्चे इकट्ठे कर लाये हैं। बच्चों व स्टाफ के नाम के साथ लिस्ट हस्ताक्षर कराकर काउंटर पर दे दी है।’’
एक सर का मोबाइल घनघला उठा- शोर होने के कारण आवाज नहीं आ रही थी उन्होंने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर लिया।
‘कहाँ हो’
‘कहाँ होंगे शिवपुरी में ही हैं’
‘अरे शिवपुरी में तो हो पर कहाँ स्कूल में या कहीं और ?’
‘मानस भवन में’
‘बिजी हो’
‘अरे नहीं इस समय बिल्कुल फ्री’
‘बहुत सारे बच्चों की आवाज आ रही हैं।’
‘हाँ कैंडल मार्च निकलना है’
‘क्यों’
‘सरकार की मंशा है, पूरे राज्य में एकसाथ एक ही दिन निकाला जा रहा है। दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड का ये प्रतीकात्मक विरोध है।’
‘छुट्टियों में यहाँ आ जाओ कई दर्शनीय स्थल हैं घूमने के लिये’
‘ .... अरे तुम ही यहाँ आ जाओ ... सेलिंग क्लब, चाँदपाठा झील, भदइया कुण्ड, बाणगंगा आदि स्थानों को दिखा देंगे।’’
तभी पीली बत्ती, लाल बत्ती की गाड़ियाँ आयीं ... जिम्मेदार लोग उसी तरफ दौड़ पड़े। अधिकारी के कदम जमीन पर रखे भी न हो पाए कि दर्जनों लोग वहाँ इकट्ठे हो गये ... स्थिर लोग चपल हो गये ... लाइनें जिन्दा हो गयीं । शांत मूक लोगों ने गले खंखारे, मोमबत्तियाँ जलायी गयीं। एक अगुआ ने माइक लेकर रैली का मंतव्य बताना शुरु किया। एक बड़ी मशाल जलाकर एक छात्र के हाथ में दे दी गयी जिसे रैली में सबसे आगे चलना था। जितनी बड़ी रौशनी उतना बड़ा धुँआ . ..।
अधिकारी महोदय ने रैली को हरी झण्डी दिखाई। सब रैली की शक्ल में पैदल रेंगने लगे। रैली के निकलते ही घुर्र धुर्र की आवाज के साथ अधिकारियों के वाहन चालू हो गये। अपने पीछे धूल उड़ाते वाहन अधिकारियों को लेकर ओझल हो गये। उनके अधीनस्थ छोटे अधिकारी दस कदम रैली के साथ चले और बड़े अधिकारी के जाते ही वे भी गायब हो गये।
मोमबत्ती में सामर्थ्य ही कितना है जो अधिक समय तक साथ जल सकती। वे जलते समय रोशनी जरुर देती हैं पर खुद के अस्तित्व को गलाकर। अंधेरे में रोशनी की किरण देने वाली मोमबत्ती पिघल जाती है। उसके अंदर के जलते धागे की खुशबू और बुझने के बाद का धुँआ बताता है कि कोई मोमबत्ती जलकर शांत हुयी है। रैली में सिर्फ बच्चे और उनके टीचर ही जिम्मेदारी संभाले हैं। तख्तियाँ हाथ में लिए विद्यार्थी नारे लगाते जा रहे हैं।
सपना को याद आ रहा है ... पिछले साल रैली से लौटने के बाद वह कुछ पॅम्पलेट और बांटी गयी सामग्री घर ले गयी। वह गुब्बारेनुमा छोटे फुकनों को फुलाने लगी तब माँ ने पूछा -ये कहाँ से आये ? पॅम्पलेट पढ़कर तो उन्होंने खूब डांटा- क्या ये सब जानकारी लेने जाती हो स्कूल ? मैं कल तुम्हारे स्कूल में बात करुंगी कि ये कैसी शिक्षा दी जा रही है छोटी-छोटी बच्चियों को। ये शिक्षा तो बड़ी लड़कियों को दी जाना चाहिए। वो तो भाई की तबियत खराब हो जाने के कारण माँ स्कूल नहीं जा पायी। दूसरे दिन सपना ने अपने से बड़ी क्लास की दीदी से पूछा तो उन्होंने बताया था कि वो एड्स रोकने के लिए रैली निकाली गयी थी। सपना को तब भी कुछ समझ नही आया।
अपने लक्ष्य स्थान पोलो ग्राउण्ड में रैली पहुँच गयी । जनप्रतिनिधि व शहर का अन्य अमला वहाँ मंच पर डटा हुआ था। छात्र के हाथ से मशाल लेकर जनप्रतिनिधि ने वहाँ रखा बड़ा दीपक जला दिया। नारों और तालियों के साथ जयघोष हुआ।
जनप्रतिनिधि ने भाषण देना शुरु किया- ये दीपक रात भर जलकर हमारे अंदर के फैले अंधकार को मिटायेगा। संस्कारों की रोशनी जलायेगा। हमारे देश में सीता और सावित्री हुयी हैं ... नारियों की रक्षा करना और लड़कियों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। कुछ लोग एक प्रिंट किया कागज सब लोगों में बांट रहे थे।
सपना अब खड़ी नहीं रह पा रही थी ...
किसी और ने माइक ले लिया- ‘‘जीवन यज्ञ में नारी की बराबर की हिस्सेदारी है। मानसिक, शारीरिक और सामाजिक अत्याचारों से नारी को गुजरना पड़ता है। संवेदना और सहानुभूति के साथ उसकी सहायता करना हमारा दायित्व है।’’
अब माइक किसी और के पास चला गया- ‘‘आज हम सब यहाँ नारी के सम्मान की रक्षा का संकल्प लेने के एकत्रित हुए हैं। अब हम शपथ लेंगें मैं जो लाइन बोलूंगा आप सब उसे दोहराना - मैं शपथ लेता / लेती हूँ ..
सपना का सिर चकरा रहा था। उसे लग रहा था कि वह गिरने वाली है। उसे कौन था देखने वाला ...
शपथ जारी है ... महिलाओं के प्रति अपने संज्ञान में आये अपराधों की रोकथाम हेतु सदैव तत्पर रहूँगा / तथा स्वयं इस दिशा में जागरुक रहते हुए समाज में जागरुकता बढ़ाने के लिए कृतसंकल्पित रहूँगा। उसकी देखभाल करना हमारा फर्ज है।
भीड़ जाने लगी। लड़खड़ाते कदमों से सपना भी जाने लगी। वह सबसे पीछे रह गयी ,उसने पलटकर उस बड़े दीपक को देखा जिसकी लौ फरफरा रही है।
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सपना घर नहीं पहुँची ...
रात के नौ बज रहे हैं। माता-पिता ने स्कूल वालों से संपर्क किया, संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। पुलिस में रपट लिखवाने वो लोग थाने गये। रात भर सपना को ढूँढने की कोशिश की गयी पर सब निरर्थक। लड़कियों की रक्षा का संकल्प लेने के लिये रैली निकाली गयी थी, सपना उसी में गयी थी। अन्य छात्र-छात्राएँ तो सही सलामत घर पहुँच गये थे बस सपना नदारद ...। सब गहरी चिंता में डूबे हुए .. रात का मामला और लड़की जात .... कोई दुर्घटना घटित न हो जाये।
पुलिस ने पूछना शुरु किया, नाम-
सपना
उम्र
14 वर्ष
किस रंग के कपड़े पहने थी
स्कूल की यूनीफॉर्म, आसमानी रंग का कुर्ता, सफेद सलवार और दुपट्टा
स्कूल संचालक को अब अपनी जिम्मेदारी याद आ रही थी और रैली में बच्चों के साथ गयीं मैडम तो पसीना- पसीना हो रही थीं। माँ को चिन्ता सता रही थी- आजकल छोटी-छोटी बच्चियाँ असुरक्षित हैं, दिनदहाड़े उनकी इज्जत से खिलवाड़ हो रहा है फिर सपना तो .... अब शरीर संभाल रही थी।
रात भर सपना को ढूँढने की कोशिशें की गयीं पर सब निरर्थक ...।
धुंधलका छंटने लगा था ... लोग सैर पर जाने लगे । अचानक थाने का फोन घनघनाया.. कोई बता रहा था कि पोलो ग्राउण्ड में एक लड़की बेहोश पड़ी है।
गाड़ियाँ दौड पड़ीं उस लड़की को देखने ... । सपना की माँ को अनिष्ट की आशंका घेर रही थी। उस लड़की को देखते ही सपना की माँ बोल पड़ी-‘‘ यही है सपना।’’ उसके पास जाकर वो देख रही थीं कि कहीं से कपड़े तो नहीं फटे हैं या कोई अन्य जख्म । उसके हाथ में फफोले देख माँ रो पड़ी। सपना बेहोश थी, नुमाइंदे होश में आ चुके थे।
थाने लाकर उसे होश में लाने की कोशिश की जाने लगी। थोड़ी देर बाद उसे होश आया पर सबको देख वह सहम गयी। महिला पुलिस ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ‘‘तुम पोलोग्राउण्ड में बेहोश कैसे हुयीं और ये फफोले कैसे पड़े ?’’
सपना पुलिस को देखकर डर गयी और मम्मी से लिपट गयी। माँ ने कहा, ‘‘बता बेटा और और तेरे हाथ कैसे जले’’
भूख-प्यास, भय, अंधेरा और अब पुलिस सब उसके दिमाग को जड़ कर रहे थे। वह धीरे-धीरे बोली -‘‘तेज हवा से दीपक की लौ बुझ रही थी, ... दीपक रात भर जलना था न .. इसलिए मैं उसकी लौ के दोनों ओर हाथ रखे रही। धूप में खड़े रहने से और भूख-प्यास के कारण मैं बेहोश हो गयी।’’
आँखों से आँसू ढुलककर माँ के आँचल को भिगोने लगे।
माँ ने और अधिक मजबूती से उसे अपनी बांहों में भींच लिया। ...