दो विधवाएँ (कहानी) : नैथेनियल हॉथॉर्न

Do Vidhwayen (English Story in Hindi) : Nathaniel Hawthorne

शरतऋतु की एक बरसाती धुंधलके से भरी शाम थी। बंदरगाह के किनारे एक छोटे से मकान की दूसरी मंजिल के एक कमरे में सादगी भरा फर्नीचर उसके रहवासियों की हालत जैसा ही था। यूँ थोड़ी बहुत सजावट यहाँ थी पर उस स्थान और मौसम के बारे में इतना कहना काफी है। अंगीठी के पास दो जवाँ आकर्षक स्त्रियाँ बैठी थीं और अपने-अपने दुःखों में एक-दूसरे को हिम्मत बँधा रही थीं। ये उन दो भाइयों की नवविवाहिता वधुएँ थीं-जिनमें एक नाविक था और दूसरा सैनिक। दोनों की मौत की खबर एक के बाद एक आई थी। उनकी मौत कैनेडा के युद्ध और तूफानी एटलांटिक की वजह से हुई थी। इस हादसे की खबर से चारों तरफ से हमदर्दियाँ उनके प्रति उमड़ पड़ीं और बहुत सारे मेहमान विधवा बहनों के प्रति मातमपुर्सी करने चले आए। इनमें एक मंत्री भी था। ये सभी शाम होने तक वहाँ बैठे रहे, फिर एक-एक कर सांत्वना के बोल-बोलकर अपने-अपने खुशहाल घरों की ओर लौट गये। शोक संतप्त विधवाएँ यद्यपि अपने मित्रों की सहृदयता के प्रति उदासीन नहीं थीं, पर वे चाहती थीं कि उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए। पतियों के रहने पर उनका आपस में जो संबंध था उससे वे एक-दूसरे से जुड़ी हुई थीं पर अब उनकी मौत के बाद वे एक-दूसरे को और करीब पा रही थीं। दोनों को यह लग रहा था कि वास्तविक दिलासा तो उन्हें एक-दूसरे के पहलू में ही मिल सकती है। उन्होंने एक-दूसरे के मन को समझा और निःशब्द रोती रहीं। इस तरह घंटे भर तक रो लेने के बाद उनमें से एक बहन जो मृदु, शांत स्वभाव की होते हुए भी कमजोर नहीं थी और धर्मपरायण भी थी उसे सहसा त्याग और सहनशीलता के उन गुणों का स्मरण हो आया जो धार्मिक शिक्षा से उसे मिले थे। उसे लगा विपदा चाहे जैसी हो उन्हें जीवन तो जीना ही होगा। अँगीठी के सामने तिपाई रखकर उसने जैसे-तैसे दो कौर हलक के नीचे उतारे और अपनी बहन के पास आ बैठी।

"बहन, तुमने तो कुछ भी नहीं खाया," वह हाथ थामकर बोली “अब जैसा भी जीवन है, बस उसमें ईश्वर की कृपा बनी रहे।"

उसकी देवरानी ज्यादा संवेदनशील और चिड़चिड़ी हो उठी थी। अब तक वह लगातार फूट-फूट कर रोती रही थी। मैरी के शब्दों से वह एकदम विचलित हो गई मानो उसके घाव को कुरेद दिया गया हो।

"अब बचा ही क्या है मेरे लिए। मुझे नहीं चाहिए ईश्वर की कृपा" मार्गरेट चीख पड़ी और उसकी हिचकियाँ बँध गई। "अगर ईश्वर की यही इच्छा है तो मैं अन्न जल छुऊंगी भी नहीं!"

पर यह कहते हुए वह खुद सिहर उठी और धीरे-धीरे मैरी अपनी देवरानी को शांत करने में सफल हो गई। इस तरह शाम हो गई, अंधेरा गहराने लगा। उनके सोने का समय हो गया। विवाह के समय इन लोगों के पास ज्यादा साधन नहीं थे। एक छोटी-सी गृहस्थी थी। एक ही बैठकख़ाना था और उसके दोनों तरफ इनके सोने के दो कमरे थे। अँगीठी की आग बुझाकर दोनों विधवाएँ उठीं और वहाँ एक लैम्प रख दिया। दोनों कमरों के दरवाजे खुले छोड़ दिए। एक कमरे से दूसरे कमरे का भीतरी हिस्सा, पलंग, पर्दे दिखाई पड़ रहे थे। ऐसा नहीं था कि दोनों बहनों को लेटते ही नींद आ गई। भीतर ही भीतर दुःख सहने का असर मैरी अनुभव कर रही थी और फिर कुछ ही पलों में उसे झपकी सी आ गई। रात का अंधेरा और निस्तब्धता जैसे-जैसे गहरा रही थी मार्गरेट खुद को और ज्यादा विचलित और थका हुआ महसूस कर रही थी। बाहर बरसात हो रही थी। वह बूंदों की एक रस आवाज सुनती रही, जिसे हवा का झोंका तक नहीं तोड़ पा रहा था। मन में एक अजीब बेचैनी थी। वह बार-बार तकिये से सिर उठाकर मैरी के कमरे की ओर देखने लगती। लैम्प की धीमी रोशनी में दीवार पर फर्नीचर की परछाइयाँ स्थिर थीं। बस कभी लौ के टिमटिमाने से काँप उठतीं। अँगीठी के पास दो खाली आराम कुर्सियाँ अपनी पुरानी जगह पर रखी हुई थीं, जिन पर दोनों भाई परिवार के मुखिया की तरह शान से बैठते थे और कहकहे लगाते थे। पास में दो छोटी कुर्सियाँ थीं जिन पर मैरी और वह उन खुशहाल दिनों में बैठती थीं, जब उनके इस छोटे से साम्राज्य में प्यार ही प्यार था। आज लैम्प की रोशनी बिल्कुल इन विधवाओं की तरह चमक खो चुकी थी। मार्गरेट जब संताप में डूबी हुई थी, उसने बाहर के दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनी।

"अभी कल ही की तो बात है ऐसी किसी आवाज पर कैसे मेरा दिल उछल पड़ता!" उसने सोचा। उसे याद आया कितनी आतुरता से वह अपने पति के आगमन की प्रतीक्षा किया करती थी।" अब इसकी क्या परवाह; जाने दो, मैं नहीं उठूँगी।"

जहाँ उसमें यह बच्चों की सी जिद थी वहीं दूसरी ओर उसका दिल तेजी से धड़क रहा था और कान दरवाजे की ओर लगे हुए थे। उसे भीतर से इस बात पर यकीन नहीं था कि जिस आदमी को इतना प्यार किया वह अचानक ऐसे मर सकता है। तभी दरवाजे पर दोबारा दस्तक हुई। इस बार आवाज धीमी थी पर थपथपाहट लगातार हो रही थी; जैसे कोई धीमे-धीमे स्वर में पुकार रहा हो। आवाज कई दीवारों से होते हुए अंदर आ रही थी। मार्गरेट ने अपनी बहन के कमरे की ओर देखा। वह गहरी नींद में थी। मार्गरेट उठी, फर्श पर पाँव रखे और खुद को ठीक किया। भय और उत्तेजना से वह जैसे काँप रही थी।

"हे ईश्वर, मेरी मदद करो!" अस्फुट स्वर में वह बोली, "अब मेरे लिए डरने की बात ही क्या है, फिर भी मैं पहले से कहीं ज्यादा भयभीत क्यों हूँ ?"

अँगीठी से लैम्प उठाकर वह तेजी से खिड़की के पास आई और नीचे गली में झाँका। घर के आगे एक धुंधली रोशनी वाली लालटेन जल रही थी जिसकी रोशनी में आसमान की चीजें पिघलती नजर आ रही थीं। बाकी तमाम चीजें एक गहरे अंधकार में डूबी हुई थीं। खिड़की के पट खुलने की आवाज से पास की इमारत की ओट से एक आदमी प्रकट हुआ, जिसने चौड़ी टोपी और कम्बल लपेटा हुआ था। वह यह देखने के लिए आगे आया कि उसकी आवाज से कौन उठकर आया है। मार्गरेट ने उसे देखते ही पहचान लिया। वह सराय में काम करता था।

"क्या बात है, गुडमैन पार्कर?" विधवा ने ऊँची आवाज में पूछा।

"मैडम, आप मार्गरेट ही हैं न?" सराय वाले ने पूछा, मुझे लगा खिड़की पर आपकी बहन तो नहीं हैं। उन्हें देखकर मुझे बड़ा संकोच होता, क्योंकि उनका दुःख बाँटने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।"

"अच्छा बताओ, क्या बात है?" मार्गरेट ने उत्सुकता से पूछा।

"अभी आधा घंटा पहले एक हरकारा शहर से होकर गुजरा है। वह पूरब की ओर से गवर्नर और काउंसिल के कुछ पत्र लेकर आया था। ताजा दम होने के लिए मेरे यहाँ कुछ देर रुका था। मैंने उससे सीमा प्रांत की खबरों के बारे में पूछा तो उसने बताया कि लड़ाई में हमारी हालत बेहतर है। तेरह आदमी जो मृत घोषित किए गए थे वे सही सलामत हैं। उनमें आपका पति भी है। उसे फ्रांसीसी और इंडियन को वहाँ से प्रांतीय जेल में लाने का काम भी सौंपा गया है। मुझे भरोसा था कि यह खबर सुनकर आप खुश होंगी इसलिए मैं इतनी रात गए आपके आराम में खलल डालने चला आया। शुभरात्रि।"

यह कहकर वह भला मानुस चलता बना; जाते हुए गली के अंधेरे में उसकी लालटेन हिलती रही, जिसकी रोशनी में चीजों के अस्पष्ट से आकार नजर आ रहे थे मानो भारी उथल-पुथल के बीच से आकारों की एक दुनिया उभर रही हो या स्मृतियाँ अतीत में झाँक रही हों। किन्तु मार्गरेट इस खूबसूरत दृश्य को देखने के लिए ज्यादा देर नहीं रुकी। उसके मन में हर्ष इस रोशनी से जगमगा उठा और साँस अटक सी गई। वह जैसे पंखों पर सवार उड़ती हुई अपनी बहन के पलंग के पास आई। पर अचानक कमरे के दरवाजे पर वह ठिठक गई। उसके भीतर एक दर्द सा उमड़ पड़ा।

"बेचारी मैरी!" उसने मन ही मन सोचा। "क्या मैं उसे जगाऊँ सिर्फ यह देखने के लिए कि मेरी खुशी से उसका दु:ख और बढ़ गया है? नहीं, मैं इस बात को अभी अपने भीतर ही रखूँगी।"

वह बिस्तर के करीब आई। उसने देखा मैरी चैन की नींद सोई हुई थी। उसका आधा चेहरा तकिये में फँसा हुआ था जैसे रोने के लिए छिपा हुआ हो। पर उसके चेहरे पर स्थिर शांति थी मानो उसका हृदय एक गहरी झील की तरह हो, जो सब कुछ अपने भीतर समेटकर अब शांत हो गया हो। यह कितना अजीब है कि दु:ख हल्के होकर सपनों में तब्दील हो जाते हैं। मार्गरेट ने अपनी बहन को जगाने की इच्छा पर काबू पाया। उसे यह महसूस हुआ कि अपने इस बेहतर नसीब की वजह से वह अनजाने ही अपनी बहन के प्रति सच्ची नहीं रह पाएगी और एक बार यह सच्चाई बता देने पर उसकी बहन का प्यार उसके प्रति कम हो जाएगा। एक झटके से वह मुड़ी और अपने कमरे में आई। उसे लगा कि यह खुशी ऐसी है कि ज्यादा देर उस पर काबू पाना कठिन है, फिर चाहे अगले पल इसकी वजह से किसी को दुःख ही क्यों न हो। उसके मन में तमाम खुशनुमा विचार उमड़ रहे थे जिन्हें धीरे-धीरे नींद ने चुरा लिया और उन्हें सपनों में बदल डाला। सपने कहीं अधिक खुशनुमा और ज्यादा उद्दाम थे जैसे सर्दियों में खिड़की के शीशे पर छोड़ी गई गहरी साँस से कोई अजीबोगरीब सा नक्शा बन जाए (पर यह कितनी निर्जीव तुलना थी।)

रात काफी ढल चुकी थी। मैरी अचानक हड़बड़ाकर उठी। उसने एक बहुत ही सजीव स्वप्र देखा था जो अवास्तविक था। उसे बस इतना ही याद था कि एक बहुत रोचक मोड़ पर उसकी नींद खुल गई थी। थोड़ी देर तक नींद सुबह के कुहासे की तरह उस पर हावी रही जिसमें वह अपनी स्थिति की असलियत को नहीं समझ पा रही थी। नीम बेहोशी में उसने जोर-जोर से थपथपाने की दो तीन बार आवाज सुनी। पहले उसे लगा कोई खास बात नहीं है। फिर ऐसा महसूस हुआ जैसे इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है। आखिर उसने पाया कि कोई आवाज दे रहा है और यह उसी के लिए है। इसी क्षण उसे सब कुछ याद आने लगा। नींद की खुमारी अब उसके शोकमग्न चेहरे से छंटने लगी। जैसे ही उसने आँखें खोली कमरे की चीजें मद्धम रोशनी में साफ दिखाई देने लगीं। बाहर के दरवाजे पर फिर किसी ने जोर से पुकारा था। मैरी ने इस आशंका से कि बहन जग न जाए, जल्दी से शॉल लपेटा और खिड़की की ओर लपकी। संयोग की सिटकनी पहले से खुली हुई थी।

"कौन है?" मैरी ने काँपते हुए नीचे झाँककर पूछा।

तूफान थम चुका था। चाँद ऊपर चढ़ आया था। वह छितरे हुए बादलों के बीच में से झाँक रहा था। नीचे मकान नमी से स्याह पड़ गए थे। खिड़की के नीचे एक आदमी नाविक की वर्दी में खड़ा था। वह पानी में पूरी तरह तरबतर था मानो समुद्र की गहराई से अभी-अभी निकलकर आया हो। मैरी ने उसे पहचान लिया। यह वही था जो समुद्र तट से छोटी-छोटी यात्राएँ कर अपनी जीविका चलाता था; मैरी को यह भी याद था कि विवाह से पहले इस आदमी ने प्रेम निवेदन किया था, जिसे मैरी ने अस्वीकार कर दिया था।

"क्या बात है स्टीफन ! तुम इस वक्त यहाँ कैसे?" उसने पूछा।

"अरे, बस खश हो जाओ मैरी! मैं तुम्हारे लिए बढ़िया खबर लाया हूँ।" विफल प्रेमी बोला "तुम्हें पता है, दस मिनट पहले ही मैं घर लौटा और माँ ने सबसे पहले मुझे तुम्हारे पति के बारे में बताया। माँ से बिना एक शब्द कहे मैंने अपना हैट उठाया और तुम्हारे घर की ओर दौड़ता चला आया। मैरी, मैं तुमसे बात किए बगैर एक पल के लिए भी सो नहीं सकता था। आखिर हमारा पुराना रिश्ता भी तो है।"

"ओह, स्टीफन! मैं तो तुम्हें अच्छा आदमी समझती थी।" विधवा के चेहरे पर आँसू ढुलक पड़े। वह खिड़की बंद करने लगी।

"अरे रुको मैरी, पहले मेरी पूरी बात तो सुनो।" नौजवान नाविक चिल्लाया। "मैंने कल शाम पुराने इंग्लैण्ड से आती हुई एक नाव देखी। तुम जानती हो नाव की छत पर मैंने किसे देखा? तन्दुरुस्त और खुशहाल। हाँ, पाँच महीने पहले जैसे देखा था, उससे थोड़ा दुबला जरूर लग रहा था?"

मैरी खिड़की से झाँकती रही। कुछ बोल नहीं पाई।

"अरे, यह तुम्हारा पति ही तो था" वह भले दिल वाला नाविक बोला, "तुम्हारे पति और उसके तीन साथियों ने नाव के उलटने पर डाँड की सहायता से अपने आपको बचा लिया था। हवा ऐसे ही बहती रही तो उनकी नाव सुबह का उजाला होने तक यहाँ आ लगेगी। मैंने सोचा तुम्हें यह बात बताकर खुश कर दूँ। अच्छा शुभरात्रि!"

स्टीफन मुड़ा और तेज कदमों से लौट गया। मैरी देर तक उसे अविश्वास से देखती रही। समझ नहीं पा रही थी कि इस बात को सच माने या झूठ। धीरे-धीरे विश्वास की ताकत उसके भीतर उमड़ने लगी। उसके मन में सबसे पहले यही इच्छा जागी कि बहन को तुरन्त जगाकर अभी-अभी मिली यह खुशखबरी उसे बताए। कमरे का दरवाजा जाने कब बंद हो गया था। उसने दरवाजा खोला और पलंग के निकट आई। वह सोती हुई बहन के कंधे पर हाथ रखना ही चाहती थी कि तभी उसे यह ख्याल आया कि मार्गरेट जगते ही मृत्यु और शोक की भावना से भर उठेगी और उसकी खुशी की तुलना में अपने दुःखों के बारे में सोचकर कड़वाहट से भर जाएगी। उसने देखा लैम्प की रोशनी शोकमग्न बेसुध शरीर पर पड़ रही थी। मार्गरेट अशांत निन्द्रा में थी। उसके वस्त्र अस्त-व्यस्त थे। उसके खूबसूरत गाल पर लालिमा थी। एक सजीव सी मुस्कराहट से उसके होंठ आधे खुले हुए थे, जिनमें खुशी का भाव प्रकट हो रहा था। हालाँकि उसकी पलकें मुँदी हुई थीं फिर भी उसके चेहरे से खुशी जैसे फूट पड़ना चाहती थी।

"मेरी बदनसीब बहन! जल्दी ही तुम्हारा यह सुन्दर सपना टूट जाएगा।" मैरी ने सोचा।

लौटने से पहले उसने लैम्प बुझा दिया और चादर मार्गरेट को ओढ़ाने लगी कि ठंडी हवा से वह जग न जाए। किन्तु मार्गरेट की गर्दन के पास उसका हाथ काँप उठा। एक आँसू उसके गाल पर टपक पड़ा और इसी क्षण मार्गरेट की नींद खुल गई।

(अनु०-अनुराधा महेन्द्र)

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