दो पाटों के बीच (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा

Do Paaton Ke Beech (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma

मैं लगभग दौड़तीभागती सड़क पार कर औफिस में दाखिल हुई और आधे खुले लिफ्ट के दरवाजे से अंदर घुस कर 5वें नंबर बटन को दबाया। लिफ्ट में और कोई नहीं था। नीचे की मंजिल से 5वीं मंजिल तक लिफ्ट में जाते समय मैं अकेले में खूब रोई।

औफिस के बाथरूम और कभीकभी लिफ्ट के अकेलेपन में ही मैं ने रोने की जगह को खोजा है। इस के अलावा रोने के लिए मुझे एकांत समय और जगह नहीं मिलता।

5वीं मंजिल पर पहुंच कर देखा तो औफिस के लोग काम में लगे हुए थे। मेरे ऊपर की अधिकारी कल्पना मैम ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखा और कहने लगीं ,“हमेशा की तरह लेट?”

“सौरी कल्पना मैम,” बोल कर मैं अपनी जगह पर जा कर पर्स को रख तुरंत बाथरूम गई ताकि और थोड़ी देर रो कर चेहरे को पोंछ सकूं।

सुबह उठते समय ही मीनू का शरीर गरम था। मीनू ने अपनी 2 साल की उम्र में सिर्फ 2 ही जगह देखी हैं। एक घर, दूसरी बच्चों के डौक्टर सीतारामन का क्लीनिक। क्लीनिक के हरे पेंट हुए दरवाजे को वह पहचानती है। उस के पास जाते ही मीनू जो रोना शुरू करती तो पूरे 1 घंटे तक डाक्टर का इंतजार करते समय वह लगातार रोती रहती है।

डाक्टर जब उसे जांचते तो हाथों से उछलती और जोरजोर से रोती और वापस बाहर आने के बाद ही चुप होती।

डाक्टर ने बताया था कि बच्ची को थोड़ा सा प्राइमेरी कौंप्लैक्स है। इसलिए महीने में 1-2 बार उसे खांसी, जुखाम या बुखार आ जाता है।

आज भी मैं औटो पकङ कर डाक्टर के पास जा कर कर आई और सासूमां को मीनू को देने वाली दवाओं के बारे में बताया। फिर जल्दी से बाथरूम में घुस कर 2 मग पानी डाल, साड़ी पहन, चेहरे पर क्रीम लगा और जल्दीजल्दी नाश्ता निबटा कर रवाना होते समय एक नजर बच्ची को देखा।

तेज बुखार में बच्ची का चेहरा लाल था। मुझे साड़ी पहनते देख वह फिर से रोना शुरू कर दी। उस के हिसाब से मम्मी नाइटी पहने रहेगी तो घर में रहेगी, साड़ी पहनेगी तो बाहर जाएगी।

“मम्मी मत जाओ,” कह कर वह मेरे पैरों में लिपट गई। उसे किसी तरह मना कर औफिस जाने के लिए बस पकड़ी।

“क्यों, बच्ची की तबीयत ठीक नहीं है क्या?” ऐना बोली।\

लंच के समय में घर फोन कर बच्ची के बारे में पूछा तो बोला अभी कुछ ठीक है। थोङी तसल्ली के साथ मैं ने खाना शुरू किया।

“ऐना, रोजाना औफिस जाने के लिए साड़ी पहनते समय जब ‘मत जाओ मम्मी’ कह कर मीनू रोती है तो उस की वह आवाज मेरे कानों में हमेशा आती रहती है।”

“दीपा, तुम्हारे पति तो अच्छी नौकरी में हैं। अब तुम चुपचाप घर में रहो। तुम को शांति नहीं है। बच्ची परेशान होती है। तुम्हारा पति इस के लिए राजी नहीं होगा क्या?” ऐना के आवाज में सच और स्नेह का भाव था।

“वह आदमी नाटककार है ऐना। नौकरी छोड़ने की बात करना शुरू करो तो बस यही कहता है कि तुम्हारा फैसला है तुम कुछ भी करो, मैं इस के बीच में नहीं आऊंगा। तुम्हें खुश रहना चाहिए बस। मैं इस सौफ्टवेयर कंपनी में हूं। कब नौकरी चली जाएगी नहीं कह सकते। बाजार ठीकठाक रहा तो सब ठीक, मंदी में कंपनी में कब तालाबंदी हो जाए कह नहीं सकते। तुम्हारी सैलरी से थोड़ी राहत मिलती है।”

“इस बार किसी से भी सलाह मत लो, अभी 2 दिन में बोनस मिलेगा। चुपचाप रुपयों को ले कर तुरंत इस्तीफा दे दो?” ऐना बोली।

मैं ने अपने कंप्यूटर पर ऐक्सैल शीट में जो भी रिकौर्ड भरना था भरा। सीधे व आड़े दोनों तरफ से टोटल सब सही है या नहीं मैं ने मिलान किया। फिर रिपोर्ट पर लेटर तैयार किया। सैक्शन चीफ कल्पना को और एक कल्पना के उच्च अधिकारी को एक प्रति भेज दिया।

इस बार मैं बिना रोए, बिना जल्दबाजी किए कार्यालय से बाहर आ गई। मुझे मेरा फैसला ठीक लगा।

घर आ कर देखा मीनू सो रही थी। सुबह जो पहना था वही कपड़े मीनू ने पहने थे।

‘बच्ची की तबीयत ठीक नहीं तो क्या उस के कपड़े भी नहीं बदलने चाहिए?’ मन ही मन सासूमां पर गुस्सा होते हुए भी मैं उन से बोली “बच्ची ने आप को परेशान तो नहीं किया अम्मां?”

वे बोलीं, “पहले ही से तेरी बेटी बदमाशियों की पुतली है। तबीयत ठीक न हो तो पूछो नहीं?”

मैं उन की बातों पर ध्यान न दे कर मीनू के पीठ को सहलाने लगी।

जब मैं छोटी थी तब मेरी अम्मां मेरे और मेरे छोटे भाई के साथ कितनी देर रहती थीं? हमारी अम्मां को साहित्य से बहुत प्रेम था।

हम कहते,”अम्मां बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है। डर लग रहा है।”

वे कहतीं कि वीर रस के कई कवि हैं उन की कविताएं बोलो जबकि दूसरे बच्चों के मांएं हनुमानजी को याद करने को कहतीं।

मेरी मां झांसी की रानी और मीरा की मिलीजुली अवतार थीं। वे अंधविश्वासी भी नहीं थीं। मेरा भाई रोता तो मेरी मां सीता बन जातीं और कहतीं कि चलो हम लवकुश बन कर राम से लड़ाई करें।

चांदनी रात में छत पर हमारी मम्मी मीठा चावल बना अपने हाथों से हम दोनों बच्चों को बिना चम्मच के खिलातीं जिस में केशर, इलायची और घी की वह खुशबू अभी तक ऐसा लगता है जैसे हाथों में आ रही हो।

जब कभी भी कहीं कोई उत्सव होता तो हमारी मम्मी हम दोनों बच्चों को रिकशा में साथ ले जातीं। हम दोनों भाईबहन उस रिकशे में एक सीट के लिए लङ बैठते थे।

हमेशा अम्मां हम दोनों को तेल से मालिश कर के नहलातीं। रात के समय चांदनी में हम अड़ोसपड़ोस के बच्चों के साथ मिल कर बरामदे में लुकाछिपी खेलते।

सोते समय नींद नहीं आ रही कह कर हम रोते तो वे हमें लोरी सुनातीं और तरहतरह के लोकगीत सुना कर सुला देतीं।

‘जब मेरी अम्मां हमारे साथ इस तरह रहीं तो रहीं तो क्या मुझे मीनू के साथ ऐसे नहीं रहना चाहिए क्या?’ यह सोच कर मैं एक योजना के साथ उठी। बच्ची को खाना खिलाने के लिए जगाया।

“मीनू, मम्मी अब औफिस नहीं जाएगी?” मैं धीरे से बोली।

“अब मम्मी तुम हमेशा ही नाइटी पहनोगी?” मीनू तुतला कर बोली।

अगले ही दिन औफिस जाते ही इस्तीफा तैयार कर के ऐना को दिखाया।

“आज तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी हुई लड़की जैसे रौनक दिख रही है,” ऐना बोली।

“अभी मत दे। बोनस का चेक दे दें तब देना। इस्तीफा दे दोगी तो फिर बोनस नहीं देंगे। जोजो लेना है सब को वसूल कर के फिर दे देना इस पत्र को डियर,” वह बोली।

दोपहर को 3 बजे कल्पना मैम मुझे एक अलग कमरे में ले कर गईं और बोलीं,”यह कंपनी तुम्हारी योग्यता का सम्मान करती है। इस कठिन समय में तुम्हारा योगदान बहुत ही सराहनीय रहा। सब को ठीक से समझ कर उन लोगों की योग्यता के अनुसार कंपनी ने तुम्हें भी प्रोमोशन दिया है। यह लो प्रोमोशन लेटर।”

उस लेटर को देख मैं ने एक बार फिर पढ़ा। ऐसा ही 2 प्रोमोशन और हो जाएं तो बस फिर वह भी कल्पना जैसे हो सकती है, सैक्शन की हैड।

डाक्टर ने बताया था,”मीनू को जो प्राइमेरी कौंप्लैक्स है उस के लिए 9 महीने लगातार दवा देने से वह ठीक हो जाएगी।”

मैं सोचने लगी,’3 महीने हो गए। 6 महीने ही तो बचे हैं। अगले साल स्कूल में भरती करने तक थोड़ी परेशानी सह ले तो सब ठीक हो जाएगा। अब तो सैलरी भी बढ़ गई है। सासूमां की मदद के लिए एक कामवाली को रख दें तो सब ठीक हो जाएगा। मेरे पति जो कहते हैं कि सौफ्टवेयर कंपनी का भविष्य का कुछ पता नहीं, तो फायदा इसी में है कि अभी कमाएं तो ही कल मीनू के भविष्य के लिए अच्छे दिन होंगे…’

मैं अचानक से वर्तमान में लौटी और बोली,”धन्यवाद कल्पना मैम। मैं ने इस की कल्पना नहीं की थी।”

वे बोलीं,”दीपा, कल तुम ने जो बढ़िया रिपोर्ट तैयार किया उसे और विस्तृत करना होगा। आज ही बौस को भेजना है। हो जाएगा?”

“हां ठीक है कल्पना मैम,” मैं बोली।

मैं ने घर पर फोन कर दिया कि लेट हो जाऊंगी। जो इस्तीफा मैं ने लिखा था उसे टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाल आई थी।

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