दो गज ज़मीन (उपन्यास) : शुभम् श्रीवास्तव
Do Gaj Zameen (Hindi Novel) : Shubham Srivastava
उपक्षेप
मम्मी मेरी कलम नहीं मिल रही है कहाँ रखी है कुछ आईडिया है आपको । अरे! वही कहीं किसी किताब के बीच में रखकर भूल गए होगे तुम । ठीक है खोज रहा मैं अभी ।
यार आखिरी बार मैंने किताब कब उठाई थी ? उम्म्म... परीक्षा के दिनों मैं उसके बाद तो मैं दोस्तों के साथ घुमने निकल गया था । अरे ! हाँ यार याद आया आखिरी पेपर मेरा डी०एल०डी० का था । कहाँ गई ! कहाँ गई ! कहाँ गई ! अब ये किताब नहीं मिल के दे रही । कभी – कभी मुझे खुद पे बहुत गुस्सा आता है । अरे कौनसा कायस्थ कैसा कायस्थ !! कायस्थ अपनी कलम अपने सीने से लगाकर रखते हैं जिस तरह एक राजपूत या एक मराठा का शौर्य उसकी तलवार में विलीन है वैसे ही कायस्थ का शौर्य उसकी कलम में विलीन है । मैं आजतक कॉलेज कभी समय पर नहीं पहुँचा । वो तो शुक्र है माता श्री का जिन्हें स्वछता से प्यार है वरना मुझे तो अपने कपडें तक तह करने नहीं आते । हाँ ये रही मेरी किताब कंप्यूटर टेबल के नीचे । चलो शुक्र है कलम इसी किताब में थी ।
हाँ तो मेरे प्रिय मित्रों यदि आप सुखद अंत में यकीन रखते है तो ये कहानी आपके लिए नहीं है । ये कहानी सत्य घटनाओ पर आधारित है और इसके परिदृश्य में नाम , समय व जगह का परिवर्तन लाया गया है और इसे लिखने का उद्देश्य व मर्म आप खुद ही कहानी के अंत में समझ जाएँगे ।
1. गाँव खतोनी शहर नासिक समय 1989
दीनदयाल गाँव के प्रसिद्ध किसान थे । लेकिन इनको ये ख्याति इतनी आसानी से नहीं मिली । जी हाँ न तो इनके पास कोई गड़ा धन था न तो इनके पास खुद के खेत । सिर्फ तीन कमरे बराबर एक झुग्गी थी इनकी । ये दिहाड़ी पर खेती करते थे खेत बड़े मालिक के और मेहनत इनकी । ज्यादा आमदनी तो दूर की बात है इनके पास तो दो वक़्त का भोजन करने के पैसे भी नहीं होते कभी – कभी । दिल के बड़े ईमानदार , कई क्विंटल गेहुं की पैदावार होने पर भी कभी चोरी नहीं की जितना उगाया सब रख दिया बड़े मालिक के आगे । वह जितना देते उससे ही अपना गुजर बसर करते । उनके तीन पुत्र थे हीरा, धीर और बलबीर ।
हीरा उन सब में सबसे बड़ा और सबसे गंभीर , कद छ: फुट से थोड़ा कम शरीर से तंदरूस्त और साँवरा रंग । धीर अपने नाम के बिलकुल विपरीत गुस्सेल , ज़िद्दी, चतुर और वाक्पटु कद मंझोला पाँच फुट आठ इंच के करीब रंग गोरा और हीरा से दो साल छोटा । बलबीर जिसका बल उसके माता – पिता में ही समाहित है स्नेह और करुणा सागर से भरपूर खेल कूद की उम्र का बालक धीर से तीन साल छोटा । चन्द्रिका दीनदयाल की पत्नी नम्र और कुशल गृहणी स्थिर मानसिकता वाली , अपने बच्चो पर प्राण न्योछावर करने वाली , उसने कभी दूजी औरतों की तरह हीरे – जवाहरात नहीं मांगे , मन तो था पर कभी हलात बने नहीं । दीनदयाल से अक्सर उसकी कहा सुनी हो जाती थी वैसे ऐसे कौन से पति-पत्नी हैं जिनमें कहा सुनी नहीं होती जहाँ स्नेह है वहाँ तकरार भी होती है । दीनदयाल अपनी ईमानदारी छोरने को तैयार न होते और चंदा अपने मातृत्व को सदैव तत्पर रहती ।
2.
समय चक्र अपनी ही गति से चलता जा रहा था , हीरा बड़ा हो रहा था और बड़प्पन में अपने से दूना । माता-पिता के श्रम , कलह और स्थिति ने उसे समय से पहले ही उसे ऐसा गंभीर व्यक्तित्व प्रदान किया । पढाई में मेधावी और गणित में सबसे कुशल । दसवी के नतीजे का बेसब्री से इंतजार करता हुआ अपनी माँ से बोला ।
हीरा – ‘माँ ।’
चंदा – ‘हाँ बेटा ।’
हीरा – ‘माँ ! 28 तारीख कब आएगी माँ, मुझसे अब नहीं सहा जाता, मुझे नींद नहीं आती न जाने आगे क्या होगा नतीजे कब निकलेंगे पता नहीं कितने अंक आए होंगे , क्या मैं आगे पढ़ पाउँगा माँ? मुझे 11 वी में विज्ञान लेने का मन है क्या मुझे विज्ञान से दाखिला मिल पाएगा माँ ?
चंदा – ‘ ओह हो ! कितना सोचते हो अभी तो सिर्फ इक्कीस तारीख ही हुई है । पूरे एक हफ्ते से ज्यादा है अभी , हो जाएगा सब कुशल ही होगा । ‘
हीरा के व्यथित मन को थोड़ी शांति मिली , अर्धरात्री का पहर था , वह सोने की कोशिश करने लगा । इधर चंदा को चिंता ने घेर लिया कि मेरे बच्चे के भविष्य का क्या होगा । क्या समय की मार के आगे उसके सपने दम तोड़ देंगे यह सब सोचते सोचते उसने निश्चय किया की मुझे कल सुबह उठकर इनसे बात करनी होगी आगे क्या किया जाए ।
3.
प्रातः काल उठते ही चंदा ने दीनदयाल से बोला ‘ अजी ! सुनते हो ‘
दीनदयाल – ‘कहो प्रिये ‘।
चंदा – ‘ अपना हीरा बड़ा हो गया है । कुछ ही दिनों में उसके 10वी के नतीजे आने वाले है । उसकी रूचि विज्ञान में है वह आगे और पड़ना चाहता है ।’
दीनदयाल अपने कर्म में मग्न रहने वाले ठेठ गाँव के इंसान थे उन्हें अपने काम के अलावा किसी चीज़ का होश नहीं रहता था । न बच्चों का जन्मदिन , न बीवी का और न ही खुद की जन्म तिथि और उम्र तक नहीं थी शादी की वर्षगाँठ तो भूल ही जाओ । उन्हें अंदाज़ा तो था की हीरा बड़ा हो रहा है लेकिन अभी तक वे सिर्फ यही सोचते थे होगा आठवी – नवी में क्या पता ।
दीनदयाल – ‘ सच में !’
चंदा – ‘ हाँ, उसे पैसे की ज़रूरत होगी शहर के विद्यालय में उसका दाखिला करवाना है । फिर वहाँ की फीस भी भरनी पड़ेगी । गाँव में तो गिरते – पड़ते हो गया किसी तरीके से । ‘
दीनदयाल – ‘ अच्छा ! ठीक है देखते है । मैं आज शाम को आकर उससे बात करूँगा ।’
ये कहकर दीनदयाल काम के लिए निकल गया । शाम को आकर उसने हीरा को बुलाया ‘ हीरा , मेरे बच्चे !’
हीरा – ‘ हाँ पिताजी ।’
दीनदयाल – ‘ कुछ ही समय बचे है तुम्हारे 10वी के नतीजे आने में आगे का क्या सोचा है ।’
हीरा – ‘ पिताजी , मैं विज्ञान पड़ना चाहता हूँ , दसवी के बाद मैंने शहर के अनेकों स्कूलों के चक्कर काटे । मुझे केंद्रीय विद्यालय सबसे ठीक लगा , गाँव के निकट भी और सस्ता भी । ‘
दीनदयाल – ‘ अच्छा कितनी फीस है स्कूल की ?’
हीरा – ‘ 400 रूपये तिमाही ।’
दीनदयाल सखते में पड़ते हुए बोला –‘ क्या ? अरे इतनी तो हमारी लगभग एक महीने की कमाई है । यह .. यह नहीं हो पाएगा और फिर आने जाने का खर्च और यूनिफार्म का फिर अलग अलग करके 10 नए खर्च निकलेंगे ये हमसे नहीं हो पाएगा बेटा । ‘
इतने भर में हीरा की आँखे नम होने लगी । यह देखकर चंदा बीच में कूद पड़ी और बोली ‘ कैसे नहीं करोगे हैं ? अपने लाल को अपनी ही तरह खेती करवानी है क्या सारी ज़िन्दगी ?’
तिलमिला कर दीनदयाल बोला –‘ भले ! ही खेती करता हूँ , लेकिन ईमानदार तो हूँ यह बात उपरवाले मालिक को भी पता है और बड़े मालिक को भी पता है । कभी दो आने भर की भी हेरा फेरी नहीं की मैंने यह सारा गाँव भी जानता है और इसलिए इज्जत भी करता है ।’
चंदा गुस्से में लाल होकर चीखी – ‘ ईमानदारी से घर के चूल्हे नहीं जलते, याद नहीं है क्या 5 दिन रोटी – प्याज में गुजारे थे । बड़े आए ईमानदारी की डींगे मारने वाले इसी ईमानदारी को पका कर खा लो और भर लो अपना पेट इससे । ‘
दीनदयाल – ‘पेट खाली था पर आत्मा तृप्त थी मेरी ।‘
चंदा –‘ मैं ये सब नहीं जानती, बस मेरा बच्चा तुम्हारी तरह खेती नहीं करेगा, तुम एक पिता भी हो ,ये दायित्व है तुम्हारा अपने बच्चो की शिक्षा पूर्ण करना, खुद तुम्हारे प्रियदेव विष्णु जी ने भी यही कहा है । ‘
यह सब सुनकर दीनदयाल ठंडा पड़ने लगा लेकिन वाद – विवाद तर्क – कुतर्क उसने फिर भी जारी रखा । मामला उलझता देखकर हीरा बीच आ गया और किसी तरह यह मचा कोलाहल शांत हुआ ।’
4.
रात्रि के लगभग 11 बज रहे थे गाँव में अक्सर कोई इतनी देर तक नहीं जगता लेकिन दीनदयाल की आँखों से नींद गायब थी । भले ही वह चंदा से लड़ लिया हो लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था की यहाँ चंदा सही है । उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली । वह मन ही मन बडबडाया –‘हे श्याम हे मालिक मैं अब क्या करू , आज तक तुमने मेरा सिर नही झुकने दिया , मुसीबते चाहे कितनी भी आई हो पार तुमने ही लगाया है । हे प्रभु कुछ तो रास्ता निकालो मुझे कुछ नही सूझ रहा । बड़े मालिक से उधार माँग लूँ यह सही रहेगा ‘ इतने में दूसरी सोच में पढ़ गया की ना चुका पाने के कारण जग हसाई होगी और हेर फेर करने पर जो सामान में नफा नुक्सान किया तो बदनामी भी होगी , क्योंकि जो लोग आज उसकी ईमानदारी के कसीदे पड़ते है वही सबसे पहले उसे ताने देने लगेंगे । कारणवश रातभर दीनदयाल को नींद नहीं आई, सूरज की पहली किरण निकलते ही वह घर से खेत की ओर भागा, खेत बस घर से 20 कदम की दूरी पर था । वह रोज़ की तरह खेती करने लगा । खेती करते करते वह वहीँ कब अस्थिर होकर गिर पड़ा उसे पता ही नहीं चला । नतीजा उसके बैल लवारा होकर खेत में दौड़ने लगे यह जब पास से गुजरते हुए बड़े मालिक ने देखा तो दीनदयाल को खूब फटकारते हुए कहा –‘ कौन सी धुन मैं हो दीन सारी फसल खराब कर देती बैल अभी, फिर हरजाना कौन भरता , बोलो दीन ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं थी सो मैं कहे देता हूँ अगली बार कुछ ऐसा हुआ तो खेती से निकाल दिए जाओगे, समझे की नाही ? ‘
दीनदयाल सब खड़े-खड़े मूक की भाति सुन रहा था अंत में बस हर बात का जवाब में यही बोलता ‘ जी मालिक’ । बड़े मालिक के जाते ही अपनी झुग्गी की ओर भागा, वहाँ जाकर मटके से पानी निकालकर उसने अपना चेहरा धोया और कहीं एकांत पाने के लिए भाग खड़ा हुआ उसे खुद भी नहीं पता था की कहाँ जाना है बस वह लगातार चलता जा रहा था ।
शाम को घर पहुँचा तो चंदा दरवाजे पर खड़ी मिली ऐसे-जैसे उसी की राह तक रही हो । चंदा ने उसे भागते हुए देखा था । उसने दीन से कारण पूछा तो पहले तो वह झिझका फिर सारा हाले बयाँ कर दिया । ये सब सुनकर चंदा को गुस्सा आया लेकिन उसकी हालत देखकर उससे कुछ नही कहा और तुरंत जाकर सेवा पानी का इंतजाम किया । आज थकावट के कारण उसे नींद आ गयी लेकिन चेतना अभी भी व्यथित थी ।
5. एक हफ्ते बाद
आखिर आज वह दिन आ ही गया । हीरा के पैर थर-थरा रहे थे । मन में इतना डर बसा था की परिणाम शब्द सुनकर ही उसका दिमाग चकरा रहा था । उसे यह भान था की नतीजे कुशल ही होंगे लेकिन शंका ये थी की क्या इतने कुशल होंगे की मुँह माँगा विद्यालय मिल जाए । हर ग्रामीण नवयुवक सरकारी विद्यालय की ओर देखता है विज्ञान लेने की लालसा से । उसकी हिम्मत नही पड़ रही थी घर से बाहर निकलने की । इतने में उसका सहपाठी मित्र गोपाल हाथ में अखबार लेकर दौड़ते हुए उसकी तरफ आता हुआ दिखा । उसके मुख पर हँसी थी और आँखों में आँसु थे । गोपाल ने उसके पास पहुँचते ही उसे गले से लगा लिया । फिर अखबार उसे दिखाते हुए कहा –‘मित्र ! ये देखो ‘ तुम्हारी तस्वीर ‘ ।
अखबार देखते ही उसके होश उड़ गए । उसे यकीन नही हो रहा था की प्रदेश में वह 86.4 प्रतिशत अंको के साथ द्वितीय स्थान पर है । महाराष्ट्र में उस वक्त ये उतने ही अंक है जितने आज सीबीएसई में 99% होते है । ऊपर से बेज्जती अलग से अगर अंक कम रहे तो सबको पता चल जाता है क्योंकि सभी के नतीजे अखबार में छपते थे । गोपाल इतने में बता ही रहा था की आस-पड़ोस की सारी औरतें और कुछ आदमी और कुछ रिश्तेदार पहुँच गये उसे बधाई देने के लिए । शोर सुनकर चंदा बाहर आई तो पाया उसके घर पर लोगो का तांता लगा हुआ है । पास की पड़ोसन मीना आकर चंदा से बोली –‘बधाई हो तुहार लाल ने प्रदेश में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है । इधर से चंदा हीरा की ओर दौड़ी उधर से कनक मामा ने हीरा को ख़ुशी से गले लगा लिया ओर उठाकर हवा में गोल लहरा दिया जैसे किसी लाडले के होने पर उसे घुमाया जाता है गोल – गोल । वही दीन को ये खबर उसके मित्र जयदेव ने दी । वह भी भागकर घर पहुँचा । शाम होते होते लगभग हर इंसान को पता लग गया था कि दीनदयाल के लड़के ने इस बार बजी मार ली है । कुछ लोगो ने उसे भेंट भी दी तो कुछ ने किताबे प्रदान की । अगले दिन ज़मींदार बड़े मालिक भी हीरा से मिलने आए । फिर उसके बाद मेयर जी भी पहुँचे शाबाशी देने के लिए । मीडिया वालो ने भी खूब कवरेज दिया, परिवार के हलात के बाद भी उसके पढ़ने के जज़्बे को सलाम किया । तकरीबन एक हफ्ते तक यही चलता रहा । अंततः हीरा हो मन में संतोष हुआ । दीन ने भी ठान ली थी की अब वह कैसे भी करके हीरा को कम से कम 12वी तो पड़वा कर ही रहेगा ।
6. दो महीने बाद
जुलाई का पहला हफ़्ता शुरू हुआ । हीरा का विद्यालय में पहला दिन था । वह अति-उत्साहित था और हो भी क्यों न जो वह उसका सपना पूर्ण हुआ केंद्रीय विद्यालय में विज्ञान अहर्ता ऊपर से आधी फीस माफ़ । उन्होंने उसका दोनों हाथ से स्वागत किया । उसके मन का बोझ हल्का हो गया । इधर गोपाल के भी 78% के साथ उसी विद्यालय में दाखिला हुआ लेकिन उसने विज्ञान की जगह आर्ट्स ली उसकी कोई ख़ास रूचि नही थी विज्ञान पढ़ने की, न ही उसके माता – पिता इतने अमीर की वह विज्ञान पढ़ा सके उसका सपना सिर्फ सरकारी बाबु बनके चैन से ज़िन्दगी बिताने का था । तक़रीबन एक हफ्ते हुए होंगे विद्यालय जाते हुए, सब कुछ ठीक चल रहा था फ़ीस भी इतनी कम थी की दीनदयाल भर सकते थे । लेकिन आने-जाने के खर्चे ने माथे पर शिकन डाल दी । हिसाब लगाने बैठा तो पाया की तांगे का खर्च प्रतिदिन 10 रूपये है । पहले तो उसने सोचा था की वह ये रास्ता पैदल ही तह कर लिया करेगा लेकिन अब गोपाल भी उसके साथ जाता था । अपनी वजह से वह उसे तकलीफ़ नही देना चाहता था और न ही चाहता था की मित्रता में कोई दरार आए । गोपाल ने सहपाठी बनकर उसे अपने मित्रता का परिचय दिया था तो वह भी अपनी इस मित्रता को बरक़रार रखना चाहता था । वह ये सब सोच ही रहा था की गोपाल ने उसे थपकी मारकर कहा –‘कहा खोये हुए हो किस सोच में डूबे हो इतनी?, घर आ गया मेरा कहो तो सेवा टहल करले थोड़ी ।’
हीरा –‘ नहीं ! आज मन नहीं है मेरा फिर कभी , अभी मेरा सिरदर्द कर रहा है ।’
गोपाल –‘तो फिर तांगे वाले भैया से कह दूँ तुम्हें घर तक छोड़ दें ?’
हीरा –‘नहीं यार ! 10-15 कदम ही तो दूर है यह से ।’
गोपाल –‘जैसी तुहार इच्छा ।’
अब वह उतरकर घर की ओर चला और गोपाल अपने घर । रास्ते में एक मंदिर पड़ता था हीरा अक्सर वहाँ जाया करता था । जब वह मंदिर के पास से गुजर रहा था तो उसकी नज़र मंदिर की दीवारों पर पड़ी उसपे कुछ श्लोक लिखे थे उसने एका-एक पड़ने शुरू किये । पहला था –‘ राम नाम की लूट मची है , जितना चाहे लूट अंत मे पछताएगा जब प्राण जाएँगे छूट ।‘ दूसरा –‘अति ही अंत का परिचायक है ।’ तीसरा –‘ मनुष्य को निराश नही होना चाहिए की उसके पास क्या नही है बल्कि उसे पाने के लिए वो क्या कर सकता उससे जो उसके पास है यह महत्वपूर्ण रखता है ।’
यह बात उसे घर कर गई , उसे कुछ बूझा । वह जल्दी से घर जाकर वह से एक सफ़ेद कपड़े पर काले रंग के पेंट से लिख दिया ‘हीरा मास्टर’ ,शाम 5-7 ,पीपल के पेड़ के नीचे ,सभी विषय । शुरुवाती दिनों में सिर्फ 3 बच्चे मिले मुंशी जी के , फिर धीरे – धीरे 3 से 5 हुए ,5 से 15 और 15 से 30 और जहाँ हीरा को पैसे सिर्फ जाने के लिए चाहिए थे । वहाँ अब इतने हो रहे थे की वह अपने दोनों भाई का खर्चा उठा ले । दो महीने के भीतर उसने अपनी माँ को चाँदी का छल्ला बनवा के दिया । आखिर ये सब होता भी क्यों न वह गाँव के शीर्ष बच्चो में से एक था । दीनदयाल अपने बेटे की सफलता से पूर्णता: संतुष्ट हो चुका था । तो अब तक आप सब जान ही चुके होंगे की दीनदयाल एक मशहूर किसान कैसे बन गया । पर कहानी यही खत्म नही होती है ये तो सिर्फ शुरुआत है ।
7.
धीर दीनदयाल के दूसरे पुत्र उल्टी गंगा में बह रहे थे । जहाँ हीरा घंटो पड़ता था वही धीर एक घंटे में किताबों के सामने घुटने टेक देते थे । उनका कभी पढाई में मन ही नही लगता था । उसका सोचना था की हमारी शिक्षा व्यवस्था चरमरा चुकी है । अत: तुम कितना भी पढ़लो कोई फायदा नहीं होगा । उसके हिसाब से अगर दुनियादारी की विद्या अगर इन किताबों में मिलती तो वह इन्हें सबसे पहले पड़ता । वह हीरा को अत्यंत भोला समझता था और कभी–कभी बेवकूफ भी कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग बसते है वही आज भी यह पिताजी की तरह उदार हृदय लेकर घूमता है । धीर कुटिल, चालाक, हठी और मौक़ापरस्त लड़का था । उसका कहना था जैसी दुनिया है वैसा मैं हूँ मुझसे जो जैसा व्यवहार करेगा मैं भी उसके साथ वैसा ही बर्ताव करूँगा । फिर उसे दोस्त भी ऐसे ही मिले जो सारा दिन ऐशबाज़ी करते थे कभी ताश खेलते तो कभी क्रिकेट तो कभी गिल्ली-डंडा कई–कई बार तो वह भोजन करने भी नही आता था । लत सारी बुरी और एक से बढकर एक; हर विद्यालय और पास के कॉलेजो की लडकियों को अवकाश के समय ताड़ना । यूनिवर्सिटी में अपने नेता का प्रचार-प्रसार करना व विपक्षी नेता को डरा धमकाकर बैठा देना या उन्हें कुछ दिन के लिए नज़रबंद कर देना जिससे वह प्रचार ही ना कर सके । तरह-तरह की उल्लास-विलास की चीज़े जैसे शराब, अफीम ,गाँजा व सिगरेट का खुद सेवन करना और दूजो को भी करवाना । जिस नेता का वह प्रचार करता था वही उसे सब चीज़े मुहैया करवाता था । जी हाँ एक दम सही पकड़ा है जनाब अपने सभी चीज़े । उसका गाँव के लफंडरो-बदमाशों की सूची में नाम आता था और दबदबा भी इतनी छोटी सी उम्र में । लोग उसके बारे में दबी आवाज़ में भी कहने से कतराते थे और सामने तो ऐसे बनते थे जैसे सबसे बड़े शागिर्द उसके वही हो ।
8.
संध्या हुई धीर घर लौटा हाँथ-धोकर बैठा ही था की पिताजी ने उससे पुछ लिया-‘ क्यों रे छोरे तुहार माई क्या कहत अउ, 10वी नही करनी तुमने ?’
धीर -‘नहीं पिताजी ! मेरा मन इन किताबो में कभी नही लगता है ।’
दीनदयाल –‘लगे भी क्यों घर में पैर नहीं टिकते तुम्हारे, पढाई के लिए परिश्रम करना पड़ता है । हीरा को देखो कितनी मेहनत करता है दिन-रात एक कर देता है और एक तुम हो लफंदरो की भाँती घूमते रहते हो सारा दिन , सब पता है तुम्हारा क्या-क्या कांड और कारनामे करते हो । सभी गुंडे-बदमाशों से तालुकात है तुम्हारे किसी दिन पक्का हमारा सिर नीचा करवाओगे समाज में।’
धीर हँसते हुए –‘ कहाँ की बात कहाँ ले जाते हो पिताश्री मेरा मन पढाई में नही लगता तो नही लगता और मेरे किसी बदमाश से दोस्ती नही है वह तो यूनिवर्सिटी का नेता है और पार्टी का युवा नेता है । उगते हुए सूरज के साथ चलने में ही भलाई है । ये 20वी सदी है पिताजी यहाँ हर कोई कभी भी काम दे सकता है । लोगो के साथ वह कैसा भी व्यवहार करे, है तो मेरा दोस्त ही और उसने मुझसे कभी दुर्व्यवहार नही किया । ‘
दीनदयाल -‘सुना है उसने विपक्षी नेता को क़ैद करवाया था ।’
धीर –‘पता नही ।‘
दीनदयाल –‘क्या उसमे तुम्हारा हाथ है ?’
धीर –‘नहीं ।‘
धीर के चेहरे पर शिकन तक नही पड़ी उल्टा उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया ।
दीनदयाल –‘तो तुमने ठान लिया है की तुम्हें नहीं पढना?’
धीर –‘ हाँ पिताश्री मैं नहीं पढूंगा चाहे कुछ भी हो जाए ।’
दीनदयाल गुस्से में –‘बिना पढाई कैसे काम मिलेगा बताओ कैसे!! कैसे हाथ पीले होंगे तुम्हारे कौन तुमसे शादी करेगा ? समाज में चार ताने लोग रोज़ तुम्हे उठते –बैठते सुनावेगे ।’
धीर अब इन प्रश्नों की बौछार से तिलमिला चुका था सो चिल्लाते हुए बोला –‘जो होगा देखा जाएगा । अनपढ़ तो आप भी हो माँ ने की न शादी । मुझे नहीं पढना तो नहीं पढ़ना कर लूँगा नौकरशाही का काम कहीं ।’
दीनदयाल ने गुस्से से तिलमिलाकर उसे तमाचा मारने की कोशिश की हाथ धीर ने बीच में ही रोक दिया और झटक दिया । मामला गरम होता देख हीरा , बलबीर और माँ ने बीच बचाव करके मामला शांत कर दिया ।
धीर को अपनी करनी के लिए माफ़ी मांगने का दबाव बनाया गया तो वह सॉरी बोलकर उठके चला गया ।
उसके जाते ही दीनदयाल रोते हुए बोला –‘आखिर मैंने ऐसा क्या गलत कह दिया । मैं तो उसकी भलाई ही चाहता था । एक पिता हमेशा अपने बेटे को अपने से ऊपर देखना चाहता है ।’
9.
समय तेज़ी से आगे बढता जा रहा था । 12वी की परीक्षा में कुछ तीन महीने रह गए है । इस बार हीरा पर दुगना दबाव है । दूसरी सफलता पहली से ज्यादा जरूरी होती है क्योंकि ये सिद्ध करता है की पहली वाली कोई भाग्य खुलने से नहीं आई है बल्कि मेहनत से है । उसे यह भान हो चला था की इस बार उसकी साख़ दांव पर हैं सबकी नज़रे उसपर है । परीक्षा मार्च में है और दिसम्बर शुरू होने में अभी एक हफ्ता थे ।
हीरा ने बच्चो से कहा ‘ अगले महीने से मैं आप सबको नहीं पढ़ा सकता आप सबको पता ही होगा की मेरी 12वी की परीक्षा है मुझे इसके लिए तैयारी करनी है ।
रामू (एक छात्र ) –‘ पर परीक्षा तो मार्च में होती है । हमें तो 3 दिन लगते है पढ़ने में आप सर 3 महीने माँग रहे हो ।’
हीरा –‘ रामू बेटा ! 12वी की परीक्षा करियर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण परीक्षा होती है । इसमें अच्छे अंक प्राप्त करने से अच्छे कॉलेज में एडमिशन होगा ।’
मिंटू (दूसरा छात्र ) –‘ पर आप हमें ऐसे छोड़ देंगे तो हमें कौन पढ़ाएगा सर हमारे भी तो पेपर है हमारे माता – पिता हमें बहुत मार मारेंगे अगर अंक कम आये तो ।’
हीरा –‘ बेटा मै तुम्हारी मदद कर दूंगा, अगर कोई दिक्कत आई तो पढ़ने में तो आ जाना मुझसे पूछने । पाठ्यक्रम तो वैसे भी मैंने पूरा पढ़ा दिया एक-आदा बचता होगा वह मैं पढ़ा दूंगा इस हफ्ते के अन्दर तक ।’
सभी बच्चो ने हीरा से विदा लिया । यह बात कुछ पेरेंट्स को बहुत बुरी लगी वह अगले दिन सीधा धमक पड़े किसी ने गुस्से से पैसे माँगे । किसी ने रोष जताया । किसी ने धमकाया की अगर बच्चे का रिजल्ट ख़राब आया तो वह नही छोड़ेंगे । किसी ने उसे स्वार्थी कहा तो किसी ने उसे यह तक कह दिया की दूसरे के भविष्य से खेलकर तुम आगे नही बढ़ सकोगे , न जाने कितनो ने धिक्कारा और कितनो ने लानते दी । हीरा ने सबको शांतचित से समझाया । अंत में सब थक हार कर लौट आए ।
10.
हीरा ने दिसम्बर चालू होते ही दिन-रात पढ़ना शुरू कर दिया । वह घंटो-घंटो भर किताबों में ही घुसा रहता था न उसे दिन का ज्ञात न उसे रात का भान वह तो सिर्फ पढ़ता रहता था । पिछले 10 वर्ष के पेपर उसने कम से कम 5 बार कर डाले । दिसम्बर, जनवरी इन्ही सब में बीत गई । फरवरी की शुरुवात हुई सी०डी०एस० और एन०डी०ए० के फॉर्म निकले । गोपाल ने जैसे ही यह सुना उसने फॉर्म भर दिया । भागा-भागा वह हीरा के पास गया । दोपहर के दो बज रहे थे । हीरा भोजन करके ही उठा था । इतने में उसे बाहर से गोपाल की आवाज़ सुनाई दी । वह घर से बाहर आया ।
गोपाल –‘तुम कहाँ हो दो महीनो से न खोज है न खबर एकदम भूल गये हो ऐसा लगता है । ‘
हीरा –‘ नहीं ऐसा नहीं है ! गोपाल ! मेरे मित्र ! मैं इस बार यह सुनिश्चित कर रहा हूँ की मेरे अंक फिर से अव्वल आए, मैं घर से बाहर भी नही निकलता इसी डर से । यह पहले की तरह नहीं है । इस बार साख़ दांव पर है, हम सबकी, मेरी, परिवार की, गाँव की, एक बार आप ऊपर चढ़ जाते है तो लोगो को आपसे अनेक आशाए होती है , बस उनी पर खरा उतरने की कोशिश है ।’
गोपाल – ‘ ओह हो ! तुम कितना सोचते हो यार ! ये देखो ! फॉर्म है सी०डी०एस० और एन०डी०ए० का । सेना में भरती हो जाओ । इससे बड़ी गर्व की बात भला क्या होगी ? मेरा तो बचपन से ही सरकारी कर्मचारी बनने का शौक था , कम मेहनत और ऐश की ज़िन्दगी जियो पर सेना में होने का अपना अलग ही रुतबा होता है , लोग ताल ठोकते है , सलाम करते है , इज्ज़त होती है ।’
हीरा-‘ चलो देखते है ।’
हीरा ने दोनों पेपर गोपाल के हाथ से ले लिए और उन्हें ध्यान से पढ़ने लगा फिर उन्हें आधे घंटे में भर के दी दिया ।’
गोपाल फॉर्म पढ़ते हुए –‘ ये क्या ? एन०डी०ए० में लैब असिस्टेंट और सी०डी०ए० में मेडिकल असिस्टेंट ! मुख्य सेना में भर्ती होने से डर लगता है क्या गुरूजी ।’
यह कहकर गोपाल ठहाके लगाने लगा ।
हीरा-‘नहीं यार ! मैंने विज्ञान लिया था मुझे तब ज्यादा ख़ुशी होगी जब मैं मेडिकल असिस्टेंट बन जाऊं तो ; भला घायल सैनिक का उपचार करने से ज्यादा सुकून किसमे मिलेगा । लैब असिस्टेंट ऐसे ही भर दी विज्ञान स्नातक होना जरूरी था इसमें । देश के लिए काम भी और स्व: शांति भी ।’
गोपाल-‘ अच्छा चलो बढ़िया है । मैं चला ये डाकघर डालने । अगर कोई और आएगी हमारे लायक तो फिर बता दूंगा ।’
हीरा –‘ हाँ ! मित्र ज़रूर ।’
बाद में तीन और निकले एस०एस०सी० , कांस्टेबल और एफ०कैट० । गोपाल ने तीनो भर दिए पर हीरा ने सिर्फ एफ०कैट० ही भरा वो भी फिर से मेडिकल असिस्टेंट ।’
11. मार्च 1, सोमवार
आख़िरकार वह दिन आ ही गया , जब परिक्षाए शुरू हुई बोर्ड की । हीरा ने मन लगाकर पेपर दिए दिन-रात एक कर दी पढाई में । परिक्षाए जब समाप्त हुई तो सरकारी नौकरी की परिक्षाए शुरू हुई । पहला एफ०कैट० का हुआ , हीरा को कुछ समझ नही आया की हो क्या रहा है । उसने जितना सोचा था ये उसे कई ज्यादा कठिन निकला । टाइम कब ख़त्म हो गया पता ही नही चला । गणित जिस पर उसे सबसे ज्यादा गर्व था आधे से ज्यादा छूट गया । वह समझ गया था कि वह पेपर तो हाथ से निकल गया । मन उदास हुआ लेकिन उसने आगे बढ़ना नही छोड़ा । फिर आया एन०डी०ए० इसमें सबसे पहले गणित ही किया फिर बाकी का बचा हुआ लेकिन यहाँ सामान्य ज्ञान में मात खा गया बाकी रही सही कसर अंग्रेजी ने पूर्ण कर दी । यह भी गया कचरे में । अब हीरा सकते में आ गया उसे समझ नही आ रहा था की हो क्या रहा है उसके साथ । इस बार उसने अंग्रेजी के लिए पास के गाँव एक साइबर कैफ़े था वहाँ जाकर तैयारी शुरू की । सामान्य ज्ञान के लिए पेपर मँगवा लिए और जुट गया अपनी खामीयों को पूरा करने में । यह वाला सबसे अच्छा होने पर उसने राहत महसूस की । इधर गोपाल ने एका-एक सारे पेपर दिए दो बेकार बाकी सब सही गए ।
12. 16 मई,
इस बार गोपाल से ज्यादा हीरा उत्सुक था अंक जानने के लिए । सुबह के करीब 5:30 बज रहे होंगे , हीरा ने दीनदयाल की साइकिल उठाई और चल पड़ा प्रिंटिंग हाउस की तरफ । 6 बजे तक वह वहाँ पहुँच गया । जाके तुरंत उसने स्टाल से एक अखबार ख़रीदा । इधर दीनदयाल सुबह खेती की ओर निकला तो देखा की उसकी साइकिल गायब है ।
फिर उसने चंदा से पूछा-‘ अरे चंदा ! मेरी साइकिल किधर है, कहीं चोरी तो नही हो गई ?’
चंदा -‘नहीं रे बलबीर के बापू हीरा लेकर गया होगा उसके नतीजे आने वाले थे ना 12वी के ।’
इधर हीरा ने अखबार देखा तो उसके होश उड़ गए । पहले दस बच्चो की सूचि में उसका नाम भी नहीं था । मन उदास हो गया फिर आगे के पेज खंगाले तो खुद को प्रदेश की 18वी रैंक के साथ 82.38% और नासिक की 4थी रैंक पर पाया । दिल टूट गया और नयन से अश्रुधारा बह निकली । उसे यह समझ नही आ रहा था की वह अपने माँ-बाप को कैसे मुख दिखाएगा, पड़ोसी क्या कहेंगे, गाँव वाले क्या कहेंगे, सब निराश होंगे की साख़ चली गई । यह सोच-सोचकर उसका दिल बैठा जा रहा था इसलिए उसका मन नहीं हो रहा था की वह गाँव जाए पूरे 1 घंटे उसने वहीँ बिता दिए बैठे-बैठे । इतने में गोपाल आता दिखा, उसको आता देख हीरा ने अपने आँसू पोंछ लिए अपने ।
गोपाल –‘ ये मुख लटका के क्यों बैठे हो , कैसा रहा भाई ?’
हीरा ने उसे अखबार थमा दिया । उसने देखा तो वो भी हैरान रह गया लेकिन होसला बढ़ाते हुए अपने अंक देखने लगा, अपने अंक देखा तो चकरा गया 75% की उम्मीद रखी थी उसने और यहाँ तो 70 भी पूरे नहीं हुए 68.65% था कुलयोग । उसकी हालत देख हीरा उठा , अब वह उसे संभालने लगा । शायद यही सची मित्रता होती है । अपने दर्द को भूलकर अपने साथी की मदद करना । दोनों फिर किसी तरह गाँव पहुँचे । हीरा को आता देख चंदा ने पूछा-‘ क्या हुआ?’
हीरा –‘ ठीक ही है माँ ज्यादा अच्छे नही आए । उम्मीद से भी नीचे कहाँ प्रदेश में मैं द्वितीय था और कहाँ अब मैं जिले में चतुर्थी पर हूँ । ‘
हीरा ने चंदा के हाथ में अखबार थमा दिया और घर के अन्दर जाने लगा उसे शर्म महसूस हो रही थी किसी से नज़रे मिलाने तक मैं ।
चंदा – ‘ इतने बुरे भी नहीं है जितने तुम जता रहे हो । विद्यालय में तो प्रथम आए होगे न ?’
हीरा –‘ हाँ माता ।‘
चंदा –‘ तो फिर ? .. मुझे तो आज भी तुम पर नाज़ है बेटा । तुम कुलदीपक हो हमारे वंश के, हमारे परिवार में कोई इतना गंभीर और बुद्धिमान नहीं हुआ आज तक ।’
हीरा –‘पर विश्वास वो तो टूट गया ना सबका सबकी आशाएँ मिट्टी में मिल गई । ‘
चंदा –‘ ओह हो ! इतना नहीं सोचते मेरे लाल–गोपाल ।’
हीरा –‘सोचना तो पड़ता ही है माता ।‘
चंदा बात को बदलते हुए –‘ आगे का फिर क्या सोच रखा है ?’
हीरा –‘ तीन सरकारी परिक्षाए दी थी अगर होगया चयन तो सही है वरन जुलाई से बच्चो को पढाना शुरू कर दूंगा औए बी०एस०सी० कर लूँगा डिस्टेंस से ,साथ ही तैयारी भी चलती रहेगी सरकारी नौकरी की ।’
चंदा –‘ चलो ठीक है अब से कोई बात नहीं होगी इस बारे में , तुम बताओ आज क्या बनाऊ खाने में मैं खीर या सेवैय्या ।’
एक माँ को हमेशा अपने बच्चे को खुश रखना आता है ।
हीरा तुरंत ख़ुशी से –‘ सेवैय्या ‘ ।
चंदा पैसे थमाते हुए-‘ जा ले आ सेव फिर चंगु की दुकान से ।‘
चंगु की दुकान पर पहुँचकर हीरा ने बोला- ‘ काका ! ज़रा सेव देना 200 ग्राम ।’
चंगु-‘ क्या बात है हीरा कुछ ख़ास है क्या घर में ? सुना है आज 12वी के नतीजे आए है , आग लगा दी इस बार भी क्या ?’
चंगु जानता था की हीरा के घर में ये सब बहुत खुशी के मौके पर ही बनाया जाता है ।
हीरा –‘ नहीं ठीक ही रहा काका जिले में 4थी और प्रदेश में 18वी । ‘
चंगु नाक सिकोड़कर- ‘कोई नहीं यार हम तो चार शब्द पढ़कर भी सो जाते थे । तुम तो फिर भी घंटो पढ़ते थे । ‘ बोलते हुए सेव हीरा को पकड़ा दी ।
रास्ते भर मे पड़ोस के लोग जहाँ-तहाँ उससे मिलते तो उसके नतीजे के बारे में पूछते । मजे की बात तो यह थी की जिनके बच्चे कभी 50% से ज्यादा नही ला पाते थे, वे लोग भी नाक – मुह सिकोड़कर उसके बारे में उल्टे-सीधे क़यास लगा रहे थे ।
किसी ने कहा ‘ लगता है शहर की हवा लग गई हीरा को ‘ तो किसी ने यह कहा –‘लड़की का चक्कर है ‘
तो किसी ने यहाँ तक कह दिया –‘ अपने छोटे भाई के नक़्शे कदम पर है ।’ खैर जितने मुह उतनी बाते जो ना भी हो वो भी बना दिया जाए ।
हीरा ने घर पहुँचकर सेव माँ को दे दी और खाट पर लेटकर सो गया ।
13. चार दिन बाद
अब सरकारी परीक्षाओ के नतीजे आने चालू हुए । सबसे पहले एन०डी०ए० के नतीजे आए न गोपाल के हाथ कुछ लगा और ना ही हीरा के । पहला बंदा 9 अंको से रह गया तो दूसरा 16 अंको से ।
जो लोग दबी आवाज़ों में बोल रहे थे हीरा के बारे में अब वह आवाज़े प्रबल हो गई । यह देखकर धीर को गुस्सा आता था फिर क्या ! एक-आद में बजवा दिए लट्ठ जमके । यह बात हीरा को जब पता चली तो उसने धीर को लताड़ दिया । तनाव बढ़ने लगा था दिन-प्रतिदिन । फिर आए एफ०कैट० के नतीजे इस बार भी वही हाल रहा । हीरा पर और तनाव बढ़ गया मानो प्रेशर कुकर की सीटी हो जो कभी भी बजने को तैयार हो । उसने तो फॉर्म ऐसे ही भर दिए थे और यहाँ बात बनने लग गई , सारी कमाई हुई इज्ज़त उसे जाती हुई सी लगी । अब वह सोच रहा था की उसने क्यों भर दिए फॉर्म और अगर भरे भी तो बाकियों के क्यों नहीं भरे क्या वजह रही । अपने भाग्य को उसने कोसना शुरू कर दिया । एक हफ्ते बाद गोपाल का प्रथम चरण निकल गया एस०एस०सी० का अब उसे दूसरे चरण की तैयारी करनी थी । हीरा गोपाल से तो बहुत खुश हुआ लेकिन वह अपने भाग्य पर जल-भुन गया उसका अंतर्मन दुःख की दरिया में गोते खा रहा था । उसे ज्यादा दिन ऐसा नहीं सोचना पड़ा क्योकि तीन दिन बाद ही सी०डी०एस० के नतीजे आए । इस बार उसकी मेहनत रंग लाई, देखा तो पाया की ज़रूरत से 34 अंक ज्यादा थे । 100 जनरल सीटो पर चयन था जिसमे उसने 62वा स्थान प्राप्त किया था । मन को सुकून मिला और खुशी चौगुनी, कि अब वह फौजी भाइयो की सेहत का ख्याल रखने वाला बन गया । सारे गाँव भर में फिर से खुशनुमा वातावरण हो गया और यह गर्व की बात हो गई थी की गाँव का एक बन्दा सेना में भर्ती हुआ है । बहुत बच्चो ने हीरा को कहा की हम आपकी तरह फ़ौज मै जाएँगे । यह सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता महसूस हुई की अब वह बच्चो के लिए प्रेरणा-स्त्रोत है । गोपाल का इस बार भी नही आया लेकिन उसे कोई ख़ास चिंता नहीं हुई क्योकि उसका एस०एस०सी० पहले ही निकल गया था । एक हफ्ते बाद आया महारास्ट्र पुलिस परीक्षा के नतीजे गोपाल ने यह पेपर भी निकाल लिया । गोपाल का ख़ुशी से ठिकाना नही रहा । अगले हफ्ते फिजिकल ट्रेनिंग में बुलाया गया उसने ये भी पास कर लिया ।
अब उसने भी ठान ली की पुलिस ही बनना है अब उससे और मेहनत नहीं होगी आगे । इधर हीरा को लेह की थल सेना में भेजा गया । दोनों दोस्त ख़ुशी-ख़ुशी देश सेवा में जुट गए ।
14. दो साल बाद
हीरा बस साल-भर में एक ही बार आ पाता था या तो होली या फिर दिवाली । माता-पिता को उसकी कमी खलती थी कि वह उनकी आँखों के सामने नही है । फिर भी मन की शांति होती थी कि उनका एक बेटा तो अच्छा निकल गया जिसपर पूरे गाँव को नाज था । इधर बलबीर भी पढ़ने लगा मेधावी था पर हीरा की तरह नहीं । उसको बस 12वी के बाद एक सरकारी नौकरी चाहिए थी यह स्वप्न उसने अपनी आँखों में बसा लिया की आर्ट्स के बाद सिर्फ सरकारी नौकरी । इधर धीर के नेताजी पिछले साल ही चुनाव हार गये । धीरे-धीरे धीर के जीवन की काया-पलट होना शुरू हो गयी थी । नेताजी अब इतने मिलनसार नही रहे । पॉवर चला गया तो दवा-दारु थम सा गया उनकी मेफ़ीले नही लगती थी अब लोग भी कटने लगे थे उनसे, कुछ ने नौकरी करली , कितनो ने छोटे-मोटे काम पकड़ लिए, कितने दोस्तों ने धंधे खोल लिए अपने । गिनके बस 4-5 लोग ही बचे उसके साथ । अब धीर तो चिंता होने लगी क्योकि उसका रुतबा नीचे गिरने लगा था, लोगो पर उसकी पकड़ छूटने लगी थी उसकी , जो कल तक उसके सामने नतमस्तक थे आज वह उसके सामने ऐसा व्यवहार कर रहे थे जैसे उसे जानते ही ना हो । उसकी बुरी लत अब उसे परेशान करने लगी थी । उसका शरीर शराब माँगता था हाथ-पैर थर-थराकर काँपने लगते थे । बार-रेस्टुरेंट में जाने का मन होता था पर पैसे नही होते थे । धीरे-धीरे वह अपनी लत के कारण उधारी के दल-दल में धसता चला गया । कोई काम देने को तैयार नहीं होता था । उधारी बढ़कर दो हज़ार तक पहुँच गई जो इस समय के हिसाब से लगभग आठ हज़ार के बराबर होगी । जो जहाँ पाता था धीर और उसकी टोली से पैसे माँगने लगता था । धीर, वीर, चेतन, दिनेश चारों इसी चिंता में डूबे रहे थे ।
वीर-‘ समझ नही आता क्या करे ? ‘
चेतन-‘ यार पैसे ना हो गए बवाल हो गए !’
दिनेश-‘ हाँ भाई कोई मदिरा देने को राज़ी नहीं हो के देता ।‘
धीर-‘ कुछ तो जुगाड़ करना ही पड़ेगा भाइयो । सोचो! सोचो!’
दिनेश-‘ यार सबके घर पे कितने होंगे ? मेरे पे 150 ।’
चेतन-‘ 200 रूपये ।’
धीर-‘ अरे पागल हो क्या सारे के सारे । एक साथ चोरी होगी सबके घर में तो शक हो जाएगा और शक की सुई हमपर आके रुकेगी सीधा ।’
वीर-‘ तो करे क्या?’
दिनेश-‘एक आईडिया ।‘
चेतन-‘ तो बताओ बे जल्दी से ।’
दिनेश-‘ देखो हमारे माँ-बापू मौसी जी के बिट्वन की शादी में जा रहें है परसों । तो हमार घर खाली रहेगा दो-तीन दिन, क्यों न धीर के इंया से 6-7 बोरी गेहूँ की उठा लेते है 1700-1800 तक का जुगाड़ हो जावेगा । बाकी मैं अपने लगा दूंगा । माँ-बाप जा रहे है एक हफ्ते के लिए कुछ तो देके जाएँगे ।’
दिनेश बोल ही रहा था की धीर ने एक तमाचा रसीद कर दिया ।
धीर-‘ ऐसा कभी सोचना भी मत आगे से ।’
दिनेश- ‘अमा यार मार क्यों रहे हो । हम में से किसी के पास माल है क्या बताओ, हमार बापू डाकिया, वीर के बापू मज़दूर, चेतन के बापू मेहतर । कहाँ से होगा जुगाड़ ।’
सभी-‘ हाँ हाँ भैया कहाँ से होगा जुगाड़ ।’
अंत में धीर ने हार मान ली ।’
धीर-‘ अच्छा ठीक है लेकिन आज के बाद ऐसा नहीं होगा ।’
15. दो दिन बाद
रात के एक बज रहे थे । धीर चुपके से उठा और दबे पाँव बाहर आया । उसने अपने घर का किवाड़ खोला । किवाड़ खोलते ही तीनों सामने दिखाई दिए । उन्हें हाथों से इशारा देकर अन्दर बुलाया और जहाँ बोरी भरके गेहूँ थे । वह रास्ता दिखा दिया । तीनों गए वहाँ से दो-दो बोरी उठाकर चलते बने । किवाड़ बंद कर धीर अपने खाट की ओर जाने लगा । रास्ते में दीनदयाल की खाट थी । सिरहाने में पानी से भरा जग रखा हुआ था । अनचित्ते में वह धीर के पैर से टकरा गया । गनीमत यह रही की वह गिरा नहीं और पानी से लबा-लब भरे होने के कारण उससे ज्यादा आवाज़ भी नहीं हुई । दीनदयाल गहरी नींद में था हलकी सी आवाज़ हुई तो बस करवट बदला और सोता रहा घोड़े बेचकर ।
इधर तीनो ने बोरियाँ ले जाकर दिनेश के घर में रख रख दी और अपने अपने घर को चल दिए । सुबह जैसे ही मंडी खुली तीनो ने जाकर गेहूँ बेच दिए । 6 बोरी के कुल मिलाकर 1920 रूपये मिले यह उनकी सोच से ज्यादा थे । पैसे पाकर तीनो खुश हुए । इधर रोज की तरह धीर सुबह 10 बजे बिना खाए-पिए ही निकल गया । उसने अपनी हरकतों से बिलकुल भी नही महसूस होने दिया की कुछ हुआ है । निकलते ही उन तीनो लफंदरो को खोजना शुरू किया उसने । वह नुक्कड़ होते हुए सीधा दिनेश के घर पे जा पहुँचा । वहाँ तीनो मजे से बीड़ी फूंक रहे थे । जाते ही उसने तीनो में थप्पड़ रसीद किए और पैसे ले लिए ।
चेतन-‘ अब क्यों मारा ?‘
धीर-‘ पैसे क्या अब्बा भरेंगे ये बीड़ी फूंक रहे हो कंजरो चुराए हुए पैसो की ।’
फिर धीर ने दिनेश से पैसे लेकर बार-मालिक को 2000 रूपये दी दिए ।
फिर धीर ने कहा –‘ आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे अपनी दोस्ती बस यहीं तक ।’
16.
दोपहर में दीनदयाल खाना खाने आया । झुग्गी में घुसते के साथ ही उसका ध्यान बोरियों के ढेर पर गया । उसे कुछ कम लगी गिनकर देखी तो । डर के मारे उसने चंदा को तेज़ी से पुकारना शुरू किया ।
दीनदयाल- ‘चंदा ! चंदा ! अरे चंदा !’
चंदा- ‘अरे ! आयी, हाँ बोलो क्या हुआ क्यों एक सुर में चिल्लाते हो ?’
दीनदयाल कपकपाती आवाज़ में –‘ च च च चंदा हमारे घर से गेहूँ की बोरियाँ चोरी हो गई है ।’
चंदा अचंभे में –‘क्या?’
दीनदयाल- ‘ हाँ ! चंदा ये देखो यहाँ 27 बोरियाँ थी अब 21 है ।‘
चंदा- ’ 21 ही होंगी आपसे गिनने में भूल हुई होगी भला घर के अन्दर से समान कैसे चोरी हो सकता है ।’
दीनदयाल रोआसा होकर –‘ पता नही ! चंदा पता नहीं ! अब मैं छोटे मालिक को क्या मुँह दिखाऊंगा ।’
चंदा –‘ कह देना कम पैदावार हुई है ।’
दीनदयाल –‘ पर गाँव में अच्छी वर्षा हुई है सबकी अच्छी फसल हुई है । हमारी कम होगी तो उन्हें शक हो जाएगा । फिर चोरी का इल्ज़ाम भी आ जाएगा हमारे सिर ।’
चंदा –‘ मैं नहीं जानती मेरा मन तो अभी भी यही के रहा है की ना बताओ तुम उन्हें ।’
दीनदयाल -‘ अरे तुम नाहिं जानत हो बड़े मालिक को वो कैसे न कैसे करके पता लगा ही लेंगे ।’
चंदा –‘ जाओ बताओ फिर सच्चाई के देवता बने हो तो पता नहीं कब दुनियादारी सीखोगे ,रहो अनभिज्ञ ।’
दीनदयाल सब कुछ अनसुना करके बिना खाए पिए निकल गया बड़े मालिक को बताने ।
17.
दीनदयाल छोटे मालिक से मिलने उनकी हवेली में गए । हवेली एक हज़ार गज बड़ी थी उसमे बगीचे-बगान, पूल और सब भोग-विलास की चीजों से सुसज्जित थी । गेट पर चौकीदार से पूछकर अन्दर गया । जब घर के मुख्य द्वार पर पहुँचा तो पाया बड़े मालिक किसानों से बाते कर रहे थे ।
छोटे मालिक ने दीन को देखते ही बोला –‘ अरे ! दीन तुम यहाँ ?’
दीनदयाल-‘ मालिक आपसे कुछ बात करनी थी ।‘
बड़े मालिक –‘ हाँ तो वहाँ नीचे जाके बैठ जाओ जहाँ और किसान बैठे है और अपनी बारी की प्रतीक्षा करो ।’
बड़े मालिक एक सोफे पर महाराजा की तरह बैठे थे और सारे किसान ज़मीन पर बिछे कालीन पर । दीन का आखरी नंबर था । एक-एक करके
किसान उनके पास जाते अपनी फ़रियाद सुनाते और राय मशवरा लेकर चले जाते । तक़रीबन पौन से एक घंटे के बाद उसको बुलाया गया ।
बड़े मालिक –‘ बोलो दीन ऐसी क्या आन पड़ी की तुम यहाँ आए ?’
दीनदयाल काँपते हुए –‘ मालिक । म.. म .. मेरे घर से 6 बोरी गेहूँ चोरी हो गया काल रात पता नही कैसे ?’
बड़े मालिक –‘ पता नहीं कैसे ? तुमे नहीं पता होगा तो किसे होगा । घर में ही रहते हो न ? तो फिर कैसे ? धरती निगल गई या आसमान उडा ले गया ? जाओ खोजो । देखो घर का कोई न हो ?’
दीनदयाल-‘ पता नहीं साहब ।’
बड़े मालिक –‘ कल सुबह पंचायत बैठेगी हाज़िर हो जाना ।’
दीनदयाल-‘ दया ! साहब दया ।’
बड़े मालिक –‘ कहा न हाज़िर होना है तो होना है ।’
18.
आज धीर का मन नहीं लग रहा था । उसने ठान ली थी की वह अपने आप को बदलेगा लेकिन वो डर भी रहा था की फिर से अपनी लत के आगे वह घुटने ना टेक दे । किसी ने सही कहा है की अंतर्मन की लड़ाई दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाइयो में से एक है । उसने सोच रखा था की कल से वह काम खोजेगा । यह सोचते-सोचते वह घर पहुँचा । इधर दीनदयाल खाट पर लेटा-लेटा व्यथित हो रहा था । इतने मै उसने धीर को आते हुए देखा ।
दीनदयाल-‘ धीर’
धीर-‘ हाँ !’
दीनदयाल- ‘ क्या तुमे पता है की यहाँ से बोरियाँ उठ गई रात मे ।’
धीर-‘ क्या ? मगर कब ? और कैसे ?’
दीनदयाल- ‘ 6 बोरियाँ गायब है , कहीं इसके पीछे तुम्हारा तो कोई हाथ नहीं है ।’
धीर- ‘ नहीं पिताजी मै ऐसा क्यों करूँगा ।’
दीनदयाल चीखते हुए –‘ क्योंकि दरवाज़ा अन्दर से बंद था, चोर अगर आते भी दीवार फांदकर तो लौटकर वह दरवाज़ा बंद करके कैसे जाते? इतना समय होता है क्या किसी पर की गेट बंद करे फिर दोबारा से फांदकर जाए ?’
धीर- ‘ क्या बात करते हो बापू ये तो चोर को ही पता होगा की उसने ऐसा क्यों किया । मैं भला अकेला 6 बोरियाँ कैसे उठा सकता हूँ ? ये कैसे मुमकिन हैं ।’
चंदा –‘ 6 तु छोड़ा इह दुई भी उठा ले तो बहुत बड़ी बात है । तोहार बिट्वन सब सुकुमार है । तोहार तरी नाहि की दुई-दुई उठाई लेहि ।’
दीनदयाल मन में सोचा की ये बात भी सही है । आखिर 6 बोरी एक बंदा कैसे उठा सकता है ?
फिर भी वह बोला –‘ देखो काल पंचायत बैठेगी फैसला होगा – अगर तुम्हारा इसमें कोई हाथ है तो तुम मुझे अभी भी बता सकता हो ।’
धीर –‘ क्या पंच ?’
दीनदयाल- ‘ बड़े मालिक ने कल पंचायत बुलाई है ।’
धीर –‘ सत्यानाश हो ऐसे मालिक का ।’
चंदा –‘ मैं तो इनसे कह ही रही थी कि न बताते ये बात उन्हें , पर मेरी इस घर में सुनता कौन है ?’
धीर –‘ क्या बापू ?तुम्हारे हरिश्चन्द्र बनने के कारण लंका न लग जाए हम सबकी ।’
दीनदयाल –‘ तो क्या जवाब देता उनको बाद में बस अब मुझे कुछ नहीं सुनना इस बारे में जो होगा कल देखा जाएगा ।’
19.
सुबह पंचायत और कुछ गाँव वाले एकत्रित हुए । पंचो ने दीनदयाल को सारी बात विस्तार से बताने को कही । दीनदयाल ने सारी आप-बीती कह सुनाई ।
पंचो ने बड़े मालिक से फिर पूछा तो उसने बोला –‘ ये मेरे पास दोपहर में आया था इसने यही सब मुझे भी बताया पर मैं कच्चे खेत की मूली नहीं हूँ कि जो ये बोले वो मैं मान लूँ । भला आप ही बताओ पंच साहब यह कैसे मुमकिन है कि कोई चोर दीवार फांद कर आए और 6 बोरियाँ लेकर चलता बने । बोरी लेकर कोई दीवार नहीं फांद सकता इसके लिए किवाड़ खोलना पड़े से पंच साहब और खोलने के बाद चोर को क्यों इतनी फिकर होने लगी की वह दूसरों के घर का दरवाज़ा बंद करके जाए ।’
इसपर धीर बोला –‘ ज़रूरी नहीं की ये एक बन्दे का काम हो , कई बन्दे हो सकते है भला एक इंसान इतनी बोरी कैसे उठा सकता है ?’ इसपर पंचो ने भी सहमति जताई फिर धीर ने कहा-‘ क्या पता चोर ने चोरी न पकड़ी जाए जल्दी से इसलिए ऐसा किया हो ?’
बड़े मालिक –‘ अच्छा ! क्या पता तुमने ही यह सब करवाया हो छवि तो कुछ ख़ास सही नहीं है गाँव में तुम्हारी ।’
धीर ने गुस्से से बोला –‘ क्या तथ्य है तुम्हारे पास ? ‘
एक पंच ने उठकर बोला –‘ शांत हो जाओ ऐसे मामला नहीं सुलझेगा ।’
बड़े मालिक इतने भर में बिदक गए और बोला –‘ अगर आज मुझे इंसाफ नहीं मिला तो मैं पुलिस के पास जाऊँगा , कोर्ट जाऊँगा ?’
मामला बिगड़ता देख पंचो ने कहा –‘ गाँव में न आज तक पुलिस आई है न कभी आएगी न कभी कोर्ट कोई गया है और न ही कभी जाएगा पंचो के फैसला ही आखरी होगा ।’
फिर आगे उन्होंने कहा –‘ माना की धीर सही कह रहा है और बड़े मालिक भी सही है । लेकिन चोरी हुई तो तुम्हारे ही घर से है और करीब से देखा जाए तो घर में चोर को सिर्फ चोरी करने को बोरियाँ ही मिली गेहूँ की , और उन्हें कैसे पता लगा की उसी जगह गेहूँ है ऊपर से तुम्हारे घर का किवाड़ भी बंद था ।
चोरी अपराध है और अपने मालिक से चोरी करना और भी जघन्य अपराध है । इसकी सजा ये है की तुम गाँव छोड़कर निकल जाओ । हम तुमे तीन दिन की मोहलत देते है ।‘
धीर ने ताली बजानी शुरू कर दी और हँसते हुए बोला –‘ आप सब से यही उम्मीद की जा सकती है मुझे तो पहले से यकीन था की ऐसा ही कुछ होगा जब आपने धोबन की लड़की की इज्ज़त से खेलने वाले युवक को सजा के तौर पर उससे शादी करने का फरमान सुनाया था । मतलब जो चोरी करे खजाना घर का उसी को सुपुर्द कर दो हैं । वाह पंचो वाह !!’
एक पंच गुस्से में बोला –‘ अपने बेटे को समझा लो दीनदयाल वरना अभी धक्के मारकर गाँव से निकाल दिया जाएगा ।’
धीर और चंदा इसका विरोध करने लगे तो दीनदयाल ने दोनों का हाथ पकड़कर कहा –‘ पंचो का फैसला सर आँखों पर ’ और वहाँ से चल दिया ।
20. अगले दिन
उन दिनों पी०सी०ओ० होते थे और लोगों की लम्बी कतारें लगती थी फोन करने के लिए , बलबीर ने हीरा को फोन कर सब हाल कह सुनाया । हीरा को यह सुनकर बहुत बड़ा धक्का लगा । उसने हेड ऑफिसर से अवकाश की माँग की 5 दिन का समय दिया गया । वह सरपट समान लेकर अफ्ली ही ट्रेन से रवाना हो गया । पूरा एक दिन का सफ़र करके अपने ग्राम पहुँचा । वहाँ पहुँचते ही अपने माँ-पिता से मिला और खूब फूट-फूटकर रोया । माता-पिता ने भी साड़ी आप-बीती कह डाली । हीरा के घर में कुछ 10-15 मिनट ही विश्राम किया और निकल गया घर से निकलते वक़्त माँ को सिर्फ इतना बताया की वह गोपाल से मिलते जा रहा है । गोपाल को भी जब ये पता चला की हीरा गाँव में है तो उससे मिलने के लिए चल पड़ा । दोनों की मुलाकात रास्ते में हुई ।
हीरा गले मिलते हुए –‘ अरे ! गोपाल कैसे हो तुम ?’
गोपाल –‘ हम तो मौज में ही है तुम बताओ ।’
हीरा मुह लटका के –‘ का बताई हम हमार ..’
गोपाल –‘ मत बताओ, हमे पता है । ‘
हीरा –‘ अच्छा एक बात पूछे ?’
गोपाल –‘ हाँ पूछो ।‘
हीरा –‘ये किसका काम हो सकता है ?’
गोपाल –‘ भाई जहाँ तक हमार नज़र पड़ी है । हमें लगता है की ये काम तुम्हारे भाई धीर का है । पर ससुर का नाती पंच लोगन गाँव में पुलिसिया करवाई ही न करने देते है वरना इसकी पुष्टि हम सबसे पहले करते ।’
हीरा –‘ अगर ये धीर का काम होगा तो उससे मैं नही छोडूंगा ,खैर चलो यार हमे कोई जगह दिलवाओ रहने को इया अब मिले को नाहि ।’
गोपाल –‘ एक जगह है यहाँ से 80 किलोमीटर दूर ग्राम कोपरगाँव में । वहाँ खूब प्लाट काट-काटकर बेचे जा रहे हैं । उसपे जो करना चाहो करलो । चाहे खेती , चाहे मकान या चाहे फिर दुकान । ह्मोऊ वहीं लिए राहे एक ।‘
हीरा –‘ यह वही शिरड़ी के पास वाला गाँव है ।’
गोपाल –‘ हाँ ! रे वहीं पर है । चलो अब मिल लो बिल्डर से ।’
बिल्डर से मिलकर बात हुई और हीरा ने 2 लाख में 200 गज ज़मीन खरीदी बनाने का प्लान / नक्शा का भी कॉन्ट्रैक्ट दे दिया । एक महीने का और पास में ही एक किराए का घर ले लिया 600 रूपये महीने में । उसकी सारी जमा-पूंजी सब ख़त्म हो गई । रात में घर पहुँचा और यह खबर अपनी माँ को सुनाई और घर के दस्तावेज / पेपर माँ के सामने रख दिए । माँ के नयनो से अश्रुधारा बह निकली । उन्होंने अपने आँशू पोछते हुए पूछा – ‘ इतने पैसे का इंतजाम कहाँ से किया ?’
हीरा –‘ मैंने अपनी जमापुंजी लगाई है इसमें ।’
चंदा –‘ तुमने मेरा कहा नहीं माना वो पैसा तुम्हारी शादी के लिए था ।’
हीरा –‘ तो दुल्हन कौन सा अभी आ रही है । इतने में फिर से कमा लूँगा दो साल में । अभी तो सिर्फ 20 का ही हूँ कौन सा 28-30 का हो गया की उम्र निकली जा रही हो ।’
चंदा –‘ कहाँ है यह ?’
हीरा –‘ यहाँ से 80 किलोमीटर दूर ग्राम कोपरगाँव में । दो सो गज ज़मीन और पेपर पर अंगूठे के निशान लगाओ ।’
चंदा –‘ क्या लिखा है इन पपेरो में ?’
हीरा –‘ यही की ये मकान आप के नाम पर आवंटित होगा और मैं पैसे भर रहा हु इसलिए मैं सह-खरीदार हूँगा इस मकान का ।’
चंदा का हृदय करुणा और प्रेम से गद-गद हो गया ।
उसने कहा-‘ मैं सच में सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम्हारे जैसा बेटा मिला मेरी दुआ है की सबको तुमसा पुत्र मिले । जो कुल का नाम रोशन करे । ‘
हीरा ने इसपर कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी, वह इसे अपना कर्त्तव्य समझता था । हीरा ने जहाँ–जहाँ बोला वहाँ–वहाँ चंदा ने अंगूठे के निशान लगा दिए ।
जब यह बात दीनदयाल को पता लगी उसे ख़ुशी भी हुई और दुःख भी , ख़ुशी इस बात की कि उनका पुत्र इतना काबिल है की घर खरीद सकता है और दुःख इस बात का की उसे अब अपने बेटा के बनाए घर पे रहना होगा । अपने बेटे पर आश्रित होना उसके स्वाभिमान पर चोट थी । पहले तो वह बड-बडाया की हीरा के बनाए घर में नही रहेगा । लेकिन सबकी बातो के आगे उसे घुटने टेकने पड़े ।
21.
सुबह हुई सब निकलने लगे अपने घर से दीनदयाल और उसके परिवार वालो को देखने के लिए । दीनदयाल , हीरा, बलबीर, धीर और चंदा सभी के मित्रों ने उन्हें नम आँखों से आखिरी भेंट की वह ग्राम से निकले ही थे की रास्ते में बड़े मालिक मिल गए । अपनी जीप से रस्ते में रोककर उन्होंने कहा –‘ हिसाब पूरा नहीं हुए वो खोली तो मेरे खेत की ही ज़मीन थी , ये साइकिल मुझे दे दो इसे बेचकर मैं आधा नुकसान तो चुकता कर लूँ कम से कम ।’
यह सुनकर धीर को गुस्सा आया उसने कहा –‘ अब ये गाँव हमारा नहीं है । ये ज़मींदारी अपने गाँव वालो को दिखाओ चलो हटो रास्ते से ।’
बड़े मालिक –‘ अच्छा ये मजाल तुम्हारी , लड़को ज़रा साइकिल लेना इनसे ।’
जीप से पाँच मुस्टंडे लट्ठ लेकर उतरे ।
दीन ने कहा –‘ ले लो वैसे भी ख़राब ही होगी नयी खरीद लूँगा ।’
बड़े मालिक –‘ चलो रे लडको ‘ और फिर चालक ने गाड़ी बढ़ा ली और धूल उड़ाते हुए वहाँ से चले गए ।’
फिर हीरा ने जाकर ताँगा मँगवाया जो उन्हें जो उन्हें हाईवे तक लेकर गया और वहाँ से उन्होंने बस लेकर 3 घंटे में सीधा कोपरगाँव पहुँचे ।
वहाँ बिल्डर ने उन्हें किराये वाला घर दिखा दिया । सभी ने वहाँ शुरू किया । हीरा ने अगले दिन सबसे विदा ली और चल पड़ा । बलबीर का दाखिला पास ही के एक कॉन्वेंट स्कूल में करा दिया । दीनदयाल का मन घर में नहीं लगता था । वह बाहर जाके उद्यान में बैठ गया । अन्दर उसका दम घुटा जाता था । वह घंटो पार्क में जाकर बैठता था । यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था । मन किसी भी कार्य में नहीं लगता था । हमेशा मौन रहता था किसी से कुछ लगाव नहीं रखना , उसका अंतर्मन खोखला होने लगा था । कभी खुद से सवाल करता की ऐसा क्यों हुआ ? कभी खुदा को कोसता की ऐसा की उसने क्या गलती की जो उसे ये सजा मिली ? तो कभी गुस्से में ये कह देता की खुदा है की नहीं ? एक सत्य, शील और कर्मनिष्ठा ही तो उसके जीने का सहारा थी जिसपर उसे इतना ताव था । जिसके कारण लोग उसे इतना मानते थे । उसे लगने लगा की उसने अपनी प्रतिष्ठा खो दी । कुल का नाम मिटटी में मिल गया । ये विचार उसे दीमक की तरह खाने लगे वह पल-पल कमजोर होने लगा । उसे गहन अवसाद ने घेर लिया । चंदा ने उसे लाखों तरीको से उसे मनाने की कोशिश की पर उसपर कुछ असर नहीं पड़ा , वह खाता-पीता और अखबार बेचने के बाद दिन भर पार्क में पड़ा रहता । शायद ये दीनदयाल के अंत का पहला झोंका था ।
22.
धीर यह सब देख रहा था पिछले तीन महीनो से उसे यह सब देखकर अफ़सोस हो रहा था । वह अपने आप को बदलने की भरपूर कोशिश कर रहा था । हाल ही में उसे पेट्रोल पंप पे काम करने का अवसर मिला । उसने काम करना शुरू किया । वाक्पटुता और मेल-जोल में तेज धीर ने जल्दी ही वहाँ सिक्का जमा लिया । लगभग सभी उसे चाहने लगे थे कोई उससे बैर भाव नही रखता था ।
चंदा को यह देखकर संतुष्टि हुई की धीर ने भी काम ढूँढ लिया है और अब वह खुद की मेहनत की कमाई खाएगा । हीरा को भी जब फोन पर यह खबर मिली तो उसे बड़ी ख़ुशी हुई की चलो छोटा भाई अब लग लिया काम पर । दीनदयाल पर इसका कुछ ख़ास असर नही पड़ा वह हमेशा अपने आप में उलझा रहता था । दिन-प्रतिदिन वह दुर्बल होता चला गया । खुद का घर होके भी उसे वह सुख शांति नहीं मिल पा रही थी । कुछ दिनों के बाद उसकी हालत और बिगड़ गई । शरीर इतना क्षीण हो चुका था की उसका अखबार बेचना भी बंद हो गया । कर्मनिष्ठा के कारण वह रोज प्रयास करता लेकिन दुर्बलता के कारण वह लड़खड़ा कर गिर जाता । कहाँ परिश्रम से युक्त गठीला शरीर और कहाँ अब का शरीर जिसे दिनचर्या के कर्म करने में भी कठिनाई हो रही है । किसी ने सही कहा है अवसाद दीमक की तरह दिल को दुर्बल कर देता है ।
इधर धीर अपने बॉस की नज़रों में अच्छा बनने के लिए भरसक कोशिश कर रहा था । उसने ना जाने कितने दिन ओवरटाइम किया । रात की शिफ्ट वाले अक्सर नशे में धुत्त रहते थे । वे उसे भी पीने और ताश खलने को कहते थे वह कोई न कोई बहाना करके मन कर देता था ।
ग्रीष्मकाल था ऐसे वक़्त में बच्चो के अवकाश चलते है सो बॉस के बीवी भी बच्चो को साथ लेकर अपने मइके निकल गई ।इस ख़ुशी में बॉस ने आज यही रुकने का फैसला किया और चिकन टंगड़ी नीट के संग मंगवाई और पीने लगे । अपना तो पिए ही पिए सभी लेबरो की भी ऐश करा दी । धीर सिर्फ टंगड़ी ही तोड़े जा रहा था बैठे-बैठे इतने में बॉस ने उसे पकड़ लिया ।
बॉस नशे में –‘ क्या यार सिर्फ चिकन खाने में क्या मजा है लो ये पियो । ‘ उसे नीट का एक क्वार्टर पकड़ाते हुए ।
धीर –‘ नहीं साहेब मैं ये नहीं पी सकता । ‘
बॉस –‘ अरे क्यों नही मर्द हो यार की नहीं इसे कोल्डड्रिंक समझकर पी जाओ और नहीं पी जाती तो एक नुस्खा दूँ नाक बंद करके पी जाओ और अगर ये भी नहीं हो रहा है तो किसी की याद में ज़हर समझ कर पी जाओ ।’
धीर –‘ नहीं साहेब , ये सब इंसान को गर्त के कुँए में ढकेल देती है । एक बार जिसे यह लत लग जाए उसका इसे छुटाना मुश्किल होता है ।’
तारिक धीर का मित्र और सहकर्मचारी बीच में टोकते हुए बोला – ‘ रे साहेब ये छोरा कभी नहीं पीता इसको हमने लाख समझाया की एक घूँट में कुछ नहीं होता पर ये मानके नही देता ।’
बॉस –‘ अरे सही करता है तुम लोग तो बारी-बारी से पीकर धुत्त हो जाते हो ये रात-भर की सेल्स बढाता है । धीर चलो सिर्फ आज पीलो मेरी ख़ुशी में , देखो अगर तुम नहीं मानोगे तो मैं बुरा मान जाऊँगा मेरा कहा मान लो चलो एक घूँट पी लो ।’
धीर मन ही मन में सोच रहा था की आज बुरे फँसे कोई बहाना नहीं सूझ रहा था । लेकिन अंतर्मन से एक और आवाज़ आई ‘ अबे पीले चल ! एक ही दिन की तो बात है ।’ इतने भर में सहकर्मियों ने उसे पकड़कर पिला दी । एक नीट शॉट के बाद उसे अजीब जा लगा सिर अचानक से हल्का होने लगा । उसने तीन और लगा दिए एका-एक ये देखकर बॉस भी दंग ’ ऐसा कैसे’ ?
बॉस –‘ खेले हुए खिलाडी लगते हो ।’
धीर –‘ नहीं साहेब दोस्त यार के साथ थोडा बहुत पी लेता था । माता – पिता के लिए छोड़ दी ।’
बॉस –‘ चलो अच्छा है ।’
उस दिन धीर को कुछ वैसा ही लगा जैसे शेर को बहुत दिनों के बाद कोई इंसान का खून मुँह लगने पर होता है ।
23. 11 दिन बाद , 2 बजे
लंच हो गया था । हीरा रोज की तरह कैंटीन में जाकर खाना खाने लगा । कैंटीन मुख्य इमारत के बरामदे में थी वहीँ सब मिलकर खाते थे । उसने खाना शुरू किया । इतने में उसे कुछ हलचल महसूस हुई । उसने दो-तीन मिनट ध्यान से चारो ओर देखा उसे पहले माले पर एक फौजी दिखा जो वर्दी तो फ़ौज की पहना था जिसकी हरकते अजीब सी महसूस हुई और न ही उसने उसे कभी देखा था । उसे उसकी गतिविधियों पर शक हुआ । उसने साईरन बजाने के लिए बटन दबा दिया । जितने में सब अपने चित को संभालते । हीरा की टेबल के पास एक ग्रेनेड आकर गिरा और गिरते ही फट गया । चारो तरफ अफरा-तफरी मच गयी । फौजियों ने अपनी गोलियाँ तान ली । पता लगा इमारत में कई आतंकवादी घुस चुके थे जो चारों तरफ से गोलिओं की बौछार कर रहे थे । हीरा सिर से लेकर पैर तक खून से लतपथ था लंगड़ाते हुए जो आतंकवादी सामने खड़े हुए थे उन दोनों के सिर पर गोली मार दी । हीरा की आँखों के सामने धुंधला सा होने लगा , साँसे गहन और भारी होने लगी और शरीर शिथिल होने लगा , अंत में उसकी आँख के सामने एक घनघोर अँधेरा छा गया । काँपती हुई जीभ से बस एक ही शब्द निकला ‘माँ’ । कुछ देर बाद बाकी बचे 16 आतंकवादी भी मारे गए । 33 फौजियों की भी मृत्यु हुई थी जिसमे हीरा भी था ।
एक कुल का चिराग भुज गया । एक माँ से उसका लाल छिन गया । ना जाने कितनी पत्नियाँ विधवा हो गयी और न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए कारण सिर्फ दो गज ज़मीन , इस दो गज ज़मीन के कारण न जाने कितने दो करोड़ लाल कुर्बान हो गए । ये दो गज ज़मीन जिसपर वर्षाकाल में भीनी सी खुशबू आती थी आज लाल विरान हो गई ।
24.
शाम के पाँच बज रहे थे । पास के पी०सी०ओ० से बलबीर को बुलाया गया की इंडियन आर्मी से फोन है ।
एडमिरल जतिन –‘ हेलो ! बलबीर ‘
बलबीर –‘ हाँ जी साहेब ।‘
एडमिरल जतिन –‘ हीरा वीरगति को प्राप्त हुआ है । आज दोपहर में हुए हादसे में वो शहीद हो गया ।’
बलबीर –‘ नहीं साहेब !! नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता साहेब ।’
एडमिरल जतिन –‘ ऐसा ही है बलबीर कल शाम को यहाँ पर श्रदांजलि दी जाएगी । जितनी जल्दी से जल्दी हो सके निकल लो यहाँ पर पहुँचने में टाइम लगेगा । ‘
बलबीर ने आँसू पोछते हुए बोला –‘ जी साहेब ।’
फिर कुछ सेकंड का सन्नाटा का छा गया और एडमिरल जतिन ने फोन रख दिया ।
बलबीर रोता हुआ घर पहुँचा और तुरंत जाकर घर पे रेडियो चलाया । आकाशवाणी दूरदर्शन पर उस वक़्त यही खबर सुनाई जा रही थी । यह आवाज़ चंदा के कानो में भी पड़ गई । उसने पूछा की-‘ ये क्या है बलबीर?’
बलबीर –‘ माई , भाई अब नहीं रहे । आज हुए इसी हमले में वो शहीद हो गए ।’
चंदा चकराते हुए बेहोश होकर गिरने लगी और बोला –‘ नहीं, नहीं ! ये नहीं हो सकता ।’
बलबीर चंदा को पकड़ते हुए बोला –‘ संभालो माई खुद को , अभी एडमिरल साहब का फोने आया था । उन्होंने हमें यही सूचना दी की काल हमें वहां पहुँचना होगा । हमें यहाँ से जल्दी निकलना चाहिए माँ ।’
इतने में धीर भी भागा-भागा आया उसने ये खबर पेट्रोल पंप के रेडियो में सुनी थी । बलबीर और चंदा के चेहरे को रोता देखकर उसका शक यकीन में बदल गया । उसने चंदा और बलबीर को ट्रेन पकड़वाई और खुद पिताजी की देखभाल के लिए रुक गया ।
शाम को 6 बजे श्रधांजलि समारोह की शुरुआत हुई बलबीर और चंदा बस समय से 5 मिनट पूर्व ही वहाँ पहुँचे थे । चंदा ने जब हीरा को देखा तब उसके यकीन नही हो रहा था । चेहरे पर छोटे-छोटे खरोंच के निशान बने हुए थे जो शायद ग्रेनेड से निकले छर्रों से बने होंगे । चेहरा पूरा नीला पड़ गया था और एक तरफ से पूरा जल सा गया था । वतन का झंडा ओढ़े हुए वो कॉफिन में बंद था । उसे देख चंदा फूट-फूटकर रोई । उसको फौजियों ने सहारा देकर श्रधांजलि दिलवाई । बाजे बजने लगे गार्ड ऑफ़ हॉनर दिया गया हवाई राउंड फायरिंग की गई । सबने उसे नम आँखों से विदा किया । उसका शव कोपरगाँव लाया गया जहाँ उसके सारे मित्र , गोपाल व अन्य सभी रिश्तेदार एकत्रित हुए । चारो तरफ मातम और सन्नाटा पसरा हुआ था । गोपाल बिलख-बिलख कर रो रहा था और खुद को कोस रहा था की ना ही उसने हीरा को ये फॉर्म भरवाए होते और ना ही आज ऐसा होता । भावशुन्य हो चुके दीनदयाल की आँखों से आज पहली बार आँशु गिरे । वह भी फूट-फूटकर रोने लगा । दीन को धीर ने सहारा दिया ताकि वह मुखाग्नि दे सके ।
25.
सभी बहुत दुखी थे किसी को यह गँवारा नहीं हुआ । किसी ने खुदा पर उँगली उठाई किसी ने दलील दी कि पवित्र आत्मा थी इसलिए ईश्वर ने जल्दी बुला लिया । खैर जितने मुख उतने कथन । धीर यहाँ तक परेशान हुआ की उसने फिर से पीना–खाना शुरू कर दिया । उसके मन में यही आया की ‘ यह ज़िन्दगी जैसे जीना है वैसे जीओ क्योकि मरना तो सबने एक दिन है कम से कम हसरते तो पूर्ण होगी । जब हीरा के साथ ऐसा हो सकता है तो मेरे साथ भी ये हो सकता है मैं तो फिर भी पापी ही ठहरा । अतः वह फिर से नशे की खाई में फिसलता हुआ आ गिरा । अब वह अपने सहकर्मचारियों के साथ पीने लगा था । रात भर जुँआ और ताश खेलता । अब वह फिर उसी सोच पर चल पड़ा की अच्छा करके क्या मिलेगा मैं अब सिर्फ अच्छी ज़िन्दगी जियूँगा ।
इधर ज़िन्दगी पटरी पर आने लगी थी । चंदा ने बुनाई-कढ़ाई का काम शुरू किया । ये उसके लिए इतना आसान नहीं रहा न जाने कितने दिन किसी ने सही से भोजन नहीं किया , न जाने कितने दिन उसने किसी से बात भी नहीं की । सबने उसका मिलके ढाँढस बंधाया । पड़ोसियों ने उनकी खूब मदद की । बलबीर भी अपनी पढाई में जुट गया । भाई की मृत्यु ने उसके दिल में नई चिंगारी जला दी । अब वह फ़ौज में भर्ती होने की चाह रखने लगा । उसे अब जेहाद के नाम पे आतंकवाद फ़ैलाने वाले आँखों देखें गंवारा नही होते थे । आर्मी ने परिवारों को खूब सहयोग किया । उन्होंने आर्मी कैंटीन से परिवार का पंजीकरण करवाया , पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सस्ता सफ़र और पेंशन जैसी अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई ।
26. एक महीने बाद
आज अचानक दीनदयाल में नई जान आ गई , जिस विक्षिप्त होते शरीर ने उसे काम करने से रोक दिया था जिसके कारण वह 4-5 महीने से घर पे ही पड़ा था । अपने आप को मजबूत पाकर उसका मन सहसा किया की वह फिर से काम पर जाए । चंदा को ये देखकर बड़ी हैरत हुई और साथ में ख़ुशी भी की अब वह दुनिया में वापिस लौट आए । वह बाहर निकलकर अपने न्यूज़पेपर मिल के मालिक से मिला और बात भी पक्की कर ली की कल से वह काम पर आएगा । वह अब गाँव की सैर पर निकला और जहाँ-जहाँ वह नहीं गया था अभी तक अब वहाँ भी गया , खेत-खलिहान , बाग़-बगीचे सब की सैर करी । दोपहर में घर को लौटकर सबके साथ मिलकर खाना खाया और सबका हाल लिया ।
दीन –‘ धीर ! ख़ुशी हुई तुमको काम करता देख ।’
धीर –‘ हमको भी आपको सही देखकर ।’
दीन –‘ अच्छा ये बताओ कोई लड़की पसंद है क्या तुम्हे , तुम्हारी हरकतों से तो लगता है अभी तक कोई न कोई पसंद ही आ गई होगी तुमको ।’
धीर हैरत में पड़ गया ये गंगा उल्टी कैसे बह चली आज , मुख में जो भोजन का निवाला था वो निगलने से पहले ही अटक गया । अटकने से ख़ाँसी आने लगी वह जल्दी से पानी पीने लगा । सब यह देखकर हँसने लगे ।
धीर –‘ नहीं पिताजी ! मेरे नज़र में ऐसी कोई नहीं है अभी ।’
दीन –‘ तो हम खोजे अगर कोई पसंद आई तो कर लेना शादी । बालिक तो तुम वैसे भी हो चुके हो अब । सारा दिन पेपर बाँटने के बाद पड़ा रहता हूँ । पोते-पोती होंगे तो उनमे ही खुश रहूँगा ।’
धीर –‘ नहीं पिताजी, अभी दो-तीन साल नहीं । फिर आगे सोचूँगा ।’
दीन -‘ मतलब 3-4 साल मैं बिना पोते-पोतियों के रहूँगा ।’
धीर –‘ कुछ ऐसा ही समझलो पिताजी ।’
दीन –‘ अच्छा एक बात कहता हूँ । अब हीरा नहीं रहा वो हम सबकी ज़िम्मेदारी लेता था । अब तुम ही बड़े हो , तो ज़िन्दगी के प्रति सजग होके रहो । हमारा कोई भरोसा नहीं है थोडा ।’
चंदा को ये बात अखरी उसने कहा –‘ ये क्या कहते हो जी ।’
दीन ने कुछ नहीं बोला ।
शाम को उठकर दीन घर के उस हिस्से में गया जहाँ खेती होती थी और बैल रखे रहते थे । पहले तो वो बैलो के पास गया और उन्हें पुचकारकर खाना-खिलाने लगा । फिर जिस हिस्से में खेती होती है । वहाँ जाकर लेट गया और मिट्टी को हथेली में रखकर उसकी गुणवत्ता का आंकलन करने लगा ।
इतने में बलबीर आ गया उसने भी बोला ‘पिताजी आप ने ये हाथ में माटी क्यों ले रखी है ।’
दीन –‘ किसान हूँ हाथ में तो माटी रहेगी ही ।’
बलबीर –‘ हाँ पिताजी , वो तो है फिर भी इस माटी में ऐसा क्या ख़ास है ?’
दीन –‘ हर मिट्टी ख़ास है , तुम्हें इस मिट्टी में क्या दिखता है ?’
बलबीर –‘ यही की यह छोटे-छोटे अणु से बनी है ।’
दीन –‘ हर चीज़ को देखने के दो तरीके होते है बेटा ! एक जो सबको दिख जाता और दूसरा जो उस चीज़ से अक्षम्य प्रेम करता है उसको । जिस तरह कोयले में से निकले हीरे की परख सिर्फ ज़ोहरी को होती है , जिस तरह नदी अपना रास्ते खुद बनाकर महासागर में जा मिलती है । उसी प्रकार हर किसान ये जनता है बेटा ये माटी चट्टान से बनी है पर यह माटी ही है जिसमें अक्षम्य व असीमित चट्टान समाहित है । जैसे हम कुदरत के अंश बराबर भी नहीं हैं पर सारी कुदरत हम में समाई है । वैसे ही हर मिट्टी में चट्टान समाहित है बलबीर हर मिट्टी में चट्टान समाहित है । इससे ही हमारा जीवन की शुरुवात है , इसी पर हमारा जीवन निर्भर है और इसी में एक दिन हम विलीन हो जाएँगे ।’
बलबीर –‘ तभी में सोचूँ आप इतना कैसे सोच ले रहे हो आपके दिमाग में यही खिचड़ी पकती होगी ना सारे दिन । खैर जो भी है । मुझे ये सब सुनके बहुत अच्छा लगा ।’
दीन के चेहरे पर मुस्कान आ गई । वह समझ गया की बलबीर अभी इतना गंभीर नहीं हुआ है जो ये समझ पाए ।
वह हाथ धोने के लिए बाथरूम की ओर चला जो घर की पहली मंजिल पर था । सीढ़ी चढ़ते वक़्त उसकी आँखों में धुंधली होने लगी , जमीन उसे हिलती हुई महसूस होने लगी अंत में आँखों के सामने अँधेरा छा गया और सीढी से नीचे फ़िसलके गिर गया साँसे बंद हो चुकी थी पर मस्तिष्क में अभी भी सचेत था । उसके चेहरे पे मुस्कराहट थी । कथन ये है की हर कुदरती मृत्यु के करीब खड़े व्यक्ति को अपने अंतिम समय का अंदाज़ा हो जाता है , वैसे ही दीनदयाल को भी ये अंदाज़ा हो गया था शायद से । गिरने की आवाज़ सुनकर चंदा और बलबीर भागे-भागे आए । दीनदयाल को गिरा देख चंदा ने जोर से चीखा और रुंदन करने लगी । बलबीर भागकर टेलीफोन बूथ पे गया और धीर को फ़ोनकर जो उस वक़्त ड्यूटी पर था उसे पास के अस्पताल में जल्दी पहुँचने को बोला । बलबीर और चंदा हीरा को लेकर अस्पताल पहुँचे , डॉक्टर ने हथेली छुते ही कह दिया की अब प्राण नहीं बचे इनमे । चंदा और बलबीर ने इसपर रोष प्रकट किया ।
लेकिन डॉक्टर ने साफ़ कह दिया –‘ हम कहीं से भी इनका उपचार नहीं कर सकते जब इनमे जान ही नहीं है आप इन्हें ले जाइये ।’
अगले दिन बलबीर ने दीनदयाल को मुखाग्नि दी । सभी आस-पड़ोस के लोग संतावना देने पहुँचे । सभी ने अपनी सहानुभूति दिखाई । धीर अगले दिन से कार्य पर निकल गया । उसे इन सब से दूर रहना ही अच्छा लगता था वह कमजोर होकर फुट-फुटकर रोना नही चाहता था जैसे वह हीरा के वक्त रोया था । वह किसी के सामने अपनी कमजोरी नहीं जाहिर करने देना चाहता था । जबकि बलबीर और चंदा खूब रोए । बलबीर को उनके आखिरी कहे हुए शब्द हमेशा-हमेशा के लिए स्मरण हो गये । चंदा को सबसे ज्यादा धक्का लगा पहले बेटा फिर पति इन चार महीनो में उसकी दुनिया ही बदल गई । उसे लगा किसी ने काला जादू किया है घर पर या फिर किसी बुरी आत्मा का साया है । वह अब इतना पगला चुकी थी कि धीर को काम नहीं करने नहीं जाने भी नहीं देना चाहती थी न ही बलबीर को विद्यालय । उसे लगता था कालचक्र फिर उसके घर की खुशियों का ग्रास न बना ले । वो कभी पीर के पास जाती तो कभी बाबा के पास , कभी तंत्र साधना करती , तो कभी उपवास रख लेती पर उसके मन का डर शांत नहीं हो रहा था । धीर ने ये सब हद से ज्यादा बढता देखा तो उन्हें डॉक्टर के पास ले गया । डॉक्टर ने बताया की अवसाद है कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा । बस ये नींद की गोलियाँ इनको खिला देना और कुछ विटामिन की कैप्सूल है लिखी तंदरुस्ती के लिए इन्हें भी खिला देना सही हो जाएँगी अपने आप । धीर ने सुकून की साँस ली ।
27.
तारिक –‘ अबे ! इतना काहे पीते हो बे तुम । क्या हाल बना लिए हो अपना ?’
धीर –‘ चुप बुडबक तुम हमका देखे नाहि हो हमारा पेट नहीं गटर है इसमें कुछ भी डालो पच जाता है ।’
तारिक –‘ फिर भी हद में पियो यार क्या कर रहे हो ? पाँच बोतल पी चुके हो दो के चार दिख रहे होंगे ।’
धीर –‘ बच्चे नाहि है , और दो के चार दिखाने वाला कोई है नहीं यहाँ । यार अजब है ज़िन्दगी सब एक एक करके निकल रहे है और सारा बोझा अब मेरे पर आ गया । तुम्हें तो पता ही है ये आम ज़िन्दगी हमें कभी नहीं भाँती भाई , शादी करो बच्चे पालो पेट काट-काटकर और अंत में ऊपर से तुम और कह रहे हो की हम ज्यादा पी रहे हैं । हमें अभी भी तुमसे ज्यादा होश है ।’
तारिक –‘ अच्छा, ये बताओ अगली तीन गेंद पर क्या होगा ?’
धीर –‘ बल्लेबाज गिलक्रिस्ट है और गेंदबाजी शेन बोंड कर रहा है । ओवर तीसरा है । अगली पर विकेट गिरेगा ।’
तारिक –‘ कैसे ?’
धीर –‘ ये विकेट लेने वाला गेंदबाज है और बाएँ हाथ के बल्लेबाज़ के लिए सबसे ज्यादा घातक, गिलक्रिस्ट ऑस्ट्रेलिया उन बल्लेबाजों में से है जो खुलके खेलना पसंद है ये किसी से दबके नहीं खेलता वहीँ न्यूज़ीलैंड का ये गेंद्बाज़ हर पिच पर अतिरिक्त स्विंग और बाउंस के लिए जाना जाता है । ये अगले तीन गेंद में इसे ले बढेगा ।’
तारिक –‘ मैं नहीं मानता ।’
धीर –‘ लगी शर्त ? मैं जीता तो तु भरेगा और मैं हारा तो मैं भरूँगा पैसे ।’
तारिक –‘ ठीक है ! चल’
पहली गेंद बाउंसर गिलक्रिस्ट मारने के लिए पुल शॉट लगाया लेकिन गेंद की गति नहीं आक पाने के कारण गेंद बल्ले का किनारे से लगती हुई फाइन-लेग की ओर चली गई ।
दूसरी बॉल लेग साइड की ओर टिप्पा खाई और कोण बदलकर अंदर आके सीधा पैड पे लगी । एल०बी०डब्लू० की अपील हुई अंपायर ने उंगली उठा दी ।
धीर ये देखकर हँसा जबकि तारिक दंग रह गया । उसने हार मान ली । आज धीर के नाम और कुसंगत जुड़ गई सट्टा खेलना ।
28. दो साल बाद
चंदा की तबियत में कुछ ख़ास सुधार नहीं हुआ । डॉक्टर ने शायद से उसके दर्द को कम आंका था । आखिर दो सबसे महत्वपूर्ण इंसान उसकी जिंदगी से चले गए । आसान नहीं होता जिनसे स्नेह करो तुम सबसे ज्यादा और वो तुम्हारे पास तो क्या कभी तुम्हारे साथ भी कभी ना रह सके । किसी ने सही कहा है कई बार जो दर्द तुम्हे है वो तुम्हारे अपने भी ना समझ पाए वो तो फिर भी डॉक्टर था । धीर तो बस इतने से संतुष्ट था की वो पूजा पाठ , तंत्र साधना ये सब नही कर रही । बलबीर अब 12वी में आ चुका था । उसे भी विज्ञान ही मिला था वह अपने भाई की तरह दृढ निश्चय से पढ़ने वाला व्यक्ति बना । सोचा था 10वी में अपने जिले में प्रथम आएगा पर विद्यालय में द्वितीय आया । दुखी हुआ लेकिन प्यास और भी बढ़ गई । अब तो वह और भी मन लगाकर के पढ़ रहा था । चंदा को उसमे दूसरा हीरा दिखने लगा था । वह यह देखकर खुश भी होती थी और दुखी भी खुश की दूजा कुलदीपक आ गया है । दुःख क्योंकि उसे भी भूत सवार था सेना में जाने का , वह अपने दूसरे बेटे को कुर्बान होते हुए नहीं देख सकती थी । आखिर वह भी तो एक माँ ही है ।
कुछ दिनों बाद धीर 23 साल का हो गया था । उन दिनों में आम तौर पर इस उम्र में शादी के लिए खोजबीन शुरू हो जाती थी ।
चंदा ने धीर से पूछा –‘ अब तुम 23 के हो चुके हो लड़की देखना शुरू करे ?’
धीर –‘ नहीं माँ में शादी नहीं करना चाहता अभी ।’
चंदा –‘ क्यों इस उम्र तक में सब के ब्याह हो जाते है या फिर बात तो चलनी शुरू हो जाती है । अगर दो तीन साल ऐसे ही लटकाते रहे तो फिर नहीं होगी । बुढ़वन से कौनु शादी नाहि करत हु बिट्वन ।’
धीर –‘ अरे ! मतारी मेरे से नहीं होगी क्यों किसी का जीवन बिगाड़ती हो मेरे साथ मुझसे दो लोगो का बोझा नहीं उठेगा । मेरा मन नहीं करता न ही मुझे अब किसी से कोई गहन लगाव होता है मैं तो बस एक विरला हु माई ।’
चंदा –‘ अच्छे अच्छो का मन रम जाता है विवाह के बाद ।’
चंदा ने तरह-तरह की लुभाने वाली बाते बोली पर धीर ने एक न सुनी ।
चंदा ने फिर एक चाल चली वे जानती थी कि धीर उज्जड लोगो की संगति में बिगड़ा है । तो उसे सुधारने के लिए उसने ज़मीन धीर और बलबीर दोनों के नाम कर दी और वसीयत कुछ इसस प्रकार बनवाई की दोनों के हस्ताक्षर के बिना कभी जमीन नहीं बिकेगी । वह बलबीर को भी भली प्रकार से जानती थी की वह मातृप्रेम में कभी घर नही बेचेगा । वह धीर पे और ज़िम्मेदारी डालकर उसे गंभीर बनाना चाहती थी । लेकिन इसका भी धीर पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा । चंदा को चिन्ताओ ने घेर लिया आखिर एक माँ अपने बेटे को फलते-फूलते ही देखना चाहती थी , कुल को बड़ते हुए देखना चाहती थी पर बेटा था की मानता ही नहीं । अंत में उसकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई । दिसम्बर महीने में पूस की रात को चंदा का देहांत हो गया । सुबह जब काफी देर तक नहीं उठी तो बलबीर ने उसे उठाने गया जब उसने अपनी माता को टटोला तो उन्हें मृत पाया । डॉक्टर ने ठण्ड में सीना जकड़ जाने को मौत का कारण बताया । बलबीर ने सबसे छोटा होने के कारण मुखाग्नि दी । बलबीर अपने आप को अभागा समझ रहा था पिछले तीन साल में उसके सारे अपने चले गए । उसे यकीन नहीं हो रहा था की वह अनाथ हो गया है । उसका कुछ भी करने को मन नहीं करता । धीर ने उसका ढाढस बंधाया , बताया की उसकी परीक्षा पास है । उसे अपना कर्म निरंतर करने की सलाह दी । निजी काम के लिए धीर ने नौकरानी लगा दी और अपना रोजमर्रा के कार्यों में लग गया ।
29. 13 मार्च 1996
बीते कुछ दिनों में धीर के खर्चे उसके सिरदर्द का कारण बन गये थे । उसकी इन बुरी आदतों ने उसे फिर से कर्ज़दार बना दिया था । पीना और जुँआ खेलना दोनों ने उसके जेब पर बुरा असर डाला था । एक क़र्ज़ चुकाने के लिए वह दूजा क़र्ज़ उठा लेता । कभी जुँआ जीतता तो फिर कुछ राहत मिल जाती थी । अभी वो 25 हज़ार के क़र्ज़ में था । करीबन दो लाख के बराबर आज की तारीख में । लोग उठते-बैठते उससे पैसे माँगा करते थे ।
आज भारत और श्री-लंका के बीच में विश्वकप का सेमीफाइनल मैच था । धीर इसी की फिराक में था की आज वह सट्टा जीतकर सबके पैसे चुकते कर देगा ।
सट्टा लगाने वाले दलाल ने पूछा –‘ टॉस कौन जीतेगा ?’
धीर –‘ मैं टॉस पे नहीं लगाऊंगा ।’
दलाल –‘ पहला ओवर , क्या होगा ?’
धीर –‘ पहली तीन बॉल में एक विकेट, दस का भाव ।’
दलाल हँसते हुए -‘ अच्छा चलो देखते है ।’
क्रीज़ पर जवागल श्रीनाथ लेकर दौड़ते हुए । पहली गेंद पर सनथ जयसूर्या ने एक रन लिया ।
दलाल मुस्कुराते हुए –‘ देखा ।’
धीर –‘ दो अभी बाकी है ।’
दूसरी गेंद फेकी गई कलुविथरना खेल रहा था । गेंद बाहर की ओर गई विथरना ने शॉट मारा कवर के ऊपर से बॉल बल्ले का किनारा लेती हुई थर्ड-मैन के दायरे में आ गई जो वहाँ पर खड़े संजय मांजरेकर ने लपक ली ।
दलाल भोचक्का रह गया ।
तारिक ने इसपर बोला –‘ यह धीर है , धीर जो बोलता है वो हो जाता है ।’
दलाल अपनी मुछो पर ताव देते हुए –‘ अच्छा ऐसा क्या तो बताओ इस ओवर में अब क्या होगा ?’
धीर –‘ एक विकेट और गिरेगा ।’
दलाल –‘ किसका ?’
धीर –‘ जयसूर्या । पाँच का भाव ।’
तारिक –‘ अबे पगला गए हो क्या इतना सटीक सट्टा कौन लगाता है बे ?’
दलाल –‘ चलो देखते है फिर ।’
इसी ओवर में जयसूर्या भी चार गेंद खेलकर चलते बने अंकतालिका एक रन दो विकेट । अब दलाल और तारिक दोनों दंग ।
दलाल –‘ ये लो 18 हज़ार तुम्हारे अभी तक के हुए । अब आगे क्या ?’
धीर –‘ रुके रहो भाई मैच का भी लुफ्त उठा लेने दो थोड़ा ।’
अब श्रीलंका के तेज़ी से रन बढ़ने लगे कारण डी सिल्वा की धुँआदार बल्लेबाजी ।
दलाल –‘ ये 100 बनाएगा आज लगता है ।’
धीर –‘ नहीं बनाएगा ।’
दलाल –‘ सोच लो 15 का भाव है इसपर अभी ।’
कुछ देर तक डी०सिल्वा धुँआदार बल्लेबाज़ी करता रहा । फिर कुंबले को बुलाया गया गेंदबाज़ी पर पहली गेंद फेकी गई गेंद लगभग 6ठे डंडे के जितना दूर टिप्पा खाई और सीधा बीच के डंडे (मिडिल स्टंप ) पर जाके घुस गई ।
दलाल –‘ लग रहा है आज किस्मत के घोड़े पर बैठे हो ।’
धीर –‘ आज मेरा दिन है ।’
दलाल –‘ औरो को भी खेलने दो यार अब इस पारी में तुम आख़िरी बार सट्टा लगाओगे । अब बताओ किसपर लगाते हो ?’
धीर –‘ तेंदुलकर पर । 50 रन से कम देगा और कम से कम एक विकेट लेगा ।’
दलाल –‘ इसपर किसी ने बिड नहीं लगाई । ‘
धीर –‘ में इसपर पाँच का भाव लगाता हूँ ।’
बगल में बैठे एक सटोरी ने इसपर 10 का भाव लगा दिया की ऐसा कुछ भी नहीं होगा । पारी ख़त्म हुई और सचिन ने 40 रन देकर के 2 विकेट लिए धीर फिर जीत गया । दूसरी पारी शुरू हुई भारत की बल्लेबाज़ी आई ।
दलाल –‘ तो कोई बेट लगा रहा है क्या ?’
एक सटोरी –‘ हाँ ,दस हज़ार , दस का भाव पहला विकेट 10 रन के अंदर ।’
धीर –‘ पहला विकेट 20 रन के बाद 10 का भाव ।’
जबकि पहला विकेट 8 रन पे गिरा यह धीर की पहली हार थी ।
दलाल –‘ क्यों धीर अब आया न ऊँट पहाड़ के नीचे ।’
धीर तिलमिलाकर दाँत पीसने लगा ।
दलाल –‘ अगला खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर इसपर क्या भाव ?’
धीर –‘ 10 का भाव । सचिन 50 मारेगा ।’
एक सटोरी –‘ नहीं मारेगा 15 का भाव ।’
थोड़ी देर तक सचिन ने खूब शॉट्स मारे और 50 के आकड़े को बहुत ही सरलता से पार कर दिया ।
दलाल –‘ तो धीर फिर से जीत गया । क्या सचिन 100 मारेगा ?’
धीर –‘ हाँ मारेगा , 5 का भाव ।’
बहुत से सट्टेबाजो ने हाँ कर दी केवल दो बंदे थे जिन्होंने हाँ नहीं की और कहा ऐसा नहीं होगा 15 के भाव पर । सनथ जयसूर्या ने सचिन को स्टंप आउट करवा दिया । धीर दोबारा हार गया अब उसपर बचे सिर्फ 2 हज़ार रूपये । सचिन के आउट होने के बाद पूरा सट्टा बाज़ार मायूस हो गया । आधो ने वहाँ से पैसा लगाना बंद कर दिया ।
दलाल –‘ हाँ तो अब क्या होगा ?’
धीर –‘ 130-150 के बीच में भारत सिमट जाएगा 20 का भाव , दो हज़ार ।’
बहुत से सट्टेबाजो ने उसे गालियाँ दी किसी ने उसे गद्दार कहा तो किसी ने उसे तामसिक प्रवृर्ती का बोला । बाकी बचे बहुत से लोगो ने भारत की जीत पर पैसे लगाए । सिर्फ एक सटोरी ने श्रीलंका के जीतने पर सट्टा लगाया । ऐसा इसलिए था क्योकि सब जानते थे कि सचिन आउट तो गेम ओवर और हो भी वही रहा था । सब एक के बाद एक चलते बने विकेट गिरने की फुलझड़ी सी लग गई । अंकतालिका पर कुछ 120 पे 8 विकेट हुए होंगे की ईडन-गार्डन की भीड़ ने गुस्से में आकर पेज और साइन बोर्ड जलाना शुरू कर दिए । बचे कुचे लोगो ने मैदान पर जहाँ-तहाँ बोतले फेकनी शुरू कर दी । मैच स्थगित कर दिया गया और डकवर्थ लुईस से श्रीलंका को जीत दे दी गई । यह खेलजगत के लिए बहुत शर्मनाक घटना थी जो स्पोर्ट्समैनशिप के लिए बिलकुल खराब थी और अपने देश के लिए बहुत शर्म की बात ।
दलाल बोला –‘ तो श्रीलंका जीत गया धीर लेकिन तुम हार गए ।’
धीर –‘ ये सारे कंजर लोग 10 मिनट और रुक नहीं सकते थे । 130 बड़े प्यार से हो जाते मैं नहीं मानता इसे ।’
दलाल –‘ कैसे नहीं मानोगे 40 हज़ार दो सीधे से ।’
धीर –‘ नहीं दूंगा कुछ भी कर लो ।’
दलाल –‘ देखो चौबे नाम है मेरा क्या ? चौबे दलाल । देंगे तुम्हारे अच्छे अच्छे, कैसे नहीं दोगे जहाँ छुपोगे वहाँ घुसकर तुम्हें वहाँ से निकालकर लेंगे पैसे तुमसे सीधे कहे देते है एक हफ्ता में पैसे नहीं दोगे तो मार दिए जाओगे । सीधा मुँह के अंदर पिस्तौल रखकर भूज देंगे ।’
तारिक –‘ अबे यार ! अब कैसे करोगे ? कहाँ से लाओगे इतने पैसे ? 40 हज़ार एक हफ्ते में ऊपर से 25 हज़ार का कर्ज़ और है तुम पर ।’
धीर –‘ समझ नहीं आ रहा यार ।’
तारिक –‘ अगला लगाओगे , कौन जीतेगा विश्वकप ?’
धीर –‘ अब तो जीतेगी श्रीलंका ही लेकिन सट्टा नहीं लगा सकता मैं वरना लाखों रुपयों के कर्ज़ के लपेटे में आ जाएँगे । ऊपर से चौबे जब तक पैसे चुकता नही हो जाते हमें लगाने नही देगा । हमें कुछ और करना पड़ेगा पता नही क्या ? तुम्हे कुछ सूज रहा है तो बताओ बे ।’
तारिक –‘ भाई ब्याज लेकर भर दो दलाल के पैसे ?’
धीर –‘ यार पहले से ही इतना कर्ज़ में डूबे है हमें कोई पैसे नहीं देगा ।’
तारिक –‘ अबे हाँ बे ! अपनी ज़मीन का एक हिस्सा बेच दो जिसपर खेती थी और चुका दो कर्ज़ ।’
धीर –‘ अमा सही बोले भाई लेकिन बलबीर मानेगा की नहीं; पता नहीं खरीदार तो थे जायसवाल जी हमारे पड़ोसी उन्हें चाहिए थी । ’
तारिक –‘ अरे मानेगा क्यों नहीं भाई है तुम्हारा वो जरुर समझेगा तुम्हें फिर जो बिकेगा उसका आधा हिस्सा उसे दे देना ।’
धीर –‘ चलो देखते है ।’
30.
अगली सुबह जब धीर और बलबीर नाश्ता करने बैठे तब धीर ने बलबीर से पूछा –‘ और पढाई कैसा चल रहा है तुम्हारा ?’
बलबीर –‘ सही चल रहा है भईया दो पेपर और रहते है बस यह सही से हो जाए तो फिर सरकारी नौकरी की तैयारी करूँगा ।’
धीर –‘ क्यों , बी०एस०सी० करलो कुछ 25 हज़ार में पूरी हो जाएगी या डिप्लोमा करलो कोई । इससे दूनी आमदनी हो जाएगी ऊपर से सीधा अफसर बनोगे । धीर की इसी वाकपटुता और चालबाज़ी के लोग कायल थे । हर मनुष्य में अपने गुण वह अवगुण होते है । धीर के थे की वह अपने कार्य लोगो से बड़े प्रेम से निकलवा लेता था । वह हमेशा लोगो को अपनी ज़रूरत महसूस करवाता था ।
बलबीर ये सुनकर बोला –‘ नहीं में नहीं कर सकता ।’
धीर –‘ क्यों ?’
बलबीर –‘ पैसे कहाँ से आएँगे इतने ।’
धीर –‘ देखो , अपने घर की जो खेत वाली ज़मीन है इसे बेच देते है । आधा पैसा तुम्हारा आधा मेरा ।‘ धीर अपनी बात बोल ही रहा था की बलबीर ने तमतमाते हुए बोला- ‘ नहीं भईया !! ऐसा नहीं हो सकता ! कभी नहीं !’
धीर –‘ लेकिन क्यों , इस समय तुम्हे ज़रूरत होगी । कहाँ से होंगे इतने पैसे फिर । देखो जायसवाल परिवार हमें दो लाख देने को तैयार है । इतना कभी हमे कभी नहीं मिलेगा इसका हमे ।’
बलबीर चीखते हुए –‘ नहीं मतलब नहीं यह सब जायसवाल का सिखाया गया है तुमको । बहुत पहले से ही उनकी कुदृष्टि थी हमारे घर पर ।’
धीर –‘ ऐसा कुछ भी नहीं है । देखो जरुरत के समय पर ऐसी चीज़े ही काम आती है ।’
बलबीर –‘ कितने बुज़दिल हो भाई तुम, आखिर तुम कैसे भूल सकते हो की ये हीरा भाई की आखिरी निशानी है हमपर । उन्होंने सेना में जाकर अपने प्राण दांव पर लगाकर हमारे लिए यह सब खड़ा किया ।’
धीर –‘ देखो , पागल मत बनो दिल से नहीं दिमाग से सोचो ऐसी दस ज़मीन तुम खरीद लोगे जब पढ़कर निकलोगे ।’
बलबीर –‘ मुझे अपने माता-पिता से प्यार है , अपने भाई से प्यार है । मैं नहीं बेचूँगा जमीन ।’
धीर –‘ तुम्हारा ये भाई भाई भी मुसीबत में हैं ।’
बलबीर –‘मतलब ।’
धीर रोते हुए –‘ मुझपर 65 हज़ार का कर्ज़ है जिसमे से 40 हज़ार एक दलाल को देना है । अगर मैंने एक हफ्ते तक पैसे नहीं चुकाए तो मुझे मार दिया जाएगा और हो सकता है वो तुम तक भी पहुँच जाए ।’
बलबीर –‘ ये हुआ कब ?’
धीर –‘ जुँआ , शराब , सट्टा की जद में यह सब हो गया । एक का उधार चुकाने के लिए मैंने दूसरे से पैसे माँगे फिर दूसरे का चुकाने के लिए तीसरे से इस तरह मैं चक्रवर्ती ब्याज और उधार के दलदल में धसता चला गया मेरे पर 25 हज़ार का कर्ज़ा चढ़ गया । उसको चुकाने के लिए मैंने कल सट्टा खेला जो मैं हार गया । नतीजा 40 हज़ार की चपेट और लग गयी ।’
बलबीर थोड़ा नरम पड़ा । यह देखकर धीर ने बोला – ‘ अंगूठा लगा दे भाई इसपर मेरी जिंदगी तुम्हारे हाथों में है ।’
बलबीर ने पेपर हाथ में लिया एक मन उसका ये किया की लगा दूँ अँगूठा इसपर लेकिन ऐसा करते वक़्त उसके दिल में हीरा की और अपने माता-पिता की तस्वीर आ गई । कितनी मेहनत और यातनाए सहीं है उन्होंने यहाँ तक आने के लिए । उसने उसी वक़्त पेपर फाड़ दिए और बोला – ‘ कभी एक ईट जोड़ी है घर में जो इसको बेचना चाहते हो तुम । कभी कुछ बनाया है तुमने जो इस घर में, जो बटवारा करू मैं । अपनी सारी आमदनी तो तुम दवा-दारु में उड़ा देते हो क्या भरोसा की तुम इसके बाद ऐसा नही करोगे । मैं तुम्हें कभी नहीं दूंगा ये ज़मीन ।’
31.
काम न बनता देख धीर वहाँ से उठकर चल दिया । सोचने लगा की आगे फिर क्या किया जाए । बहुत देर तक वह सोचता रहा , सोचते-सोचते शाम हो गई । सामने मुर्गे की दुकान थी उठकर खड़ा हुआ और दुकानदार से जाकर बोला –‘ भईया मुर्गा कितने का दिया ?’
दुकानदार –‘ क्या साहेब हर दूसरे दिन तो लेते हो हमसे फिर भी पूछ रहे हो , 50 रूपये किलो ।’
धीर –‘ हाँ तो एक किलो कर दो । अच्छा ये बताओ तुम लाते कहाँ से हो ये सब माल ।’
दुकानदार –‘ क्या साहब पार्टी करोगे क्या बड़ी , गाँव से हाईवे जाने वाली रोड पर है बुचडखाने वहीँ से ये सब मिलता है ।’
धीर –‘ अच्छा ठीक है ।’
धीर ने साइकिल उठाई और निकल पढ़ा कसाई पट्टे की ओर । थोड़े देर समय के बाद वहाँ पहुँचा और घुसते ही एक कसाई से पूछा ‘ सुल्तान कहाँ है ?’ कोपरगाँव में सिर्फ एक ही कसाईपट्टा था वो भी बदमाशों का ।
कसाई ने उंगली जहाँ पे सुल्तान खड़ा था वहाँ पर कर दी । वहाँ के वातावरण में ही बदबू थी इतनी की लोगो को उल्टी हो जाए चारो तरफ बस खून ही खून । सुल्तान इलाके का सबसे खतरनाक बंदो में से एक था ।
सुल्तान के पास पहुँचकर धीर ने बोला –‘ सुल्तान ‘
सुल्तान –‘ क्या ?’
धीर –‘ एक सुपारी है या इसे सुपारी न समझो किसी को डराना है ।’
फिर धीर ने उसे सारा माजरा कानों में बता दिया और बाद में बोला ‘ कर पाओगे ?’
सुल्तान –‘ अबे पागल हो क्या #&%
! ऐसा करता है क्या कोई ?’
धीर –‘ तुमसे नहीं होगा फिर ।’ यह कहकर धीर आगे चल पड़ा ।
सुल्तान –‘ रुको ।’
सुल्तान ने आगे आकर बोला –‘ 15 साल की उम्र में मैंने अपने बाप के कातिलों को मारा था ।ये मेरे लिए कुछ भी नहीं है । 20 हज़ार ।’
धीर –‘ ठीक है । परसों फिर ।’
धीर ने अगले दिन जाकर दो पेपर बनवाए प्रॉपर्टी के एक में आधी प्रॉपर्टी बेचने के लिए और दूसरी में पूरी प्रॉपर्टी बेचने के लिए ।
दूसरे दिन
देर रात जब धीर घर लौटा और रोज़ की तरह बलबीर ने दरवाज़ा खोला तो कसाई के बंदे नक़ाब पहने हुए धीर के साथ अंदर घुस गए । फिर उसे जबरन रस्सी से बाँध दिया गया ।
बलबीर –‘ ये क्या कर रहे हो ?’
धीर –‘ दिख नही रहा यह क्या हो रहा है । मैंने तुम्हें पहले ही कहा था ज़मीन बेच दो । तो बताओ बेचते हो की नही ।’
बलबीर –‘ नहीं कभी नहीं ।’
धीर –‘ सुल्तान ये पेपर को लो और जो कहा था वो कर दो ।’
धीर ने दूसरी तरफ मुख कर लिया ।
सबने पेपर रखकर जबरन उससे अंगूठे के निशान लगवाए । उसको लेटाया जाने लगा और हाथ पैर पकड़ लिए गए । बलबीर ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगा और छुड़ाने की जब्दोजेहत करने लगा । फिर दो चीजों की आवाज़े आयी एक चापड़ की दूसरी बलबीर की । पहली समय के साथ प्रबल होती चली गयी दूसरी समय के साथ विक्षिप्त होती चली गई । भगोने भर-भरके खून नाली में बहाया जा रहा था । पड़ोसी छुपकर देख रहे थे । सब शांत थे । बड़ी मुस्तैदी से खून के धब्बे मिटा दिए गए और अवशेषों को एक बोरे में भर के रात को गोदावरी नदी में बहा दिया गया । चार दिन में सारे हिसाब चुकता करके धीर अपने दोस्त तारिक से मिलने जाता है ।
तारिक गले मिलते हुए –‘ कैसे हो धीर आओ-आओ कहा गायब थे इतने दिन से ?‘
धीर –‘ अरे तारिक भाई तुम तो जानते ही हो पैसे जुटाने की जुगत में लगा था ।’
तारिक –‘ हाँ ये सुनने में आया था की तुमने लगभग सभी के पैसे लौटा दिए । चलो भाई था तुम्हारा कैसे मदद नहीं करता ।’
धीर –‘ वह नहीं मान था ।’
तारिक –‘ क्या , फिर कैसे किया ? मुझे तो यही पता लगा था की तुमने ज़मीन बेच दी ।’
धीर –‘ उसे गुस्से के कारण ज्वर चड़ा और हाई बी०पी० से उसको हार्ट अटैक पड़ा जिसके बाद उसका देहांत हो गया ।’
तारिक –‘ क्या ? ये तुम झूठ बोल रहे हो , ये तुम झूठ बोल रहे हो । तुमने कहीं उसे मार दो नही दिया ? ‘
धीर –‘ ये लो तुम्हारे दो हज़ार रूपये ।’
तारिक –‘ नहीं चाहिए जिसमे मेहनत की जगह अपने का खून लगा हो । रखों इससे तुम अपने पास । मेरी बात का जवाब दो ?’
धीर –‘ देखो पैसे रख लो में जा रहा हूँ और हाँ किसी को अगर भनक पड़ी तो याद रखना वो तो मेरा भाई था तुम तो फिर भी बाहर के बंदे हो ।’
ये बोलकर धीर चला गया ।
उपसंहार
यह कहानी का सुखद अंत नहीं था या फिर कुछ यूँ कहे की कहानी अधूरी रह गई क्योंकि किसी को भी नहीं पता धीर का क्या हुआ । उसके बारे में यही कहा जाता है कि वो समुद्र के रास्ते देश से भाग निकला । इधर जायसवाल जी के दूसरे बेटे को बलबीर के आत्मा दिखती है । कुछ ये कहते है ये उनके कर्मो का फल था जो उनके बेटे को भुगतना पड़ा और कुछ का यह कहना था की उसने उस रात का मंज़र अपनी आँखों से देखा था जिसके कारणवश उसकी मानसिक चेतना पर इतना बड़ा अघात हुआ ।
मैं ये आप पर छोड़ता हूँ की की कौन इस कहानी का मुख्य किरदार था और कौन विलेन । मैं बस इतना कहना चाहूँगा । जिंदगी एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कोई नहीं जानता और मृत्यु ऐसा जवाब है जिसपर कोई प्रश्न नहीं कर सकता । खैर यह तो युगों-युगों से चला आ रहा है । पहले रामायण में राजपाठ के लिए काट-कपट हुई । फिर महाभारत में भी कुछ ऐसा ही हुआ । शायद ये कलयुग है इसलिए कौरव जीत गए ।
पड़ोसियों ने चंदा और दीनदयाल की परवरिश को गलत ठेराया । जबकि देखने वाली बात ये है की उसी परवरिश से एक पुत्र देशभक्त निकला और दूसरा परिवारभक्त और तीसरा निर्दयी । इंसान का आचरण उसकी संगती पर ज्यादा निर्भर करता है ना की उसकी परवरिश पर । खैर मनुष्य के सही-गलत के बीच के निर्णय या चयन उसकी सहूलियतों पर निर्भर होता है ।
पैसों के कारण परिवार में तनातनी और हत्या की खबर अक्सर अखबारों में मिल ही जाती है । एक राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज नेता को उसके भाई ने मार दिया था खबर बहुत दिन तक मीडिया में रही । कितने ही व्यवसायी इस देश को लूट चम्पत हो गए और एक गरीब सब्जीवाले की ठेली तोड़ दी गई कुछ गुंडों द्वारा हफ्ता न चुकाए जाने पर ।
जंगल में अगर भोला हिरण ये सोचता है की वह तो भोला है उसे कोई क्यों नुकसान पहुँचाएगा तो ये एक मूर्खता होगी क्योकि शेर को तो शिकार करना ही है । दुनिया में जो भी होता है हम उसमे सहभागी और सहपाठी है ।
अक्सर दो गज ज़मीन के लिए लोग अपने ज़मीर बेच देते है । ज़मीन काँप जाए पर ज़मीर नही काँपते ।