दिल बहलाव के जुदे-जुदे तरीके (हिंदी व्यंग्य) : बालकृष्ण भट्ट

Dil Behlaav Ke Jude-Jude Tareeke (Hindi Satire) : Balkrishna Bhatt

जब आदमी को कुछ काम नहीं रहता, तो दिल बहलाने को कोई-नकोई ऐसा एक काम निकाल लेता है, जिसमें समय उसको बोझ न मालूम हो और यह कहने को न रहे कि वक्त काटे नहीं कटता।

इस दिल-बहलाव के जुटे-जुटे तरीके हैं, जिनमें थोड़े-से यहां पर दिखाए जाते हैं-कितने सब कामकाज से छुटकारा पाय दिल बहलाने को बाहर निकलते हैं। सदर बाजार के एक छोर से दूसरे तक दो चक्कर किए, कभी इस कोठे पर ताका कभी उस अटारी पर इशारेबाजी हुई, दिल बहल गया, घर लौट आए।

कितनों का दिल-बहलाव हुक्केबाजी है, सब काम से फुरसत पाय, किसी बैठक में आ बैठे, हाहा-ठीठी करते जाते हैं, और चिलिम पर चिलिम उड़ाते जाते हैं-हाहा-ठीठी, धोल-धक्कड् का मौका न मिला, तो वे केजड़, बेबुनियाद की ऊबियाऊ कोई दास्तान छेड़ बैठे, घंटों तक उसी में समय बिताया, घर की राह ली, दिल बहल गया। कितने चले जाते हैं, रास्ते में कोई दोस्त मिल गए, दो-दो कच्ची-पक्की औंडी बौंड़ी इन्होंने उसे सुनाया, उसने उन्हें कहा, अपनी-अपनी राह ली, सब थकावट दूर हो गई, मन बहल गया।

कर्कशा-अपढ़ स्त्रियों का दिल-बहलाव लड़ाई है। घर-गृहस्थी के सब काम पिसोनी-कुटौनी से छुट्टी पाय, जब तक दांत न किर्र लें और आपस में झोंटा-झोंटी न कर लें, तब तक कभी न अघाए; जी ऊबता रहे, चित्त में उदासी छाई रहे, मानो उस दिन उन्हें उपवास हुआ। चुगल चबाई ईड़ी धूतों का दिल-बहलाव निंदा और चवाव है, दो-चार पुराने समय के खबीस इकट्ठे हो तमाखू पिच्च-पिच्च धूकते जाते हैं और सौ वर्ष का पुराना कोई जिकिर छेड़ बैठे। बहुधा जात-बिरादरी के संबंध की कोई बात अवश्य होगी, नाक बढ़ाय-चढ़ाय मुंह बगार-बगार किसी भले मानुष के गुण में दोष उद्‌घाटन करते दो-चार कच्ची-पक्की कह-सुन लिया, मन बहल गया।

कोई-कोई ऐसे मनहूस भी हैं कि फुरसत के वक्त किसी अंधेरी कोठरी में हाथ पर हाथ रखे पहरों तक चुपचाप बैठे रहने ही से दिल बहलाव हो जाता है।

बाज-बाज नौसिखिये, नई रोशनी वाले, जिनका किया-धरा आज तक कुछ नहीं हुआ, मुल्क की तरक्की के खष्ट में आय आज इस सभा में जाय हड़ाकू मचाया; कल उस क्लब में जा टॉय-टॉय कर आए, दिल-बहलाव हो गया। इन्हीं में कोई-कोई

दाऊ-घप्प गुरुघंटाल किसी क्लब या समाज के सेक्रेटरी या खजानची बन बैठे और सैकड़ों रुपया वसूल कर डकारने लगे। भांडों की नकल, सवारी र्का सवारी, जनाना साघ, आमदनी की आमदनी, दिल-बहलाव मुफ्त में। सच पूछो, तो इनका दिल-बहलाव सबसे अच्छा; हमें ऐसा दिल-बहलाव मिलता, तो सिवाय दिल बहलाने के कोई काम करने के डांडे न जाते। धन्य हमारा समाज, धन्य हमारे लोगों की तबीयत की झुकावट! जिनके बीच ऐसे-ऐसे उमदा- से-उमदा दिल-बहलाव मौजूद हैं। इसी दिल-बहलाव का एक क्रम नीचे के श्लोक में दिया गया है-

काव्यशास्त्रविनोदेन काली गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।

सच है, विद्यारसिक पढ़े-लिखे विद्वानों का क्रम अपढ़ साधारण लोगों से जैसा और सब बातों में निराला है, वैसा ही दिल-बहलाव भी अनोखे ढंग का होना ही चाहिए। सामान्य मनुष्यों का दिल-बहलाव विषय-वासना का एक अंग रहता ही है, वहीं विद्वानों का दिल-बहलाव विद्या-संबंधी बुद्धि का बढ़ाने वाला और शुद्ध सात्विक क्रम का होता है। इसी से ऊपर कहे श्लोक में लिखा गया है कि 'बुद्धिमानों का काल काव्यशास्त्र के पढ़ने-पढ़ाने के आनंद में बीतता है, मूर्खों का समय दुर्व्यसन और सोने में नष्ट होता है।' अति दुरूह कठिन विषय, जिनमें मस्तिष्क को विशेष परिश्रम पड़ता है, चिरकाल तक उसमें अभ्यास के उपरांत बहुधा जब तबीयत उस ओर से उखड़ जाती है, तब वैसे विषय जिनमें बुद्धि को अधिक परिश्रम नहीं है और सुकुमार कोमल बुद्धि वालों के पढ़ने के योग्य हैं, जैसा काव्य, नाटक, उपन्यास, नावेल, किस्से-कहानी, इतिहास, भूगोल इत्यादि के पढ़ने से देर तक दिमाग को काम में लाने से जो उस पर बोझा आ जाता है, वह हल्का होकर दोचंद उस दुरूह विषय की ओर धंसता है। नैयायिक, वैयाकरण और गणितज्ञ (मेथिमेटिशियन) का दिल-बहलाव मदाधारी जागदीशी और दीक्षित की फक्किकाओं के हल करने से जैसा होता है, वैसा किसी दूसरी बात से नहीं होता। कहावत चल पड़ी-वैयाकरण अर्द्धमात्रा के लाधव में पुत्र-जन्म-सा आनंद का उत्सव मानते हैं।

अर्धमात्रालाघवेन वैयाकरणा: पुत्रोत्सवं मन्यन्ते।

इसका यही प्रयोजन है कि जिस विषय का मनन करो, वह मन में बैठ जाए तो मन प्रसत्र हो जाता है और इतनी खुशी होती है, मानो लड़का पैदा हुआ। इसी तरह 'युत्कैदिस' बीजगणित या कोई दूसरे हिसाब के सवाल हो जाने पर गणित करने वाले के चित्त में जो सुख होता है, उसके आगे विषय-वासना के निकृष्ट कोटि वाले आमोद-प्रमोद किस हकीकत में हैं। इसी तरह सभ्य समाज का भी दिल-बहलाव इधर-उधर बेकाम घूमने के बदले अपने समान उदार प्रकृति वालों के साथ संलाप है, जिनकी आपस की बातचीत उत्तर उपदेश से पूर्ण रहती है। इसी से किसी ने कहा है-

सदा संतोsभिगंतव्यो यद्यप्युपदिशांति नो।
गा हि स्वैरकथास्तेषामुपदेशा भवन्ति ता:।।

-सुसभ्य सत्पुरुष यद्यपि कुछ उपदेश न करें, तो भी उनके पास जाना उत्तम है, जो आपस की उनकी बातचीत है, वही उपदेश होती है। कृपणता र्का मूर्ति हमारे सेठजी का दिल बहलाव रुपए की गंजिया है, हुंडी-पुर्जे के भुगतान से छुट्टी पाय जब कुछ दमाम न रहा गंजिया खोल बैठे, दो-चार हजार रुपया गिन डाला, दिल बहल गया। शराबी तथा जुआरी का दिल-बहलाव शगल है। पक्के जुआरी को जिस दिन हजार-पांच सौ जीत-हार न हो ले जी ऊबता रहता है, जिनके जीवन का सर्वस्व द्यूत है।

द्रव्य लब्ध द्यूतेनैव दारा मित्र द्यूतेनैव।
दत्त भुक्तं द्यूतेनैव सर्व नष्ट द्यूतेनैव।।

जुआरी जुआ को बिना सिंहासन का राज्य मानता है-
न ग यति पराभवं कृतश्चित् हरति ददाति च निन्यमर्थजातम्।
नृपतिरिव निकामयदर्शी विभवता समुपास्यते जनने।।

ऐसा ही शराबी जब तक पीते-पीते बेहोश हो चहबच्चे में न गिरे, उसका दिल न बहलेगा। हमारा दिल-बहलाव उमदे-से-उमदा टटका रसीला मजमून है, जिस दिन कोई नई बात सूझ गई दस मिनिट में खर्रे-का-खर्रा लिख डाला। उस दिन चित्त बड़ा प्रसन्न रहा, नहीं बैठे-बैठे सिर पर हाथ रखे पहरों सोचते रहते हैं, अंत को उद्विग्न खिन्न चित्त निरस्त हो बैठते हैं। ऐसा ही अपने रसिक ग्राहकों को एक-दो दिन के लिए दिल-बहलाव हम होते हैं; जिस दिन हम उनसे जा मिलते हैं, वे अपना सुदिन मानते होंगे। इत्यादि, दिल-बहलाव के जुदे-जुदे तरीके यहां दिखाए गए।

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