धूमकेतु (विज्ञान कथा) : जयन्त विष्णु नार्लीकर
Dhoomketu (Story in Hindi) : Jayant Vishnu Narlikar
दिसंबर के महीने में अमावस की काली रात थी। खिड़की से आता ठंडी हवा का झोंका
इंद्राणी देवी की नींद उड़ाने के लिए काफी था। उनींदी अवस्था में उन्होंने
बगलवाले तकिए को टटोलकर देखा। हालाँकि सच्चाई उन्हें पता थी, दत्ता दा अपने
बिस्तर पर नहीं थे।
फिर उन्होंने दरवाजे की ओर देखा। अब उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया, क्योंकि
दरवाजा पूरा खुला हुआ था।
"तो वह फिर उसी कमबख्त दिव्या से यारी निभाने गए हैं। कम-से-कम दरवाजा बंद
करने का ध्यान तो रखना चाहिए था।" इंद्राणी देवी ने बड़बड़ाते हुए अपनी
नाराजगी जताई; पर वे अपनी मुसकान को भी नहीं दबा पाईं। जानती थीं कि उनके पति
घर-गृहस्थी की समस्याओं से पूरी तरह बेखबर हैं। क्या उनके डॉक्टर ने उन्हें
ठंड से बचने के लिए सावधानी बरतने को नहीं कहा था? लेकिन वे इतने भुलक्कड़ थे
कि उन्हें स्वेटर पहनने का भी ध्यान नहीं रहता, जो कि बगल में कुरसी पर पड़ा
रहता था। याद भी कैसे रहता, उन पर तो दिव्या का जादू चढ़ा था!
इंद्राणी देवी ने शॉल लपेटा और सफेद पुलोवर उठाकर सीधे छत का रुख किया।
उद्देश्य था अपने पति और दिव्या के बीच कबाब में हड्डी बनना। छत पर उन्होंने
पाया कि वे दोनों आँखों में आँखें डाले बैठे हैं। कम-से- कम दत्ता दा तो
दिव्या की आँखों में डूबे हुए थे।
इंचों में दिव्या की कमसिन फिगर 8.64 थी-यानी अपर्चर आठ इंच और फोकल लेंग्थ
64 इंच।
जब से दत्ता दा को यह टेलीस्कोप मिला, उनके रोमांच का ठिकाना नहीं है।
उन्होंने इसे नाम दिया-दिव्या चक्षु।आखिर वह इस ब्रह्मांड को इनसानी आँखों से
बेहतर जो देख सकता था। लेकिन इंद्राणी देवी को टेलीस्कोप अपनी सौत के समान
लगता था, जिसने उनके पति को फंसा लिया था। इसलिए वे इसे 'दिव्या' कहती थीं और
उसका यही नाम प्रचलित हो गया।
लेकिन दत्ता दा के लिए तो दिव्या साकार हो चुके एक सपने की तरह था। शौकिया
खगोलविद् होने के नाते उनका सपना था कि उनके पास भी ढेर सारे पैसे हों, जिनसे
वे एक अच्छा टेलीस्कोप खरीद सकें। उनकी यह भी इच्छा थी कि उनके पास ढेर सारा
वक्त हो कि वे भी सातों आसमानों तक देख सकें। नौकरी से रिटायर होने पर उनके
ये दोनों सपने साकार हो गए। अब उनके पास टेलीस्कोप खरीदने के लिए काफी पैसा
था और तारों को देखने के लिए बहुत सारा वक्त भी। टेलीस्कोप को उन्होंने अच्छी
तरह अपनी छत पर लगा दिया और अब वे काली लंबी रातों में टिमटिमाते तारों को
देर तक निहारते रहते। कम-से-कम इंद्राणी देवी का तो यही मानना था।
"लो, यह स्वेटर पहन लो। क्या तुम चाहते हो कि नवीन बाबू कल तुम्हें बिस्तर से
उठने से ही मना कर दें?"
दत्ता दा ने स्वेटर पहन लिया और वापस मुड़कर टेलीस्कोप में अपनी आँखें गड़ा
दी। हालाँकि इंद्राणी देवी जानती थीं कि उनकी बातों से दत्ता दा के कानों पर
जूं नहीं रेंगेगी। फिर भी वे ताना मारने से खुद को नहीं रोक सकी, "वही पुराने
सितारे।"
वही पुराने सितारे! अगर दत्ता दा इस ताने को सुन भी लेते तो भी वे इसका जवाब
नहीं दे पाते। कोई संगीत-प्रेमी क्यों बार-बार पुराने राग को सुनना चाहता है,
जिसे बार-बार बजाया जा रहा हो? कोई कला पारखी क्यों उसी पुरानी तसवीर को
घंटों यों ही निहारता रहता है ? लेकिन दत्ता दा जानते थे कि उनके सिर पर तना
काला आकाश हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
काले आसमान की तसवीर बदलती रहती है, क्योंकि धरती सूर्य का चक्कर काटती है और
सूर्य भी अपनी जगह पर स्थिर नहीं रहता। सूर्य ही क्यों, ध्रुवतारा भी अटल
नहीं है और ग्रहों तथा उनके उपग्रहों को क्या कहा जाए, जो उन्हीं पुराने
सितारों के बीच चलते-फिरते नजर आते हैं। और धूमकेतु ?
किसी भी शौकिया खगोलविद् की तरह दत्ता दा की भी दबी हुई इच्छा थी कि वे भी एक
दिन किसी नए धूमकेतु को खोज निकालेंगे; क्योंकि धूमकेतु नए भी हो सकते हैं।
जैसा कि वे सौर मंडल के दूर-दराज के कोनों से आते हैं। ग्रहों की तरह धूमकेतु
भी सूर्य का चक्कर लगाते हैं, लेकिन उनकी कक्षाएँ बहुत ही अनियमित होती हैं,
इसलिए जब कोई धूमकेतु सूर्य के निकट आता है तो इसकी लंबी सी पूँछ मिल जाती है
जो सूर्य की रोशनी में चमकती हुई दिखाई देती है। उसके बाद धूमकेतु अँधेरे में
कहीं लुप्त हो जाता है तथा वर्षों या कई बार तो सदियों तक नहीं दिखता।
दत्ता दा को याद है कि 1986 में जब हैली धूमकेतु दिखाई दिया था तो चारों ओर
कितनी उत्तेजना फैल गई थी! यह धूमकेतु 76 साल में एक बार सूर्य के निकट आता
है। वह जानते थे कि इससे भी लंबी परिक्रमा अवधिवाले धूमकेतु भी अस्तित्व हैं।
और ऐसा कोई धूमकेतु, जिसका कोई इतिहास दर्ज न हो, नया माना जाएगा और खोजकर्ता
के नाम पर उसको नाम दिया जाएगा तो दत्ता दा की दबी हुई इच्छा थी—'दत्ता
धूमकेतु' को खोज निकालना।
लेकिन आठ इंच के दिव्या के साथ ऐसा होने की कितनी संभावना थी? पेशेवर
खगोलविदों के पास तो भीमकाय टेलीस्कोप होते हैं और एक-एक चीज को दर्ज
करनेवाली इलेक्ट्रॉनिक गैजिटरी भी। उनके आगे तो दिव्या टेलीस्कोप बच्चा था।
लेकिन दत्ता दा आशावादी थे। वे जानते थे कि जो पेशेवर खगोलविद् हैं वे अपने
पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार ही काम करते हैं, यानी लकीर के फकीर
हैं। वे धुंधले तारों को देखेंगे, बादलों जैसी आकाशगंगाओं को देखेंगे और बहुत
दूर स्थित किसी फटते हुए तारे को देखेंगे। हो सकता है कि वे धूमकेतु जैसी
किसी मामूली चीज को नजरअंदाज कर दें, जिसकी कि उन्हें देखने की बिलकुल भी
उम्मीद न हो। सच तो यही है कि शौकिया खगोलविदों ने ही अकसर नए-नए धूमकेतुओं
को खोजा था, जिन्हें पेशेवरों ने नजरअंदाज कर दिया था। और दत्ता दा को ऐसा
लगता था कि आज की रात बहुत बड़ी रात होने जा रही है।
उन्हीं पुराने सितारों के बीच दत्ता दा ने एक धुंधले से अजनबी को खोज निकाला।
वह अजनबी ही था। दत्ता दा ने अपने पास रखे चार्टी से उसका मिलान किया। दिव्या
के शीशों की जाँच की कि कहीं उन पर मैल तो नहीं जम गया है और टॉर्च की रोशनी
में अपने जेबी कैलकुलेटर पर जल्दी-जल्दी कुछ गणनाएँ की। भले ही वे घर-गृहस्थी
के कामों में अनाड़ी और भुलक्कड़ हों, लेकिन अपने प्रेक्षणों के मामले में वे
सूक्ष्म-से-सूक्ष्म चीजों का ध्यान रखते थे।
सचमुच कोई गलती नहीं थी। वे जिस चीज को देख रहे थे वह पहले वहाँ नहीं थी और
किसी नए धूमकेतु की तरह ही लगती थी। फिर भी वे दो बजे रात तक उसकी जाँच करते
रहे।
धीरे-धीरे रात बीत गई और पूर्वी आकाश में भोर का उजाला फैलने लगा। अब तारों
को देखना संभव नहीं था। दत्ता दा के रोमांच का ठिकाना नहीं था। उनसे कुछ दूरी
पर ही दक्षिणेश्वर मंदिर में लोगों की चहल-पहल शुरू हो गई। फिर बेलूर मठ में
भी लोगों का आना-जाना चालू हो गया। जल्द ही कोलकाता की बजबजाती शहरी जिंदगी
शुरू हो जाएगी और आसमान में क्या हुआ, इसकी किसी को परवाह नहीं रहेगी।
दत्ता दा ने दिव्या को किट में रखा और छत से नीचे आ गए। क्या उन्हें यह बड़ी
खबर सुनाने के लिए इंद्राणी को जगाना चाहिए? उन्होंने गहरी नींद में सोती
पत्नी के शांत चेहरे को देखकर उसे छेड़ना ठीक नहीं समझा। वे जानते थे कि उन
दोनों का जीवन चलाने के लिए वह दिन भर कितनी कड़ी मेहनत करती है। इसलिए दत्ता
दा चुपचाप अपने बिस्तर पर लुढ़क गए।
और जल्दी ही उनके संतुष्टि भरे खर्राटे कमरे में गूंजने लगे।
दो दिन बाद आनंद बाजार पत्रिका' में सनसनीखेज खबर छपी-
'कोलकाता निवासी ने नया धूमकेतु खोजा'
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
कोलकाता के उत्तरी उपनगर के निवासी श्री मनोज दत्ता का दावा है कि उन्होंने
एक नया धूमकेतु खोजा है। पिछली दो रातों से उन्होंने इस धूमकेतु को देखा है
और उसकी स्थिति के बारे में बंगलौर स्थित 'इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ
एस्ट्रोफिजिक्स' को सूचित कर दिया है। आई.आई.ए. के पास कवलूर में 90 इंच का
एक टेलीस्कोप है, जो एशिया में सबसे बड़ा है। इस टेलीस्कोप ने भी दत्ता की
खोज की पुष्टि की है, जो उनके शौकिया खगोलविद् के जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि
होने जा रही थी। अपने मित्रों और प्रशंसकों के बीच 'दत्ता दा' के रूप में
लोकप्रिय श्री दत्ता का अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में धूमकेतु नंगी आँखों
से दिखने लगेगा। अपनी इस खोज का सारा श्रेय वे अपने आठ इंच के टेलीस्कोप
'दिव्या' को देते हैं।
उसके बाद केवल एक हफ्ते के भीतर ही 'दत्ता धूमकेतु' को सारी दुनिया में इसी
नाम से मान्यता मिल गई।
आई.आई.ए. ने उन खोजों की पुष्टि की और सारी दुनिया की वेधशालाओं को सूचित कर
दिया कि नए धूमकेतु को खोजने में मान्य प्रक्रिया अपनाई गई है। लिहाजा नए
धूमकेतु का नाम उसके खोजकर्ता के नाम पर रख दिया गया। इसके साथ ही अंतर्मुखी
दत्ता दा दुनिया भर में मशहूर हो गए, जो उन्हें पसंद नहीं था। स्वागत और बधाई
समारोहों का लंबा सिलसिला चालू हो गया, जिनमें दत्ता दा को मन मारकर उपस्थित
होना पड़ता। इन समारोहों में प्रायः ऐसे लोग ही होते जिन्हें धूमकेतु के बारे
में कुछ भी पता नहीं होता और जो खगोलशास्त्र को ज्योतिष विद्या समझकर
लंबे-लंबे भाषण झाड़ते थे। ऐसे ही एक समारोह से लौटते समय दत्ता दा निराशा
में बड़बड़ाए, "काश, मैंने इस धूमकेतु को नहीं खोजा होता!"
उन्हें आश्चर्य हुआ कि इंद्राणी देवी भी उनकी इस इच्छा से सहमत थीं- "मैं भी
चाहती हूँ, पर मेरे चाहने का कारण कुछ और है। मैं जानती हूँ कि क्यों आपके
मुँह से ये शब्द निकले। आपको भीड़-भाड़ भरे समारोह से घृणा है। है कि नहीं?"
"बिलकुल ठीक, यह जरूरी है कि मुझे जो सम्मान और मान्यता मिल रही है, वह मुझे
अच्छी लगती है और मैं अपने मित्रों एवं शुभचिंतकों का आभारी हूँ। पर क्या तुम
नहीं सोचती कि हम भारतीय ऐसी चीजों में अति कर देते हैं ? विज्ञान हो, खेलकूद
या कला हो-अच्छे काम की प्रशंसा तो होनी ही चाहिए; लेकिन इसमें परिप्रेक्ष्य
को भुला नहीं देना चाहिए।"
"हमारा समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि महानता को अपने में समा सके।
लेकिन मेरी तरह के बहुत कम लोग हैं जो इस तरह से महसूस करते हैं। क्या मैं
पूछ सकता हूँ कि तुमने यह क्यों कहा कि मैंने इस धूमकेतु को नहीं खोजा होता।"
'धूमकेतु दुर्भाग्य लाते हैं और मैं चाहती हूँ कि आप जैसे अच्छे आदमी को किसी
धूमकेतु की खोज से नहीं जुड़ना चाहिए था।" इंद्राणी देवी ने चिंतातुर हो कहा।
दत्ता दा ठहाका लगाकर हँस पड़े।
"मैं देखता हूँ कि एम.ए. की डिग्री ने भी तुम्हारे अंधविश्वासों का इलाज नहीं
किया है। किसी धूमकेतु के आगमन और धरती पर तबाहियों के बीच कोई संबंध नहीं
है, बल्कि धूमकेतुओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया गया है और उनकी बनावट
को अच्छी तरह समझा गया है।
"उनमें कुछ भी नुकसानदायक नहीं है। वे तो निष्क्रिय प्रणालियाँ हैं जो
गुरुत्वाकर्षण बल में अपने आप खिंची चली आती हैं—हम मनुष्यों पर उनकी दिव्यं
या दानवी ताकत चलने की तो बात ही छोड़ दो! तुम जल्दी ही देखोगी कि मेरे
द्वारा खोजा गया यह धूमकेतु हमारे पास से चुपचाप गुजर जाएगा और किसी के लिए
कोई परेशानी पैदा नहीं करेगा।"
लेकिन अपनी इस आखिरी बात में दत्ता दा बिलकुल ठीक नहीं जा रहे थे। कैंब्रिज
के किंग्स कॉलेज के बड़े से दावतखाने में अभी-अभी रात की दावत खत्म हुई थी।
कॉलेज के छात्र फेलो (प्राध्यापक) दावत में शरीक हुए थे। विद्यार्थीगण तो
चुपचाप खाना खाकर जा चुके थे और अपनी-अपनी पढ़ाई या मौज-मस्ती में मशगूल थे।
पर फेलो अभी-अभी दावतखाने की ऊँची मेज पर डटे हुए थे। डटकर खाने के बाद अब वे
कॉलेज के तहखाने से निकाली गई शैटियू मॉण्टॉ रॉथ्स चाइल्ड जैसी पुरानी मदिरा
का स्वाद ले रहे थे।
दरअसल, कॉलेज के प्राध्यापकों को कॉलेज की उत्कृष्ट मदिरा पर बहुत गर्व था।
उन्हें शराब न पीनेवालों पर तरस आता था और पीकर धुत्त हो जानेवालों से घृणा
होती थी। उनकी राय में ये दोनों ही तरह के पियक्कड़ शराब के नजाकत भरे स्वाद
का मजा लेना नहीं जानते थे। इन शराब पारखियों में जेम्स फोटसिथ सबसे नया था।
दस्तूर के अनुसार और जूनियर फेलो होने के नाते शराब, अखरोट एवं पनीर का दौर
पूरा होने पर बत्तियाँ बुझाने का काम उसे ही करना पड़ता है और दस्तूर के
अनुसार ही बोतलों में बची-खुची शराब भी वह घर ले जाकर पी सकता था। आज रात भी
वह शराब का दौर थमने का इंतजार कर रहा था। पर आज ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला
था। शराब की खूबसूरत ट्रॉली ने लंबी मेज़ का एक चक्कर लगाया ही था कि रसोइए
ने आकर प्रिंसिपल के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा। साथ ही चाँदी की ट्रे में
उन्हें एक लिफाफा थमा दिया। प्रिंसिपल ने इशारे से जेम्स को अपने पास बुलाया
और लिफाफा देते हुए कहा, "ऐसा लगता है कि जिम, आज रात बची हुई शराब तुम्हें
नहीं मिलेगी। लगता है, कमरे में तुम्हारी सख्त जरूरत है।"
जेम्स गिब्स द्वारा बनाई गई खूबसूरत इमारत की ओर बढ़ते हुए जेम्स ने लिफाफा
खोला। इसमें एक छोटा सा संदेश था-
प्रिय डॉ. फॉरसिथ,
इस संदेशवाहक को निर्देश है कि वह आपको आज रात मेरे लंदनवाले कार्यालय में ले
आए। कृपया अविलंब चले आएँ। मैं लंदन में आपके रात भर रुकने का इंतजाम कर रहा
हूँ।
आपको हुई असुविधा के लिए मुझे खेद है। आपसे प्रार्थना है कि इस यात्रा को
गोपनीय रखें। मेरा विश्वास करें, यह बहुत जरूरी है।
आपका विश्वसनीय,
जॉन मैकफर्सन
हस्ताक्षर के नीचे करनेवाले की पदवी भी लिखी थी-
'प्रतिरक्षा विज्ञान सलाहकार', महामहिम महारानी की सरकार।'
जेम्स के कमरे में घुसते ही आतिशदान के पास बैठे, कटोरी जैसी टोपी पहने आदमी
ने उनका स्वागत किया।
"मैं जॉनसन हूँ, श्रीमान। ह्वाइट हॉल में सुरक्षा अधिकारी।"
उसने अपना पहचान-पत्र दिखाया और आगे बोला, "मैं समझता हूँ श्रीमान, आप मेरे
यहाँ आने का कारण जानते हैं।"
"केवल उतना ही जितना इस संदेश में है।" जेम्स ने उत्तर दिया। वह जानता था कि
जॉनसन से और ज्यादा पूछताछ करना बेकार है-"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूँगा, क्या
तुम शेरी पीना पसंद करोगे?"
'नहीं श्रीमान! गाड़ी चलाते वक्त तो बिलकुल नहीं।"
जेम्स ने जल्दी-जल्दी अपना बैग तैयार किया और जॉनसन के पीछे-पीछे चल पड़ा।
आगे का लॉन पार करते ही ग्रेट सेंट मेरी चर्च के घंटाघर ने नौ का घंटा बजाया।
लंदन तक एम 11 मोटर-वे पर जॉनसन ने अपनी फोर्ड कॉर्टिना डाल दी। डेढ़ घंटे के
भीतर ही वे ह्वाइट हॉल के सामने खड़े थे। वहाँ सत्ता का गलियारा पार कर सर
जॉन मैकफर्सन के कक्ष तक पहुँचने में उन्हें दस मिनट और लगे। जेम्स को सर जॉन
से मिलाने के बाद गंभीर और अपने काम में होशियार जॉनसन चुपचाप वहाँ से चला
गया।
"डॉ. फॉरसिथ, बेवक्त आपको यहाँ बुलाने के लिए माफी चाहता हूँ।" सर जॉन ने कोट
और स्कार्फ उतारने में जेम्स की मदद करते हुए कहा,
'और ज्यादा विलंब से बचने के लिए मैं सीधे पॉइंट पर आता हूँ।" यह कहकर सर जॉन
ने जेम्स को एक छपा हुआ परचा थमा दिया।
"यह क्या! यह तो मेरा परचा है जो मैंने 'नेचर' को भेजा था। आपको यह मूल प्रति
कैसे और कहाँ से मिल गई?" जेम्स हैरान था और कुछ-कुछ परेशान भी। क्या उसकी
जासूसी की जा रही थी?
नहीं-नहीं, यह जासूसी का मामला नहीं है।" जेम्स की बेचैनी देखकर सर जॉन ने
कहा, "नेचर का संपादक टेलर मेरा मित्र है। हम ट्रिनिटी में साथ-साथ पढ़ते थे
और अब रिफॉर्म क्लब में अकसर मिला करते हैं।" हालाँकि सर जॉन ने साफ-साफ नहीं
कहा था, पर जेम्स जानता था कि ट्रिनिटी से उनका मतलब ट्रिनिटी कॉलेज,
कैंब्रिज से था।
"सर जॉन, क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आपको यह पांडुलिपि कैसे मिली? मैंने
'नेचर' से कहा था कि इसे अविलंब छाप दिया जाए, क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण है।"
जेम्स के चेहरे पर हैरानी के भाव झलक रहे थे।
"मैं भी मानता हूँ कि यह महत्त्वपूर्ण है। असल में यह इतना महत्त्वपूर्ण है
कि इसे कभी प्रकाशित ही नहीं होना चाहिए यानी आपने जो कहा है, अगर वह सच है
तो।" सर जॉन ने पाइप सुलगाया।
उसके काम की सटीकता पर कोई संदेह करे या कोई सच्चाई को दबाने का आदेश दे तो
जेम्स को कभी भी सहन नहीं होता। पर क्योंकि सर जॉन सम्मानित वैज्ञानिक थे और
उसकी बातों को सुनना भी चाहते थे, इसलिए जेम्स चुप था। दो कश खींचने के बाद
सर जॉन ने बोलना शुरू किया, "कृपया मुझे गलत न समझें, डॉ. फॉरसिथ। आज दोपहर
के भोजन पर मैं टेलर से क्लब में मिला था, जहाँ उसने मुझे आपका परचा दिखाया।
मेरी अभी भी खगोलशास्त्र में अच्छी-खासी रुचि है। आप जानते हैं किसी पेशेवर
रेफरी के पास भेजने से पहले उसने इस पर मेरी राय मांगी है। मुझे तुरंत ही
महसूस हुआ, आपने जो नतीजा निकाला है उसका बहुत गहरा असर होगा, बशर्ते कि वह
सही हो।"
'मेरा यकीन करें, सर जॉन, यह बिलकुल सही नतीजा है। मैंने इस पर अपना सारा कुछ
दाँव पर लगा दिया है।" जेम्स अपने आप पर और ज्यादा काबू नहीं रख पाया।
'हालाँकि आकाशीय यांत्रिकी में आपका बड़ा नाम है, पर मैं चाहूँगा कि इस बार
आपकी गणना गलत साबित हो। आपने भविष्यवाणी की है कि धूमकेतु दत्ता धरती से
टकराने जा रहा है। क्या आप जानते हैं कि इस टक्कर का नतीजा क्या होगा?"
'नतीजे तो विनाशकारी ही होंगे। इसलिए मैंने अपनी गणनाओं को जाँचने में ज्यादा
सावधानी बरती। कुछ दुर्लभ परिस्थितियों को छोड़ दें तो यह टक्कर जरूर होगी।"
जेम्स के शब्दों में पूरा आत्मविश्वास झलक रहा था। तभी सर जॉन ने अप्रत्याशित
सवाल दागा, "और वे दुर्लभ परिस्थितियाँ क्या हैं ?"
"हूँ, हो सकता है कि धरती पर पहुँचने से पहले ही वह किसी क्षुद्र ग्रह से
टकरा जाए अथवा सूर्य के निकट आने पर फट जाए या भाप बनकर उड़ जाए।"
"लेकिन हम इन परिस्थितियों पर भरोसा नहीं कर सकते, जो खुद संयोग पर टिकी हों।
हमें तो यही मानकर चलना होगा कि धूमकेतु दत्ता धरती से टकराएगा। इस तरह के
धूमकेतुओं की धरती से टक्कर दस लाख वर्ष में एक बार होती है; पर अब हम जानते
हैं कि अगले साल ही एक धूमकेतु धरती से टकराने जा रहा है।" 'नहीं, केवल दस
महीने में।" जेम्स ने बीच में ही टोका।
भूल सुधार के लिए धन्यवाद! क्या तुम महसूस करते हो कि धरती पर जीव-जंतुओं की
सारी प्रजातियों को बचाने के लिए हमारे पास केवल दस माह का वक्त है ? क्योंकि
इस सीधी टक्कर में ऐसा नहीं होगा कि धरती का केवल वही भाग तबाह हो जिससे
धूमकेतु टकराएगा, बल्कि समुद्र का जल बड़े पैमाने पर भाप बनकर उड़ जाएगा।
वातावरण के अभाव में वे जीव-जंतु भी नष्ट हो जाएँगे, जो टक्कर से बच जाएँगे।
क्या तुम नहीं सोचते कि इस सबको रोकने के लिए हमें कुछ करना चाहिए?"
जेम्स के चेहरे पर मुसकान तैर गई। 'बिलकुल सरकारी नौकर की तरह बोल रहा है !
जैसे कि हमारे सामने कानून-व्यवस्था तोड़ने की कोई मामूली वारदात हो।' जेम्स
ने सोचा। लेकिन प्रकट रूप में कहा, "मैं पूछ सकता हूँ कि कैसे हम इस
प्राकृतिक आपदा को टाल सकते हैं?"
"मैं नहीं जानता, पर हमारे पास कोशिश करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। मैं
सोचता हूँ कि इस मुसीबत से निपटने के लिए हमें दो से ज्यादा खोपड़ियों की
जरूरत पड़ेगी। यह जरूरी है कि सारी दुनिया से विशेषज्ञों की बैठक तुरंत बुलाई
जाए और इस आपदा को टालने के लिए गंभीरता से विचार- विमर्श किया जाए। यह सब
काम पूरी गोपनीयता से होना चाहिए।" जेम्स के हाथों में पकड़ी पांडुलिपि को
देखते हुए सर जॉन ने कहा, "जरा सोचो, अगर दिल दहला देनेवाली यह खबर लीक हो
जाए तो दुनिया में कितनी भगदड़ मच जाएगी!" "लेकिन मेरे इस परचे को दबा लेने
से सच्चाई छुप तो नहीं जाएगी, सर जॉन!" जेम्स ने कहा, "दुनिया में और भी
वैज्ञानिक हैं, जो देर-सबेर इसी नतीजे पर पहुंचेंगे।"
'नहीं-नहीं, इसे दबाओ नहीं, पर इसकी भाषा को जरा गोलमोल कर दो। इसमें जगह-जगह
पर अगर-मगर' जोड़ दो, ताकि लगे कि तुम्हारा निष्कर्ष निश्चित नहीं है। इस बीच
मैं अन्य देशों में अपने मित्रों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्हें भी
संयम बरतने को कहूँगा।"
"पर कब तक?"
"जब तक कि यह कमबख्त धूमकेतु चुपचाप अपने रास्ते पर चला नहीं जाता है। आओ,
कुछ वक्त लगाकर हम इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारी के लिए योजना बनाएँ।
क्या हम इस बैठक को एक हफ्ते में बुला सकते हैं, इसी जगह?"
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की अहम लेकिन गोपनीय बैठक, वह भी केवल एक हफ्ते के
भीतर ! जेम्स को कुछ संदेह था, पर सर जॉन उससे सहमत नहीं हुए और बैठक की
योजना बनाने में जुट गए।
जिस वक्त तक उनकी बातचीत खत्म हुई और सर जॉन ने जेम्स को रीजेंट्स स्ट्रीट पर
उनके होटल पहुँचवाया, रात के एक बज चुके थे। सड़क पूरी तरह सुनसान पड़ी थी।
तभी अनायास ही जेम्स की निगाह ऊपर को उठी। खिड़की के बाहर तारों भरा आसमान
उसका स्वागत कर रहा था। उन्हीं सितारों के बीच कहीं दत्ता धूमकेतु था, जो
सीधे धरती से टकराने आ रहा था। ऐसी नीरवता भरी रात में यकीन करना मुश्किल था
कि भविष्य में कितनी भीषण तबाही होने जा रही है। एक पल के लिए तो जेम्स को भी
लगा कि उसके गुणा-भाग में कोई गलती तो नहीं हो गई।
अभी तक जेम्स के मन में सर जॉन की विद्वत्ता को लेकर जो कुछ शक था वह भी जाता
रहा। जब वह बैठक में भाग लेने वहाँ पहुँचा तो देखा कि जिन विशेषज्ञों की सूची
बनाई गई थी, वे सभी वहाँ मौजूद थे। खगोलशास्त्री, कंप्यूटर वैज्ञानिक,
नाभिकीय भौतिकविद्, अंतरिक्ष विज्ञानी, जीव विज्ञानी-सब-के-सब बैठक में मौजूद
थे और सर जॉन ने खास तौर पर उस शख्स को भी बुलाया था जिसकी खोज से इस बवाल की
शुरुआत हुई–मनोज दत्ता।
सम्मेलन करीब एक सप्ताह तक चला। पूरी काररवाई की किसी को भनक तक नहीं लगी।
सबसे पहले तो वरिष्ठ विशेषज्ञों ने जेम्स फॉरसिथ की गणनाओं का धूमकेतु दत्ता
के ताजा प्रेक्षणों से मिलान किया। वह बिलकुल ठीक था। उसने जिस सीधी टक्कर की
भविष्यवाणी की थी उससे कोई बचाव नहीं था। इस बात की मामूली सी संभावना थी कि
धूमकेतु धरती से टकराकर नहीं, बस वातावरण को रगड़ता हुआ निकल जाए। वैसी सूरत
में जान-माल का भारी नुकसान नहीं होता; पर यह मामूली राहत यह आश्वस्त करने को
अपर्याप्त थी कि कोई काररवाई न की जाए।
किसी-न-किसी काररवाई पर फैसला लेना जरूरी था, पर काररवाई किस रूप में की जाए?
जमीन के नीचे बंकर बनाने और उनमें छिपने जैसे रक्षात्मक उपायों को विशेषज्ञों
ने एक सिरे से नकार दिया। तकनीकी, जीव वैज्ञानिक और राजनीतिक रूप से ऐसा करना
व्यावहारिक नहीं था। इसलिए एक ही रास्ता बचता था कि पलटकर धूमकेतु पर ही वार
किया जाए। गंभीर विचार-विमर्श करने के बाद विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हुए कि
क्या किया जा सकता है। धूमकेतु दत्ता को धक्का देकर अपने मार्ग से कुछ विचलित
किया जा सकता था।
विशेषज्ञों ने गणना करके हिसाब लगाया कि धरती पर उपलब्ध तमाम विनाशक नाभिकीय
हथियारों की जरूरत पड़ेगी, तभी उस धूमकेतु को अपने पथ से बाल भर हटाया जा
सकेगा। पर उसके लिए सही जगह पर, सही दिशा में और एकदम सही समय पर बेहद
विशालकाय एटमी धमाका करना पड़ेगा, तभी यह तरकीब काम करेगी, वरना इन तमाम एटमी
हथियारों को किसी अंतरिक्ष यान में लादकर इस तरह रवाना किया जा सकता कि वह
धरती की ओर बढ़ रहे धूमकेतु को रास्ते में ही रोक लें। तब फिर रिमोट कंट्रोल
से उन हथियारों में एक साथ धमाका कराया जा सकता है। साथ ही विशेषज्ञों ने यह
चेतावनी भी दी कि सफलता की बहुत कम गुंजाइश है-अगर दोनों का समय पर मिलन न हो
पाया तो? सारी-की-सारी कवायद पर पानी फिर जाएगा। परिणाम कुछ भी हो सफलता या
असफलता, पूरी गोपनीयता बरतनी जरूरी थी। आखिरकार पूरी काररवाई के लिए
टाइम-टेबल तय हो गया-
10 अक्तूबर : एटमी हथियारों से लदे अंतरिक्ष यान को रवाना किया जाएगा, बशर्ते
कि तब तक धूमकेतु प्राकृतिक कारणों से नष्ट न हो गया हो या अपने पथ से विचलित
न हो गया हो।
15 नवंबर : धूमकेतु के साथ यान का मिलन और हथियारों के जखीरे में धमाका।
15 दिसंबर : अगर सारी कवायद असफल रही तो इस दिन धूमकेतु धरती से टकरा जाएगा
और अगर सफल रही तो इस दिन धूमकेतु धरती के निकट सुरक्षित दूरी से आगे निकल
जाएगा।
इसके अलावा इस प्रयास की सफलता इस बात पर भी निर्भर थी कि धूमकेतु कितना भारी
था। कोई भी इसका अनुमान नहीं लगा सका। प्रत्येक को बस उम्मीद थी कि धूमकेतु
बहुत ज्यादा भारी न हो।
"क्या आपको वास्तव में विश्वास है कि हम इसमें सफल होंगे?" दत्ता दा ने सर
जॉन मैकफर्सन से पूछा। पिछले एक हफ्ते में दोनों के बीच पक्की दोस्ती हो गई
थी।
श्रीमान दत्ता, मैं अपना जवाब पूरी ईमानदारी से दूंगा। 15 दिसंबर तक मैं
क्रिसमस के लिए कोई भी उपहार नहीं खरीदूंगा।"
सम्मेलन के बाद दो सप्ताहों तक दत्ता दा ब्रिटिश द्वीपों की सैर करते रहे।
वहाँ की वेधशालाओं का भ्रमण करने और पेशेवर व शौकिया खगोलविदों से बातचीत
करने में उन्हें बहुत आनंद आया। कोलकाता वापस लौटने पर भी उनके मित्रों,
सामाजिक नेताओं, स्वयंसेवकों, विद्यार्थियों और सामान्य जन ने उनका बड़ी
गर्मजोशी से स्वागत किया। फूल-मालाओं से लदे और पत्रकारों के सवालों की बौछार
का सामना करते हुए वे अपनी कार तक गए, जो बाहर उनका इंतजार कर रही थी।
घर पहुँचकर उन्होंने देखा कि एक पंडाल के नीचे अलग ही प्रकार की भीड़ जमा है।
उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से इंद्राणी देवी की ओर देखा। वास्तव में वह
जानती थीं कि दत्ता दा को भीड़-भाड़ पसंद नहीं। कुछ परेशान-सी दिखती इंद्राणी
देवी ने कारण बताया, "मैंने एक यज्ञ का आयोजन किया है और तुम्हें अशीर्वाद
देने के लिए पंडितों को बुलाया है।"
इतना कहकर इंद्राणी देवी ने शिवाजी बाबू की ओर देखा, जो उनके पति यानी दत्ता
दा के छोटे भाई थे। शिवाजी बाबू ने खखारकर गला साफ किया और बोले, "जब से आपने
धूमकेतु को खोजा है तब से हम सभी बहुत परेशान हैं। गुरुजी ने हमें सुझाव दिया
है कि धूमकेतु की बुरी आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवा लें। हम
सभी आपका इंतजार कर रहे हैं कि आप भी यज्ञ करें।"
"क्या मैं जान सकता हूँ कि इस ताम-झाम का खास फायदा क्या है?" बाहर से दत्ता
दा शांत दिख रहे थे।
"इससे जो धूमकेतु आपने खोजा है, वह धरती पर कोई बुरा असर नहीं डालेगा।"
इस बात पर दत्ता दा अपना आपा खो बैठे-"क्या तुम जानते नहीं कि यह सब
अंधविश्वास है ? इस सबका पुराने जमाने में महत्त्व रहा होगा, जब आदमी नहीं
जानता था कि धूमकेतु क्या है। आज आधुनिक समय में ये सब बेकार की चीजें हैं।
धूमकेतुओं के बारे में आज सारी जानकारी है कि वे क्या हैं ! उनकी गति के बारे
में गणित की गणनाओं द्वारा सटीक भविष्यवाणी की जाती है और आँकड़ों से पता
चलता है कि धूमकेतुओं के आने और धरती पर मची तबाहियों के बीच कोई संबंध नहीं
है।
लेकिन तुम लोगों को यह सब बताना बेकार है। तुम और तुम जैसे लोग विज्ञान की
प्राथमिक किताबें भी कभी नहीं पढ़ते हो।
शिवाजी बाबू ने धीरे से कहा, "मगर हमारे समझदार पूर्वजों ने ऐसे यज्ञों का
विधान किया है।"
"शिवाजी बाबू, कभी-कभी मैं महसूस करता हूँ कि ऐसे रीति-रिवाजों का आँख मूंदकर
पालन करने से हम अपने पुरखों के साथ बड़ा अन्याय करते हैं। उपनिषदों के जमाने
में जाओ तो तुम्हें पता चलेगा कि उनमें भी हर चीज के बारे में प्रश्न पूछा
जाता है। यही बात आधुनिक विज्ञान में है। उपनिषदों के रचयिता प्रकृति के बारे
में जानना चाहते थे, ब्रह्मांड के बारे में जानना चाहते थे और आस्था के आधार
पर कुछ भी स्वीकार नहीं करते थे। वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण न जाने कब और कहाँ
लुप्त हो गया। इसकी कीमत हम आज भी चुका रहे हैं; लेकिन तुम लोगों से बहस करने
का क्या फायदा! मैं अपना जवाब सीधे ही दे देता हूँ-नहीं, मैं तुम लोगों की इस
बेवकूफी भरी पार्टी में शामिल नहीं होना चाहता, क्योंकि मैं नहीं मानता कि
इससे कुछ लाभ होगा।"
दत्ता दा पैर पटकते हुए अपने अध्ययन-कक्ष में चले गए, जहाँ उन्हें शांति
मिलती थी।
लंदन से लौटने के बाद दत्ता दा का सर जॉन मैकफर्सन के साथ नियमित
पत्र-व्यवहार चलता रहा। अब वे एक-दूसरे की विद्वत्ता के प्रशंसक मात्र नहीं
रह गए थे, बल्कि पक्के दोस्त बन गए थे। सर जॉन दत्ता दा के वैज्ञानिक नजरिए
की सराहना करते थे तो दत्ता दा सर जॉन के अनुशासन और कार्यकुशलता के कायल
उनके व्यवहार में कभी भी प्रोजेक्ट लाइट ब्रिगेड का जिक्र नहीं होता था।
अलबत्ता सर जॉन इस परियोजना की प्रगति के बारे में कभी-कभार गुपचुप इशारा
जरूर करते थे, जो दत्ता दा की समझ में आ जाता था।
सर जॉन को टेनीसन की कविताओं से बहुत लगाव था। उन्हीं की एक कविता से प्रेरित
होकर उन्होंने धूमकेतु पर आक्रमण करने के कार्यक्रम को कोड नाम दिया
था—'प्रोजेक्ट लाइट ब्रिगेड।' इस कार्यक्रम को दुनिया के सभी देशों से भरपूर
मदद मिल रही थी। आखिरकार मनुष्य जाति के अस्तित्व का सवाल था, जिसके कारण सभी
देशों ने वैर और प्रतिद्वंद्विता को भुलाकर आपस में हाथ मिला लिये थे।
धूमकेतु दत्ता अपने निर्धारित मार्ग पर आगे बढ़ रहा था। इसी दौरान उसकी पूँछ
भी निकल आई थी। उसने सूर्य का चक्कर लगाया और चूर-चूर नहीं हुआ। किसी भी
अप्रत्याशित टक्कर से वह अपने मार्ग से विचलित नहीं हुआ। प्रोजेक्ट लाइट
ब्रिगेड से जुड़े वैज्ञानिकों को पूरा विश्वास हो गया कि धरती से इस धूमकेतु
के टकराने की संभावना अब वास्तविक खतरा बन चुकी थी।
पर उन्होंने इस खतरे को पूरी तरह गोपनीय बनाए रखा। यहाँ तक कि उनके करीबी
सहकर्मियों को भी इस खतरे का कुछ भी पता नहीं था, जो इस कार्यक्रम में शामिल
नहीं थे। हर कोई सोचता था कि धूमकेतु धरती के नजदीक से गुजर जाएगा। अवश्य ही
आम आदमी इस दुर्लभ नजारे का लुत्फ उठा लेगा और विशेषज्ञों को अपने द्वारा
भेजे गए खोजी उपकरणों से कुछ नई जानकारियाँ मिल जाएँगी।
आम जनता के बीच जोर मारते अंधविश्वासों को रोकने में इन सब बातों से कोई मदद
नहीं मिली। सारी दुनिया में ज्योतिषियों और तथाकथित धर्मगुरुओं ने
अंधविश्वासों एवं आशंकाओं को खूब हवा दी। यहाँ तक कि पश्चिम के विकसित देशों
में भी अंधविश्वास में कोई कमी नहीं आई। जहाँ तक भारत का ताल्लुक है, वह कुछ
फायदे में ही रहा। अनगिनत जोड़ों, जिनमें पढ़े-लिखे जोड़े भी शामिल थे, ने
गर्भ-धारण करने का कार्यक्रम तब तक के लिए टाल दिया जब तक कि धूमकेतु नजर आ
रहा था। इस तरह से जनसंख्या-वृद्धि पर अस्थायी रूप से रोक लग गई।
अक्तूबर के लगभग बीच में दत्ता को सर जॉन का एक पत्र मिला। पत्र में रॉयल
एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की बैठक का, बेमौसमी गरमी का, फुटबॉल सीजन के शुरुआती
मैचों का और हाल ही में संपन्न उपचुनाव का जिक्र था। उन्हीं के बीच दत्ता दा
की बेचैन आँखों ने उस वाक्य को ढूंढ़ निकाला-'लाइट ब्रिगेड का आक्रमण शुरू हो
चुका है। हमें विश्व कल्याण की उम्मीद करनी चाहिए।' तो अंतरिक्ष यान समय पर
रवाना हो चुका था।
लेकिन क्या इसका धूमकेतु से मिलन हो पाएगा और वह भी सही समय एवं सही जगह पर?
क्या रिमोट कंट्रोल से कराए गए धमाके काम कर सकेंगे? अगर एटमी हथियारों का
जखीरा ठीक से काम न कर पाया तो?
दत्ता दा अपने आस-पास किसी से भी अपनी बेचैनी नहीं बाँट सकते थे। दुर्गा-पूजा
का त्योहार धूमधाम से आया और चला गया। इसी तरह दीवाली आई और चली गई। चारों ओर
खूब आतिशबाजी हुई; लेकिन दत्ता दा के मन में कुछ और ही उथल-पुथल मची थी। दिन
में उनका ज्यादातर वक्त अपने आठ साल के पोते खोका के साथ बीतता था और रात
दिव्या के साथ तारों को निहारने में। अवश्य ही वह भी धूमकेतु की प्रगति पर
निरंतर नजर रख रहे थे, जो अब नंगी आँखों से भी साफ दिखता था। 18 नवंबर को
ब्रिटिश काउंसिल से एक विशेष संदेशवाहक स्कूटर पर एक अत्यावश्यक टेलेक्स
संदेश दत्ता दा के लिए लेकर आया। कोलकाता में टेलेक्स ऑपरेटर हैरान-परेशान था
कि संदेश में क्या खासियत थी जो यह इतना जरूरी हो गया? लेकिन संदेश को पढ़ते
ही दत्ता दा की सुस्ती तुरंत गायब हो गई और वे रसगुल्लों की अपनी मनपसंद
दुकान पर पहुंचे। संदेश में लिखा था-'अब मुझे पूरा विश्वास है कि मैं 15
दिसंबर को अपने क्रिसमस उपहार खरीद सकूँगा-जॉन मैकफर्सन।'
15 दिसंबर को धूमकेतु दत्ता धरती के सबसे निकट आ गया—केवल 80,000 किलोमीटर की
दूरी पर। लाखों लोगों ने उस अद्भुत नजारे को देखा, पर केवल मुट्ठी भर लोग ही
जानते थे कि वे समूचे विनाश के कितने निकट थे। जब धूमकेतु बहुत दूर चला गया
और दिखना बंद हो गया, तब ही दत्ता दा अपनी पत्नी से सच्चाई बता पाने की
हिम्मत जुटा पाए-"अब जब कि धूमकेतु आकर चला गया है तो क्या तुम संतुष्ट हो कि
उसके कारण कोई बड़ी दुर्घटना या विनाशलीला नहीं हुई?"
"मैं मानती हूँ कि कोई बड़ी आफत नहीं आई; लेकिन कुछ-न-कुछ विनाशकारी तो हो
सकता था! क्या तुम जानते हो कि अनिष्टकारी घटनाओं को कैसे टाला गया?'' पूरे
आत्मविश्वास के साथ इंद्राणी देवी ने पूछा।
दत्ता दा ने हैरानी से अपनी पत्नी को देखा। तो क्या उसे मालूम था? वह कैसे
जान सकती थी? उन्होंने तो कभी उसके सामने 'प्रोजेक्ट लाइट ब्रिगेड' का जिक्र
नहीं किया। उन्होंने सावधानी से कुरेदना चाहा, "मैं समझा नहीं, तुम्हारा मतलब
क्या है?"
'मतलब बहुत आसान है। कुछ अनिष्ट नहीं हुआ, क्योंकि हमने घर में यज्ञ जो करा
लिया था।"
"पर मैंने तो कभी यज्ञ किया नहीं। क्या तुम्हें याद नहीं कि मैंने यज्ञ में
शरीक होने से इनकार कर दिया था?"
"हाँ-हाँ, याद है। पर हमने उसका भी तरीका निकाल लिया था। कम-से- कम गुरुजी ने
तो उपाय खोज ही लिया था। उन्होंने कहा कि अगर तुम यज्ञ करना नहीं चाहते तो
कोई बात नहीं। अगर तुम्हारा कोई बच्चा या नाती-पोता यज्ञ में बैठ जाए तो काम
चल जाएगा। इसलिए हमने तुम्हारी जगह खोका को बैठा दिया। और देखो, कोई अनिष्ट
नहीं हुआ। हैं न गुरुजी समझदार!'' इंद्राणी देवी ने विजयी भाव से कहा।
तुरंत ही दत्ता दा के मन में सारी तसवीरें सिनेमा की रील की तरह घूम गईं-यज्ञ
में बैठा खोका, मंत्र बुदबुदाता खोका, जिनके अर्थ वह स्वयं भी नहीं समझता।
थोड़ी-थोड़ी देर बाद आग में घी छोड़ता खोका, देवताओं को फूल चढ़ाता खोका"और
तभी तसवीर बदल जाती है। बड़े से हॉल में दुनिया भर के वैज्ञानिक जमा हैं। वे
समस्या का विश्लेषण कर रहे हैं, समाधान खोजने में जुटे वैज्ञानिक और फिर
समाधान पर तर्कसंगत रूप से और कुशलतापूर्वक अमल करते वैज्ञानिक।
यह यकीन कर पाना मुश्किल था कि ये दोनों तसवीरें हमारे आधुनिक समाज के दो
अलग-अलग पहलू पेश करती थीं। दत्ता को यह तो पता था कि अमीर और गरीब के बीच,
पढ़े-लिखों व अनपढ़ों के बीच, खुशकिस्मत व बदकिस्मत लोगों के बीच गहरी खाई
है। लेकिन तर्कसंगत और अंधविश्वासी वर्गों के बीच जो खाई थी वह उन्हें कहीं
अधिक चौड़ी और अमंगलकारी लग रही थी। क्या मानव समाज कभी इस खाई को पाट पाएगा?
इस प्रश्न का उत्तर दत्ता दा के पास नहीं था।