धर्मपरिवर्तक या एक विह्वल आत्मा (फ्रेंच कहानी) : अल्बैर कामू

“ये क्या घपला है, क्या घपला है? अपने दिमाग की कार्रवाई में कुछ तरतीब डालनी पड़ेगी मुझे। जब से उन्होंने मेरी ज़बान काटी है, एक और ज़बान, जाने कहाँ से, लगातार चले जा रही है मेरी खोपड़ी में, कोई चीज़ या कोई जना बोले ही जा रहा है, जो अचानक चुप हो जाता है और फिर चालू हो जाता है। ओह, मुझे बहुत-सी चीज़ें सुनाई दे रही हैं, लेकिन समझ में कुछ नहीं आता, क्या गड‍्ड-मड‍्ड है और अगर मैं मुँह खोलता हूँ तो कंकड़ खड़खड़ाने-जैसी आवाज़ आती है। कोई क्रम, तरीका होना चाहिए—ज़बान ने कहा, और वह कुछ और चीज़ों का ज़िकर भी साथ में करने लगी! हाँ, मैंने हमेशा ही तरतीब चाही है। कम-से-कम एक बात पक्की है, मैं उस मिशनरी का इन्तज़ार कर रहा हूँ जिसे मेरी जगह लेनी है। मैं यहाँ रास्ते में, चट्टानों के अम्बार में छुपे तघाज़ा1 से एक घंटे दूर, अपनी पुरानी बन्दूक पर बैठा हुआ हूँ। मरुस्थल पर दिन निकल रहा है, ठंड अभी काफी है, जल्द ही तेज़ गर्मी हो जाएगी। यह जगह मुझे पागल बना देती है, और मैं इतने बरसों से कि उनकी गिनती भी भूल चुका हूँ, यहाँ हूँ। नहीं, एक बार और कोशिश करूँगा! वह मिशनरी आज सुबह पहुँच जाएगा, या शाम तक। मैंने सुना है, वह एक गाइड के साथ आ रहा है। हो सकता है, दोनों के लिए सिर्फ एक ही ऊँट हो। मैं इन्तज़ार करूँगा, इन्तज़ार कर ही रहा हूँ बस ठंड में, इस ठंड में, मैं ठिठुर रहा हूँ। कुछ और सब्र करो, नाचीज़ गुलाम!

“लेकिन मैं कब से सब्र कर रहा हूँ। जब मैं अपने घर था, मैसिफ सौथाल के उस ऊँचे पठार पर, मेरे गँवार पिता, मेरी उजड्ड माँ, शराब, हर रोज़ सूअर के मांस का सूप—सबसे पहले शराब को ही लो, तीखी और ठंडी, और वे लम्बे जाड़े, बर्फीली हवा, बर्फ की चट्टानें, वे नफरत-भरे फ़र्न। ओह, मैं कहीं भाग जाना चाहता था, उन सबको एकदम छोड़कर नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करना चाहता था, धूप की रोशनी में, स्वच्छ पानी के साथ। मुझे पादरी पर विश्वास था, उन्होंने मुझसे सेमिनरी के बारे में बातें की थीं, हर रोज़ मुझे समय दिया था, इस प्रोटेस्टेंट इलाके में उनके पास काफी खाली समय होता था, जिसके दरम्यान वे गाँव में निकल जाया करते थे, जहाँ उन्हें दीवारों से सटकर चलना पड़ता था। उन्होंने मुझे भविष्य के बारे में बताया, सूरज के बारे में बताया। वे कहा करते थे, कैथलिकवाद ही सूरज है, वे मुझे हमेशा पढ़ने के लिए किताबें दिया करते थे। उन्होंने लैटिन, किसी तरह मेरे मोटे दिमाग में भरी थी, “बच्चा है तो होशियार, लेकिन बहुत ढीठ।” मेरी खोपड़ी इतनी सख्त है कि इतनी बार गिरने पर भी मेरी पूरी ज़िन्दगी में इसमें से कभी खून नहीं निकला। ‘भैंसे का सिर है इसका,’ मेरे पिता कहा करते थे। सेमिनरी में वे सब बहुत घमंडी थे, प्रोटेस्टेंट इलाके से एक दाखिला—यह उनके लिए एक फ़तह थी, उन्होंने मेरा वहाँ पहुँचना ऐसे देखा जैसे ऑस्टरलिट्ज़ में सूरज। सूरज कुछ पीला-सा, यह सच है कि अल्कोहल की वजह से। उन्होंने तेज़ शराब पी थी और उनके बच्चों के कुछ दाँतों में कीड़े लग गए थे। रॉ रॉ5 उसके पिता को मारना, यही करना चाहिए था उसे, लेकिन अब ऐसा कोई खतरा नहीं है कि वे मिशन में शामिल हो जाएँगे, क्योंकि उन्हें तो गुज़रे हुए ही एक अरसा हो गया। कच्ची शराब ने उनका मेदा बिलकुल काट दिया था, अव तो सिर्फ मिशनरी को मारना बाकी रह गया।

“मुझे एक हिसाब निबटाना है उनके साथ, और उनके मास्टरों के साथ, अपने मास्टरों के साथ, जिन्होंने मुझे धोखा दिया, कमीने यूरोप के साथ, सारी दुनिया ने ही मुझे धोखा दिया है। मिशनवालों के मुँह पर तो एक ही शब्द रहता था, जंगलियों के पास जाओ और उनसे कहो, ‘ये मेरे भगवान हैं, सिर्फ एक बार इनकी तरफ देखो, ये कभी हमला नहीं करते, न जान लेते हैं, बहुत ही मीठी आवाज़ में अपने आदेश देते हैं, दूसरा गाल भी आगे कर देते हैं, यही सबसे बड़े भगवान हैं, इन्हीं को अपना देवता मानो, देखो इनकी महिमा से मुझे कितना सुख मिला है, मेरी बेकद्री करके देखो, करनी का फल तुम्हें अपने आप मिल जाएगा।’ हाँ, मैंने रॉ रॉ में विश्वास किया है और मुझे सुख-शान्ति मिली है, मैं तन्दुरुस्त हो गया था, मैं काफी खूबसूरत लगता था, मैं चाहने लगा था, कोई मुझे खफा करे। जब हम गर्मियों में, घ्रनोब्ल6 की धूप में अँधेरी और सँकरी गलियों में चला करते थे और झिरझरे कपड़े पहने हुई लड़कियों के सामने से गुजरते थे, मैं आँखें ज़रा भी नहीं हटाता था, मैं उनका तिरस्कार करता था। चाहता था कि वे मेरा अपमान करें, और वे कई बार हँस दिया करती थीं। तब मैं सोचा करता था, ‘अच्छा हो, ये मेरे चेहरे पर तमाचा लगाएँ और मेरे मुँह पर थूके!’ लेकिन उनका दाँत निपोरकर हँसना, तीखे फिकरे कसना वस्तुत: उसी के बराबर होते थे। गुस्सा और तकलीफ दोनों में ही मिठास होती थी। मेरी आत्म-स्वीकृति

1. तघाज़ा नमक से झुलसी हुई बंजर भूमि थी जो माली साम्राज्य में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में समृद्ध थी।

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(अनुवाद - शरद चन्द्रा)

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