देवता की मनौती (कहानी) : हजारीप्रसाद द्विवेदी

Devta Ki Manauti (Hindi Story) : Hazari Prasad Dwivedi

एक बार किसी राजा के एक पुत्र हुआ । राजकुमार थोड़ी ही उम्र में नाना विद्याओं को सीखकर खूब पंडित हो गये । इस समय काशी के लोग पर्व के दिन खूब धूम-धाम से देवी-देवता की पूजा करते। उनकी पूजा की सामग्री फूल-अक्षत तो थे ही, साथ ही बकरा, भेड़ा, सूअर, मुर्गा वगैरह को मारकर उनके रक्त-मांस से भी वे लोग पूजा किया करते । राजकुमार के मन में ये हत्याएं देखकर बड़ी चोट लगती । उन्होंने सोचा- 'लोग देवता की पूजा करते समय बहुत जीवों की हत्या करते हैं, इससे धर्म का रास्ता छोड़कर अधर्म के रास्ते पर ही जा रहे हैं। मैं जब राजा हूंगा, तो जैसे बनेगा, इस प्रथा को उठा दूंगा। लेकिन यह बात इस ढंग से करनी होगी कि लोगों को कष्ट भी न हो और यह प्रथा भी उठ जाये ।'

कुछ दिन बीत गये । राजकुमार एक दिन रथ पर चढ़कर नगर के बाहर घूमने गये । रास्ते में उन्होंने देखा, एक बड़े भारी बरगद के पेड़ के नीचे सैकड़ों आदमी जमा हुए हैं। उन लोगों की धारणा थी कि उस बरगद के पेड़ पर एक देवता का वास है। उस देवता का बड़ा प्रभाव है। पूजा देकर उनसे जो आदमी जो कुछ चाहता है वही पाता है। यही सोचकर लोग बकरा, भेड़ आदि काटकर देवता की पूजा देते थे और मनौती मानते थे, अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार लड़का-लड़की मांगते थे । यह देखकर राजकुमार रथ से उतरे । उतरकर दरख्त के नीचे जाकर धूपदीप देकर उसी तरह पूजा की, जिस तरह वे लोग कर रहे थे । इसके बाद बरगद को प्रणाम और प्रदक्षिणा करके चले गये। इसके बाद प्रतिमास वहां आकर वे पूजा कर जाते ।

कुछ दिनों के बाद, राजा की मृत्यु होने पर राजकुमार ही राजा हुए। राजगद्दी पर बैठकर यथाशक्ति धर्म के अनुसार राज्य करने लगे। लेकिन उनके मन से यह बात गयी नहीं थी कि जीववध करके पूजा करने का रिवाज राज्य से हटा देना होगा। एक दिन राज्य के मंत्री और बड़े-बड़े आदमियों को बुलाकर उन्होंने कहा, “आप लोग जानते हैं, मैंने कैसे राज्य पाया है ?” उन आदमियों ने कहा, “नहीं महाराज, हम लोग तो यह कुछ नहीं जानते ; जानी हुई बात तो यही है कि राजा का पुत्र राजा होता है।"

राजा ने कहा, “हां, होता तो यही है ! किंतु और भी एक कारण है । आप लोगों ने शायद देखा होगा कि मैं बीच-बीच में उस बरगद के देवता की पूजा किया करता और हाथ जोड़कर प्रणाम किया करता था।" सभी ने कहा, “हां-हां महाराज, यह सब हम लोगों ने देखा है।” राजा ने कहा, “मैंने उसी समय देवता के निकट मनौती की थी कि राज्य पाने पर मैं उनकी पूजा करूंगा । मैंने उस देवता के अनुग्रह से ही राज्य पाया है। मुझे उनकी पूजा करनी होगी, इसलिए आप लोग उसकी तैयारी कर दीजिये ।”

उन लोगों ने कहा, “ बताइये महाराज, क्या तैयारी की जाये !” राजा ने कहा, “मैंने मनौती की है कि हमारे राज्य में जितने पाखंड हैं। - जो जीवहत्या करते हैं, झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं, और इसी तरह के अन्य पापकर्म करते हैं, उन्हीं के रक्त-मांस और कलेजे से उस देवता की पूजा करूंगा। इन्हीं को जुटाना होगा । आप लोग भेरी बजाकर नगर में घोषणा कर दें कि 'हमारे महाराज जब युवराज थे तो बरगद के दरख्त के नीचे उन्होंने मनौती की थी कि वे जब महाराज होंगे तो उनके राज्य के इस प्रकार के एक हजार आदमियों के रक्त-मांस और कलेजे से उस देवता की पूजा करेंगे - जो लोग जीवहिंसा करते हैं, चोरी करते हैं, झूठ बोलते हैं, अथवा इस प्रकार के अन्य खराब काम करते हैं। इस प्रकार की पूजा करके वे अपनी मनौती मनायेंगे' ।”

मंत्रियों ने राजा के आदेश की घोषणा कर दी। नतीजा यह हुआ की राजा की मनौती कभी नहीं मनायी गयी ।

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