देश की रक्षा - हम करेंगे (कहानी) : आचार्य मायाराम पतंग
Desh Ki Raksha - Ham Karenge (Hindi Story) : Acharya Mayaram Patang
पहाड़ों पर बर्फ पड़ती है तो चरवाहे अपनी भेड़ों को लेकर कुछ निचले स्थानों पर आ जाते हैं। नवंबर के अंत में ही बर्फबारी शुरू हो जाती है। दिसंबर शुरू हो चुका था। हिमालय की लगभग सभी चोटियाँ बर्फ से सफेद होने लगीं। कारगिल तो है ही बर्फीली पहाड़ी। गूजर मुसलमानों का छोटा सा गाँव है मट्टू । आधे से ज्यादा गाँववाले अपनी भेड़ें नीचे की घाटियों में ले गए हैं। ज्यादातर अपने रिश्तेदार और परिचितों के पास जा टिकते हैं। जिनका अपना कोई नहीं, वे भी मैदानों में जाकर डेरा जमा लेते हैं। मजबूरीवश फिर भी कुछ लोग गाँव में रह जाते हैं। हर वर्ष की यही कहानी होती है। जो बीमार हों या बूढ़े, उन्हें तो गाँव में ही रहना पड़ता है। सोचते हैं, ठंड के कारण कहीं रास्ते में मरने की बजाय अपने ही घर मरना ज्यादा अच्छा है। ऐसे लोग अपने घर पर बने रहते हैं, परंतु वे सर्दी सर्दी घर से बाहर निकलते नहीं। फिरन पहने और सिगड़ी लटकाए घर में ही रहते हैं। प्रायः दरवाजा भी नहीं खोलते। इन बुजुर्गों की देखभाल के लिए एक-दो नौजवानों को भी वहाँ रहना पड़ता है। नहीं तो वे भूखे-प्यासे ही मर जाएँ ।
गुल मोहम्मद भी अपने बीमार दादा नूर मोहम्मद की देखभाल करने के लिए गाँव में रुक गया था। उसके तीनों बड़े भाई अपने बाल-बच्चों तथा भेड़ों के झुंड को लेकर घाटी में नीचे की ओर चले गए थे। सर्दी के दिनों में चावल के अलावा घरों में सूखे मेवे भी रख लिये जाते हैं, ताकि पेट पालन का सहारा बना रहे। अखरोट, बादाम और मुनक्के तो सभी के घर में होते हैं। सर्दी में भोजन लेने के लिए कहीं जाने की परेशानी सूखे मेवों से हल कर ली जाती है। परंतु गुल मोहम्मद तो नौजवान था, बिना जरूरत के भी घूमने निकल जाता। अपने दादा से दस मिनट के लिए कहकर जाता और घंटों में लौटता।
एक दिन वह घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गया । वह पहाड़ पर और ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा था। ऊँची चोटियों पर या तो बर्फ देखने में मजा आता है या ऊँचाई से नीचे का नजारा। गुल को भी ऊपर से नीचे निहारने में आनंद आता था । मैदान के लोग तो ऊँचाई से नीचे देखने पर डर जाते हैं। अचानक वह भी डर गया। ऊँचाई से नहीं, ऊँचाई पर बर्फ में बड़े-बड़े बूटों के निशान देखकर वह हैरान हो गया। अनजाने में वह उन निशानों के पीछे चलता चला गया। एक जगह नीचे उतरकर निशान गायब हो गए। वह छुपकर खड़ा हो गया। चुपचाप चौकन्ना होकर आहटें सुनने लगा। उसे लगा, आगे बर्फ के पीछे कोई बंकर है। उसने बातचीत सुनने की बहुत कोशिश की, परंतु कुछ भी समझ में नहीं आया। इतना तो उसे मालूम हो ही गया कि वे कश्मीरी बोली में बात नहीं कर रहे थे। उसने पंजाबी भाषा भी सुनी हुई थी। वह एक-दो बार श्रीनगर भी गया था तो दुकानदारों को पंजाबी में बात करते सुना था। गुल मोहम्मद न पंजाबी समझता था, न इंग्लिश । इसलिए उनकी बातचीत का मतलब समझना उसके लिए टेढ़ी खीर था ।
उसका दिमाग झनझना उठा। ये फौजी कौन हैं ? यात्री तो यहाँ तक कभी आते नहीं। हमारी फौजें तो सर्दी में बेस कैंप में चली जाती हैं। फिर ये कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं ? सोचने के अलावा वह कर भी क्या सकता था ? उसके पास न कोई साधन न हथियार, यहाँ तक कि एक डंडा भी नहीं; क्योंकि भेड़ें भी नहीं थीं। उसे भय भी लगा कि कहीं इन लोगों ने मुझे पकड़ लिया तो दादा का क्या होगा? वे तो अकेले भूखे-प्यासे ही मर जाएँगे। अब वह जल्दी से जल्दी अपने गाँव पहुँचना चाहता था।
उतरते हुए उसमें गजब की फुरती आ गई थी। घर पहुँचकर देखा, दादा आराम से बिस्तर पर लेटे हैं। पूछा, "दादा, आप ठीक हैं ?"
दादा बोले, "मुझे क्या हुआ है? घर में ही पड़ा हूँ; तुम बताओ कहाँ-कहाँ घूमकर आए ? बहुत देर लगा दी। मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी । "
गुल मोहम्मद ने पहले दादा को कहवा बनाकर पिलाया। साथ में कुछ सूखे मेवे भी दिए। खुद भी कहवा पिया। फिर उसने दादा को अपनी बात विस्तार से बताई ।
दादा बोले, "मैं समझ गया बच्चे! ये जरूर ही पाकिस्तानी हैं ?"
"क्या ये चीनी नहीं हो सकते ?"
"नहीं, चीनी सीमा इस तरफ नहीं है, इधर से पूरब में है। यहाँ से ठीक उधर पाकिस्तान है।"
"ठीक कहा आपने चीनी नहीं हैं, ये पाकिस्तानी हैं, पर हमारे लिए तो दोनों ही दुश्मन हैं। हमें अब क्या करना चाहिए ?"
"बेटा, हम कर ही क्या सकते हैं? हम दोनों तो क्या, हमारा पूरा गाँव भी होता तो उनका क्या कर लेता? उनके पास बंदूकें हैं। हमें तो वे दूर से ही मार गिराएँगे। हम उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।"
"तो क्या हम चुप बैठे रहें? वे हमारे देश पर हमला करते रहें और हम कुछ न करें ? यह तो गलत है।"
"दुश्मन की ताकत का अंदाजा लगाकर ही उससे भिड़ना चाहिए। हमें नहीं पता कि वे कितने हैं? उनके पास कैसे हथियार हैं? अगर उन्हें यह पता लग गया कि हम यहाँ हैं, तो वे हमें मार डालेंगे या पकड़कर कैद में भी डाल सकते हैं।"
"अरे दादा! हमने उनका क्या बिगाड़ा है ? हमसे वे क्या ले लेंगे ?"
"बेटा! दुश्मन देश के लोग हैं। हमें पकड़कर हमारी सेना के ठिकानों के बारे में पूछताछ करेंगे। न बताने पर तरह-तरह से प्रताड़ित करेंगे, पिटाई करेंगे।"
"फिर तो हमें जल्दी ही कुछ करना चाहिए। हालात बहुत खतरनाक हैं। "
दादा की आवाज कुछ बदल गई, "बेटा! ये नामुराद पाकिस्तानी, आखिर हमारे मुसलमान भाई हैं। इनको तो हया शरम नहीं रही, पर हमें इन पर रहम करना चाहिए। "
गुल मोहम्मद को गुस्सा आ गया, “दादा ! यह कैसा इनसाफ है ? वे हमारे देश पर हमला करने आए हैं। हम उन पर रहम करें! क्यों? हमारे देश के दुश्मन हमारे भाई कैसे ?"
"तो बेटा! चुपचाप घर में बैठ जाओ। हम कुछ भी नहीं कर सकते। वे मारें, तो मर सकते हैं। "
"दादाजी! मैंने बेस कैंप देखा है। मैं वहाँ जाकर भारतीय सेना को खबर दे आता हूँ। इनके छिपे होने की जगह बताकर आता हूँ।"
"बेटा! बुद्धू मत बनो! जान-बूझकर मुसीबत में मत पड़ो। हो सकता है, वे और भी पास तक आ चुके हों। अकेले देखकर तुम्हें पकड़ लें, मार भी डालें । अभी हमला नहीं हुआ होगा तो देखा जाएगा।"
"उनके हमला करने से पहले ही तो अपनी सेना को बताना है। यदि उन्होंने हमला कर ही दिया, तो हमारे देश के बहुत से लोग अनजाने में ही मारे जाएँगे।"
"ठीक है, कल सवेरे बेस कैंप चले जाना। अब शाम होनेवाली है। अँधेरे में पहाड़ी रास्तों पर नहीं जाना चाहिए।"
"मुझे आज और अभी जाना है। मैं जल्दी से जल्दी यह खबर सेना तक पहुँचाऊँगा, ताकि वे सावधान हो जाएँ।"
"बेटा, पाकिस्तानी भी मुसलमान हैं। वे हमारे मजहबी भाई हैं। साथ ही करीबी पड़ोसी भी हैं।"
" वे अमन के समय भाई भी हो सकते हैं, पर अब वे हमलावर हैं। हमारे दुश्मन, हमारे देश के दुश्मन, अमन के दुश्मन। वे पड़ोसी का रिश्ता मानते तो हमला करने क्यों आते ?"
"हमें ज्यादा पचड़े में नहीं पड़ना। रात को मत जाओ, बेटा। सुबह चले जाना, जो चाहे करना। "
" दादाजी! आज मुझे अपने देश के लिए कुछ करने का मौका मिला है। भारत मेरा देश है। मैंने, हम सबने इसकी हवा में साँस ली, इसका अन्न खाया, इसका पानी पिया। इस पर हमला करनेवाले को मुँहतोड़ जवाब देना मेरा फर्ज है। मैं अभी जा रहा हूँ। देश के लिए मुझे मौत का भी डर नहीं। अपने देश के दुश्मन को मैं बरदाश्त नहीं कर सकता। अच्छा दादा, मैं जा रहा हूँ-
"भारत प्यारा, देश हमारा।
इसकी रक्षा, धर्म हमारा ॥
इसकी रक्षा, हम करेंगे।
हम करेंगे, हम करेंगे ॥"
आधी रात को गुल मोहम्मद बेस कैंप जा पहुँचा। कमांडर से मिलकर उसने सारी बात विस्तार से बताई। बंकर की ठीक जगह भी समझाई। परिणाम सारी दुनिया ने देखा और जाना। 16 दिसंबर तक भारतीय सेना ने बहादुरी से युद्ध करते हुए पाकिस्तानी तलवारों को म्यान में वापस जाने को विवश कर दिया।
देशभक्त गुल मोहम्मद की जय !