दायाद (ओड़िआ कहानी) : दाशरथि भूयाँ
Dayad (Odia Story) : Dasarathi Bhuiyan
निधि साहू की मोटरगाड़ी सड़क से गाँव के रास्ते की ओर जैसे ही मुड़ी, उनकी नजर पड़ी कि कोई एक उनकीr ओर तेज गति से दौड़ते हुए आ रहा है और चीखते हुए कह रहा है-“ साहब रुक जाइए! रुक जाइए! ”
वह आदमी उन्हें आगे न बढ़ने का इशारा कर रहा था। जब नजदीक आया तो पता चला कि वह उनका वफादार नौकर रंक रहा है। निधि साह वहीं उतर पड़े। रंक लम्बी-लम्बी साँस ले रहा था। हाँफते हुए कहा-“साहब आपको पुलिस ढ़ूँढ़ रही हैं। मैंने सही समय पर सतर्क करा देने के लिए यहीं इंतजार कर रहा था। ”
रंक के डरे हुए चेहरे, हाँफते हुए चेहरे को देखकर निधि साहू ने पूछा- “क्यों रे, मामला क्या है? ”
रंक ने उत्तर दिया- “साहब! सुकुटा पधान ने आत्महत्या की है। उसने आप से कर्जा लिया है। इसलिए पुलिस आपको ढूँढ़ रही है।”
सुकुटा की आत्महत्या और उन्हें पुलिस के ढूँढ़ने की खबर पाकर उनके माथे पर पसीना चुहचुहा उठा। उनका कलेजा काँप उठा । पल भर में रंक का चेहरा निधि साहू के अन्दर समा गया। उनका बदन काँपने लगा। होंठ सूख आये। सीने की धड़कन बढ़ गयी। भय का भूत उन पर सवार हो गया। उन्हें लगा कि एक भयानक तूफानी रात में कोई एक उनका पीछा कर रहा है और जान बचाने के लिए वे दौड़ रहे हैं।
सचमुच खुद को छिपाने के लिए वे कुछ इस तरह गायव हो गये कि किसी को कुछ पता ही नहीं चला। जाते समय रंक से सिर्फ इतना ही कह गये –“परिस्थिति सामान्य होते ही मुझे खबर करना।”
सुकुटा पधान के आत्महत्या करने में इनका दाष कहाँ रह गया। बल्कि असमय में वे उसे उधार-कर्ज दिया करते थे। खेती के लिए जरूरी खाद और कीटनाशक दवाइयाँ अपनी दूकान से उधार में देते थे। ओह! उनकी समझ में आ गयी। बीते कल शाम को सुकुटा ने उनकी दुकान से कीटनाशक दवाई की जो शीशी ली थी, शायद उसे खाकर उसने आत्महत्या की है।
सुकुटा रोज की तरह बीते कल भी अपने खेत में गया था। बाँझ माँ के पेट में एक भ्रूण के बलि चढ़ने की तरह वर्षा की कमी के कारण धान के सारे पौधे धरती माँ के वक्ष पर लुढ़क पड़े थे। मुच्छा भर सूखे-मुरझाये धान के पौधों को सुकुटा ने परख लिया था। अपने थके हुए हाथों से पसीना पोँछते हुए जम्हाई लेकर सुकुटा बैठ गया बीच खेत में। उसके हृदय में ढेर सारी पीड़ा धू-धू जल रही थी। खेत में आग बरस रही थी। फैले हुए खेत में बगुला-बगुली मछलियों की तलाश में मँडरा नहीं रहे थे। पक्षी और जानवरों को भगाने के लिए बनाया हुआ बिजूखा आकाश की ओर निहारते हुए चित पड़ा था। उस पर ओस की बूँदे पड़ी हुई थीं और मकड़ी के जाले फैल गये थे।
उसके मन में कर्ज के बोझ का भय दुगना हो गया था। शाम के समय वह खेत से लौटकर निधि साहू के पास गया था। कर्ज का हिसाब पूछा था। लौटते समय कीटनाशक दवाई की एक शीशी लाना भूला नहीं था। घर लौट कर पत्नी गेली से पखाल भात परोसने के लिए कहा था। बेटा मुन्ना ढिबरी जला कर पढ़ रहा था। सुकुटा ने मुन्ना से कहा कि तू अब स्कूल नहीं जाएगा। किसी के घर में काम- काज करने से हम कर्जा चुकाएँगे। तेरी माई के पाँव भारी हैं । अब मजदूरी करने जा नहीं सकती। खा चुकने के बाद वह खेत की ओर निकल पड़ा था।
जब वह खेत में पहुँचा तब झींगुर तंबूरा बजा रहे थे-झीं.. इर्.. इर्..इर्...। ना, इस साल अब फसल की आशा दीख नहीं रही है। क्या करेगा वह? परिवार का निर्वाह कैसे होगा। धान के खेतों की रखवाली के लिए बनाइ गयी लकड़ी के मचान पर चढ़ा फिर नीचे उतर कर वह खेत के बीच में आगया और बिजूखा के पास बैठ गया । शीशी का ढक्कन खोल कर गटगट करके पी गया। अब झींगुर की आवाज उसके मस्तिष्क के अन्दर से सुनाई पड़ रही थी- झीं. इर्.. इर्..इर्...। उसके पेट के अन्दर की कोई तो चीज मरोड़ खाने लगी। वह चीखते हुए बिजूखा के पास सो गया।
सवेरे-सवेरे किसी एक किसान ने खेत में सुकुटा को मरा हुआ देख कर खबर दी। पत्नी गेली रोती-बिलखती दौड़ी खेत की ओर । लोग इकùे हो गये। खेत से लाश को घर के पास लाया गया। गेली दहाड़ मारते हुए रो रही थी- “ म़ैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आयी।”
भीड़ में से किसी ने कहा- “इतनी हड़बड़ी क्यों ? सरकारी आदमी के आने तक इंतजार करो। सरकार ने अभी आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए सहायता की घोषणा की है। किसान के आत्महत्या करने से मुआवजा मिलता है। ”
किसी और ने कहा-“कोई फायदा नहीं होगा। कुटीर योजना की सूची में सुकुटा का नाम न होने के कारण पिछले पंचायत चुनाव के समय उसने विजयी सरपंच को वोट नहीं दिया था। सरपंच क्या इस मामले में सिर खपाएगा। बल्कि वह इस घटना की खबर पुलिस को दे देगा। ”
एक और ने बिना पूछे ही कहा कि इस बी.डी.ओ. पर कोई भरोसा नहीं है। वह सरकार को बता देगा कि घरेलू झगड़े से सुकुटा ने अत्महत्या की है। आज का अखबार पढ़ा है। अमुक जिले के किसान ने आत्महत्या की थी। बी.डी.ओ. ने रिपोर्ट दी कि पारिवारिक घटना से किसान ने आत्महत्या की है, इसलिए सब बेकार हो गया।
एक बूढ़ा आदमी चिल्ला उठा-“सुकुटा कल से मर चुका है। लाश सारी रात खेत में पड़ी हुई थी। मरा हुआ आदमी क्या वापस लौटेगा। कल की लाश को अब रखना उचित नहीं है। लाश नहीं उठेगी तो मन्दिर के पूजा-पाठ में देर होगी। चलो जल्दी अर्थी को तैयार करो। ”
“मैया री, मुझे मौत क्यों नही आयी”-उसकी दहाड़ डाहुक (जलकुंभी) पक्षी की आवाज की तरह गूँज रही थी । उसके साथ ताल मिलाते हुए रोने के लिए कोई नहीं था। उस गाँव में उसकी बिरादरी का कोई नहीं था। वह दूसरे गाँव से आकर यहाँ साझे में खेती करके जैसे-तैसे गुजारा कर रहा था। दूसरी जाति की लड़की से शादी करने के कारण उसे उसके पिता ने घर से दायवंचित कर दिया था। इस बात को सभी ने सोच लिया कि जरूर यही रिपोट जाएगी कि सुकुटा की आत्महत्या के लिए उसकी पारिवारिक घटना ही जिम्मेदार है। इसलिए अब किसी ने देर नहीं की। लाश को अर्थी में रख कर बाँधना शुरू किया। अर्थी के चारों किनारों को चार लोगों ने उठाया। मृदंग और मजीरा बजने लगा। गेली गाँव के छोर तक रोते- बिलखते हुए लाश के पीछे दौड़ी। कुछ औरतें उसे घर लौटा ले आयीं। लाश को जला चुकने के बाद कहीं से खबर पाकर पुलिस पहुँची और जाँच-पड़ताल शुरू कर दी।
गेली का ससुर बिशनू शाम को पहुँचा। पिछले दस साल से बेटे को भूल गया था। घर में बेटे और बहू को घड़ी भर भी चैन से रहने नहीं देता था। किसान आत्महत्या करने से सरकार से सहायता मिलती है। बहू को भी जरूर फौरन सरकारी सहायता मिली होगी। इस आशा में अपनी पत्नी की उकसाहट में आकर बिशनू आया था हाल ही में विधवा होने वाली बहू के पास । गेली सिर झुकाये बैठी हुई थी। ससुर को देख कर रोना शुरू कर दया-“ मैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आयी।” उसे रोना आता नहीं था। इसलिए मोबाइल फोन के रिंग टोन के बजाने की तरह एक ही ढंग से एक ही आवाज में रो रही थी।
पड़ोस की बू़ढ़ी औरत गेली के ससुर को देखकर पास आयी। बेटे के जिन्दा रहने तक कभी एक बार भी पास फटके भी नहीं। अभी मरने के बाद?
बिशनू के पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं था। उसने सिर्फ कहने के लिए कह दिया कि मौत की खबर पाकर बहुत दूर से आया हूँ। पिता के हृदय की वेदना को समझता कौन है?
दशाह-क्रिया और शुद्धि-कार्य को करने के लिए कोई है तो नहीं। रहा नाती, वह तो बच्चा है। इच्छा होती है कि जगन्नाथ पुरी जाकर शुद्धि-कार्य पूरा कर आऊँ। सरपंच, बी.डी.ओ., एमेले, कोई आया नहीं हैं।
बिशनू की बातें सुनकर गुस्से में तमतमाते हुए बूढ़ी ने कहा- “मैं समझ गयी कि तुम किस चीज के लिए आये हो। एक ध्येला लेकर आये नहीं हो। ऊपर से इस असमय में पैसे के लालच से आये हो। शरम नहीं आती तुम्हें। ”
गुस्से में लाल-पीला होकर बूढ़ी लौट रही थी। गेली के मकान की ओर एक सफेदपोश आदमी को आते देख वह अटक गयी। सुकुटा का बाप बिशनू काफी खुश हो गया। कहीं सहायता देने के लिए कोई सरकारी आदमी आ रहा होगा। पास आने के बाद पता चला कि वह गाँव का साहूकार निधि साहू है। गाँव से पुलिस के चले जाने के बाद निधि साहू रात को गाँव लौटा था।
निधि साहू कर्ज के मामले में कुछ कहने को आया है। गेली फिर से दहाड़ मारकर रोने लगी-“ मैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आयी। ”
निधि साहू ने कहा- “ठीक है, अपना रोना-धोना अब बन्द कर। मरा हुआ आदमी फिर लौटकर आएगा क्या? बोल, मेरे कर्ज के रुपये कब लौटाएगी? ”
पड़ोस के बू़ड़े ने दखल देते हुए कहा-“ उसके पास है भी क्या, जो वह लौटाएगी? ”
निधि साहू ने जवाब दिया-“कुछ न हो, माँ और बेटा तो हैं। मेरे घर में काम करके कर्ज चुकाएँगे। गेली मेरे घर में काम करेगी। बेटा मेरी दुकान में नौकर का काम करेगा। मैं इस असमय में वह बात नहीं कह रहा हूँ। कुछ दिनों के बाद मैं फिर आऊँगा। माँ और बेटा तैयार होकर रहना”- कहते हुए निधि साहू चला गया।
गेली ने फिर से रोना शुरू कर दिया। पड़ोश के बू़ढ़े ने ढाड़स बँधाते हुए कहा- “तू क्यों रो रही है बेटी। तेरे पति के कर्ज को चुकाने के लिए उत्तराधिकारी के रूप में तेरे गर्भ में जो बच्चा पल रहा है, उसकी तनिक चिन्ता कर। बिना खाये-पिये बैठी रहोगी तो उस बच्चे का क्या हाल होगा ? ”
गेली के रोने की आवाज अब रिंग टोन की आवाज के बदलने की तरह बदल गयी। वह अपने पेट को सहलाते हुए रोने लगी-“ कर्ज के बोझ को उठाने के लिए इस संसार में आनेवाली संतान को मेरे गर्भ में पाल ही क्यों रहे हो प्रभु।”