दार-एस-सलाम (मलयालम कहानी) : एम. टी. वासुदेवन नायर

Dar-es-Salaam (Malayalam Story in Hindi) : M. T. Vasudevan Nair

बन्द गेट के पास वह टैक्सी से उतरा। काले पत्थर की पट्टी पर अंकित नाम देखते हुए क्षण भर खड़ा रहा। दार-एस-सलाम।

लोहे की छड़ों में से पथ के कोने में पोर्टिको की ओर देखा। कोई नहीं। एक क्षण सोचा कि टैक्सी वाले को रुकने को कहे कि नहीं। बुड्डा न मिला तो होटल लौटने के लिए एक मील पैदल चलना होगा, बस! टैक्सी वाले को पैसे देकर छुट्टी कर दी।

गेट बिना आवाज के खुला। दोनों तरफ गमलों से सजे रास्ते से आगे बढ़ा तो अनजाने ही पिछवाड़े की ओर नजर उठ गयी। पिछली बार आया था, तब वह पौधों की देखभाल कर रही थी।

उसने सोचा कि मृत्यु कितनी गैर-जरूरी है। उसने व्यर्थ ही आशा की थी कि वह तरकारियों के बीच से या अन्दर के बरामदे से आ जाएगी। 'सुन्दर शाम' के अभिवादन सहित।

वह आँगन में शंकित खड़ा था इसलिए शायद अन्दर नौकरों में से किसी ने देख लिया होगा। कुछेक क्षण बाद ही मेजर फ्रेडरिक मुकुन्दन बाहर आ गये।

"गुड ईवनिंग मेजर!"

"गुड ईवनिंग। हैलो... हैलो... हैलो!"

सिगार का टुकड़ा फेंकते हुए बुड्ढे ने उत्साह से सीढ़ियों से उतरकर हाथ मिलाया।

बासठ की उम्र में भी मेजर तन्दुरुस्त थे।

"शहर में कब आये? घर में सब ठीक-ठाक है?"

पोर्टिको में आमने-सामने बैठे वे दोनों बात करने लगे। मत्यु के सम्बन्ध में कुछ नहीं बोलने की सावधानी दोनों बरत रहे थे।

अरब सागर की घरघराहट और पानी की बूंदें लिये बहती हवा से खिड़की के पल्ले खड़खड़ा उठे। शोक मनाने के लिए उचित शब्दों के अभाव में उसे तकलीफ हुई। मेजर फ्रेडरिक मुकुन्दन का चेहरा काफी लाल हो गया था। उम्र की झुर्रियों को दुख ने बढ़ा दिया होगा। उसे दुख हुआ। आना नहीं चाहिए था। मिसेज रीता मुकुन्दन की याद को किसी फूलों के गुच्छे की तरह मन में सँजोये हुए शहर छोड़ा जा सकता था।

विदेशी लहजे की अंग्रेजी में बूढ़ा बोला। आवाज गूंज रही थी, "मैं बासठ का हो गया हूँ। अब किसी भी दिन विधाता से मिलने को मैं तैयार हूँ।" ।

चौबीस बरस जिन्दगी में साथ निभाने वाली एक औरत मात्र नहीं थी रीता। बुड्ढे का दुख वह समझ सकता था। कभी न बुझने वाली जवानी का अगर कोई नाम हो तो वह था-मिसेज रीता मुकुन्दन।

नौकर द्वारा लायी गयी चाय उसने पी।

"आप यहाँ खाना खाएँगे?"

मेजर का निमन्त्रण उसने चुपचाप स्वीकार कर लिया।

"कुर्ता बदलेंगे? कहें तो लुंगी ला दूँ? बी मोर कम्फर्टेबल!"

"जी नहीं।"

बोलने के सारे खोखले विषय खतम हो जाने से वे चुप हो गये थे। दूर सागर किनारे नारियल के खेत में धूप की अन्तिम किरणें दिखाई पड़ी।

"नहाना चाहेंगे? आज मेरा तेल लगाकर नहाने का दिन है।"

उसने इनकार किया। औपचारिकता से माफी माँगकर मेजर ने तिपाई पर अखबार और पत्रिकाएँ रख दी और अन्दर चले गये। अकेला होने पर उसे राहत मिली।

मिसेज रीता मुकुन्दन के बगैर दार-एस-सलाम बेजान-सा लगा। सात साल पहले रिटायर होकर जब वे गाँव लौटे थे तब उन्होंने इस घर का नाम 'दार-एस-सलाम' रखा था। लगा, जैसे वे हमेशा उस सुदूर शहर की याद में जीते थे।

पश्चिमी तट पर बसे इस खोये हुए शहर में दवा बेचने आये चालीस बरस के एक गृहस्थ के जीवन में मिसेज रीता मुकुन्दन एक पूरा अध्याय बन चुकी थीं। यह कैसे हुआ?

महीने में दस दिन की यात्रा, चौथी तारीख को प्राप्त डिमाण्ड ड्राफ्ट में सीमित घरेलू खर्च, किराये के घर की चारदीवारी के भीतर सिमटी जिन्दगी, रेलयात्राओं में पढ़ने के लिए खरीदते हुए क्राइम-उपन्यासों का मजा।

सूखे दिनों में एक दिन बयार की तरह प्रकट हो गयी थी सुन्दर रीता मुकुन्दन।

पहली बार इस घर से लौटते समय उसने अपने मन में परिवार की कल्पना की एक सुन्दर तस्वीर सँजोयी थी।

मेजर मुकुन्दन उसे रक्षा की देवी कहते थे-मजाक में। उनके अनुसार शादी के बाद ही उन्हें तमाम उपलब्धियाँ प्राप्त हुई थीं।

जब लोगों ने सुना कि गाँव का बदमाश मुकुन्दन जहाज पर चला गया है, तो सबने राहत की साँस ली कि चलो बला टल गयी। गोरों की सेना में भरती होने के लिए नाम बदलकर वह फ्रेडरिक मुकुन्दन हो गया। बरसों बाद लौटकर आया। पुराने रिश्तों को नये ढाँचे में ढालने लगा तो माँ ने रीता से उसकी शादी तय कर दी। तभी उसे पहली बार देखा। "वहीं से जिन्दगी बदल गयी", मेजर ने कहा। उसे विश्वास हो गया।

जिस रीता को उसने दो साल में सिर्फ तीन बार ही देखा था, आश्चर्य है उसे कई-कई रात सपनों में देखता रहा।

इस शहर की केवल स्मृतियाँ ही उसके पास थीं और उसे इस शहर से नफरत थी। पश्चिमी तट पर अंग्रेजों की रखैल रहा यह शहर। बिल्ली की आँखों वाले और गोरी चमड़ी वाले लोगों के अतीत की महिमा यहाँ बिखरी पड़ी थी। सागरकिनारे सिरे टूटे-फूटे अंग्रेज होटल में वह तीन दिन रहा था। सामने सागर, चट्टानें, मछली पकड़ने वाले टोपीनुमा छाते वाले।

होटल में पर्यटक विरले ही आते थे। अधिकांश कमरे महीने भर के किराये पर दिये जा चुके थे। खाली डाइनिंग हाल में कॉफी पीकर, हाथों में हाथ डाले सागर की सुन्दरता देखते दम्पतियों को उसने कल ईर्ष्या और क्रोध से देखा था।

चाय का खाली प्याला नीचे रख वह अलस भाव से अखबार के पन्ने पलटने लगा था, कि तभी वे पास की मेज पर आ बैठे थे।

मिसेज रीता मुकुन्दन!

मेजर फ्रेडरिक मुकुन्दन!

आपस में वे एक दूसरे को 'डार्लिंग' बोलते थे। हँसते थे। उसने अपने मुख पर घृणा और निन्दा को आने नहीं दिया। घृणा तो उसका स्थायी भाव था। हमेशा उसने ऐसे बड़े-बड़े बँगले दूर से देखे थे जिनकी ऊँची दीवारें और अलसेशियन कुत्ते उनकी रखवाली करते रहते। बड़े-बड़े होटलों के पास पार्क की हुई कारें, सागर-किनारे हवा खाते हुए जवान जोड़े, नये फैशन के कपड़ों में स्कूटरों पर उड़ते युवक-सबसे उसे घृणा थी। अपने चकनाचूर सपनों की यादों से वह बच नहीं पाता, इसी कारण उसे सब से घृणा थी।

अगली मेज पर बूढ़े की हथेली को एक सुन्दर कोमल हाथ ने दबाया, मीठी शिकायत करते निरर्थक औपचारिक शब्द। उसे उस नगर की निन्दा में सुनी एक कहानी याद आ गयी...

...ज्योंही उस अंग्रेज साहब की कार के आने की सूचना उसके साले ने भाग कर दी, त्यों ही पति महोदय पिछवाड़े से भाग निकले। सारा शहर घूम लेने के बाद धड़कते दिल से लौटे। आखिर जब यकीन हो गया कि दरवाजे पर कार नहीं है, तब अन्दर पहुँच कर पत्नी को क्रोध से बुलाकर पूछा, "साब के सिगार का कोई टुकड़ा तो नहीं पड़ा है इधर कहीं?"

दूसरी मेज पर से एक मुस्कराता चेहरा उसकी ओर मुड़ा। उसने अखबार के लिए अपना हाथ बढ़ाया।

"शुक्रिया!"

"प्लीज, डोण्ट मेंशन!"

उन्होंने न जाने किससे शिकायत की कि सागर-किनारे यह इतनी सुन्दर जगह है, फिर भी कोई यहाँ आता नहीं!

"डार्लिंग, डोण्ट यू थिंक सो? समबडी शुड डू समथिंग अबाउट इट।" लाल चेहरा और गूंजती आवाज वाले बूढ़े ने अपनी सहमति जतायी।

"यस डार्लिंग!"

फिर बुड्डा उसकी तरफ मुड़ गया। विदेशी लहजे में अंग्रेजी में कहा, "मैं दुनिया में कई जगह गया हूँ। इतने अच्छे वातावरण में बना कोई होटल मुझे नहीं दिखा। लेकिन इसे ये लोग कितने घाटे में चलाते हैं!"

फिर परिचय का दौर।

"पी.के. जयदेवन, मेडिकल रिप्रेजेण्टेटिव।"

मेजर की पत्नी जब मुस्कराती तब लगता कि उसके गीले ओठ जरा-सा हिले हैं। सुन्दर दाँतों की चमक का तो कहना ही क्या! अगले दिन घर आने का वादा लेकर वे दोनों हाथ में हाथ डाल बाहर चले गये। तब खुद को उसने कोसा, पहले उन्हें घृणा के साथ देखने की गलती जो कर चुका था।

अगले ही दिन उनकी बैठक में बैठकर बातें की। चाय पी।

मेजर ने कहा कि दार-एस-सलाम का अर्थ है शान्ति का प्रतीक। वहाँ से निकला तो लगा कि मेजर के बँगले के लिए कोई और नाम सार्थक नहीं होगा।

चाय का प्याला लेते समय रीता की उँगलियों को छुआ तो रोमांच-सा हुआ।

शहर छोड़ते वक्त विदा लेने के लिए दार-एस-सलाम पहुँचा। ड्योढ़ी पर हाथ मिलाकर मेजर ने कहा, "आपका यहाँ हमेशा स्वागत होगा। जब कभी इधर आएँ, हमसे आकर जरूर मिलें।"

मिसेज मुकुन्दन ने हाथ बढ़ाया। खुद को ताकीद दी कि जरूरत से ज्यादा तब उनकी कोमल हथेली को अपने हाथ में न रखे।

अफ्रीका के मुस्लिमों की विदाई का ढंग उन्होंने दिखाया। वह एक बच्चे की तरह उनका हाव-भाव देखता रहा-आश्चर्य से।

वापस रेलवे स्टेशन की ओर बैग उठाये जाते हुए सोचा-दार-एस-सलाम! दार-एस-सलाम- शान्ति का प्रतीक। दार-एस-सलाम!

शहर में फिर से आने की जल्दी थी।

महीनों बाद सागर-किनारे होटल में आकर कमरा लिया, नहाकर तैयार हुआ। सबसे अच्छे कपड़े पहने। आईने के सामने खड़े होकर कई दफा बाल सँवारे। पॉलिश किये जूते को फिर से गीले कपड़े से पोंछकर चमकीला बनाया। वह आखिरकार अपने को बदल रहा था। मिसेज रीता मुकुन्दन के सामने अपने को युवा और सुन्दर बनकर जाना चाहता था।

ड्योढ़ी पार करके चलने के रास्ते से आगे बढ़ रहा था तो सेम के पौधों के पास से मिसेज मुकुन्दन की आवाज सुनी, "गुड ईवनिंग!"

बैंगनी साटिन का अन्तर्वस्त्र दिखाते हुए उन्होंने साड़ी का आँचल ऊपर उठा कर फिर ठीक किया।

पास आकर उन्होंने आवाज लगायी, "डार्लिंग, कम आउट! देखो कौन आया है।"

पोर्टिको में बैठे वे बातें करते रहे। वह सुनता रहा। आठ बजे जाने के लिए उठा तो मिसेज मुकुन्दन ने कहा, "यहीं डिनर लेकर जाइए"

"नहीं, मिसेज मुकुन्दन, वो सब..."

"डोण्ट स्टैण्ड ऑन सेरिमनीज। मुझे रीता कहो।"

मेजर ने ऊपर बुलाया। पोर्टिको के ऊपर खुले बरामदे में बैठकर क्षुब्ध अरब सागर को देखा जा सकता था।

अगले हाल में अफ्रीका से लायी गयी विशिष्ट वस्तुओं को सजाकर रखा गया था। रीता ने साथ चलकर चीजें दिखायीं। रीता ने ही उन्हें समय-समय पर इकट्ठा किया था।

मेजर के सामने गोल मेज पर, ठण्डी सोडे की बोतल और उड़ते घोड़े की तसवीर वाली ह्विस्की की बोतल रखी थी।

उसने धन्यवाद के साथ निमन्त्रण को अस्वीकार किया। डिस्ट्रिक्ट मैनेजर की पार्टियों में उसने तीन-चार बार शराब चखी है। पहला गिलास हाथ में लिये वह पार्टी के अन्त तक ओठों को छूता रहता।

लाइम जूस पीते हुए उसने मेजर की कहानी सुनी। इसी बीच मेजर ने पूछा, "जानते हो, यह 'रास्कल' (शैतान) कौन है?"

हाथी-दाँत के बीच बड़े आईने वाली ड्रेसिंग टेबल पर अठारह साल के एक लड़के की तसवीर चौखट में सजा के रखी थी।

वह शंकित खड़ा रहा। "मेरा बेटा!"

इंग्लैण्ड में पढ़ने वाले अपने बेटे के बारे में वे गर्व से बोले, "उससे मिले पूरे पाँच साल हो गये हैं। वह पत्र भेजने में भी आलसी है।"

"हमारा एक ही बेटा है। उसके लिए कुछ भी खर्च करने में मुझे हर्ज नहीं; पर है वह अव्वल दर्जे का बदतमीज!"

मिसेज मुकुन्दन ने जोड़ दिया, "पिता जैसा ही।"

बुड्ढा जोर से हँसा। पत्नी के ललाट को धीरे से सहलाकर कहा, "तू जीत गयी।"

उसने उस रात को अच्छी तरह याद किया ताकि एक सुन्दर अनुभव के रूप में मन में सँजोये रह सके। गड़रिये को जैसे जंगल में धन मिल जाए, उसी तरह वह उसे गुप्त रूप से दुलारता रहा।

इधर वह, जिसका कोई अपना नहीं था, एक विशिष्ट मेहमान बन गया था।

"हम जब इधर आये, तब से अकेले हैं। हमारा इधर कोई परिचित नहीं। परिचित बनाने की इच्छा भी नहीं होती।"

एक बड़ा परिवार उसका स्वागत-सत्कार करना चाहता था। उसे लगा कि अपना आत्मविश्वास, जो कि बचपन में नष्ट हो गया था, उसे उस एक रात से पूरा वापस मिल गया।

रसोईघर की देखभाल करने के बाद कपड़े बदलकर घर की मालकिन वापस आयी। चन्दन के रंग की सोने की जरीदार साड़ी का आँचल उसके घुटनों से टकराया। नंगे कन्धे। गले पर महंगे हीरे चमक रहे थे। उन्हें खुश करने के लिए उसने कहानियाँ सुनायीं। मित्रों के अनुभवों को अपना बताया। सालों बाद वह अपने दुख और प्रारब्ध भुला पाया था। ठहाका मार कर वह हँसा। गा न सकने का दुख हुआ।

जिन्दगी में विरला ही ऐसा दिन जाता है।

बाहर चाँदनी फैली तो मन में अजीब-सा संगीत बज उठा। समन्दर जो दूर लहरें उछाल रहा था, वह मानो अब हँसकर लोट-पोट होने लगा था। रात घनी होती जा रही थी। सामने मेजर के साथ सोफे पर बैठी रीता अपने बाल खोलकर फैला रही थी। इस तरह वह और भी ज्यादा सुन्दर दिख रही थी। उसने उम्र को जीत लिया था। अट्ठाईस साल की उम्र में पाँच बच्चों की माँ बनी, दुबली, निर्गन्ध अपनी पत्नी को उसने बेचैनी से याद किया। उसे मेजर से ईर्ष्या हुई जो स्वाहिली भाषा सीखने के लिए अफ्रीका के आदिवासियों के दल से घुल-मिल गये थे। वे उन दिनों के अपने साहस का बखान कर रहे थे।

बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए बरामदे से रीता उसके साथ जा रही थी। उसका दिल धड़कने लगा। एक क्षण के लिए वह मृत्यु का मूल्य चुकाने को तैयार हो गया था। उसके हाथ आगे बढ़े। उसने उस देवता की कहानी याद की जो घायल होकर भूमि पर गिर पड़ता तो दुगुनी क्षमता से लड़ाई के मैदान में लौट आता था।

तुम्हारे स्पर्श से मैं और मजबूत हो गया हूँ, उसने मन ही मन कहा।

बैठक में लौटा तो उसका सिर ऊँचा उठा हुआ लगा। उसने मन ही मन कहा, अब मैं दुनिया को ललकार सकता हूँ। दार-एस-सलाम में अच्छे दिनों की याद में जीते उसके पति को विजेता की सहानुभूति से देखा। एक चुम्बन से मैंने सब कुछ पा लिया है।

अब वह जल्दी जाना चाहता था। होटल के एकान्त कमरे में उस क्षण की फिर से कल्पना करना चाहता था। रीता मुकुन्दन की आँखों में देखते हुए उसने विदा ली।

घर लौट कर आया तो चाहा कि रीता को एक पत्र लिखे। कई बार लिखना शुरू किया, पर सब फाड़ डाला। आखिर लिख ही दिया :

'प्रिय मिसेज मुकुन्दन, आपकी आवभगत याद आते ही मन खुश हो जाता है। शुक्रिया अदा करने को मेरे पास शब्द नहीं। आशा है आप दोनों स्वस्थ हैं।'

इन्तजार करके प्रायः निश्चिन्त हो गया था कि अब जवाब नहीं आएगा। तभी औरत की लिखावट में एक नीला लिफाफा मिला।

खोला तो हाथ काँप उठे।

'मेरे प्रिय-माई डार्लिंग!'

जीवन में पहली बार मिला प्रेम-पत्र! काँपती उँगलियों में जिन्दा चिड़िया की तरह फड़फड़ाता रहा।

"क्या ऊब गये? माफ करो।" मेजर की गूंजती आवाज सुनकर वह फिर से शान्त हो गया।

"तेल लगा कर हफ्ते में दो बार नहाना मेरे लिए जरूरी है। दार-एस-सलाम में भी मैं पार्सल से तेल और घी मँगाता था। मेरी दिनचर्या ठीक-ठाक चल रही है । ब्लड प्रेशर नॉर्मल। 'गुड एपिटाइट, नो शुगर, ऐण्ड रिमेम्बर- आई एम सिक्सटी टू।'

बूढ़े ने पुराने मित्रों के न आने की शिकायत की।

"रीता की मृत्यु के बाद घर में अब शोर-शराबा नहीं। पुरानी किताबों से समय बिताता हूँ।" उसके आने के लिए बूढ़े ने फिर से शुक्रिया अदा किया।

दूर से समुद्री कौओं की आवाज सुनाई पड़ रही थी।

"बातचीत करने के लिए कोई होना चाहिए न! अब तो किताबों का ही सहारा है।"

बूढ़े के कष्ट का वह अनुमान लगा सकता था। वह मन ही मन बोला, 'मेजर, मेरा कष्ट शायद आप नहीं समझेंगे।'

"चलें, हम ऊपर चलकर बैठें।"

पोर्टिको के कोने से ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त कोने में पड़ी हुई रीता की चप्पलों पर उसने ध्यान दिया।

सोने के रंग में दस्तकारी की गयी कई तरह की चप्पलें।

ऊपर के हाल में मेज पर रोज की तरह बोतल और गिलास रखे थे। दरवाजे का पर्दा खींचकर उसने यों ही सोचा अब रीता आ जाएगी।

'रीता की मृत्यु के बाद न पार्टियाँ होती हैं, न लोग आते हैं।'

वह कुछ बोला नहीं।

उसका चिकन कबाब दार-एस-सलाम में बहुत मशहूर था। साहब फोन करते थे, 'फ्रेडी, इतवार को मैं लंच पर आऊँगा। आई वाण्ट ओनली रीता स्पेशल्स। मिस्टर इब्राहम को जानते नहीं क्या? प्लाण्टर, आपके टाउन के हैं।"

"सुना है।"

" 'मीलिनियर'। आधी रात के समय यहाँ से गुजरते तो भी घर में चले आते थे। यहाँ से खाना खाकर ही जाते।"

वह एकदम बेचैन हो उठा। उसे पीने की इच्छा हुई, जो पहले कभी नहीं हुई थी। उन्होंने दोनों गिलास भरे तो उसने कुछ कहा नहीं।

"चियर्स! मेरा बॉस अजीब ढंग से टोस्ट बनाता था। आई विल शो यू।"

भरे गिलास एक के ऊपर एक रखे। फिर उन्हें टकराते हुए मेजर ने कहा, "तुम्हारे ऊपर के और नीचे के लोग शायद तुम्हें छोड़ जाएँगे। पर मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।"

मेजर हँस दिया। उसने हँसने का प्रयास किया।

दार-एस-सलाम के 'वीक-एण्डों' के बारे में मेजर बोले, "पीकर नशे से चूर हो जाते तो क्लब में दोस्तों में कोई कहता-हम फ्रेड्डी के घर जाएँगे। कभी आधी रात के वक्त पहुँचते तो भी हँसकर ही दरवाजा खोलती। चन्द मिनटों में सभी जरूरी चीजें मेज पर लग जातीं। लोगों की आवभगत करने में उसे विशेष रुचि थी।" खिड़कियों के परदों को हिलाते हुए सागर की हवा हाल में घूमती रही।

अफसरों की बीवियों की एक संस्था थी। रीता ही उसकी प्रेसिडेण्ट थी। विषय बदलने के लिए उसने कहा, "सुखद हवा!"

मेजर चुप!

अन्दर गरम हवा चल रही थी। मृत्यु की भूल थी। उसने सोचा वह कहे, मेजर, उन्हें और जिन्दा रहना चाहिए था।

ड्रेसिंग टेबिल पर मुस्कराते युवक की तस्वीर देख उसने पूछा, "आपका बेटा नहीं आया क्या?"

मेजर ने जवाब नहीं दिया। उसने फिर से पूछा, मानो उन्होंने उसका सवाल सुना न हो।

"बेटे का क्या हाल है?"

लाल चेहरे की झुर्रियों पर बल पड़ते उसने देखा।

"नहीं आया। केबिल भेज दिया। वह नहीं आया। वह आएगा भी नहीं।" उसके अन्दर मेजर की घनी आवाज ने बेचैनी पैदा कर दी।

उसको खयाल आया कि शराब का नशा दिमाग पर असर कर रहा है। तब उसे एक क्रूर इच्छा हुई। उसे बता देना चाहिए। जाने से पहले बता देना चाहिए। मेजर, आपकी पत्नी को मैं प्यार करता था।

नौकर ने चाँदी के थालों में भुना हुआ मांस लाकर रखा।

"रीता की मृत्यु के बाद मैंने शराब छुई तक नहीं है। आज पी रहा हूँ। आप आ गये हैं, तो कई बातें याद आ गयीं। मैं बेचैन हूँ।"

उसने सोचा, कुछ न कुछ तो बोलना चाहिए।

"मेजर, आप अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें।"

"स्वास्थ्य!"

मेजर की हँसी ने जोर पकड़ा। ऐनक के पीछे उनकी आँखें मानो चमक रही थीं।

"मैंने पहले सोचा था कि इधर न आऊँ। सच! यहाँ आने पर मिसेज मुकुन्दन की याद आएगी। मेजर, जब मेरे पिताजी की मृत्यु हुई थी, तब मैं सत्ताईस वर्ष का था। मैं बिल्कुल नहीं रोया। माँ की मृत्यु के समय मैं उसके पास नहीं था। तार मिला तो एक प्रकार का ठण्डापन महसूस हुआ। पर..."

"यस, बताइए। कैरी ऑन..."

"जब मिसेज मुकुन्दन की मृत्यु का पता चला तो मैं रो पड़ा। आप विश्वास करें, न करें, मैं बहुत रोया।"

"मैं विश्वास करता हूँ।"

"उसने मुझे गहरा धक्का पहुँचाया था।"

"कइयों को।"

खुद को सँभालकर उसने सोचा, क्या यह मैं ही हूँ। शब्द इतनी आसानी से आ जाते हैं। मेजर ने आँखें पोंछीं।

"मेजर, मुझे रोना चाहिए। हम आपस में गले लग कर रोएँगे।"

"मेजर, वे एक देवी थीं। जो भी उनके पास आया उसे उन्होंने ओज और प्रसाद परोस दिया। एक नक्षत्र की तरह दूसरों को प्रभावित किया। मेजर, क्या आप ध्यान से सुन रहे हैं?"

"हाँ, बताते जाइए।"

"मेरे जीवन में, जिनसे मेरा परिचय हुआ है, उनमें सबसे बढ़िया व्यक्तित्व ...मुझे उचित शब्द नहीं मिलते।"

अंग्रेजी भाषा में अपनी सीमाओं को समझकर उसे खुद पर क्रोध आया।

"उसने आपको अफ्रीकी मुस्लिमों की विदाई के रंग-ढंग सिखाये थे न!"

मेजर की आँखें फिर से लाल हो गयीं। आवाज तेज हो गयी।

उसने हाँ में सिर हिलाया। "मुझे याद है, वही शुरुआत थी।"

वह समझा नहीं। दंग रह गया। बोतल में बची ह्विस्की का एक घूँट पीकर जोर से मेजर ने गिलास मेज पर रखा।

"आप समझेंगे नहीं। आप नहीं जानते कि खोना क्या चीज होती है।"

मेजर का चेहरा चिनगारी के समान लाल हो गया था। लड़खड़ाते पाँवों से खिड़की की तरफ बढ़े तो वह उठा। अकारण मन में बेचैनी होने लगी और क्रोध भी आया।

जब वह पास आ गया, तब मेजर लोहे की छड़ों को पकड़े बाहर देख रहे थे। अहाते की सीमा पर झुके आकाश के नीचे बाँस के वन को देख रहे थे, जहाँ अँधेरा छिपना चाहता था।

"वहाँ, वह विश्राम कर रही है। कुतिया! दि बिच!"

उस विषैले शब्द की क्रूरता को थोड़ी देर बाद ही समझ पाया था।

"मेजर!" उसकी आवाज में आदेश का भाव था।

"वहीं उसका स्मारक बनाना चाहिए था। एकान्त स्थान पर। प्रायः वह एकान्त की खोज में जाती थी। उसके लिए मैं एक ताजमहल बनाऊँगा। दार-एससलाम से भागकर एक साल साथ रहने के लिए लाट साहब ने उसे जो जेवरात भेंट में दिये थे, उन्हें बेचकर मैं उसका स्मारक बनाऊँगा!"

"मेजर, मृतकों का मखौल न उड़ाएँ। वह एक देवी थीं।"

"ऐंजेल! काले पंखों वाली देवी!" मेजर इतनी जोर से चिल्लाया था कि वह बड़ा बँगला मानो हिल गया। किसी प्रकार अपने झुके सिर को ठीक करके बुड्ढा पीछे मुड़ा।

"अन्तिम आराधक!"

वह दृढ़ स्वर में बोला, "ठीक है।"

"कितनी ही बार मैंने उसे मारना चाहा पर मार नहीं पाया। हमेशा उसी की जीत हुई!" मेजर ने अपने दायें हाथ को निराशा के साथ बायें हाथ पर मारा।

मृत रीता के लिए मरने-मारने को तैयार वह सीधा खड़ा था।

"मेजर!"

"काले पंखों वाली देवी! उस देवी ने मुझे जो भेंट प्रदान की थी, उसे देखेंगे? मेरे इकलौते बेटे के रूठकर जाने का कारण जानना चाहेंगे?"

मेजर ने पागलों की तरह जोर से अट्टहास किया।

"कबीना!"

अपना खोया साहस पुनः प्राप्त करने की कोशिश करते हुए वह शराब के नशे में खड़ा था।

"रीता की सभी अफ्रीकी कौतुक-वस्तुओं को आपने देखा नहीं है। किसी ने भी नहीं देखा है। कबीना!" मेजर की आवाज धीमी होती गयी- "कबीना यहाँ की नौकरानी है। मेहमान लोग नौकरानी को भला क्यों देखेंगे!"

अन्दर बँगले के गर्भ में कहीं दरवाजा खुलने का शब्द हुआ। आधे मिनट के बाद द्वार पर छाया की तरह एक नौकरानी प्रकट हुई।

"अन्दर आ जा।"

उसने उस लड़की को देखा, जिसे रोशनी से डर लगता था। बेडौल ओठ, सूखे बाल और भावहीन चेहरे वाली एक लड़की।

"देखा! देवी की बेटी को देखा?"

उसके कानों में अरब सागर फिर से गरजा। 'शान्ति का प्रतीक' से वह बाहर निकल आया।

फिर टूटे-फूटे होटल के आँगन में, नीचे चट्टानों में लहरों को सिर खपाते, मरते देख वह अकेले में फूट -फूटकर रोने लगा-बिना वजह।