चोरी का अर्थ : विष्णु प्रभाकर
Chori Ka Arth : Vishnu Prabhakar
एक लम्बे रास्ते पर सड़क के किनारे उसकी दुकान थी। राहगीर वहीं दरख़्तों के नीचे बैठकर थकान उतारते और सुख-दुख का हाल पूछता। इस प्रकार तरोताजा होकर राहगीर अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाते।
एक दिन एक मुसाफ़िर ने एक आने का सामान लेकर दुकानदार को एक रुपया दिया। उसने सदा की भांति अन्दर की अलमारी खोली और रेज़गारी देने के लिए अपनी चिर-परिचित पुरानी सन्दूकची उतारी। पर जैसे ही उसने ढक्कन खोला, उसका हाथ जहाँ था, वही रुक गया। यह देखकर पास बैठे हुए आदमी ने पूछा- "क्यों, क्या बात है?"
"कुछ नहीं" - दुकानदार ने ढक्कन बंद करते हुए कहा- "कोई गरीब आदमी अपनी ईमानदारी मेरे पास गिरवी रखकर पैसे ले गया है।"