चिके का बचपन (नाइजीरियाई कहानी) : चिनुआ अचेबे

Chike Ka Bachpan (Nigerian Story in Hindi) : Chinua Achebe

सराह की आखिरी सन्तान एक लड़का था जिसके जन्म से उसके पिता आमोस के घर में खुशी की लहर दौड़ गई । नामकरण के समय उसे तीन नाम दिये गये-जॉन, चिके तथा औबियाजूलू । आखिरी नाम का अर्थ था " अन्ततः मन शान्त हो गया है ।" इस नाम को सुनकर सुननेवाले को तुरन्त स्पष्ट हो जाता था कि इस नाम वाला या तो अकेली सन्तान था या इकलौता बेटा । चिके इकलौता बेटा था । उससे पहले उसके माँ-बाप की पाँच बेटियाँ पैदा हुई थीं ।

अपनी बहनों ही की तरह चिके की परवरिश भी “गोरे लोगों की तरह हुई थी" जिसका अर्थ था परम्परागत का विलोम । कई वर्ष पहले आमोस ने एक छोटी-सी घण्टी खरीदी थी जिसकी सहायता से सुबह-सवेरे सारे परिवार को वह प्रार्थना और भजन-गान के लिए बुलाता था और रात को सोने से पहले । यह भी गोरे लोगों के तौर-तरीकों में से एक था। सराह ने अपने बच्चों को सिखाया था कि वे पड़ोसियों के यहाँ कुछ न खाया करें क्योंकि वे “ अपना भोजन मूर्तियों को चढ़ाते हैं" इस प्रकार उसने स्वयं को उस प्राचीन रिवाज़ से अलग कर लिया था जिसके अनुसार बच्चे सभी की साझी ज़िम्मेदारी माने जाते थे। बच्चों के माँ-बाप में सम्बन्ध कैसे भी हों, लेकिन बच्चे इकट्ठे खेलते थे और खाना मिल बाँटकर खाते थे ।

एक दिन एक पड़ोसी ने चिके को रतालू का एक टुकड़ा देना चाहा । चिके उस समय सिर्फ चार वर्ष का था । लड़के ने नकारात्मक ढंग से सिर हिलाते हुए घमण्डी स्वर में कहा, “हम मूर्ति पूजकों का खाना नहीं खाते ।”

पड़ोसिन को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसने ज़ब्त कर लिया और हल्के से बुदबुदायी कि गोरों की कृपा से दलित भी घमण्डी हो गये थे ।

वह ठीक ही कह रही थी। पुराने दिनों में स्वतन्त्र पैदा हुए लोगों के सामने एक दलित अपना मुँडा हुआ सिर नहीं उठा सकता था । वह वंश के कई देवताओं में एक का गुलाम होता था । उसे तो एकदम अलग रखा जाता था । वह पूजनीय नहीं बल्कि लोगों की घृणा का पात्र होता था, उस पर तो लगभग थूका जाता था । वह न तो स्वतंत्र पैदा हुए लोगों में शादी कर सकता था और न ही वंश की कोई उपाधि प्राप्त कर सकता था। मरने पर उसे अपने जैसों के साथ उजाड़ जंगल में दफना दिया जाता था ।

अब यह सब बदल गया था, या बदलने लगा था, यहाँ तक कि एक दलित बच्चा अब स्वतंत्र पैदा हुए पर भी नाक-भौं सिकोड़ सकता था और मूर्ति पूजकों के भोजन पर फब्ती कस सकता था । गोरों की वास्तव में बहुत-सी उपलबिधियाँ थीं ।

चिके का पिता शुरू से दलित नहीं था, लेकिन उसने ईसाई धर्म के नाम पर एक दलित महिला से शादी की थी। इस प्रकार आँख खुली रखते हुए स्वयं को दलित बना लेने के उदाहरण शायद ही सुनाई पड़ते हों । लेकिन आमोस तो पागल था ही । नये धर्म ने उसका सिर फेर दिया था। वह तो ताड़ी की तरह था । कुछ लोग उसे पीकर भी होशो हवास में रहते थे । औरों का हर होश गुम हो जाता था ।

आमोस के इस पागल विवाह का समर्थन सिर्फ एक ही आदमी ने किया था और वह था गोरा मिशनरी मिस्टर ब्राउन जो एक लाल मिट्टी की दीवारों वाली तथा फूस के छप्पर वाली झोंपड़ी - पादरी का घर में रहता था। लोग उसका बहुत आदर करते थे, इसलिए नहीं कि वह उपदेश देता था बल्कि इसलिए कि अपने एक कमरे में उसने दवाखाना खोल रखा था । ब्राउन के पादरीपन के कारण आमोस की स्थिती काफी सुद्दढ़ हो गई थी । विवाह का निश्चय कर लेने के कुछ दिन बाद आमोस ने यह ख़बर अपनी विधवा माँ को दी जिसने कुछ समय पहले ही अपना धर्म परिवर्तन करके एलिज़ाबेथ का नाम अपना लिया था । समाचार के शॉक से वह तो लगभग मर ही गई । जब उसे होश आया तो उसने आमोस के सामने घुटने टेक उससे ऐसा न करने का अनुरोध किया. लेकिन उसने एक नहीं सुनी; उसके कानों में तो पिघला सीसा भरा हुआ था । अन्त में तंग आकर एलिज़ाबेथ तांत्रिक के पास गई ।

तांत्रिक बहुत ही शक्तिशाली तथा बुद्धिमान व्यक्ति था । अपनी झोंपड़ी के फर्श पर बैठे हुए, आँखों के चारों ओर चाक मले हुए । कछुए के खोल को बजाते हुए वह न सिर्फ वर्तमान को बल्कि जो बीत गया था और जो होनेवाला था उसे भी देख सकता था । उसे "चतुदृष्टि वाला व्यक्ति" कहा जाता था । जैसे ही उसने एलिज़ाबेथ को देखा उसने लड़ी में पिरोई कौड़ियों को फेंका और उसे बता दिया कि वह उससे किस कारण मिलने आई थी । "तुम्हारे बेटे ने गोरों का धर्म अपना लिया है। और तुमने भी, जबकि इस बुढ़ापे में तुम्हें बेहतर सोचना चाहिए था । तुम्हें आश्चर्य क्यों है कि उस पर पागलपन सवार है ? जो लोग दीमक लगी लकड़ियों के गट्ठर इकट्ठा करते हैं उन्हें छिपकलियों के आने की अपेक्षा करनी चाहिए ।" उसने कई बार अपनी कौड़ियों को इधर-उधर फेंका और अंगुली से रेत के कटोरे पर कुछ लिख दिया । इस बीच उसका न्वीफुलु-बोलनेवाला तूम्बा - बुड़बुड़ करता रहा । 'चुप बे' वह चिल्लाया और तूम्बा शान्त हो गया । तान्त्रिक ने फिर कुछ मन्त्र पढ़े और तेज़ी से एक के बाद एक कई कहावतें ऐसे दोहरा दीं जैसे उसके जादुई धागे से पिरोई कौड़ियाँ हों ।

अन्त में उसने इलाज सुना दिया । पूर्वज नाराज़ थे और उन्हें बकरे से शान्त किया जाना चाहिए । एलिज़ाबेथ ने रस्में पूरी कर दीं लेकिन उसका बेटा पागल ही रहा और उसने एक दलित लड़की से शादी कर ली जिसका नाम सराह था। बूढ़ी एलिज़ाबेथ ने अपना नया धर्म त्याग दिया और अपने लोगों के धर्म में वापिस लौट आई ।

हम अपनी मुख्य कहानी से भटक गये हैं । लेकिन यह जानना भी आवश्यक है कि चिके के पिता कैसे दलित बने, क्योंकि आजकल के दिनों में भी जब सब कुछ उल्टा-पुल्टा है । ऐसी कहानी बहुत ही असाधारण है । चलिए अब वापिस चिके के पास चलें जिसने चार वर्ष की ही छोटी उम्र में-या पाँच की मूर्ति पूजक भोजन खाने से इन्कार कर दिया था ।

दो वर्ष बाद वह गाँव के स्कूल में जाने लगा । वह अब दायें हाथ से सिर के पार बायें कान को छू सकता था, जिसका अर्थ था कि अब वह इतना बड़ा हो गया था कि गोरे लोगों के ज्ञान के रहस्य की गुत्थी को सुलझा सके । उसे अपनी नई स्लेट और पेन्सिल की बड़ी खुशी थी और विशेषकर सफेद कमीज़ और ब्राउन खाकी निकर वाली स्कूली वर्दी की भी । लेकिन जैसे ही नये सत्र का पहला दिन नज़दीक आने लगा, उसके मन में अध्यापकों तथा बेंत की कई कहानियाँ घर करने लगीं । और उसे अपनी बड़ी बहन का एक गीत याद आया, गीत जिसमें कुछ बेचैन-सा कर देनेवाला भाव था :- 'ओने न्कूजी एवेलू पियागबुसी उमुआका '

ईबो भाषा में किसी बात पर जोर देने के तरीकों में से एक है अतिशयोक्ति, इसीलिए हो सकता है गीत के अध्यापक ने बच्चों को बेंत मारते-मारते जान से न मार डाला हो । लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उसने उन्हें बेंत मारे थे । और चिके इसके बारे में बहुत-कुछ सोचता रहा ।

बहुत छोटा होने के कारण चिके को उस क्लास में भेजा गया जिसे आध्यात्मिक क्लास कहते हैं और जहाँ बच्चे प्रश्नोत्तर गा-गा कर और कभी-कभी नाच नाचकर याद करते हैं । उसे शब्दों से लगाव था और लय से लगाव था । धार्मिक शिक्षा के पाठ के दौरान क्लास एक दायरे में नाचते-नाचते अध्यापक का प्रश्न दोहराती थी । 'सीज़र कौन था ?' वह पूछ सकते थे और पैर पटकते-पटकते बच्चे यूँ गाते थे ।

'सीज़र बू एज़े रोम
ओन्ये नाची एनू ऊवा हुम'

उनके नाच को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि बीसवीं शताब्दी में सीज़र सारी दुनिया का बादशाह नहीं था ।

और कभी-कभी वे अंग्रेज़ी में भी गाते थे । चिके को 'टैन ग्रीन बॉटल्स' बहुत पसन्द था । उन्हें शब्द सिखाये गये थे लेकिन उन्हें सिर्फ पहली और आखिरी लाइनें याद थीं । बीच का हिस्सा गुनगुनाया, हुम- हुमाया और बुदबुदाया जाता था :

'टैन ग्रिन बोट्र ऐंगिन ओन डार वार,
टैन ग्रिन बोट ऐंगिन ओन डार वार,
हम हम हम हम हम
हम हम हम, हम, हम्,
ऐन टैन ग्रिन बोट ऐंगिन औन डार वार'

इस तरह पहला साल बीत गया । चिके को 'शिशु स्कूल' में पदोन्नत कर दिया गया, जहाँ अधिक गम्भीर काम होता था ।

हमें 'शिशु स्कूल' के समय में उसकी सारी गतिविधियों के बारे में जानने की आवश्यकता नहीं । वह तो अपने आप में एक पूर्ण कहानी है । लेकिन वह कहानी तो दूसरे बच्चों की कहानी से भिन्न नहीं है । लेकिन प्राइमरी स्कूल में उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व दिखलाई पड़ने लगा । उसे गणित से सख्त नफरत हो गई । लेकिन उसे कहानियाँ और गीत अत्यन्त प्रिय थे । और उसे अंग्रेज़ी शब्दों की ध्वनियाँ बहुत पसन्द थीं। चाहे उसके लिए उनका कोई अर्थ न भी हो । कुछ को सुनकर तो वह पुलकित हो उठता था । 'पैरीविन्कल' ऐसा ही शब्द था । उसे अब याद नहीं था कि उसने इसे कैसे सीखा था और यह क्या था । उसके मन में इस शब्द का एक अस्पष्ट सा निजी अर्थ था और उसका सम्बन्ध परियों के देश से था । 'कॉन्सटेलेशन' एक अन्य ऐसा ही शब्द था ।

चिके के अध्यापक को लम्बे-लम्बे शब्द पसन्द थे । वह अत्यन्त ज्ञानी व्यक्ति के रूप में जाना जाता था । उसका प्रिय मनोरंजन ही था अपनी 'चेम्बर्स इटीमलजिकिल डिक्शनरी' में से जबड़ा-तोड़ शब्दों को ढूँढ़ कर उनकी नकल करना । अभी उसी दिन उसने अपनी क्लास में एक लड़के द्वारा देर से आने के कारण को अपने लाजवाब ज्ञान से ध्वस्त करके 'वाह वाह' करवाई थी । उसने कहा “दीर्घसूत्रता आलसी व्यक्ति का बहाना है ।" उस के द्वारा पढ़ाये जानेवाले हर विषय में उसका ज्ञान झलकता था । प्रकृति पर उसके पाठ तो स्मरणीय थे । चिके को बीजों के बिखराव के तरीक़ों पर उसका पाठ हमेशा याद रहा । अध्यापक के अनुसार ये पाँच तरीके थे, आदमी द्वारा पशुओं द्वारा, पानी द्वारा, हवा द्वारा तथा 'विस्फोटक प्रक्रिया द्वारा । उन बच्चों को भी जिन्हें अन्य तरीके भूल गये, 'विस्फोटक प्रक्रिया' याद रहा ।

स्वाभाविक है चिके अध्यापक की विस्फोटक शब्दावली से बहुत प्रभावित हुआ । लेकिन शब्दों का उसपर जो जादुई असर पड़ता था वह कुछ और ही था । उसके 'न्यू मैथड रीडर' में पहले वाक्य बहुत ही सीधे-सादे थे लेकिन वे उसे एक अस्पष्ट से उल्लास से भर देते थे । “एक बार एक जादूगर था । वह अफ्रीका में रहता था । वह एक लैम्प लेने चीन गया ।" चिके ने इसे घर पर बार-बार पढ़ा और फिर उसके बारे में एक गीत बनाया। वह निरर्थक गीत था । उसमें 'पैरीविन्कल' भी घुस गया था और 'दमिश्क' भी । लेकिन गीत एक खिड़की की तरह था जिसमें से वह दूर एक अजीब जादुई दुनिया को देख सकता था । और वह खुश था ।

(अनुवादक : हरीश नारंग)

(साभार : फौजी लड़कियाँ तथा अन्य कहानियाँ-साहित्य अकादेमी)

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